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एडिटोरियल

  • 24 Feb, 2024
  • 23 min read
शासन व्यवस्था

रक्षा भर्ती में सुधार

यह एडिटोरियल 23/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “It is the conditioning of the Agniveer that merits attention” लेख पर आधारित है। इसमें ‘अग्निपथ योजना’ को लागू करने में संलग्न चुनौतियों का आकलन करने के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है और उन्हें संबोधित करने के लिये सुधारों का प्रस्ताव किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

अग्निपथ योजना, इज़राइल डिफेंस फोर्सेज (IDF), रूस-यूक्रेन संघर्ष, त्रि-सेवाएँ - थलसेना, नौसेना और वायु सेना

मेन्स के लिये:

अग्निपथ योजना का महत्त्व, कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

अग्निपथ योजना की घोषणा 14 जून, 2022 को की गई थी और ‘अग्निवीर’ (जिस नाम से इन युवा पुरुष-महिलाओं को जाना जाता है) के पहले बैच को भर्ती प्रशिक्षण पूरा करने के साथ सशस्त्र बल इकाइयों में शामिल कर लिया गया है।

इस योजना की कई आधारों का हवाला देते हुए विशेष रूप से पूर्व-सैनिक समुदाय द्वारा आलोचना की गई है। पूर्व-सैनिकों ने मुख्य रूप से उस संगठन के प्रति अपनेपन की भावना के कारण अस्वीकृति व्यक्त की है जिसमें उन्होंने सेवा दी थी।

अग्निपथ योजना क्या है?

  • परिचय:
    • यह देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण एवं प्रेरित युवाओं को चार वर्ष की अवधि के लिये सशस्त्र बलों में सेवा करने का अवसर देता है। सेना में शामिल होने वाले इन युवाओं को ‘अग्निवीर’ के रूप में जाना जाता है।
    • इस नई योजना के तहत प्रतिवर्ष लगभग 45,000 से 50,000 सैनिकों की भर्ती की जाएगी और इनमें से अधिकांश चार वर्षों के बाद सेवानिवृत्त कर दिये जाएँगे।
    • चार वर्षों की अवधि के बाद बैच के केवल 25% अग्निवीरों को ही अगले 15 वर्षों की अवधि के लिये उनकी संबंधित सेवाओं में वापस नियुक्त किया जाएगा।
  • पात्रता मापदंड:
    • यह केवल अधिकारी रैंक से नीचे के कर्मियों के लिये है (यानी वे जो कमीशन अधिकारी के रूप में सैन्य बलों में शामिल नहीं होते हैं)।
      • कमीशन प्राप्त अधिकारी भारतीय सशस्त्र बलों में एक विशिष्ट रैंक रखते हैं। वे प्रायः राष्ट्रपति की संप्रभु शक्ति के तहत कमीशन रखते हैं और उन्हें आधिकारिक तौर पर देश की रक्षा करने का निर्देश दिया जाता है।
    • 17.5 वर्ष से 23 वर्ष की आयु के उम्मीदवार अग्निपथ योजना के तहत आवेदन करने के पात्र हैं।
  • उद्देश्य:
    • इससे भारतीय सशस्त्र बलों की औसत आयु प्रोफ़ाइल में लगभग 4 से 5 वर्ष की कमी आने की उम्मीद है।
    • योजना की परिकल्पना के अनुसार सैन्य बलों की औसत आयु, जो वर्तमान में 32 वर्ष है, छह-सात वर्षों में घटकर 26 वर्ष हो जाएगी।

अग्निपथ योजना के संबंध में विभिन्न चिंताएँ क्या हैं?

  • अग्निवीरों को सैन्य इकाइयों में निर्बाध रूप से शामिल करने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि संबंधित यूनिट कमांडरों के समक्ष आगे की चुनौतियों के बारे में पर्याप्त स्पष्टता हो। ये चुनौतियाँ अग्निवीरों की व्यक्तिगत क्षमताओं से परे हैं और उम्मीद की जाती है कि सैन्य बल में बने रहने के लिये वे उत्कृष्ट प्रदर्शन करेंगे। ये चुनौतियाँ अपनी प्रकृति में अधिक अमूर्त हैं और नेतृत्वकर्ताओं का ध्यान आकर्षित करती हैं।
  • पेशेवर क्षमताओं पर प्रतिकूल प्रभाव:
    • युवा सैनिकों की बहुत अधिक संख्या, प्रशिक्षण क्षमताओं एवं अवसंरचना की वृद्धि और सैनिकों की अधिकाधिक भर्ती, निर्मुक्ति एवं प्रतिधारण के लिये प्रशासनिक व्यवस्था के आवर्द्धन से प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न होगा।
  • परिचालन क्षमता का ह्रास:
    • खराब ‘टीथ-टू-टेल’ अनुपात (teeth-to-tail ratio- T3R) रखने वाला सशस्त्र बल ‘टेल’ को बढ़ा रहा है। भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना अपने वायुसैनिकों एवं नौसैनिकों को अत्यंत विशिष्ट भूमिकाओं में नियुक्त करती है जिनके लिये तकनीकी कौशल और उच्च स्तर के प्रशिक्षण एवं अनुभव की आवश्यकता होती है।
      • चूँकि अल्पकालिक संविदा सैनिक मॉडल (अग्निपथ योजना) को संगठनात्मक स्तर पर पूरी तरह से लागू होने में कुछ वर्ष लगेंगे, इस योजना से T3R अनुपात के और बढ़ने का जोखिम है।

नोट

  • टीथ-टू-टेल अनुपात (T3R) सैन्य रणनीति एवं योजना निर्माण में प्रयुक्त एक अवधारणा है जो लड़ाकू बलों (teeth) और सहायक कर्मियों (tail) के अनुपात को प्रकट करता है।
    • ‘टीथ’ पैदल सेना, लड़ाकू पायलटों और लड़ाकू वाहनों सहित अग्रिम पंक्ति की लड़ाकू सेनाओं का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि ‘टेल’ में लॉजिस्टिक्स, प्रशासन एवं चिकित्सा इकाइयों जैसे सहायक तत्त्व शामिल हैं।
  • उच्च T3R लड़ाकू बलों की तुलना में सहायक कर्मियों के एक बड़े अनुपात को इंगित करता है, जो एक अच्छी तरह से समर्थित एवं संवहनीय सैन्य परिचालन का संकेत हो सकता है।
  • वर्ग-आधारित भर्ती को अखिल भारतीय सर्व-श्रेणी भर्ती से प्रतिस्थापित किया जाना:
    • स्वरूप में ऐसा भारी परिवर्तन सशस्त्र बल के लिये उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि यह भारतीय सेना के संगठनात्मक प्रबंधन, नेतृत्व संरचनाओं एवं परिचालन दर्शन के आधार पर चोट करेगा।
      • भले ही भारतीय सेना में सैनिक पेशेवर रूप से प्रशिक्षित होते हैं, वे अपनी सामाजिक पहचान से भी प्रेरणा ग्रहण करते हैं जहाँ प्रत्येक सैनिक अपने जाति समूह या अपने ग्राम या अपने सामाजिक परिवेश में समकक्षों के बीच अपनी प्रतिष्ठा की परवाह करता है।
  • भरोसे और सहयोग की कमी को बढ़ावा:
    • विभिन्न स्तरों के अनुभव और प्रेरणा रखने वाले सैनिकों के प्रशिक्षण, एकीकरण एवं तैनाती में बड़ी समस्याएं उत्पन्न होंगी। 25% अल्पकालिक अनुबंधित सैनिकों को सेवा में बनाये रखने हेतु उनकी पहचान के मानदंड के परिणामस्वरूप अस्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति बन सकती है।
      • एक संगठन जो विश्वास, सौहार्द एवं बंधुत्व की भावना पर निर्भर करता है, वह विजेताओं एवं पराजितों (जो सेवा में बने रहते हैं और जो सेवामुक्त कर दिये जाते हैं) के बीच प्रतिद्वंद्विता एवं ईर्ष्या से जूझने के लिये विवश हो सकता है (विशेष रूप से अनुबंध के अंतिम वर्ष में)।
  • राज्यवार कोटा की समाप्ति:
    • अग्निपथ योजना सेना में भर्ती के लिये किसी राज्य की भर्ती योग्य पुरुष जनसंख्या के आधार पर राज्य-वार कोटा के उस विचार को भी समाप्त कर देती है, जिसे वर्ष 1966 से लागू किया गया था।
      • इस कोटा प्रणाली ने सेना में असंतुलन पर नियंत्रण किया ताकि किसी एक राज्य, भाषाई समुदाय या जातीयता का वर्चस्व न हो, जैसा कि पाकिस्तान के मामले में दिखता है जहाँ पंजाब का प्रभुत्व है।
      • अकादमिक शोध से पता चलता है कि उच्च स्तर का जातीय असंतुलन लोकतंत्र की गंभीर समस्याओं और गृह युद्ध की बढ़ती संभावना से जुड़ा हुआ है, जो आज के भारत के लिये एक चिंताजनक परिदृश्य है जहाँ सत्तारूढ़ दल की विचारधारा द्वारा ‘संघवाद’ (federalism) की कड़ी परीक्षा ली जा रही है।
  • पर्याप्त प्रेरक पहलुओं का अभाव:
    • भारत में, भारतीय सेना ने अब तक वेतन, वर्दी और प्रतिष्ठा प्रदान की है, जो अंग्रेज़ों से  विरासत के रूप में ग्रहण की गई, जो जीवन दशाओं, सैनिकों के परिवारों के लिये सुविधाओं और सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ एवं पुरस्कार (जैसे भूमि अनुदान) का ध्यान रखते थे।
      • एक अल्पकालिक संविदा सैनिक, जिसे पेंशन भी नहीं मिलेगा, अपनी सैन्य सेवा के बाद ऐसी नौकरियाँ करते हुए देखा जाएगा जो स्थिति एवं प्रतिष्ठा में सैन्य सेवा जैसे सम्मान के पेशे के अनुरूप नहीं होगा। इससे अल्पकालिक अनुबंधों पर शामिल होने वालों की प्रेरणा कम हो जाएगी।
  • आवश्यकता और भर्ती के बीच भारी असंगति:
    • वर्तमान में तीनो सैन्य सेवाओं में लगभग 1,55,000 कर्मियों की कमी है, जहाँ थल सेना में सर्वाधिक 1,36,000 रिक्तियाँ हैं। इनमें से 90% से अधिक रिक्त पद ग़ैर-अधिकारी लड़ाकू रैंक के हैं जिन्हें अग्निपथ योजना भरने का लक्ष्य रखती है। इस परिदृश्य में, चार वर्ष की सेवा के बाद 75% प्रशिक्षित रंगरूटों को सेवामुक्त करना एक बड़ा अपव्यय होगा।
  • बिगड़ता भू-राजनीतिक परिदृश्य:
    • भारत-चीन सीमा पर शांति के भंग होने का अर्थ यह कि भारत को अब चीन, पाकिस्तान के साथ ही कश्मीर में विद्रोहियों पर नज़र रखने के लिये सैन्यबलों के उच्च स्तर की आवश्यकता है।
    • पहले आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल रही राष्ट्रीय राइफल्स (RR) इकाइयों में से कुछ की चीन के मोर्चे पर तैनाती से यह असंगति प्रकट हो रही है।
      • इसके अतिरिक्त, उभरती सुरक्षा चुनौतियों (जैसे वर्तमान मणिपुर संकट) की अनदेखी नहीं की जा सकती, जहाँ स्थिति के प्रबंधन के लिये सेना सहायक बल के रूप में कार्य करती है।
  • सेवानिवृत्त अग्निवीरों के लिये अपर्याप्त अवसर:
    • अर्थव्यवस्था सेवानिवृत्त अग्निवीरों को किस हद तक आत्मसात करेगी या उनका स्वागत करेगी, यह उनके कौशल और उन्हें प्राप्त प्रशिक्षण पर निर्भर करेगा।
    • यह स्थिति चुनौतीपूर्ण होगी, विशेष रूप से जबकि उल्लेखनीय या पर्याप्त संख्या में सार्थक रोज़गार के अवसर अभी भी स्नातकों की बढ़ती संख्या से दूर हैं। चूँकि अग्निपथ योजना राष्ट्रीय रक्षा एवं सुरक्षा से संबंधित है, इसलिये यह स्थिति महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ खड़ी करती है।

भर्ती प्रक्रिया में कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

  • आयु सीमा और स्थायी प्रतिधारण कोटा बढ़ाना:
    • सरकार आयु सीमा और स्थायी प्रतिधारण कोटा को 50% तक बढ़ाकर प्रतिबद्ध एवं कुशल व्यक्तियों को आकर्षित कर सकती है, सशस्त्र बलों की परिचालन तत्परता सुनिश्चित कर सकती है और युवा उत्साह एवं अनुभव का एक संतुलित मिश्रण प्राप्त कर सकती है।
      • ये संशोधन सरकार की ओर से स्वागतयोग्य सुधार होंगे जहाँ यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि सशस्त्र बल अपनी समग्र परिचालन तत्परता से समझौता किए बिना समय के साथ प्रभावी ढंग से आकार में कमी एवं आधुनिकीकरण की ओर आगे बढ़ें।
  • सैन्य इकाइयों के दायरे में मनोवैज्ञानिक आत्मसातीकरण:
    • जब एक सैन्य इकाई युद्ध में होती है तो उससे अंततः परिणाम की उम्मीद की जाती है। किसी प्रतिद्वंद्वी के समक्ष वांछित परिणाम के लिये तैयारी लगातार जारी रहनी चाहिए और चुनौतीपूर्ण युद्ध स्थितियों के उभरने तक प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।
      • इसी तरह, यूनिट कमांडरों को अग्निवीरों को यूनिट संरचना में मनोवैज्ञानिक रूप से समाहित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें प्रभावी दल सदस्य बनने के लिये तैयार किया जाए।
  • सैन्य इकाई सामंजस्य को बढ़ावा देना:
    • इकाई गौरव इकाई एकजुटता से उत्पन्न होता है, जो एक उत्कृष्ट सैन्य इकाई की पहचान है, जो फिर व्यक्तिगत सैनिक के मानवीय तत्त्व पर निर्भर होता है।
    • सैनिक अनुशासन का आधार और इस प्रकार एक दल सदस्य के रूप में उसकी प्रेरणा एवं मनोविज्ञान हमेशा उसके व्यक्तिगत विवेक एवं चरित्र से संबंधित होता है। यही चरित्र संबंधों में सामंजस्य स्थापित करता है और इकाई सौहार्द का निर्माण करता है जो किसी सैनिक को युद्ध के मैदान में शक्ति प्रदान करता है।
  • मानवीय तत्त्व और युद्ध के पारंपरिक तरीकों की पहचान करना:
    • जारी रूस-यूक्रेन संघर्ष या संभवतः इज़राइल रक्षा बलों (IDF) की इज़राइल-हमास संघर्ष में असफलताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि मानवीय तत्त्व और युद्ध के पारंपरिक तरीके आधुनिक तकनीक से अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। आधुनिक प्रौद्योगिकी पुराने तरीकों और रणनीतियों को केवल पूरकता ही प्रदान कर सकती है। 
      • भले ही अग्निवीरों के पास दूसरों की तुलना में बेहतर तकनीकी कौशल या ज्ञान हो, विशेष रूप से विशिष्ट क्षेत्र या संदर्भ में, इससे उनके नेतृत्वकर्ताओं को अधिक संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। जब तक इन पुरुषों और महिलाओं को सौहार्दपूर्ण जीवन जीने के लिये प्रशिक्षित नहीं किया जाता, तब तक उक्त गुण निरर्थक सिद्ध होंगे।
  • अग्निवीरों का मूल्य-आधारित पोषण और प्रशिक्षण :
    • सैन्य इकाई के लोकाचार पर आधारित मूल्य-आधारित पोषण को तुरंत शुरू करने की आवश्यकता है और इसके योजना निर्माण एवं क्रियान्वयन का दायित्व इकाई के नेतृत्वकर्ता पर है। युद्ध क्षेत्र में तकनीकी प्रगति के बावजूद, एक सैनिक के अपने साथी के साथ खड़े रहने के चरित्र को कभी कम नहीं आँका जा सकता।
  • प्रतिस्पर्द्धी सहयोग की भावना को बढ़ावा देना:
    • प्रतिधारण बनाम सेवामुक्ति के लिये प्रतिस्पर्द्धा के विषय में निश्चित रूप से अग्निवीर एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करेंगे। लेकिन अग्निवीरों के बीच दूसरे से श्रेष्ठ होने की प्रवृत्ति एकीकृत बल विकसित करने के लक्ष्य के विपरीत होगी।
      • चूँकि 25% अग्निवीर ही सेवा में बने रहेंगे, उनके बीच अवांछित व्यक्तित्व लक्षण के किसी भी अंकुरण को रोकना कठिन चुनौती होगी। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो यह गंभीर रूप धारण कर सकता है और दीर्घावधि में सैन्य इकाई के हित को प्रभावित कर सकता है।
  • मनोवैज्ञानिक परीक्षण को शामिल करना:
    • सरकार को सेना में अधिकारियों के चयन में इस्तेमाल की जाने वाली पद्धति के अनुरूप ही अग्निवीर भर्ती प्रक्रिया में भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण को शामिल करने पर विचार करना चाहिए।
      • इससे यूनिट कमांडर को उपलब्ध मानव संसाधनों का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी और अग्निवीरों को बेहतर रूप से तैयार करने एवं उनका मूल्यांकन करने की सुविधा प्राप्त होगी।
  • सैन्य-असैन्य विभाजन को दूर करना:
    • सेना एक ऐसी संस्था बनी रही है जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा में निभाई गई भूमिका के लिये अत्यंत सम्मान दिया जाता है। अग्निवीरों की भर्ती की शुरुआत का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू और प्रभाव यह है कि इससे सेना नागरिक सेना बनने की दिशा में एक छोटा कदम उठाएगी। अग्निपथ योजना को युवाओं को सेना के बारे में जानने एवं समझने में मदद करनी चाहिए, जिससे सैन्य-असैन्य विभाजन कम हो सके।
  • भविष्योन्मुख युद्ध के लिये तैयार सैन्यबल के रूप में भूमिका:
    • यूक्रेन युद्ध ने रक्षा प्रणाली के एक अंग के रूप में प्रशिक्षित नागरिकों के महत्त्व को सिद्ध किया है। अग्निपथ में भारत के लिये एक भविष्योन्मुख युद्ध के लिये तैयार सैन्यबल प्रदान करने की क्षमता है जो युद्ध एवं शांति काल, विशेष रूप से आपदा राहत एवं बचाव जैसी स्थितियों में उपलब्ध हो सकती है।
      • यहाँ तक कि उनमें आतंकी हमलों के दौरान भी एक प्रतिरोध शक्ति बनने की संभावना है। सशस्त्र बलों में प्रशिक्षित होने के बाद सेवामुक्त हुए अग्निवीरों को नागरिकों के बीच संभावित आरक्षित युवा सेना के रूप में शामिल किया जा सकता है।

निष्कर्ष

अग्निपथ योजना की शुरूआत भारत की रक्षा नीति में एक महत्त्वपूर्ण सुधार का प्रतीक है, जो सशस्त्र बलों के लिये भर्ती प्रक्रिया में बदलाव लाती है। जबकि इस योजना ने ध्यान आकर्षित किया है और एक बहस भी छिड़ गई है, इसके आरंभिक कार्यान्वयन ने भर्ती किए गए अग्निवीरों की प्रेरणा, बुद्धिमत्ता एवं शारीरिक मानकों के संबंध में आशाजनक संकेतक दिखाए हैं। सैन्य अभियानों में मानवीय तत्त्व सर्वोपरि रहता है और यह तकनीकी प्रगति से भी अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है। इसलिये, नेतृत्वकर्ताओं को अग्निवीरों के चरित्र विकास एवं मनोवैज्ञानिक कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए, जहाँ यह सुनिश्चित किया जाए कि वे इकाई गौरव एवं एकजुटता के लोकाचार के साथ संरेखित हों।

अभ्यास प्रश्न: सशस्त्र बलों में भर्ती के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू की गई अग्निपथ योजना के महत्त्व एवं चुनौतियों की चर्चा कीजिये। कौन-से उपाय इसकी सफलता सुनिश्चित कर सकते हैं?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

प्रश्न. सीमा प्रबंधन विभाग निम्नलिखित में से किस केंद्रीय मंत्रालय का एक विभाग है? (2008)

(a) रक्षा मंत्रालय
(b) गृह मंत्रालय
(c) नौवहन, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय
(d) पर्यावरण और वन मंत्रालय

उत्तर: (b)


प्रश्न: भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

प्रश्न: आंतरिक सुरक्षा खतरों तथा नियंत्रण रेखा (LoC) सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमाओं पर सीमा पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की भी चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)

प्रश्न: दुर्गम क्षेत्र एवं कुछ देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारण सीमा प्रबंधन एक कठिन कार्य है। प्रभावशाली सीमा प्रबन्धन की चुनौतियों एवं रणनीतियों पर प्रकाश डालिये। (मुख्य परीक्षा, 2016)


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