भारत में स्टार्ट-अप को बढ़ावा
यह एडिटोरियल 21/11/2022 को ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित “Policy engine on, Keep going, startup India” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र और उससे संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत को स्टार्टअप्स (Startups) के लिये इसकी विशाल वाणिज्यिक क्षमता के लिये प्रायः ‘उभरते बाज़ारों के पोस्टर चाइल्ड’ के रूप में वर्णित किया जाता है। दुनिया के कई अन्य भागों की तरह भारत में भी स्टार्टअप्स पर हाल के वर्षों में अधिक ध्यान दिया गया है। उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है और उन्हें व्यापक रूप से विकास एवं रोज़गार सृजन के महत्त्वपूर्ण इंजन के रूप में चिह्नित किया जा रहा है।
- हालाँकि दूरंदेशी नीतियों और वित्तीय बाधाओं की कमी के कारण, भारत के स्टार्टअप पारितंत्र को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस परिदृश्य में प्रभावशाली स्टार्टअप समाधान उत्पन्न करने के लिये नवाचार (Innovation) और उभरती हुई प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इस प्रकार यह भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास और परिवर्तन के लिये एक वाहन के रूप में अपनी भूमिका निभा सकता है।
भारत में स्टार्ट-अप पारितंत्र की वर्तमान स्थिति
- वर्ष 2021 में भारतीय स्टार्टअप्स ने 1000 से अधिक सौदों के माध्यम से 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए और 33 स्टार्टअप्स यूनिकॉर्न (Unicorns) के रूप में उभरे। वर्ष 2022 में अभी तक यूनिकॉर्न क्लब में 13 और भारतीय स्टार्टअप शामिल हो चुके हैं।
- स्टार्टअप पारितंत्र के मामले में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है।
- बेन एंड कंपनी (Bain and Company) द्वारा प्रकाशित इंडिया वेंचर कैपिटल रिपोर्ट, 2021 के अनुसार भारत में संचयी स्टार्टअप की संख्या वर्ष 2012 से 17% के चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर (CAGR) से बढ़ी है और 1,12,000 की संख्या को पार कर गई है।
स्टार्टअप से संबंधित सरकार की प्रमुख पहलें
- स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS): यह योजना स्टार्टअप्स को उनकी अवधारणा को प्रमाणित करने, प्रोटोटाइप विकसित करने, उत्पादों का परीक्षण करने और बाज़ार में प्रवेश हेतु मदद करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार: यह कार्यक्रम नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देकर आर्थिक गतिशीलता में योगदान करने वाले उत्कृष्ट स्टार्टअप और पारिस्थितिक तंत्र को चिह्नित करता है और उन्हें पुरस्कृत करता है।
- SCO स्टार्टअप फोरम: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों में स्टार्टअप पारितंत्र के विकास और सुधार के साधन के रूप में अक्टूबर 2020 में स्थापित SCO स्टार्टअप फोरम अपनी तरह का पहला प्रयास है।
- प्रारंभ (Prarambh): ‘प्रारंभ’ शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया भर के स्टार्टअप्स और युवा प्रतिभाओं को नए विचार, नवाचार और आविष्कार के साथ आने के लिये एक मंच प्रदान करना है।
- नवाचारों के विकास और दोहन के लिये राष्ट्रीय पहल (National Initiative for Developing and Harnessing Innovations -NIDHI): यह स्टार्टअप्स के लिये एक एंड-टू-एंड (End to End)योजना है जिसका लक्ष्य पाँच वर्ष की अवधि में इनक्यूबेटरों और स्टार्टअप्स की संख्या को दोगुना करना है।
- स्टार्टअप पारितंत्र के समर्थन स्तर पर राज्यों की रैंकिंग (Ranking of States on Support to Startup Ecosystems- RSSSE): वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) वर्ष 2018 से राज्यों द्वारा स्टार्टअप पारितंत्र को दिये जाते समर्थन स्तर के आधार पर उनकी रैंकिंग कर रहा है।
भारत में स्टार्टअप से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ
- नवाचार पर ज़ोर देने की कमी: भारत की शिक्षा प्रणाली में व्यावसायिक प्रशिक्षण और ‘इंडस्ट्री एक्सपोज़र’ का अभाव है जो छात्रों को नवाचार उन्मुख होने से वंचित रखता है। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली अनुसंधान एवं विकास के मामले में पीछे रह जाती है।
- इसके कारण युवा प्रतिभाएँ विदेशों में अनुसंधान और व्यापार के लिये भारत से पलायन कर रही हैं, जिसकी देश को भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
- पहचान की कमी: लगभग 70% भारतीय आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है जो अभी भी विश्वसनीय इंटरनेट पहुँच से वंचित हैं। इसके कारण, ग्राम-आधारित कई स्टार्टअप चिह्नित नहीं हो पाते और सरकारी वित्तपोषण पहल के लाभ से वंचित रह जाते हैं।
- ‘बूटस्ट्रैप्ड स्टार्टअप’: स्टार्टअप के कार्यान्वयन के लिये उल्लेखनीय मात्रा में कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है। भारत में कई स्टार्टअप, विशेष रूप से अपने आरंभिक चरणों में ‘बूटस्ट्रैपिंग’ (Bootstrapping) के लिये बाध्य होते हैं, यानी संस्थापकों की अपनी बचत के माध्यम से स्व-वित्तपोषित होते हैं क्योंकि उपलब्ध घरेलू वित्तपोषण सीमित है।
- इसके परिणामस्वरूप, भारत में अधिकांश स्टार्टअप पहले पाँच वर्षों के अंदर ही विफल हो जाते हैं और इसका सबसे आम कारण है औपचारिक धन की कमी।
- ‘स्केलेबिलिटी’ संबंधी चिंता: भारत में छोटे स्टार्टअप के पास ग्राहकों की सीमित समझ होती है और वे केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित होते हैं, जहाँ वे स्थानीय भाषा और स्थानीय लोगों की समझ रखते हैं।
- इस भाषाई बाधा और कनेक्टेड आपूर्ति शृंखलाओं की कमी के कारण स्टार्टअप्स के लिये अपने उत्पादों को देश भर के ग्राहकों तक पहुँचाना कठिन हो जाता है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में अत्यंत सीमित पैठ: फिनटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्र में भारतीय स्टार्टअप बहुत बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन अंतरिक्ष क्षेत्र के स्टार्टअप पिछड़े बने रहे हैं।
- वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था लगभग 440 बिलियन अमेरिकी डॉलर की है, जिसमें भारत की बाज़ार हिस्सेदारी 2% से भी कम है।
- इसका कारण है- अंतरिक्ष क्षेत्र में स्वतंत्र निजी भागीदारी का अभाव।
- वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था लगभग 440 बिलियन अमेरिकी डॉलर की है, जिसमें भारत की बाज़ार हिस्सेदारी 2% से भी कम है।
आगे की राह
- स्कूल-उद्यमिता गलियारा (School-Entrepreneurship Corridor): राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 स्कूल स्तर पर उद्योग और नवाचार के साथ साझेदारी में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान कर छात्र उद्यमियों को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखती है।
- यदि नई शिक्षा नीति के तहत उद्यम कौशल को शिक्षा पाठ्यक्रम के साथ एकीकृत किया जाए तो इसका भारत में स्टार्टअप पारितंत्र पर अनुकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- उद्यमशीलता का संपोषण: उद्यमशीलता के संपोषण के लिये नीति-स्तरीय निर्णयों के अलावा आवश्यक होगा कि भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र उद्यमशीलता को बढ़ावा दें और सतत एवं संसाधन-कुशल विकास के लिये सहक्रियाओं का निर्माण करें।
- भारत में कंपनियों को स्टार्टअप्स के साथ सहयोग करने और विभिन्न कॉर्पोरेट-विशिष्ट संसाधनों के साथ उनका समर्थन करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। यह संलग्नता परस्पर लाभकारी बन सकती है।
- भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन: भारत की वृहतता और इसके संसाधनों की कमी को देखते हुए कम लागत और उच्च प्रभाव वाले समाधानों की आवश्यकता है। भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग करने के लिये विशेष रूप से सेमीकंडक्टर, अंतरिक्ष और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में टेक स्टार्टअप्स (Technology startups) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- भारत में ‘डिजिटल डिवाइड’ (Digital Divide) को कम करने के लिये अभिनव उपाय प्रदान करने के लिये भी उभरते हुए स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- स्टार्टअप्स की सामाजिक स्वीकार्यता: भारत के विभिन्न यूनिकॉर्न के साथ सहयोग के माध्यम से सरकार को उद्यमी करियर की सामाजिक स्वीकृति की दिशा में काम करने और युवाओं को सही दिशा में आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि वे आसानी से करियर चुन सकें।
- ‘मेड इन इंडिया, मेड फॉर वर्ल्ड’: भारतीय स्टार्टअप्स में न केवल भारतीय समस्याओं को संबोधित कर सकने की क्षमता है बल्कि ये विदेशी बाज़ारों के लिये अनुकूलित समाधान पेश कर सकते हैं। इससे निश्चित रूप से आत्मनिर्भर भारत के विज़न को बल मिलेगा और इसके साथ ही भारत को दुनिया भर में ‘एंटरप्रेन्योरशिप हब’ बनाने में भी मदद मिलेगी।
अभ्यास प्रश्न: भारत में स्टार्टअप पारिस्थितिक तंत्र हाल की सरकारी पहलों पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहा है?
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षा:Q. वेंचर कैपिटल (उद्यम पूंजी) का क्या अर्थ है? (वर्ष 2014) (A) उद्योगों को प्रदान की जाने वाली अल्पकालिक पूंजी उत्तर: (B) |