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एडिटोरियल

  • 21 Oct, 2021
  • 13 min read
शासन व्यवस्था

भुखमरी: एक वैश्विक चुनौती

यह एडिटोरियल 18/10/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Alarming hunger or statistical artefact?” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में व्याप्त कुपोषण की समस्या और इस संदर्भ में सरकार द्वारा किये गए प्रयासों की चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत 116 देशों के ’वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2021’ (GHI) में 94वें (वर्ष 2020) स्थान से फिसलता हुआ 101वें स्थान पर पहुँच गया है। 38.8 के स्कोर के साथ, भारत में व्याप्त भुखमरी का स्तर ‘गंभीर’ श्रेणी का है। इसने भारत की पोषण नीति में परिवर्तन लाने की तात्कालिकता और आवश्यकता को प्रकट किया है।

‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ के निष्कर्ष

वैश्विक भुखमरी सूचकांक के कुल चार घटक हैं। इन चार घटकों में भारत का प्रदर्शन इस प्रकार है—  

  • अल्पपोषण: जनसंख्या में अल्पपोषितों की हिस्सेदारी वर्ष 2018-2020 में 15.3% पाई गई।  
  • चाइल्ड स्टंटिंग: 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में स्टंटिंग की व्यापकता वर्ष 2016-2020 में 34.7% रही।  
  • चाइल्ड वेस्टिंग: 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में वेस्टिंग की व्यापकता वर्ष 2016-2020 में 17.3% रही।
  • बाल मृत्यु दर: 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर वर्ष 2019 में 3.4% पाई गई।  
  • विश्लेषण: वर्ष 2000 के बाद से भारत ने पर्याप्त प्रगति की है, लेकिन अभी भी चिंता के कई विषय, विशेष रूप से बाल पोषण के संबंध में, बने हुए हैं।
    • भारत का ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ स्कोर घटा है।
    • जनसंख्या में अल्पपोषितों का अनुपात और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर अब अपेक्षाकृत निम्न स्तर पर है।
    • यद्यपि चाइल्ड स्टंटिंग में उल्लेखनीय कमी देखी गई है, किंतु इसका स्तर अभी भी अति उच्च बना हुआ है।
    • समय के साथ प्रगति के बावजूद, भारत में GHI में शामिल सभी अन्य देशों की तुलना में उच्चतम चाइल्ड वेस्टिंग दर विद्यमान है।

कुपोषण के कारण

  • भारत में कुपोषण के कई आयाम हैं, जिनमें शामिल हैं— 
    • कैलोरी की कमी: यद्यपि सरकार के पास खाद्यान्न का अधिशेष मौजूद है, लेकिन इसके बावजूद देश भर में कैलोरी की कमी है, क्योंकि आवंटन और वितरण उचित की कमी है। यहाँ तक ​​कि आवंटित वार्षिक बजट का भी पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जाता है। 
    • ‘प्रोटीन हंगर’: प्रोटीन हंगर को दूर करने में दालों का बड़ा योगदान है। लेकिन समस्या से निपटने के लिये पर्याप्त बजटीय आवंटन नहीं किया गया है। विभिन्न राज्यों में ‘मिड-डे मील’ में अंडे शामिल नहीं हैं, जिससे प्रोटीन ग्रहण में सुधार ला सकने का एक सुगम अवसर खो जाता है।  
    • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (जिसे ‘प्रच्छन्न भुखमरी’ के रूप में भी जाना जाता है): भारत सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी के गंभीर संकट का सामना कर रहा है। इसके कारणों में खराब आहार, बीमारी, या गर्भावस्था एवं दुग्धपान के दौरान सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की बढ़ी हुई आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं किया जाना शामिल हैं।  
  • अन्य कारण: पौष्टिक भोजन तक पहुँच पोषण के निर्धारकों में से केवल एक है। कुछ अन्य कारक जो इस निराशाजनक स्थिति में अपना योगदान देते हैं—
    • सुरक्षित पेयजल तक बदतर पहुँच;  
    • स्वच्छता (विशेष रूप से शौचालय) तक बदतर पहुँच; 
    • टीकाकरण का निम्न स्तर; और
    • शिक्षा—विशेषकर महिलाओं की शिक्षा की बुरी स्थिति।

सरकार का हस्तक्षेप

  • ‘ईट राइट इंडिया मूवमेंट’: भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा नागरिकों को सही तरीके से भोजन ग्रहण करने हेतु आयोजित एक आउटरीच गतिविधि।   
  • पोषण (POSHAN) अभियानमहिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में शुरू किया गया यह अभियान स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर बालिकाओं में) को कम करने का लक्ष्य रखता है।  
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित यह केंद्र प्रायोजित योजना एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है, जो 1 जनवरी, 2017 से देश के सभी ज़िलों में लागू किया जा रहा है।     
  • फूड फोर्टिफिकेशन: फूड फोर्टिफिकेशन या फूड एनरिचमेंट का आशय चावल, दूध और नमक जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों में प्रमुख विटामिनों और खनिजों (जैसे आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन A और D) को संलग्न करने की प्रक्रिया है, ताकि उनकी पोषण सामग्री में सुधार लाया जा सके।   
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013: यह कानूनी रूप से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System) के तहत रियायती खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।    
  • मिशन इंद्रधनुष: यह 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को 12 वैक्सीन-निवारक रोगों (VPD) के विरुद्ध टीकाकरण के लिये लक्षित करता है।   
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: 2 अक्तूबर, 1975 को शुरू की गई यह योजना 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और दुग्धपान कराने वाली माताओं को छह सेवाओं का एक पैकेज प्रदान करती है, जिनमें शामिल हैं:    
    • पूरक पोषण,
    • प्री-स्कूल अनौपचारिक शिक्षा,
    • पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा,
    • टीकाकरण,
    • स्वास्थ्य जाँच और
    • रेफरल सेवाएँ।

आगे की राह

  • कृषि-पोषण लिंकेज योजनाओं (Agriculture-Nutrition linkage schemes) में कुपोषण से निपटने के मामले में व्यापक प्रभाव उत्पन्न कर सकने की क्षमता है और इस लिये इन पर अधिक बल देने की आवश्यकता है। 
    • इस लिंकेज के महत्त्व को स्वीकार करते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने वर्ष 2019 में भारतीय पोषण कृषि कोष की शुरुआत की है।  
  • ग्रामीण क्षेत्रों में पोषण-कृषि लिंकेज गतिविधियों हेतु निर्देशित योजनाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। हालाँकि इसका क्रियान्वयन भी काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • शीघ्र निधि संवितरण: सरकार को निधियों का शीघ्र संवितरण और पोषण से जुड़ी योजनाओं में धन का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • संसाधनों का पूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना: कई बार इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि विभिन्न पोषण-आधारित योजनाओं के तहत किया गया व्यय इस मद में आवंटित धन की तुलना में पर्याप्त कम रहा है। इसलिये, क्रियान्वयन पर अधिक बल देने की आवश्यकता है। 
  • अन्य योजनाओं के साथ अभिसरण: पोषण का विषय महज़ आहार तक ही सीमित नहीं होता है और आर्थिक व्यवस्था, स्वास्थ्य, जल, स्वच्छता, लैंगिक दृष्टिकोण और सामाजिक मानदंड जैसे कारक भी बेहतर पोषण में योगदान करते हैं। यही कारण है कि अन्य योजनाओं का उचित क्रियान्वयन भी बेहतर पोषण में योगदान दे सकता है। 
  • स्वच्छ भारत अभियान और जल जीवन मिशन आदि का पोषण-संबंधी योजनाओं के साथ अभिसरण भारत के पोषण परिदृश्य में समग्र परिवर्तन लाएगा।   
  • मध्याह्न भोजन योजना: मध्याह्न भोजन योजना का उद्देश्य स्कूलों में संतुलित आहार उपलब्ध कराकर स्कूली बच्चों के पोषण में वृद्धि करना है। प्रत्येक राज्य के मेनू में दूध और अंडे को शामिल करने और जलवायु परिस्थितियों, स्थानीय खाद्य पदार्थों आदि के आधार पर मेनू तैयार करने से बच्चों को सही पोषण प्रदान करने में मदद मिल सकती है।  

निष्कर्ष

  • विश्व में अल्पपोषित लोगों की सबसे बड़ी संख्या के साथ भारत को वर्ष 2030 तक 'जीरो हंगर' सतत् विकास लक्ष्य-2 की प्राप्ति के लिये तेज़ी से आगे बढ़ने की ज़रुरत है।  
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व बैंक के अनुसार, कुपोषण संज्ञानात्मक क्षमता, कार्य दिवसों और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।   
  • इस अर्थ में, भारत की पोषण समस्या को दूर करने से न केवल बेहतर पोषण परिणाम प्राप्त होंगे, बल्कि एक समृद्ध राष्ट्र के निर्माण का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
  • नई GHI रैंकिंग के बहाने हमें अपनी नीतिगत प्राथमिकता और हस्तक्षेपों पर विचार करने और यह सुनिश्चित करने के लिये प्रेरित होना चाहिये कि वे प्रकट चिंताओं—विशेष रूप से कोविड-19 के कारण उत्पन्न पोषण असुरक्षा की समस्या, को प्रभावी रूप से संबोधित कर सकते हैं। 

अभ्यास प्रश्न: भुखमरी और कुपोषण की समाप्ति के लिये भारत को अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। चर्चा कीजिये। इसके साथ ही, वर्ष 2022 और उसके बाद के वैश्विक भुखमरी सूचकांकों में भारत द्वारा अपनी रैंकिंग में सुधार के लिये कुछ उपाय सुझाइये।


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