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एडिटोरियल

  • 20 Oct, 2022
  • 14 min read
शासन व्यवस्था

वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2022

यह एडिटोरियल 18/10/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Reading Global Hunger Index and Indian govt’s response” लेख पर आधारित है। इसमें वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2022 में भारत की स्थिति और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय आर्थिक विकास किया है और यह दुनिया की सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हालाँकि कई प्रगतियों के बावजूद भूख और कुपोषण अभी भी देश के लिये प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है।

  • जबकि खाद्य सुरक्षा की स्थिति में उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है, गरीब आबादी के लिये पोषण और संतुलित आहार तक पहुँच अभी भी समस्याग्रस्त है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2022 (Global Hunger Index- GHI, 2022) में भारत 121 देशों की श्रेणी में 6 स्थान और फिसलकर 107वें स्थान पर आ गया है। इस पर पहली प्रतिक्रिया में भारत सरकार ने सूचकांक की कार्यविधि को ही प्रश्नगत किया है।
  • इस परिदृश्य में GHI, 2022 से संबंधित मुद्दों और भारत में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के दायरे पर एक विचार करना प्रासंगिक होगा।

वैश्विक भुखमरी सूचकांक क्या है?

  • सामान्य दृष्टिकोण में भुखमरी या ‘हंगर’ (Hunger) भोजन की कमी से होने वाली परेशानी को संदर्भित करती है। हालाँकि GHI महज इसी आधार पर भुखमरी का मापन नहीं करता बल्कि यह भुखमरी की बहुआयामी प्रकृति पर विचार करता है।
  • इसके लिये GHI चार आधारों पर विचार करता है:
    • अल्पपोषण (Undernourishment): जनसंख्या का वह हिस्सा जिसका कैलोरी सेवन अपर्याप्त है।
      • यह GHI स्कोर के 1/3 भाग का निर्माण करता है।
    • चाइल्ड स्टंटिंग (Child Stunting): 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों का वह हिस्सा जिनका कद उनकी आयु के अनुरूप कम है, जो गंभीर अल्पपोषण (chronic undernutrition) को दर्शाता है।
      • यह GHI स्कोर के 1/6 भाग का निर्माण करता है।
    • चाइल्ड वेस्टिंग (Child Wasting): 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों का वह हिस्सा जिनका वजन उनके कद के अनुरूप कम है, जो तीव्र अल्पपोषण (acute undernutrition) को दर्शाता है।
      • यह भी GHI स्कोर के 1/6 भाग का निर्माण करता है।
    • बाल मृत्यु दर (Child Mortality): पाँच वर्ष की आयु से पूर्व मृत्यु का शिकार हो जाने वाले बच्चों का हिस्सा, जो अपर्याप्त पोषण और अस्वास्थ्यकर वातावरण के घातक मिश्रण को प्रकट करता है।
      • यह GHI स्कोर के 1/3 भाग का निर्माण करता है।
  • कुल स्कोर को 100-पॉइंट स्केल पर रखा गया है और कम स्कोर बेहतर प्रदर्शन को परिलक्षित करता है।
    • 20 से 34.9 के बीच के स्कोर को ‘गंभीर’ (serious) श्रेणी में आँका जाता है और GHI 2022 में 29.1 के कुल स्कोर के साथ भारत को इसी श्रेणी में रखा गया है।

भारत सरकार ने GHI 2022 की आलोचना क्यों की है?

  • भारत सरकार ने GHI की कार्यविधि (Methodology) पर सवाल उठाया है। सरकार के तर्क के दो प्रमुख उप-भाग हैं:
    • पहला, GHI ‘भुखमरी के एक भ्रामक मापन’ का उपयोग करता है, कि इसमें उपयोग किये गए 4 चरों में से 3 बच्चों से संबंधित हैं और ये पूरी आबादी के प्रतिनिधि नहीं हो सकते हैं।
    • दूसरा, GHI का चौथा संकेतक, यानी अल्पपोषित आबादी का अनुपात ‘3000 लोगों के एक बहुत छोटे नमूने के जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है’, जो वैश्विक आबादी के पाँचवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत जैसे देश के आकलन के लिये उपयुक्त नहीं है।

भुखमरी से निपटने के लिये सरकार की प्रमुख पहलें

भारत में भुखमरी और कुपोषण के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारक

  • गरीबी समर्थित भुखमरी: बदतर जीवन स्थिति बच्चों के लिये भोजन की उपलब्धता को सीमित करती है, जबकि आहार तक सीमित पहुँच के साथ अत्यधिक जनसंख्या की समस्या विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों में कुपोषण जैसे परिणाम उत्पन्न करती है।
  • दोषपूर्ण सार्वजनिक वितरण: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य के वितरण में व्यापक भिन्नता की स्थिति रही है, जहाँ अधिक लाभ कमाने के लिये अनाज को खुले बाज़ार में ले जाया जाता है जबकि राशन की दुकानों में खराब गुणवत्ता वाले अनाज की बिक्री की जाती है। इसके साथ ही, इन राशन दुकानों को खोले जाने में भी अनियमितता की स्थिति रही है।
  • अनभिज्ञात भुखमरी (Unidentified Hunger): किसी परिवार की गरीबी रेखा से नीचे (Below Poverty Line- BPL) की स्थिति को निर्धारित करने के लिये उपयोग किये जाने वाले मानदंड मनमानी प्रकृति के हैं और ये मानदंड प्रायः अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होते हैं। गरीबी रेखा से ऊपर (Above Poverty Line- APL) और नीचे (BPL) के गलत वर्गीकरण के कारण खाद्य उपभोग में व्यापक गिरावट आई है।
    • इसके अलावा, अनाज की खराब गुणवत्ता ने समस्या को और बढ़ा दिया है।
  • प्रच्छन्न भुखमरी (Hidden Hunger): भारत सूक्ष्म पोषक तत्व की गंभीर कमी (जिसे ‘प्रच्छन्न भुखमरी के रूप में भी जाना जाता है) का सामना कर रहा है। गुणवत्ताहीन आहार, रोग और महिलाओं में गर्भावस्था एवं स्तनपान के दौरान सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकताओं की पूर्ति में विफलता जैसे कई कारण इस समस्या के लिये उत्तरदायी हैं।
    • माताओं के बीच पोषण, स्तनपान और पालन-पोषण के संबंध में पर्याप्त ज्ञान का अभाव चिंता का एक अन्य क्षेत्र है।
  • लिंग असमानता: पितृसत्तात्मक मानसिकता के कारण, लिंग असमानता बालिकाओं को बालकों की तुलना में अलाभ की स्थिति में रखती है और उन्हें अधिक पीड़ित बनाती है क्योंकि वे घर में सबसे बाद में आहार पाती हैं और कम महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं।
    • बालकों के विपरीत बालिकाएँ विद्यालय तक कम अभिगम्यता के कारण ‘मध्याह्न भोजन’ (mid-day meals) से वंचित रहती हैं।
  • टीकाकरण की कमी: जागरूकता की कमी के कारण निवारक देखभाल (विशेष रूप से टीकाकरण) के मामले में भी बच्चों की अनदेखी की जाती है और सामर्थ्य समस्याओं के कारण रोगों के लिये स्वास्थ्य देखभाल तक उनकी पहुँच नहीं हो पाती है।
  • पोषण संबंधी कार्यक्रमों की लेखापरीक्षा का अभाव: यद्यपि देश में पोषण में सुधार के मुख्य लक्ष्य के साथ कई कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया जा रहा है, लेकिन स्थानीय शासन स्तर पर कोई विशिष्ट पोषण लेखापरीक्षा तंत्र मौजूद नहीं है।

आगे की राह

  • पोषण को अलग-अलग चश्मे से देखना: बेहतर पोषण केवल भोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें स्वास्थ्य, जल, स्वच्छता, लिंग दृष्टिकोण और सामाजिक मानदंड भी शामिल हैं। इसलिये पोषण की कमी को पूरा करने के लिये व्यापक नीति बनाने की ज़रूरत है।
    • यदि स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान और पोषण अभियान जैसी पोषण नीतियों को परस्पर संबद्ध किया जाए तो भारत की पोषण स्थिति में समग्र परिवर्तन लाया जा सकता है।
  • सामाजिक अंकेक्षण तंत्र का निर्माण: राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को स्थानीय प्राधिकारों की मदद से हर ज़िले में मध्याह्न भोजन योजना का सोशल ऑडिट अनिवार्य रूप से करना चाहिये और इसके साथ ही पोषण संबंधी जागरूकता की दिशा में कार्य करना चाहिये।
    • कार्यक्रम निगरानी के लिये सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग पर भी विचार किया जा सकता है।
  • PDS के पुनःअभिमुखीकरण की आवश्यकता: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का पुनःअभिमुखीकरण और इसे बेहतर बनाने से इसकी पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित होगी। यह पोषक आहार की उपलब्धता, अभिगम्यता और वहनीयता को सुनिश्चित करने के साथ ही आबादी के निम्न सामाजिक-आर्थिक तबके की क्रय शक्ति पर सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने में भी योगदान कर सकेगा।
  • कृषि-पोषण गलियारा (Agriculture-Nutrition Corridor): वर्तमान में भारत के पोषण केंद्र (यानी इसके गाँव) पर्याप्त पोषण से सबसे अधिक वंचित हैं। कृषि-वाणिज्य के अनुरूप ‘गाँवों की पोषण संबंधी सुरक्षा’ (Nutritional security of villages) के नियंत्रण के लिये तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है।
    • इस संबद्धता की आवश्यकता को समझते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में ‘भारतीय पोषण कृषि कोष’ का शुभारंभ किया गया था।
  • महिला नेतृत्व में SDG मिशन: मौजूदा प्रत्यक्ष पोषण कार्यक्रमों को फिर से अभिकल्पित करने और इसे महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ जोड़ने की आवश्यकता है, जो वर्ष 2030 तक भूख और सभी प्रकार के कुपोषण को समाप्त करने के सतत विकास लक्ष्य- 2 को साकार करने में भारत की सहायता कर सकता है।
  • अपशिष्ट कम करना, भुखमरी मिटाना: भारत अपने कुल वार्षिक खाद्य उत्पादन का लगभग 7% और फलों एवं सब्जियों का लगभग 30% अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं एवं कोल्ड स्टोरेज के कारण बर्बाद कर देता है।
    • ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रेफ्रिजरेशन’ के अनुसार, यदि विकासशील देशों के पास विकसित देशों के समान स्तर की रेफ्रिजरेशन अवसंरचना मौजूद हो तो वे 200 मिलियन टन खाद्य या अपनी खाद्य आपूर्ति का लगभग 14% तक बचा लेंगे, जो भूख और कुपोषण से निपटने में मदद कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: पोषण सुरक्षा में बड़ी प्रगतियों के बावजूद, वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है। समालोचनात्मक विश्लेषण करें।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

Q. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना के लिए IFPRI द्वारा उपयोग किए जाने वाले संकेतक/संकेतक निम्नलिखित में से कौन-सा है/हैं? (वर्ष 2016)

  1. आधे पेट खाना
  2. बाल स्टंटिंग
  3. बाल मृत्यु दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2 और 3
 (C) 1, 2 और 3
 (D) केवल 1 और 3

 उत्तर: (C)


मुख्य परीक्षा

Q. आप इस विचार से कहाँ तक सहमत हैं कि भूख के मुख्य कारण के रूप में भोजन की उपलब्धता की कमी पर ध्यान भारत में अप्रभावी मानव विकास नीतियों से ध्यान हटाता है? (वर्ष 2018)


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