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एडिटोरियल

  • 16 Apr, 2025
  • 29 min read
शासन व्यवस्था

भारतीय शिक्षा प्रणाली का पुनर्निर्देशन

यह एडिटोरियल 15/03/2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Education in India: Why NEP has so far failed to move the needle” पर आधारित है। इसमें भारत की शिक्षा प्रणाली में व्याप्त समस्या पर प्रकाश डाला गया है कि NEP 2020 के बावजूद, सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्र निम्न परिणामों के साथ प्रणालीगत अक्षमताओं का सामना क्यों कर रहे हैं।

प्रिलिम्स के लिए:

भारत की शिक्षा प्रणाली, नई शिक्षा नीति 2020, PM ईविद्या, कौशल भारत मिशन, अटल इनोवेशन मिशन, अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूल, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष 

मेन्स के लिए:

भारत की शिक्षा प्रणाली से संबंधित प्रमुख विकास, भारत में शैक्षिक सुधारों की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे। 

भारत की शिक्षा प्रणाली में चिंताजनक आँकड़े (कक्षा 3 के 75% छात्र ग्रेड 2 की पाठ्य पुस्तकें पढ़ने में असमर्थ हैं) बने हुए है। नई शिक्षा नीति, 2020 के बावजूद, मामूली सुधार ही हुए हैं। सरकारी स्कूलों में प्रणालीगत अक्षमताओं, अपर्याप्त संसाधनों तथा निम्न शिक्षण परिणामों से संबंधित समस्याएँ बनी हुई हैं। निजी शिक्षा क्षेत्र नियामक बाधाओं के तहत कार्य करता है जिससे अक्सर गुणवत्ता में सुधार के बजाय जटिल प्रथाओं को जन्म मिलता है। भारत को अपने शिक्षा परिदृश्य को बदलने तथा अपने भविष्य की मानव पूंजी को सुरक्षित करने के क्रम में इन मूलभूत संरचनात्मक चुनौतियों का तत्काल समाधान करना चाहिये।

भारत की शिक्षा प्रणाली से संबंधित प्रमुख विकास क्या हैं?

  • डिजिटल और ऑनलाइन शिक्षा का विकास: भारत की शिक्षा प्रणाली में तीव्र गति से डिजिटलीकरण (विशेष रूप से महामारी के बाद) को अपनाया गया है। 
    • ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मिश्रित शिक्षण मॉडल की ओर कदम से शिक्षा तक पहुँच को बढ़ावा (विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों के लिए) मिला है। 
    • एडटेक कंपनियों के उदय और PM ईविद्या जैसी सरकारी पहलों से शैक्षिक पहुँच का काफी विस्तार हुआ है। 
      • वित्त वर्ष 22 तक भारतीय एडटेक बाजार में 3.94 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ है और ऑनलाइन शिक्षा क्षेत्र में 20% की CAGR के साथ वर्ष 2021-2025 के बीच 2.28 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि होने का अनुमान है।
  • व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास का एकीकरण: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 भारत में रोज़गार चुनौतियों से निपटने के क्रम में कौशल विकास तथा व्यावसायिक शिक्षा के महत्त्व पर केंद्रित है।
    • कौशल-आधारित शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा में एकीकृत करके, भारत का लक्ष्य अपने युवाओं को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना है।
    • इसके अलावा, कौशल भारत मिशन के तहत लाखों लोगों को प्रशिक्षित किया गया है तथा केंद्रीय बजट 2025-26 में शिक्षा के लिए AI में उत्कृष्टता केंद्र हेतु 500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जिससे उन्नत तकनीकी कौशल को बढ़ावा मिलेगा।
  • निजी निवेश तथा FDI हेतु नीतिगत समर्थन: भारत सरकार ने शिक्षा में निजी निवेश को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया है, जिससे इस क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे और नवाचार को काफी मज़बूती मिली है। 
    • शिक्षा क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति से इस ओर अंतर्राष्ट्रीय हितधारक आकर्षित होने से प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिला है। 
    • भारत में शिक्षा क्षेत्र का बाज़ार वित्त वर्ष 2025 तक 225 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है और अप्रैल 2000 से सितंबर 2024 के बीच शिक्षा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह 83,550 करोड़ रुपए रहा है।
  • उच्च शिक्षा संस्थानों का विस्तार: हाल के वर्षों में भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र का काफी विस्तार हुआ है जिससे विश्वविद्यालयों और नामांकित छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है। 
    • वित्त वर्ष 2025 में भारत में 52,538 कॉलेज और 1,362 विश्वविद्यालय थे, जो पिछले पाँच वर्षों की तुलना में 10% की वृद्धि का सूचक है।
    • उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) बढ़कर 28.4% हो गया है, जो इस क्षेत्र में बढ़ते अवसरों का परिचायक है। 
  • क्षेत्रीय भाषा शिक्षा का उत्थान: बहुभाषावाद और क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का बल भारत के शैक्षिक परिदृश्य में एक परिवर्तनकारी कदम सिद्ध हुआ है। 
    • शिक्षा के माध्यम के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करते हुए, यह नीति क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने और सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करने में सहायक होती है।
    • सरकार ने PM विद्या पहल के तहत बहु-भाषी संसाधनों और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल शिक्षण उपकरणों के विकास के लिये 500 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, जिससे शहरी और ग्रामीण छात्रों के बीच की खाई को पाटने में सहायता मिलेगी।
  • अनुसंधान और नवाचार पर बढ़ता हुआ ध्यान: भारत धीरे-धीरे अनुसंधान-आधारित शिक्षा मॉडल की ओर बढ़ रहा है, जिसमें नवाचार और उद्योग सहयोग पर जोर दिया जा रहा है।
    • उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान के लिये सरकार के प्रयासों को अटल इनोवेशन मिशन (AIM) जैसी पहलों और उच्च शिक्षा में अनुसंधान और नवाचार (RISE) कार्यक्रम के माध्यम से वित्तपोषण द्वारा समर्थन प्राप्त हुआ है।
    • अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने तथा अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिये अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) की स्थापना की गई है।
  • STEM शिक्षा में निवेश: STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) शिक्षा भारत में गति पकड़ रही है, और कौशल विकास तथा भविष्य के उद्योगों के लिये प्रतिभा पूल बनाने पर ध्यान केंद्रित करने वाली पहलों की संख्या बढ़ रही है।
    • नीति आयोग द्वारा प्रायोजित अटल टिंकरिंग लैब्स (ATL) जैसी पहलों के तहत पूरे भारत में 8,000 से अधिक प्रयोगशालाएँ स्थापित की जा चुकी हैं, जिनका उद्देश्य रचनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देना है।
    • इसके अलावा, भारतीय एडटेक बाज़ार, विशेष रूप से STEM शिक्षा में, वित्तीय वर्ष 2022 में कुल 3.94 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पर्याप्त निवेश देखा गया।

भारत में शैक्षिक सुधारों की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे की कमी: समावेशी शिक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण नीतिगत प्रयासों के बावजूद, शहरी और ग्रामीण स्कूलों के बीच बुनियादी ढाँचे में एक बड़ा अंतर बना हुआ है।
    • ग्रामीण स्कूलों में, विशेषकर दूरदराज़ के क्षेत्रों में, अक्सर स्वच्छ जल, बिजली और कार्यशील शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है।
    • समग्र शिक्षा अभियान जैसे सरकारी प्रयासों से प्रगति हुई है, लेकिन 400,000 से अधिक अल्प-संसाधन वाले स्कूलों में बुनियादी ढाँचा अभी भी कमज़ोर है।
      • वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में केवल 47% स्कूलों में पेयजल सुविधा उपलब्ध है और केवल 53% स्कूलों में लड़कियों के लिये अलग शौचालय हैं।
  • शिक्षकों की कमी और शिक्षकों की गुणवत्ता: भारत में प्रभावी शैक्षिक सुधारों में बाधा डालने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक योग्य शिक्षकों की कमी, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में है।
    • वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक, पूरे भारत में स्वीकृत शिक्षण पदों में पर्याप्त कमी आई है, जो लगभग 6% घट गई है।
    • 4,500 से अधिक माध्यमिक विद्यालय शिक्षकों के पास समुचित शिक्षा का अभाव है, जिनमें से 25% से भी कम को नौकरी प्रशिक्षण प्राप्त है, और STEM क्षेत्रों में विषय-विशेषज्ञ शिक्षकों की भारी कमी है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण और संसाधन आवंटन: जबकि भारत के शिक्षा क्षेत्र में निवेश में वृद्धि देखी गई है, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा वचन किये गए व्यापक परिवर्तनों को लागू करने के लिये वित्तपोषण का स्तर अपर्याप्त बना हुआ है।
    • भारत शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4% तथा निजी व्यय के रूप में सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 2.5% खर्च कर रहा है।
    • यह वित्तपोषण अंतर, शिक्षकों के वेतन से लेकर बुनियादी ढाँचे के विकास और डिजिटल शिक्षण उपकरणों तक, सभी पहलुओं को प्रभावित करता है।
  • शिक्षा तक पहुँच में सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ समावेशी शिक्षा प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा बनी हुई हैं।
    • आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों, विशेषकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों को अक्सर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच प्राप्त नहीं हो पाती।
    • उदाहरण के लिये, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में आदिवासी छात्र भाषा संबंधी बाधाओं का सामना कर रहे हैं, क्योंकि शिक्षक अंग्रेज़ी या तेलुगु के बजाय हिंदी में पढ़ाते हैं, जो सतत् शैक्षिक विभाजन को रेखांकित करता है।
  • रटकर याद करना और पाठ्यक्रम में धीमा परिवर्तन: भारत की शिक्षा प्रणाली रटकर याद करने पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करती है, जो आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान कौशल को कमज़ोर करती है।
    • NEP 2020 में योग्यता-आधारित शिक्षा पर ज़ोर दिये जाने के बावजूद, स्कूल और विश्वविद्यालय पारंपरिक परीक्षा प्रणालियों से संक्रमण में धीमी गति से आगे बढ़ रहे हैं।
    • हाल के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि कक्षा 3 के 75% छात्र ग्रेड 2 के स्तर की बुनियादी पाठ्य सामग्री नहीं पढ़ सकते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका ध्यान ज्ञान की समझ और अनुप्रयोग के बजाय याद करने पर केंद्रित रहता है।
  • डिजिटल विभाजन और तकनीकी बाधाएँ: यद्यपि महामारी के कारण डिजिटल शिक्षा की ओर बदलाव में तेज़ी आई है, फिर भी एक महत्त्वपूर्ण डिजिटल विभाजन प्रभावी शैक्षिक सुधारों में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
    • विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी का अभाव है, जिससे ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करना कठिन हो गया है।
    • यद्यपि PM ई-विद्या और स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसी पहलों ने इस अंतर को पाटने का प्रयास किया है, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 47% छात्रों के पास ही हाई-स्पीड इंटरनेट तक पहुँच है।
  • राजनीतिक और नौकरशाही स्तर पर सुधारों का विरोध: केंद्रीय स्तर पर प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति मौज़ूद है, फिर भी भारत में कई शैक्षिक सुधारों को राज्य और स्थानीय स्तर पर नौकरशाही जटिलताओं के कारण विरोध का सामना करना पड़ता है।
    • राज्य सरकारें और स्थानीय प्राधिकरण प्रायः उन सुधारों का विरोध करते हैं जिन्हें वे अपने अधिकार को चुनौती देने वाला या अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता वाला मानते हैं। उदाहरण के लिये, NEP 2020 का एक प्रमुख घटक विद्यालयों का एकीकरण है, जो विभिन्न राज्य सरकारों के विरोध के कारण बहुत धीमी गति से प्रगति कर रहा है।
  • शिक्षा में लैंगिक बाधाएँ: यद्यपि भारतीय शिक्षा प्रणाली में लैंगिक समावेशिता एक प्रमुख लक्ष्य है, फिर भी लैंगिक बाधाएँ शैक्षिक सुधारों की प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न करती हैं। 
    • ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से लड़कियों को बाल विवाह, पारिवारिक ज़िम्मेदारियों और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण अधिक ड्रॉपआउट दर का सामना करना पड़ता है।
    • ASER रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक में भले ही लड़कियों का नामांकन बढ़ा है, लेकिन माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों की स्कूल छोड़ने की दर लड़कों की तुलना में अब भी काफी अधिक है।
      • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) द्वारा भारत में कराये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 33% लड़कियाँ घरेलू कार्यों के कारण स्कूल छोड़ देती हैं।

Government_Initiatives_Related_to_Education

शिक्षा सुधार के संदर्भ में भारत अन्य देशों से क्या सीख सकता है? 

  • शिक्षकों की स्वायत्तता और व्यावसायिक विकास (फिनलैंड): फिनलैंड में, शिक्षकों को अत्यधिक सम्मानित पेशेवर माना जाता है, जिन्हें कक्षा में महत्त्वपूर्ण स्वायत्तता प्राप्त होती है। 
    • उन्हें छात्र की आवश्यकताओं के आधार पर पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियाँ स्वयं तय करने की स्वतंत्रता होती है। भारत इससे यह सीख सकता है कि शिक्षकों को अधिक स्वायत्तता दी जाये और उनके लिये निरंतर व्यावसायिक विकास में निवेश किया जाये।
  • परियोजना-आधारित शिक्षण (सिंगापुर): सिंगापुर की शिक्षा प्रणाली में परियोजना आधारित शिक्षण (PBL) को विभिन्न विषयों में समाहित किया गया है, जो वास्तविक जीवन की चुनौतियों पर केंद्रित है।
    • छात्र दीर्घकालिक परियोजनाओं पर कार्य करते हैं, जिनमें समालोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और सहयोग की आवश्यकता होती है। भारत रट्टा आधारित शिक्षण से आगे बढ़ने के लिये PBL को अपनाकर छात्रों की समस्या-समाधान क्षमता और रचनात्मकता को बढ़ा सकता है।
  • डिजिटल शिक्षण ढाँचा (एस्तोनिया): एस्तोनिया ने अपनी शिक्षा प्रणाली में डिजिटल उपकरणों और प्लेटफॉर्म का समावेश किया है, जिससे व्यक्तिगत शिक्षण अनुभव संभव हो सके हैं। 
    • वर्ष 2001 में ही एस्तोनिया के सभी स्कूलों को इंटरनेट की सुविधा प्रदान कर दी गयी थी और अब भी स्कूलों के डिजिटल ढाँचे को लगातार उन्नत किया जा रहा है।
    • भारत समान रूप से तकनीकी पहुँच सुनिश्चित करके और ऑनलाइन शिक्षण उपकरणों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में शामिल करके डिजिटल परिवर्तन को गति दे सकता है।
  • द्वैध शिक्षा प्रणाली (जर्मनी): जर्मनी की द्वैध प्रणाली कक्षा शिक्षण को उद्योगों में व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ जोड़ती है।
    • यह मॉडल छात्रों को पढ़ाई के दौरान कार्य अनुभव प्राप्त करने का अवसर देता है, जिससे उनकी रोज़गार-योग्यता में सुधार होता है। 
    • भारत इस मॉडल को अपनाकर अधिक व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों और अप्रेंटिसशिप को शिक्षा में समाहित कर सकता है, जिससे शिक्षा और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच की दूरी को समाप्त किया जा सकता है।
  • छात्र-केंद्रित शिक्षा (दक्षिण कोरिया): दक्षिण कोरिया की शिक्षा प्रणाली छात्र-केंद्रित शिक्षण पर विशेष ध्यान देती है, जिसमें छात्रों की आवश्यकताएँ और रुचियाँ उनके सीखने की प्रक्रिया को निर्देशित करती हैं।
    • भारत भी एकसमान प्रणाली के बजाय अधिक लचीले और व्यक्तिगत शिक्षण मार्गों को अपनाकर छात्रों की विभिन्न क्षमताओं और रुचियों के अनुरूप शिक्षा प्रदान कर सकता है।

भारतीय शिक्षा प्रणाली की प्रभावशीलता को सुदृढ़ करने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • उन्नत शिक्षक प्रशिक्षण और पेशेवर विकास: शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिये शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में व्यापक सुधार आवश्यक है, ताकि शिक्षक आधुनिक शिक्षण कौशलों से सुसज्जित हो सकें। 
    • निरंतर पेशेवर विकास जैसे कि नवीन शिक्षण विधियों का ज्ञान, तकनीकी समावेशन और विषयगत विशेषज्ञता को शिक्षक की करियर प्रगति का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाना चाहिये। 
  • ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में ढाँचा विकास: शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिये ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे को उन्नत बनाने में भारी निवेश की आवश्यकता है। 
    • इसमें स्कूलों में स्वच्छ जल, विद्युत वितरण, क्रियाशील शौचालय और डिजिटल शिक्षण संसाधनों की व्यवस्था शामिल है।
    • साथ ही, सुरक्षित खेल मैदान और उपयुक्त कक्षाओं जैसे छात्र-अनुकूल वातावरण तैयार करने से सीखने का अनुभव बेहतर होगा और स्कूल छोड़ने की दर घटेगी।
  • डिजिटल विभाजन को कम करना: समान शिक्षण अवसर सुनिश्चित करने के लिये, डिजिटल अंतर को कम करना अनिवार्य है। 
    • इसके लिये ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी का विस्तार करना और आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों को सस्ते डिजिटल उपकरण उपलब्ध कराना आवश्यक है।
    • इसके अलावा, छात्रों और शिक्षकों दोनों के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म के प्रभावी उपयोग को संभव बनाएगा और समावेशी तथा तकनीकी रूप से उन्नत शिक्षा प्रणाली का निर्माण करेगा। 
  • व्यावसायिक और कौशल-आधारित शिक्षा का एकीकरण: शिक्षा का भविष्य व्यावहारिक कौशल विकसित करने की ओर उन्मुख होना चाहिये अर्थात जो उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप हो (फिनलैंड मॉडल)।
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल-आधारित शिक्षा को मुख्यधारा के पाठ्यक्रम में शामिल करने से छात्रों को ऐसी दक्षताएँ प्राप्त होंगी, जिससे उनकी रोज़गार-क्षमता बढ़ेगी। 
    • प्रासंगिक पाठ्यक्रम, इंटर्नशिप और प्रशिक्षुता कार्यक्रम तैयार करने के लिये उद्योगों के साथ सहयोग से यह सुनिश्चित होगा कि छात्र स्नातक होने पर कार्यबल के लिये तैयार हों। 
      • इस दृष्टिकोण से न केवल बेरोज़गारी कम होगी बल्कि युवाओं में उद्यमशीलता की मानसिकता भी विकसित होगी।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मज़बूत करना: वित्त पोषण, बुनियादी ढाँचे और नवाचार में अंतराल को दूर करने के लिये शिक्षा में प्रभावी सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। 
    • ये साझेदारियाँ उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षिक सामग्री बनाने, स्कूल के बुनियादी ढाँचे में सुधार करने और आधुनिक शिक्षण पद्धतियों को लागू करने में मदद कर सकती हैं। 
    • सरकार को स्पष्ट नियामक ढाँचे के माध्यम से निजी संस्थाओं को शिक्षा में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये, तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि लाभ की मंशा से शैक्षिक मानकों से समझौता न हो।
    • सरकारी स्कूलों के विकास में सामुदायिक भागीदारी को शामिल करना तथा कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) कार्यक्रमों को शामिल करना। 
  • आलोचनात्मक चिंतन को प्रोत्साहित करने के लिये पाठ्यक्रम में संशोधन: पारंपरिक रूप से रटने की प्रणाली को योग्यता-आधारित शिक्षा की ओर बदलने की आवश्यकता है। 
    • आलोचनात्मक चिंतन, समस्या समाधान, सृजनात्मकता और अंतःविषयक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिये पाठ्यक्रम को अद्यतन और संशोधित करने से विद्यार्थी आधुनिक विश्व की चुनौतियों के लिये बेहतर ढंग से तैयार हो सकेंगे। 
    • पाठ्यक्रम अनुकूलनीय होना चाहिये, जिससे छात्रों को सैद्धांतिक ज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोगों में संलग्न होने का अवसर मिले। 
  • शैक्षिक प्रशासन और जवाबदेही में सुधार: सुधारों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये शैक्षिक संस्थानों के भीतर प्रशासनिक संरचनाओं को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।
    • स्पष्ट दिशा-निर्देश, पारदर्शी प्रक्रियाएँ और विकेंद्रीकृत निर्णय-प्रक्रिया से अधिक स्थानीय जवाबदेही सुनिश्चित हो सकती है। 
    • नियमित ऑडिट, निष्पादन मूल्यांकन और फीडबैक तंत्र से अंतराल की पहचान करने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलेगी।
  • परीक्षा एवं मूल्यांकन प्रणाली में सुधार: छात्रों पर अनुचित दबाव को कम करने के लिये मौजूदा परीक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है। 
    • उच्च-स्तर की परीक्षाओं से सतत्, रचनात्मक मूल्यांकन (NEP 2020 के तहत परख) की ओर बदलाव, जो व्यावहारिक कौशल और परियोजना-आधारित सीखने पर ध्यान केंद्रित करता है, छात्र की क्षमताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करेगा। 
    • सहकर्मी समीक्षा और स्व-मूल्यांकन सहित बहुविध मूल्यांकन पद्धतियों को लागू करने से समग्र विकास को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष: 

भारत की शिक्षा प्रणाली एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहाँ डिजिटल प्रगति और नीतिगत सुधार आशाजनक हैं, लेकिन गहरी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। रटकर सीखने और शिक्षकों की कमी से लेकर असमानता और बुनियादी ढाँचे की कमियों तक के मुद्दों को हल करने के लिये प्रणालीगत बदलाव आवश्यक है। नवाचार, समावेशन और कौशल-आधारित शिक्षा का उपयोग करके एक लचीला, भविष्य के लिये तैयार भारत विकसित किया जा सकता है। आगे का मार्ग "नवोन्मेष" (नवोन्मेष = नवाचार और उत्थान) की भावना से निर्देशित होना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020  के संदर्भ में भारत के शैक्षिक सुधारों को प्रभावी होने से रोकने वाली मुख्य चुनोतियों की जाँच कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व 
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय 
  3. पाँचवीं अनुसूची छठी 
  4. अनुसूची सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)


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