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एडिटोरियल

  • 16 Mar, 2021
  • 9 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्वाड: प्रथम शिखर सम्मेलन

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में हाल ही में आयोजित प्रथम क्वाड शिखर सम्मेलन और इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

हाल ही में क्वाड समूह के चार देशों के नेताओं ने पहली बार आभासी शिखर-स्तरीय बैठक में डिजिटल रूप से मुलाकात की। क्वाड देशों के नेताओं द्वारा चर्चित विषयों में वैक्सीन पहल और अन्य संयुक्त कार्य समूहों के साथ महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन पर सहयोग करना शामिल है।

‘स्पिरिट ऑफ क्वाड’ शीर्षक से इस बैठक के एक संयुक्त बयान में नेताओं ने खुले, मुक्त एवं दवाब रहित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के निर्माण की प्रतिबद्धता जाहिर की।

क्वाड समूह ने पहले शिखर सम्मेलन में अपने प्राथमिक विज़न को केवल सैन्य सुरक्षा के मुद्दे तक सीमित न करके इसे विशाल इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के सार्वजनिक हितों तक विस्तरित किया है, जिससे इसकी दीर्घकालिक राजनीतिक संभावनाएँ और स्पष्ट हो गई हैं। 

अभी तक यह धारणा थी कि क्वाड केवल एक "टॉक-शॉप" है, परंतु इस शिखर सम्मेलन में व्यापक विषयों पर हुई चर्चा तथा प्रतिबद्धता ने इस धारणा को गलत सिद्ध कर दिया है।

क्वाड शिखर सम्मेलन का महत्त्व:

  • ‘अमेरिका इज़ बैक’ नीति: अमेरिका द्वारा क्वाड बैठक के लिये आगे आना जो बाइडेन के उस वायदे का हिस्सा है, जो कि वैश्विक नेतृत्व के संदर्भ में "अमेरिका इज़ बैक" की नीति, क्षेत्रीय गठबंधनों की फिर से पुष्टि और चीन से बढ़ती चुनौतियों से पार पाने से संबंधित है।
    • इससे पहले म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में बाइडेन ने चीन का मुकाबला करने के लिये एक ट्रांस अटलांटिक गठबंधन का प्रस्ताव रखकर यूरोपीय सहयोगियों जैसे- जर्मनी, फ्राँस और यूनाइटेड किंगडम को वापस एक समूह के रूप में लाने की कोशिश की।
  • जापान और ऑस्ट्रेलिया की समुद्री चिंताएँ: चीन के साथ व्यापार और दूरसंचार मुद्दों पर समुद्री तनाव के कारण ऑस्ट्रेलिया एवं जापान क्वाड समूह में सहयोग के गहन स्तर पर भागीदारी करने को उत्सुक हैं।
    • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर रहने के भारत के निर्णय पर जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्वाड सहयोगी नाखुश थे।
    • अगर क्वाड एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरता है, तो यह संपूर्ण भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिये फायदेमंद होगा।
  • भारत के भू-राजनीतिक क्षितिज का विस्तार: चीन के साथ LAC विवाद के तनावपूर्ण वर्ष के बाद भारत को क्वाड के माध्यम से अधिक रणनीतिक समर्थन प्राप्त होगा।
    • यह भारत की फार्मास्युटिकल क्षमता , टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप का अवसर तथा विकास परियोजनाओं पर क्षेत्रीय सहयोग के लिये और अधिक सहायता प्रदान करके बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देगा।
    • समावेशी दृष्टिकोण पर भारत का आग्रह क्षेत्र के कई छोटे देशों की भावनाओं को ध्यान में रखना था, जो चीन विरोधी स्थिति को प्रकट नहीं कर पाते हैं।
    • इससे भारत के लिये क्वाड देशों हेतु विनिर्माण गंतव्य बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है और चीन पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • क्वाड का नया दृष्टिकोण: क्वाड सदस्य देशों ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में वितरण हेतु कोविड-19 वैक्सीन की एक बिलियन खुराक का उत्पादन करने के लिये अपने संसाधनों (अमेरिकी प्रौद्योगिकी, जापानी वित्त, भारतीय उत्पादन क्षमता और ऑस्ट्रेलिया की रसद क्षमता) को एकत्रित करने का निर्णय लिया।
    • इसके अलावा क्वाड देशों ने पेरिस समझौते के आधार पर उत्सर्जन में कमी सुनिश्चित करने के साथ-साथ प्रौद्योगिकी आपूर्ति शृंखला, 5 जी नेटवर्क और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग पर सहमति व्यक्त की।
    • इससे इन चार देशों को क्वाड के लिये एक नया दृष्टिकोण विकसित करने में मदद मिलेगी।

क्वाड से संबंधित विषय:

  • RCEP परिचालन संबंधी मुद्दा: जापान और ऑस्ट्रेलिया के लिये चीन सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है, इस संदर्भ में जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्वाड सदस्य देशों के लिये रणनीतिक रूप से अमेरिका और भारत के साथ गठबंधन करना मुश्किल होगा।
  • भारतीय पक्ष: भारत, LAC सैन्य वापसी वार्ता के प्रति संवेदनशीलता तथा ब्रिक्स और एससीओ समूहों में अपनी अन्य बहुपक्षीय प्रतिबद्धताओं को लेकर भी क्वाड समूह सहयोग में नरमी दिखा रहा है।
  • चीन विरोधी बयानबाजी: वर्ष 2007 में क्वाड के निर्माण की दिशा में पहले कदम के बाद से चीन ने इस समूह को "एशियाई नाटो" और "नए शीत युद्ध" के अग्रदूत के रूप में वर्णित कर क्षेत्रीय संवाद को परिभाषित करने की मांग की है।
    • वार्षिक मालाबार नौसैनिक अभ्यास के साथ क्वाड के संबंध ने इसकी छवि को एक सैन्य संगठन के रूप में प्रस्तुत किया है और इसने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बहुत अधिक शंकाएँ उत्पन्न की हैं।

आगे की राह:

  • उद्देश्य स्पष्ट करने की आवश्यकता: क्वाड राष्ट्रों को सभी देशों के आर्थिक और सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक व्यापक ढाँचे के माध्यम से इंडो-पैसिफिक विज़न को बेहतर ढंग से समझने की आवश्यकता है।
    • यह भारत-प्रशांत क्षेत्र के तटीय राज्यों को आश्वस्त करेगा कि क्वाड क्षेत्रीय लाभ के लिये बनाया गया एक समूह है, जिससे चीन द्वारा लगाए जा रहे ‘सैन्य गठबंधन’ संबंधी आरोपों का भी खंडन हो सकेगा।
  • विस्तारित क्वाड: भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत के कई अन्य साझेदार हैं, इसलिये भारत को भविष्य में इंडोनेशिया, सिंगापुर जैसे देशों को इसमें शामिल करने का प्रयास करना चाहिये।
  • समुद्री सिद्धांत की आवश्यकता: भारत को भारत-प्रशांत के संदर्भ में एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित करना चाहिये जो वर्तमान और भविष्य की समुद्री चुनौतियों पर विचार करे, अपने सैन्य और गैर-सैन्य उपकरणों को मज़बूत करे तथा अपने रणनीतिक साझेदारों को संलग्न करे।
  • चीन को विश्वास में लेने की आवश्यकता: जैसा कि क्वाड शिखर सम्मेलन से एंटी-चाइना छवि विकसित हुई है, यह अब चीन पर निर्भर है कि वह अपनी मौजूदा आक्रामक नीतियों पर पुनर्विचार करे और अपने एशियाई पड़ोसियों तथा अमेरिका के साथ साझा संबंधों को स्थापित करने की कोशिश करे।

निष्कर्ष:

महामारी से उत्पन्न चुनौतियों ने क्वाड राष्ट्रों को क्षेत्र की तत्काल आवश्यकताओं के अनुरूप व्यापक एजेंडे के लिये अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने हेतु एक आदर्श स्थिति प्रस्तुत की है। इस संदर्भ में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में साझा चुनौतियों से निपटने के लिये क्वाड का पुनरुत्थान लंबी अवधि में इस समूह की राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करता है।

अभ्यास प्रश्न: विकास, निवारक क्षमता और कूटनीति क्वाड की आगे की राह होनी चाहिये। चर्चा कीजिये।


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