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एडिटोरियल

  • 16 Feb, 2023
  • 16 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

रक्षा निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना

यह एडिटोरियल 14/02/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Time to foster defence export ecosystem” पर आधारित है। इसमें भारतीय रक्षा क्षेत्र से संबद्ध मुद्दों और आवश्यक कदमों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों में भारत को शुद्ध आयातक से शुद्ध निर्यातक देश के रूप में रूपांतरित करने की सरकार की महत्त्वाकांक्षा के परिणामस्वरूप रक्षा क्षेत्र में एक भारी उछाल देखा गया है। वर्ष 2021-22 में भारत का रक्षा निर्यात 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गया और वर्ष 2023 तक यह 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर जाएगा।

  • एक उपयुक्त नीति ढाँचे के साथ एक विश्वसनीय प्रयास ने खंडित निर्यात अवसरों का पता लगाने में मदद की है, जबकि फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात इसका एक अपवाद है।
  • निश्चय ही इस उपलब्धि का उत्सव मनाया जा सकता है, लेकिन हमने जिन रक्षा निर्यात अवसरों को गँवा दिया, उनसे सीखना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। नीतिगत सुधारों को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने और व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त करने के बाद अब समय आ गया है कि निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र में भी सुधार लाया जाए।

भारत के रक्षा निर्यात की वर्तमान स्थिति

  • भारत के रक्षा निर्यात की स्थिति में सुधार हो रहा है, जहाँ देश मित्र देशों के लिये रक्षा उपकरणों के एक प्रमुख निर्यातक के रूप में उभर रहा है। हालाँकि हमने पूर्व में कई मौक़े गँवाए भी हैं।
    • वर्ष 2021-22 के लिये भारत का रक्षा निर्यात लगभग 13,000 करोड़ रुपए का रहा था, जो अब तक का सबसे अधिक था।
    • इस निर्यात में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 70% रही जबकि शेष में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का योगदान रहा।
  • भारत मालदीव, श्रीलंका, रूस, फ्रांस, नेपाल, मॉरीशस, श्रीलंका, इज़राइल, मिस्र, यूएई और चिली जैसे देशों को व्यक्तिगत सुरक्षा वस्तुओं, अपतटीय गश्ती जहाज़ों और वैमानिकी संबंधी अन्य उत्पादों के निर्यात में सफल रहा है।
  • यद्यपि रक्षा निर्यात के मूल्य को और बढ़ाने और बड़े बाज़ारों को लक्षित करने की आवश्यकता अब भी बनी हुई है ताकि वर्ष 2025 तक 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रक्षा निर्यात लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
  • उल्लेखनीय है कि ब्रह्मोस और आकाश मिसाइल प्रणाली जैसे उत्पादों में इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, वियतनाम, मिस्र, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील आदि देशों की दिलचस्पी के बावजूद भारत इसे व्यावसायिक सफलता में रूपांतरित नहीं कर सका है।
  • ओमान, म्यांमार, मॉरीशस और वियतनाम जैसे देशों से वृहत नौसेना रक्षा मांगों को प्राप्त करने में भी भारत असफल रहा है।

रक्षा निर्यात से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • प्रतिस्पर्द्धा का अभाव:
    • भारत के रक्षा उत्पादों को प्रायः अमेरिका, रूस और इज़राइल जैसे अन्य प्रमुख रक्षा निर्यातकों की तुलना में कम गुणवत्तापूर्ण और उच्च लागतपूर्ण माना जाता है।
  • सीमित निर्यात पोर्टफोलियो:
    • भारत का रक्षा निर्यात कुछ देशों और उत्पाद श्रेणियों तक ही सीमित है। यह वैश्विक रक्षा बाज़ार का लाभ उठा सकने की इसकी क्षमता को सीमित करता है।
  • नौकरशाही संबंधी बाधाएँ:
    • भारत की रक्षा निर्यात प्रक्रिया में कई नौकरशाही संबंधी बाधाएँ और लालफीताशाही (Red Tape) मौजूद है, जिससे निर्यातकों के लिये इससे गुज़रना कठिन हो जाता है।
  • स्पष्ट नीति का अभाव:
    • भारत की रक्षा निर्यात नीति सुपरिभाषित नहीं है, जो संभावित निर्यातकों के लिये भ्रम और अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न करती है।
  • आयात पर निर्भरता:
    • भारत अभी भी अपने रक्षा उपकरणों का एक महत्त्वपूर्ण भाग आयात करता है जो उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकी निर्यात करने की इसकी क्षमता को सीमित करता है।

कौन-से संबंधित कदम उठाये गए हैं?

  • रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)-2020 के अंतर्गत घरेलू स्रोतों से ‘बाय इंडियन’ (IDDM) श्रेणी में आने वाली पूंजीगत मदों की खरीद को प्राथमिकता देना
  • सेवाओं के कुल 411 मदों की चार ‘सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची’ (Positive Indigenization Lists) और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (DPSUs) के कुल 3,738 मदों की तीन ‘सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची’ की अधिसूचना जारी करना
  • दीर्घावधिक वैधता अवधि के साथ औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रक्रिया का सरलीकरण
  • युक्तिसंगत रक्षा उत्पाद सूची (Rationalised Defence Product List) जिसके लिये उद्योग लाइसेंस की आवश्यकता होती है
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति का उदारीकरण जो स्वचालित मार्ग के तहत 74% FDI की अनुमति देता है
  • ‘मिशन डिफस्पेस’ (Mission DefSpace) का शुभारंभ
  • स्टार्ट-अप्स और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) को शामिल करते हुए रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (Innovations for Defence Excellence- iDEX) योजना का शुभारंभ
  • ‘सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को वरीयता) आदेश 2017’ का कार्यान्वयन
  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) सहित भारतीय उद्योग द्वारा स्वदेशीकरण की सुविधा के लिये सृजन (SRIJAN) नामक एक स्वदेशीकरण पोर्टल का शुभारंभ
  • दो रक्षा औद्योगिक गलियारों (उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में) की स्थापना

भारत अपने रक्षा निर्यात को कैसे बढ़ा सकता है?

  • समर्पित निर्यात अवसंरचना:
    • प्रशिक्षण, समर्थन और बाज़ार इंटेलिजेंस प्रणाली के लिये निर्यात अवसंरचना का निर्माण किया जाना चाहिये।
    • विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संलग्न PSUs के प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी जा सकती है, क्योंकि इसके अधिकांश अधिकारी इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से आते हैं जिनके पास अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संचालन के प्रबंधन से संबंधित सीमित ज्ञान या कौशल होता है।
    • रक्षा क्षेत्र की आवश्यकताओं पर विशेष रूप से केंद्रित एक समर्पित निर्यात प्रोत्साहन परिषद होनी चाहिये, जहाँ निर्यात प्रोत्साहन अधिकारियों के पास न केवल भारत के बल्कि रक्षा उत्पादन एवं निर्यात से संलग्न अन्य देशों के नीतिगत ढाँचे की भी समझ हो।
    • भारतीय रक्षा उद्योग के लिये अंतर्राष्ट्रीय संधियों/प्रोटोकॉल (परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह/ऑस्ट्रेलिया समूह/मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था/वासेनार समूह ) के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा निर्दिष्ट और अन्य अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं एवं दायित्वों से परिचित होना महत्त्वपूर्ण है।
  • व्यापार समर्थन:
    • भारतीय रक्षा क्षेत्र को उत्पादन और निर्यात अनुपालन दोनों से संबंधित स्वीकृतियों में तेज़ी लाने के लिये नियामक एजेंसियों की ओर से एक समर्पित ‘व्यापार समर्थन’ (Trade Support) की भी आवश्यकता है।
    • खंडित व्यावसायिक अवसरों के लिये भारतीय रक्षा क्षेत्र का व्यापार मेलों, क्रेता-विक्रेता सम्मिलन (Buyer-Seller Meet- BSM), रिवर्स BSMs, भागीदार देशों के साथ ऊष्मायन (incubation) अवसरों और ज्ञान साझेदारी से संलग्न होना आवश्यक है।
    • प्लेटफ़ॉर्म आधारित निर्यात (तेजस/ब्रह्मोस/सारंग/LCH) के लिये विदेशों में अवस्थित भारतीय मिशन न केवल उभरते अवसरों की खोज करने में बल्कि सुदीर्घ वार्ताओं के दौरान समर्पित राजनयिक समर्थन के साथ उन अवसरों का लाभ उठा सकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • R&D अवसंरचना:
    • रक्षा उद्योग की आवश्यकता के अनुरूप रक्षा उत्पादन विभाग अन्य देशों के साथ संयुक्त या सह-विकास अवसरों का पता लगा सकता है।
    • अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना का एक अन्य आयाम यह है कि भारत के रक्षा उद्योग को संभावित निर्यात आदेशों के विरुद्ध संभावित अनुकूल खरीदारों के साथ इसे साझा करने के लिये तैयार रहना चाहिये।
      • उदाहरण के लिये: संयुक्त/सह-विकास व्यवस्था के तहत मिस्र के लिये एक लड़ाकू विमान या बांग्लादेश के लिये रॉकेट लॉन्चर सिस्टम।

अभ्यास प्रश्न: भारत के रक्षा निर्यात पारितंत्र में विद्यमान चुनौतियों एवं अवसरों का विश्लेषण करें और उन उपायों की चर्चा करें जो इस क्षेत्र में देश की क्षमता को बढ़ाने के लिये उठाये जा सकते हैं।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

Q.1 निम्नलिखित में से कौन सा 'INS अस्त्रधारिणी' का सबसे अच्छा विवरण है, जो हाल ही में खबरों में था?  (वर्ष 2016)

 (A) उभयचर युद्ध पोत
 (B) परमाणु संचालित पनडुब्बी
 (C) टॉरपीडो लॉन्च और रिकवरी वेसल
 (D) परमाणु संचालित विमान वाहक

 उत्तर: (C)

  • INS अस्त्रधारिणी एक स्वदेश निर्मित टॉरपीडो लॉन्च और रिकवरी वेसल है। इसे 6 अक्टूबर, 2015 को कमीशन किया गया था।
  • अस्त्रधारिणी का डिज़ाइन नौसेना विज्ञान और तकनीकी प्रयोगशाला (NSTL), शॉफ्ट शिपयार्ड और IIT खड़गपुर का एक सहयोगात्मक प्रयास था।
  • यह अस्त्रवाहिनी के लिए एक उन्नत रिप्लेसमेंट है जिसे 17 जुलाई, 2015 को डिकमीशन किया गया था। इसमें कटमरैन हल फॉर्म का एक अनूठा डिज़ाइन है जो इसकी बिजली की आवश्यकता को काफी कम करता है और स्वदेशी स्टील के साथ बनाया गया है।
  • यह उच्च समुद्री स्थिति में कार्य कर सकता है और परीक्षणों के दौरान विभिन्न प्रकार के टारपीडो को तैनात करने एवं पुनर्प्राप्त करने के लिए टारपीडो लॉन्चर के साथ एक बड़ा डेक क्षेत्र है।
  • जहाज़ में आधुनिक बिजली उत्पादन, वितरण, नेविगेशन और संचार प्रणाली भी है।
  • जहाज की 95% प्रणालियाँ स्वदेशी डिज़ाइन की हैं, इस प्रकार नौसेना के 'मेक इन इंडिया' दर्शन के निरंतर पालन को प्रदर्शित करता है।
  • INS अस्त्रधारिणी का उपयोग DRDO की एक नौसैनिक प्रणाली प्रयोगशाला NSTL द्वारा विकसित पानी के नीचे के हथियारों और प्रणालियों के तकनीकी परीक्षणों को करने के लिए किया जाएगा।
  •  अतः विकल्प (C) सही उत्तर है।

Q 2.  हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS) के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (वर्ष 2017)

  1. INOS का उद्घाटन वर्ष 2015 में भारतीय नौसेना की अध्यक्षता में भारत में आयोजित किया गया था।
  2. INOS एक स्वैच्छिक पहल है जो हिंद महासागर क्षेत्र के तटीय राष्ट्रों की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ाने का प्रयास करती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

 (A) केवल 1 
 (B) केवल 2
 (C) 1 और 2 दोनों
 (D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (B)

  • 'हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी' (आईओएनएस) एक स्वैच्छिक पहल है जो क्षेत्रीय रूप से प्रासंगिक समुद्री मुद्दों पर चर्चा के लिए एक खुला और समावेशी मंच प्रदान करके हिंद महासागर क्षेत्र के तटीय राष्ट्रों की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ाने का प्रयास करती है। अतः कथन 2 सही है।
  • यह समुद्री सुरक्षा सहयोग बढ़ाने और सदस्य देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • INOS का उद्घाटन फरवरी, 2008 में नई दिल्ली, भारत में आयोजित किया गया था। भारतीय नौसेना के नौसेनाध्यक्ष को वर्ष 2008-10 की अवधि के लिए अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया था। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  •  अतः विकल्प (B) सही उत्तर है।

मुख्य परीक्षा

 प्र. रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को अब उदार बनाया जाना तय है: भारतीय रक्षा और अर्थव्यवस्था पर लघु और दीर्घावधि में इसका क्या प्रभाव पड़ने की उम्मीद है?  (वर्ष 2014)

 प्र. भारत-रूस रक्षा सौदों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा सौदों का क्या महत्त्व है?  हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में चर्चा कीजिये।  (वर्ष 2020)


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