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एडिटोरियल

  • 14 Jun, 2023
  • 16 min read
शासन व्यवस्था

एनसीईआरटी युक्तिकरण: भ्रम/संदेह का स्पष्टीकरण

यह एडिटोरियल 12/06/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘No Textbook Conspiracy’’ पर आधारित है। इसमें एनसीईआरटी द्वारा हाल ही में किये जाने वाले पाठ्यपुस्तक युक्तिकरण के संबंध में प्रसारित दुष्प्रचार के खतरे के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स:

नई शिक्षा नीति, एनसीईआरटी, शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF)

मेन्स:

एनसीईआरटी - युक्तिकरण, आलोचकों की चिंताएँ, आलोचनाओं की प्रतिक्रिया और ऐसे विवादों से बचने के उपाय

हाल ही में ऐसी चिंताजनक खबरें प्रसारित हुईं कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों से प्रमुख अवधारणाओं और खंडों को (उल्लेखनीय रूप से विकासवाद के सिद्धांत और आवर्त सारणी को) हटा दिया गया है।  

आम संदेहकर्ताओ के लिये यह एक अवसर बना क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया पर भारत में धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक सोच के अंत होने का प्रसार किया। इस ओर वैश्विक स्तर पर भी ध्यान गया और अल-जज़ीरा, डॉयचे वेले तथा प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ आदि ने इस पर टिप्पणी की।

इस मामले में सोशल मीडिया पर असत्यापित सूचना का प्रसार होना एक चिंताजनक बात थी, जिसे मुख्यधारा की मीडिया द्वारा और प्रसारित किया गया। एक समाचार माध्यम से दूसरे समाचार माध्यम तक इसका विस्तार होने से दुष्प्रचार और भ्रम का प्रसार हुआ।

इससे न केवल एनसीईआरटी की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा बल्कि देश की शिक्षा व्यवस्था को लेकर भी संदेह उत्पन्न हुआ। देश की शिक्षा प्रणाली की नकारात्मक छवि को दूर करने के लिये सरकार पहले से ही प्रयासरत है। कोई भी वैज्ञानिक सिद्धांत पूर्ण नहीं है — इसे चुनौती दी जा सकती है। डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत (Theory of Eevolution) को प्रश्नगत करने वाले नवीनतम विमर्शों को भी पाठ्यक्रम का अंग बनाये जाने की आवश्यकता है।

पाठ्यक्रम युक्तिकरण के लिये मानदंड: 

एनसीईआरटी को सभी कक्षाओं और विषयों की पाठ्यपुस्तकों के युक्तिकरण (rationalisation) का कार्य सौंपा गया था। इस प्रक्रिया में पाँच व्यापक मानदंडों पर विचार किया गया:

  • एक ही कक्षा के लिये विभिन्न विषयों में समान पाठ्य सामग्री की ओवरलैपिंग
  • निम्न कक्षा या उच्च कक्षा में समान पाठ्य सामग्री
  • जटिलता का स्तर
  • आसानी से उपलब्ध सामग्री जहाँ शिक्षकों की ओर से अधिक सहायता की आवश्यकता नहीं हो और इसे स्वाध्याय या सहपाठी-अधिगम (peer-learning) के माध्यम से सीखा जा सकता हो।
  • वर्तमान संदर्भ में अप्रासंगिक सामग्री

युक्तिकरण से संबंधित तर्क:

पाठ्यपुस्तकों को अद्यतन करना एनसीईआरटी द्वारा क्रियान्वित एक नियमित प्रक्रिया है, लेकिन यह समझने की आवश्यकता है कि ये परिवर्तन यादृच्छिक नहीं होते हैं। ये परिवर्तन विशिष्ट संदर्भों में किये जाते हैं:

  • बदलती वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिये: कुछ परिवर्तन बदलती वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिये किये गए – इनमें सूचना प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर से संबंधित सामग्री का समावेश शामिल है।
  • नई शिक्षा नीति के अनुरूप बनाना: देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधारों के अनुरूप पाठ्यपुस्तकों को संशोधित किया जाता है। इस मामले में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP), 2020 ने पथ-प्रदर्शन किया जहाँ ‘‘पाठ्य सामग्री के भार को कम करने और रचनात्मक मानसिकता के साथ अनुभवात्मक अधिगम के अवसर प्रदान करने पर बल दिया गया है।’’
  • महामारी का प्रभाव: महामारी के दौरान शिक्षण समय का नुकसान होने के परिणामस्वरूप अधिगम/लर्निंग की हानि हुई और छात्रों पर भार बढ़ गया। शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा इस बारे में भी चिंता व्यक्त की गई थी।
    • इस परिदृश्य में ‘‘अधिगम निरंतरता में तेज़ी से सुधार और छात्रों के समय के नुकसान की भरपाई’’ को सुगम बनाने के लिये युक्तिकरण की प्रक्रिया शुरू की गई।

आलोचकों द्वारा व्यक्त प्रमुख चिंताएँ: 

  • इसमें आरोप लगाया गया है कि पाठ्य सामग्री में बदलाव की कवायद राजनीति से प्रेरितहै और इसका उद्देश्य भारत के इतिहास, संस्कृति एवं विविधता के ऐसे कुछ पहलुओं को मिटाना या विकृत करना है जो शासन की विचारधारा के अनुरूप नहीं हैं।
  • इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के प्रगतिशील ध्येय से विसंगत बताया गया है जहाँ आलोचनात्मक दृष्टिकोण, बहु-विषयक अधिगम एवं विविधता के प्रति सम्मान पर बल दिया गया है।
  • इसमें कहा गया है कि युक्तिकरण मेंपारदर्शिता की कमी है और शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों, शिक्षाविदों एवं नागरिक समाज समूहों जैसे हितधारकों के साथ परामर्श नहीं किया गया है।
  • इसकोकोविड-19 महामारी के कारण हुई अधिगम की हानि को दूर करने के संबंध में अनावश्यक एवं अप्रभावी बताया गया है और कहा गया है कि इसे हल करने के लिये वस्तुतः कक्षा-स्तरीय हस्तक्षेप और शिक्षकों के सशक्तीकरण की आवश्यकता है।
  • इसमें कहा गया है कि युक्तिकरण से पाठ्यक्रम की व्यापकता एवं गहनता के बारे में भी चिंता उत्पन्न हुई है क्योंकि आवर्त सारणी, डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत और फाइबर एवं फैब्रिक जैसे कुछ महत्त्वपूर्ण अध्यायों को हटा दिया गया है।

सरकार का दृष्टिकोण:

  • आवर्त सारणी को ‘‘स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम से नहीं हटाया गया है’’ बल्कि इसे कक्षा 11 की पाठ्यपुस्तक में इकाई 3 में शामिल किया गया है।
  • डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को कक्षा 12 की पाठ्यपुस्तक के छठे अध्याय में ‘विस्तृत विवरण’ के साथ शामिल किया गया है।
  • कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार) में मौलाना आज़ाद के संदर्भ को हटाना, युक्तिकरण की वर्तमान प्रक्रिया का अंग नहीं है।
    • इस संदर्भ को वर्ष 2014-15 से ही हटा दिया गया था।
    • लेकिन फिर भी इसे वृहत विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है, जबकि पूर्व में भी कई राजनेताओं का उल्लेख पाठ्यपुस्तकों में मौजूद नहीं रहा है।
  • जारी बहस में एक और महत्त्वपूर्ण बात छूट गई है कि ये पाठ्य पुस्तकें केवल इस वर्ष के लिये हैं। NEP, 2020 का अनुपालन करने के क्रम में पाठ्य पुस्तकों के सिंक्रनाइज़ेशन के अलावा, पाठ्यपुस्तकों को वर्ष 2005 में गठित पाठ्यपुस्तक विकास समिति (Textbook Development Committee) द्वारा नियमित रूप से संशोधित किया जाना है।
    • इस समिति को वर्ष 2005 की राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (National Curriculum Framework- NCF) के अनुरूप पाठ्यक्रम विकसित करने का कार्य सौंपा गया है।
      • प्रत्येक प्रस्तावित परिवर्तन को पहले पाठ्यपुस्तक समिति को भेजा जाता है जिसे उनका विश्लेषण करने और अनुशंसा करने का कार्य सौंपा गया है।
  • आलोचकों का तर्क है कि कुछ मदों को हटाने की बात युक्तिकरण की अधिसूचना में शामिल नहीं थी। लेकिन इसका किसी साजिश से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह पुनर्मुद्रण की नियमित प्रक्रिया का परिचायक है जहाँ अनावश्यक भ्रम से बचने के लिये मामूली परिवर्तन की अधिसूचना जारी नहीं की जाती है।
  • इसके अलावा ये कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं हैं क्योंकि हितधारकों के सुझावों का ध्यान रखने के लिये पाठ्यपुस्तकों का पुनर्मुद्रण एक जारी प्रक्रिया है जो हर वर्ष होती है।
  • परिवर्तन के ये निर्णय विशेषज्ञ पैनल द्वारा लिये गए हैं। पाठ्य पुस्तकों का हालिया युक्तिकरण महामारी के दौरान छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़े बोझ को कम करने के लिये एक आवश्यकता-आधारित अभ्यास है।
    • एनसीईआरटी से संलग्न विषय विशेषज्ञों के साथ-साथ 25 बाहरी विशेषज्ञों के परामर्श के बाद परिवर्तन के ये निर्णय लिये गए हैं।

युक्तिकरण से संबद्ध पूर्व के कुछ विवाद:

  • वर्ष 1978-79 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के कार्यकाल के दौरान इतिहास की पुस्तकों को संशोधित करने पर राजनीतिक स्तर पर विवाद उत्पन्न हुआ था।
  • वर्ष 2006 में यूपीए शासनकाल के दौरान भारी विवाद के कारण सिख धर्म संबंधी एक अध्याय को बदलना पड़ा था।
  • एक अन्य विवाद वर्ष 2012 में हुआ था जब दिल्ली के फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम ने इतिहास की पाठ्य पुस्तकों से दो मध्ययुगीन चित्रों को इस आधार पर हटाने की मांग की थी कि इनका समावेशन शरिया कानून का उल्लंघन करता है।

आगे की राह: 

  • भागीदारीपूर्ण और साक्ष्य-आधारित प्रक्रिया: यह सुनिश्चित किया जाए कि पाठ्यक्रम विकास और संशोधन प्रक्रिया अधिक सहभागितापूर्ण, पारदर्शी एवं साक्ष्य-आधारित हो।
    • इसका अभिप्राय यह है कि एनसीईआरटी को निर्णय लेने की प्रक्रिया में विशेषज्ञों, शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों और अन्य हितधारकों को शामिल करना चाहिये तथा किसी भी बदलाव या विलोपन के पीछे के तर्क एवं साक्ष्य को सार्वजनिक रूप से साझा करना चाहिये।
  • फीडबैक और सुझावों को शामिल करना: एनसीईआरटी को पाठ्य पुस्तकों के उपयोगकर्ताओं से प्राप्त फीडबैक एवं सुझावों पर भी विचार करना चाहिये और शिक्षा क्षेत्र में नवीनतम शोध एवं सर्वोत्तम प्रक्रियाओं के आधार पर संशोधन करना चाहिये।
  • पाठ्येतर गतिविधियों पर भी ध्यान केंद्रित करना: खेल जैसी पाठ्येतर गतिविधियों को भी पाठ्यक्रम में जोड़ा जाना चाहिये। खेलों में भागीदारी से न केवल शारीरिक सेहत बनाए रखने में मदद मिलती है बल्कि सामाजिक कौशल, टीमवर्क और नेतृत्वकारी गुणों को भी बढ़ावा मिलता है।
    • इससे छात्रों को शैक्षणिक गतिविधियों से इतर भी अपनी रुचियों-अभिरुचियों को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान होता है।

निष्कर्ष:

परिवर्तनों की तब तक ही सराहना की जानी चाहिये जब तक यह सुदृढ़ तथ्यों एवं साक्ष्य आधारित हों। गलत अफवाह या पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व के अभाव से ऐसी प्रक्रियाएँ कमज़ोर होती हैं। इस संदर्भ में कोई भी विवाद या बहस करने से पहले संदर्भ और तथ्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिये। दुष्प्रचार के खतरों के बारे में सीखना, स्वयं में एक शिक्षा है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘दुष्प्रचार के खतरों के बारे में सीखना, स्वयं में एक शिक्षा है।’’ राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा हाल ही में पाठ्य पुस्तकों में किये जाने वाले परिवर्तनों के संदर्भ में उक्त कथन की चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्र. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य की नीति के निर्देशक तत्त्व
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय 
  3. पाँचवीं अनुसूची 
  4. छठी अनुसूची 
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

 (a) केवल 1 और 2
 (b) केवल 3, 4 और 5
 (c) केवल 1, 2 और 5
 (d) 1, 2, 3, 4 और 5

 उत्तर:(d)


मुख्य परीक्षा:

Q1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

 Q2. जनसंख्या शिक्षा (Population education) के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (2021)


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