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एडिटोरियल

  • 13 Dec, 2022
  • 15 min read
भारतीय राजनीति

प्रभावी लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की ओर

यह एडिटोरियल 11/12/2022 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Why local bodies are financially starved” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में शहरी स्थानीय निकायों और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (Democratic decentralisation) प्रायः इस धारणा पर आधारित होता है कि यह स्थानीय राजनीतिक निकायों को ऐसे संस्थानों के निर्माण के लिये सशक्त करता है जो स्थानीय नागरिकों के प्रति अधिक जवाबदेह हों और स्थानीय आवश्यकता एवं प्राथमिकताओं के लिये अधिक उपयुक्त हों।

  • 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन पारित करना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था जहाँ पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) और शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को स्वशासन के एजेंट के रूप में चिह्नित किया गया तथा उन्हें आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिये योजना तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
  • अगले वर्ष (वर्ष 2023) भारत इन संवैधानिक संशोधनों के लागू होने की 30वीं वर्षगाँठ मनाएगा। यद्यपि देश में वास्तव में विकेंद्रीकृत स्थानीय निकायों के निर्माण की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण क्या है?

  • यह केंद्र और राज्य के कार्यों एवं संसाधनों को निचले स्तरों पर निर्वाचित प्रतिनिधियों को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया है ताकि शासन में नागरिकों की अधिक प्रत्यक्ष भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके।
  • 73वें और 74वें संशोधनों ने भारत में संवैधानिक रूप से पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना कर निर्वाचित स्थानीय सरकारों के रूप में पंचायतों और नगर पालिकाओं की स्थापना को अनिवार्य कर दिया।
    • संविधान की 11वीं अनुसूची में पंचायतों की शक्तियों, प्राधिकार और उत्तरदायित्वों को संलग्न किया गया है।
    • संविधान की 12वीं अनुसूची में नगर निकायों की शक्तियों, प्राधिकार और उत्तरदायित्वों को संलग्न किया गया है।

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण शासन को कैसे प्रभावित करता है?

  • पारदर्शिता की वृद्धि: यह सरकार की पारदर्शिता और सरकार एवं नागरिकों के बीच सूचना के प्रवाह (दोनों दिशाओं में) को बढ़ाता है।
    • पारदर्शिता की वृद्धि होती है क्योंकि पहले की तुलना में बहुत बड़ी संख्या में लोग सरकार के कार्यकरण को और नीति एवं राजनीतिक प्रक्रियाओं से संबंधित गतिविधियों को निकटता से देख सकते हैं।
  • उत्तरदायी सरकारः जब लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण सुचारू रूप से कार्य करता है तो यह सरकार को अधिक उत्तरदायी बनाता है। सरकार की ओर से प्रतिक्रियाओं (कार्यों, परियोजनाओं) की गति और मात्रा में वृद्धि होती है।
  • राजनीतिक और नागरिक बहुलवाद: स्थानीय शासन द्वारा नागरिक समाज अधिक उत्प्रेरित एवं उत्साहित होता है और जितने अधिक लोग इससे जुड़ते हैं, शासन उतना ही अधिक सक्रिय और प्रतिस्पर्द्धी होता जाता है। यह राजनीतिक और नागरिक बहुलवाद (Political and Civil Pluralism) को सुदृढ़ करता है।
  • गरीबी कम करने में योगदान: विकेंद्रीकृत प्रणालियाँ क्षेत्रों या इलाकों के बीच विषमताओं से प्रेरित गरीबी को कम करने में मदद कर सकती हैं क्योंकि ये सभी क्षेत्रों को समान प्रतिनिधित्व और संसाधन प्रदान करती हैं।

भारत में विकेंद्रीकरण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • अवसंरचनागत खामियाँ: कई ग्राम पंचायतों के पास अपने स्वयं के भवन तक का अभाव है और वे स्कूलों, आँगनबाड़ी और अन्य संस्थाओं के साथ जगह साझा करते हैं।
    • कुछ के पास अपना भवन है तो उनमें शौचालय, पेयजल और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
    • पंचायतों के पास इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध तो हैं, लेकिन वे हमेशा काम नहीं करते हैं। पंचायत के अधिकारियों को डेटा एंट्री के लिये प्रखंड विकास कार्यालय के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जिससे कार्य में देरी होती है।
  • पर्याप्त वित्तीय संसाधनों का अभाव: देश भर में ग्रामीण स्थानीय निकाय (RLBs) और शहरी स्थानीय निकाय (ULBs)—दोनों ही वित्तीय दबाव की स्थिति में हैं। शहरी स्थानीय सरकारें और पंचायतें राज्य की संचित निधियों से अनुदान सहायता पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।
    • शहरी निकायों द्वारा एकत्रित कर उनके द्वारा प्रदत्त सेवाओं के व्यय को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं होते हैं। इसके साथ ही, केंद्र और राज्यों के विपरीत, स्थानीय सरकार के स्तर पर राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय के बीच कोई अंतर नहीं किया जाता है।
  • वित्त पर सटीक आँकड़ों का अभाव: राज्य वित्त आयोगों (SFCs) को स्थानीय निकायों के वित्त पर सटीक और अद्यतन आँकड़े प्रस्तुत नहीं किये जाते हैं।
    • पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों के लिये अलग-अलग राजकोषीय आँकड़ों के बिना कोई परिशुद्ध राजकोषीय विश्लेषण किया जाना संभव नहीं है।
    • आँकड़ों के अभाव में मामलों की एक उल्लेखनीय संख्या में SFCs की सिफारिशें अध्यक्ष की तदर्थ राय भर होती हैं जो आँकड़ों से संपुष्ट नहीं होती हैं।
  • स्थानीय सरकार की दुर्बल भूमिका: स्थानीय सरकारें स्थानीय विकास के लिये एक सक्रिय नीति-निर्माण निकाय के बजाय केवल एक कार्यान्वयन तंत्र के रूप में कार्य कर रही हैं।
  • भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण: कई बार, विकेंद्रीकरण ने सामान्यतः स्थानीय अभिजात वर्ग को गरीबों की कीमत पर अधिक सार्वजनिक संसाधनों पर कब्जा करने का अवसर दे दिया है और स्थानीय स्तर पर राजनीतिक शक्ति अपराधियों को उनकी गतिविधियों को वैध बनाने में सहायता करती है।
  • महापौर का औपचारिक दर्जा: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने दर्ज किया कि अधिकांश राज्यों में शहरी स्थानीय सरकार में महापौर को मुख्यतः औपचारिक या नाममात्र का दर्जा (Ceremonial Status) प्राप्त है।
    • अधिकांश मामलों में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त नगर आयुक्त के पास ही सभी शक्तियाँ होती हैं और निर्वाचित महापौर अधीनस्थ की भूमिका निभाते हैं।
  • अनियमित चुनाव: पंचायती राज संस्थाओं में चुनाव की प्रक्रिया अभी भी अनियमित है। हाल ही में कई राज्यों ने स्थानीय निकायों के चुनाव सिर्फ़ इसलिये करवाए क्योंकि केंद्रीय वित्त आयोग ने केवल ‘विधिवत गठित स्थानीय सरकारों’ के लिये ही अनुदान की अनुशंसा की थी।
  • ‘प्रॉक्सी रूल’: पंचायतों और नगर निकायों में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित रखी गई हैं। यहाँ पुरुष उम्मीदवार अपनी पत्नियों को मोहरों के रूप में इस्तेमाल करते हैं और पर्दे के पीछे से उन्हें निर्देशित करते हैं, जो ‘प्रॉक्सी रूल’ की सदाबहार समस्या की ओर ले जाता है।

आगे की राह

  • संगठनात्मक सुदृढ़ीकरण: यह आवश्यक है कि स्थानीय सरकारों के संगठनात्मक ढाँचे को पर्याप्त जनशक्ति के साथ सुदृढ़ किया जाए। सहायक और तकनीकी कर्मचारियों को नियुक्त करने का प्रयास किया जाना चाहिये ताकि पंचायतें सुचारू रूप से कार्य कर सकें।
  • राजकोषीय विवेक: शहरी स्थानीय निकायों के स्वतंत्र और वित्तीय रूप से सुरक्षित होने के लिये वित्तीय विकेंद्रीकरण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही राजकोषीय जवाबदेही भी सुनिश्चित की जानी चाहिये जो दीर्घकालिक समाधान प्रदान कर सकती है।
    • वित्तीय सूचनाओं की अखंडता, आंतरिक नियंत्रणों की पर्याप्तता, प्रवर्तनीय कानूनों के अनुपालन और स्थानीय निकायों से संलग्न सभी व्यक्तियों के नैतिक आचरण की निगरानी के लिये ज़िला स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा लेखापरीक्षा समितियों (Audit committees) का गठन किया जा सकता है।
  • स्थानीय ई-गवर्नेंस: शहरी स्थानीय निकायों और पंचायतों को उपयुक्त डिजिटल अवसंरचना प्रदान की जानी चाहिये ताकि नागरिकों की ई-भागीदारी को अधिकतम किया जा सके और विभिन्न सामाजिक श्रेणियों को शामिल किया जा सके; साथ ही निर्णय लेने में और नई तकनीकों के उपयोग के माध्यम से वास्तविक अर्थों में नीति-निर्माण में उर्ध्वगामी दृष्टिकोण का पालन किया जा सके।
  • शिकायत निवारण तंत्र: शहरी स्थानीय निकाय और पंचायत शिकायत दर्ज करने के लिये एक प्रौद्योगिकी-सक्षम मंच स्थापित कर सकते हैं, जो शहरी सरकारों को नागरिकों की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी बनाएगा।
    • इस तंत्र के माध्यम से नागरिकों को फीडबैक प्रदान करने और समाधान प्राप्त करने का भी अवसर दिया जाना चाहिये।
    • शहरी शासन की इन संरचनात्मक और वास्तु संबंधी समस्याओं को दूर करने से शहरों में प्रभावी सेवा वितरण सुनिश्चित होगा और इसके नागरिकों के लिये जीवन की गुणवत्ता में सुधार आएगा।
  • सतत/संवहनीय विकेंद्रीकरण: संवहनीय विकेंद्रीकरण के लिये शासन प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं जवाबदेही आवश्यक है और पारदर्शिता के लिये सक्रिय नागरिक भागीदारी अहम है।
    • इसे सुनिश्चित करने के लिये, शहरी स्थानीय निकाय एरिया सभा और वार्ड समिति जैसे कार्यात्मक, विकेंद्रीकृत मंच का सृजन कर सकते हैं, जो निर्वाचित प्रतिनिधियों और नागरिकों के बीच चर्चा एवं विचार-विमर्श की सुविधा प्रदान करेंगे।

अभ्यास प्रश्न: भारत में प्रभावी और संवहनीय लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के मार्ग की प्रमुख बाधाओं की चर्चा कीजिये। स्थानीय शासन में सुधार के उपाय भी सुझाइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

Q1.  स्थानीय स्वशासन को निम्न में से किसके अभ्यास हेतु सबसे अच्छी तरह परिभाषित किया जा सकता है: (वर्ष 2017)

 (A) संघवाद
 (B) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
 (C) प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल
 (D) प्रत्यक्ष लोकतंत्र

 उत्तर: (B)


 Q2. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य निम्नलिखित में से किसे सुनिश्चित करना है?  (वर्ष 2015)

  1. विकास में जनभागीदारी
  2. राजनीतिक जवाबदेही
  3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  4. वित्तीय गतिशीलता

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये

 (A) केवल 1, 2 और 3
 (B) केवल 2 और 4
 (C) केवल 1 और 3
 (D) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (C)


मुख्य परीक्षा

Q1. स्थानीय सरकार के एक भाग के रूप में भारत में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा किन स्रोतों की तलाश कर सकती हैं?  (वर्ष 2018)

Q2 आपकी राय में, भारत में सत्ता के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी स्तर पर शासन के परिदृश्य को किस हद तक बदल दिया है?  (वर्ष 2022)


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