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एडिटोरियल

  • 13 Nov, 2023
  • 20 min read
शासन व्यवस्था

भारत में नेट न्यूट्रैलिटी

यह एडिटोरियल 07/11/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A telco double dip attempt that threatens Net neutrality” लेख पर आधारित है। इसमें नेट नयूट्रैलिटी सिद्धांतों को बनाए रखने के महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है जो एक ऐसे वातावरण को बढ़ावा देने में निहित है जो नवाचार को प्रोत्साहित करता है, स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का पोषण करता है और उपभोक्ता कल्याण को प्राथमिकता देता है।

प्रिलिम्स के लिये:

नेट न्यूट्रैलिटी, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI), ओवर-द-टॉप (OTT) सेवा प्रदाता, दूरसंचार सेवा प्रदाता (TSP), कंटेंट डिलेविरी नेटवर्क (CDN), फेसबुक की फ्री बेसिक्स, डेटा सेवाओं के लिये भेदभावपूर्ण शुल्कों का निषेध नियम ( 2016), वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (VOIP)।

मेन्स के लिये:

नेट न्यूट्रैलिटी का परिचय , नेट न्यूट्रैलिटी का महत्त्व, भारत में नेट न्यूट्रैलिटी की नियामक स्थिति, भारत में नेट न्यूट्रैलिटी पर मुख्य बहस, भारत में एक समावेशी डिजिटल परिदृश्य के लिये आगे की राह।

हाल ही में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने सरकार के अनुरोध पर कार्रवाई करते हुए ओवर-द-टॉप (OTT) सेवाओं के विनियमन पर परामर्श प्रक्रिया शुरू की।

दूरसंचार कंपनियों का तर्क है कि नेटफ्लिक्स और अमेज़ॅन प्राइम जैसी OTT सेवाओं को बैंडविड्थ की लागत साझा करनी चाहिये क्योंकि वे दूरसंचार कंपनियों के बुनियादी ढाँचे से लाभ उठाते हैं। इस संदर्भ में नेट नयूट्रैलिटी (Net Neutrality) की बहस एक बार फिर से उभर आई है।

नेट न्यूट्रैलिटी क्या है?

  • नेट न्यूट्रैलिटी किसी भी मानदंड पर मध्यवर्ती नेटवर्क द्वारा इंटरनेट ट्रैफिक में भेदभाव न करने की अवधारणा को संदर्भित करती है। नेटवर्क को इसके माध्यम से प्रसारित होने वाली सभी सूचनाओं के प्रति तटस्थ होना चाहिये। 
  • किसी नेटवर्क से गुजरने वाले सभी संचार (communication) को एक समान रूप से देखा जाना चाहिये; अर्थात इसके कंटेंट, एप्लीकेशन, सेवा, डिवाइस, प्रेषक या प्राप्तकर्ता पते (sender or recipient address) से स्वतंत्र होना चाहिये।
  • नेट न्यूट्रैलिटी यह सुनिश्चित करती है कि हर किसी को इंटरनेट पर सूचना और सेवाओं तक समान पहुँच मिले, चाहे उनके वित्तीय संसाधन कुछ भी हों या उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली वेबसाइटों का आकार एवं शक्ति कुछ भी हो।
  • शब्द की उत्पत्ति: ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ शब्द को कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफेसर टिम वू (Tim Wu) ने वर्ष 2003 में प्रकाशित अपने ‘नेटवर्क न्यूट्रैलिटी, ब्रॉडबैंड डिस्क्रिमिनेशन’ शीर्षक पेपर से लोकप्रिय बनाया था।
  • नेट न्यूट्रैलिटी के प्रमुख सिद्धांतों में शामिल हैं:

  • इंटरनेट क्षेत्र के जो हितधारक नेट न्यूट्रैलिटी से प्रभावित होते हैं, उनमें शामिल हैं:
    • किसी भी इंटरनेट सेवा के उपभोक्ता
    • दूरसंचार सेवा प्रदाता (TSPs) या इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISPs),
    • ओवर-द-टॉप (OTT) सेवा प्रदाता (वे जो वेबसाइट और एप्लीकेशन जैसी इंटरनेट एक्सेस सेवाएँ प्रदान करते हैं),
    • सरकार, जो इन खिलाड़ियों के बीच संबंधों को विनियमित और परिभाषित कर सकती है
      • साथ ही, ट्राई (TRAI) दूरसंचार क्षेत्र में एक स्वतंत्र नियामक है जो मुख्य रूप से TSPs और उनकी लाइसेंसिंग शर्तों आदि को विनियमित करता है।

नेट न्यूट्रैलिटी क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • खुले इंटरनेट का संरक्षण: नेट न्यूट्रैलिटी सूचना, विचारों और सेवाओं तक निशुल्क एवं अप्रतिबंधित पहुँच सुनिश्चित करती है।
    • नेट न्यूट्रैलिटी के अभाव में ISPs विशेष कुछ वेबसाइटों को उच्च कनेक्शन गति प्रदान कर सकते हैं, जबकि अन्य के लिये पहुँच को सीमित कर सकते हैं। चरम स्थिति में कोई ISP कुछ कंटेंट तक पहुँच को पूरी तरह से अवरुद्ध कर सकता है।
  • उपभोक्ता विकल्प को बढ़ावा: नेट न्यूट्रैलिटी उपभोक्ताओं को बिना किसी प्रतिबंध के उन कंटेंट, एप्लीकेशन और सेवाओं को स्वतंत्र रूप से चुनने की अनुमति देती है जिन तक वे पहुँच बनाना चाहते हैं। वे ISPs द्वारा निर्धारित पेशकशों के पूर्व-चयनित समूह तक सीमित नहीं रहते।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा: नेट न्यूट्रैलिटी लोगों को बिना किसी हस्तक्षेप के संगठित होने, संवाद करने और समर्थकों को लामबंद करने की अनुमति देकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करती है, जिससे यह लोकतांत्रिक संलग्नता के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाती है।
  • नवाचार को बढ़ावा: खुला इंटरनेट नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करता है। स्टार्टअप, छोटे व्यवसायों और उद्यमियों को ISPs के साथ कोई सौदा करने की आवश्यकता के बिना नई सेवाएँ शुरू करने और उपयोगकर्ताओं तक पहुँचने का समान अवसर उपलब्ध होता है।
  • प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी अभ्यासों पर रोक: नेट न्यूट्रैलिटी के अभाव में ISPs अपने स्वयं के या भागीदारों के कंटेंट या सेवाओं का पक्षसमर्थन करते हुए प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी व्यवहार में संलग्न हो सकते हैं। नेट न्यूट्रैलिटी नियम ऐसे भेदभावपूर्ण अभ्यासों पर रोक लगाते हैं और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा बनाए रखते हैं।

भारत में नेट न्यूट्रैलिटी की नियामक स्थिति 

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण भारत में नेट न्यूट्रैलिटी को सुनिश्चित करने और इसे विनियमित करने में एक केंद्रीय भूमिका का निर्वहन करता है। भारत में नेट न्यूट्रैलिटी का विनियमन विकासों की निम्नलिखित शृंखला द्वारा चिह्नित है:

  • एयरटेल ज़ीरो और VoIP विवाद (2014):
    • वर्ष 2014 में भारती एयरटेल ने ‘एयरटेल ज़ीरो’ योजना शुरू की, जिसने ज़ीरो-रेटिंग और नेट न्यूट्रैलिटी के संभावित उल्लंघनों के बारे में चिंताएँ बढ़ा दीं।
    • स्काइप (Skype) और व्हाट्सएप (WhatsApp) जैसी वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (VoIP) सेवाओं के लिये अतिरिक्त शुल्क वसूल करने के एयरटेल के कदम ने भी विवाद को जन्म दिया।
  • ट्राई का परामर्श पत्र (2015):
    • वर्ष 2015 में ट्राई (TRAI) ने ओवर-द-टॉप (OTT) सेवाओं और नेट न्यूट्रैलिटी पर एक परामर्श पत्र जारी किया जिसमें सार्वजनिक राय आमंत्रित की गई।
  • ट्राई के 2016 के विनियमन:
    • वर्ष 2016 में ट्राई ने डेटा सेवाओं के लिये अलग-अलग दरों पर रोक लगाकर नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में निर्णय दिया।
    • ट्राई के ‘डेटा सेवाओं के लिये भेदभावपूर्ण टैरिफ का निषेध विनियम, 2016’ (Prohibition of Discriminatory Tariffs for Data Services Regulations, 2016) ने गैर-भेदभावपूर्ण मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करते हुए फेसबुक की ‘फ्री बेसिक्स’ जैसी ज़ीरो-रेटिंग सेवाओं को समाप्त कर दिया। 
  • वर्ष 2017 में ट्राई की अनुशंसाएँ:
    • ट्राई ने गैर-भेदभावपूर्ण सिद्धांतों का विस्तार कंटेंट व्यवहार (content treatment) तक किया।
    • अनुशंसा की गई कि कंटेंट भेदभाव को रोकने के लिये सरकार और ISPs के बीच लाइसेंस समझौतों में संशोधन किया जाना चाहिये।
  • 5G डिजिटल रूपांतरण पर ट्राई का परामर्श पत्र, 2023:
    • इसका उद्देश्य नीतिगत चुनौतियों की पहचान करना और 5G पारितंत्र के भीतर नई प्रौद्योगिकियों के तीव्र अंगीकरण और इष्टतम उपयोग के लिये एक प्रभावी ढाँचा तैयार करना है।

भारत में नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर जारी बहस के प्रमुख विषय 

  • दूरसंचार कंपनियों का परिप्रेक्ष्य
    • राजस्व में गिरावट:
      • पिछले दस वर्षों में दूरसंचार कंपनियों के राजस्व में कमी देखी गई है। ऐसा मुख्य रूप से वॉयस कॉल और SMS जैसी पारंपरिक सेवाओं से प्राप्त राजस्व के मामले में हुआ है।
      • निशुल्क प्रतिस्पर्द्धी OTT सेवाओं का प्रसार इस गिरावट का एक प्रमुख कारक रहा है।
    • अवसंरचनात्मक उन्नति:
      • दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (TSPs) का तर्क है कि वे नेटवर्क अवसंरचना में पर्याप्त निवेश करते हैं और इन निवेशों को बनाए रखने तथा इंटरनेट पहुँच के विस्तार को सुविधाजनक बनाने के लिये अलग-अलग मूल्य निर्धारण जैसे प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
      • टेलीकॉम कंपनियाँ मानती हैं कि OTT प्लेटफॉर्म उनके द्वारा स्थापित और बनाए रखे गए अवसंरचना का उपयोग कर लाभ प्राप्त कर रहे हैं
        • इसलिये, ये कंपनियाँ नेटफ्लिक्स, अमेज़ॅन प्राइम, डिज़्नी+ हॉटस्टार जैसे OTT कंटेंट प्रदाताओं से बैंडविड्थ से जुड़े खर्चों में योगदान करने का आग्रह रखती हैं।
    • कराधान में असमानता:
      • टेलीकॉम कंपनियों का तर्क है कि OTT सेवाओं को कराधान और लाइसेंसिंग शुल्क में असमानता का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप असंतुलित प्रतिस्पर्द्धी परिदृश्य का निर्माण होता है।
  • OTT प्लेटफॉर्मों का परिप्रेक्ष्य
    • इंटरनेट प्रदाताओं की विशिष्ट भूमिका :
      • OTT प्रदाता इस बात पर बल देते हैं कि दूरसंचार कंपनियाँ इंटरनेट पहुँच के लिये माध्यम के रूप में कार्य करती हैं, न कि उनके पास इसका स्वामित्व है। उपभोक्ता डेटा प्लान के माध्यम से पहुँच के लिये इन कंपनियों को शुल्क प्रदान करते हैं।
      • OTT सेवाओं के उपयोग से डेटा की खपत बढ़ती है, जिससे दूरसंचार कंपनियों की राजस्व वृद्धि में योगदान होता है।
    • नेट न्यूट्रैलिटी की मांग:
      • इंटरनेट विखंडन (internet fragmentation) को रोकने और समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिये नेट न्यूट्रैलिटी अत्यंत आवश्यक है। यह TSPs के भेदभावपूर्ण व्यवहार—जो नवाचार को बाधित कर सकता है और छोटे पैमाने के एवं नवोन्मेषी OTT सेवाओं तक पहुँच को प्रतिबंधित कर सकता है, पर रोक लगाती है।
      • नेट न्यूट्रैलिटी के समर्थक विचारों एवं ज्ञान के लोकतांत्रिक आदान-प्रदान, नैतिक व्यावसायिक अभ्यासों, निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा और जारी नवाचार के लिये एक स्वतंत्र, खुले एवं भेदभावरहित पूर्ण इंटरनेट बनाए रखने में विश्वास करते हैं।
    • कंटेंट डिलीवरी नेटवर्क प्रावधान:
      • OTT प्लेटफॉर्म पहले से ही कंटेंट की डिलीवरी के लिये इंटरनेट की क्षमता को वृहत रूप से बढ़ाने के लिये कंटेंट डिलीवरी नेटवर्क (CDNs) से संबंधित खर्चों को कवर कर रहे हैं।
      • OTT सेवाएँ कंटेंट की विविधता एवं गुणवत्ता, स्ट्रीमिंग गुणवत्ता, नेविगेशन की आसानी और डिवाइस की उपलब्धता के आधार पर अपने स्वयं के बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा का सामना करती हैं।
    • कीमतें बढ़ाने की दूरसंचार कंपनियों की स्वतंत्रता:
      • दूरसंचार कंपनियां लागत को कवर करने के लिये अपनी कीमतों को समायोजित कर सकती हैं, क्योंकि वे OTT कंटेंट एवं अवसंरचना निवेश द्वारा सृजित मांग का लाभ उठाती हैं।
  • उपभोक्ताओं के लिये चिंताएँ:
    • अतिरिक्त लागत :
      • नेट न्यूट्रैलिटी के समर्थकों का तर्क है कि OTT प्लेटफॉर्मों पर अतिरिक्त लागत का अधिरोपण ग्राहकों की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च शुल्क या सेवा गुणवत्ता की कमी की स्थिति बन सकती है।
      • नेट न्यूट्रैलिटी के आलोचकों का तर्क है कि उपभोक्ताओं की पहुँच और पसंद/विकल्प की सुरक्षा के लिये इंटरनेट सेवाओं में खुली प्रतिस्पर्द्धा को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।

भारत में समावेशी डिजिटल परिदृश्य के लिये आगे की राह

  • विनियमन संबंधी स्पष्टता: ट्राई को नेट न्यूट्रैलिटी पर नियामक स्पष्टता और मार्गदर्शन प्रदान करना जारी रखना चाहिये। इसमें नेट न्यूट्रैलिटी सिद्धांतों को परिभाषित करना और लागू करना शामिल है जो भेदभावपूर्ण अभ्यासों को रोकते हैं, साथ ही उचित नेटवर्क प्रबंधन की अनुमति भी देते हैं।
  • बहु-हितधारक दृष्टिकोण: एक संतुलित दृष्टिकोण पर विचार किया जाए जो दूरसंचार कंपनियों और OTT सेवा प्रदाताओं दोनों के हितों की पहचान करे। एक ऐसा मध्यम मार्ग ढूँढ़ना अत्यंत आवश्यक है जो निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा एवं नवाचार सुनिश्चित करे, साथ ही दूरसंचार कंपनियों को निवेश पुनर्प्राप्ति की अनुमति दे।
  • पारदर्शिता: ISPs द्वारा अपने नेटवर्क प्रबंधन और OTT प्रदाताओं के साथ सहयोग के तरीकों में पारदर्शिता को प्रोत्साहित किया जाए। यह पारदर्शिता यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है कि कोई भी नेटवर्क प्रबंधन अभ्यास उचित और गैर-भेदभावपूर्ण है।
  • निरंतर मूल्यांकन: दूरसंचार उद्योग और OTT प्रदाताओं पर नेट न्यूट्रैलिटी नियमों के प्रभाव का नियमित रूप से मूल्यांकन किया जाए। इस मूल्यांकन में इंटरनेट और उसकी सेवाओं की उभरती प्रकृति पर विचार किया जाना चाहिये।
  • सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: नेट न्यूट्रैलिटी के महत्त्व, इसके सिद्धांतों और उपभोक्ताओं पर इसके प्रभाव के बारे में सार्वजनिक जागरूकता एवं शिक्षा बढ़ाई जाए। जागरूक उपभोक्ता नेट न्यूट्रैलिटी के लिये नियमों के निर्माण में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
  • सर्वोत्तम वैश्विक अभ्यास: सर्वोत्तम वैश्विक अभ्यासों और अन्य देशों में सफल नेट न्यूट्रैलिटी विनियमनों के उदाहरणों से प्रेरणा ग्रहण की जाए। ये भारत के नियामक ढाँचे के लिये अंतर्दृष्टि और सबक प्रदान कर सकते हैं।

निष्कर्ष 

भारत में नेट न्यूट्रैलिटी पर सार्थक बहस के लिये एक संतुलित और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो सभी हितधारकों के हितों पर विचार करे और सुनिश्चित करे कि एक स्वतंत्र एवं खुले इंटरनेट को संरक्षित करने के लिये नेट न्यूट्रैलिटी के सिद्धांतों को बरकरार रखा जाएगा। चूँकि प्रौद्योगिकी का विकास जारी है, नीतिनिर्माताओं को सभी के लिये एक गतिशील एवं समावेशी डिजिटल परिदृश्य सुनिश्चित करते हुए तदनुरूप विनियमनों को अनुकूलित करने के लिये सतर्क बने रहना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत में नेट न्यूट्रैलिटी के ऐतिहासिक विकास और महत्त्व पर विचार कीजिये। नेट न्यूट्रैलिटी विनियमनों से संबंधित मूलभूत सिद्धांतों और बाधाओं की चर्चा कीजिये तथा देश के भीतर एक सुसंतुलित नियामक ढाँचे के निर्माण हेतु आवश्यक सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

 प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार का/के “डिजिटल इंडिया” योजना का/के उद्देश्य है/हैं? (2018) 

  1. भारत की अपनी इंटरनेट कंपनियों का गठन, जैसा कि चीन ने किया।
  2.  एक नीतिगत ढाँचे की स्थापना जिससे बड़े आँकड़े एकत्रित करने वाली समुद्रपारीय बहु-राष्ट्रीय कंपनियों को बढ़ावा दिया जा सके कि वे हमारी राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं के भीतर अपने बड़े डेटा केंद्रों की स्थापना करें।
  3.  हमारे अनेक गाँवों को इंटरनेट से जोड़ना तथा हमारे बहुत से विद्यालयों, सार्वजनिक स्थलों एवं प्रमुख पर्यटन केंद्रों में वाई-फाई लाना। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 


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