शहरी सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता
यह एडिटोरियल 11/08/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘An urban jobs safety net’’ लेख पर आधारित है। इसमें कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय शहरी रोज़गार के समक्ष पेश चुनौतियों और उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।
महामारी के दौरान विश्व भर की सरकारों को जीवन की रक्षा बनाम आजीविका की रक्षा के कठिन विकल्प का सामना करना पड़ा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की अप्रैल, 2021 की ’वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ रिपोर्ट के अनुसार, चीन के अतिरिक्त शेष लगभग सभी देशों ने पिछले साल आर्थिक संकुचन का सामना किया। इसके साथ ही, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 3.3% की कमी दर्ज़ की गई है।
भारत की जीडीपी में 8% की गिरावट आई है। ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी’ के आकलन के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी दर अप्रैल 2020 में 23.5% के शीर्ष स्तर पर पहुँच गई थी जिसमें फिर सुधार के साथ फरवरी 2021 में यह 6.9% के स्तर पर आ गई।
आर्थिक मंदी के इस परिदृश्य में आजीविका के नुकसान को न्यूनतम रखना एक प्रमुख चुनौती है। परंपरागत रूप से, समकालीन वास्तविकताओं को देखते हुए सरकारें इस मुद्दे को क्षेत्र विशेष के प्रति दृष्टिकोण के माध्यम से संबोधित करती रही हैं, लेकिन अब आवश्यकता है कि इसे ग्रामीण-शहरी दृष्टिकोण से देखा जाए।
शहरी भारत के समक्ष विद्यमान सामाजिक सुरक्षा की समस्याएँ
- संक्रमण का प्रसार: भारत में कोविड-19 के प्रकोप के दौरान दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे बड़े नगर इस रोग के प्रमुख शहरी केंद्र के रूप में उभरे।
- ग्रामीण-शहरी आजीविका सुरक्षा अंतराल: हालाँकि, भारत सरकार ‘राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन' का संचालन करती है, जो कौशल उन्नयन और बैंकों के सहयोग से क्रेडिट लिंकेज के माध्यम से स्वरोज़गार पर केंद्रित है, लेकिन इस योजना में गारंटीकृत श्रमिक रोज़गार प्रावधान नहीं हैं, जैसा मनरेगा (MGNREGA) में प्रदान किया जाता है।
- पिछले वर्ष लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर शहरी से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन कर गए थे, जो ग्रामीण-शहरी आजीविका सुरक्षा अंतराल को प्रकट करता है।
- प्रवासन की यह त्रासदी और आर्थिक मंदी ने शहरी भारत में भी एक ऐसी ही आजीविका सुरक्षा जाल की आवश्यकता पर बल दिया है।
- आर्थिक प्रभाव: शहरी क्षेत्रों में आर्थिक संकट गहरा रहा है क्योंकि जिन लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है उन्हें अभी तक प्रतिस्थापन नहीं मिला है और लॉकडाउन के बाद भारतीय शहरी क्षेत्र में अनौपचारिक क्षेत्र के अंदर आजीविका के पुनरुद्धार की दिशा में अभी अधिक सफलता नहीं मिली है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली और सामाजिक क्षेत्र योजना कवरेज: शहरी क्षेत्रों में परिवारों के एक बड़े हिस्से के पास राशन कार्ड उपलब्ध नहीं है।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के मामले में भी ग्रामीण निर्धनों को अपेक्षाकृत बेहतर कवरेज़ प्राप्त था क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में PDS राशन तक बेहतर पहुँच उपलब्ध थी।
- पोषण और भूख: शहरी निवासियों के बीच पोषण की गुणवत्ता और मात्रा में गिरावट अधिक थी, क्योंकि उन्हें खाद्य की खरीद के लिये पैसे उधार लेने की आवश्यकता थी।
शहरी क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता
- अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदानकर्त्ता: शहरी क्षेत्र देश की विकास प्रक्रिया का अभिन्न अंग हैं। अधिकांश देशों की तरह, भारत में भी शहरी क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान करते हैं।
- भारतीय शहर आर्थिक उत्पादन में लगभग दो-तिहाई का योगदान करते हैं, जनसंख्या के एक बढ़ते हिस्से की मेजबानी करते हैं और FDI के मुख्य प्राप्तकर्त्ता हैं। वे नवाचार और प्रौद्योगिकी के प्रवर्तक भी हैं।
- व्यवसायों के लिये आकर्षण केंद्र: शहर आर्थिक गतिविधियों की व्यापक विविधता के लिये एक सामूहिक आकर्षण केंद्र की स्थिति भी रखते हैं।
- अनुमापी और संकुलन लाभों (शैक्षिक सुविधाओं की आपूर्ति, आपूर्तिकर्त्ताओं की उपस्थिति, आदि ) के परिणामस्वरूप शहर व्यवसाय और लोगों को अधिक आकर्षित करते हैं।
- सामाजिक पूँजी का केंद्र: शहर सामाजिक पूँजी का केंद्र होते हैं। वे सांस्कृतिक या सामाजिक रूप से विविधतापूर्ण समूहों के 'मेल्टिंग पॉइंट' या भिन्न-भिन्न विचारों पर चर्चा का केंद्र होने की स्थिति भी रखते हैं।
- शहर शक्ति केंद्र होते हैं: शहर एक निरंतर विस्तार करते पावर-ब्लॉक होते हैं, जो कस्बों और गाँवों की कीमत पर अपनी स्थिति को सुदृढ़ करते हैं।
आगे का रास्ता
- सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान: शहरी क्षेत्रों को आजीविका सुरक्षा अधिगम्यता प्रदान करने की आवश्यकता है।
- आजीविका सुरक्षा जाल का दायरा व्यापक होना चाहिये। इस प्रकार का सुरक्षा जाल महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) द्वारा प्रदान किया जाता है, लेकिन उसका लाभ केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सीमित है।
- सहयोग को बढ़ावा देना: सरकार की विद्यमान राजकोषीय स्थिति के अंदर एक शहरी आजीविका योजना शुरू की जा सकती है।
- यदि ऐसा संभव नहीं हो तो संघ और राज्य मिलकर संसाधन उपलब्ध करा सकते हैं और शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बना सकते हैं।
- राज्य के हस्तक्षेप:
- हिमाचल प्रदेश ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में शहरी क्षेत्र में न्यूनतम मज़दूरी पर प्रत्येक परिवार के लिये 120 दिनों की गारंटीकृत मज़दूरी रोज़गार प्रदान कर आजीविका सुरक्षा के विस्तार के उद्देश्य से मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना (MMSAGY) शुरू की है।
- शहरी श्रमिकों के लिये न्यूनतम मज़दूरी: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिये अलग-अलग न्यूनतम मज़दूरी की घोषणा शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन को प्रेरित नहीं करती क्योंकि शहरी क्षेत्रों में निवास की उच्च लागत एक समायोजी प्रभाव (Offsetting Effect) उत्पन्न करती है।
- सेवा आपूर्ति पर ध्यान केंद्रित करना: अर्थव्यवस्था को अपना ध्यान परिसंपत्ति निर्माण से सेवा आपूर्ति की ओर स्थानांतरित करना चाहिये। शहरी क्षेत्रों में इसे परिसंपत्ति निर्माण या मज़दूरी-सामग्री अनुपात (Wage-material ratios) तक सीमित करना उप-इष्टतम हो सकता है।
- नगरनिकाय सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
भारत की भविष्योन्मुखी शहरी रणनीति को शहरी प्रशासन, शहरी निर्धनों की आजीविका सुरक्षा, सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति, अंतर-सरकारी स्थानांतरण और क्षमता निर्माण में सुधार की ओर प्रेरित होना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: ‘शहरी क्षेत्र देश के विकास इंजन होते हैं।’ इस कथन के आलोक में शहरी क्षेत्र के लोगों के लिये आजीविका सुरक्षा की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।