आत्मनिर्भर भारत की स्वतंत्र विदेश नीति
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में आत्मनिर्भर भारत की स्वतंत्र विदेश नीति व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
आगामी 15 अगस्त 2020 को भारत अपनी स्वतंत्रता की 74वीं वर्षगाँठ के आयोजन का साक्षी बनेगा। इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस आत्मनिर्भर भारत की थीम पर आयोजित किया जा रहा है। वस्तुतः आत्मनिर्भरता सदैव ही भारत का लक्ष्य रहा है, परंतु वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के बाधित होने से इस दिशा में गंभीरता के साथ प्रयास करने की आवश्यकता को महसूस किया गया।
वर्तमान में भारत आत्मनिर्भर बनने की ओर अपने कदम आगे बढ़ा रहा है। ऐसे में भारत अपनी विदेश नीति का समग्रता से मूल्यांकन भी कर रहा है। इस समय विश्व के विभिन्न घटनाक्रमों नें भारतीय विदेश नीति के समक्ष कुछ कठिन चुनौतियों को प्रकट किया है। इनमें प्रमुख हैं- ईरान तेल संकट, अमेरिकी द्विपक्षीय व्यापार तथा चीन की मुखर होती नीति। इन चुनौतियों के कारण भारतीय हितों को वैश्विक स्तर पर साधने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है। भारत के हित जहाँ एक ओर अमेरिकी नीतियों के कारण ईरान और रूस के संदर्भ में प्रभावित हो रहे हैं तो दूसरी ओर भारत-अमेरिका व्यापार पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। वहीं चीन की नीति विश्व राजनीति में अपने प्रभाव और शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से परिचालित है। जो दक्षिण एशिया में भारत के लिये समस्या उत्पन्न कर रही है।
भारत ने किसी भी महाशक्ति के दबाव में आए बिना ऐतिहासिक रूप से स्वतंत्र विदेश नीति का पालन किया है, चाहे विश्व व्यवस्था द्विध्रुवीय (वर्ष 1947-1991) रही हो, एकध्रुवीय (वर्ष 1991-2008) रही हो या बहुध्रुवीय (वर्ष 2008-वर्तमान) रही हो।
विदेश नीति से तात्पर्य
- विदेश नीति एक ढाँचा है जिसके भीतर किसी देश की सरकार, बाहरी दुनिया के साथ अपने संबंधों को अलग-अलग स्वरूपों यानी द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय रूप में संचालित करती है।
- वहीं कूटनीति किसी देश की विदेश नीति को प्राप्त करने की दृष्टि से विश्व के अन्य देशों के साथ संबंधों को प्रबंधित करने का एक कौशल है।
- किसी भी देश की विदेश नीति का विकास घरेलू राजनीति, अन्य देशों की नीतियों या व्यवहार एवं विशिष्ट भू-राजनीतिक परिदृश्यों से प्रभावित होता है।
- प्रारंभ में यह माना गया कि विदेश नीति पूर्णतः विदेशी कारकों और भू-राजनीतिक परिदृश्यों से प्रभावित होती है, परंतु बाद में विशेषज्ञों ने यह माना कि विदेश नीति के निर्धारण में घरेलू कारक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारतीय विदेश नीति के मूलभूत सिद्धांत
- पंचशील सिद्धांत: उल्लेखनीय है कि पंचशील सिद्धांत को सर्वप्रथम वर्ष 1954 में चीन के तिब्बत क्षेत्र तथा भारत के मध्य संधि करने के लिये प्रतिपादित किया गया और बाद में इसका प्रयोग वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को संचालित करने के लिये भी किया गया। पाँच सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
- एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का पारस्परिक सम्मान।
- एक-दूसरे के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
- पारस्परिक आक्रमण न करना।
- समता और आपसी लाभ।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन: भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में भारत ने वर्ष 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non Alignment Movement) की स्थापना में सहभागिता की। जिसके तहत विकासशील देशों ने पश्चिमी व पूर्वी शक्तियों के समूहों को समर्थन देने से इंकार दिया।
- गुजराल डॉक्ट्रिन: वर्ष 1996 में तत्कालीन विदेश मंत्री रहे इंद्र कुमार गुजराल की विदेश नीति संबंधी विचारों को लेकर बने सिद्धांतों को गुजराल डॉक्ट्रिन कहा जाता है इसके तहत पड़ोसी देशों की बिना किसी स्वार्थ के मदद करने के विचार को प्राथमिकता दी गई।
- नाभिकीय सिद्धांत: भारत ने प्रथम नाभिकीय परीक्षण वर्ष 1974 तथा द्वितीय नाभिकीय परीक्षण वर्ष 1998 में किया। इसके बाद भारत अपने परमाणु सिद्धांत के साथ सामने आया । इस सिद्धांत के अनुसार भारत तब तक किसी देश पर हमला नहीं करेगा जब तक भारत पर हमला न किया जाए साथ ही भारत किसी गैर-नाभिकीय शक्ति संपन्न राष्ट्र पर नाभिकीय हमला नहीं करेगा।
भारतीय विदेश नीति की वर्तमान दिशा
- वर्तमान सरकार द्वारा राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने के लिये सभी देशों से परस्पर संवाद के माध्यम से विदेश नीति को पुनर्परिभाषित किया जा रहा है। भारत की वर्तमान विदेश नीति दूसरे देशों से केवल रक्षा उत्पादों की खरीद तक सीमित नहीं है बल्कि तकनीकी ज्ञान के क्षेत्र में भारत विकसित देशों के साथ प्रयत्नशील है।
- वैश्विक महामारी COVID-19 के दौर में भारत के विदेश मंत्री, ब्रिक्स (BRICS) देशों के विदेश मंत्रियों के वर्चुअल सम्मेलन में शामिल हुए थे। इस बैठक में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि भारत, कोरोना वायरस की महामारी से लड़ने के लिये करीब 85 देशों को दवाओं और अन्य उपकरणों के माध्यम से मदद पहुँचा रहा है, ताकि ये देश भी महामारी का मुकाबला करके उस पर विजय प्राप्त कर सकें।
- प्रधानमंत्री मोदी ने सार्क (SAARC) देशों के प्रमुखों के साथ वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भाग लिया तत्पश्चात उन्होंने G-20 देशों के प्रमुखों के साथ भी वर्चुअल शिखर सम्मेलन करने का प्रस्ताव रखा। इन दोनों ही शिखर सम्मेलनों के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने COVID-19 की महामारी से निपटने के लिये विभिन्न क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय मंचों का उपयोग किया। जबकि एक समय पर ये सभी मंच नेतृत्वविहीन लग रहे थे।
- इन कूटनीतिक अनुबंधों के अतिरिक्त, भारत ने ‘विश्व का दवाखाना’ की अपनी छवि के अनुरूप भूमिका निभाने का भी सतत प्रयत्न जारी रखा है। इसके लिये भारत ने मलेरिया निरोधक दवा हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन (HCQ) का निर्यात पूरी दुनिया को किया है।
- खाड़ी देशों के साथ भारत ने व्यापक स्तर पर अपनी मेडिकल कूटनीति का इस्तेमाल किया है। जब कई खाड़ी देशों ने भारत से हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन और पैरासीटामॉल दवाओं के निर्यात की अपील की, तो भारत ने इन देशों को दोनों दवाओं की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति करने का प्रयास किया है।
- वर्तमान सरकार ने पूर्व में शपथ ग्रहण समारोह में बंगाल की खाड़ी से सटे बहु-क्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग परिषद पहल यानी बिम्सटेक के सदस्य देशों को आमंत्रित किया। बंगाल की खाड़ी दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ने वाली कड़ी है। इसमें भारत की ‘प्रथम पड़ोस’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीति भी एकाकार होती है। इसके उलट सार्क का दायरा भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित है, जबकि बिम्सटेक भारत को उसकी ऐतिहासिक धुरियों से जोड़ता है।
- वर्तमान परिदृश्य में देखें तो ज्ञात होता है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर भारत के सामने बड़ी सामरिक चुनौती पेश कर रहे हैं। पूर्व में चीन के साथ संबंध सुधार की दिशा में अनौपचारिक शिखर वार्ताएँ आयोजित की गई, परंतु चीन द्वारा लगातार भारत की सीमा का अतिक्रमण करने का प्रयास किया जा रहा है।
- वर्ष 2016 में उरी आतंकी हमले व वर्ष 2019 में पुलवामा में सैन्य काफिलों पर हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक भारतीय नीति के प्रमुख उदाहरण हैं।
- श्रीलंका के साथ वर्तमान सरकार के संबंध निश्चित रूप से परंपरा से हट कर रहे हैं। राजनीतिक रूप से स्थिर भारत सरकार ने भारत-श्रीलंका संबंधों को सफलतापूर्वक तमिल राजनीति से अलग निकाल कर उन्हें सांस्कृतिक एकता के दायरे में लाया है।
विदेश नीति के समक्ष चुनौतियाँ
- वैश्विक महामारी COVID-19 तथा भारत-चीन सीमा पर हुई हिंसक झड़प के बाद वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुई, ऐसे में भारत को चीन के साथ अपने संबंधों को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
- चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के कारण उसके साथ संबंध बनाए रखना भारत के लिये चुनौती पूर्ण है। चीन ने अपनी वित्तीय एवं सैन्य ताकत के ज़रिये भारत के पड़ोसी देशों में अपना मज़बूत प्रभाव जमा लिया है, जो हमारी विदेश नीति के उद्देश्यों की राह में बाधक बन सकता है। चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ (String of Pearl’s) रणनीति उसकी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना और बेल्ट एंड रोड इनिशियेटिव (Belt And Road Initiative) परियोजनाओं के लिये सटीक बैठती है। वास्तव में इससे चीन का प्रभाव और भी आगे तक चला जाता है, जो रणनीतिक रूप से हमारे लिए असहज हो सकता है। चीन ने नेपाल और श्रीलंका के साथ अपने रक्षा संबंध और भी मज़बूत किये हैं जो भारत के लिये चिंता का विषय है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका व जनवादी गणराज्य चीन के मध्य प्रारंभ हुआ व्यापार युद्ध अब ज़ुबानी जंग (Verbal Spat) में परिवर्तित हो चला है। दोनों ही देश समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में एक-दूसरे को नीचा दिखने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों ने दोनों देशों के बीच चल रहे इस वैचारिक युद्ध को ही शीत युद्ध 2.0 (Cold War 2.0) की संज्ञा दी है। भारत की विदेश नीति के समक्ष संयुक्त राज्य अमेरिका व चीन के मध्य संतुलन साधने की चुनौती है।
- रूस के साथ भारत के संबंध बहुत पुराने और विविधता भरे हैं, लेकिन अमेरिकी प्रशासन के साथ भारत की बढ़ती निकटता से "भरोसेमंद और पुराने दोस्त" रूस के साथ भावनात्मक संबंधों की स्थिति जो पहले थी अब वह स्थिति नहीं है।
- भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान लगातार भारत में आतंकी गतिविधियों को पोषित कर रहा है। भारत को पाकिस्तान के साथ वार्ता करने के लिये तेज़ी नहीं दिखानी चाहिये और इंतजार करना चाहिये कि पाकिस्तान आंतकवाद जैसे मुद्दों पर क्या कदम उठाता है।
- ईरान में चीन के बढ़ते प्रभाव को प्रतिसंतुलित करना भारत की विदेश नीति के लिये एक बड़ी चुनौती है।
- अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद उत्पन्न होने वाली शक्ति-शून्यता की स्थिति भारतीय विदेश नीति के लिये चुनौती उत्पन्न करेगी।
- श्रीलंका में चीन समर्थित सरकार का सत्ता में आ जाना भी कहीं न कहीं भारत की विदेश नीति के लिये एक चुनौती है।
आगे की राह
- भारत की प्रथम पड़ोस की नीति अच्छी है लेकिन इस बात का ध्यान रखना होगा कि कहीं क्षेत्रीय राजनीति में उलझकर हम अपने सुदूर मित्रों की अवहेलना न कर बैठें। अतः आवश्यकता इस बात की है कि ‘विश्व बंधुत्व’ की भावना जो भारत की पहचान रही है उसको आगे बढ़ाया जाय।
- वर्तमान में अमेरिका-ईरान, इज़राइल-फिलीस्तीन, चीन-अमेरिका, अमेरिका-रूस आदि के बीच मनमुटाव चरम पर है। इसके बीच न सिर्फ राजनीतिक बल्कि आर्थिक गतिरोध भी बढ़ गये हैं। ऐसे में भारत को कोई भी कदम सोच समझकर उठाना होगा क्योंकि इन सभी देशों के साथ उसके आर्थिक हित जुड़े हुए हैं।
- पाकिस्तान को कुछ समय के लिये अलग-थलग करना सही हो सकता है लेकिन दीर्घकाल के लिये यह सही नहीं है। इसलिये वार्ता का रास्ता हमेशा खुला रहना चाहिये, क्योंकि पड़ोसी के विकास के बिना क्षेत्र में शांति स्थापित होना असंभव है।
- रूस हमारा पारंपरिक मित्र रहा है इसलिये अमेरिका से मज़बूत रिश्ते के बावजूद रूस से बेहतर संबंध आवश्यक हैं। भारत की विदेश नीति को अमेरिकी प्रभाव से मुक्त करना भी आवश्यक है।
- हमें भारत-अमेरिका-जापान त्रिपक्षीय संवाद के साथ संपर्क और भी बढ़ाना चाहिये या बेहतर होगा कि समान क्षेत्रीय उद्देश्यों वाले समूह में ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल कर चतुर्पक्षीय संपर्क बढ़ाया जाए।
प्रश्न- भारतीय विदेश नीति के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए बताएँ कि ऐसे कौन से कारक हैं जो विदेश नीति के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर रहे हैं?