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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गुटनिरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन

  • 26 Oct 2019
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना और वर्तमान सम्मेलन

मेन्स के लिये:

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना, उद्देश्य, प्रासंगिकता, सीमाएँ और भारत के साथ संबंध में परिवर्तनीयता

चर्चा में क्यों?

25 और 26 अक्तूबर, 2019 को अज़रबैजान के बाकू में 18वें गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non Aligned Movement- NAM) का शिखर सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।

NAM Summit

  • इस वर्ष भारत का प्रतिनिधित्व भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बजाय उपराष्ट्रपति एम. वेकैया नायडू कर रहे हैं। इस सम्मेलन से पहले वर्ष 2016 में भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बजाय तात्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने हिस्सा लिया था।

पृष्ठभूमि

  • द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व मुख्यतः दो गुटों- साम्यवादी सोवियत संघ और पूंजीवादी अमेरिका के मध्य बँटा हुआ था इस समय दोनों गुट एक-दूसरे से मुकाबला करने के लिये सामाजिक प्रणालियाँ तथा सैनिक गुट तैयार कर रहे थे।
  • इसी समय वैश्विक पृष्ठभूमि पर बहुत सारे देशों को उपनिवेशवाद से स्वतंत्रता मिली थी, भारत जैसे देश भी इसी श्रेणी में शामिल थे।
  • उपनिवेशवाद से स्वतंत्र इन देशों ने स्वयं को दोनों समूहों से दूर रखते हुए एक समूह ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ की स्थापना की, इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य नवीन देशों के हितों की सुरक्षा करना था।
  • गुटनिरपेक्षता की ओर पहला अहम कदम बांडुंग सम्मेलन (वर्ष 1955) के माध्यम से उठाया गया जिसमें भारत के तात्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, अब्दुल नासिर, सुकर्णो और मार्शल टीटो जैसे नेताओं ने प्रतिभाग किया। इस सम्मेलन में विश्व शांति और सहयोग संवर्द्धन संबंधी घोषणा पत्र जारी हुआ।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला सम्मेलन वर्ष 1961 में बेलग्रेड में आयोजित किया गया जिसमें जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति सुकर्णो, मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर, घाना के राष्ट्रपति क्वामे एन्क्रूमा जैसे नेताओं ने भाग लिया।
  • वर्तमान में गुटनिरपेक्ष आंदोलन संयुक्त राष्ट्र के बाद विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक समन्वय और परामर्श का मंच है। इस समूह में 120 विकासशील देश शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इस समूह में 17 देशों और 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।

उद्देश्य:

  • शीत युद्ध की राजनीति का त्याग करना।
  • स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अनुसरण।
  • सैन्य गठबंधनों से पर्याप्त दूरी।
  • साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध।
  • रंगभेद की नीति के विरुद्ध संघर्ष की निरंतरता।
  • मानवाधिकारों का की रक्षा।

वर्तमान प्रासंगिकता:

  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन का मुख्य उद्देश्य शीत युद्ध के दौरान नवीन स्वतंत्र देशों के हितों की रक्षा करना था। इसलिये सोवियत संघ के विघटन के बाद इसकी प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगने लगा और देशों का इस समूह के प्रति आकर्षण कम होने लगा।
  • विदित है कि इस आंदोलन का उद्देश्य देशों के हितों की रक्षा करना था हम भूलवश इसको केवल शीत युद्ध से जोड़ देते हैं। इसकी प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी क्योंकि वैश्विक परिदृश्य पर राजनीतिक परिस्थितियाँ और मुद्दे बदलते रहते हैं।
  • सैद्धांतिक रूप से यह आंदोलन अप्रासंगिक प्रतीत होता है लेकिन निम्नलिखित मुद्दों के साथ इसकी प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है-
    • जलवायु परिवर्तन को लेकर विभिन्न देशों के मध्य विवाद।
    • विश्व में गुटबाज़ी की वजह से कई क्षेत्रों में संघर्ष जैसे- मध्य पूर्व खाड़ी देश अफगानिस्तान।
    • शरणार्थी समस्या (रोहिंग्या और मध्य-पूर्व)।
    • एशिया- प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन हेतु टकराव की स्थिति।
    • आतंकवाद का मुद्दा।
    • नव साम्राज्यवाद के तहत राजनीतिक कूटनीति।
    • ऋण जाल (Debt Trap) की राजनीति।
    • साइबर हमले और अंतरिक्ष के प्रयोग की अंधाधुंध प्रतिस्पर्द्धा।

भारत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन:

  • भारत इसकी स्थापना के बाद से वर्तमान तक इसके सिद्धांतों पर पर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करता रहा है।
  • इसकी स्थापना से लेकर वर्ष 2016 तक भारत का प्रधानमंत्री ही इस आंदोलन में भारत का प्रतिनिधित्व करता रहा है केवल वर्ष 1979 में कार्यवाहक प्रधानमंत्री होने के कारण चौधरी चरण सिंह इसके सम्मेलन में नहीं जा सके थे।
  • इसी क्रम में वर्ष 2016 और 2018 में भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री ने नहीं किया है।
  • हाल के वर्षों में भारत की इस आंदोलन के प्रति रुचि कम होने का कारण-
    • गुटनिरपेक्षता आंदोलन में एकमत उद्देश्य का अभाव दिख रहा है इसमें शामिल देश आपस में ही गुटबंदी कर रहे हैं।
    • गुटनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले लोग क्षेत्रीय गुटों का गठन कर रहे हैं और विभिन्न प्रकार के गुट भिन्न- भिन्न उद्देश्यों के लिये बनाए जा रहे हैं।
    • यूरोपीय यूनियन जहाँ आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के फलस्वरूप एकीकृत हो रहा है, वहीं दक्षिण एशिया में आसियान, सार्क जैसे गुट सक्रिय हैं।
    • भारत और चीन राजनीतिक मतभेदों के बावज़ूद आर्थिक रूप से पश्चिमी देशों से प्रतिस्पर्द्धा हेतु गुटबंदी कर रहे हैं।
    • गुटनिरपेक्ष आंदोलन वर्तमान की समस्याओं को लेकर भी गंभीर प्रयास नहीं कर रहा है और आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, शरणार्थी समस्याओं पर इस समूह का कोई एजेंडा नहीं दिख रहा है।
    • बदलते वैश्विक राजनीतिक परिवेश में भारत अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिये किसी औपचारिक समूह पर निर्भरता को सीमित कर रहा है।
    • इसी उद्देश्य से भारत भी विभिन्न देशों के साथ विभिन्न प्रकार के आर्थिक और राजनीतिक करार कर रहा है। उदाहरण के लिये गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना के समय से ही भारत के लिये हिंद महासागर की सुरक्षा चिंता का विषय थी भारत तात्कालिक समय में इस क्षेत्र में गुटबंदी का विरोध करता था, लेकिन अब अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुष्कोणीय गुट बनाकर अपने हितों की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है।

आगे की राह:

  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन को इसकी स्थापना के समय की भांँति वर्तमान में भी अपने उद्देश्यों में एकरूपता लानी होगी, इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय गुटबंदी की राजनीति को भी रोकना होगा।

स्रोत: द हिंदू

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