अंतर्राष्ट्रीय संबंध
शीत युद्ध 2.0 का उदय
- 18 Jun 2020
- 13 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में शीत युद्द 2.0 के उदय व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
विगत कुछ समय से अमेरिका व चीन के मध्य द्विपक्षीय संबंधों में लगातार गिरावट हो रही है। ध्यातव्य है कि पूर्व में यह गिरावट आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित विषयों पर थी, परंतु वैश्विक महामारी को लेकर चीन द्वारा कोरोना वायरस से संबंधित जानकारी छिपाने व विश्व स्वास्थ्य संगठन पर अनावश्यक दबाव बनाने के कारण दोनों देशों के मध्य संबंध राजनयिक व भू-राजनीतिक स्तर पर भी ख़राब हुए हैं।
इन बदली हुई परिस्थितियों में राजनीतिक विश्लेषक अमेरिका व चीन के मध्य शीत युद्ध के नए दौर के उदय का संकेत कर रहे हैं। सामान्य तौर पर इसे शीत युद्ध 2.0 कहना गलत नहीं होगा। ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि क्या शीतयुद्ध के इस नए दौर को दोनों देशों की जनता का समर्थन प्राप्त हो पाता है? क्योंकि संपूर्ण विश्व अमेरिका व सोवियत संघ के मध्य शीतयुद्ध के पुराने दौर की परिणति का साक्षी रहा है।
अमेरिकी चिंतकों और राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि चीन के साथ शीत युद्ध 2.0 जैसी स्थिति में भारत उसका सहयोगी साबित होगा। इसलिये अमेरिका की विदेश नीति में भारत को उच्च स्थान दिया जाना चाहिये।
इस आलेख में शीतयुद्ध, उसके कारण व परिणाम तथा शीत युद्ध 2.0 के कारण व उसका आकलन करते हुए भारत की भूमिका और उस पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया जाएगा।
शीत युद्ध से तात्पर्य
- शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ एवं उसके आश्रित देशों (पूर्वी यूरोपीय देश) और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों (पश्चिमी यूरोपीय देश) के बीच भू-राजनीतिक तनाव की अवधि (1945-1991) को कहा जाता है।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो महाशक्तियों– सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्चस्व वाले दो शक्ति समूहों में विभाजित हो गया था।
- यह पूंजीवादी व्यवस्था का पोषक संयुक्त राज्य अमेरिका और साम्यवादी सोवियत संघ के बीच वैचारिक युद्ध था जिसमें दोनों महाशक्तियाँ अपने-अपने समूह के देशों के साथ संलग्न थीं।
- ‘शीत’(Cold) शब्द का उपयोग इसलिये किया जाता है क्योंकि दोनों पक्षों के बीच प्रत्यक्ष रूप से बड़े पैमाने पर कोई युद्ध नहीं हुआ था।
- शीत युद्ध शब्द का पहली बार प्रयोग जॉर्ज ऑरवेल ने वर्ष 1945 में प्रकाशित अपने एक लेख ‘यू एंड द एटॉमिक बम’ (You and The Atomic Bomb) में किया था।
- शीत युद्ध सहयोगी देशों (Allied Countries), जिसमें एक ओर अमेरिका के नेतृत्व में यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस आदि शामिल थे तो वहीँ दूसरी ओर सोवियत संघ के नेतृत्व में अल्बानिया, बुल्गारिया व रोमानिया जैसे अन्य आश्रित देशों (Satellite States) के बीच शुरू हुआ था।
शीत युद्ध के कारण
- पोलैंड की सीमाओं के निर्धारण के संबंध में सोवियत संघ चाहता था कि पोलैंड के एक भाग (सोवियत संघ की सीमा से लगा क्षेत्र) को बफर ज़ोन के रूप में बनाए रखा जाए किंतु संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन इस मांग से सहमत नहीं थे।
- इसके साथ ही अमेरिका ने सोवियत संघ को जापान पर गिराए गए परमाणु बम की सटीक प्रकृति के बारे में कोई सूचना नहीं दी थी। इसने सोवियत संघ के अंदर पश्चिमी देशों की मंशा को लेकर एक संदेह पैदा किया जिसने गठबंधन संबंध को कटु बनाया।
- ट्रूमैन सिद्धांत सोवियत संघ के साम्यवादी और साम्राज्यवादी प्रयासों पर नियंत्रण की एक अमेरिकी नीति थी जिसमें दूसरे देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करने जैसे विविध उपाय अपनाए गए। इतिहासकारों का मानना है कि इस सिद्धांत के बाद ही शीत युद्ध के आरंभ की आधिकारिक घोषणा हुई।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ द्वारा स्वयं को और उसके आश्रित पूर्वी एवं मध्य यूरोपीय देशों को पश्चिम एवं अन्य गैर-साम्यवादी देशों के साथ खुले संपर्क से अलग रखने के लिये एक राजनीतिक, सैन्य और वैचारिक अवरोध खड़ा किया गया जिसे ‘आयरन कर्टेन’ कहा गया।
शीत युद्द 2.0 क्या है?
- संयुक्त राज्य अमेरिका व जनवादी गणराज्य चीन के मध्य प्रारंभ हुआ व्यापार युद्द अब ज़ुबानी जंग (Verbal Spat) में परिवर्तित हो चला है।
- दोनों ही देश समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में एक-दूसरे को नीचा दिखने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों ने दोनों देशों के बीच चल रहे इस वैचारिक युद्ध को ही शीत युद्ध 2.0 की संज्ञा दी है।
- वर्तमान में अमेरिका, चीन के विरूद्ध अपने सहयोगियों की संख्या में वृद्धि कर रहा है। अमेरिका का सहयोगी ऑस्ट्रेलिया प्रभावी रूप से चीन के साथ अपने व्यापारिक संबंध तोड़ने की दिशा में बढ़ रहा है, बावजूद इसके कि चीन, ऑस्ट्रेलिया के लिये सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है।
- अमेरिका का दूसरा सहयोगी जापान भी चीन के साथ अपने व्यापारिक व आर्थिक रिश्तों को सीमित कर रहा है।
- अमेरिका के रक्षा विशेषज्ञों का अनुमान है कि चीन के विरूद्ध घेरेबंदी में भारत एक अहम् सहयोगी साबित होगा।
- वहीँ दूसरी ओर चीन भी रूस के साथ मिलकर अमेरिकी घेरेबंदी को तोड़ने का भरसक प्रयत्न कर रहा है। विदित है कि रूस व चीन दोनों ही साम्यवाद की वैचारिक व सांस्कृतिक धरोहर को साझा करते हैं।
- एशिया महाद्वीप तथा अपने विरुद्ध हो रही घेरेबंदी में भारत के प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने में चीन को पाकिस्तान का साथ मिल सकता है।
- इसके साथ ही चीन को उत्तर कोरिया, तुर्की व सीरिया जैसे देशों का भी समर्थन मिल सकता है।
शीत युद्ध 2.0 के कारण
- अमेरिका व चीन के मध्य विभिन्न विषयों पर लेकर वैचारिक मतभेद ही शीत युद्ध 2.0 की पृष्ठभूमि है, यह मतभेद इस प्रकार हैं-
- अमेरिका व चीन के मध्य हालिया मतभेद का कारण COVID-19 संक्रमण व उससे जुड़ी जानकारियाँ छिपाने को लेकर है। दोनों ही देशों ने COVID-19 संक्रमण को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किये हैं, परिणामस्वरूप उनके मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं।
- अमेरिका व चीन के मध्य कुछ वर्षों से व्यापारिक युद्ध चल रहा है, जो वर्तमान में चरम अवस्था पर पहुँच चुका है। व्यापारिक युद्ध संरक्षणवाद का नतीज़ा होता है जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बाधित होता है। इसके लिये एक देश दूसरे देश से आने वाले समान पर टैरिफ या टैक्स लगा देता है या उसे बढ़ा देता है। इससे आयात होने वाली चीजों की कीमत बढ़ जाती हैं, जिससे वे घरेलू बाज़ार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाती। इससे उनकी बिक्री घट जाती है।
- इसके अतिरिक्त, विगत वर्ष हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र के समर्थकों के प्रति एकजुटता दिखाते हुए अमेरिका ने हॉन्गकॉन्ग मानवाधिकार और लोकतंत्र अधिनियम पारित किया था, जिसके तहत अमेरिकी प्रशासन को इस बात का आकलन करने की शक्ति दी गई है कि हॉन्गकॉन्ग में अशांति की वज़ह से इसे विशेष क्षेत्र का दर्ज़ा दिया जाना उचित है या नहीं। चीन की सरकार ने हॉन्गकॉन्ग को उसका आंतरिक विषय बताते हुए अमेरिका के इस अधिनियम को चीन की संप्रभुता पर खतरा माना था।
- हाल ही में अमेरिका की प्रतिनिधि सभा ने (House of Representatives) ने ‘उइगर मानवाधिकार विधेयक’ (Uighur Human Rights Bill) को मंज़ूरी दी है। विधेयक में ट्रंप प्रशासन से चीन के उन शीर्ष अधिकारियों को दंडित करने की मांग की गई है जिनके द्वारा अल्पसंख्यक मुसलमानों को हिरासत में रखा गया है।
- वर्ष 2019 में अमेरिका ने चीन की बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनी हुआवे (Huawei) पर जासूसी का आरोप लगाते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। अमेरिकी इंटेलिजेंस विभाग का मानना था कि हुआवे द्वारा तैयार किये जा रहे उपकरण देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
क्या हो भारत की रणनीति?
- गालवान घाटी में भारत व चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद दोनों ही देशों में स्थिति बेहद तनावपूर्ण हो गई है। ऐसे में दोनों देशों को शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में पहल करना चाहिये।
- वर्तमान परिस्थिति में भारत को किसी भी गुट में शामिल हुए बिना अपना पूरा ध्यान बेहतर स्वास्थ्य अवसंरचना के निर्माण व स्वास्थ्य सेवाओं के सुचारू क्रियान्वयन में लगाना चाहिये।
- चीन के लिये भारत एक बड़ा बाज़ार है ऐसे में चीन के उत्पादों को प्रतिबंधित कर भारत, चीन की आर्थिक घेरेबंदी कर सकता है।
- बदलती वैश्विक परिस्थिति में भारत को चीन के विरुद्ध बनने वाले गठबंधन को परोक्ष रूप से समर्थन देने पर विचार करना चाहिये।
प्रभाव
- विश्व की दो बड़ी महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध प्रारंभ होने से विश्व व्यवस्था दो धडों में बंट जाएगी और दोनों धड़े एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिये शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के मार्ग से विचलित हो जाएंगें।
- दोनों धड़े एक-दूसरे के उत्पादों पर अनावश्यक उत्पाद शुल्क लगाएँगे और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा हेतु संरक्षणवादी नीतियाँ अपनाएँगे।
- शीत युद्द 2.0 के प्रारंभ होने से अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का महत्त्व कम हो जाएगा।
- दोनों ही धडों द्वारा परस्पर वर्चस्व स्थापित करने हेतु परमाणु हथियारों के निर्माण व उन्हें खरीदने की होड़ लग जाएगी।
निष्कर्ष
इस समय पूरा विश्व वैश्विक महामारी COVID-19 से ग्रसित है, ऐसे में शीत युद्ध 2.0 की आहट निश्चित ही चिंता का विषय है। सभी देशों को इस समय अपना पूरा ध्यान स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर क्रियान्वयन पर लगाना चाहिये।
प्रश्न- शीत युद्ध 2.0 से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों का उल्लेख करते हुए वैश्विक स्तर पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण कीजिये।