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एडिटोरियल

  • 12 Oct, 2022
  • 10 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता

यह एडिटोरियल 08/10/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित Atma Nirbhar in defence production: Where India stands among Indo-Pacific nations” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण की वर्तमान स्थिति के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत में रक्षा क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया जाता है जहाँ आत्मनिर्भरता के महान अवसर मौजूद हैं। भारतीय सशस्त्र बलों की वृहत आधुनिकीकरण आवश्यकताओं के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण ने रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण के लक्ष्य को साकार करने की महत्त्वाकांक्षा को गति प्रदान की है।

  • स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) द्वारा जारी एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार आत्मनिर्भर हथियार उत्पादन क्षमताओं में भारत 12 हिंद-प्रशांत देशों के बीच चौथे स्थान पर है। लेकिन चिंता की बात यह है कि भारत 2016-20 की अवधि में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक भी रहा है।
  • रक्षा उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के उल्लेखनीय प्रयासों के बावजूद उच्च आयात बिलों के कारण स्वदेशीकरण की राह अभी भी आसान नहीं हुई है और इसे संबोधित किये जाने की आवश्यकता है।

रक्षा का स्वदेशीकरण

  • रक्षा स्वदेशीकरण आयात निर्भरता को कम करने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के एक तरीके के रूप में एक देश के भीतर रक्षा उपकरणों के विकास और निर्माण की प्रक्रिया है ।
    • आत्मनिर्भर भारत विज़न में में रक्षा अनुसंधान विकास संस्थान (DRDO) और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (DPSUs) प्रमुख अग्रणी संस्थान हैं।
  • वर्ष 1983 कोई रक्षा स्वदेशीकरण में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में चिह्नित किया जाता है जब सरकार ने निम्नलिखित 5 मिसाइल प्रणालियों को विकसित करने के लिए एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development Program) को मंज़ूरी दी थी:
    • पृथ्वी (सतह से सतह)
    • आकाश (सतह से हवा में)
    • त्रिशूल (पृथ्वी का नौसेना संस्करण)
    • नाग (एंटी टैंक)
    • अग्नि बैलिस्टिक मिसाइल

रक्षा क्षेत्र में भारत की प्रमुख स्वदेशी पहलें

रक्षा क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ

  • आयात पर उच्च निर्भरता: भारत में रक्षा क्षेत्र आयात पर बहुत अधिक निर्भर है और बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उपकरणों की प्राप्ति में प्रायः देरी होती है। उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत अभी भी वर्ष 2018 में हस्ताक्षरित एक सौदे के तहत S-400 वायु रक्षा प्रणालियों की डिलीवरी की प्रतीक्षा ही कर रहा है।
    • इसके अलावा, भारतीय वायु सेना के लिए 12 सुखोई-30 एमकेआई विमान और 21 मिग-29 लड़ाकू जेट सहित कई नए सौदे अभी कतार में ही हैं।
  • निजी क्षेत्र भागीदारी की कमी: रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी एक अनुकूल वित्तीय ढाँचे की कमी से बाधित है, जिसका अर्थ यह है कि हमारा रक्षा उत्पादन आधुनिक डिज़ाइन, नवाचार और उत्पाद विकास के लाभ उठा सकने में असमर्थ है।
  • आधुनिक प्रौद्योगिकी की कमी: डिज़ाइन क्षमता की कमी, अनुसंधान एवं विकास में अपर्याप्त निवेश, प्रमुख उप-प्रणालियों एवं घटकों के निर्माण में असमर्थता जैसे परिदृश्य स्वदेशी विनिर्माण को बाधित करते हैं।
    • इसके साथ ही, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों, उत्पादन एजेंसियों (सार्वजनिक या निजी) और अंतिम उपयोगकर्ताओं के बीच के संबंध अत्यंत भंगुर या नाजुक हैं।
  • हितधारकों के बीच गठबंधन की कमी: भारत की रक्षा विनिर्माण क्षमता रक्षा मंत्रालय और औद्योगिक संवर्धन मंत्रालय के बीच के अतिव्यापी क्षेत्राधिकार से भी बाधित है।

आगे की राह

  • निजी क्षेत्र के तीव्र उभार के साथ स्वदेशीकरण: आने वाले वर्षों में भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संवहनीय डिज़ाइन एवं विकास को अपनाने हेतु निजी क्षेत्र के लिए रक्षा उत्पादन में प्रवेश करने के प्रवेश बिंदुओं को पुनर्जीवित और विनियमित करने की आवश्यकता है।
  • रक्षा औद्योगिक गलियारे (DICs): रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में भारतीय MSMEs और DPSUs की क्षमता का दोहन और सुगम प्रसार के साथ-साथ कच्चे माल के सुचारू परिवहन की सुविधा प्रदान करने के लिए देश भर में समर्पित रक्षा औद्योगिक गलियारों (Defence Industrial Corridors- DICs) का विस्तार करना आवश्यक है।
    • उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित करने की सरकार की पहल इस दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम है।
  • रक्षा निवेशक प्रकोष्ठ (Defence Investor Cell): रक्षा क्षेत्र में निवेश को सुदृढ़ करना आवश्यक है, जिसके लिए इस क्षेत्र में निवेश हेतु रक्षा उत्पादन से संबंधित सभी प्रश्नों, प्रक्रियाओं और नियामक आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिए उद्यमियों/उद्योग को एक एकल संपर्क बिंदु प्रदान करना होगा।
    • सृजन पोर्टल (SRIJAN portal) को इस निवेशक प्रकोष्ठ से संबद्ध किया जा सकता है।
  • नीति निर्माण में रक्षा उद्यमियों को शामिल करना: खरीद को सुव्यवस्थित करने और बेहतर नीति निर्माण एवं कार्यान्वयन के लिए नए रक्षा उद्यमियों का सहयोग प्राप्त करने से रक्षा क्षेत्र में विद्यमान गुणात्मक और मात्रात्मक अंतराल को कम किया जा सकता है।
  • विश्व रक्षा बाज़ार में पहुँच बढ़ाना: भारतीय रक्षा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने पर भी पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • एक ऑनलाइन तंत्र और लक्षित आउटरीच प्रयासों के माध्यम से निर्यात प्राधिकरण प्रक्रियाओं को सरल एवं सुव्यवस्थित करना महत्वपूर्ण है।
    • डिफेंस एक्जिम पोर्टल (Defence Exim Portal) इस दिशा में स्वागतयोग्य कदम है।
  • रणनीतिक स्वतंत्रता के साथ अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना: स्वदेशी रक्षा क्षेत्र रोज़गार के अवसर उत्पन्न कर और आयात के बोझ को कम करके राजकोष की बचत कर अर्थव्यवस्था को और सुदृढ़ कर सकेगा।
    • रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता मौलिक रूप से भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करेगी।

अभ्यास प्रश्न: रक्षा क्षेत्र में स्वावलंबन भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता के लिए मूलभूत है। टिप्पणी कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

 Q.1 निम्नलिखित में से कौन सा 'आईएनएस अस्त्रधारिणी' का सबसे अच्छा विवरण है, जो हाल ही में खबरों में था?  (वर्ष 2016)

 (A) उभयचर युद्ध जहाज़
 (B) परमाणु संचालित पनडुब्बी
 (C) टारपीडो लॉन्च और रिकवरी पोत
 (D) परमाणु संचालित विमान वाहक

 उत्तर: (C)


Q.2 हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS) के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (वर्ष 2017)

  1. IONS का उद्घाटन वर्ष 2015 में भारतीय नौसेना की अध्यक्षता में भारत में आयोजित किया गया था।
  2. IONS एक स्वैच्छिक पहल है जो हिंद महासागर क्षेत्र के तटीय राज्यों की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग बढ़ाने का प्रयास करती है।

 उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2
 (C) 1 और 2 दोनों
 (D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (B)


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