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एडिटोरियल

  • 12 Aug, 2021
  • 14 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वैश्विक व्यापार का लचीलापन

यह एडिटोरियल 11/08/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Unpacking the resiliency of global trade, yet again’’ लेख पर आधारित है। इसमें कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर पड़े प्रभाव और इसे सुदृढ़ करने के उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

कोविड-19 महामारी के विनाशकारी प्रभाव ने विश्व अर्थव्यवस्था को 4.4% और वैश्विक व्यापार को 5.3% तक संकुचित कर दिया है, जबकि लगभग 75 मिलियन रोज़गार हानि का आकलन किया गया है।  

दुनिया भर के देशों ने महामारी के कारण हुई वस्तुओं की कमी के प्रति संरक्षणवादी प्रतिक्रियाओं और राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का रुख अपनाया है जो जटिल सीमा-पार आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित करने की क्षमता रखती हैं।

महामारी के कारण मानवीय पीड़ा तो है ही, इसके अतिरिक्त व्यापार और उत्पादन में अपरिहार्य गिरावट का परिवारों तथा कारोबारों पर पीड़ादायक प्रभाव अलग से पड़ेगा।

अतीत के अनुभव बताते हैं कि ऐसे ऐतिहासिक अवरोध प्रायः नए वैश्विक संबंधों को जन्म देते हैं और उनमें तेज़ी लाते हैं जो फिर संस्थागत परिवर्तनों की नींव रखते हैं और राष्ट्रों के बीच स्थायी सहयोग की मंशा रखते हैं।

बेहतर वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण

  • द्वितीय विश्व युद्ध ने सुदृढ़ बहुपक्षीय संस्थानों के सृजन का मार्ग प्रशस्त किया जहाँ संयुक्त राष्ट्र के अतिरिक्त युद्धकाल के बाद की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में सहायता के लिये ब्रेटन वुड्स संस्थानों (विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन (ITO) का गठन किया गया।  
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की बाधाओं को दूर करने के लिये वर्ष 1947 में प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (General Agreement on Tariffs and Trade- GATT) पर हस्ताक्षर किए गए। 
  • 1970 के दशक में तेल कीमतों के झटकों ने वर्ष 1974 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया ताकि तेल आपूर्ति व्यवधानों का प्रबंधन किया जा सके और वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता के संबंध में जागरूकता पैदा की गई।  
  • वर्ष 2008 के वित्तीय संकट ने G20 शिखर सम्मेलन का मार्ग प्रशस्त किया जो वर्ष 1999 में गठित G20 वित्त मंत्रियों के मंच का अगला चरण था। इसका उद्देश्य राजकोषीय विस्तार के कारण उत्पन्न मुद्रास्फीति के नियंत्रण की वैश्विक आवश्यकता के लिये सहयोग को G7 देशों के दायरे से आगे ले जाना था।   
  • इन घटनाक्रमों का वैश्विक व्यापार पर परिणामी प्रभाव पड़ा, जहाँ मात्रा में नाटकीय उछाल आया और यह वर्ष 1950 में मात्र 60.80 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2019 में 19,014 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • ऊपर दिये गए पैटर्न कोविड-19 संकट के बाद वैश्विक व्यापार में सुधार के प्रति एक उम्मीद जगाते हैं, जहाँ सामूहिक विश्वास यह है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विकास और समृद्धि के लिये महत्त्वपूर्ण है, जबकि क्षमता के सृजन के लिये प्रतिस्पर्द्धा सर्वप्रमुख तत्त्व है।  

भारत का दृष्टिकोण

  • कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ अन्य देशों के सामने प्रस्तुत चुनौतियों से अलग नहीं हैं: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुसार इसकी जीडीपी में 7.3% की कमी आई है; और सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड के अनुसार लगभग 10 मिलियन नौकरियों का नुकसान हुआ है।  
  • भारत का व्यापार 493 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वस्तु व्यापार 290 बिलियन अमेरिकी डॉलर और सेवा व्यापार 203 बिलियन अमेरिकी डॉलर) पर मंद बना रहा है।
  • आने वाले समय में भारत के आर्थिक विकास के संबंध में IMF ने सकारात्मक अनुमान प्रकट किए हैं और विश्व भर के सामान्य रुझानों के अनुरूप ही यह माना है कि व्यापक टीकाकरण कोविड-19 के प्रभाव को को सीमित कर सकता है।
  • भारत को परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों, फार्मा, रत्न एवं आभूषण, कपड़ा एवं वस्त्र, इंजीनियरिंग वस्तुएँ, चावल, तेल खाद्य और समुद्री उत्पादों जैसी अपनी पारंपरिक निर्यात टोकरी से आगे बढ़ते हुए मूल्यवर्द्धित उत्पादों पर ध्यान केंद्रित बनाए रखने की आवश्यकता होगी।

वैश्विक व्यापार आपूर्ति शृंखला से संबद्ध समस्याएँ

  • वैश्विक मूल्य शृंखला का विघटन: कोविड-19 संकट का उन निगमों और व्यवसायों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है, जो सीमा-पार आपूर्ति शृंखलाओं द्वारा समर्थित आर्थिक अन्योन्याश्रयता से लाभ उठा रहे थे। 
    • चीन विश्व का सबसे बड़ा उत्पादन आधार है और कई आपूर्ति शृंखलाओं के केंद्र में है। कोरोनावायरस के प्रकोप के बाद से वे कंपनियाँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं जो चीन पर निर्भर थीं।
  • विश्व व्यापार संगठन की वार्ताओं में अवरोध: यह विश्व व्यापार संगठन के लिये आगे और बुरे दिनों का संकेत हो सकता है, क्योंकि व्यापार नियमों ने तब सर्वश्रेष्ठ योगदान किया है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था फल-फूल रही थी और उसके समक्ष कोई संकट मौजूद नहीं था। 
  • उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के सामने मौजूद समस्याएँ: व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) ने माना है कि निर्यात-संचालित विकास पर निर्भर उभरती हुई और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर अब भारी असर पड़ेगा, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था संकुचित हो रही है और विश्व संरक्षणवादी नीतियों को अपना रहा है। 
    • ऐसे में अल्पविकसित देश, जिनकी अर्थव्यवस्था कच्चे माल की बिक्री से संचालित है, भी कठिन परिस्थितियों का सामना करेंगे।  

आगे की राह

  • विभिन्न देशों में प्रोत्साहन पैकेज: लंबे समय से निष्क्रिय पड़ी वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को प्रोत्साहन पैकेज और बाध्य बचत द्वारा लचीला बनाया जा सकता है। इस तरह के हस्तक्षेप से कम उत्पादन लागत के साथ विनिर्माण को पुनर्जीवित करने, निवेश को प्रेरित करने और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देने में मदद मिलने की उम्मीद है। 
  • विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत वार्ता शुरू करना: कोविड-19 के बाद के विश्व में विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों को व्यापार सुविधा नियमों को प्रोत्साहन देना चाहिये। 
    • गहन आर्थिक एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करने वाली पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार व्यवस्था को द्विपक्षीय और क्षेत्रीय स्तरों पर कार्यान्वित किया जाना चाहिये ताकि सभी हितधारकों के लिये लाभ की स्थिति पैदा की जा सके, और इसमें उपभोक्ताओं को भी शामिल रखा जाए जो कम बाधाओं और सामंजस्यपूर्ण मानकों से लाभान्वित होने की प्रवृत्ति रखते हैं ।
  • ​​प्रौद्योगिकी का दोहन: जो देश प्रौद्योगिकी का दोहन करेंगे, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर रूपांतरणकारी प्रभाव के साथ भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर हावी रहेंगे। 
    • जिस तरह 19वीं सदी में भाप इंजन और 20वीं सदी में कंप्यूटिंग पावर आर्थिक विकास का मुख्य संचालक रहे थे, 21वीं सदी में ‘डेटा’ आर्थिक विकास के मुख्य चालक होंगे।   
    • ई-कॉमर्स और वर्चुअल वर्ल्ड में तीव्र विकास कार्यबल से पूरी तरह से नए कौशल की माँग करेगा। इसलिये, आर्थिक नीतियों को श्रमिकों के लिये मज़बूत सुरक्षा जाल पर ध्यान देना चाहिये और परिवारों के लिये आय सुरक्षा, कौशल प्रशिक्षण, स्वास्थ्य देखभाल एवं शैक्षिक सहायता की सुनिश्चितता पर केंद्रित होना चाहिये।  
  • विनिर्माण को पुनः आरंभ करने पर ध्यान देना: भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये उसकी दीर्घकालिक रणनीति का एक अंग यह होना चाहिये कि ऐसे पारितंत्र का निर्माण किया जाए जो मूल्यवर्द्धित विनिर्माण और प्रौद्योगिकी-प्रेरित तैयार उत्पादों को प्रोत्साहित करे। 
  • समावेशी दृष्टिकोण: सर्वाधिक कमज़ोर देशों की आवश्यताओं को संबोधित किया जाना आवश्यक है. उदाहरण के लिये, निर्यात प्रतिबंधों और क्षेत्रीय भंडार के निर्माण के संबंध में निर्धनतम देशों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये विशिष्ट छूट या सहायता देने जैसे उपाय किए जा सकते हैं। 
  • अनुकूल कारोबारी माहौल: बाज़ारों को खुला और अनुमेय बनाए रखने के साथ ही अनुकूल कारोबारी माहौल को बढ़ावा देना नए सिरे से निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा। यदि सभी देश मिलकर कार्य करें तो किसी एक देश की अकेली कार्रवाई की तुलना में पुनरुद्धार की गति अधिक तीव्र होगी।

निष्कर्ष

तात्कालिक लक्ष्य महामारी को नियंत्रण में लाना और लोगों, कंपनियों और देशों को होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करना है। लेकिन नीतिनिर्माताओं को महामारी के बाद की योजना पर भी कार्य करना शुरू कर देना चाहिये।

एक तीव्र और सुदृढ़ पुनरुद्धार संभव है। अभी लिये गए निर्णय पुनरुद्धार के भविष्य के स्वरूप और वैश्विक विकास संभावनाओं को निर्धारित करेंगे।

हमें एक मज़बूत, संवहनीय और सामाजिक रूप से समावेशी पुनर्सुधार की नींव रखने की आवश्यकता है। इस परिप्रेक्ष्य में, राजकोषीय और मौद्रिक नीति के साथ-साथ व्यापार भी एक महत्त्वपूर्ण घटक होगा।

अभ्यास प्रश्न: कोविड-19 महामारी के विनाशकारी प्रभाव ने विश्व अर्थव्यवस्था और वैश्विक व्यापार को संकुचित कर दिया है। इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लिये गए नीतिगत निर्णय वैश्विक विकास और व्यापार संभावनाओं के आकार को निर्धारित करेंगे। चर्चा कीजिये। 


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