भारतीय अर्थव्यवस्था
वस्तु एवं सेवा कर संग्रह में गिरावट: चिंता का विषय
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वस्तु एवं सेवा कर संग्रह में गिरावट व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम (Goods and Services Tax Act) में इस बात की गारंटी दी गई है कि GST कार्यान्वयन (2017-2022) के पहले पाँच वर्षों में राजस्व में किसी भी नुकसान की भरपाई को उपकर (Cess) के माध्यम से पूरा किया जाएगा। कुछ समय पूर्व केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये वस्तु एवं सेवा कर मुआवज़ा जारी करने की घोषणा की थी। वस्तु एवं सेवा कर मुआवज़े की राशि 1,65,302 करोड़ रूपए निश्चित की गई। जबकि मुआवज़ा उपकर राशि का संग्रह 95,444 करोड़ रूपए था। इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल क्षमता को बेहतर करने तथा वैश्विक महामारी COVID-19 महामारी हेतु राहत कार्यों को त्वरित करने में जुटे राज्यों को सहायता मिलेगी।
यदि राजस्व संग्रह एक निश्चित सीमा से नीचे चला जाता है, तो राज्य सरकारों को क्षतिपूर्ति के भुगतान के लिये फॉर्मूले पर फिर से निर्धारित करने का GST अधिनियम में प्रावधान किया गया है। GST अधिनियम के तहत यदि राज्यों का वास्तविक राजस्व अनुमानित राजस्व से कम संग्रहित होता है, तो इस अंतर की भरपाई की जाएगी।
इस आलेख में वस्तु एवं सेवा कर की पृष्ठभूमि, GST राजस्व में गिरावट के कारण, क्षतिपूर्ति उपकर, GST परिषद की भूमिका और चुनौतियों इत्यादि पर विमर्श किया जाएगा।
वस्तु एवं सेवा कर: पृष्ठभूमि
- ऐतिहासिक वस्तु एवं सेवा कर 1 जुलाई, 2017 को लागू हुआ था।
- गौरतलब है कि GST एक अप्रत्यक्ष कर है जिसे भारत को एकीकृत साझा बाज़ार बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया है। यह निर्माता से लेकर उपभोक्ताओं तक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पर लगने वाला एकल कर है।
- GST के अंतर्गत जहाँ एक ओर केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर, काउंटरवेलिंग ड्यूटी जैसे अप्रत्यक्ष कर शामिल होंगे वहीं दूसरी ओर राज्यों में लगाए जाने वाले मूल्यवर्द्धन कर, मनोरंजन कर, चुंगी तथा प्रवेश कर, विलासिता कर आदि भी सम्मिलित हो जाएँगे।
वस्तु एवं सेवा कर का स्वरुप
- एक राज्य के भीतर होने वाले लेन-देन पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए कर को केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) कहा जाता है। CGST केंद्र सरकार के खाते में जमा किया जाता है।
- राज्यों द्वारा लगाए गए करों को राज्य वस्तु एवं सेवा कर (SGST) कहा जाता है। SGST कर को राज्य सरकार के खाते में जमा किया जाता है।
- इसी प्रकार केंद्र द्वारा प्रत्येक अंतर-राज्य वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पर एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) लगाने और प्रशासित करने की व्यवस्था है।
क्षतिपूर्ति उपकर
- GST अधिनियम के अनुसार वर्ष 2022 यानी GST कार्यान्वयन शुरू होने के बाद पहले पाँच वर्षों तक GST कर संग्रह में 14 प्रतिशत से कम वृद्धि (आधार वर्ष 2015-16) दर्शाने वाले राज्यों के लिये क्षतिपूर्ति की गारंटी दी गई है। केंद्र द्वारा राज्यों को प्रत्येक दो महीने में क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाता है।
- क्षतिपूर्ति उपकर ऐसा उपकर है जिसे 1 जुलाई, 2022 तक चुनिंदा वस्तुओं और सेवाओं या दोनों की आपूर्ति पर संग्रहीत किया जाएगा।
- सभी करदाता (विशिष्ट अधिसूचित वस्तुओं को निर्यात करने वालों को और GST कंपोजीशन स्कीम का विकल्प चुनने वालों को छोड़कर) GST क्षतिपूर्ति उपकर के संग्रहण और केंद्र सरकार को इसके प्रेषण के लिये उत्तरदायी हैं।
- इसके बाद, केंद्र सरकार इसे राज्यों को वितरित करती है।
GST राजस्व में गिरावट के कारण
- देश में COVID-19 के नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण औद्योगिक गतिविधियों को पूरी तरह बंद करना पड़ा है।
- सार्वजनिक आवाजाही और पर्यटन की गतिविधियों पर रोक से होटल, परिवहन आदि क्षेत्रों से आने वाला राजस्व प्रभावित हुआ है।
- हालाँकि लॉकडाउन के दौरान भी लगभग 40 प्रतिशत ‘अतिआवश्यक’ श्रेणी की व्यावसायिक गतिविधियों को चालू रखने की अनुमति दी गई थी, परंतु मज़दूरों के पलायन, आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) और परिवहन के प्रभावित होने आदि कारणों से अपेक्षित राजस्व की प्राप्ति नहीं की जा सकी।
- लॉकडाउन के कारण उन राज्यों पर और अधिक प्रभाव पड़ा है जिनकी अर्थव्यवस्था में स्थानीय राजस्व की भूमिका अधिक थी।
- उदाहरण के लिये गुजरात, तेलंगाना, हरियाणा, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य जिनका 70% से अधिक राजस्व स्थानीय स्रोतों से प्राप्त होता है, उन्हें लॉकडाउन से सबसे अधिक आर्थिक क्षति हुई है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि GST संग्रहण पर अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति का काफी असर देखने को मिला है, आत्मविश्वास की कमी और भय के कारण निवेशक निवेश करने से कतरा रहे हैं और वैश्विक महामारी के कारण अर्थव्यवस्था की मांग में वृद्धि नहीं हो रही है जिसका स्पष्ट प्रभाव GST राजस्व पर पड़ रहा है।
GST परिषद की भूमिका
GST परिषद का कार्य निम्नलिखित विषयों पर केंद्र और राज्यों की सिफारिश करना है-
- केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय निकायों द्वारा वसूले जाने वाले कर, उपकर तथा अधिशुल्क; जिन्हें GST के अंतर्गत समाहित किया जा सके।
- ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ, जिन्हें GST के अधीन या उससे छूट प्रदान की जा सके।
- आदर्श GST कानून, उद्ग्रहण के सिद्धांत, IGST का बँटवारा और आपूर्ति के स्थान को प्रशासित करने वाले सिद्धांत।
- वह सीमा रेखा, जिसके नीचे वस्तु और सेवा के टर्नओवर को GST से छूट प्रदान की जा सके।
- वह दिनांक, जबसे कच्चे तेल, हाई स्पीड डीजल, मोटर स्पिरिट (पेट्रोल), प्राकृतिक गैस और एविएशन टरबाइन फ्यूल पर GST वसूला जा सके।
- किसी भी प्राकृतिक आपदा या विपदा के दौरान अतिरिक्त संसाधन इकट्ठा करने हेतु किसी विशेष अवधि के लिये कोई विशेष दर या दरें।
- उत्तर-पूर्वी एवं पर्वतीय राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के संबंध में विशेष प्रावधान।
- GST परिषद द्वारा यथा निर्णय एवं GST से संबंधित कोई अन्य मामला, जिस पर परिषद निर्णय ले सकती है।
संबंधित चुनौतियाँ
- प्राथमिकताओं से विचलन: वित्त पर गठित संसदीय स्थायी समिति द्वारा लॉकडाउन के बाद अपनी पहली बैठक आयोजित की गई जिसमे वर्तमान महामारी और इसके विरुद्ध भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर चर्चा करने के बजाय ‘नवाचार पारितंत्र एवं भारत की विकास कंपनियों का वित्तीयन’ जैसे विषय पर चर्चा की गई।
- पर्याप्त वित्त की अनुपलब्धता: वर्ष 2020-21 का बजट अब प्रासंगिक नहीं है क्योंकि यह राजस्व संग्रह के बारे में कुछ अनुमानों पर आधारित था और इस वर्ष समग्र राजस्व कमी पर सरकार की ओर से कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया गया है।
- विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को प्रेरित करने के लिये सरकार द्वारा किसी राहत पैकेज की प्रभावकारिता पर भी कोई स्पष्टता व्यक्त नहीं की गई है।
- बढ़ता अंतराल: क्षतिपूर्ति उपकर तथा केंद्र द्वारा राज्यों को किये जाने वाले भुगतान के बीच अंतराल संभावित आर्थिक संकुचन व वैश्विक महामारी के कारण बढ़ने की आंशका है और इससे GST संग्रह भी प्रभावित हो सकता है।
- महामारी के दौरान लोगों द्वारा विलासिता की वस्तुओं पर कम खर्च करने की प्रवृत्ति से क्षतिपूर्ति उपकर अंतर्वाह में कमी आ सकती है।
- भुगतान की समस्या: इस वर्ष राज्यों को मुआवजा देना केंद्र के लिये और भी कठिन होने वाला है क्योंकि वित्त वर्ष 2019-20 में राज्यों को दिया जाने वाला क्षतिपूर्ति भुगतान लगभग 70,000 करोड़ रुपए कम है।
- GST लागू होने के पहले दो वर्षों में उपकर राशि एवं भारत की संचित निधि से एकीकृत GST (Integrated Goods and Service Tax-IGST) निधियों का प्रयोग करके इस समस्या का समाधान किया गया था।
- IGST को वस्तुओं और सेवाओं की अंतर्राज्यीय आपूर्ति पर लगाया जाता है तथा वर्ष 2017-18 में एकत्र किये गए इसके कुछ हिस्से का अभी तक राज्यों को आवंटन नहीं किया गया है।
- बैठकों में विलंब: क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर कार्य करने के लिये GST परिषद (GST Council) की बैठक जुलाई में प्रस्तावित थी लेकिन अभी तक बैठक आयोजित नहीं की गई है।
संभावित समाधान
- केंद्र सरकार के ऊपर राज्यों को राजस्व की भरपाई करने का संवैधानिक उत्तरदायित्व है, आपातकालीन परिस्थितियों में संविधान संशोधन करके पांच वर्ष की समयावधि को तीन वर्ष तक निर्धारित किया जा सकता है।
- केंद्र सरकार अपने राजस्व से राज्यों को मुआवज़ा क्षतिपूर्ति उपलब्ध करा सकती है। परंतु वर्तमान परिस्थितियों में यह विकल्प व्यवहार्य नहीं प्रतीत होता।
- केंद्र सरकार उपकर के आधार पर ऋण भी ले सकती है और राज्यों को मुआवज़ा क्षतिपूर्ति देने हेतु पाँच वर्ष की समयावधि को बढ़ाकर सात वर्ष करने पर विचार किया जा सकता है।
आगे की राह
- राज्यों को क्षतिपूर्ति के वायदे को पूरा करने के लिये केंद्र द्वारा भविष्य में GST उपकर संग्रहण की गारंटी पर विशेष ऋण लेने के सुझाव पर विचार किया जा सकता है।
- केंद्र एवं राज्यों दोनों को महामारी के कारण पैदा हुई कई चुनौतियों से निपटने के लिये नकदी पर स्पष्टता और निश्चितता की आवश्यकता है ताकि महामारी की स्थिति को प्रभावी ढंग से संभाला जा सके।
- देश की आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने की आवश्यकता है और सरकार को उन तरीकों के बारे में सोचने की जरूरत है जिनके माध्यम से GST संग्रह को बढ़ाया जा सकता है।
प्रश्न- आप कहाँ तक सहमत हैं कि GST अपने मूल उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम है? GST राजस्व में कमी केंद्र-राज्य संबंधों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?