नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 09 Nov, 2021
  • 12 min read
शासन व्यवस्था

जमानत बॉक्स जारी करना

यह एडिटोरियल 06/11/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘What we need to fix our judicial system’ लेख पर आधारित है। इसमें जमानत याचिका के कार्यान्वयन और आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी के उपयोग के संबंध में चर्चा की गई है।

हाल ही में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद हुई आपराधिक कार्यवाही को लोगों ने दिलचस्पी से देखा। अंततः जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने आर्यन को जमानत दे दी, तो लाखों भारतीयों को पता चला कि अदालत द्वारा जमानत दे देने से आरोपी को तत्काल रिहाई का अधिकार नहीं मिल गया, बल्कि उसे तब तक प्रतीक्षा करनी थी जब तक कि जमानत आदेश को आर्थर रोड जेल के बाहर भौतिक रूप से स्थापित एक लेटरबॉक्स में जमा नहीं कर दिया गया।

इस बॉक्स को दिन में चार बार खोला जाता है और चूँकि खान के वकील अंतिम डेडलाइन से चूक गए थे, शाहरुख के बेटे को जेल में एक अतिरिक्त रात बितानी पड़ी। लोग इस बात हैरान हैं कि एक "बेल बॉक्स" जेल और किसी भारतीय नागरिक की स्वतंत्रता के बीच इस प्रकार बाधा बन सकता है।

इस संदर्भ में नियमों एवं आपराधिक न्याय प्रणाली पर पुनर्विचार करने और न्यायपालिका प्रणाली में प्रौद्योगिकी को अपनाने की आवश्यकता है।

अब तक की गई पहल :

  • सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में टिप्पणी की थी कि जमानत आदेशों को संप्रेषित करने में होने वाली देरी को शीघ्रातिशीघ्र संबोधित किया जाना चाहिये। 
  • इस संबंध में, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने जमानत मिलने के बाद भी कैदियों की रिहाई न होने के विषय का स्वत: संज्ञान लिया था और फास्ट एंड सिक्योर्ड ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (FASTER) सिस्टम के निर्माण का निर्देश दिया था, जो ड्यूटी धारकों तक अंतरिम आदेश, स्थगन आदेश, जमानत आदेश और कार्यवाही रिकॉर्ड की ई-सत्यापित प्रतियाँ प्रसारित करेगी।   
  • अदालत इस तथ्य पर पूर्णतः मौन रही कि वर्ष 2014 में प्रकाशित ई-कोर्ट परियोजना के लिये द्वितीय चरण के दस्तावेज़ ने आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रमुख संस्थानों के बीच सूचना के प्रसारण की अनुमति देने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी (लेकिन अब तक अपूर्ण) योजना की घोषणा की थी।
  • ताज़ा मामले में "बेल-जेल" कनेक्टिविटी का विषय ई-समिति—जो ई-कोर्ट परियोजना संचालन के लिये उत्तरदायी है, की संरचना, प्रबंधन और उत्तरदायित्व में एक अधिक गहरी समस्या को इंगित करता है।

ई-कोर्ट परियोजना संबंधी मुद्दे:

  • परियोजना के प्रथम और द्वितीय चरण के लिये सरकार द्वारा क्रमशः 935 करोड़ रुपये तथा 1,670 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दी गई थी एवं सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली ई-समिति को तय करना था कि इस राशि को कैसे खर्च किया जाये। परंतु फिर भी उपलब्धियों के मामले में अपेक्षाकृत कम प्रगति ही नज़र आती है।
  • कई न्यायालयों के पास कंप्यूटर सुविधा उपलब्ध है और इसके माध्यम से आम नागरिकों के लिये ‘केस इन्फॉर्मेशन’ प्राप्त करना आसान होता है, फिर भी ऐसे क्या कारण हैं कि अदालतों और जेलों के बीच आदेशों के इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण जैसे बुनियादी कार्यकरण का विषय ई-समिति के ध्यान में नहीं आया, जबकि इसका उल्लेख स्वयं उसके दृष्टिकोण पत्र में मौजूद था?
  • संभवतः इसलिये क्योंकि ई-समिति को किसी के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया गया है। इसके द्वारा पर्याप्त मात्रा में सार्वजनिक धन का उपयोग किये जाने के बावजूद, न तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने और न ही लोकसभा की लोक लेखा समिति (PAC) ने ई-कोर्ट परियोजना के संचालन की समीक्षा की है।   
  • विधि और न्याय मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत न्याय विभाग (DoJ ) ने विधि और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति के अतिरिक्त दबाव के बाद इस परियोजना के दो बेहद कमज़ोर मूल्यांकन प्रस्तुत किये।
  • इस तरह की जटिल परियोजना को कम से कम सार्वजनिक समीक्षा या निष्पादन लेखापरीक्षा के अधीन होना चाहिये। ये सार्वजनिक जवाबदेही और परियोजना प्रबंधन की बुनियादी बातें हैं।

न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी के प्रयोग:

  • लागत में वृद्धि: ई-कोर्ट लागत-गहन भी साबित होंगे क्योंकि अत्याधुनिक ई-कोर्ट स्थापित करने के लिये आधुनिक प्रौद्योगिकियों की तैनाती की आवश्यकता होगी। 
  • हैकिंग और साइबर सुरक्षा: प्रौद्योगिकी के उपयोग में साइबर सुरक्षा चिंता का एक प्रमुख विषय है। सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिये उपचारात्मक कदम उठाये हैं और साइबर सुरक्षा रणनीति तैयार की है, लेकिन यह अभी केवल निर्धारित दिशानिर्देशों तक सीमित है। इसका व्यावहारिक और वास्तविक कार्यान्वयन देखा जाना अभी शेष है। 
  • आधारभूत संरचना: अधिकांश तालुकाओं/ग्रामों में अपर्याप्त अवसंरचना और विद्युत् एवं इंटरनेट कनेक्टिविटी की अनुपलब्धता जैसे कारणों से इस उद्देश्य की पूर्ति के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
    • हर क्षेत्र, हर वर्ग तक समान रूप से न्याय की पहुँच के लिये इंटरनेट कनेक्टिविटी और कंप्यूटर के साथ विद्युत् कनेक्शन का होना आवश्यक है।
  • ई-कोर्ट रिकॉर्ड का रखरखाव: पैरा-लीगल कर्मियों के पास दस्तावेज़ या रिकॉर्ड साक्ष्य के प्रभावी रखरखाव और उन्हें वादी तथा कौंसिल के साथ-साथ न्यायालय के लिये आसानी से उपलब्ध करा सकने के लिये पर्याप्त प्रशिक्षण एवं सुविधाओं का अभाव है। 
  • दस्तावेज़ या रिकॉर्ड साक्ष्य तक आसान पहुँच का अभाव अन्य विषयों के साथ ही न्यायिक प्रक्रिया के प्रति वादी के भरोसे को कम कर सकता है।

आगे की राह:

  • असमान डिजिटल पहुँच की समस्या को संबोधित करना: जबकि देश में मोबाइल फोन का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है, इंटरनेट तक पहुँच शहरी उपयोगकर्त्ताओं तक ही सीमित रही है। 
  • अवसंरचना की कमी: न्याय के वितरण में ‘ओपेन कोर्ट’ एक प्रमुख सिद्धांत या शर्त है। सार्वजनिक पहुँच के प्रश्न को दरकिनार नहीं किया जा सकता, बल्कि यह केंद्रीय विचार का विषय होना चाहिये।
    • प्रौद्योगिकीय अवसंरचना की कमी का प्रायः यह अर्थ होता है कि ऑनलाइन सुनवाई तक पहुँच कम हो जाती है।
  • रिक्तियों को भरना: जिस तरह डॉक्टरों को किसी भी स्तर के उन्नत चैटबॉट्स या प्रौद्योगिकी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता, वैसे ही न्यायाधीशों का कोई विकल्प नहीं है और उनकी भारी कमी बनी हुई है। 
    • इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 के अनुसार, उच्च न्यायालय में 38% (2018-19) और इसी अवधि में निचली अदालतों में 22% रिक्तियाँ थीं।
    • अगस्त 2021 तक की वस्तुस्थिति के अनुसार, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के प्रत्येक 10 में से चार से अधिक पद रिक्त बने हुए हैं।
  • न्यायाधीशों की जवाबदेही: समाधान न्यायाधीशों से उत्तरदायित्व की माँग में निहित है जो प्रशासनिक रूप से जटिल परियोजनाओं (जैसे ई-कोर्ट) का संचालन स्वयं करने पर बल तो देते हैं, लेकिन इसके लिये वे प्रशिक्षित नहीं हैं और उनके पास आवश्यक कौशल की कमी होती है। 
  • एक अन्य पहलू जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है वह है एक सुदृढ़ सुरक्षा प्रणाली की तैनाती जो उपयुक्त पक्षों के लिये केस इन्फोर्मेशन तक सुरक्षित पहुँच प्रदान करे। ई-कोर्ट अवसंरचना और प्रणाली की सुरक्षा सर्वोपरि है।  
  • इसके अलावा उपयोगकर्त्ता-अनुकूल ई-कोर्ट तंत्र का विकास किया जाना चाहिये जो आम जनता के लिये सरलता और आसानी से अभिगम्य हो। यह वादियों को भारत में ऐसी सुविधाओं का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करेगा। 

निष्कर्ष

यह उपयुक्त समय है कि दीर्घकालिक और स्थायी परिवर्तन लाया जाए जो भारत की चरमराती न्याय वितरण प्रणाली को रूपांतरित करे।

लेकिन प्रौद्योगिकी पर आवश्यकता से अधिक निर्भरता न्यायालयों की सभी समस्याओं के लिये एकमात्र रामबाण उपचार नहीं हो सकती और अगर अधिक विचार-विमर्श के बिना इस ओर कदम बढ़ाया गया तो यह प्रतिकूल परिणाम भी उत्पन्न कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: आपराधिक न्याय प्रणाली को कुशल और प्रभावी बनाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की आवश्यकता है। इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow