एडिटोरियल (09 Jan, 2024)



दिव्यांगजन अधिकार संबंधी मुद्दों को हल करने में संरचित विमर्श

यह एडिटोरियल 08/01/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Structured negotiation as a boost for disability rights” लेख पर आधारित है। इसमें दिव्यांग आबादी के लिये संरचित वार्ता के महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है और दिव्यांगजनों (PwDs) के समक्ष विद्यमान विभिन्न मुद्दों पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016, NFHS-5 सर्वेक्षण, दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (CRPD), दिव्यांगता समावेशन सुविधाकर्ता (DIFs), इंडियन साइन लैंग्वेज, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत, सुगम्य भारत अभियान

मेन्स के लिये:

भारत में दिव्यांगों के लिये संवैधानिक ढाँचा, भारत में दिव्यांगजनों से संबंधित मुद्दे, दिव्यांगों के सशक्तिकरण के लिये हालिया पहल।

विशेषशक्तता या दिव्यांगता (Disability) तब उत्पन्न होती है जब दिव्यांगजनों को व्यावहारिक और पर्यावरणीय दोनों तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें समाज में पूर्ण एवं न्यायसंगत भागीदारी से अवरुद्ध करता है। दिव्यांगता पर परिप्रेक्ष्य का विकास एक व्यक्तिगत-केंद्रित चिकित्सा मॉडल से एक व्यापक सामाजिक या मानवाधिकार मॉडल के रूप में हुआ है, जो दिव्यांगजनों के समावेशन और भागीदारी पर सामाजिक कारकों के प्रभावको उद्घाटित करता है। इन पहलुओं के आलोक में, संरचित वार्ता दिव्यांगता अधिकारों से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने में एक प्रभावशाली साधन के रूप में उभरती है।

संरचित वार्ता (Structured Negotiation) क्या है?

  • परिचय:
    • सहयोगात्मक दृष्टिकोण: संरचित वार्ता एक सहयोगात्मक और समाधान-प्रेरित विवाद समाधान पद्धति है, जो दिनानुदिन वाद या मुक़दमेबाज़ी (litigation) की जगह लेती जा रही है।
    • सामाजिक कल्याण संबंधी विधान का फोकस: इसमें चूककर्ता सेवा प्रदाताओं (defaulting service providers) को वार्ता के लिये आमंत्रित करना शामिल है, जहाँ सामाजिक कल्याण संबंधी विधानों के अनुपालन पर बल दिया जाता है।
  • अमेरिका में संरचित वार्ता की सफलताएँ:
    • दिव्यांगता अधिकार संबंधी मामलों में प्रभावी: संयुक्त राज्य अमेरिका में दिव्यांगता अधिकार संबंधी मामलों के निपटान में संरचित वार्ता उल्लेखनीय रूप से सफल रही है।
    • अभिगम्यता संबंधी मुद्दों को संबोधित करना: इन सफलताओं में ऑटोमेटेड टेलर मशीनों, पॉइंट ऑफ सेल उपकरणों, पेडेस्ट्रियन सिग्नल और सेवा प्रदाता वेबसाइटों के साथ समस्याओं का समाधान करना शामिल है।
  • संरचित वार्ता में सर्वविजय की स्थिति:
    • लागत और प्रचार संबंधी चिंताएँ: चूककर्ता सेवा प्रदाता मुक़दमेबाज़ी की उच्च लागत और नकारात्मक प्रचार से बचना चाहते हैं।
    • बाधा-मुक्त बाज़ार: शिकायतकर्ताओं का लक्ष्य है बाधा-मुक्त बाज़ार भागीदारी, जिसे संरचित वार्ता के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
  • संरचित वार्ता में विधिक दृष्टांतों की भूमिका:
    • दिव्यांग-अनुकूल दृष्टांतों का सृजन: यह सफलता सुदृढ़ दिव्यांग-अनुकूल विधिक दृष्टांतों या कानूनी मिसालों पर निर्भर करती है, जो संरचित वार्ता के लिये एक आधार तैयार करती है।
    • अभिगम्यता के लिये खाका: न्यायालय अभिगम्यता के लिये एक खाका या ब्लूप्रिंट तैयार करते हैं, जिससे व्यवसायों को मुक़दमेबाज़ी के बिना अनुपालन सुनिश्चित करने की अनुमति मिलती है।

भारत में दिव्यांग आबादी के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं के बारे में सीमित जागरूकता:
    • दिव्यांगजनों के लिये उपलब्ध सरकारी योजनाओं और लाभों के बारे में जागरूकता की कमी एक प्रमुख चुनौती है।
      • यह समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक गंभीर है जहाँ सूचना प्रसारित करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और रोज़गार तक सीमित पहुँच:
    • ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांगजनों को शिक्षा और रोज़गार के अवसरों तक पहुँच में बाधा का सामना करना पड़ता है।
      • शैक्षिक संस्थानों और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की अनुपस्थिति उनके कौशल अधिग्रहण और कार्यबल भागीदारी में बाधा उत्पन्न करती है।
  • दिव्यांगजनों के लिये पर्याप्त अवसंरचना की कमी:
    • स्कूलों, अस्पतालों, परिवहन प्रणालियों और सरकारी कार्यालयों सहित विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर दिव्यांगजनों के लिये प्रायः सामंजन सुविधाओं की कमी होती है।
      • यह कमी उनकी गतिशीलता, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक एवं नागरिक गतिविधियों में संलग्नता को प्रतिबंधित करती है।
  • महत्त्वपूर्ण पहलों से दिव्यांग बच्चों का अपवर्जन:
    • यूनिसेफ (UNISEF) इस बात पर प्रकाश डालता है कि दिव्यांग बच्चों को प्रायः सार्वजनिक स्थानों से अपवर्जित किया जाता है, जिससे वे उनके स्वास्थ्य एवं कल्याण में सुधार पर लक्षित महत्त्वपूर्ण पहलों से चूक जाते हैं।
  • विकासात्मक योजनाओं से अनवधानात्मक अपवर्जन:
    • कुछ विकास संबंधी योजनाएँ अनवधानात्मक रूप में या अनजाने में दिव्यांगजनों को अपवर्जित कर देती हैं। उदाहरण के लिये टीकाकरण अभियानों में रैंप, सांकेतिक भाषा के दुभाषियों या ब्रेल सामग्री जैसी पहुँच सुविधाओं का अभाव नज़र आया।
  • भारत में दिव्यांगता अधिकार संबंधी कानूनों को लागू करने की चुनौतियाँ:
  • अपर्याप्त राजनीतिक भागीदारी:
    • राजनीतिक अवसर के मामले में दिव्यांगजनों का अपवर्जन देश में राजनीतिक प्रक्रिया के सभी स्तरों पर और विभिन्न रूपों में घटित होता है, जैसे:
      • निर्वाचन क्षेत्रों में दिव्यांगजनों की सटीक संख्या पर अद्यतन समग्र डेटा का अभाव।
      • मतदान प्रक्रिया की दुर्गमता (ब्रेल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के व्यापक उपयोग का अभाव)।
      • दलीय राजनीति में भागीदारी के मामले में बाधाएँ।

संरचित वार्ता दिव्यांगता अधिकारों को बढ़ावा देने में किस प्रकार मदद कर सकती है?

  • भारतीय विधिक प्रणाली में मौजूद चुनौतियों को संबोधित करना:
    • भारतीय सिविल न्यायालयों में लालफीताशाही: भारतीय सिविल न्यायालयों में मामलों के लंबित होने, कागजी कार्रवाई और लालफीताशाही (Red Tape) की स्थिति पारंपरिक विवाद समाधान को हतोत्साहित करती है।
    • दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम, 2016: यह कानून मुख्य आयुक्त को गैर-अनुपालन की रिपोर्ट करने की अनुमति देता है, लेकिन अभिगम्यता पर इसका प्रभाव अनिश्चित है, जहाँ संरचित वार्ता प्रभावी सिद्ध हो सकती है।
  • भारत में CCPD के प्रयासों को पूरकता प्रदान करना:
    • PayTM मामले का उदाहरण: दिव्यांगजनों के लिये मुख्य आयुक्त (Chief Commissioner for Persons with Disabilities- CCPD) ने PayTM को अपने ऐप को सुगम बनाने का निर्देश दिया, लेकिन अनुपालन के परिणामस्वरूप इसकी दुर्गमता बढ़ गई।
    • निरंतर सतर्कता की आवश्यकता: वास्तविक समय अभिगम्यता के लिये समाधानों को मान्य करने हेतु निरंतर सतर्कता और उपयोगकर्ता इनपुट की आवश्यकता होती है। संरचित वार्ताएँ इन आवश्यकताओं को दूर कर सकेंगी।
  • भारत में संरचित वार्ता की संभावना:
    • ग़ैर-अनुपालन लेबल से बचना: संरचित वार्ता PayTM जैसे सेवा प्रदाताओं को गैर-अनुपालन से जुड़ी शर्मिंदगी से बचने में मदद कर सकती है।
    • दिव्यांगजनों की प्रत्यक्ष भागीदारी: यह दिव्यांगजनों को प्रत्यक्ष रूप से सेवा प्रदाताओं को संबोधित करने और सुधारों के कार्यान्वयन की निगरानी करने में सक्षम बनाता है।
  • भारत में व्यवसायों के लिये दिव्यांगता समावेशन को प्राथमिकता देना:
    • प्राथमिकता का महत्त्व: वैकल्पिक विवाद समाधान (alternative dispute resolution) की सफलता उन सेवा प्रदाताओं पर निर्भर करती है जो दिव्यांगजनों की चिंताओं को प्राथमिकता देते हैं। 
    • विशाल क्रय क्षमता: व्यवसायों को दिव्यांग उपयोगकर्ताओं को प्राथमिकता देनी चाहिये ताकि उनकी उल्लेखनीय क्रय क्षमता का लाभ उठा सकें और इसमें संरचित वार्ता महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।
  • संवैधानिक अधिदेशों को बढ़ावा देना:
    • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (DPSP) के अनुच्छेद 41 में कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
    • संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में ‘निःशक्त और नियोजन के लिये अयोग्य व्यक्तियों की सहायता’ निर्दिष्ट है।
      • संरचित वार्ता इन दायित्वों की पूर्ति के लिये सरकारों के प्रयासों को पूरकता प्रदान करने में मदद करेगी।

दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिये प्रमुख सरकारी पहलें कौन-सी हैं?

निष्कर्ष:

  • वैकल्पिक विवाद समाधान पद्धति के रूप में संरचित वार्ता की प्रभावकारिता, विशेष रूप से दिव्यांगता अधिकार मामलों को संबोधित करने के संबंध में, अतिरंजित नहीं की जा सकती है। दिव्यांगजनों के लिये अभिगम्य वातावरण को बढ़ावा देने में इसकी सफलता, जैसा कि प्रमुख निगमों से जुड़े उल्लेखनीय मामलों से प्रकट होता है, पारंपरिक वादों की तुलना में इसके अधिक व्यावहारिक लाभों को उजागर करती है। हेलेन केलर (Helen Keller) के शब्दों में कहें तो ‘आशावाद उपलब्धि की कुंजी है’ और भारत में बड़े पैमाने पर संरचित वार्ता की व्यवस्था करना अधिक समावेशी एवं अभिगम्य भविष्य की दिशा में एक सामयिक और अनिवार्य कदम है।

अभ्यास प्रश्न: विधान और वैकल्पिक विवाद समाधान विधियों की भूमिका को रेखांकित करते हुए भारत में दिव्यांग आबादी के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये। समावेशिता को बढ़ावा देने और समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक उपायों के सुझाव भी दीजिये।

  विगत वर्ष के प्रश्न    

प्रिलिम्स

प्रश्न.  भारत लाखों दिव्यांगजनों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा।
  2.   व्यवसाय स्थापित करने के लिये भूमि का अधिमान्य आवंटन।
  3.   सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1                
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3       
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: d


मेन्स:

प्रश्न: क्या दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में इच्छित लाभार्थियों के सशक्तीकरण और समावेशन हेतु प्रभावी तंत्र सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017)