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एडिटोरियल

  • 07 Aug, 2020
  • 16 min read
सामाजिक न्याय

व्यापक सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में व्यापक सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण भारत की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इसका सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव समाज के सुभेद्य वर्ग पर पड़ा है। इस सुभेद्य वर्ग में दैनिक मज़दूरी करने वाले लोगों की बड़ी संख्या है, जो अपने गृह राज्यों से रोज़गार की तलाश में महानगरों की ओर आए थे। दैनिक मज़दूरी कर अपना जीवनयापन करने वाला यह वर्ग अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र से संबंधित है। वस्तुतः लॉकडाउन के दौरान इन कामगारों की पीड़ा प्रत्येक टी.वी. चैनल के लिये आकर्षण का केंद्र थी, परंतु जैसे-जैसे अब देश अनलॉक की दिशा में आगे बढ़ रहा है कामगारों से संबंधित मुद्दे भी हवा हो गए हैं।

इन कामगारों का गाँवों से महानगरों की ओर पलायन का मुख्य कारण रोज़गार ही था, परंतु जब इस वैश्विक महामारी ने महानगरों में अपने पैर पसारे तब कामगारों के पास गाँवों की ओर वापस लौटने (रिवर्स माइग्रेशन) के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। चूँकि ये कामगार अधिकतर बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों से संबंधित हैं जहाँ पहले से ही औद्योगीकरण व रोज़गार का अभाव है। अपने गृह राज्यों में भी रोज़गार की व्यापक कमी तथा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अभाव से इनके सामने जीवन निर्वाह की अत्यंत कठिन चुनौती है। 

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषता एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। संविधान की प्रस्तावना और राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों से यह जाहिर है कि हमारा लक्ष्य सामाजिक कल्याण है। यह प्रस्तावना भारतीय लोगों के लिये सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक-न्याय सुरक्षित करने का वादा करती है। इतना ही नहीं सतत् विकास हेतु ‘एजेंडा 2030के तहत संबंधित विभिन्न लक्ष्यों में सामाजिक सुरक्षा की सार्वभौमिकता का सिद्धांत निहित है।

प्रवासी श्रमिक या कामगार 

  • एक ‘प्रवासी श्रमिक’ वह व्यक्ति होता है जो असंगठित क्षेत्र में अपने देश के भीतर या इसके बाहर काम करने के लिये पलायन करता है। प्रवासी श्रमिक आमतौर पर उस देश या क्षेत्र में स्थायी रूप से रहने का इरादा नहीं रखते हैं जिसमें वे काम करते हैं।
  • विदित है कि प्रवासी श्रमिक दैनिक मज़दूरी कर अपना जीवन निर्वाह करता है। यदि इन्हें दैनिक मज़दूरी नहीं प्राप्त होती है तो इनके पास किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।

क्या है सामाजिक सुरक्षा?

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, सामाजिक सुरक्षा एक व्यापक अवधारणा है जो स्वयं तथा अपने आश्रितों को न्यूनतम आय उपलब्ध कराने का आश्वासन प्रदान करती है और किसी भी प्रकार की अनिश्चितता से व्यक्ति की रक्षा करती है।
  • अमेरिकन विश्वकोष में इसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है ‘सामाजिक सुरक्षा कुछ उन विशेष सरकारी योजनाओं की ओर संकेत करती है जिनका प्रारंभिक लक्ष्य सभी परिवारों को कम-से-कम जीवन निर्वाह के साधन और शिक्षा तथा चिकित्सा की व्यवस्था करके दरिद्रता से मुक्ति दिलाना होता है’।

सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता क्यों?

  • भारत का विशाल असंगठित क्षेत्र
    • देश की अर्थव्यवस्था में 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान करने वाले असंगठित क्षेत्र के लोगों का कुल कार्यबल में हिस्सा 80 प्रतिशत है।
    • भारत का असंगठित क्षेत्र मूलतः ग्रामीण आबादी से बना है और इसमें अधिकांशतः वे लोग होते हैं जो गांव में परंपरागत कार्य करते हैं। 
    • गाँवों में परंपरागत कार्य करने वालों के अलावा भूमिहीन किसान और छोटे किसान भी इसी श्रेणी में आते हैं।
    • शहरों में ये लोग अधिकतर खुदरा कारोबार, थोक कारोबार, विनिर्माण उद्योग, परिवहन, भंडारण और निर्माण उद्योग में काम करते हैं।
    • इनमें अधिकतर ऐसे लोग है जो फसल की बुआई और कटाई के समय गाँवों में चले जाते हैं और बाकी समय शहरों-महानगरों में काम करने के लिये आजीविका तलाशते हैं।
  • महँगी स्वास्थ्य सेवाएँ
    • महँगी होती स्वास्थ्य सेवाओं के कारण आम आदमी द्वारा स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्च में बेतहाशा वृद्धि हुई है जिससे यह वर्तमान समय में गरीबी को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारण माना जाने लगा है।
    • इसके साथ ही वैश्विक महामारी COVID-19 ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की दिशा में तेजी से प्रगति करने के लिये राज्य के नीति-नियंताओं का ध्यान आकर्षित किया है।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज न केवल स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये मूलभूत शर्त है बल्कि यह अन्य लक्ष्यों जैसे-गरीबी उन्मूलन (SDG-1), गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (SDG-4), लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण (SDG-5), उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक वृद्धि (SDG-8), बुनियादी ढाँचा (SDG-9), असमानता कम करना (SDG-10 ), न्याय और शांति (SDG-16) आदि की प्राप्ति के लिये भी आवश्यक है।
  • गरीबी का बढ़ता स्तर
    • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(United Nations Development Programme-UNDP) तथा ‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डवलपमेंट इनीशिएटिव’ (Oxford Poverty and Human Development Initiative- OPHI) द्वारा वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक’ (Global Multidimensional Poverty Index, 2020-GMPI) से संबंधित आँकड़े जारी किये गए हैं।

    • वर्ष 2018 तक भारत में लगभग 37.7 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से ग्रसित थे।
    • वैश्विक महामारी के प्रभाव की अगर बात की जाए तो निश्चित ही इस संख्या में तीव्र वृद्धि होने की प्रबल संभावना है। विशेषज्ञों का मत है कि पिछले 10 वर्षों में जितने परिवार गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकले हैं, उतने ही परिवार अब पुनः गरीबी के दायरे में आ जाएँगे।
  • बेरोज़गारी दर में वृद्धि 
    • लॉकडाउन के कारण विभिन्न कारखाने व छोटे उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा जिससे व्यापक स्तर पर लोगों की आजीविका प्रभावित हुई और बेरोज़गारी दर में तीव्र वृद्धि हुई।
    • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy-CMIE) की रिपोर्ट के अनुसार, मई 2020 में बेरोज़गारी दर 27.1 प्रतिशत तक पहुँच गई थी। 
    • हालाँकि CMIE की जून 2020 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, बेरोज़गारी दर में गिरावट होकर 8.5 के स्तर पर आ गई, जो एक राहत की बात है। परंतु लॉकडाउन के बाद रोज़गार प्राप्त करने वाले लोगों को प्रचलित दर से कम वेतन दिया जा रहा है, जो चिंता का विषय है। 
  • सामाजिक सुरक्षा पर अपर्याप्त व्यय
    • भारत में सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का एक व्यापक उद्देश्य है, लेकिन सामाजिक सुरक्षा (सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को छोड़कर) पर समग्र सार्वजनिक व्यय केवल अनुमानित है।
  • बढ़ती हुई जटिल आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था
    • जटिल आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था के बढ़ने से इन कामगारों का दैनिक जीवन कहीं ज्यादा व्यस्त और जीवन स्तर कहीं ज्यादा निम्न हो गया है। आय और व्यय के बीच असंगति ने इनकी आर्थिक स्थिति को इस लायक नहीं छोड़ा है कि ये बेहतर जीवन जी सकें। इसलिये सरकार समय-समय पर अनेक योजनाएँ चलाती तो है, लेकिन इसके सामने बहुत सी बाधाएँ हैं, जो उन योजनाओं और नीतियों के क्रियान्वयन के आड़े आती हैं। 

सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयास

  • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना: वित्तीय वर्ष 2019-20 का अंतरिम बजट जब पेश हुआ था तो सरकार ने 15 हज़ार रुपए तक मासिक आय वाले असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिये ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना’ शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। वस्तुतः वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इस योजना में मासिक आय की राशि को घटाकर इसका दायरा बढ़ाया जा सकता है।
  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना: सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 1.7 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज का ऐलान किया है। इसमें किसानों, गरीब व्यक्तियों, महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों तथा स्वयं सहायता समूहों के लिये वित्तीय सहायता का प्रावधान किया गया है। 
  • आयुष्मान भारत योजना: आयुष्मान भारत योजना भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है जिसे यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (Universal Health Coverage-UHC) के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 द्वारा की गई अनुशंसा के आधार पर लागू किया गया था। इस योजना का उद्देश्य प्राथमिक,माध्यमिक और तृतीयक स्तरों पर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की बाधाओं को समाप्त करना है। साथ ही इस योजना के माध्यम से देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या को स्वास्थ्य कवर के दायरे में लाने का भी प्रयास किया जा रहा है। 
  • कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008: विधायी उपायों में असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सामाजिक सुरक्षा देने के संबंध में सरकार ने असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 अधिनियमित किया। यह अधिनियम राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड को कुछ ज़रूरी व्यवस्थाएँ उपलब्ध कराता है।
  • आम आदमी बीमा योजना: सरकार ने मृत्‍यु एवं अपंगता की स्थिति में बीमा प्रदान करने के लिये आम आदमी बीमा योजना (AABY) प्रारंभ की है।
  • वेतन संहिता विधेयक, 2019: यह विधेयक वेतन की परिभाषा को सरल बनाता है। यह सभी कार्य क्षेत्रों में न्यूनतम मज़दूरी एवं समय पर वेतन भुगतान का प्रावधान करता है।
  • असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के लिये कई अन्य रोज़गार सृजन/सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सरकार लागू कर रही है, जैसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना, स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना, प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, मनरेगा, हथकरघा बुनकर योजना, हस्तशिल्प कारीगर व्यापक कल्याण योजनाएँ, मछुआरों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय योजना, प्रशिक्षण और विस्तार, जननी सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना आदि।

आगे की राह 

  • आज भी इस वर्ग की सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा लगातार चिंता का विषय बना हुआ है। इस क्षेत्र से जुड़े लोगों में आजीविका असुरक्षा, बाल श्रम, मातृत्व (मैटरनिटी) सुरक्षा, छोटे बच्चों की देख-रेख, आवास, पेयजल, सफाई, अवकाश से जुड़े लाभ और न्यूनतम मज़दूरी जैसे मुद्दे बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसे में सरकार को असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिये समग्र नीति बनानी चाहिये।
  • सरकार द्वारा घोषित इन योजनाओं के क्रियान्वयन स्तर पर ध्यान दिये जाने की अत्यधिक आवश्यकता है।
  • सरकार को विशेष रूप से निर्माण क्षेत्र, घरेलू नौकरों, मंडियों में काम करने वाले श्रमिकों और रेहड़ी-पटरी वालों पर ध्यान देना चाहिये। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को नीति निर्माण में भागीदारी देनी चाहिये और राजस्व में उनकी हिस्सेदारी को देखते हुए सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करानी चाहिये।

प्रश्न- ‘वैश्विक महामारी से उपजी परिस्थितियों के कारण असंगठित क्षेत्र के कामगारों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।’ असंगठित क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? भारत में असंगठित क्षेत्र की वर्तमान स्थिति का उल्लेख करते हुए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालिये।


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