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एडिटोरियल

  • 06 Feb, 2025
  • 33 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की MSME क्षमता का लाभ उठाना

यह एडिटोरियल 02/01/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “New definition for MSMEs, increased credit guarantee” पर आधारित है। इस लेख में विकास और विनिर्माण को बढ़ावा देने की दिशा में MSME निवेश एवं टर्नओवर सीमा के विस्तार को सामने लाया गया है। हालाँकि, लगातार चुनौतियों से निपटने के लिये गहन नीतिगत हस्तक्षेप और संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, विनिर्माण क्षेत्र, PM विश्वकर्मा योजना, मुद्रा योजना विस्तार, उद्यम पोर्टल, सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM), उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI), ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), RAMP योजना, आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25, यूरोप का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, डिजिटल MSME 2.0

मेन्स के लिये:

भारत की आर्थिक वृद्धि में MSME की भूमिका, MSME क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे। 

सरकार ने हाल ही में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) के निवेश और टर्नओवर सीमा का विस्तार करने की योजना की घोषणा की है, जिससे अधिक व्यवसायों को इस क्षेत्र के लाभों से लाभ मिल सके। 1 करोड़ से अधिक MSME 7.5 करोड़ लोगों को रोज़गार देते हैं तथा विनिर्माण एवं निर्यात में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हुए ये क्षेत्र विकास के प्रमुख चालक बने हुए हैं। संशोधित वर्गीकरण का उद्देश्य उच्च टर्नओवर सीमा के साथ सूक्ष्म उद्यम के लिये निवेश सीमा को 2.5 करोड़ रुपए, लघु उद्यम के लिये 25 करोड़ रुपए और मध्यम उद्यमों के लिये 125 करोड़ रुपए तक बढ़ाना है। इन सुधारों का उद्देश्य MSME विकास को बढ़ावा देना और भारत की विनिर्माण क्षमता को प्रबल करना है। हालाँकि, चुनौतियाँ बनी हुई हैं, दीर्घकालिक संवहनीयता के लिये गहन नीतिगत हस्तक्षेप और संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।

Classification of MSME

भारत की आर्थिक वृद्धि में MSME की क्या भूमिका है?

  • रोज़गार सृजन और आजीविका सहायता: MSME भारत में गैर-कृषि रोज़गार का सबसे बड़ा स्रोत हैं, विशेष रूप से अर्द्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिये, जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में समावेशी विकास को बढ़ावा देते हैं। 
    • डिजिटलीकरण और फिनटेक समाधानों के उदय ने सूक्ष्म उद्यमों को वित्तीय बाज़ारों तक अभिगम एवं परिचालन बढ़ाने में सक्षम बनाया है। 
    • PM विश्वकर्मा योजना और मुद्रा योजना विस्तार (वित्त वर्ष 2024 में 5.41 लाख करोड़ रुपए स्वीकृत) जैसी योजनाओं ने स्वरोज़गार को और भी बढ़ावा दिया है। 
      • भारत में 1 करोड़ से अधिक पंजीकृत MSME हैं, जो लगभग 7.5 करोड़ लोगों को रोज़गार प्रदान करते हैं।
  • सकल घरेलू उत्पाद और औद्योगिक विकास में योगदान: MSME घरेलू उत्पादन, औद्योगिक विस्तार और स्थानीय आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देकर भारत की आर्थिक समुत्थानशक्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। 
    • ये कच्चे माल और मध्यवर्ती वस्तुओं की आपूर्ति करके वृहत उद्योगों को सहायता प्रदान करते हैं, जिससे वे औद्योगिक समूहों का एक महत्त्वपूर्ण घटक बन जाते हैं। 
    • उद्यम पोर्टल के माध्यम से बढ़ती औपचारिकता (मार्च 2024 तक 4 करोड़ MSME पंजीकृत) के साथ, संरचित आर्थिक विकास में उनकी भूमिका का विस्तार हो रहा है।
    • हालिया रिपोर्टों के अनुसार, MSME का योगदान भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 30% और विनिर्माण उत्पादन का 45% है। 
  • निर्यात और विदेशी मुद्रा आय को बढ़ावा देना: MSME वैश्विक व्यापार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि उनके विशिष्ट उत्पाद विशेष रूप से वस्त्र, चमड़ा और इंजीनियरिंग वस्तुओं के क्षेत्र में विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों की मांग को पूरा करते हैं। 
    • सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) और उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में MSME की भागीदारी को सुदृढ़ किया है। 
    • सत्र 2023-24 में, MSME-संबंधित उत्पादों का भारत के कुल निर्यात में 45.73% हिस्सा रहा, जिससे देश को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने में उनकी भूमिका दृढ़ हुई है।
  • डिजिटल और तकनीकी परिवर्तन को बढ़ावा देना: डिजिटल भुगतान, स्वचालन और AI-संचालित समाधानों के अंगीकरण में वृद्धि के साथ, MSME तकनीक-संचालित उद्यमों में परिवर्तित हो रहे हैं। 
    • ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) और ₹1 लाख करोड़ की ब्याज मुक्त नवाचार निधि (बजट 2024) जैसी सरकारी पहल डिजिटल एकीकरण को प्रोत्साहित करती हैं। 
    • MSME के 72% लेन-देन अब डिजिटल हो गए हैं, तथा फ्रिक्शनलेस क्रेडिट के लिये RBI का सार्वजनिक प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म गैर-संपार्श्विक ऋणों तक पहुँच में सुधार कर रहा है। 
    • एयरोस्पेस (तमिलनाडु MSME के लिये बोइंग अनुबंध) और फार्मा (हैदराबाद में अरागेन लाइफ साइंसेज का 2,000 करोड़ रुपए का निवेश) जैसी पहल एक सुदृढ़ स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को बढ़ावा दे रही हैं।
  • महिला एवं सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा देना: महिलाओं के नेतृत्व वाली MSME सामाजिक परिवर्तन, लैंगिक समानता और आर्थिक सशक्तीकरण में सुधार के वाहक के रूप में उभर रहे हैं। 
    • मुद्रा योजना के माध्यम से ऋण पहुँच के तहत 51.41 करोड़ ऋणों के लिये 32.36 लाख करोड़ रुपए मंजूर किये गए हैं, जिनमें से 68% ऋण महिलाओं को लाभान्वित कर रहे हैं, जिससे अधिक महिला उद्यमियों को व्यवसाय बढ़ाने में मदद मिल रही है। 
    • महिलाओं के नेतृत्व वाले MSME अब उद्यम पंजीकरण का 20.5% हिस्सा हैं, जो अर्थव्यवस्था में उनकी बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि-आधारित उद्यमों को सदृढ़ करना: ग्रामीण MSME स्थानीय रोज़गार के अवसरों का सृजन करके और कृषि-प्रसंस्करण उद्योगों को समर्थन देकर शहरों की ओर पलायन को कम करने में मदद करते हैं। 
    • PM विश्वकर्मा योजना (₹13,000 करोड़ परिव्यय) और आत्मनिर्भर भारत (SRI) निधि (₹50,000 करोड़ निधि) ग्रामीण औद्योगीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। 
    • इसके अलावा, पशुपालन ऋण गारंटी योजना (वर्ष 2023) के तहत, पशुधन MSME को अब संपार्श्विक-मुक्त ऋण मिलता है, जिससे भारत के डेयरी एवं मांस प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।
  • हरित एवं सतत् विकास को सुविधाजनक बनाना: स्वच्छ ऊर्जा समाधान और चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल को अपनाकर MSME भारत की हरित औद्योगिक क्रांति में सबसे आगे हैं।
    • RAMP योजना (विश्व बैंक के समर्थन से) और तेलंगाना MSME नीति (MSME और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये 4,000 करोड़ रुपए) संवहनीयता पर ज़ोर देती है।

MSME क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • ऋण तक सीमित अभिगम एवं वित्तीय बाधाएँ: MSME को प्रायः सख्त संपार्श्विक आवश्यकताओं और जोखिम-विरोधी बैंकिंग नीतियों के कारण अपर्याप्त वित्तपोषण की समस्या से जूझना पड़ता है।
    • अनाधिकारिक ऋण स्रोतों पर निर्भरता उनकी विकास क्षमता को सीमित करती है तथा परिचालन व्यय को बढ़ाती है।
      • सरकार समर्थित योजनाओं के बावजूद, वितरण में विलंब और जागरूकता की कमी प्रभावी उपयोग में बाधा डालती है। 
    • क्रिसिल के अनुमान के अनुसार, देश के 40% से भी कम MSME औपचारिक वित्तीय प्रणालियों से ऋण लेते हैं। हाल ही में CGTMSE गारंटी में वृद्धि से मदद मिली है, लेकिन 6.3 करोड़ MSME में से केवल 2.5 करोड़ ने ही औपचारिक ऋण का लाभ उठाया है, जो एक बड़े अंतर को उजागर करता है।
    • इसके अलावा, बड़ी कंपनियों और सरकारी विभागों से भुगतान में विलंब के कारण चलनिधि की गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है, जिससे इनकी उत्तरजीविता कठिन हो जाती है। 
      • वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत में MSME को विलंबित भुगतान कुल मिलाकर लगभग ₹10.7 लाख करोड़ या देश के GVA का 6% है।
  • विनियामक बोझ और अनुपालन जटिलता: MSME को जटिल विनियामक प्रक्रियाओं, लगातार नीतिगत परिवर्तनों और उच्च अनुपालन लागतों का सामना करना पड़ता है, जिससे व्यापार करने में सुगमता सीमित हो जाती है। 
    • श्रम, कराधान और पर्यावरण संबंधी विनियमों में कई अतिव्यापी कानून प्रशासनिक बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। 
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में MSME विकास को बढ़ावा देने के लिये तत्काल विनियमन हटाने का आह्वान किया गया, जिसमें इस बात पर बल दिया गया था कि अत्यधिक नियामक बोझ व्यवसाय की दक्षता और नवाचार में बाधा डालते हैं।
  • कुशल कार्यबल की कमी और तकनीकी अंतराल: कुशल कार्यबल तक सीमित पहुँच और कम तकनीकी अपनाने से उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो जाती है। 
    • अधिकांश MSME पुरानी मशीनरी पर निर्भर हैं तथा स्वचालन एवं AI-संचालित समाधानों में निवेश करने की वित्तीय क्षमता का अभाव है। 
    • केवल 6% MSME ही बिक्री के लिये ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का सक्रिय रूप से उपयोग करते हैं, जो इस क्षेत्र में सीमित डिजिटल अंगीकरण को दर्शाता है।
      • MSME मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 45% MSME ने अपने परिचालन में किसी न किसी रूप में AI का अंगीकरण किया है।
  • बुनियादी अवसंरचना की बाधाएँ: अपर्याप्त सड़क कनेक्टिविटी, अकुशल रेल परिवहन प्रणाली और उच्च रसद लागत वस्तुओं की समय पर परिवहन में बाधा डालती है, जिससे MSME की प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो जाती है।
    • निरंतर बिजली कटौती और औद्योगिक बिजली की उच्च लागत, विशेष रूप से ग्रामीण व अर्द्ध-शहरी MSME समूहों में उत्पादन क्षमता को प्रभावित करती है।
    • हाई-स्पीड इंटरनेट तक सीमित अभिगम, औद्योगिक पार्कों की कमी और अपर्याप्त सामान्य सुविधा केंद्र MSME को प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने एवं परिचालन बढ़ाने से रोकते हैं।
    • इसके अलावा, अधिकांश औद्योगिक समूह कुछ ही राज्यों में केंद्रित हैं, जिससे अन्य क्षेत्रों में MSME को निम्नस्तरीय बुनियादी अवसंरचना का समर्थन प्राप्त है, जिससे राष्ट्रीय और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में उनका एकीकरण सीमित हो रहा है।
  • बाज़ार अभिगम और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता चुनौतियाँ: MSME को अपर्याप्त ब्रांडिंग, निर्यात प्रोत्साहन की कमी और कड़े गुणवत्ता मानकों के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक सीमित अभिगम से जूझना पड़ता है।
    • उच्च रसद लागत एवं वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) के साथ सीमित एकीकरण प्रतिस्पर्द्धात्मकता को और भी कम कर देता है। 
      • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार भारत में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद के 14-18% के दायरे में रही है, जबकि वैश्विक बेंचमार्क 8% है। 
  • सरकारी योजनाओं के प्रति जागरूकता और उपयोगिता का अभाव: अनेक सरकारी योजनाओं के बावजूद, कई MSME कम जागरूकता और प्रशासनिक बाधाओं के कारण लाभ उठाने में विफल रहते हैं। 
    • जटिल आवेदन प्रक्रिया और उचित मार्गदर्शन का अभाव छोटे व्यवसायों को लाभ प्राप्त करने में बाधक है। 
      • पहली बार उद्यम करने वाले और ग्रामीण MSME के लिये स्थिति और भी खराब है, जिन्हें औपचारिक बैंकिंग प्रक्रियाओं से जूझना पड़ता है। 
    • नवंबर 2024 तक, मुद्रा योजना के तहत 2.57 लाख करोड़ रुपए मंजूर किये गए, लेकिन कई पात्र व्यवसाय ऋण के दायरे से बाहर हैं। 
  • पर्यावरण एवं स्थिरता अनुपालन दबाव: वैश्विक ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) मानकों में वृद्धि के साथ, MSME को स्थिरता मानदंडों को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • सेंटर फॉर स्टडी रिपोर्ट- 2018 में अनुमान लगाया गया है कि भारतीय MSME सालाना लगभग 110 मिलियन टन CO₂ का उत्सर्जन करते हैं। यह उनके महत्त्वपूर्ण कार्बन फुटप्रिंट और पर्यावरणीय प्रभाव को उजागर करता है। 
      • हरित प्रौद्योगिकी अंगीकरण की उच्च लागत और प्रोत्साहनों का अभाव छोटे उद्यमों को पर्यावरण-अनुकूल पद्धतियों को अपनाने से रोकता है। 
    • कई निर्यात-संचालित MSME को वैश्विक कार्बन फुटप्रिंट मानदंडों का अनुपालन न करने के कारण अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों को खोने का खतरा है।
  • औपचारिकता का अभाव: MSME का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अपंजीकृत है, जिसके कारण विश्वसनीय आँकड़ों की कमी, कमज़ोर नीति कार्यान्वयन और संस्थागत समर्थन तक सीमित अभिगम है। 
    • अनौपचारिक व्यवसायों को वित्तीय समावेशन में कठिनाई होती है, जिससे उनके लिये सरकारी लाभ, संरचित ऋण और बीमा योजनाओं का लाभ उठाना कठिन हो जाता है। 
    • औपचारिक श्रम अनुबंधों के अभाव के कारण श्रम संहिताओं का अपर्याप्त प्रवर्तन हो पाता है, जिससे श्रमिक ESI, PF और स्वास्थ्य बीमा जैसे आवश्यक सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित रह जाते हैं। 

Govt. Initiatives for MSMEs

भारत में MSME क्षेत्र के पुनरुद्धार के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • औपचारिक ऋण अभिगम को सुदृढ़ करना और वित्तीय बाधाओं को कम करना: फिनटेक और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से संपार्श्विक-मुक्त ऋण का विस्तार करने की आवश्यकता है। बेहतर जोखिम कवरेज के लिये मुद्रा योजना और CGTMSE को एकीकृत किया जाना चाहिये। 
    • ऋण में विलंब पर नज़र रखने के लिये MSME क्रेडिट मॉनिटरिंग सेल की स्थापना की जानी चाहिये। नकदी प्रवाह को आसान बनाने के लिये फैक्टरिंग सेवाओं और इनवॉइस डिस्काउंटिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। साथ ही, MSME फाइनेंस कंपनियाँ भी स्थापित की जा सकती हैं।
    • MSME समाधान पोर्टल के अंतर्गत भुगतान की सख्त समयसीमा अनिवार्य करने की आवश्यकता है।
      • तेज़ी से चालान निपटान के लिये TReDS और GeM खरीद को लिंक किया जाना चाहिये। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और बड़ी कंपनियों को MSME भुगतान को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • विनियामक कार्यढाँचे को सुव्यवस्थित करना और अनुपालन बोझ को कम करना: MSME अनुमोदन के लिये एकल-खिड़की मंजूरी लागू करने की आवश्यकता है। लालफीताशाही को कम करने और अनुपालन लागत को कम करने के लिये RAMP योजना को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। मामूली विनियामक फाइलिंग के लिये स्व-घोषणा तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • तीव्र शिकायत निवारण के लिये राज्य स्तरीय MSME सुविधा परिषदों का गठन किया जाना चाहिये।
  • बाज़ार पहुँच और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना: मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से निर्यातोन्मुख MSME को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • स्थानीय उद्योगों को मज़बूत करने के लिये PLI योजनाओं और क्लस्टर आधारित विकास का विस्तार करने की आवश्यकता है।
      • प्रत्यक्ष बाज़ार पहुँच के लिये ONDC और GeM के साथ ई-कॉमर्स एकीकरण में सुधार किया जाना चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के लिये सब्सिडीयुक्त ब्रांडिंग एवं प्रमाणन सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
  • डिजिटल और तकनीकी अंगीकरण को बढ़ावा देना: MSME टेक हब के माध्यम से AI, IoT और ऑटोमेशन अंगीकरण की सुविधा प्रदान करने की आवश्यकता है। निर्बाध डिजिटल ऑनबोर्डिंग के लिये उद्यम और ONDC प्लेटफॉर्म को एकीकृत करने की आवश्यकता है।
    • साइबर सुरक्षा, क्लाउड एक्सेस और ई-कॉमर्स भागीदारी में सुधार के लिये डिजिटल MSME 2.0 लॉन्च किया जाना चाहिये।
    • क्षेत्र-विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाने के लिये कौशल भारत और PM विश्वकर्मा योजना का विस्तार किया जाना चाहिये।
      • औद्योगिक क्लस्टरों में MSME अप्रेंटिसशिप केंद्र स्थापित किया जाना चाहिये।
  • कच्चे माल की लागत और आपूर्ति शृंखला बाधाओं को कम करना: स्थिर मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करने के लिये MSME-केंद्रित कच्चे माल बैंक विकसित किया जाना चाहिये।
    • आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत प्रमुख इनपुट के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • बेहतर इन्वेंट्री प्रबंधन के लिये वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स पार्कों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये। लागत कम करने के लिये क्लस्टर-आधारित खरीद मॉडल लागू किया जाना चाहिये।
      • MSME को सस्ते कच्चे माल तक पहुँच प्रदान करने के लिये थोक खरीद सहकारी समितियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • ग्रामीण एवं कृषि आधारित MSME का सुदृढ़ीकरण: कारीगर आधारित उद्यमों के लिये PM विश्वकर्मा योजना और स्फूर्ति क्लस्टरों का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • कृषि प्रसंस्करण और हस्तशिल्प में ग्रामीण उद्योगों के लिये लक्षित वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
    • ग्रामीण MSME को बढ़ावा देने के लिये सहकारी आधारित व्यवसाय मॉडल को मज़बूत किया जाना चाहिये। कृषि MSME के लिये कोल्ड स्टोरेज और ग्रामीण आपूर्ति शृंखला नेटवर्क को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
      • छोटे किसानों को वैश्विक बाज़ारों से जोड़ने के लिये MSME-अनुकूल कृषि निर्यात केंद्र विकसित किया जाना चाहिये।
  • हरित MSME एवं सतत् विकास को बढ़ावा देना: पर्यावरण अनुकूल व्यवसायों के लिये हरित MSME प्रमाणन कार्यक्रमों का विस्तार करने की आवश्यकता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने के लिये कम ब्याज दर पर हरित वित्त उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
    • अपशिष्ट को न्यूनतम करने और पुनर्चक्रण उद्यमों को बढ़ावा देने के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रोत्साहन स्थापित किया जाना चाहिये। संधारणीय व्यावसायिक प्रथाओं के लिये ESG-लिंक्ड क्रेडिट कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • MSME में महिला एवं सामाजिक उद्यमिता को सुदृढ़ करना: CGTMSE के तहत महिलाओं के नेतृत्व वाले MSME के लिये उच्च ऋण गारंटी कवर प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • मुद्रा योजना के समर्पित महिला उद्यमी कोष का विस्तार किया जाना चाहिये। वित्तीय समावेशन के लिये स्वयं सहायता समूहों (SHG) को MSME क्लस्टरों से जोड़ने की आवश्यकता है।
      • महिला उद्यमियों के लिये सह-कार्यशील स्थानों और मेंटरशिप कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। महिला स्वामित्व वाले उद्यमों के लिये GeM के माध्यम से बाज़ार पहुँच में सुधार किया जाना चाहिये।
  • आपदा प्रबंधन और आपदा प्रबंधन को बढ़ाना: आर्थिक आघात से बचाव के लिये MSME आपदा रिकवरी फंड विकसित किया जाना चाहिये। महामारी जैसी बाधाओं को कवर करने के लिये बीमा योजनाओं को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
    • मंदी के दौरान लचीली ऋण पुनर्गठन नीतियों को लागू किया जाना चाहिये। क्राउडफंडिंग और पीयर-टू-पीयर लेंडिंग जैसे वैकल्पिक ऋण स्रोतों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • MSME का औपचारिकीकरण और संस्थागत समर्थन को दृढ़ करना: औपचारिकीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये कम GST दरों और प्राथमिकता वाले ऋण लाभ जैसे प्रोत्साहनों के साथ अनिवार्य उद्यम पंजीकरण को लागू करने की आवश्यकता है।
    • बेहतर भागीदारी के लिये औपचारिक पंजीकरण को सरकारी योजनाओं, GeM खरीद और ऋण गारंटी कार्यक्रमों तक अभिगम के साथ जोड़ने की आवश्यकता है।
      • केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों/सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) द्वारा वार्षिक खरीद का 25% सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों से किया जाना सही दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 
    • छोटे व्यवसायों के लिये अनुपालन में आसानी सुनिश्चित करते हुए श्रम संहिताओं के प्रवर्तन को मज़बूत किया जाना चाहिये। नीति लक्ष्यीकरण और कार्यान्वयन में सुधार के लिये MSME डेटाबेस को आधार, GSTIN और बैंकिंग प्रणालियों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।

मुख्य सिफारिशें: MSME ऋण पर वित्त संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट (अप्रैल 2022)

  • ऋण देने के लिये डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र: संपार्श्विक आवश्यकताओं को कम करने और सत्यापन को सुव्यवस्थित करने के लिये उद्यम पोर्टल के माध्यम से एक केंद्रीकृत डिजिटल ऋण प्रणाली विकसित किया जाना चाहिये। (उदाहरण: उद्यम पंजीकरण ऋणदाताओं के लिये डेटा संग्रह के रूप में कार्य करता है।)
  • अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क: क्रेडिट एक्सेस में सुधार, धोखाधड़ी को रोकने और NPA को कम करने के लिये सुरक्षित वित्तीय डेटा साझाकरण को सक्षम किया जाना चाहिये। (उदाहरण: SAHAY GST प्लेटफॉर्म ने भौतिक संपार्श्विक को GST चालान-आधारित ऋण के साथ बदल दिया है।)
  • नकदी प्रवाह ऋण मॉडल: GST और लेनदेन डेटा का उपयोग करके परिसंपत्ति-आधारित से नकदी प्रवाह-आधारित ऋण की ओर बदलाव। (उदाहरण: बेहतर ऋण मूल्याँकन के लिये खाता एग्रीगेटर कार्यढाँचे में GSTIN का उपयोग।)
  • MSME औपचारिकीकरण में तेज़ी लाना: ऋणों को GST चालान से जोड़कर औपचारिक क्षेत्र की ऋण पहुँच में वृद्धि किया जाना चाहिये। (उदाहरण: GST पंजीकरण द्वारा औपचारिकीकरण को बढ़ावा देने से ऋण पात्रता में सुधार हुआ।)
  • लक्षित ऋण गारंटी: कमज़ोर उधारकर्त्ताओं को क्षेत्र-और क्षेत्र-विशिष्ट गारंटी प्रदान किया जाना चाहिये। (उदाहरण: आर्थिक संकट के दौरान सलॉन और टूर एजेंसियों जैसे उद्योगों पर विशेष ध्यान देना)।
  • SIDBI को सुदृढ़ बनाना: उधार दरों को कम करने और NBFC वित्तपोषण का समर्थन करने के लिये सिडबी में ₹5,000-₹10,000 करोड़ की इक्विटी डाला जाना चाहिये। (उदाहरण: SIDBI का उद्यम असिस्ट प्लेटफॉर्म MSME पंजीकरण को बढ़ावा दे रहा है।)
  • व्यापार क्रेडिट कार्ड योजना: अल्पावधि, कम ब्याज वाले ऋण के लिये किसान क्रेडिट कार्ड जैसे व्यवसाय क्रेडिट कार्ड की शुरुआत की जानी चाहिये।(उदाहरण: कार्यशील पूंजी की ज़रूरतों के लिये MSME व्यापार क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं।)

निष्कर्ष: 

MSME क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है, जो रोज़गार, GDP और निर्यात में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। औपचारिकता को सुदृढ़ करना, हरित प्रथाओं को बढ़ावा देना और बाज़ार अभिगम को बढ़ाना MSME को नई ऊँचाइयों पर पहुँचा सकता है। लक्षित नीतिगत हस्तक्षेप और संरचनात्मक सुधार इस क्षेत्र की पूरी क्षमता को अनलॉक करने में महत्त्वपूर्ण होंगे। अंततः एक समुत्थानशील MSME इकोसिस्टम भारत के दीर्घकालिक आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता की कुंजी है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के आर्थिक विकास को गति देने में MSME क्षेत्र की भूमिका का विश्लेषण कीजिये, विशेष रूप से रोज़गार सृजन और निर्यात के संदर्भ में। MSME के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, तथा दीर्घकालिक संधारणीयता के लिये सरकारी नीतियाँ और सुधार इनसे किस प्रकार निपट सकते हैं?"

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल की है/ हैं?

  1. राष्ट्रीय निवेश तथा विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना
  2. 'एकल खिड़की मंजूरी' (सिंगल विंडो क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण तथा विकास कोष की स्थापना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन सरकार के समावेशी विकास के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है?

  1. स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देना
  3. शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न 3. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये :

  1. ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एम.एस.एम.ई.डी.) अधिनियम 2006’ के अनुसार, ‘जिनके संयंत्र और मशीन में निवेश 15 करोड़ रुपए से 25 करोड़ रुपए के बीच हैं, वे मध्यम उद्यम हैं’। 
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को दिये गए सभी बैंक ऋण प्राथमिकता क्षेत्रक के अधीन अर्ह हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर:(b)


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