एडिटोरियल (05 Jan, 2023)



भारत के विनिर्माण क्षेत्र की क्षमता

यह एडिटोरियल 30/12/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “For growth, bolster the manufacturing sector” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में विनिर्माण क्षेत्र और इससे संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत का विनिर्माण क्षेत्र देश के आर्थिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता है। यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 15% हिस्सेदारी रखता है और देश के लगभग 12% कार्यबल को रोज़गार प्रदान करता है। यह क्षेत्र अत्यंत विविध है और इसमें वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता दुर्लभ वस्तुओं जैसे कई उद्योग शामिल हैं।

  • हाल के वर्षों में भारत सरकार ने विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये कई पहल किये हैं। ‘मेक इन इंडिया’ अभियान इनमें से एक प्रमुख पहल है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को बढ़ाने तथा घरेलू विनिर्माण के विकास को बढ़ावा देने पर लक्षित है। सरकार ने इस क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये कई विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zones- SEZs) भी स्थापित किये हैं।
  • इन प्रयासों के बावजूद भारत में विनिर्माण क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें बुनियादी ढाँचे का अभाव, कुशल श्रम की कमी और ऋण प्राप्त करने की कठिनाइयाँ शामिल हैं। इसके अलावा, यह क्षेत्र वैश्विक मांग में कमी और चीन जैसे देशों से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा से भी प्रभावित हुआ है।
  • हालाँकि, यह परिदृश्य इस क्षेत्र में विकास के वृहत अवसर भी प्रदान करता है और उम्मीद की जाती है कि सतत सुधारों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में यह उल्लेखनीय भूमिका निभा सकेगा।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र के विकास चालक

  • निवेश में वृद्धि: बजट 2022-23 में सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी हार्डवेयर विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये 2,403 करोड़ रुपए (315 मिलियन अमेरिकी डॉलर) आवंटित किये हैं, जबकि बजट 2021-22 में ‘फेम इंडिया’ (Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicle in India- FAME India) के लिये 757 करोड़ रुपए (104.25 मिलियन अमेरिकी डॉलर) आवंटित किये गए थे।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मकता: औद्योगिक क्षेत्र को वृहत प्रोत्साहन देने के लिये भारत के पास एक विशाल अर्द्ध-कुशल श्रम बल, ‘मेक इन इंडिया’ जैसी विभिन्न सरकारी पहलें, उच्च निवेश और एक बड़े घरेलू बाज़ार जैसे सभी घटक मौजूद हैं।
    • आधार स्थापित करने के लिये मुक्त भूमि और 24X7 बिजली आपूर्ति जैसे सरकारी प्रोत्साहन भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बना रहे हैं।
  • मज़बूत मांग: अनुमान किया जाता है कि वर्ष 2030 तक भारतीय मध्यम वर्ग की वैश्विक उपभोग में दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी (17%) होगी। भारत में उपकरण और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स (Appliances and Consumer Electronics- ACE) बाज़ार 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर (वर्ष 2019) से बढ़कर वर्ष 2025 तक 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा।
  • ‘ग्लोबल हब’ के रूप में उभार की क्षमता: भारत का विनिर्माण उद्योग पहले ही चतुर्थ औद्योगिक क्रांति (Industry 4.0) की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जहाँ सब कुछ परस्पर-संबद्ध या कनेक्टेड होगा और प्रत्येक डेटा बिंदु का विश्लेषण किया जाएगा।
    • भारतीय कंपनियाँ R&D में अग्रणी स्थान रखती हैं और फार्मास्यूटिकल्स एवं टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में पहले ही वैश्विक नेतृत्वकर्ता बन चुकी हैं।
    • ऑटोमेशन और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों पर भी उद्योग की ओर से अपेक्षित ध्यान दिया जा रहा है।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त प्रौद्योगिकी-आधारित अवसंरचना: प्रौद्योगिकी-आधारित अवसंरचना (विशेष रूप से संचार, परिवहन और कुशल जनशक्ति हेतु) विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • दूरसंचार सुविधाएँ मुख्य रूप से बड़े शहरों तक ही सीमित हैं। अधिकांश राज्य विद्युत बोर्ड घाटे में चल रहे हैं और दयनीय स्थिति रखते हैं।
  • MSME के लिये ऋण तक पहुँच: ऐसा प्रतीत होता है कि मध्यम और वृहत पैमाने के औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्रों की तुलना में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) के लिये ऋण तक अनुकूल पहुँच की कमी और कार्यशील पूंजी की उच्च लागत की स्थिति है।
  • कुशल श्रम की कमी: भारत के विनिर्माण क्षेत्र में प्रशिक्षित और कुशल श्रम की कमी है जो इस क्षेत्र के विकास को सीमित करती है।
  • जटिल विनियमन और कमज़ोर आपूर्ति शृंखला: भारत में विनिर्माण क्षेत्र लाइसेंस, टेंडर, ऑडिट जैसे कई जटिल विनियमनों के अधीन है, जो व्यवसायों के लिये बोझ हो सकते हैं और उनके विकास में बाधाकारी बन सकते हैं।
    • इसके अलावा, यह क्षेत्र प्रायः कमज़ोर या खराब आपूर्ति शृंखला प्रबंधन से ग्रस्त होता है, जिससे अक्षमता और लागत में वृद्धि हो सकती है।
  • अन्य देशों से प्रतिस्पर्द्धा और आयात: भारत के विनिर्माण क्षेत्र को अन्य देशों से तीव्र प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे घरेलू व्यवसायों के लिये वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो सकता है।
    • इसके अलावा, भारत अभी भी परिवहन उपकरण, मशीनरी (इलेक्ट्रिकल एवं नॉन-इलेक्ट्रिकल), लोहा एवं इस्पात, काग़ज़, रसायन एवं उर्वरक, प्लास्टिक सामग्री आदि के लिये विदेशी आयात पर निर्भर है।

भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये हाल की प्रमुख सरकारी पहलें

आगे की राह

  • अवसंरचना में निवेश: सड़कों, बंदरगाहों और बिजली आपूर्ति जैसी अवसंरचनाओं की गुणवत्ता एवं उपलब्धता में सुधार लाने से विनिर्माण क्षेत्र में अधिक निवेश और व्यवसायों को आकर्षित करने में मदद मिल सकती है।
    • इसमें नई अवसंरचना का निर्माण या मौजूदा अवसंरचना का उन्नयन शामिल हो सकता है।
  • निर्यात-उन्मुख विनिर्माण को बढ़ावा देना: निर्यात-उन्मुख विनिर्माण (Export-Oriented Manufacturing) के विकास को प्रोत्साहित करने से भारतीय व्यवसायों को नए बाज़ारों में प्रवेश करने और उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
    • इसमें नए बाज़ारों में प्रवेश करने के इच्छुक व्यवसायों के लिये सहायता प्रदान करना अथवा निर्यात-उन्मुख विनिर्माण को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को लागू करना शामिल हो सकता है।
  • नवाचार को बढ़ावा देना: विनिर्माण क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास का समर्थन करना और नई प्रौद्योगिकियों एवं प्रक्रियाओं के अंगीकरण को बढ़ावा देना, नवाचार के प्रसार एवं उत्पादकता की वृद्धि में मदद कर सकता है।
    • इसमें R&D के लिये धन मुहैया कराना या नई प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को लागू करना शामिल हो सकता है।
  • वित्त तक पहुँच में सुधार लाना: विनिर्माण क्षेत्र में छोटे एवं मध्यम आकार के उद्यमों (SMEs) के लिये ऋण और अन्य प्रकार के वित्तपोषण तक पहुँच को सुगम करने से उनकी वृद्धि एवं विकास में सहायता मिल सकती है।
    • इसमें उन नीतियों को लागू करना जो बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को विनिर्माण क्षेत्र में SMEs को ऋण देने के लिये प्रोत्साहित करें या SME लेंडिंग के समर्थन के लिये सरकार-समर्थित ऋण गारंटी प्रदान करना शामिल हो सकता है।
  • विनियमों को सुव्यवस्थित करना: विनियमों को सरल एवं सुव्यवस्थित करने से व्यवसायों पर बोझ कम करने और विनिर्माण क्षेत्र में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करने में मदद मिल सकती है।
    • इसमें लाइसेंस एवं परमिट प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना या अनुपालन आवश्यकताओं को सरल बनाना शामिल हो सकता है।
  • कौशल विकास को प्रोत्साहन: प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिये अधिक अवसर प्रदान करने से विनिर्माण क्षेत्र में कुशल श्रम की कमी को दूर करने तथा इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
    • इसमें व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना या उन नीतियों को लागू करना शामिल हो सकता है जो व्यवसायों को कर्मचारी प्रशिक्षण में निवेश करने हेतु प्रोत्साहित करें।

अभ्यास प्रश्न: भारत के विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियों एवं अवसरों की विवेचना करें और इन मुद्दों के समाधान में 'मेक इन इंडिया' पहल की भूमिका की चर्चा करें।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्र. 'आठ प्रमुख उद्योगों के सूचकांक' में, निम्नलिखित में से किसे सर्वाधिक भार दिया गया है?  (वर्ष 2015)

 (A) कोयला उत्पादन
 (B) बिजली उत्पादन
 (C) उर्वरक उत्पादन
 (D) इस्पात उत्पादन

उत्तर: (B)


मुख्य परीक्षा

Q1. "औद्योगिक विकास दर सुधार के बाद की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के समग्र विकास में पिछड़ गई है" कारण बताएँ।  औद्योगिक नीति में हाल ही में किये गए परिवर्तन औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं?  (वर्ष 2017)

Q2. आम तौर पर देश की अर्थव्यवस्था कृषि से उद्योग और फिर बाद में सेवाओं में स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था सीधे कृषि से सेवाओं में स्थानांतरित हो गया है। देश में उद्योग की तुलना में सेवा क्षेत्र में भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मजबूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है?  (वर्ष 2014)