एडिटोरियल (02 Sep, 2023)



वायु प्रदूषण से निपटने के लिये समग्र योजनाओं की आवश्यकता

यह एडिटोरियल 30/08/2023 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘Devise holistic plans to clean up toxic air’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय शहरों में बढ़ते वायु प्रदूषण के मुद्दे और विषाक्त वायु की समस्या से निपटने के प्रति समग्र दृष्टिकोण के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

PM10 और PM2.5, ओज़ोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज़ (COPD), VOCs, ब्लैक कार्बन, कालिंक, हाई एफिशिएंसी पार्टिकुलेट एयर (HEPA) फिल्टर, बायोमिमिक्री, बायोमास ब्रिकेट/छर्रे, पराबैंगनी (यूवी) किरणें, अम्ल वर्षा, धुंध/स्मॉग

मेन्स के लिये:

वायु प्रदूषण: प्रदूषक, कारण, चुनौतियाँ और आगे की राह

एक वैश्विक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि दिल्ली में वाष्पों का हानिकारक मिश्रण (noxious mix of vapors) यहाँ के निवासियों की जीवन प्रत्याशा से लगभग 12 वर्ष की कटौती कर रहा है। यह प्रशासनिक उदासीनता की एक भयावह तस्वीर पेश करता है जिसके कारण साल दर साल वायु की गुणवत्ता बिगड़ती जा रही है और स्टॉप-गैप उपायों के साथ केवल तभी हस्तक्षेप किया जाता है जब साँस लेना सचमुच अत्यंत कठिन हो जाता है। शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान (Energy Policy Institute- EPIC) की वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (Air Quality Life Index) 2023 रिपोर्ट में पाया गया कि दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम का प्रदर्शन वैश्विक स्तर पर सबसे बदतर रहा। भारत में, उत्तरी मैदान—जहाँ देश की लगभग 40% आबादी निवास करती है—का प्रदर्शन सबसे खराब पाया गया,जहाँ प्रदूषण के कारण औसत निवासी की जीवन प्रत्याशा लगभग आठ वर्ष कम हो जाती है।

वायु प्रदूषण क्या है?

वायु प्रदूषण (Air Pollution) वायुमंडल में ऐसे पदार्थों की उपस्थिति के कारण घटित वायु दूषण या संक्रमण (contamination of air) की स्थिति है जो मनुष्यों और अन्य जीवित प्राणियों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है अथवा जलवायु या अन्य पदार्थों को क्षति पहुँचाता है। कुछ प्रमुख वायु प्रदूषक हैं:

  • पार्टिकुलेट मैटर (PM10 और PM2.5): ये छोटे ठोस या तरल कण होते हैं जो वायु में निलंबित स्थिति में पाए जाते हैं। वे धूल, परागकण और ज्वालामुखी विस्फोट जैसे प्राकृतिक स्रोतों से अथवा जीवाश्म ईंधन, लकड़ी एवं अपशिष्ट के दहन जैसी मानवीय गतिविधियों से अथवा खनन, निर्माण एवं कृषि जैसी औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं।
    • PM2.5, PM10 से अधिक खतरनाक है क्योंकि यह फेफड़ों एवं रक्तप्रवाह में गहराई तक प्रवेश कर सकता है और कहीं अधिक स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा कर सकता है।
  • ओज़ोन (O3): यह एक गैस है जो तब बनती है जब सूर्य की किरणें वायु में नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) के साथ प्रतिक्रिया करती हैं।
    • ओज़ोन लाभदायक या हानिकारक हो सकती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि यह वायुमंडल में कहाँ मौजूद है।
      • समताप मंडल (stratosphere) में उपस्थित ओज़ोन पृथ्वी को सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी (UV) किरणों से बचाती है
      • हालाँकि, क्षोभमंडल (troposphere) में यह एक प्रदूषक है जो आँख, नाक एवं गले में जलन पैदा कर सकता है, फेफड़ों को क्षति पहुँचा सकता है और श्वसन संबंधी रोगों का कारण बन सकता है।
  • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2): यह एक गैस है जिसका निर्माण तब होता है जब नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) वायु में उपस्थित ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करती है।
    • NOX मोटर वाहनों, बिजली संयंत्रों और औद्योगिक बॉयलरों जैसी दहन प्रक्रियाओं से उत्सर्जित होती है।
    • NO2 श्वसन संबंधी समस्याएँ—जैसे खांसी, घरघराहट और साँस लेने में कठिनाई पैदा कर सकती है और संक्रमण एवं एलर्जी का खतरा बढ़ा सकती है।
    • NO2 हवा में ओज़ोन और पार्टिकुलेट मैटर के निर्माण में भी योगदान देती है।
  • कार्बन मोनोऑक्साइड (CO): यह एक रंगहीन, गंधहीन गैस है जो गैसोलीन, डीजल, कोयला, लकड़ी और चारकोल जैसे कार्बन-युक्त ईंधन के अपूर्ण दहन से उत्पन्न होती है।
    • CO शरीर के अंगों और ऊतकों, विशेषकर हृदय एवं मस्तिष्क तक पहुँचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर सकती है
    • CO के उच्च स्तर से संपर्क सिरदर्द, चक्कर आना, मतली, थकान, भ्रम और यहाँ तक कि मृत्यु का भी कारण बन सकता है।
  • सल्फर डाइऑक्साइड (SO2): यह एक गैस है जो कोयला और तेल जैसे सल्फर युक्त ईंधन के दहन से उत्पन्न होती है।
    • SO2 आँख, नाक एवं गले में जलन, खाँसी, साँस लेने में कठिनाई और अस्थमा के दौरे का कारण बन सकती है।
    • SO2 वायु में उपस्थित जल वाष्प और अन्य रसायनों के साथ प्रतिक्रिया कर अम्लीय वर्षा (acid rain) का निर्माण करती है, जो पौधों, मृदा, जल और इमारतों को हानि पहुँचा सकती है।
  • जल वाष्प: जल वाष्प वायुमंडल में सबसे प्रचुर मात्रा में उपस्थित ग्रीनहाउस गैस है और यह पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • हालाँकि, जल वाष्प प्रत्यक्ष प्रदूषक नहीं है, क्योंकि यह प्राकृतिक जल चक्र का अंग है।
      • जलवाष्प एक प्रदूषक बन जाता है जब यह कार्बन डाइऑक्साइड एवं मीथेन जैसी अन्य ग्रीनहाउस गैसों के साथ अंतःक्रिया करता है और उनके वार्मिंग प्रभाव को बढ़ा देता है।
        • इसे ‘वाटर वैपर फीडबैक लूप’ कहा जाता है।

भारत में वायु प्रदूषण के प्राथमिक कारण 

  • वाहन उत्सर्जन: वाहन भारत में, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में से एक हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के एक अध्ययन के अनुसार, वाहन PM2.5 उत्सर्जन के मामले में दिल्ली में 40%, मुंबई में 30%, कोलकाता में 28% और बेंगलुरु में 20% योगदान करते हैं
  • औद्योगिक चिमनी अपशिष्ट: भारत में वायु प्रदूषण में उद्योग एक अन्य प्रमुख योगदानकर्ता हैं, विशेष रूप से उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में।
    • ग्रीनपीस इंडिया (Greenpeace India) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 287 कोयला-आधारित तापीय बिजली संयंत्रों में से 139 वर्ष 2019 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्धारित उत्सर्जन मानदंडों का उल्लंघन कर रहे थे
      • ये संयंत्र सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सीसा, पारा और VOCs उत्सर्जित करते हैं, जो अम्लीय वर्षा, स्मॉग, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।
  • जीवाश्म ईंधन का दहन: कोयला, तेल या प्राकृतिक गैस का ईंधन के रूप में उपयोग करने वाले बिजली संयंत्र, कारखाने और घर भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कर वायु प्रदूषण में योगदान करते हैं।
    • विश्व बैंक समूह के अनुसार, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत विश्व में CO2 का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
  • कृषि संबंधी गतिविधियाँ: फसल अवशेष या पराली दहन, उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग और पशुधन पालन जैसी कृषि संबंधी गतिविधियाँ भी भारत में वायु प्रदूषण का कारण बनती हैं।
    • IIT दिल्ली के एक अध्ययन के अनुसार, नवंबर 2019 में चरम प्रदूषण के दौरान दिल्ली के PM2.5 सांद्रता में पराली दहन का योगदान 44% रहा था।
      • पराली दहन हवा में धुआँ, धूल, अमोनिया, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड भी उत्सर्जित करता है।
      • ये प्रदूषक मृदा की गुणवत्ता, जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।
  • घर के अंदर वायु प्रदूषण (Indoor Air Pollution): लकड़ी, उपले या चारकोल जैसे बायोमास ईंधन के साथ खाना पकाना भारत में वायु प्रदूषण का एक अन्य स्रोत है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 800 मिलियन से अधिक लोग रसोई के लिये ठोस ईंधन पर निर्भर हैं।
      • ये ईंधन कोयले की तुलना में पाँच गुना अधिक सांद्रता में धुआँ और इनडोर वायु प्रदूषक पैदा करते हैं।
      • ये प्रदूषक आँखों में जलन, फेफड़ों में संक्रमण, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) और समयपूर्व मौत का कारण बन सकते हैं।
  • कूड़ा-कचरा जलाना: भारत में बहुत से लोग अपने घरेलू कूड़े-कचरे को खुली जगहों पर जलाकर उसका निपटान करते हैं। यह अभ्यास हवा में जहरीले रसायन और डाइऑक्सिन छोड़ता है, जो कैंसर और अन्य बीमारियों का कारण बन सकता है।
    • ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’ (TERI) के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2018 में सर्दियों के मौसम के दौरान दिल्ली के PM10 सांद्रता में अपशिष्ट दहन का योगदान 29% था।
      • अपशिष्ट दहन से ब्लैक कार्बन भी उत्सर्जित होता है, जो एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है और यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा सकता है।
  • बूचड़ उद्योग: गाय और भैंस जैसे जुगाली करने वाले पशुओं की पाचन प्रक्रियाओं से मीथेन का उत्सर्जन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में एक उल्लेखनीय योगदानकर्ता है। 100 वर्ष की अवधि में मीथेन की ग्लोबल वार्मिंग क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 28 गुना अधिक होती है।
    • इसके अतिरिक्त, पशुओं के अपशिष्ट और शवों के अपघटन से अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक जैसे प्रदूषक निकलते हैं।
    • चिंता का एक अन्य विषय निपटान विधि के रूप में पशुओं के अपशिष्ट और शवों को जलाना है, जो हवा में कणिका पदार्थ, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य हानिकारक पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं
    • सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का बूचड़ उद्योग प्रति वर्ष लगभग 2.7 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट और 3.6 बिलियन लीटर अपशिष्ट जल उत्पन्न करता है
      • रिपोर्ट से यह भी उजागर हुआ है कि अधिकांश बूचड़खानों में उचित अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली या प्रदूषण नियंत्रण उपकरण नहीं होते हैं और वे प्रायः पर्यावरणीय मानदंडों एवं विनियमों का उल्लंघन करते हैं।

वायु प्रदूषण से निपटने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ 

  • प्रदूषणकारी गतिविधियों पर रोक लगाने और प्रदूषणकारी गतिविधियों को दंडित करने में सक्षम मौजूदा विनियमों और मानकों का कमजोर प्रवर्तन एवं अनुपालन
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और अभ्यासों के अंगीकरण के लिये अपर्याप्त वित्तपोषण एवं प्रोत्साहन जो विभिन्न क्षेत्रों से उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
  • वायु प्रदूषण के कारणों, प्रभावों और समाधानों के संबंध में आम लोगों और अन्य हितधारकों की कम जागरूकता एवं भागीदारी। 
  • प्रासंगिक संस्थानों और हितधारकों के बीच क्षमता एवं विशेषज्ञता का अभाव जो प्रभावी वायु प्रदूषण नीतियों एवं कार्यक्रमों का डिज़ाइन निर्माण, कार्यान्वयन और मूल्यांकन कर सके।
  • बदलती जलवायु परिस्थितियों और चरम मौसमी घटनाओं के लिये अनुकूलन एवं प्रत्यास्थता की कमी जो वायु प्रदूषण के स्तर और प्रभावों को बढ़ा सकती है।
  • अनुसंधान और नवाचार का अभाव जो वायु प्रदूषण शमन और अनुकूलन के लिये साक्ष्य-आधारित समाधान एवं प्रौद्योगिकियाँ उत्पन्न कर सकता है।
  • स्वच्छ प्रौद्योगिकियों का तेज़ी से उभार हुआ है, लेकिन वित्तपोषण और विनियमन के मामले में पिछड़ापन बना हुआ है।
  • अकुशल परिवहन प्रणालियाँ और खराब भूमि उपयोग पैटर्न
  • ईंट भट्टे, धातु गलाई, फाउंड्री, टेनरी जैसे विभिन्न अनियमित लघु उद्योगों की उपस्थिति, जो उचित पर्यावरण परमिट या नियंत्रण के बिना संचालित होते हैं।

आगे की राह 

  • ऊर्ध्वाधर वन (Vertical forests): वनस्पति से आच्छादित गगनचुंबी इमारतों का निर्माण न केवल कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने और ऑक्सीजन का उत्पादन करने में मदद करता है बल्कि जैव विविधता के लिये पर्यावास भी प्रदान करता है। वे प्राकृतिक वायु शोधक (air purifiers) के रूप में कार्य कर सकते हैं और शहर के समग्र सौंदर्य में योगदान कर सकते हैं।
  • एयर प्यूरीफायर और स्मॉग टावर स्थापित करना: वे वायुजनित कणों को फिल्टर कर सकते हैं और वायु की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं। ये उपकरण हवा से प्रदूषकों को जब्त करने और उन्हें हटाने के लिये विभिन्न प्रौद्योगिकियों, जैसे इलेक्ट्रोस्टैटिक वर्षा (electrostatic precipitation), सक्रिय कार्बन (activated carbon), या उच्च दक्षता कण वायु (High Efficiency Particulate Air- HEPA) फिल्टर का उपयोग कर सकते हैं।
  • निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रचार: सोलर पैनल, हाइड्रोजन फ्यूल सेल या जैव ईंधन, विंड टरबाइन, बायोगैस संयंत्र और इलेक्ट्रिक वाहन जैसी प्रौद्योगिकियाँ जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर सकती हैं।
    • ये प्रौद्योगिकियाँ स्वच्छ एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकती हैं, हरित रोज़गार सृजित कर सकती हैं और जलवायु परिवर्तन को कम कर सकती हैं।
  • शहरी हरित स्थान: पार्क, उद्यान और रूफटॉप जैसे शहरी हरित स्थान (Urban Green Spaces) का निर्माण करना जो वायु की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, ‘हीट आइलैंड इफेक्ट’ (heat island effect) को कम कर सकते हैं और मनोरंजक लाभ प्रदान कर सकते हैं। शहरी हरित स्थान जैव विविधता की भी संवृद्धि कर सकते हैं, कार्बन पृथक्करण में मदद कर सकते हैं और शहर के सौंदर्य में सुधार कर सकते हैं।
  • ‘कंजेशन प्राइसिंग’ और ‘लो एमिशन ज़ोन’: ‘कंजेशन प्राइसिंग’ (Congestion Pricing) और ‘लो एमिशन ज़ोन’ (Low Emission Zones) का प्रवर्तन करना जहाँ शहर के कुछ क्षेत्रों में प्रवेश के लिये वाहनों से शुल्क वसूल किया जा सकता है या उच्च प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के प्रवेश को प्रतिबंधित किया जा सकता है
    • ये नीतियाँ वाहन चालकों को स्वच्छ वाहनों को अपनाने या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं, जिससे शहरी केंद्रों में यातायात की भीड़ और उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
  • बायोमास ब्रिकेट्स/पेलेट्स (Biomass Briquettes/Pellets): बायोमास पेलेट्स कृषि या वन अवशेषों, जैसे चावल की भूसी, चूरा या खोई से बनाए जाते हैं और ये ग्रामीण परिवारों के लिये एक सस्ता और कुशल ईंधन स्रोत प्रदान कर सकते हैं।
  • बायोमिमिक्री (Biomimicry): इमारतों और सामग्रियों को डिज़ाइन करने के लिये बायोमिमिक्री का उपयोग करना जो वायु शुद्धिकरण की प्राकृतिक प्रक्रियाओं का अनुकरण कर सकते हैं, जैसे कि ज़िम्बाब्वे में ईस्टगेट सेंटर जो दीमक के टीले से प्रेरित निष्क्रिय शीतलन (passive cooling) का उपयोग करता है।
    • बायोमिमिक्री सेल्फ-क्लीनिंग पेंट, स्मोग-ईटिंग कंक्रीट या कृत्रिम पत्तियों (artificial leaves) जैसे नवाचारों को भी प्रेरित कर सकता है।
    • बायोमिमिक्री एक अभ्यास है जो मानव डिज़ाइन चुनौतियों को हल करने के लिये प्रकृति में पाई जाने वाली रणनीतियों से सीखता है और उनका अनुकरण करता है।
  • नवोन्मेषी समाधानों का समर्थन करना: सामाजिक उद्यमों या स्टार्ट-अप का समर्थन करना जो वायु प्रदूषण के लिये नवोन्वेषी समाधान प्रदान कर सकते हैं, जैसे ग्रेविकी लैब्स (Graviky Labs), चक्र इनोवेशन (Chakr Innovation), हेल्प-अस-ग्रीन (HelpUsGreen) आदि।
    • ग्रेविकी लैब्स ने कालिंक (Kaalink) का निर्माण किया है। इसे जनरेटर और ईंधन टैंक से जोड़े जाने पर यह प्रदूषण को जब्त करता है और इसे प्रयोग योग्य स्याही में बदल देता है।
  • प्रदूषण शमन के लिये स्ट्रीट फर्नीचर: प्रदूषण को दूर भगाने के लिये स्ट्रीट फर्नीचर (Street Furniture) स्थापित करना। शहरीकरण की वृद्धि के साथ और अधिक पेड़ लगाने के लिये जगह की कमी हो गई है।
    • ग्रीन सिटी सॉल्यूशंस (Green City Solutions) ने यूरोप के कई शहरों में महत्त्वपूर्ण स्थलों पर काई से ढके पेड़ बेंच स्थापित किये हैं जो प्रदूषकों को सोख सकते हैं।
  • वायु शोधक हेलमेट: ये ऐसे हेलमेट हैं जिनमें एक अंतर्निहित वायु शोधक मौजूद होता है जो वायु से हानिकारक प्रदूषकों को फिल्टर कर सकता है। यह हेलमेट उन बाइक चालकों के लिये डिज़ाइन किया गया है जो सड़कों पर उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं। हेलमेट में सेंसर भी लगे होते हैं जो हवा की गुणवत्ता की निगरानी कर सकते हैं और असुरक्षित होने पर उपयोगकर्ता को सचेत कर सकते हैं।
    • दिल्ली में अवस्थित शेलिओस (Shellios) नामक स्टार्ट-अप ऐसे हेलमेट के प्रोटोटाइप का परीक्षण कर रहा है।
  • विभेदक टोल उपचार: यह एक ऐसी नीति है जो उन वाहनों के लिये अधिक टोल शुल्क वसूल करती है जो अधिक प्रदूषक उत्सर्जित करते हैं, जैसे कि डीजल ट्रक और पुरानी कारें। विभेदक टोल उपचार ड्राइवरों को स्वच्छ वाहनों को अपनाने या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे सड़कों पर यातायात की भीड़ और उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
  • ‘हॉट लेन’: ये सड़कों की ऐसी लेन हैं जो उच्च अधिभोग वाले वाहनों के लिये आरक्षित होती हैं, जैसे कारपूलिंग या सार्वजनिक बस। हॉट लेन लोगों को सवारी साझा करने या बड़े सवारी वाहनों का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे सड़कों पर वाहनों की संख्या और उनके द्वारा उत्पादित उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। हॉट लेन उपयोगकर्ताओं के लिये यात्रा के समय और ईंधन की खपत को भी कम कर सकती है।

निष्कर्ष

भारत में बुनियादी आजीविका से जुड़े मुद्दे प्रायः चुनावी आख्यान पर हावी रहते हैं, जिससे कार्यकारी को प्रदूषण के मोर्चे पर संवीक्षा से बचने का अवसर मिल जाता है। लेकिन कोई भी देश अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की चिंता किये बिना आर्थिक रूप से प्रगति नहीं कर पाया है। सरकार को प्रदूषण से प्रेरित स्वास्थ्य खतरों को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। इस क्रम में पहला कदम यह होगा कि वायु संबंधी कार्रवाइयों को महज शीतकालीन कार्रवाई तक सीमित नहीं रखा जाए और समग्र वार्षिक रणनीतियाँ विकसित की जाएँ।

अभ्यास प्रश्न: वायु प्रदूषण का एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती के रूप में उभार हुआ है। वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों का विश्लेषण कीजिये। ऐसे उपाय सुझाइये जो वायु प्रदूषण को प्रभावी ढंग से कम कर सकें और भावी पीढ़ियों के लिये स्वच्छ एवं स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित कर सकें।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) के परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016)

  1. कार्बन डाइऑक्साइड
  2. कार्बन मोनोक्साइड
  3. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
  4. सल्फर डाइऑक्साइड
  5. मेथैन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b) 


मेन्स 

प्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से, ये कैसे भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021)