नए भारत के लिये नया संसद भवन
यह एडिटोरियल 29/05/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘India’s new Parliament, and why it is needed’’ लेख पर आधारित है। इसमें नए संसद भवन की आवश्यकता और इसकी विशेषताओं के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:संसद, सेंट्रल विस्टा परियोजना, लोकसभा, राज्यसभा, सेन्गोल मेन्स के लिये:नए संसद भवन की आवश्यकता, संसद भवन के विभिन्न तत्त्वों में प्रतीकवाद |
स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के दौरान एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा नए संसद भवन का अनावरण किया गया। भारतीयों द्वारा अभिकल्पित और निर्मित यह उत्कृष्ट भवन संपूर्ण देश की संस्कृति, गौरव एवं उमंग को समाहित करता है और एक बड़े संसद भवन की भारतीय लोकतंत्र की दीर्घकालिक आवश्यकता (जहाँ भविष्य में सीटों और संसद सदस्यों की संख्या में वृद्धि होनी है) की पूर्ति के लिये तैयार है।
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना (Central Vista Redevelopment project) के एक भाग के रूप में विकसित नया संसद भवन संसदीय कार्यकरण में अवसंरचनात्मक बाधाओं को संबोधित करने का प्रयास है।
प्रधानमंत्री ने नए संसद भवन का अनावरण किया और अंग्रेज़ों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक ‘सेन्गोल’ (Sengol) को स्थापित किया।
नए संसद भवन की क्या आवश्यकता थी?
- अधिक जगह की आवश्यकता:
- सरकारी डेटा के अनुसार वर्ष 1927 में निर्मित मौजूदा संसद भवन को एक पूर्ण लोकतंत्र के लिये द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने हेतु डिज़ाइन नहीं किया गया था।
- वर्ष 1971 की जनगणना पर आधारित परिसीमन के साथ लोकसभा सीटों की संख्या 545 निर्धारित किये जाने के बाद से संसद भवन में बैठने की व्यवस्था तंग और बोझिल हो गई थी।
- संयुक्त सत्रों के दौरान बैठने की सीमित क्षमता समस्या को बढ़ा देती थी। इसके अलावा, आवागमन के लिये जगह की कमी उल्लेखनीय सुरक्षा जोखिम उत्पन्न करती थी। वर्ष 2026 के बाद समस्या में व्यापक वृद्धि होने की संभावना थी क्योंकि सीटों की कुल संख्या पर रोक वर्ष 2026 तक के लिये ही लागू है।
- सरकारी डेटा के अनुसार वर्ष 1927 में निर्मित मौजूदा संसद भवन को एक पूर्ण लोकतंत्र के लिये द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने हेतु डिज़ाइन नहीं किया गया था।
- विरासत का विस्तार:
- वर्ष 1927 में कमीशन किया गया मौजूदा संसद भवन लगभग एक शताब्दी पुरानी विरासत है जो हेरिटेज ग्रेड-I इमारत है। गुज़रते वर्षों में संसदीय गतिविधियों और उपयोगकर्ताओं में पर्याप्त वृद्धि के साथ इस भवन की आयु और सीमित अवसंरचना अब जगह, सुविधाओं एवं प्रौद्योगिकी के संदर्भ में वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाती है।
- हेरिटेज ग्रेड-I में राष्ट्रीय या ऐतिहासिक महत्त्व के ऐसे भवन और परिसर शामिल हैं जो स्थापत्य शैली, डिज़ाइन, प्रौद्योगिकी एवं भौतिक उपयोग और/या सौंदर्य में उत्कृष्टता रखते हैं।
- वे किसी महान ऐतिहासिक घटना, व्यक्तित्व, आंदोलन या संस्थान से संबद्ध हो सकते हैं। वे इस भूभाग के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल या लैंडमार्क रहे हैं। सभी प्राकृतिक स्थल भी ग्रेड-I के अंतर्गत शामिल होते हैं।
- वर्ष 1927 में कमीशन किया गया मौजूदा संसद भवन लगभग एक शताब्दी पुरानी विरासत है जो हेरिटेज ग्रेड-I इमारत है। गुज़रते वर्षों में संसदीय गतिविधियों और उपयोगकर्ताओं में पर्याप्त वृद्धि के साथ इस भवन की आयु और सीमित अवसंरचना अब जगह, सुविधाओं एवं प्रौद्योगिकी के संदर्भ में वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाती है।
- अवसंरचना संबंधी संकट:
- तदर्थ निर्माण और संशोधनों ने संसद भवन के बुनियादी ढाँचे पर दबाव बढ़ाया है। जल आपूर्ति, एयर कंडीशनिंग और सीसीटीवी कैमरों जैसी आवश्यक सेवाओं को जोड़े जाने से रिसाव की समस्या उत्पन्न हुई है जिसने भवन के सौंदर्य को प्रभावित किया है।
- इसके अलावा, पुरानी पड़ चुकी संचार संरचनाएँ और अपर्याप्त अग्नि सुरक्षा उपाय उपस्थित लोगों की सुरक्षा के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करते हैं।
- संरचनात्मक सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
- पुरानी संसद भवन का निर्माण तब हुआ था जब नई दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र-द्वितीय (Seismic Zone-II) में शामिल थी, लेकिन अब नई दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र-चतुर्थ में शामिल है।
- इस परिवर्तन ने उल्लेखनीय संरचनात्मक सुरक्षा संबंधी चिंताओं को जन्म दिया था और आधुनिक भूकंपीय मानकों को पूरा करने वाले एक नए भवन के निर्माण की आवश्यकता महसूस हो रही थी।
- अपर्याप्त कार्यालय स्थान:
- समय के साथ आंतरिक सेवा गलियारों (inner service corridors) के कार्यालयों में रूपांतरण के परिणामस्वरूप खराब गुणवत्ता के कार्यस्थलों का निर्माण हुआ।
- उप-विभाजन ने पहले से ही सीमित जगह को और कम कर दिया, जिससे कर्मियों की उत्पादकता एवं सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था।
नए संसद भवन की प्रमुख विशेषताएँ
- इष्टतम स्थान उपयोग:
- पुराने भवन के समीप निर्मित नया संसद भवन लगभग 65,000 वर्ग मीटर निर्मित क्षेत्र को दायरे में लेता है। इसका त्रिकोणीय आकार उपलब्ध स्थान के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करता है और एक विकास करते राष्ट्र की उभरती आवश्यकताओं को समायोजित करता है।
- सीटिंग क्षमता की वृद्धि:
- नए भवन में 888 सीटों वाला एक बड़ा लोकसभा हॉल और 384 सीटों वाला एक बड़ा राज्यसभा हॉल शामिल है।
- संसद के संयुक्त सत्र अब 1,272 सीटों को समायोजित कर सकते हैं, जो समावेशी और सुव्यवस्थित लोकतांत्रिक कार्यवाही की सुविधा प्रदान करते हैं।
- अत्याधुनिक सुविधाएँ:
- अत्याधुनिक संवैधानिक हॉल भारतीय लोकतंत्र के ह्रदय के रूप में कार्य करेगा जहाँ नागरिकों को शासन के केंद्र में रखा गया है।
- नवनिर्मित भवन अत्याधुनिक संचार प्रौद्योगिकी से सुसज्जित अति-आधुनिक कार्यालय स्थान भी प्रदान करता है, जो दक्षता एवं सुरक्षा को बढ़ावा देता है।
- संवहनीयता के लिये प्रतिबद्धता:
- नया संसद भवन ‘प्लैटिनम-रेटेड ग्रीन बिल्डिंग’ के रूप में स्थापित है, जो पर्यावरणीय संवहनीयता के प्रति भारत के समर्पण को प्रदर्शित करता है।
- सांस्कृतिक एकीकरण:
- नया संसद भवन क्षेत्रीय कलाओं, शिल्पों एवं सांस्कृतिक तत्वों को शामिल करते हुए आधुनिक भारत की जीवंतता और विविधता को निर्बाध रूप से एकीकृत करता है।
- सभी के लिये समावेशिता:
- अभिगम्यता के महत्त्व को समझते हुए, नए संसद भवन में दिव्यांगजनों को प्राथमिकता दी गई है।
- समावेशिता और समान भागीदारी को बढ़ावा देते हुए यह सुनिश्चित किया गया है कि दिव्यांगजन परिसर के भीतर स्वतंत्र रूप से आवागमन कर सकें।
- गैलरी और प्रदर्शनियाँ:
- सार्वजनिक प्रवेश द्वार तीन दीर्घाओं की ओर ले जाते हैं- संगीत गैलरी, जो भारत के नृत्य, गीत एवं संगीत परंपराओं को प्रदर्शित करती है; स्थापत्य गैलरी, जो देश की स्थापत्य विरासत को दर्शाती है; और शिल्प गैलरी, जो विभिन्न राज्यों की विशिष्ट हस्तकला परंपराओं को प्रदर्शित करती है।
- उन्नत सुविधाएँ और पहुँच:
- लोकसभा और राज्यसभा कक्षों में प्रभावी विधायी कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिये एक डिजीटल मतदान तंत्र, सु-अभियांत्रिक ध्वनिकी और अत्याधुनिक दृश्य-श्रव्य तंत्रों की स्थापना की गई है।
- भवन की त्रिकोणीय सीमा के समानांतर विस्तृत गलियारों के माध्यम से मंत्री कक्षों तक पहुँचा जा सकता है।
- प्रतीकात्मक डिज़ाइन:
- लोकसभा कक्ष की आंतरिक साज-सज्जा भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर से प्रेरित है, जबकि राज्यसभा कक्ष को राष्ट्रीय पुष्प कमल की प्रेरणा से सुसज्जित किया गया है। ये राष्ट्र की समृद्ध प्रतीकात्मकता को प्रकट करते हैं।
- सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक ‘सेन्गोल’ की स्थापना के साथ भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रति प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि दी गई है।
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना क्या है?
- सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना ऐसी परियोजना है जिसका उद्देश्य रायसीना हिल, नई दिल्ली के पास स्थित भारत के केंद्रीय प्रशासनिक क्षेत्र ‘सेंट्रल विस्टा’ का पुनरुद्धार करना है।
- यह क्षेत्र मूल रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान सर एडविन लुटियंस एवं सर हर्बर्ट बेकर द्वारा डिज़ाइन किया गया था और स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार द्वारा इसे बनाए रखा गया था। परियोजना के पुनर्विकास की देखरेख एआर. Ar बिमल पटेल द्वारा की जा रही है।
- नई दिल्ली के सेंट्रल विस्टा में राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, नॉर्थ एवं साउथ ब्लॉक, इंडिया गेट, राष्ट्रीय अभिलेखागार आदि अवस्थित हैं।
- दिसंबर 1911 में किंग जॉर्ज पंचम ने आयोजित दिल्ली दरबार में भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की थी।
- इस पुनर्विकास परियोजना में शामिल हैं:
- वर्तमान संसद भवन के बगल में एक त्रिकोणीय नए संसद भवन का निर्माण।
- सामान्य केंद्रीय सचिवालय का निर्माण।
- राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के बीच 3 किलोमीटर लंबे राजपथ (जिसे अब कर्तव्य पथ कहा जाता है) का पुनरुद्धार।
- नॉर्थ और साउथ ब्लॉक का संग्रहालयों के रूप में विकास।
‘ सेन्गोल’ का क्या ऐतिहासिक महत्त्व है?
- चोल काल:
- ‘ सेन्गोल’ शब्द तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से व्युत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है ‘नीतिपरायणता’ (Righteousness)।
- यह स्वर्ण का बना था और चोल साम्राज्य में अपने अधिकार का प्रतिनिधित्व करने के लिये औपचारिक अवसरों के दौरान शासकों द्वारा धारण किया जाता था। इसे उत्तराधिकार एवं वैधता के निशान के रूप में एक राजा द्वारा दूसरे राजा को सौंपा जाता था।
- चोलों ने 9वीं से 13वीं शताब्दी ईस्वी में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना , ओडिशा और श्रीलंका के कुछ हिस्सों पर शासन किया था।
- समारोह आमतौर पर एक उच्च पुरोहित या गुरु द्वारा संपन्न किया जाता था जो नए शासक को आशीर्वाद देते थे और उसे ‘ सेन्गोल’ सौंपते थे।
- आजादी से पहले:
- स्वतंत्रता से पहले यह प्रश्न मौजूद था कि अंग्रेज़ों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में किस समारोह का पालन किया जाना चाहिये ?'
- सी. राजगोपालाचारी ने सत्ता हस्तांतरण के लिये उपयुक्त समारोह के रूप में ‘ सेन्गोल’ सौंपने के चोल अनुष्ठान का सुझाव दिया क्योंकि यह भारत की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के साथ-साथ विविधता में इसकी एकता को प्रतिबिंबित करेगा।
- थिरुवदुथुराई आधीनम (500 वर्ष पुराना एक शैव मठ ने) प्रधानमंत्री नेहरू को सेन्गोल भेंट किया था 14 अगस्त, 1947 को अधीनम (500 साल पुराना शैव मठ)।
- यह सुनहरा राजदंड वुम्मिडी बंगारु चेट्टी द्वारा मद्रास (अब चेन्नई) में एक प्रसिद्ध जौहरी द्वारा तैयार किया गया था।
- नंदी, ‘न्याय’ के धारक के रूप में अपनी अदम्य दृष्टि के साथ शीर्ष पर हाथ से उत्कीर्ण किया गया है।
- स्वतंत्रता के बाद :
- वर्ष 1947 में सेन्गोल प्राप्त करने के बाद नेहरू ने इसे कुछ समय के लिये दिल्ली में अपने आवास पर रखा और फिर इसे इलाहाबाद (प्रयागराज) में आनंद भवन संग्रहालय को दान कर दिया।
- यह सात दशकों से भी अधिक समय तक आनंद भवन संग्रहालय में पड़ा रहा।
- वर्ष 2021-22 में जब सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना चल रही थी, सरकार ने एक ऐतिहासिक घटना को पुनर्जीवित करने और नए भवन में सेन्गोल स्थापित करने का निर्णय लिया।
- इसे नए संसद भवन में स्पीकर की सीट के पास स्थापित किया गया है, जिसके पास एक पट्टिका भी रखी गई है जो इसके इतिहास और अर्थ को प्रकट करेगी।
- नए संसद भवन में सेन्गोल की स्थापना सिर्फ़ एक सांकेतिक मुद्रा नहीं है, बल्कि एक सार्थक संदेश भी है।
- यह दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र अपनी प्राचीन परंपराओं एवं मूल्यों में निहित है और यह भी कि यह समावेशी है और इसकी विविधता एवं बहुलता का सम्मान करता है।
- वर्ष 1947 में सेन्गोल प्राप्त करने के बाद नेहरू ने इसे कुछ समय के लिये दिल्ली में अपने आवास पर रखा और फिर इसे इलाहाबाद (प्रयागराज) में आनंद भवन संग्रहालय को दान कर दिया।
पुराना संसद भवन अस्तित्व में कैसे आया था?
- पुराने संसद भवन का निर्माण कार्य वर्ष 1921 में शुरू हुआ था और यह वर्ष 1927 में पूरा हुआ। इसे आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने डिज़ाइन किया था।
- इस भवन को मूल रूप से ‘काउंसिल हाउस’ कहा जाता था और इसमें इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल, ब्रिटिश भारत की विधायिका आदि मौजूद थे।
- पुराने संसद भवन का गोल आकार रोमन ऐतिहासिक स्मारक कोलोसियम (Colosseum) से प्रेरित था।
- डिज़ाइन में जाली एवं छतरी जैसे कुछ भारतीय तत्व भी जोड़े गए थे।
निष्कर्ष
- भारत का नया संसद भवन एक अत्याधुनिक प्रतिष्ठान है जो प्रभावी विधायी कार्यवाही के लिये आधुनिक सुविधाएँ प्रदान करते हुए भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करता है। सरकार की योजना है कि संसदीय कार्यों के सुचारू संचालन के लिये दोनों भवनों को संयोजन में उपयोग किया जाए।
- यह न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है बल्कि एक समावेशी एवं कुशल लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मार्ग भी प्रशस्त करता है। चूँकि राष्ट्र इस नए अध्याय की ओर आगे बढ़ा है, नया संसद भवन आशा एवं एकता का प्रकाश-स्तंभ बन गया है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
अभ्यास प्रश्न: सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के एक भाग के रूप में विकसित नया संसद भवन संसदीय कार्यकरण में व्याप्त अवसंरचनात्मक बाधाओं पर भी विचार करता है। चर्चा कीजिये।