सामाजिक न्याय
सुगम्य चुनाव
चर्चा में क्यों?
लोकसभा चुनावों को सभी के लिये समावेशी एवं प्रतिभागी बनाने के उद्देश्य से विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) ने एक नई पहल ‘सुगम्य चुनाव’ को लोकसभा चुनाव 2019 से शुरू किया है।
प्रमुख बिंदु
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिव्यांगजनों की प्रतिभागिता सुनिश्चित करने पर विशेष ध्यान दिया गया था। 910 मिलियन मतदाताओं में से लगभग 62,63,701 पंजीकृत दिव्यांगजन मतदाता थे।
चुनाव के दौरान दिव्यांग एवं वरिष्ठ नागरिक मतदाताओं का सभी मतदान केंद्रों पर अवलोकन किया गया ताकि चुनाव के लिये उन्हें लक्षित एवं आवश्यकता आधारित सहायता उपलब्ध कराई जा सके।
चुनाव के दौरान सभी मतदान केंद्रों पर व्हील चेयरों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की गई, साथ ही यह भी निश्चित किया गया कि सभी मतदान केंद्रों में दिव्यांगजन मतदाताओं के लिये मज़बूत रैम्प की व्यवस्था हो।
लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान सभी मतदान केंद्रों में एक संकेत भाषा विशेषज्ञ, पहचानसूचक एवं परिवहन सुविधा की व्यवस्था भी की गई थी।
दिव्यांगजनों की पंजीकरण प्रक्रिया
- नामांकन प्रक्रिया के दौरान दिव्यांगजनों की सुविधा के लिये हर दरवाज़े पर पंजीकरण मुहिम चलाई गई।
- सुगम पंजीकरण के लिये आयोग द्वारा एक विशेष मोबाइल एप्लीकेशन का भी निर्माण किया गया। चुनाव के दिन दिव्यांगजन मतदाताओं को लाने-ले जाने के लिये व्हील चेयरों एवं इस एप के ज़रिये विशेष स्वयंसेवकों की भी व्यवस्था की गई।
- चुनाव से जुड़े कर्मचारियों को दिव्यांगजनों की विशिष्ट ज़रूरतों के बारे में संवेदनशील बनाने पर विशेष ज़ोर दिया गया।
- सुगम सरल एवं सुविधाजनक मतदान अनुभव के लिये बुज़ुर्गों एवं दिव्यांगजन मतदाताओं को मतदान केंद्र में प्राथमिकता के आधार पर सुविधा प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त उन्हें विशेष कार्यकर्त्ताओं की भी सुविधा प्रदान की गई, जिन्होंने उनकी मतदान केंद्रों में सहायता की एवं मार्ग निर्देशन किया।
ब्रेल संकेतक
- सभी को सुविधा प्रदान करने के क्षेत्र में इस चुनाव के दौरान कई चीजें पहली बार की गई:
- दृष्टिबाधित मतदाताओं की सहायता के लिये चुनाव के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन एवं मतदाता फोटो पहचान पत्र पर ब्रेल संकेतक का उपयोग किया गया।
- मतदाताओं के स्लिप, मतदाता निर्देशिका जैसे अन्य दस्तावेज़ों पर भी ब्रेल संकेतक थे।
- सुगम्यता पर्यवेक्षकों की व्यवस्था की गई जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि सभी मतदान केंद्र दिव्यांगजनों के लिये सुगम हों।
अन्य सुविधाएँ
- मतदाताओं की सुविधा एवं सुगमता के लिये मतदान केंद्रों पर पीने के स्वच्छ पानी, कतार में खड़े मतदाताओं के लिये पर्याप्त फर्नीचर, शेड, एवं शौचालयों की व्यवस्था की गई।
- मूलभूत आपूर्तियों के साथ चिकित्सा सहायता जैसी सुविधाएँ भी मतदान के दिन उपलब्ध कराई गईं। मतदाताओं के साथ आने वाले बच्चों के लिये एक प्रशिक्षित सहायिका के साथ क्रेच की भी समुचित व्यवस्था थी।
राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEO) की विशेष पहल
- राष्ट्रव्यापी पहलों के अतिरिक्त राज्यों ने भी अभिनव प्रयोग किये एवं सुगम्यता की भावना को बढ़ाया। उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में दिव्यांग सारथी एवं दिव्यांग डोली की पहल शुरू की गई जिससे कि दिव्यांगजनों एवं वरिष्ठ नागरिकों को सुविधा उपलब्ध कराई जा सके।
- दिल्ली में अधिकारियों ने निम्न दृष्टि वाले मतदाताओं की सुविधा के लिये प्रत्येक मतदान केंद्र पर मैगनीफाइन शीट उपलब्ध कराने की पहल की।
- दिल्ली CEO कार्यालय ने शतायू मतदाताओं का सम्मान किया और लोकतंत्र में मतदाताओं के योगदान का सम्मान करते हुए मतदान के दिन उन्हें विशिष्ट सेवाएँ उपलब्ध कराई गई।
स्रोत: PIB
सामाजिक न्याय
मुस्लिम महिला विधेयक, 2019
चर्चा में क्यों?
मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 (Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2019) राज्यसभा में भी पारित हो गया, लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।
प्रमुख बिंदु
- राज्यसभा में यह विधेयक 84 के मुकाबले 99 मतों से पारित हुआ।
- इस विधेयक के संसद के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा तथा उनकी स्वीकृति मिलने के पश्चात् यह विधेयक कानून बन जाएगा।
- महिलाओं के सशक्तीकरण (विशेषकर मुस्लिम महिलाओं) की दिशा में इस विधेयक का पारित होना एक ऐतिहासिक कदम है।
तीन तलाक/तलाक-ए-बिद्दत
तीन तलाक को ‘तलाक-ए-बिद्दत' कहा जाता है। इसे ‘इंस्टेंट तलाक’ या मौखिक तलाक भी कहते हैं। इसमें पति एक ही बार में तीन बार कहता है...तलाक-तलाक-तलाक। यदि पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे को तलाक देने को राज़ी हों, तभी यह मान्य होता है। लेकिन देखा यह गया है कि लगभग 100 फीसदी मामलों में केवल पति की ही रज़ामंदी होती है। इसे शरीयत में मान्यता नहीं दी गई है।
विधेयक के महत्त्वपूर्ण प्रावधान
- इस विधेयक के अंतर्गत तीन तलाक के मामले को दंडनीय अपराध माना जाएगा।
- तत्काल तीन तलाक देने वाले पति को अधिकतम 3 साल तक की सज़ा और जुर्माना हो सकता है।
- मजिस्ट्रेट को पीड़िता का पक्ष सुनने के बाद सुलह कराने और जमानत देने का अधिकार दिया गया है।
- मुकदमे से पहले पीड़िता का पक्ष सुनकर मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है।
- पीड़िता, उसके रक्त संबंधी और विवाह से बने उसके संबंधी ही पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं।
- पति-पत्नी के बीच यदि किसी प्रकार का आपसी समझौता होता है तो पीड़िता अपने पति के खिलाफ दायर किया गया मामला वापस ले सकती है।
- मजिस्ट्रेट को पति-पत्नी के बीच समझौता कराकर शादी बरकरार रखने का अधिकार है।
- एक बार में तीन तलाक की पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट द्वारा तय किये गए मुआवज़े की भी हकदार होगी।
- अदालत का फैसला होने तक संतान माँ के संरक्षण में रहेगी। इस दौरान पति को गुज़ारा भत्ता देना होगा।
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तीन तलाक पर नया विधेयक लोकसभा में पारित
स्रोत: PIB
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अपराधियों की पहचान के लिये आईरिस और फिंगरप्रिंट स्कैनिंग का प्रयोग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र पुलिस ने स्वचालित मल्टी-मोडल बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली (Automated Multi-modal Biometric Identification System-AMBIS) अपनाई है। इस प्रकार की प्रणाली की शुरुआत शीघ्र ही पूरे देश में की जाएगी।
प्रमुख बिंदु
- पुलिस जाँच में डिजिटल फिंगरप्रिंट और आईरिस स्कैन प्रणाली का प्रयोग करने वाला महाराष्ट्र देश का पहला राज्य बन गया है।
- महाराष्ट्र सरकार नई दिल्ली में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के साथ मिलकर AMBIS के मानकों का निर्माण करेगी, जिससे इस प्रकार की प्रणाली को अन्य प्रदेशों में भी लागू किया जा सके।
स्वचालित मल्टी-मोडल बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली
(Automated Multi-modal Biometric Identification System- AMBIS)
- AMBIS इकाई में एक कंप्यूटर, एक कैमरा और आईरिस, फिंगरप्रिंट और हथेली का स्कैनर (Palm Scanner) शामिल होता है।
- इसमें अपराध के दृश्यों से उंगलियों के निशान को पकड़ने के लिये एक पोर्टेबल सिस्टम भी शामिल है।
- चेहरे की पहचान के लिये CCTV कैमरों की प्रणाली के साथ AMBIS का एकीकरण करने के बाद पुलिस की अपराधों को रोकने की दक्षता बढ़ जाएगी, साथ ही उन अपराधियों को पकड़ना आसान हो जाएगा जिनकी उंगलियों के निशान दशकों पूर्व कागज़ पर लिये जा चुके हैं।
- महाराष्ट्र राज्य के साइबर विभाग ने AMBIS को तैयार करने से पहले संघीय जाँच ब्यूरो, केंद्रीय खुफिया एजेंसी और संयुक्त राज्य अमेरिका में डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी और इंटरपोल द्वारा उपयोग किये जाने वाले मॉडल का अध्ययन किया।
- इंटरपोल के बायोमेट्रिक और चेहरे की पहचान प्रणाली को डिज़ाइन करने वाली फ्रेंच कंपनी को AMBIS स्थापित करने के लिये चुना गया है।
- यह प्रणाली यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड एंड टेक्नोलॉजी द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप है।
- AMBIS प्रणाली को अभी महाराष्ट्र के उन थानों में लॉन्च किया जा रहा है, जहाँ पर पहले ही अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (Crime and Criminal Tracking Network and System-CCTNS) का बुनियादी ढाँचा मौजूद है।
- महाराष्ट्र साइबर पुलिस विभाग ने वर्ष 1950 से लेकर वर्ष 2018 तक के 6.5 लाख से अधिक कागज़ों पर दर्ज किये गए उंगलियों के निशानों को डिजिटलकृत किया है। इसका फायदा भी देखने को मिल रहा है, क्योंकि इस प्रणाली के प्रयोग से वर्ष 2014 के बाद के 85 घरों में चोरी के मामलों का खुलासा किया जा चुका है।
महत्त्व
- इस प्रकार की प्रणाली के माध्यम से मृतक की पहचान करना आसान हो जाएगा, विशेषकर उन परिस्थितियों में जब शरीर विकृत हो चुका होता है।
- रेटिना स्कैन के माध्यम से अपराधियों की पहचान आसान हो जाएगी क्योंकि रेटिना के अंदर रक्त वाहिकाओं की संरचना विशेष प्रकार की होती है।
- CCTV फुटेज और तस्वीरों के माध्यम से भीड़ हिंसा जैसे मामलों में संदिग्धों के चेहरे की पहचान की जा सकती है।
- रेलवे स्टेशनों जैसी भीड़भाड़ वाली जगहों पर आतंकवादी हमलों के मामलों में यह प्रणाली उपलब्ध 40% सटीक जानकारी से 50%- 60% तक सटीक जानकारी जुटा सकती है।
- इस प्रकार की प्रणाली में डेटा की हानि नहीं होती, साथ डेटा की उच्च बैकअप क्षमता भी मिलती है।
- फिंगरप्रिंट डेटा, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, जाँच एजेंसियों, अदालतों, अपराध विशेषज्ञों और यहाँ तक कि इंटरपोल एवं विदेशी जाँच एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
5G ट्रायल हेतु गाइडलाइन जारी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) द्वारा उपलब्ध सभी स्पेक्ट्रम बैंड में 5G के परीक्षण के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि दूरसंचार विभाग केवल परीक्षण के उद्देश्य से लाइसेंस जारी करेगा जिसकी वैद्यता 3 माह से 2 साल की होगी तथा यह समयावधी परीक्षण के उद्देश्य पर निर्भर करेगी।
- इस उद्देश्य के लिये विभाग द्वारा 400 मेगाहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाएगा।
- 5G सेवाओं के परीक्षण के लिये स्पेक्ट्रम (Quantum of Spectrum) का आवंटन आवश्यकता और/अथवा प्रौद्योगिकी क्षमताओं के प्रदर्शन के अनुसार किया जा सकेगा। उदाहरण के लिये, सामान्यतः स्पेक्ट्रम का आवंटन 3.5 गीगाहर्ट्ज़ बैंड में 100 मेगाहर्ट्ज़ तक, जबकि 26 गीगाहर्ट्ज़ बैंड में 400 मेगाहर्ट्ज़ हो सकता है।
- इस वर्ष के अंत तक 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी के माध्यम से वर्ष 2020 से देश में 5G सेवाओं को वाणिज्यिक रूप से शुरू करने की योजना है।
- यह लाइसेंस शोध एवं विकास, विनिर्माण, दूरसंचार परिचालक (Telecom Operator) और शिक्षा क्षेत्र से संबंधित भारतीय इकाइयों को शोध, विकास एवं प्रयोग (Experimentation) के लिये दो साल की अवधि के लिये दिया जाएगा।
5G मोबाइल नेटवर्क
- यह तकनीक नेटवर्क मोबाइल उपभोक्ताओं को इंटरनेट की उच्च स्पीड, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) की क्षमता, न्यून विलंबता (Low Latency) और अन्य कई अनुप्रयोगों (Application) की सुविधा प्रदान करेगी। यह तकनीक कनेक्टिविटी और कवरेज में भी सुधार करेगी।
- मोबाइल सेवाओं के लिये इस तकनीक का प्रयोग अभी शुरुआती चरण में है।
- इस तकनीक द्वारा उपभोक्ता उच्च डाटा सामग्री को उच्च गुणवत्ता व ग्राफिक्स के साथ कुछ ही सेकंड में डाउनलोड कर सकते है।
- उपयोग की जाने वाली तकनीक: बड़ी संख्या में उपकरणों को एक साथ संचालित करने, जिनमें से कई को लंबे समय तक मोबाइल बैटरी की आवश्यकता होती है; के लिये 5G नेटवर्क LTE के उन्नत प्लेटफॉर्म (LTE Advanced Pro platform) का निर्माण करेगा।
- इसमें दो नैरोबैंड (Narrowband) तकनीकी प्लेटफार्मों का उपयोग किया जाएगा-
- उन्नत मशीन प्रकार संचार (Enhanced Machine-Type Communication- EMTC)
- नैरोबैंड इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Narrowband Internet of Things: NB-IoT)
LTE
- यह लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (Long-Term Evolution) का संक्षिप्त रूप है।
- LTE, 3rd जनरेशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट (3rd Generation Partnership Project- 3GPP) द्वारा विकसित एक 4G वायरलेस कम्युनिकेशन स्टैंडर्ड (4G Wireless Communications Standard) है जिसे मोबाइल डिवाइस जैसे- स्मार्टफोन, टैबलेट, नोटबुक और वायरलेस हॉटस्पॉट को 3G की तुलना में 10 गुना स्पीड प्रदान करने के लिये विकसित किया गया है।
VoLTE
- यह वॉयस-ओवर लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (Voice over Long Term Evolution- VoLTE) का संक्षिप्त रूप है।
- यह एक डिजिटल पैकेट वॉयस सेवा है जिसमें IMS तकनीक का उपयोग करते हुए LTE एक्सेस नेटवर्क के माध्यम से इंटरनेट प्रोटोकॉल (Internet Protocol- IP) पर वितरित किया जाता है।
लेटेंसी (Latency)
- यह नेटवर्किंग से संबंधित एक शब्द है। एक नोड से दूसरे नोड तक जाने में किसी डेटा पैकेट द्वारा लिये गए कुल समय को लेटेंसी कहते हैं।
- लेटेंसी समय अंतराल या देरी को संदर्भित करता है।
- इसी वर्ष अप्रैल में दक्षिण कोरिया और अमेरिका वाणिज्यिक रूप से 5G सेवाओं को शुरू करने वाले विश्व के पहले देश बन गए हैं।
वायरलेस प्लानिंग एंड कोआर्डिनेशन (WPC)
- वर्ष 1952 में बनाया गया राष्ट्रीय रेडियो नियामक प्राधिकरण, वायरलेस प्लानिंग एंड कोऑर्डिनेशन (WIRELESS PLANNING & COORDINATION- WPC) संचार मंत्रालय का एक विंग है जो देश में सभी वायरलेस उपयोगकर्ताओं (सरकारी और निजी) के लाइसेंसिंग और उनकी आवश्यकताओं सहित स्पेक्ट्रम प्रबंधन के लिये जिम्मेदार है।
- यह केंद्र सरकार के वैधानिक कार्यों का निर्वाह करता है और वायरलेस स्टेशनों की स्थापना, रखरखाव और संचालन के लिये लाइसेंस जारी करता है।
- WPC को लाइसेंसिंग और रेगुलेशन (LR), न्यू टेक्नोलॉजी ग्रुप (NTG) तथा रेडियो फ़्रीक्वेंसी आवंटन की स्थायी सलाहकार समिति (SACFA) में विभाजित किया गया है।
- SACFA फ्रीक्वेंसी के आवंटन से संबंधित मुख्य मुद्दों, फ्रीक्वेंसी के आवंटन से संबंधित योजनाओं का निर्माण, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सिफारिशें करना आदि कार्य करती है।
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
UDMH रॉकेट ईंधन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चंद्रयान- 2 मिशन का प्रक्षेपण GSLV MK III रॉकेट से किया गया, इस रॉकेट में अनसिमिट्रिकल डाई-मिथाइल हाइड्रोजेनाइन (Unsymmetrical Di-Methyl Hydrogenine- UDMH) ईंधन का प्रयोग किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने नाइट्रोजन टेट्रॉक्साइड के ऑक्सीकारक के साथ अत्यधिक विषैले और संक्षारक (Corrosive) ईंधन UDMH का इस्तेमाल किया। इसे गंदा संयोजन (Dirty Combination) भी कहा जाता है।
- विश्व के कई देश अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में तरल मीथेन और केरोसीन जैसे ज़्यादा साफ-सुथरे ईधन का प्रयोग कर रहे हैं।
- तरल मीथेन का ईधन के रूप प्रयोग करने के लिये क्रायोजेनिक इंजन की आवश्यकता होगी। किसी भी गैस को तरल रूप में रखने के लिये बेहद कम तापमान की आवश्यकता होती है।
GSLV MK III:
- चंद्रयान-2 के लिये प्रयुक्त GSLV MK III इसरो द्वारा विकसित तीन-चरणों वाला भारत का सबसे शक्तिशाली प्रमोचक यान है। इसमें दो ठोस स्ट्रैप-ऑन (Solid Strap-Ons), एक कोर द्रव बूस्टर (Core Liquid Booster) और एक क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (Cryogenic Upper Stage) शामिल है।
- GSLV MK III की विशेषताएँ:
- ऊँचाई: 43.43 मीटर
- व्यास: 4.0 मीटर
- ताप कवच का व्यास: 5.0 मीटर
- चरणों की संख्या: 3
- उत्थापन द्रव्यमान: 640 टन
- GSLV MK III को भू-तुल्यकालिक अंतरण कक्षा (Geosynchronous Transfer Orbit- GTO) में 4 टन श्रेणी के उपग्रहों को तथा निम्न भू-कक्षा में लगभग 10 टन वज़न वहन करने हेतु डिज़ाइन किया गया है। उल्लेखनीय है कि GSLV MK III की यह क्षमता GSLV MK II से लगभग दोगुनी है।
- GSLV MK III का प्रथम विकासात्मक प्रमोचन 5 जून, 2017 को किया गया था जिसके तहत GSLV MK III-D1 की सहायता से GSAT-19 उपग्रह को भूतुल्यकालिक अंतरण कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया था।
- उल्लेखनीय है कि GSLV MK III-D2 ने 14 नवंबर, 2018 को उच्च क्षमता वाले संचार उपग्रह GSAT-29 का सफलतापूर्वक प्रमोचन किया था।
रॉकेट में प्रयुक्त होने वाले प्रणोदक (Propellant)
- प्रणोदक वह रासायनिक मिश्रण है जो रॉकेट को पृथ्वी से अंतरिक्ष की ओर धकेलता है।
- इसमें एक ईंधन और एक ऑक्सीकारक का प्रयोग किया जाता है।
- प्रणोदन के लिये ऑक्सीकारक के साथ संयुक्त होने पर ईंधन जलता है।
- ऑक्सीकारक एक एजेंट है जो ईंधन के साथ संयोजन के लिये ऑक्सीजन छोड़ता है।
- ईंधन के लिये ऑक्सीकारक के अनुपात को मिश्रण अनुपात कहते हैं।
प्रणोदक (Propellant) का वर्गीकरण
- तरल प्रणोदक:
- तरल प्रणोदक रॉकेट में ईंधन और ऑक्सीकारक को अलग-अलग टैंकों में संग्रहीत किया जाता है।
- इसके बाद पाइप, वाल्व, और टर्बोपम्प (Turbopumps) की एक प्रणाली के माध्यम से इन्हें एक दहन कक्ष में ले जा कर जलाने के बाद उत्पन्न ऊर्जा से रॉकेट लॉन्च किया जाता है।
- तरल प्रणोदक के लाभ:
- तरल प्रणोदक इंजन अन्य ठोस प्रणोदकों की तुलना में अधिक कारगर होते हैं।
- इसके प्रयोग के माध्यम से दहन कक्ष में प्रणोदक के प्रवाह को नियंत्रित कर, इंजन को दबाया (throttled) जा सकता है, साथ ही इंजन को रोका जा सकता है या फिर से शुरू किया जा सकता है।
- तरल प्रणोदक से हानियाँ:
- तरल प्रणोदक के साथ मुख्य कठिनाइयाँ ऑक्सीकारक के साथ हैं; क्योंकि नाइट्रिक एसिड (Nitric Acid) और नाइट्रोजन टेट्राक्साइड (Nitrogen Tetroxide) ऑक्सीकारक बेहद विषाक्त और अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं।
- क्रायोजेनिक प्रणोदक को कम तापमान पर संग्रहीत करने से भी इसमें प्रतिक्रिया/विषाक्तता की भी संभावना होती है।
रॉकेट में उपयोग किये जाने वाले तरल प्रणोदकों को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
- पेट्रोलियम:
- इस प्रकार के ईंधन कच्चे तेल से परिष्कृत होते हैं तथा जटिल हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होते हैं। इसमें कार्बन और हाइड्रोजन कार्बनिक के यौगिक शामिल होते हैं।
- रॉकेट ईंधन के रूप में उपयोग किया जाने वाला पेट्रोलियम एक प्रकार का उच्च परिष्कृत केरोसीन है।
- क्रायोजेनिक प्रणोदक:
- क्रायोजेनिक प्रणोदक में तरलीकृत गैसें होती हैं जिन्हें बहुत कम तापमान पर संग्रहीत किया जाता है।
- इसमें तरल हाइड्रोजन (LH2) को ईंधन और तरल ऑक्सीजन (LO2 या LOX) को ऑक्सीकारक के रूप में रूप में प्रयोग किया जाता है।
- हाइड्रोजन और ऑक्सीजन क्रमशः -253 डिग्री सेल्सियस (-423 डिग्री फारेनहाइट) और -183 डिग्री सेल्सियस (-297 डिग्री फारेनहाइट) के तापमान पर तरल अवस्था में रहते हैं।
- हाइपरगोलिक (Hypergolic) प्रणोदक:
- हाइपरगोलिक प्रणोदक और ऑक्सीकारक एक-दूसरे के संपर्क में आने के बाद सहजता से जलते हैं।
- हाइपरगोलिक की आसानी से होने वाली शुरुआत और दोबारा शुरुआत की क्षमता इसे अंतरिक्ष यान प्रणालियों के लिये आदर्श बनाती है।
- हाइपरगोलिक तापमान सामान्य तापमान पर तरल रहता है, इसलिये क्रायोजेनिक प्रणोदक की तरह इसके भंडारण को लेकर समस्या नहीं होती है।
- हाइपरगोलिक अत्यधिक विषाक्त होते हैं इसलिये इनकी ठीक से देखभाल भी एक चुनौती है। हाइपरगोलिक ईंधन के रूप में आमतौर पर हाइड्रैज़िन (Hydrazine), मोनोमिथाइल-हाइड्रेज़िन (Monomethyl-Hydrazine) और अनसिमिट्रिकल डाइमिथाइल-हाइड्रेज़िन (Unsymmetrical Dimethyl-Hydrazine) इत्यादि को प्रयोग में लाया जाता है।
ठोस प्रणोदक:
- ये सभी रॉकेट डिज़ाइनों में सबसे सरल हैं। इनमें आमतौर पर स्टील का एक आवरण होता है, जो ठोस यौगिकों (ईंधन और ऑक्सीकारक) के मिश्रण से भरा होता है।
- यह तीव्र गति से जलता है और रॉकेट को धक्का (Push) देने के लिये नोज़ल (रॉकेट का निकला हुआ भाग ) से गर्म गैसों को बाहर निकालता है।
- ठोस प्रणोदक दो प्रकार के होते हैं- सजातीय (Homogeneous) और समग्र (Composite)। इन दोनों का ही घनत्व अधिक होता है तथा सामान्य तापमान पर आसानी से स्थिर होते हैं।
- समग्र (Composite) प्रणोदक ज्यादातर ठोस आक्सीकारक जैसे कि अमोनियम नाइट्रेट, अमोनियम डिनिट्रामाइड, अमोनियम पेर्क्लोरेट या पोटेशियम नाइट्रेट आदि की कणिकाओं के मिश्रण से बने होते हैं।
ठोस प्रणोदक के लाभ:
- ठोस प्रणोदक रॉकेट को तरल प्रणोदक रॉकेट की तुलना में संग्रहीत करना आसान है। प्रणोदक घनत्व अधिक होने से आकार भी सहज रहता है।
ठोस प्रणोदक से हानियाँ:
- तरल-प्रणोदक इंजन के विपरीत ठोस प्रणोदक के मोटर बंद नहीं किये जा सकते है।
- एक बार जलने के बाद वे तब तक जलेंगे जब तक कि प्रणोदक समाप्त नहीं हो जाता है।
हाइब्रिड प्रणोदक:
- इस प्रकार के प्रणोदक में ठोस और तरल प्रणोदक इंजनों के गुण होते हैं।
- सामान्यतः ईंधन ठोस और ऑक्सीकारक तरल अवस्था में होता है।
- तरल पदार्थ को ठोस में इंजेक्ट किया जाता है, साथ ही इसका ईंधन कक्ष, दहन कक्ष का भी कार्य करता है।
- ये ठोस प्रणोदक के समान ही उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं, लेकिन ठोस प्रणोदक के विपरीत इन्हें रोका भी जा सकता है तथा फिर से चालू भी किया जा सकता है।
- निश्चित ही इस प्रकार के प्रणोदकों की गुणवत्ता अधिक विकसित होगी, लेकिन इस प्रकार की तकनीकी को विकसित कर पाना अत्यंत कठिन कार्य है।
स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
TOI 270 ग्रहीय प्रणाली
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नासा के ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लेनेट सर्वे सैटेलाइट ने पृथ्वी से लगभग 73 प्रकाश वर्ष दूर एक बौने तारे और ग्रहीय प्रणाली की खोज की है।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लेनेट सर्वे सैटेलाइट (Transiting Exoplanet Survey Satellite- TESS) द्वारा खोजे गए इस बौने तारे और ग्रहीय प्रणाली का नाम TOI 270 रखा गया है।
- उल्लेखनीय है कि खोजा गया बौना तारा आकार और द्रव्यमान में सूर्य से 40 प्रतिशत छोटा है। TOI 270 पिक्टर तारामंडल (Pictor Constellation) में स्थित है।
- इस प्रणाली में कुल तीन ग्रह TOI 270 b, TOI 270 c और TOI 270 d पाए गए हैं जो क्रमशः 3.4 दिन, 5.7 दिन और 11.4 दिनों में अपने तारे की परिक्रमा करते हैं।
- TOI 270b सबसे अंदरूनी ग्रह है। शोधकर्त्ताओं के अनुमानानुसार यह पृथ्वी की तुलना में लगभग 25% बड़ा और पथरीला है। यह रहने योग्य नहीं है क्योंकि यह तारे के बहुत करीब स्थित है। TOI 270b हमारे सौर मंडल के बुध ग्रह की तुलना में सूर्य के काफी करीब है।
- नासा के अनुसार, TOI 270b का तापमान केवल तारे से प्राप्त होने वाली ऊर्जा पर निर्भर है। गृह का ताप अन्य कारकों जैसे- एल्बिडो, वायुमंडल से ऊर्जा के परावर्तन आदि से प्रभावित नहीं होता है। इसका तापमान लगभग 490 डिग्री फ़ारेनहाइट (254 डिग्री सेल्सियस) दर्ज किया गया है।
- TOI 270c और TOI 270d की तुलना नेप्च्यून जैसे ग्रह से की जा सकती है क्योंकि इनके संघटकों में गैसीय तत्त्वों की बहुलता है।
- TOI 270d की सतह भी अत्यधिक गर्म है जो द्रव रूप में जल की उपस्थिति के लिये अनुकूल नहीं है।
- ये ग्रह अपने तारे की परिक्रमा इस प्रकार करते हैं जिसमे ग्रह का एक भाग ही सदैव तारे के सामने रहता है। उल्लेखनीय है कि चंद्रमा भी ठीक इसी प्रकार पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
- इस प्रणाली के सबसे बाहरी ग्रह, TOI 270d का तापमान लगभग 150 डिग्री फ़ारेनहाइट (66 डिग्री सेल्सियस) है। जो इस प्रणाली का सबसे समशीतोष्ण ग्रह है।
ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लेनेट सर्वे सैटेलाइट
(Transiting Exoplanet Survey Satellite-TESS)
- TESS सौर मंडल के बाहर के बहिर्ग्रहों और ब्रह्मांड में मानव जीवन की खोज के लिये नासा का अभियान है।
- TESS को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट की सहायता से 18 अप्रैल, 2018 को लॉन्च किया गया था।
- TESS का लक्ष्य वायुमंडलीय अध्ययन के लिये चमकीले, चट्टानी ग्रहों, जो आस-पास के तारों की कक्षाओं में परिक्रमा करते हैं, की एक सूची बनाना है। ऐसे में ग्रहों की यह खोज TESS के लिये एक बड़ी उपलब्धि है।
- TESS के कैमरे की गुणवत्ता केपलर मिशन की तुलना में 30 से 100 गुना अधिक उज्ज्वल है साथ ही यह केपलर मिशन की तुलना में 400 गुना बड़े आकाशीय क्षेत्र को कवर करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
लोकसभा ने पारित किया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लोकसभा ने उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 पारित किया। इस विधेयक को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के स्थान पर लाया गया है।
विधेयक के उद्देश्य
- इस विधेयक का प्रमुख उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों को मज़बूत करना एवं उनके हितों की रक्षा करना है।
- यह विधेयक उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान की प्रक्रिया को आसान बनाएगा।
- इसके अतिरिक्त इस विधेयक के माध्यम से उपभोक्ताओं को त्वरित न्याय भी दिलाया जा सकेगा।
विधेयक की मुख्य
- उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority-CCPA) के गठन का प्रस्ताव करता है। विधेयक के अनुसार, CCPA के पास निम्नलिखित अधिकार होंगे:
- उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और संस्थान द्वारा की गई शिकायतों की जाँच करना।
- असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं को वापस लेना एवं उचित कार्यवाही करना।
- भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाना।
- भ्रामक विज्ञापनों के निर्माताओं और प्रसारकों पर ज़ुर्माना लगाना।
- नए विधेयक में उपभोक्ताओं से संबंधित किसी भी विवाद के समाधान की प्रक्रिया को काफी सरल बनाने का प्रयास किया गया है। इसके तहत निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:
- उपभोक्ता आयोग के आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाया गया है;
- ज़िला आयोग- 1 करोड़ रुपए तक
- राज्य आयोग- 1 करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए तक
- राष्ट्रीय आयोग -10 करोड़ रुपए से अधिक के मामलों तक
- शिकायत दाखिल करने के 21 दिनों के बाद शिकायत की स्वत: स्वीकार्यता।
- उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने आदेशों को लागू कराने का अधिकार।
- उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी।
- सुनवाई के लिये वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा।
- उपभोक्ता आयोग के आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाया गया है;
- यदि किसी उत्पाद या सेवा में दोष पाया जाता है तो उत्पाद निर्माता/विक्रेता या सेवा प्रदाता को क्षतिपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार माना जाएगा। विधेयक के अनुसार, किसी उत्पाद में निम्नलिखित आधारों पर दोष हो सकता है:
- उत्पाद/सेवा के निर्माण में दोष।
- डिज़ाइन में दोष।
- उत्पाद की घोषित विशेषताओं से वास्तविक उत्पाद का अलग होना।
- प्रदान की जाने वाली सेवाओं का दोषपूर्ण होना।
क्यों लाभकारी है यह विधेयक?
- वर्तमान में उपभोक्ता संबंधी मामलों में न्याय पाने के लिये उपभोक्ताओं के पास मात्र उपभोक्ता आयोग ही एक विकल्प है, जिसके कारण न्याय मिलने में काफी समय लगता है। CCPA के गठन से उपभोक्ताओं को त्वरित न्याय प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
स्रोत: द हिंदू एवं पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
अनियमित जमा योजना विधेयक, 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद में अनियमित जमा योजना विधेयक, 2019 को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इसका मुख्य उद्देश्य कम आय वाले निवेशकों को पोंज़ी स्कीमों से बचाना है।
प्रमुख बिंदु:
- सरकार ने मौजूदा कानून में खामियों की जाँच के लिये एक अंतर-मंत्री समूह का गठन किया था। इस समूह ने अनियमित जमा योजनाओं से निपटने के लिये एक नए केंद्रीय कानून की सिफारिश की थी।
- विधेयक में कहा गया है कि जब्त किये गए धन पर पहला अधिकार जमाकर्त्ताओं का होगा।
- विधेयक में यह भी कहा गया है कि रिश्तेदारों से प्राप्त ऋण और साझेदारी फर्म में भागीदारों द्वारा पूंजी योगदान को पोंज़ी स्कीम के तहत जमा नहीं माना जाएगा।
- विधेयक में केंद्र और राज्य- दोनों सरकारों को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। पोंज़ी स्कीम के अभी तक 978 मामलों की पहचान की गई है जिसमें से सर्वाधिक 326 मामले पश्चिम बंगाल के हैं।
पोंज़ी स्कीम
- पोंज़ी स्कीम धोखाधड़ी युक्त निवेश घोटाला है जिसमें निवेशकों को कम जोखिम के साथ अधिक धन वापसी का वादा किया जाता है।
- पोंज़ी योजना में नए निवेशकों के धन से पहले के निवेशकों को लाभ दिया जाता है। कुछ दिन ऐसा करने के बाद पर्याप्त पूँजी इकट्ठा होने पर पोंज़ी कंपनियां लोगों का पैसा लेकर भाग जाती हैं।
- पोंज़ी स्कीम, पिरामिड स्कीम के समान है; दोनों में नये निवेश से पुराने निवेशकों को लाभ दिया जाता है।
- इन दोनों स्कीमों में मुख्य अंतर यह है कि जहाँ पोंज़ी स्कीम में निवेशकों को यह भरोसा होता है कि उनका रिटर्न किसी परिसंपत्ति से प्राप्त हो रहा है, वहीं पिरामिड स्कीम में निवेशक को यह भली-भाँति पता रहता है कि उसका रिटर्न किसी नए निवेशक के निवेश से आएगा।
- पिरामिड स्कीम, प्राइस चिट और मनी सर्कुलेशन स्कीम (बैनिंग) एक्ट, 1978 (The Prize Chits and Money Circulation Schemes (Banning) Act, 1978) के तहत प्रतिबंधित है।
पोंज़ी स्कीम से संबंधित मुद्दे
- पोंज़ी स्कीम से शैडो बैंकिंग ( Shadow Banking) की समस्या उत्पन्न होती है क्योंकि इस प्रकार की बचत और निवेश का समावेश प्रत्यक्ष रूप से अर्थव्यवस्था में नही हो पाता।
- इस प्रकार की योजनाओं में मुख्यतया कम आय वर्ग के लोगों द्वारा निवेश किया जाता है तथा पैसा डूबने की स्थिति में उनकी आजीविका बुरी तरह प्रभावित होती है।
- इस प्रकार की योजनाओं के असफल होने से शेयर बाजार भी प्रभावित होता है क्योंकि लोगों के मन में अपने निवेश को लेकर आशंका उत्पन्न हो जाती है।
- इस प्रकार के निवेश से GDP पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)
कृषि
वॉटर स्ट्रेस इंडेक्स: विकट होती जा रही जल संकट की समस्या
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी वॉटर स्ट्रेस इंडेक्स (Water Stress Index) के अनुसार, देश के 20 बड़े शहरों में से 11 जल संकट की खतरनाक स्थिति का सामना कर रहे हैं।
भारत में जल संकट की वर्तमान स्थिति
- वर्तमान में चेन्नई जिस प्रकार के गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि निकट भविष्य में देश के अन्य राज्यों में भी भयावह जल संकट दस्तक देने वाला है।
- भारत के अधिकतर राज्य पहले से ही अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि, जल संसाधनों की कमी और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
- हालाँकि, चेन्नई ने संसाधनों के संरक्षण के लिये जून से ही पानी में कटौती शुरू कर दी थी, परन्तु लंबे समय तक सूखा बने रहने के कारण वहाँ के सभी प्रमुख जलाशय सूख चुके हैं।
- अब चेन्नई में पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पास के वेल्लोर से ट्रेन के द्वारा पानी पहुँचाया जा रहा है।
क्या कहता है इंडेक्स?
- इस इंडेक्स में भारत को विश्व के 46वें सबसे अधिक जोखिमपूर्ण देश (जल संकट के संदर्भ में) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- इससे भी अधिक चिंता का विषय यह है कि भारत के 20 बड़े शहरों में से 11 ‘अत्यधिक जोखिम’ (Extreme Risk) वाली श्रेणी में और 7 शहर ‘उच्च जोखिम’ (High Risk) वाली श्रेणी में शामिल हैं।
- इंडेक्स के अनुसार, देश की राजधानी दिल्ली सहित चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, नासिक, जयपुर, अहमदाबाद और इंदौर जैसे देश के अन्य बड़े शहर ‘अत्यधिक जोखिम’ वाली श्रेणी में शामिल हैं।
यह इंडेक्स घरों, उद्योगों और कृषि क्षेत्रों की जल खपत दर तथा नदियों और झीलों में उपलब्ध जल को मापता है।
- इंडेक्स के मुताबिक, बेंगलुरु और सूरत में पानी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है और इसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इन शहरों में जल्द ही जल संकट की स्थिति पैदा हो सकती है। इसके अतिरिक्त चेन्नई और दिल्ली भी इस संदर्भ में काफी संवेदनशील क्षेत्र हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2035 में दिल्ली की आबादी 28 मिलियन से बढ़कर 43 मिलियन हो जाएगी अर्थात् 52 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी, और इसी अवधि में चेन्नई की आबादी में भी 47 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिलेगी।
- रिपोर्ट के अनुसार, देश के अत्यधिक जोखिम वाले 11 शहरों में वर्ष 2035 तक औसत जनसंख्या वृद्धि दर लगभग 49 प्रतिशत होगी अर्थात् वर्ष 2035 तक इन 11 शहरों में 127 मिलियन लोग और रहने आ जाएंगे।
क्या किया जा सकता है?
- कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पानी की खपत कम कम करने वाली फसलों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये। हाल ही के वर्षों में तमिलनाडु सरकार द्वारा ऐसे प्रयास किये गए हैं।
- जल उपभोग दक्षता को बढ़ाया जाना चाहिये, क्योंकि अभी तक सर्वश्रेष्ठ मामलों में भी यह 30% से भी कम है।
- जल संरक्षण हेतु जन जागरूकता अतिआवश्यक है, क्योंकि भारत जैसे देशों की अपेक्षा कम जल उपलब्धता वाले अमेरिका के कुछ क्षेत्रों में अभी तक जल संकट की कोई समस्या उत्पन्न नहीं हुई है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
PTA आयात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने दक्षिण कोरिया और थाईलैंड से आयात होने वाले शुद्ध PTA (Pure Terephthalic Acid) पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया है।
प्रमुख बिंदु
- वाणिज्य मंत्रालय में नियुक्त अधिकारी द्वारा सनसेट समीक्षा (Sunset Review) के आधार पर की गई सिफारिशों को लागू करते हुए राजस्व विभाग ने PTA पर 27.32 डॉलर प्रति टन एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया गया है।
- PTA पॉलिएस्टर चिप्स के निर्माण प्रयोग होने वाला प्राथमिक कच्चा माल है जो कपड़े, पैकेजिंग, साज-सामान, उपभोक्ता वस्तुओं, रेज़िन और कोटिंग आदि में प्रयोग किया जाता है।
एंटी डंपिंग शुल्क
- सामान्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय मूल्य भेदभाव की स्थिति को डंपिंग कहा जाता है, जिसमें आयात करने वाले देश में बेचे जाने पर किसी उत्पाद की कीमत निर्यातक देश के बाजार में उस उत्पाद की कीमत से कम होती है।
- एंटी-डंपिंग शुल्क डंपिंग को रोकने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था में समानता स्थापित करने के लिये लगाया जाता है।
- यह प्रवृत्ति अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये हानिकारक होने के साथ ही उस वस्तु के घरेलू व्यापार को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है तथा यह घरेलू व्यापार को संरक्षित करने का उपाय भी नहीं है।
- WTO द्वारा एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने की अनुमति/प्रावधान है।
- एंटी-डंपिंग शुल्क लागू होने की तिथि से 5 वर्ष के लिये वैध होता है। यह अवधि पूर्ण होने पर इसे WTO के डंपिंग रोधी समझौते (Anti-Dumping Agreement) के अनुच्छेद 11.3 के अनुसार सनसेट समीक्षा के पश्चात् पाँच साल के लिये और बढ़ाया जा सकता है।
सनसेट समीक्षा (Sunset Review)
- सनसेट समीक्षा किसी कार्यक्रम या एजेंसी के अस्तित्व की निरंतरता की आवश्यकता का मूल्यांकन है। इसके द्वारा कार्यक्रम या एजेंसी की प्रभावशीलता और प्रदर्शन का आकलन किया जाता है। यह समीक्षा हर बार एक निश्चित समयावधि के बाद की जाती है।
स्रोत : द बिज़नेस लाइन
भारतीय अर्थव्यवस्था
रिज़र्व बैंक ने ECB नियमों को शिथिल किया
चर्चा में क्यों?
बाह्य वाणिज्यिक उधार (External Commercial Borrowing-ECB) के तंत्र को अधिक उदार बनाने के उद्देश्य से भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने कार्यशील पूँजी की आवश्यकता, सामान्य कॉर्पोरेट उद्देश्यों तथा ऋणों के पुनर्भुगतान आदि के लिये ECB से संबंधित नियमों को और अधिक शिथिल कर दिया है।
प्रमुख बिंदु :
- इसका उद्देश्य कॉर्पोरेट सेक्टर, मुख्यतः गैर बैंकिंग वित्त कंपनियों को सस्ते और लंबी अवधि के ऋण दिलवाना है।
- RBI ने वाजिब उधारकर्त्ताओं को भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं और विदेशी सहायक कंपनियों को छोड़कर अन्य मान्यता प्राप्त उधारदाताओं से 10 वर्ष की परिपक्वता अवधि के साथ ECB जुटाने की अनुमति दी है।
- 10 वर्षों की न्यूनतम औसत परिपक्वता अवधि वाले ECB का प्रयोग कार्यशील पूंजीगत उद्देश्यों और सामान्य कॉर्पोरेट उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को 10 वर्ष की परिपक्वता अवधि के लिये आगे ऋण देने (On-Lending) के उद्देश्य से भी उधार लेने की अनुमति मिल गई है।
- पूंजीगत व्यय के अलावा अन्य प्रयोजनों के लिये लिया गया ECB न्यूनतम 10 वर्षों की औसत परिपक्वता अवधि के लिये लिया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त पूंजीगत व्यय के लिये लिया गया ECB न्यूनतम 7 वर्षों की औसत परिपक्वता अवधि के लिये लिया जा सकता है।
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को आगे ऋण देने हेतु लिये गए उधार का भुगतान रुपए में करने की अनुमति भी दी गई है।
बाह्य वाणिज्यिक उधार
- यह किसी अनिवासी ऋणदाता से भारतीय इकाई द्वारा लिया गया ऋण होता है।
- इनमें से अधिकतर ऋण विदेशी वाणिज्यिक बैंक खरीदारों के क्रेडिट, आपूर्तिकर्त्ताओं के क्रेडिट, फ्लोटिंग रेट नोट्स और फिक्स्ड रेट बॉण्ड इत्यादि जैसे सुरक्षित माध्यमों (Instruments) द्वारा प्रदान किये जाते हैं।
ECB के लाभ
- यह बड़ी मात्रा में धन उधार लेने का अवसर प्रदान करता है।
- इससे प्राप्त धन अपेक्षाकृत लंबी अवधि के लिये होता है।
- घरेलू धन की तुलना में ब्याज दर भी कम होती है।
- यह विदेशी मुद्राओं के रूप में होता है। इसलिये यह मशीनरी के आयात को पूरा करने के लिये कॉर्पोरेट्स को विदेशी मुद्रा रखने में सक्षम बनाता है।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
जैव विविधता और पर्यावरण
अर्थ ओवरशूट डे
चर्चा में क्यों?
ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क (Global Footprint Network) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, अर्थ ओवरशूट डे (Earth Overshoot Day) बीते 20 वर्षों में खिसककर 2 महीने पहले आ चुका है।
प्रमुख बिंदु:
- “इस वर्ष अर्थ ओवरशूट डे 29 जुलाई को ही आ गया था, जिसका अर्थ है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का 1.75 गुना अधिक तेज़ी से प्रयोग कर रहे हैं।
- वनों की कटाई सहित मृदा अपरदन, जैव विविधता की हानि और कार्बन डाइऑक्साइड का लगातार बढ़ता स्तर आदि इसके प्रमुख कारण हैं।
अर्थ ओवरशूट डे:
अर्थ ओवरशूट डे का अभिप्राय एक ऐसे पैमाने से है जिसके आधार पर वर्तमान प्राकृतिक संसाधनों की खपत का पता लगाया जाता है।
- अर्थ ओवरशूट डे की गणना 1986 से की जा रही है और यह प्रत्येक वर्ष निकट आता जा रहा है। वर्ष 1993 में यह 21 अक्तूबर को आया था, वर्ष 2003 में यह 22 सितंबर को आया था और वर्ष 2017 में यह दिन 2 अगस्त को आया था।
क्या किया जा सकता है?
- शाकाहारी भोजन का प्रयोग:
- यदि हम सभी मांस के प्रयोग को लगभग 50 प्रतिशत तक कम कर दें तो खाद्य ज़रूरतों के कारण पृथ्वी हरी-भरी रहेगी और अर्थ ओवरशूट डे लगभग 15 दिन आगे खिसक जाएगा।
- कार्बन उत्सर्जन में कमी:
- कार्बन का अत्यधिक उत्सर्जन इस त्रासदी का सबसे प्रमुख कारण है और इसलिये यदि हमें इस समस्या से निपटना है तो कार्बन के न्यूनतम उत्सर्जन को सुनिश्चित करना होगा।
- खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकना:
- यदि हम खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकने में सफल रहते हैं तो अर्थ ओवरशूट डे को 10 दिन और आगे खिसका सकते है।
निष्कर्ष:
हम 1.75 गुना तेज़ी से पृथ्वी के संसाधनों का लगातार इस्तेमाल नहीं कर सकते है। यदि यही स्थिति बनी रहती है तो जल्द ही ऐसा समय आएगा जब हम साल की शुरुआत में ही एक साल के संपूर्ण प्राकृतिक संसाधन खर्च कर देंगे। अर्थ ओवरशूट डे के संदर्भ में हमें गंभीरता से विचार करना चाहिये और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखते हुए विकास के कुछ नए विकल्पों को खोजने का प्रयास करना चाहिये।
स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (31 July)
- देश की राजधानी दिल्ली के तीन किनारों पर कूड़े-कचरे के विशाल पहाड़ों को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय सहित अन्य अदालतें चिंता जता चुकी हैं। अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने दिल्ली सरकार और नगर निगमों को देश के सबसे साफ शहर इंदौर की तर्ज़ पर बायो माइनिंग तकनीक से लैंडफिल साइट्स से कचरा हटाने को कहा है। पीठ ने अक्तूबर से इस कम को शुरू करके एक वर्ष में पूरा करने को कहा है। बायो माइनिंग तकनीक में सूक्ष्मजीवों (Microorganism) का इस्तेमाल करके अयस्कों तथा अन्य ठोस पदार्थों से धातुओं को निकाला जाता है। सामान्यतः इस तकनीक का इस्तेमाल सोने और लौह धातु के खनन के लिये किया जाता है। लेकिन प्रदूषित हो चुकी मिट्टी को साफ करने के लिये भी यह कारगर है। बायो माइनिंग में ट्रोमेल्स (मैकेनिकल स्क्रीनिंग मशीन) के ज़रिये कूड़े-कचरे से धातु, प्लास्टिक, शीशे व सभी पदार्थों को अलग किया जाता है। इसके अलावा निस्तारित हो सकने वाले और न हो सकने वाले कूड़े को अलग किया जाता है। निस्तारित न हो सकने वाले कूड़े को सुखाकर ज्वलनशील बनाया जाता है। देश में इंदौर, गुजरात के कुछ शहरों तथा तमिलनाडु के कुम्भकोणम और मुंबई में यह तकनीक इस्तेमाल हो रही है। विदेशों में अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जर्मनी में इस तकनीक का सफलतापूर्वक इस्तेमाल हो रहा है।
- 28 जुलाई को उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मसूरी में 11 हिमालयी राज्यों का सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में हिमालयी राज्यों ने ‘मसूरी संकल्प’ पारित किया, जिसके तहत पर्वतीय राज्यों ने हिमालय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और देश की समृद्धि में योगदान की बात कही। इसके अलावा प्रकृति, जैव विविधता, ग्लेशियर, नदियों, झीलों के संरक्षण का भी संकल्प लिया गया। भावी पीढ़ी के लिए लोककला, हस्तकला, संस्कृति के संरक्षण की बात कही गई, साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों के सतत विकास की रणनीति पर काम करने को लेकर प्रतिबद्धता जताई। इस सम्मेलन में नीति आयोग, 15वें वित्त आयोग और केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने हिमालयी राज्यों के लिये बजट में अलग से प्रावधान किये जाने का आश्वासन दिया। सम्मेलन में हिमालयी राज्यों को ग्रीन बोनस देने पर भी चर्चा हुई। गौरतलब है कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश , असम, नगालैंड, सिक्किम व जम्मू-कश्मीर को हिमालयी राज्यों में शामिल किया जाता है।
- अमेरिका तथा अन्य विश्व शक्तियों के साथ हुए परमाणु समझौते से अमेरिका के बाहर निकलने तथा ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाने के बाद ईरान ने अपने अरक हैवी वाटर रिएक्टर को प्लूटोनियम बनाने के लिये फिर से शुरू कर दिया है| वर्ष 2015 में हुए उपरोक्त परमाणु समझौते के बाद ईरान ने अरक के इस रिएक्टर को बंद कर दिया था। इससे पहले ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने ईरान द्वारा यूरेनियम शोधन को बढ़ाने की घोषणा की थी। ज्ञातव्य है कि अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद ईरान अपनी परमाणु गतिविधियाँ बढ़ाने की घोषणा पहले ही कर चुका है। प्लूटोनियम वह पदार्थ है जो परमाणु हथियार में ईंधन के रूप में प्रयुक्त होता है। ईरान के इस रवैये से चिंतित समझौते में शामिल अन्य देश समझौते को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। 28 जुलाई को जिनेवा में ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और चीन के प्रतिनिधियों ने बैठक कर समझौते को बनाए रखने के तरीकों पर विचार-विमर्श किया।
- वर्ष 2020 में टोक्यो और वर्ष 2024 में पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों पर नज़र रखने तथा सभी प्रकार का सहयोग देने के लिये केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजिजू की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है, जिसमें खेल संस्थाओं से जुड़े कई अधिकारी और पूर्व खिलाड़ी शामिल हैं। इस समिति में दो ओलंपिक पदक विजेता खिलाड़ियों- टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस और शूटर गगन नारंग के अलावा खेल सचिव, भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष, भारतीय खेल प्राधिकरण के महानिदेशक, आई.ओ.ए. के सचिव राजीव मेहता, भारतीय एथलेटिक्स महासंघ के अध्यक्ष, भारतीय मुक्केबाजी महासंघ के अध्यक्ष और टॉप स्कीम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजेश राजगोपालन को शामिल किया गया है। राजगोपालन इस समिति के समन्वयक होंगे। यह समिति वर्ष 2020 ओलंपिक के लिये हर तरीके से खिलाड़ियों की मदद करेगी, जबकि पेरिस में वर्ष 2024 में होने वाले ओलंपिक खेलों के लिये यह समिति तैयारी का रोडमैप बनाएगी, तैयारी की समीक्षा तथा उससे संबंधित सलाह देगी और यह सुनिश्चित करेगी कि सभी हितधारकों में सामंजस्य बना रहे । ज्ञातव्य है कि लिएंडर पेस ने वर्ष 1996 के अटलांटा ओलंपिक में पुरुष एकल वर्ग में कांस्य पदक जीता था, जबकि गगन नारंग ने वर्ष 2012 के लंदन ओलंपिक में पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्द्धा में कांस्य पदक जीता था।
- 55 साल बाद डेविस कप में भाग लेने के लिये भारतीय टेनिस खिलाड़ी अगले महीने पाकिस्तान जाएंगे। भारतीय टीम प्रतियोगिता के एशिया-ओसियानिया ग्रुप-आई के मुकाबले में पाकिस्तान का सामना करेगी। दोनों टीमों के बीच मुकाबले 14 और 15 सितंबर को इस्लामाबाद के पाकिस्तान स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में ग्रास कोर्ट पर खेले जाएंगे। इस मुकाबले का जो भी विजेता होगा वह अगले वर्ष होने वाले वर्ल्ड ग्रुप प्ले ऑफ्स में जगह बनाएगा। पाकिस्तान ने वर्ष 2017 में इसी स्थान पर उज्बेकिस्तान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड का सामना किया था। गौरतलब है कि भारतीय टीम ने आखिरी बार मार्च 1964 में पाकिस्तान का दौरा किया और लाहौर में मेजबान टीम को 4-0 से पराजित किया था। इसके बाद पाकिस्तान और भारत के बीच अप्रैल 2006 में मुंबई में मुकाबले हुए थे। गौरतलब है कि डेविस कप एक विश्वस्तरीय प्रतियोगिता है जिसके लिये ओलंपिक चार्टर का पालन करना ज़रूरी है। डेविस कप दुनिया की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय टेनिस प्रतियोगिताओं में से एक है, जिसमें केवल पुरुष खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं।