भारतीय राजव्यवस्था
निर्वाचन आयोग की लंबित सिफारिशें
चर्चा में क्यों?
हाल ही में निर्वाचन आयोग ने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान विशिष्ट क्षेत्रों में सुधार करने के उद्देश्य से नौ कार्यकारी समूह गठित किये, इन समूहों द्वारा कुल 337 सिफारिशें प्रस्तुत की गई, जिनमें से अभी तक 300 को लागू किया जा चुका है।
उम्मीदवार के संबंध में
- निर्वाचन आयोग के कार्यकारी समूह ने यह सुझाव दिया है कि झूठे शपथ-पत्र दाखिल करने वाले उम्मीदवारों की सज़ा को छह महीने से बढ़ाकर दो वर्ष कर दिया जाए और यदि उम्मीदवारों को भ्रष्टाचार, जघन्य अपराधों में दोषी पाया जाता है तो उसे स्थायी रूप से अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिये।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) की धारा 8 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध के अंतर्गत दोषी पाया जाता है और उसे कारावास हो जाता है तो वह सज़ा सुनाने की तिथि से अयोग्य घोषित माना जाएगा एवं उसकी सज़ा पूर्ण होने के पश्चात् भी वह 6 वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकता है।
- सूचीबद्ध अपराधों में निषिद्ध वस्तुओं का आयात या निर्यात, खाद्य दवाओं में मिलावट, अस्पृश्यता का अभ्यास, आतंकवादी कृत्य, भ्रष्टाचार आदि शामिल हैं।
आदर्श आचार संहिता में संशोधन
- भारतीय आदर्श आचार संहिता का निर्माण सभी राजनीतिक दलों की आम सहमति का परिणाम है। निर्वाचन आयोग के एक समूह ने पार्टियों की घोषणा-पत्रों में निरर्थक वादों को नियंत्रित करने हेतु आयोग को नोटिस जारी करने की शक्ति का समर्थन किया।
- इसके अतिरिक्त निर्वाचन संबंधी निर्णयों के निपटारे हेतु न्यायालयों की स्थापना का समर्थन किया जो राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से सरकारी पदनामों के दुरूपयोग को भी नियंत्रित करेंगे।
- कुछ लंबित सिफारिशों में मतदान के दौरान प्रयोग होने वाली स्याही (जो एक सींक की सहायता से प्रयोग की जाती है) के स्थान पर अमिट मार्कर पेन का इस्तेमाल किये जाने का समर्थन किया है। इस पेन की स्याही का परीक्षण विभिन्न उच्चस्तरीय प्रयोगशालाओं द्वारा किया जाएगा।
- निर्वाचन प्रक्रिया अवधि को कम करने के संदर्भ में भी एक सुझाव दिया गया है जिसमें कहा गया है कि राज्य में क्षेत्रीय स्तर पर जनसंख्या संबंधी आँकड़ों और निर्वाचन क्षेत्र में मौसम की स्थिति, विद्यार्थियों के परीक्षा कार्यक्रम और त्योहारों जैसे कारकों की पहचान कर, प्रत्येक राज्य में मतदान को बढ़ावा देते हुए और अधिक सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
राजनीतिक दलों के लिये दिशा-निर्देश
- निर्वाचन आयोग के कार्यकारी समूह ने राजनीतिक दलों के पंजीकरण के संबंध में भी सुझाव दिये, जिसके अनुसार किसी दल को निर्वाचन आयोग द्वारा पंजीकृत होने के लिये आवश्यक सदस्यों की संख्या को 100 से बढ़ाकर 1,000 किया जाना चाहिये।
- यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव में अपना एक भी प्रत्याशी नहीं उतारता है तो उस दल के पंजीकरण को निरस्त कर दिया जाना चाहिये। इसके साथ ही चुनाव के दौरान होने वाली फंडिंग को नियंत्रित करने के लिये एक कानूनी प्रावधान के तहत फास्ट ट्रैक कोर्ट्स (Fast Track Courts) की स्थापना की जानी चाहिये, जो प्रत्याशियों के चुनावी व्ययों एवं अन्य मामलों का निस्तारण करेगा।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951)
- चुनावों का वास्तविक आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं।
- इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1961 बनाए गए हैं।
- इस कानून और इसमें निहित नियमों में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने, चुनाव कराने की अधिसूचना के मुद्दे, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जाँच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किये गए हैं।
क्या है आदर्श आचार संहिता?
- मुक्त और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र की बुनियाद होती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावों को एक उत्सव जैसा माना जाता है और सभी सियासी दल तथा मतदाता मिलकर इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं। चुनावों की इस आपाधापी में मैदान में उतरे उम्मीदवार अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिये सभी तरह के हथकंडे आज़माते हैं।
- सभी उम्मीदवार और सभी राजनीतिक दल मतदाताओं के बीच जाते हैं। ऐसे में अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को रखने के लिये सभी को बराबर का मौका देना एक बड़ी चुनौती बन जाता है, लेकिन आदर्श आचार संहिता इस चुनौती को कुछ हद तक कम करती है।
- चुनाव की तारीख की घोषणा होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है और चुनाव का परिणाम आने तक जारी रहती है। दरअसल, ये वे दिशा-निर्देश हैं, जिन्हें सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है। इनका उद्देश्य चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष एवं साफ-सुथरा बनाना और सत्ताधारी दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना है।
सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना भी आदर्श आचार संहिता के उद्देश्यों में शामिल है।
- आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये आचरण एवं व्यवहार का पैरामीटर माना जाता है।
- दिलचस्प बात यह है कि आदर्श आचार संहिता किसी कानून के तहत नहीं बनी है, बल्कि यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनी और विकसित हुई है।
- वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया।
- इसके बाद वर्ष 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसका अनुपालन करने को कहें और कमोबेश ऐसा हुआ भी।
- चुनाव आयोग समय-समय पर आदर्श आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों से चर्चा करता रहता है, ताकि इसमें सुधार की प्रक्रिया बराबर चलती रहे।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
विश्व तंबाकू निषेध दिवस
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 31 मई को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और वैश्विक साझेदारों द्वारा विश्व तंबाकू निषेध दिवस (World No Tobacco Day-WNTD) मनाया जाता है। वार्षिक रूप से आयोजित होने वाला यह अभियान तंबाकू के हानिकारक उपयोग और घटक प्रभाव के विषय में जागरूकता फैलाने तथा किसी भी रूप में तंबाकू के उपयोग को हतोत्साहित करने का एक अवसर है।
WNTD का फोकस
विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2019 का फोकस ‘तंबाकू और फेफड़ों के स्वास्थ्य’ (Tobacco and Lung Health) पर है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य सिगरेट तथा अन्य साधनों के माध्यम से तंबाकू उपभोग से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता प्रसारित करना है। अकाल मृत्यु होने के रोके जाने वाले सबसे बड़े कारणों में से तंबाकू सेवन भी एक है, इससे फेफड़ों को नुकसान पहुँचता है, जो अकाल का मृत्यु का कारण बनता है। यह गंभीर और अक्सर घातक स्थितियों जैसे कि हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर उत्पन्न वाले मुख्य कारणों में से एक है।
तंबाकू के उपयोग से होने वाली बीमारी
- फेफड़ों का कैंसर
- COPD (पुरानी प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग)
- हृदय की बीमारी
- आघात (स्ट्रोक)
- दमा
- महिलाओं में प्रजनन संबंधी प्रभाव
- समय से पहले, जन्म लेने वाले कम वज़न के बच्चे
- मधुमेह
- अंधापन और मोतियाबिंद
- बृहदान्त्र (colon), गर्भाशय, ग्रीवा, यकृत, पेट और अग्नाशय के कैंसर सहित 10 से अधिक प्रकार के कैंसर के लिये भेद्यता
तंबाकू में रसायनिक यौगिक
- तंबाकू के धुएँ में हज़ारों रसायन पाए जाते हैं, जिनमें कम-से-कम 70 रसायन कैंसर के कारण होते हैं।
- तंबाकू के धुएँ में पाए जाने वाले कुछ रसायनों में शामिल हैं:
- निकोटीन (एक रासायनिक यौगिक)
- हाइड्रोजन साइनाइड (Hydrogen cyanide)
- फॉर्मलडेहाइड (formaldehyde)
- लीड/सीसा
- आर्सेनिक
- अमोनिया
- रेडियोधर्मी तत्त्व, जैसे कि यूरेनियम
- बेंजीन
- नाइट्रोसेमिन (Nitrosamine)
- कार्बन मोनोऑक्साइड
- पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन (Polycyclic aromatic hydrocarbons-PAHs)
तंबाकू जाँच में राजस्थान को WHO पुरस्कार
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने तंबाकू नियंत्रण (Tobacco Control) के क्षेत्र में राजस्थान सरकार के चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग की उपलब्धियों को मान्यता देते हुए इस वर्ष के पुरस्कार के लिये चुना है।
- चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 2018-19 के दौरान स्कूलों, कॉलेजों, पुलिस स्टेशनों और सरकारी कार्यालयों जैसे स्थानों पर तंबाकू सेवन के विरुद्ध कई अभियान संचालित किये हैं।
भारत में तंबाकू के उपयोग की स्थिति

स्रोत- द हिंदू
विविध
जल संरक्षण: पारंपरिक दृष्टिकोण
चर्चा में क्यों?
वर्तमान में जल संकट को देखते हुए भारत को अपने राष्ट्रीय जल आपातकाल से संबंधित विकास मॉडल को पुनः परिभाषित करने की तत्कालिक आवश्यकता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, राष्ट्रीय जल आपातकाल के खतरों का मुकाबला करने के लिये जल संरक्षण की पारंपरिक विधि एकमात्र स्थायी तरीका है।
प्रमुख बिंदु
- भारत में जल संसाधन समुचित मात्रा में उपलब्ध हैं, साथ ही यहाँ पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है जिसके संरक्षण की पारंपरिक विधि से लोग भलीभाँति परिचित हैं।
- जल को पूजनीय मानकर विभिन्न अनुष्ठानों, सांस्कृतिक प्रथाओं आदि में इसका उपयोग किया जाना एक सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। जो जल के उपयोग संबंधी ज्ञान के आधार पर हमारी पारंपरिक विरासत के मूल्य की पुष्टि करता है।
जल एवं महिलाएँ
- महिलाओं का जल पारिस्थितिकी से विशेष संबंध है।
- आइकॉनिक बुक "आज भी खरे हैं तालाब" जिसमें वर्तमान समय में तालाबों की प्रासंगिकता को स्पष्ट किया गया है, के कवर पेज पर बने टैटू जिसे दिवंगत वाटरमैन अनुपम मिश्रा द्वारा तैयार किया गया था, को 'सीता बावड़ी' कहा जाता है।
- टैटू के केंद्र में इनलेट स्रोत है जिसमें से चारों ओर लहरें फैलती हुई प्रदर्शित हो रही हैं। केंद्र में नाभिक, जो कि ऊर्जा का स्रोत है तथा चार कोनों में पत्थर के फूल उकेरे गए हैं, जो जीवन की आवश्यक सुगंध का प्रतीक हैं।
- महिलाओं द्वारा बड़ी संख्या में निर्मित जल निकायों में कुएँ, टैंक और यहाँ तक कि तालाब भी शामिल हैं, जैसे- पाटन, गुजरात में क्वींस स्टेप-वेल (रानी की वाव) और जोधपुर में रानी और पदम सागर।
- कर्नाटक में यागति और नागामंडला नामक टैंक के निर्माण का भी उल्लेख प्राप्त हुआ है।
- शिमला इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज़ के अंतर्गत महिलाओं और पानी की सामुदायिक संस्कृति का वर्णन किया गया है जिसमें उत्तराखंड में गंगा यात्रा के साथ महिलाएँ ‘गंगा गीत’ के गायन के साथ विशिष्ट नृत्य करती हैं।
जल का सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व
- पानी की शुचिता और स्वच्छता कई क्षेत्रों में विस्तारित है।
- उत्तराखंड में ऐसा माना जाता है कि सभी सिंचाई चैनलों में पानी की आत्मा (मसान) मौजूद है जो फसलों की सुरक्षा के लिये आवश्यक है।
- राजस्थान में मानसून के पहले एक पर्व मनाया जाता है जिसे ‘लसिपा’ कहते हैं। इस पर्व के दौरान गाँव के समस्त लोग एकत्र होकर सभी जल निकायों की सफाई करते हैं, उनकी देखभाल करते हैं। अंततः यह अनुष्ठान एक सामुदायिक दावत के साथ समाप्त होता है।
- इसी तरह गणगौर और अक्खा तीज के त्योहारों के दौरान महिलाएं झीलों और टैंकों को एक साथ मिलकर साफ करती हैं।
भवाई नृत्य
- राजस्थान का भवाई नृत्य जो मुख्यतः शीतला माता को प्रसन्न करने के लिये किया जाता है, में एक नर्तकी सिर पर कलश लेकर प्रदर्शन करती है, यह पारंपरिक रूप से एक कहानी से संबंधित है।
जल का सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व
- अरुणाचल प्रदेश में ज़ीरो घाटी की प्राचीन ‘अपातानी जनजाति’ इसका एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करती है। वे धान के साथ मछली की सह-खेती करते हैं जो सदियों से एशिया के कई हिस्सों में पाए जाते हैं।
- ‘अपातानी जनजाति’ की कृषि प्रणाली जानवरों और आधुनिक मशीनों के बिना ही संपन्न होती है।
- जीरो वैली एक पठार है, जहाँ घरों के उपयोग तथा कृषि सिंचाई के लिये पानी का मुख्य स्रोत एक छोटी नदी और कुछ जल-कुएँ है। सिंचाई हेतु नहरों और चैनलों के एक नेटवर्क के माध्यम से पूरी घाटी में धान के खेतों की सिंचाई की जाती है।
- मतौर पर महिलाएँ इन खेतों का प्रबंधन करती हैं। धान के खेतों में इस्तेमाल होने वाला यह पानी बहकर घाटी में और खेतों में जाता है। बाद में पुनः वापस उस छोटी धारा में विलीन हो जाता है जो नदी में वापस मिलती है। इस तरह से यह घाटी में पानी का बारहमासी स्रोत है। घाटी में धान के क्षेत्र में आधुनिक संरचनाओं का निर्माण नहीं करने के लिये सख्त नियमों का पालन किया जाता है क्योंकि यह पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित करेगा।
- इसी प्रकार विभिन्न जातियों जन-जातियों द्वारा पानी के उपयोग को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने एवं संरक्षित करने का प्रयास किया गया है।
सामुदायिक स्वामित्व
- उपरोक्त सांस्कृतिक परंपराएँ जल संबंधी ज्ञान/विधि की महत्वपूर्ण और प्रमुख विशेषताओं के साथ-साथ सामुदायिक स्वामित्व, भागीदारी और ज़िम्मेदारी को दर्शाती हैं।
- विभिन्न अध्ययनों ने जल के प्रति जागरूकता को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रदर्शित किया है जिसके तहत पारंपरिक अभ्यास को विकास मॉडल की कुंजी के रूप में दर्शाया गया है।
- भारत में वर्षा की विविधता के कारण कहीं पर वार्षिक वर्षा लगभग 200 सेमी. होती है तो कहीं पर यह केवल 75 से 100 मिमी. होती है। जहाँ पर वार्षिक वर्षा कम होती है वहाँ समाज के सभी सदस्य पानी की हर बूँद को महत्व देते हैं।
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स्रोत- द हिंदू
भारतीय विरासत और संस्कृति
समर राग
चर्चा में क्यों ?
दुनिया भर में अभी भी वसंत के मौसम को विभिन्न प्रकार के रागों के लिये याद किया जाता है लेकिन गर्मी के मौसम के रागों को लोग भूल गए हैं। राग को संगीत के टीका संग्रह के रूप में परिभाषित किया जाता है जो एक विशेष क्रम और पैमाने में विशिष्ट मधुर लय के रूप में व्यवस्थित होते हैं।
- उत्तर भारत में रागों को मिज़ाज, मौसम और समय के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है; जबकि दक्षिण भारत में रागों को उनके पैमानों के तकनीकी लक्षणों द्वारा वर्गीकृत किया जाता है।
- ऐसे प्रमुख राग जो भारत में गर्मियों के मौसम से जुड़े हैं निम्नलिखित हैं-
- राग मारवा: इसे दोपहर के समय से सूर्यास्त तक गाया जाता है।
- राग सारंग: यह अपने सभी रूपों में गर्मी से जुड़ा एक राग है, जिसे तब गाया जाता है जब दिन के समय गर्मी अपने चरम पर होती है। यह राग विशेष रूप से ग्रीष्म ऋतु के लिये ही है।
- ध्रुपद शैली ‘हवेली संगीत’
ध्रुपद
- जहाँ ध्रुपद की उत्पत्ति तेरहवीं- चौदहवीं शताब्दी की मानी जाती है, वहीं सोलहवीं-सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में इसका प्रचार अपने चरमोत्कर्ष पर था।
- ध्रुपद शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- ध्रुव और पद। ध्रुव अर्थात् अचल, अटल, स्थायी, निश्चित तथा पद का अर्थ है साहित्योक्तियाँ। इस प्रकार ध्रुपद एक प्रकार की गीतिका है, जिसमें स्वर, शब्द (पद) को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अतः ध्रुपद एक शब्द-प्रधान गीत है। इसे अचल पदों वाली गायकी भी कहते हैं।
- ध्रुपद को हिंदूस्तानी राग-दरबारी संगीत के उच्चतम श्रेणी के गीत का प्रकार माना जाता है। ध्रुपद गायन राग की शुद्धता, स्वर तथा शब्द के शुद्ध उच्चारण, गमक, ताल और लयबद्धता इत्यादि तत्त्वों पर आधारित है। कदाचित इस शैली के आधारभूत तत्त्वों की संरचना स्वर, शब्द, ताल और भाव के समुचित प्रयोग द्वारा ही संभव है।
- ध्रुपद की गायन शैली गंभीर होती है ध्रुपद गाने में फेफड़ों पर बहुत ज़ोर पड़ता है, इसके लिये शक्ति की आवश्यकता होती है। इसीलिये इसे ‘मर्दाना गायन’ कहते हैं।
हवेली संगीत
- हवेली संगीत राजस्थान में नाथद्वारा के वैष्णवों द्वारा मंदिरों में गाया जाने वाला संगीत है।
- नाथद्वारा वैष्णव भक्ति पंथ का मुख्य स्थान है जहाँ मंदिर-आधारित संगीत की समृद्ध ऐतिहासिक परंपरा स्थापित है।
- यहाँ एक महल को ‘हवेली’ के रूप में संदर्भित किया गया है जहाँ देवता निवास करते हैं।
- ध्रुपद की तुलना में हवेली संगीत को राजस्थान और गुजरात में जाना जाता है, जो कि अपनी श्रेष्ठता का दावा करता है क्योंकि ऐसा माना जाता था कि इसके प्रदर्शन के दौरान स्वयं भगवान कृष्ण दर्शक के रूप में उपस्थित होते थे।
- इस संगीत अभ्यास में गीत का सार कृष्ण भक्ति के इर्द-गिर्द घूमता है और इसे कीर्तन, भजन तथा भाव नृत्य के रूप में जाना जाता है।
- यह शास्त्रीय और लोक संगीत के एकीकरण के लिये जाना जाता है, गायन की प्रमुख शैली अभी भी ध्रुपद और धमार (एक ताल) है।
- वृंदावन में राधा वल्लभ मंदिर, नंदगाँव में कृष्ण, बरसाना में श्री राधा रानी और नाथद्वारा में श्री नाथजी सभी को हवेली संगीत के साथ प्रतिबिंबित किया जाता है।
- गुजरात में एक विचारधारा का मानना है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति इस शैली के अग्रणी वल्लभाचार्य के हवेली संगीत से हुई।
वल्लभाचार्य
- यह उत्तरी और पश्चिमी भारत के व्यापारी वर्ग के बीच हिंदू धर्म की एक शाखा है।
- इसके सदस्य 16वीं सदी के शिक्षक वल्लभ और उनके बेटे विठ्ठल (जिसे गोसाईंजी के नाम से भी जाना जाता है) द्वारा स्थापित शाखा एवं पुष्टिमार्ग समूह के अनुयायी हैं।
- वल्लभाचार्य संप्रदाय अपने गुरुओं (आध्यात्मिक नेताओं) द्वारा दी गई भक्ति की शिक्षा के लिये प्रसिद्ध है, जिन्हें भगवान का सांसारिक अवतार माना जाता है।
- संप्रदाय का मुख्य मंदिर नाथद्वारा, राजस्थान में है, जहाँ श्रीनाथजी नाम से भगवान कृष्ण की एक विशिष्ट छवि है।
स्रोत- द हिंदू
सामाजिक न्याय
मल्टीपल स्क्लेरोसिस क्लिनिक स्थापित करेगा एम्स
चर्चा में क्यों?
मल्टीपल स्क्लेरोसिस के बेहतर निदान और उपचार के लिये एम्स पहला मल्टीपल स्क्लेरोसिस (Multiple Sclerosis) क्लिनिक खोलने की योजना बना रहा है।
प्रमूख बिंदु
- हालाँकि यह बीमारी पश्चिम के देशों में अधिक प्रचलित रही है, लेकिन हाल के दिनों में भारत में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं।
- 20-40 वर्ष आयु वर्ग के वयस्क, विशेष रूप से महिलाएँ मल्टीपल स्क्लेरोसिस की चपेट में आती हैं।
- भारत में जागरूकता बढ़ाने, बड़े पैमाने पर इस महामारी के संबंध में अध्ययन करने, समर्पित मल्टीपल स्क्लेरोसिस क्लीनिक खोलने, इष्टतम पुनर्वास आदि जैसी अन्य सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।
मल्टीपल स्क्लेरोसिस (Multiple sclerosis)
- मल्टीपल स्क्लेरोसिस एक ऐसा रोग है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही माइलिन (वसायुक्त पदार्थ जो तंत्रिका तंतुओं के चारों और स्थित होता है तथा आवरण के रूप में काम करता है), तंत्रिका तंतुओं तथा शरीर में माइलिन का निर्माण करने वाली विशेष कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाती है।
- यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, विशेष रूप से मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और दृष्टि से संबंधित नसों को प्रभावित करती है।
लक्षण: चूँकि इसके लक्षण सामान्य होते हैं, इसलिये लोग अक्सर इस बीमारी को जल्दी पहचान नहीं पाते हैं। इस बीमारी के निदान में कई साल लग जाते हैं।
- मांसपेशियों की कमज़ोरी और अकड़न।
- मूत्राशय की समस्याएँ: मरीज़ को मूत्राशय में समस्या महसूस होती है, बार-बार या अचानक पेशाब करने की आवश्यकता होती है।
- मूत्राशय पर नियंत्रण का खत्म हो जाना इस बीमारी का प्रारंभिक संकेत है।
- आंत्र संबंधी समस्याएँ
- थकान, चक्कर आना
- रीढ़ की हड्डी में क्षतिग्रस्त तंत्रिका तंतु
- धुंधली या दोहरी दृष्टि की समस्या
- भावनात्मक परिवर्तन और अवसाद, संज्ञानात्मक (निर्णय लेने में समस्या) नुकसान
कारण: बीमारी का सटीक कारण अज्ञात है। निम्नलिखित कारक यह बीमारी पैदा कर सकते हैं:
- आनुवंशिक कारक
- धूम्रपान और तनाव
- विटामिन D और B12 की कमी
निदान: रक्त परीक्षण और एमआरआई के साथ इसका निदान किया जा सकता है।
उपचार: एमएस को किसी भी सर्जिकल उपचार की आवश्यकता नहीं होती है और इसे दवाओं के माध्यम से ठीक किया जा सकता है।
स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
वेल बीइंग बजट
चर्चा में क्यों ?
जनवरी में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की वार्षिक बैठक (Annual Meeting) में न्यूज़ीलैंड ने आर्थिक विकास की नई अवधारणा अपनाने की वकालत की थी। इस दिशा में न्यूज़ीलैंड ने अपना वादा पूरा करते हुए अपने पहले वेल बीइंग बजट (Well-being budget) के कार्यन्वयन की रूपरेखा को पेश किया है।
वेल बीइंग बजट (Well-being budget)
- यह बजट केवल जीडीपी (GDP) आधारित विकास को नागरिक कल्याण के लिये पर्याप्त नहीं मानता है।
- यह अवधारणा दीर्घकालिक उपायों के स्थान पर ऐसे उपाय अपनाने का समर्थन करती है जिसका परिणाम अल्पकालिक अवधि में प्राप्त हो।
- इन अल्पकालीन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु इस वर्ष (2019) कुछ प्राथमिकताओं को तय किया गया है जैसे- न्यूज़ीलैंड की अर्थव्यवस्था को न्यून लेकिन सतत्त रूप से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करना, डिजिटल युग में संपन्न देशों का समर्थन करना, बालग़रीबी को कम करना, माओरी और पैसिफिक आय (Māori and Pacific Income), कौशल, एवं अवसर की अवधारणा को हटाना और न्यूज़ीलैंड के प्रत्येक निवासी हेतु मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) की उपलब्धता को सुनिश्चित करना।
- इस बजट में मानसिक स्वास्थ्य, बाल गरीबी (Child Poverty) एवं पारिवारिक हिंसा ( Family Violence) से राहत देने के लिये अरबों रुपए के पैकेज की घोषणा की गई है।
- संवृद्धि एवं विकास को मापने का यह नया पैमाना नए प्रकार के पूंजीवाद ( Capitalism) की दिशा में एक वैश्विक कदम है।
- यह अवधारणा केवल वृद्धि और विकास की परंपरागत शैली की बात न करके इस बात पर बल देती है कि संबंधित देश के नागरिक कैसे आगे बढ़ रहे हैं, उनका समग्र स्वास्थ्य विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य कैसा है एवं पर्यावरण की स्थिति कैसी है।
- दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला प्रमुख ने कुछ नीतियाँ तय की हैं, जिनमें घरेलू और यौन हिंसा (Domestic and Sexual Violence) की शिकार महिलाओं की मदद करने वाली सेवाओं के लिये $ 200 मिलियन से अधिक का फंड शामिल है।
- वेल बीइंग बजट को चौथी औद्योगिक (Fourth Industrial Revolution) क्रांति एवं भविष्य की सुरक्षा के उद्देश्य से अपनाना विश्व आर्थिक मंच का महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
- विश्व आर्थिक मंच जीडीपी की प्रासंगिकता पर विचार के साथ-साथ जटिल होते जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की स्थिति को नियंत्रित करने हेतु उन्नत प्रौद्योगिकी जैसे मुद्दों पर भी गंभीर है ताकि वेल बीइंग बजट के महत्त्व को रेखांकित किया जा सके।
- वैश्विक स्तर पर कुछ देशों ने विकास के इस पैमाने को पहले से ही अपना रखा है।
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की अगर बात की जाए तो इसने खुशी (Happiness) के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम ( National Programme) और इसे क्रियान्वित करने हेतु एक मंत्री (Minister of State for Happiness) की भी नियुक्ति की जाती है।
- इसका एजेंडा तीन स्तंभों पर आधारित है: सभी सरकारी निकायों की नीतियों, कार्यक्रमों और सेवाओं में खुशी को शामिल करना, जीवन शैली में सकारात्मकता और खुशी को बढ़ावा देना तथा खुशी को मापने के लिए बेंचमार्क और उपकरणों का विकास करना।
- भूटान की सकल राष्ट्रीय खुशहाली का मापन मनोवैज्ञानिक कल्याण, स्वास्थ्य, शिक्षा, समय का उपयोग, सांस्कृतिक विविधता, सुशासन, सामुदायिक जीवन शक्ति, पारिस्थितिक विविधता और जीवन स्तर पर आधारित होता है। इस मापन का प्रयोग नीति-निर्माण और नीतियों के प्रभाव की पहचान के लिये भी किया जाता है।
स्रोत: वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत- किर्गिज़स्तान
चर्चा में क्यों ?
कश्मीर की समस्या एवं UNO में भारत की स्थायी सदस्यता (Permanent Seat) जैसे मुद्दों पर भारत का समर्थन करने वाला किर्गिज़स्तान, भारत का एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझीदार है। नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में अतिथि के तौर पर आमंत्रित किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति (President) सूरोनबे जीनबेकोव (Sooronbay Jeenbekov) वर्तमान में शंघाई कोऑपेरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (Shanghai Cooperation Organization) के अध्यक्ष हैं। भारत ने रक्षा उपकरणों (Defence Equipment) की खरीद के लिये किर्गिज़स्तान को $ 100 मिलियन की राशि देने का फैसला किया है। यह राशि पूर्व में रक्षा खरीद के लिये दी गयी राशि से अधिक है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- किर्गिज़स्तान ने भारत से अपने द्विपक्षीय (Bilateral Relationship) एवं रणनीतिक संबंध (Strategic Relationship) को अधिक मज़बूत और गहरा बनाने हेतु अपने रक्षा उपकरणों की खरीद के लिये भारत से अनुरोध किया था| साथ ही किर्गिज़स्तान के शहर बाल्कि (Balykchy) में संयुक्त पर्वतीय युद्ध प्रशिक्षण केंद्र ( Joint Mountain Warfare Training Centre) के निर्माण का भी प्रस्ताव रखा था।
- किर्गिज़स्तान द्वारा एक राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त करने के साथ भारत-किर्गिज़स्तान संबंधों की शुरुआत हुई|
- किर्गिज़स्तान एक स्वतंत्र देश के रूप में वर्ष 1991 में अस्तित्व में आया।
- भारत वर्ष 1992 से ही किर्गिज़स्तान का कूटनितिक साझीदार (Diplomatic Ties) रहा है।
- 1992 में राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से दोनों देशों ने कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये। इनमें संस्कृति, व्यापार, आर्थिक सहयोग, नागरिक उड्डयन (Civil Aviation), निवेश संवर्द्धन और संरक्षण (Investment Promotion and Protection), दोहरे कराधान से बचाव (Avoidance of Double Taxation), कांसुलर कन्वेंशन (Consular Convention) आदि शामिल हैं।
- वर्ष 2011 में 'खंजर' नामक संयुक्त युद्धाभ्यास (Joint Exercises) श्रृंखला शुरू हुई।
- 2016-17 में भारत और किर्गिज़स्तान के बीच वाणिज्यिक व्यापार $ 24.98 मिलियन था।
- 2016-2017 के वित्तीय वर्ष में किर्गिज़स्तान के लिये भारतीय निर्यात 22.66 मिलियन डॉलर का था, जबकि किर्गिज़स्तान का भारत में निर्यात $ 3.32 मिलियन था।
- भारत द्वारा किर्गिज़स्तान में परिधान, कपड़ा, चमड़े का सामान, ड्रग्स और औषधियाँ, परिष्कृत रसायन और चाय का निर्यात किया जाता है।
- किर्गिज़स्तान द्वारा भारत में कच्चे खाल, धातु के अयस्क और धातु स्क्रैप का निर्यात किया जाता है।
- किर्गिज़स्तान के विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में लगभग 9,000 भारतीय छात्र चिकित्सा अध्ययन कर रहे हैं।
- इसके अलावा, किर्गिज़स्तान में रहने वाले कई व्यापारी हैं जो व्यापार और कई अन्य सेवाओं में कार्यरत हैं।
- किर्गिज़स्तान, शंघाई कोऑपेरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन में भारत की भूमिका का समर्थन करता है।
- भारत और किर्गिज़स्तान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के साथ-साथ चाबहार समुद्री बंदरगाह निर्माण हेतु परिवहन, निर्माण कार्य, परिचालन, सरलीकरण की प्रक्रिया में तेज़ी लाई जा रही है | इस कार्य से द्विपक्षीय संबंध प्रगाढ़ होने के साथ-साथ दोनों देशों के मध्य संपर्क सूत्र भी मज़बूत होंगे।
- किर्गिज़स्तान मध्य एशिया का एक देश है जो उत्तर और पश्चिम में कज़ाखस्तान, पूर्व और दक्षिण में चीन और दक्षिण एवं पश्चिम में ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान द्वारा घिरा हुआ है।
- किर्गिज़स्तान की राजधानी बिश्केक है। किर्गिज़स्तान की फ़रगना घाटी का विस्तार उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान तक है।
- फरगना घाटी में कई आतंकवादी समूह जैसे- इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज़्बेकिस्तान (IMU), हिज्ब-उत-ताहिर (HUT) इत्यादि सक्रिय हैं। ये आतंकवादी संगठन अस्थिरता उत्पन्न कर सकते हैं।
- फरगना घाटी के आतंकवादियों की भूमिका तालिबान प्रायोजित हिंसक वारदातों में भी होती है।
- मध्य एशिया क्षेत्र खनिज पदार्थ विशेषकर हायड्रोकार्बन में समृद्ध है। मध्य एशिया क्षेत्र में भारत के भू-रणनीतिक और आर्थिक हित है।
- ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में मध्य एशिया और भारत के बीच सहयोग की भावी संभावनाएँ बहुत महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती हैं।
- कार (Central Asia Region) और अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता भारत की सुरक्षा के लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: इकॉनमिक टाइम्स
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (31 May)
- 30 मई को नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने लगातार दूसरी बार भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। वह देश के 15वें प्रधानमंत्री बने हैं। राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनके साथ 24 कैबिनेट और 33 राज्यमंत्रियों (9 मंत्रियों को स्वतंत्र प्रभार) को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
नरेंद्र मोदी | प्रधानमंत्री |
राजनाथ सिंह | रक्षा मंत्री |
अमित शाह | गृह मंत्री |
नितिन गडकरी | सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय |
सदानंद गौड़ा | रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय |
निर्मला सीतारमण | वित्त एवं कॉरपोरेट मामले का मंत्रालय |
एस. जयशंकर | विदेश मंत्री |
राम विलास पासवान | उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय |
नरेंद्र सिंह तोमर | कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय |
रविशंकर प्रसाद | कानून एवं न्याय, संचार और इलेक्ट्रानिक एवं सूचना मंत्रालय |
हरसिमरत कौर बादल | खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय |
रमेश पोखरियाल निशंक | मानव संसाधन विकास मंत्रालय |
थावर चंद गहलोत | सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय |
अर्जुन मुंडा | आदिवासी मामलों का मंत्रालय |
स्मृति ईरानी | महिला एवं बाल विकास और कपड़ा मंत्रालय |
हर्षवर्धन | स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भूविज्ञान मंत्रालय |
प्रकाश जावड़ेकर | पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय |
पीयूष गोयल | रेलवे और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय |
धर्मेंद्र प्रधान | पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस और इस्पात मंत्रालय |
मुख्तार अब्बास नकवी | अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय |
प्रह्लाद जोशी | संसदीय मामले, कोयला और खान मंत्रालय |
महेंद्र नाथ पांडेय | कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय |
अरविंद सावंत | भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय |
गिरिराज सिंह | पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय |
संतोष गंगवार | श्रम और रोजगार मंत्रालय |
राव इंद्रजीत सिंह | सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन और नियोजन मंत्रालय |
श्रीपद नाईक | आयुष मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार), रक्षा मंत्रालय (राज्य मंत्री) |
जितेंद्र सिंह | पूर्वोत्तर विकास (स्वतंत्र प्रभार), PMO, कार्मिक, जनशिकायत और पेंशन, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष मंत्रालय (राज्य मंत्री) |
किरण रिजिजू | युवा मामले एवं खेल (स्वतंत्र प्रभार), अल्पसंख्यक मामले (राज्य मंत्री) |
प्रह्लाद सिंह पटेल | संस्कृति और पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार) |
आर.के. सिंह | बिजली, नवीन एवं नवीकरणीय उर्जा (स्वतंत्र प्रभार), कौशल विकास एवं उद्यमिता (राज्य मंत्री) |
हरदीप सिंह पुरी | शहरी विकास और नागरिक उड्डयन मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (राज्य मंत्री) |
मनसुख मंडाविया | जहाजरानी (स्वतंत्र प्रभार), रसायन एवं उर्वरक (राज्य मंत्री) |
फग्गन सिंह कुलस्ते | इस्पात राज्य मंत्री |
अश्विनी चौबे | स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री |
जनरल (रिटायर) वी.के. सिंह | सड़क, परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री |
कृष्ण पाल गुज्जर | सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण राज्य मंत्री |
दानवे रावसाहेब | उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री |
जी. किशन रेड्डी | गृह राज्य मंत्री |
पुरुषोत्तम रुपाला | कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री |
रामदास अठावले | सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण राज्य मंत्री |
साध्वी निरंजन ज्योति | ग्रामीण विकास राज्य मंत्री |
बाबुल सुप्रियो | पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री |
संजीव कुमार बलियान | पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन राज्य मंत्री |
धोत्रे संजय शमराव | मानव संसाधन विकास, संचार और इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री |
अनुराग सिंह ठाकुर | वित्त और कॉरपोरेट मामले राज्य मंत्री |
सुरेश अंगादि | रेल राज्य मंत्री |
नित्यानंद राय | गृह राज्य मंत्री |
वी. मुरलीधरन | विदेश, संसदीय कार्य राज्य मंत्री |
रेणुका सिंह | आदिवासी मामलों की राज्य मंत्री |
सोम प्रकाश | वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री |
रामेश्वर तेली | खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री |
प्रताप चंद्र सारंगी | सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम और पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन राज्य मंत्री |
कैलाश चौधरी | कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री |
देबाश्री चौधरी | महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री |
अर्जुन राम मेघवाल | संसदीय कार्य, भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम राज्य मंत्री |
रतन लाल कटारिया | जलशक्ति और सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण राज्य मंत्री |
- ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भुवनेश्वर में एक सार्वजनिक समारोह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन्होंने लगातार पाँचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। शपथ ग्रहण समारोह से पहले ओडिशा के राज्यपाल गणेशी लाल ने नवीन पटनायक की सिफारिश पर 11 कैबिनेट मंत्रियों और 9 राज्य मंत्रियों की नियुक्ति की। लोकसभा के साथ हुए विधानसभा चुनाव में नवीन पटनायक के बीजू जनता दल (BJD) ने 147 विधानसभा सीटों में से 112 सीटों पर जीत दर्ज की, जो 2014 के विधानसभा चुनाव से पाँच कम हैं। गौरतलब है कि नवीन पटनायक से पहले मात्र दो मुख्यमंत्री- पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु और सिक्किम में पवन चामलिंग पाँच बार मुख्यमंत्री रहे।
- अरुणाचल प्रदेश में भाजपा के पेमा खांडू कोएक बार फिर विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद राज्यपाल बी.डी. मिश्रा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। ज्ञातव्य है कि सामरिक रूप से बेहद अहम राज्य अरुणाचल प्रदेश में सितंबर 2016 में कॉन्ग्रेस के 43 विधायकों ने एक साथ पार्टी छोड़ दी थी और मुख्यमंत्री पेमा खांडू के साथ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए थे। वर्ष 1962 से पहले अरुणाचल प्रदेश को नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) के नाम से जाना जाता था और यह असम का एक हिस्सा हुआ करता था। वर्ष 1965 तक इस राज्य का प्रशासन विदेश मंत्रालय देखता था। वर्ष 1972 में अरुणाचल प्रदेश केंद्रशासित राज्य बना और 20 फरवरी 1987 को इसे भारत का 24वाँ राज्य बनाया गया। अरुणाचल प्रदेश में पहला विधानसभा चुनाव वर्ष 1978 में हुआ था।
- 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस दुनियाभर में मनाया गया। विश्व में तंबाकू के सेवन को कम करने वाली प्रभावी नीतियों का प्रसार करने और तंबाकू के उपयोग से जुड़े स्वास्थ्य एवं अन्य जोखिमों को उजागर करने के लिये प्रतिवर्ष 31 मई को यह दिवस मनाया जाता है। सर्वप्रथम इस दिवस का आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 1987 में तंबाकू से होने वाली हानियों और उसके कारण होने वाले रोगों और मृत्यु के प्रति विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिये किया था। ज्ञातव्य है कि भारत वैश्विक स्तर पर तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है तथा विश्व में तंबाकू से होने वाली मौतों में 1/6 हिस्सा भारत का है। भारत में तंबाकू की समस्या विस्तृत सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता के साथ विभिन्न प्रकार के धुआंरहित तंबाकू सेवन और तंबाकू सेवन के प्रकारों के कारण बेहद जटिल है। इस वर्ष विश्व तंबाकू निषेध दिवस की थीम Tobacco and Lung Health रखी गई है।
- 29 मई को विश्वभर में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय शांति सैनिक दिवस (International Day of UN Peacekeepers) मनाया गया। इस अवसर पर युद्ध से तबाह देशों तथा समाज में शांति और सुरक्षा स्थापित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले सैनिकों के कार्यों की सराहना तथा सम्मान के लिये कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। यह दिवस वर्ष 1948 से संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के अधीन कार्यरत शांति सैनिकों को संपूर्ण विश्व में शांति स्थापित करने हेतु उनके प्रयासों के लिये मनाया जाता है। वर्ष 2003 में पहली बार यह दिवस मनाया गया था। वर्ष 2019 के लिये इस दिवस की थीम Protecting Civilians, Protecting Peace रखी गई है।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने 29 मई को नई दिल्ली में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (INSA) में आयोजित एक समारोह में विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित विज्ञान की चार लोकप्रिय पुस्तकों का विमोचन किया। इन पुस्तकों में ‘वॉयज टू अंटार्कटिका’, ‘स्टोरी ऑफ कॉन्शसनेस’, ‘एन ऑटोबायोग्राफी ऑफ मून’ तथा ‘शंभूनाथ डे- द डिस्कवरी ऑफ कॉलरा टॉक्सिन’ शामिल हैं। कॉलरा टॉक्सिन की खोज में शंभूनाथ डे की ओर से किये गए प्रयासों को उनके अपने देश में ही नहीं जाना जाता। ‘वॉयज टू अंटार्कटिका’ अंटार्कटिका के बारे में प्रामाणिक पुस्तकों में से एक है। ‘स्टोरी ऑफ कॉन्शसनेस’ लाखों वर्षों में हुए मानव चेतना के विकास को दर्शाती है तथा ‘एन ऑटोबायोग्राफी ऑफ मून’ कहानी सुनाने के प्रारूप में है, जहाँ चंद्रमा पाठकों को अपनी विशेषताओं के बारे में बता रहा है।