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जैव विविधता और पर्यावरण

जल संकट का वैश्विक आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव

  • 25 May 2019
  • 6 min read

पृष्ठभूमि

आर्थिक विकास की होड़ में ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा दे रहे देशों को विश्व बैंक ने चेतावनी दी है। हाल ही में जारी वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन से इस सदी के मध्य तक स्वच्छ जल दुर्लभ हो जाएगा, अर्थव्यवस्थाएँ सिकुड़ जाएंगी और भारत तथा चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ पश्चिमी देशों की अपेक्षा इससे सर्वाधिक प्रभावित होंगी।

  • जलवायु परिवर्तन, जल एवं अर्थव्यवस्था पर विश्व बैंक के द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट ‘हाई एंड ड्राईः क्लाइमेट चेंज, वाटर एंड द इकोनॉमी’ में कहा गया है कि बढ़ती जनसंख्या, बढ़ती आय और शहरों के विस्तार से पानी की मांग में भारी बढ़ोतरी होगी, जबकि आपूर्ति अनियमित और अनिश्चित रहेगी।
  • भारत में पानी का उपयोग अधिक कुशलता और किफायत से किये जाने पर बल देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में पानी की किल्लत से पानी की मांग बढ़ेगी।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में जब ज़बी  मीन के नीचे पानी का स्तर गिरने से सिंचाई के लिये पानी कम और महँगा हो गया, तो किसान फसल प्रणाली में बदलाव और पानी के बेहतर उपयोग का रास्ता अपनाने के बजाय शहरों की ओर विस्थापन करने लगे।
  • रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग से गर्मी और बारिश बढ़ेगी तथा हिमपात कम होगा जिससे नदियों की जलापूर्ति प्रभावित होगी। समुद्र स्तर बढ़ेगा और खारा जल भू-जल को प्रदूषित करेगा जिससे भू-जल स्तर गिरेगा तथा खारेपन में वृद्धि होगी।
  • विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम के अनुसार आर्थिक वृद्धि और विश्व की स्थिरता के लिये जल संकट बड़ा खतरा है तथा जलवायु परिवर्तन इस समस्या को और बढ़ा रहा है। यदि देश अपने जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिये पहल नहीं करेंगे तो हमारे विश्लेषण के अनुसार बड़ी आबादी वाले बड़े क्षेत्रों में आर्थिक वृद्धि में गिरावट का लंबा सिलसिला शुरू हो सकता है।
  • विश्व बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री रिचर्ड दमानिया के अनुसार मानसून के बारे में जलवायु मॉडल पर आधारित अनुमानों में काफी विभिन्नता है। इसलिये भारत और पश्चिम एशिया के लोगों को मानसून का ठीक-ठीक पता नहीं हो पाता? यदि जलवायु परिवर्तन को अलग भी कर दिया जाए तो भारत के लिये अनुमानों से संकेत मिलता है कि जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण (जो उल्लेखनीय रूप से तेज़ हैं) और आर्थिक वृद्धि से पानी की मांग बढ़ेगी।

विकासशील देशों में जल संकट

  • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार जल संकट का सर्वाधिक प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ेगा क्योंकि विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि तीव्र गति से हो रही है और विशाल आबादी वाले देशों के लिये यह सबसे बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
  • 2050 तक मध्य पूर्व के देश तथा अफ्रीका के साहेल क्षेत्र के देश की ळक्च् में 6% तक की कमी देखी जा सकती है जिसके पीछे जल की कमी से जुड़े कारक जिम्मेदार होंगे।
  • नवीनतम आँकड़ों के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को भारत के औपचारिक समर्थन के पहले से जलवायु परिवर्तन, जल सिंचाई में बेतहाशा इस्तेमाल और बढ़ती जनसंख्या के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में भू-जल तेजी से कम हो रहा है।
  • विश्व बैंक ने कहा है कि एक आकलन के मुताबिक भूमिगत जल की पंपिंग का भारत के कुल कार्बन उत्सर्जन में चार से छह फीसदी का योगदान है।
  • पानी के वर्तमान संकट के लिये बढ़ता हुआ ग्रीन हाऊस इफेक्ट भी जिम्मेदार है, पानी के वर्तमान जल स्तर के 20 प्रतिशत के लिये जलवायु परिवर्तन प्रमुख कारण है।
  • विश्व मौसम संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार ग्रीन हाऊस गैसों के बढ़ते उत्सर्जनों के कारण इस सदी में धरती के ताप में 1.4 डिग्री सेंटीग्रेड से 5.8 डिग्री सेंटीग्रेड ताप की वृद्धि अवश्यंभावी है।

निष्कर्ष

रिपोर्ट के मुताबिक जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन और आवंटन कर भारत समेत अन्य एशियाई देश आने वाले जल संकट से बच सकते हैं। साथ ही विश्व बैंक ने स्वच्छ पानी पर टैक्स लगाकर जल की बर्बादी को रोकने का सुझाव दिया है।

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