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डेली न्यूज़

  • 30 Jan, 2020
  • 36 min read
शासन व्यवस्था

कर्नाटक का अंधविश्वास विरोधी अधिनियम

प्रीलिम्स के लिये:

कर्नाटक का अंधविश्वास विरोधी अधिनियम

मेन्स के लिये:

भारत में अंधविश्वास संबंधी कुप्रथाएँ

चर्चा में क्यों?

  • कर्नाटक सरकार ने 4 जनवरी, 2020 को औपचारिक रूप से ‘अमानवीय प्रथाओं तथा काला जादू की रोकथाम और उन्मूलन अधिनियम, 2017, (Karnataka Prevention and Eradication of Inhuman Evil Practices and Black Magic Act, 2017) को अधिसूचित किया।

मुख्य बिंदु:

  • यह विवादास्पद अंधविश्वास विरोधी अधिनियम वर्ष 2017 में पारित किया गया था इसे 6 दिसंबर, 2017 को राज्यपाल की अनुमति प्राप्त हुई तथा वर्तमान सरकार द्वारा 4 जनवरी, 2020 को औपचारिक रूप से अधिसूचित किया गया।
  • इस अधिनियम को राज्य के समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है।

अधिनियम की पृष्ठभूमि:

  • इस अधिनियम को वर्ष 2013 में ‘कर्नाटक अंधविश्वास विरोधी विधेयक, 2013’ (Karnataka Anti Superstition Bill, 2013) के रूप में लाया गया था।
  • नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (National Law School of India University- NLSIU) के एक विशेषज्ञ पैनल ने सामाजिक बहिष्कार और समावेशी नीति पर अध्ययन करते हुए वर्ष 2013 में पहली बार इस कानून का मसौदा विधेयक पेश किया जिसमें एक दर्ज़न से अधिक अंधविश्वासों को रेखांकित किया गया।
  • हालाँकि मसौदे के सार्वजनिक होने के बाद कई विपक्षी दलों ने इसका धार्मिक आधार पर विरोध किया।
  • धार्मिक नेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा विरोध किये गए शुरूआती मसौदे में निम्नलिखित प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाए गए थे-
    • पुजारियों को पालकी में ले जाना।
    • धर्मगुरुओं की चरण-वंदना करना।
    • मदे स्नान को रोकना।
    • वास्तु, ज्योतिष और हस्तरेखा विज्ञान पर प्रतिबंध।

मदे स्नान

(Made Snana):

यह दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र में प्रचलित एक परंपरा है जहाँ श्रद्धालु अपनी मनौतियों को पूरा करने के लिये उच्च जातियों द्वारा खाए गए भोजन के अवशेषों पर लोटते हुए स्नान करते हैं।

  • वर्ष 2014 और 2016 में राज्य सरकार द्वारा लाए गए विधेयक के मसौदों को भी विरोध का सामना करना पड़ा।

वर्तमान अधिनियम:

  • अंततः वर्ष 2017 में राजनीतिक तौर पर सर्वसम्मति वाला एक विधेयक तैयार किया गया।
  • इस अधिनियम में धार्मिक स्थानों पर वास्तु, ज्योतिष, प्रदक्षिणा या पवित्र स्थानों की परिक्रमा संबंधी कार्यों को बाहर रखा गया है।
  • ‘मदे स्नान’ की प्रक्रिया को इस अधिनियम के तहत स्वैच्छिक कर दिया है तथा बचे हुए भोजन को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं करने के लिये इसे संशोधित किया गया है।
  • वर्ष 2017 के इस अधिनियम के तहत कुल 16 प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिनमें से कुछ प्रमुख प्रथाएँ निम्नलिखित हैं-
    • महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान पूजा घरों और घरों में उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध लगाना।
    • लोगों को आग पर चलने के लिये मजबूर करना।
    • लोगों को दुष्ट घोषित करके उनकी पिटाई करना।

सज़ा का प्रावधान:

  • यह अधिनियम न्यूनतम एक वर्ष से अधिकतम सात वर्ष तक के कारावास तथा न्यूनतम पाँच हजार से अधिकतम पचास हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान करता है।
  • इस कानून को राज्य पुलिस द्वारा पुलिस स्टेशनों में सतर्कता अधिकारियों की नियुक्ति के साथ लागू किया जाना है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है यह अधिनियम?

  • कुछ लोगों का मत हो सकता है कि प्रस्तावित कानून संविधान के अनुच्छेद 25 (प्रत्येक व्यक्ति को अन्तःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप में मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का अधिकार) का उल्लंघन करता है। हालाँकि इसे एक उचित प्रतिबंध के रूप में देखा जाना चाहिये, क्योंकि इससे सार्वजनिक हित सुनिश्चित होता है।
  • कर्नाटक में इस कानून को मज़बूती से लागू करने के लिये राज्य सरकार गंभीर है। कुप्रथाओं के उन्मूलन में कानूनी प्रावधानों की उपयोगिता अवश्य है, लेकिन समाज से अंधविश्वासों को जड़ से समाप्त करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिये हमें शिक्षा, तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देना होगा।

आगे की राह:

  • अल्पावधिक सुधारों के लिये हमें ऐसे कानूनों की आवश्यकता है जो इन कुरीतियों का अंत करने में सहायक हों।
  • कुप्रथाओं के दीर्घकालिक सुधार हेतु शिक्षा, तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देना होगा।

प्राचीनकाल से ही दुनिया भर में अंधविश्वास व्याप्त रहा है। अंधविश्वास एक तर्कहीन विश्वास है जिसका आधार अलौकिक प्रभावों की मनगढ़ंत व्याख्या है। इन अंधविश्वासों पर अधिकांश भारतीयों का अत्यधिक विश्वास है जो प्रायः आधारहीन होते हैं।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा ऑनलाइन सेवाओं की शुरुआत

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

मेन्स के लिये:

ई-शासन के संदर्भ में NCRB द्वारा शुरू की गई सेवाओं का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau-NCRB) द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस के माध्यम से नागरिकों के लिये दो सेवाओं की शुरूआत की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • इन दोनों सेवाओं को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (Crime and Criminal Tracking Network & Systems-CCTNS ) के माध्यम से संचालित किया जाएगा।
  • इन सेवाओं का मुख्य उद्देश्य लापता व्यक्तियों की खोज तथा वाहनों के लिये अनापत्ति प्रमाण पत्र (No Objection Certificate-NOC) प्राप्त करना है।

मिसिंग पर्सन सर्च’ और ‘जनरेट व्हीकल NOC सेवाएँ :

  • ‘मिसिंग पर्सन सर्च’ और ‘जनरेट व्हीकल NOC’ दोनों ही सेवाओं को लोगों द्वारा नागरिक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से प्राप्त किया जा सकेगा।
  • राज्यों में इस तरह की सेवाएँ पहले से ही राज्य नागरिक पोर्टल्स के माध्यम संचालित की जा रही हैं।
  • यह पहली बार है जब केंद्र द्वारा इस तरह की सवाओं को राष्ट्रीय स्तर पर शरू किया गया है।
  • ये दोनों सेवाएँ नागरिकों को 'digitalpolicecitizenservices.gov.in' पोर्टल या फिर पहले से मौजूद 'डिजिटल पुलिस पोर्टल' की मदद से प्राप्त हो सकेगीं ।
  • मिसिंग पर्सन सर्च सेवा के तहत लोगों की खोज के लिये पोर्टल में ज़रूरी विवरण दिया जा सकता है जिसके बाद यह सिस्टम देश में मौजूदा राष्ट्रीय डेटाबेस के माध्यम से खोज का कार्य शरू करेगा तथा फोटो और अन्य विवरण के साथ संबंधित परिणाम के बारे में जानकारी प्रदान करेगा।
  • जनरेट व्हीकल NOC सेवा नागरिकों को अन्य व्यक्ति से वाहन खरीदते समय यह सुनिश्चित करने में मदद करेगी कि खरीदा गया वाहन पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज है अथवा नहीं। यह जानकारी वाहन के विवरण के आधार पर राष्ट्रीय डेटाबेस में दर्ज की जा सकेगी।
  • वाहन के स्वामित्व के हस्तांतरण से पहले RTO के लिये आवश्यक प्रासंगिक NOC को कोई भी जनरेट और डाउनलोड कर सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

कणिका पदार्थ प्रदूषण

प्रीलिम्स के लिये:

कणकीय पदार्थ प्रदूषण

मेन्स के लिये:

लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

लैंसेट प्लेनेटरी हेल्थ (Lancet Planetary Health) रिपोर्ट के अनुसार सूक्ष्म कणिका पदार्थ प्रदूषण (Low Particulate Matter Pollution) की मात्रा में हुई सूक्ष्म वृद्धि हृदय (Heart) के लिये हानिकारक/घातक हो सकती है।

मुख्य बिंदु:

  • लैंसेट द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, PM2.5 (Particulate Matter-PM) की मात्रा में प्रति 10,g/m3 सूक्ष्म कणिका पदार्थ की वृद्धि के साथ कार्डियक अरेस्ट (Cardiac Arrest) का खतरा 1 से 4% तक बढ़ जाता है। सूक्ष्म कणिका पदार्थों में यह वृद्धि साँस एवं हृदय संबंधी बीमारियों से संबंधित है।
  • रिपोर्ट के अनुसार वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करने के बावजूद वायु प्रदूषण का कोई भी स्तर कार्डियक अरेस्ट के लिये सुरक्षित नहीं है।
  • लैंसेट द्वारा इस अध्ययन को जापान में किया गया क्योंकि जापान में इस तरह के अध्ययन के लिये सबसे बड़ा अनुसंधान केंद्र है।
  • अध्ययन के लिये कार्डियक अरेस्ट और PM 2.5, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO2), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड(NO2) और सल्फर डाइऑक्साइड(SO2) एक्सपोज़र को एक साथ सहसंबद्ध किया गया था।
  • रिपोर्ट जारी किये जाने से एक दिन पहले और तीन दिन बाद तक के प्रदूषण के स्तर को अध्ययन में शामिल किया गया।

इस संदर्भ में WHO के मानक:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) द्वारा कार्डियक ईवेंट के संबंध में 1 जनवरी, 2014 से 31 दिसंबर, 2015 के मध्य एक विश्लेषण किया गया।
  • अध्ययन हेतु वैज्ञानिकों द्वारा जापान को चुना गया और यहाँ हृदय आघातों (कार्डियक अरेस्ट) एवं प्रदूषक के स्तर की निरंतर एवं विस्तृत माप एक साथ की गई थी।
  • इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों के भीतर या निर्धारित मानकों से कम स्तर पर हृदय रोगों के मामलों और प्रदूषण स्तर के बीच संबंध का पता लगाना था।
  • रिपोर्ट में 90% से अधिक हृदय आघात का कारण PM 2.5 का कम स्तर था। रिपोर्ट के अनुसार, वृद्ध लोग ह्रदय आघात के प्रति अधिक संवेदनशील थे।
  • हृदय आघात से प्रभावित लोगों की औसत आयु 74 वर्ष थी जिनमे 57% पुरुष शामिल थे।

भारत के संदर्भ में:

  • स्वास्थ्य प्रभाव संस्थान (HEI) द्वारा प्रकाशित स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 के अनुसार भारत में वर्ष 2017 में 1.2 मिलियन से अधिक मौतों का कारण आउटडोर और इनडोर वायु प्रदूषण है।
  • भारत में वायु प्रदूषण सभी स्वास्थ्य जोखिमों में मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है जिसका स्थान धूम्रपान से ठीक पहले है।

कणकीय पदार्थ प्रदूषण-

ये अपने आकार के आधार पर कई प्रकार के होते है जिनमें मुख्य रूप से शामिल हैं-

  • एरोसोल (Aerosole)
  • धूम्र एवं कालिख (Fume and Soots)
  • धूलि/PM (Particulate Matter)
  • फ्लाई ऐश (Fly Ash)
  • निलंबित कणकीय पदार्थ (Suspended Particulate Matter-SPM) इत्यादि

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक

प्रीलिम्स के लिये:

एवनगार्ड मिसाइल, हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक

मेन्स के लिये:

रक्षा क्षेत्र में तकनीक का योगदान, शस्त्रीकरण प्रतिस्पर्द्धा से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

27 दिसंबर, 2019 को रूस ने अपने नए हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन (Hypersonic Glide Vehicle- HGV) एवनगार्ड (Avangard) को रूसी सेना में शामिल किया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • रूस का दावा है कि यह परमाणु-सशस्त्र HGV ध्वनि की गति से 20 गुना अधिक तेज़ी से उड़ सकता है और इस तरह के युद्धाभ्यास के लिये सक्षम है जो संभावित प्रतिकूल परिस्थितियों में बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस के लिए अभेद्य है।
  • अमेरिका इस तकनीक के संदर्भ में अनुसंधान से विकास के चरण में प्रवेश कर रहा है और चीन ने अक्तूबर 2019 में सैन्य परेड में एक मध्यम दूरी की मिसाइल DF-17 का प्रदर्शन किया। ध्यातव्य है कि अगले कुछ वर्षों में ऐसी क्षमता का समावेश अपरिहार्य होगा।

हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक से संबंधित राष्ट्र को लाभ

  • हाइपरसोनिक मिसाइल नवीनतम एवं अत्यंत तीव्र होने के कारण इसे शत्रु देश के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (Ballistic Missile Defense- BMD) प्रणाली द्वारा ट्रेस (Trace) नहीं किया जा सकता है। यह युद्ध काल में संबंधित राष्ट्र को अजेय बढ़त दिला सकती है।
  • इस तकनीक के कारण संबंधित देश की वैश्विक छवि एक सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित होगी तथा इसके कारण उसे सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में सफलता मिलेगी।

हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक से संबंधित वैश्विक चुनौतियाँ

  • इस मिसाइल तकनीक को उन देशों की सैन्य क्षमताओं से जोड़ा जा रहा है जिनके पास परमाणु हथियार हैं। ध्यातव्य है कि इस मिसाइल की अत्यंत तीव्र गति के कारण इसे इंटरसेप्ट करना अत्यंत मुश्किल है जिसके कारण यह अन्य परमाणु संपन्न देशों के लिये बड़ी चुनौती है।
    • इसके अतिरिक्त इन मिसाइलों के लक्ष्य एवं इनके द्वारा ले जाई जाने वाली युद्ध सामग्री का भी पता नही लगाया जा सकता है।
    • दोनों ही मामलों में यह पता लगाना मुश्किल है कि मिसाइल पारंपरिक है या परमाणु संपन्न तथा उसका लक्ष्य क्या है। इस प्रकार अन्य परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों के लिये राष्ट्र की सुरक्षा के साथ अपने परमाणु हथियारों की सुरक्षा भी एक बड़ी चुनौती होगी।
    • इन चुनौतियों के कारण अन्य देशों को सदैव आक्रमण के लिये तैयार एवं अलर्ट (Alert) रहना पड़ेगा। इस तरह के बदलाव से संकट के क्षणों में गलत धारणा और गलतफहमी संबंधी जोखिम भी बढ़ेंगे।
  • हाइपरसोनिक मिसाइल का विकास विश्व में एक रक्षा दुश्चक्र का निर्माण कर सकता है। ध्यातव्य है कि विकसित एवं तकनीक संपन्न राष्ट्र इन मिसाइलों का निर्माण करेंगे तथा इनको इंटरसेप्ट करने की तकनीक भी खोजेंगे। इस प्रकार लगातार इस दिशा में संघर्ष जारी रहेगा। ध्यातव्य है कि अमेरिका अपने बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (Ballistic Missile Defense- BMD) को सशक्त करने, मिसाइल का निर्माण एवं हाइपरसोनिक तकनीक को काउंटर करने के लिये रणनीति तैयार कर रहा है।
  • इस तकनीक के विकास के कारण बाह्य अंतरिक्ष में भी युद्ध की संभावना उत्पन्न होगी तथा अंतरिक्ष में हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलेगा।
  • इस प्रकार इस तकनीक का प्रवर्तन विश्व को अस्थायी लाभ तो प्रदान करेगा किंतु विश्व एक जटिल जाल में फँस जाएगा।
  • भारत को अपनी स्वयं की निवारक आवश्यकताओं का एक कूल-हेडेड मूल्यांकन करने की ज़रूरत है और बुद्धिमानी से अपने रास्ता स्वयं चुनना होगा।

रूसी हाइपरसोनिक मिसाइल (एवनगार्ड) प्रणाली के बारे में

  • एवनगार्ड, हाइपरसोनिक श्रेणी का मिसाइल सिस्टम है।
  • (हाइपरसोनिक श्रेणी = ध्वनि की गति से 5 गुना या उससे अधिक तेज़)
  • एवनगार्ड मिसाइल सिस्टम दो हिस्सों से मिलकर बना है जिसमें हमलावर मिसाइल को एक अन्य बैलिस्टिक मिसाइल पर री-एंट्री बॉडी की तरह ले जाया जाता है।
  • यह मिसाइल हमले से पूर्व के अंतिम क्षणों में तेज़ी से अपना मार्ग बदलने में सक्षम है जिसके कारण इसके लक्ष्य का पूर्वानुमान लगाना और इसे निष्क्रिय करना लगभग असंभव है।
  • यह मिसाइल सिस्टम 6000 किमी. दूर स्थित लक्ष्य को सफलतापूर्वक नष्ट कर सकता है और लगभग 2000 किग्रा. भार के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है।
  • इसके साथ ही यह मिसाइल 2000°C तक तापमान सहन कर सकती है।
  • इस मिसाइल में स्क्रैमजेट इंजन का प्रयोग किया गया है जिससे यह MACH-27 या ध्वनि की गति से 27 गुना अधिक तेज़ गति से हमला करने में सक्षम है।
  • औपचारिक अनावरण से पहले इसे “Project 4202” के नाम से भी जाना जाता था।
  • मार्च 2018 में रूसी राष्ट्रपति ने घोषणा की थी कि रूस अगली पीढ़ी की मिसाइलों का परीक्षण कर रहा है और एवनगार्ड भी इसी कार्यक्रम का हिस्सा है।

हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में भारत की स्थिति

  • विश्व के अन्य राष्ट्रों की भाँति भारत भी अपनी रक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये प्रयासरत है, इसी दिशा में रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) ने भारत की अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक मिसाइलों का निर्माण शुरू कर दिया है।
  • इसके लिये DRDO ‘विंड टनल’ में तकनीक का परीक्षण करेगा। ध्यातव्य है कि इसके माध्यम से भारत रक्षा मामलों में आत्मनिर्भरता की स्थिति सुनिश्चित करना चाहता है।

आगे की राह

  • वैश्विक स्तर पर परमाणु निःशस्त्रीकरण की दिशा में कदम उठाया जाना चाहिये तथा अंतर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों को वार्ता के माध्यम से हल करने का प्रयास करना चाहिये।
  • विकसित एवं विकासशील दोनों प्रकार के देशों को शस्त्रीकरण की होड़ के बजाय आपसी समन्वय से मुद्दों को सुलझाने एवं विकासात्मक रणनीतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देशों को स्वयं के मतभेदों को भूलकर परमाणु निःशस्त्रीकरण, जलवायु परिवर्तन, भुखमरी, गरीबी, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

CCTNS हैकथॉन और साइबर चैलेंज 2020

प्रीलिम्स के लिये:

CCTNS हैकथॉन और साइबर चैलेंज 2020

मेन्स के लिये:

साइबर सुरक्षा से संबंध चुनौतियाँ तथा इस संदर्भ में CCTNS हैकथॉन और साइबर चैलेंज 2020 का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau-NCRB) तथा साइबर पीस फाउंडेशन द्वारा अपराध और आपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम, (Crime and Criminal Tracking Network & Systems-CCTNS) हैकथॉन और साइबर चैलेंज 2020 की एक रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • इस हैकथॉन का मुख्य उद्देश्य ज़मीनी स्तर पर कानून प्रवर्तन कर्मियों Law Enforcement Personnel) के कौशल और ज्ञान में वृद्धि करना है।
  • इस हैकथॉन का आयोजन प्रतिभागियों को एक अनूठा अनुभव प्रदान करने, उनके कौशल और ज्ञान को उद्योग और शिक्षा के साथ समन्वित करने के लिये किया गया है।
  • इस हैकथॉन के आयोजन के साथ ही राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो में एक साइबर टिपलाइन निगरानी (Cyber Tipline Monitoring) सुविधा केंद्र का उद्घाटन भी किया गया।
  • NCRB और नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉईड चिल्ड्रेंस (National Centre for Missing and Exploited Children’s- NCMEC), अमेरिका के मध्य इस कार्य के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
  • NCMEC अमेरिकी कांग्रेस द्वारा स्थापित एक गैर लाभकारी संगठन है।
  • इसकी अपनी एक केंद्रीकृत रिपोर्टिंग प्रणाली है जो विश्व में फेसबुक, यूट्यूब जैसी इंटरनेट सेवाएँ प्रदान करने के साथ ही चाइल्ड पोर्नोग्राफी की छवियों को प्रसारित करने वाले व्यक्तियों के बारे में भी सूचनाएँ प्रदान करती है।

आगे की राह:

  • वर्तमान समय में अपराध और तकनीक के बीच संबंध अधिक स्पष्ट है। डिजिटल प्रौद्योगिकियों और इंटरनेट ने न केवल साइबर अपराधों को बढ़ावा दिया है बल्कि उन्हें और अधिक परिष्कृत कर दिया है।
  • नवीनतम तकनीक के उपयोग में दक्ष होने से कानून प्रवर्तन एजेंसियों को साइबर अपराध को ट्रैक करने, जाँच करने और इनसे निपटने के लिये इन तरीकों को अपनाना आसान होगा।

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति

प्रीलिम्स के लिये:

राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति, बजट, नॉमिनल GDP, GDP

मेन्स के लिये:

राजकोषीय नीति और सरकारी प्रयास, राजकोषीय घाटे को कम करने की दिशा में उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में सरकार बजट तैयार करने में व्यस्त है तथा पिछले कुछ वर्षों में सरकार के बजट अनुमान और वास्तविक आँकड़ों में व्यापक अंतर रहने के कारण राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति (Fiscal Marksmanship) एक बार फिर चर्चा का विषय बना है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सर्वप्रथम राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति शब्द का उल्लेख आर्थिक सर्वेक्षण 2012-13 में किया गया था।
  • 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये बजट प्रस्तुत किया जाएगा। इस बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था को मौजूदा मंदी से उबारना और वर्ष 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य प्राप्त करना बजट निर्माताओं के समक्ष बड़ी चुनौती होगी।

राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति से आशय

  • राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति अनिवार्य रूप से राजस्व, व्यय और घाटा आदि जैसे राजकोषीय मापदंडों के सरकार के पूर्वानुमान की सटीकता को संदर्भित करता है।
  • दूसरे शब्दों में यदि सरकार के बजट में अनुमानित कर राजस्व और वास्तविक कर राजस्व में बड़ा अंतर आता है तो उसे खराब राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति कहा जाएगा।
  • यह शब्द वर्ष 2012-13 के आर्थिक सर्वेक्षण में रघुराम राजन द्वारा उपयोग में लाया गया था। उन्होंने राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति को "सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में वास्तविक परिणामों और बजटीय अनुमानों के बीच अंतर" के रूप में परिभाषित किया था।

राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति का क्या महत्त्व है?

  • चूँकि बजट की विश्वसनीयता उसके आँकड़ों में निहित होती है तथा सार्वजनिक रूप से बजट या वार्षिक वित्तीय विवरण का लोकतंत्र में खुलासा करने और विधायिका से अनुमोदन प्राप्त करने का केंद्रीय उद्देश्य नीति निर्धारण और शासन को पारदर्शी एवं भागीदारीपूर्ण बनाना है।
  • गौरतलब है कि बजट आँकड़ों के अनुमान और आकलन पर आधारित होता है तथा एक वर्ष बाद वास्तविक आँकड़ों के साथ उसका मिलान किया जाता है जिसके बाद लक्ष्य प्राप्ति का आकलन किया जाता है।
  • यदि राजकोषीय अनुमान बार-बार विफल होंगे अर्थात् बजट अनुमान अधिक व प्राप्ति कम होगी तो, इससे नागरिकों में बजट के प्रति विश्वसनीयता कम होगी। इसलिये राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति का राजकोषीय एवं मौद्रिक नीति निर्धारण में अत्यधिक महत्त्व है।

भारत की राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है?

  • ध्यातव्य है कि वित्तीय वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति कम हो जाती है। उदाहरण के लिये वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने आने वाले वर्षों में बजट के पूर्वानुमानों को प्रभावित किया।
  • पिछले दो बजट अनुमानों (वर्ष 2019-20 के लिये अंतरिम बजट और वर्ष 2019-20 के लिये पूर्ण बजट) में काफी विसंगति है।
  • उदाहरण के लिए जुलाई 2019 के बजट में 2019-20 में नॉमिनल GDP (Nominal GDP) 12% की दर से बढ़ने की उम्मीद की गई थी किंतु जनवरी 2020 में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा फर्स्ट एडवांस एस्टीमेट (First Advance Estimates- FAE) में नॉमिनल GDP में 7.5% की दर से वृद्धि का अनुमान लगाया है।
  • चूँकि बजट की गणना नॉमिनल GDP के आधार पर की जाती है, इसलिये नॉमिनल GDP में व्यापक परिवर्तन का असर संपूर्ण आगामी बजट पर प्रदर्शित होगा। उदाहरण के लिये वर्तमान में सरकार के अनुमान के अनुसार, प्राप्ति के कोई आसार नही दिख रहे हैं नतीज़तन या तो राजकोषीय घाटा बजट आँकड़ों से अधिक हो जाएगा या व्यय आँकड़ा बजट की तुलना में बहुत कम होगा।

राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति में अनियमितता के कारण

  • गौरतलब है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में 1 वर्ष में कमी (या वृद्धि) से राजकोषीय पूर्वानुमान कम या अधिक हो सकता है।
  • वर्ष 2017 में एक संरचनात्मक परिवर्तन किया गया जिसके अंतर्गत बजट प्रस्तुत करने की तिथि को फरवरी के अंतिम सप्ताह या 28 या 29 फरवरी के स्थान पर फरवरी के पहले सप्ताह या 1 फरवरी कर दिया गया है जो कि लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ा बाधक बना है।
  • इस संदर्भ में सरकार का तर्क था कि एक महीने में पूरी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि अगले वित्त वर्ष की शुरुआत में सभी मंत्रालयों के पास धन हो (यानी 1 अप्रैल तक)।
  • लेकिन बजट प्रस्तुत करने की तिथि 1 फरवरी करने से संपूर्ण बजट बनाने की प्रक्रिया को 1 माह पहले शुरू की गई इसका आशय है कि पहले अग्रिम अनुमान, जो जनवरी के अंत तक आते थे (वित्तीय वर्ष की पहली तीन तिमाहियों की आर्थिक गतिविधि को ध्यान में रखते हुए) अब जनवरी की शुरुआत में आने लगे। इस प्रकार आँकड़ों में अनियमितता राजकोषीय पूर्वानुमान और राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति को प्रभावित करता है।

आगे की राह

  • राजकोषीय नीति, मौद्रिक नीति और सरकारी नीतियों में समन्वय की आवश्यकता है।
  • बजट निर्माण की प्रक्रिया में व्याप्त संरचनात्मक समस्याओं को दूर किया जाना चाहिये।
  • राजकोषीय समेकन एवं राजकोषीय घाटा कम करने की दिशा में बेहतर प्रयास किया जाना चाहिये।
  • बजट की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये राजकोषीय लक्ष्य प्राप्ति को बेहतर बनाए जाने की आवश्यकता है और ध्यान रखा जाना चाहिये कि बजट अनुमान एवं प्राप्तियों में ज़्यादा अंतर न हो।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 30 जनवरी, 2020

महात्मा गांधी की पुण्यतिथि

भारत में प्रत्येक वर्ष 30 जनवरी को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी की गोली मारकर हत्‍या कर दी थी। वर्ष 2020 में देश में महात्मा गांधी की 72वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है। अपनी हत्या के समय गांधी जी 78 वर्ष के थे, नाथूराम गोडसे ने दिल्ली स्थित बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा के लिये जाते हुए गांधी जी को गोली मार दी थी। 02 अक्तूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में जन्मे गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।

सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेला

34वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड शिल्प मेले का आयोजन 1 से 16 फरवरी के बीच किया जाएगा। सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले का आयोजन प्रतिवर्ष सूरजकुंड मेला प्राधिकरण तथा हरियाणा पर्यटन विभाग द्वारा केंद्रीय पर्यटन, वस्त्र उद्योग, संस्कृति तथा विदेश मंत्रालय के सहयोग से किया जाता है। इस वर्ष सूरजकुंड मेले का थीम राज्य हिमाचल प्रदेश है। सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले का आयोजन पहली बार वर्ष 1987 में भारत हस्तशिल्प, हथकरघा, सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि एवं विविधता को एक मंच पर प्रदर्शित करने के उद्देश्य से किया गया था। वर्ष 2020 में सूरजकुंड अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले के लिये ‘उज़्बेकिस्तान’ को भागीदार राष्ट्र के रूप में चुना गया है।

जनक राज

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के कार्यकारी निदेशक जनक राज को RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) का सदस्य नियुक्त किया गया है। विदित है कि जनक राज ने समिति के पूर्व सदस्य माइकल देवव्रत पात्रा का स्थान लिया है, जिन्हें हाल ही में केंद्रीय बैंक का नया डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया था। वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने ब्याज दर तय करने के लिये MPC का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता RBI के गवर्नर द्वारा की जाती है।

नगालैंड में युद्ध स्मारक

असम राइफल्स ने नगालैंड में असम राइफल्स के 357 शहीद सैनिकों के लिये एक संयुक्त युद्ध स्मारक का निर्माण किया है। ये सैनिक पूर्वोत्तर राज्य में उग्रवाद से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। स्मारक का निर्माण नगालैंड के मोकोकचुंग शहर में किया गया है जिसे नगालैंड का सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र भी माना जाता है। ‘वीर स्मृति’ नाम का यह युद्ध स्मारक 13500 वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें 357 शहीदों के नाम एक ग्रेनाइट पत्थर पर उकेरे गए हैं।


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