भारतीय राजनीति
विधानसभा सत्र के आह्वान में राज्यपाल की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल के राज्यपाल ने राज्य मंत्रिमंडल द्वारा केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों पर चर्चा के लिये विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने की मांग को खारिज कर दिया है।
प्रमुख बिंदु:
विधानसभा सत्र बुलाने में राज्यपाल की भूमिका संबंधी संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद-174: इसके अनुसार राज्यपाल समय-समय पर राज्य विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो कि वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिये आहूत करेगा।
- यह प्रावधान राज्यपाल को यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी भी देता है कि सदन को प्रत्येक छह माह में कम-से-कम एक बार अवश्य आहूत किया जाए।
- अनुच्छेद-163: यद्यपि अनुच्छेद-163 के तहत राज्यपाल को सदन को बुलाने का विशेषाधिकार प्राप्त है, परंतु राज्यपाल को मंत्रिमंडल की "सहायता और सलाह" पर कार्य करना आवश्यक है।
- अतः जब राज्यपाल अनुच्छेद-174 के तहत सदन को आहूत करता है तो यह उसकी अपनी इच्छा के अनुसार नहीं बल्कि मंत्रिमंडल की "सहायता और सलाह” पर किया जाता है।
- अपवाद (Exception):
- किसी स्थिति में जब ऐसा प्रतीत हो कि मुख्यमंत्री के पास सरकार चलाने के लिये आवश्यक सीटों का बहुमत नहीं है और विधानसभा के सदस्यों द्वारा मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जाता है, तब राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर सदन (या सदनों) को आहूत करने के संदर्भ में निर्णय ले सकता है।
- राज्यपाल द्वारा अपनी विवेकाधीन शक्तियों के तहत लिये गए निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
- किसी स्थिति में जब ऐसा प्रतीत हो कि मुख्यमंत्री के पास सरकार चलाने के लिये आवश्यक सीटों का बहुमत नहीं है और विधानसभा के सदस्यों द्वारा मुख्यमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जाता है, तब राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर सदन (या सदनों) को आहूत करने के संदर्भ में निर्णय ले सकता है।
राज्यपाल की भूमिका के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- वर्ष 2016 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू करने के राज्यपाल के निर्णय के कारण उत्पन्न हुए संवैधानिक संकट की समीक्षा की गई।
- सामान्य परिस्थितियों में जब मुख्यमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद को सदन में पर्याप्त बहुमत प्राप्त हो, तो ऐसे में राज्यपाल को अनुच्छेद-174 के तहत सदन को आहूत करने, स्थगित और भंग करने की अपनी शक्ति का प्रयोग मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से समन्वय बनाए रखते हुए करना चाहिये।
- सदन को आहूत (Summon) करना: सदन को आहूत करने से आशय संसद/विधानसभा के सभी सदस्यों को मिलने के लिये बुलाने की प्रक्रिया है।
- स्थगित करना (Prorogue): स्थगन से आशय सदन के एक सत्र की समाप्ति से है।
- भंग करना (Dissolve): सदन को भंग/विघटन करने से आशय मौजूदा सदन को पूरी तरह समाप्त करने से है, जिसका अर्थ है कि आम चुनाव होने के बाद ही नए सदन का गठन किया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने सदन को 'आहूत करने की शक्ति' की व्याख्या राज्यपाल के "कार्य" के रूप में की है, न कि उसे प्राप्त 'शक्ति' के रूप में।
- सामान्य परिस्थितियों में जब मुख्यमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद को सदन में पर्याप्त बहुमत प्राप्त हो, तो ऐसे में राज्यपाल को अनुच्छेद-174 के तहत सदन को आहूत करने, स्थगित और भंग करने की अपनी शक्ति का प्रयोग मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से समन्वय बनाए रखते हुए करना चाहिये।
राज्यपाल की भूमिका पर सरकारिया आयोग (वर्ष 1983) की रिपोर्ट:
- जब तक एक राज्य की मंत्रिमंडल को विधानसभा में पर्याप्त बहुमत प्राप्त होता है, उसके द्वारा दी जाने वाली सलाह (जब तक स्पष्ट तौर पर असंवैधानिक न हो) का अनुसरण करना राज्यपाल के लिये बाध्यकारी होगा।
- केवल ऐसी स्थिति में जहाँ इस तरह की सलाह के अनुरूप की गई कार्रवाई किसी संवैधानिक प्रावधान के उल्लंघन का कारण बन सकती हो या जहाँ मंत्रिपरिषद ने विधानसभा में बहुमत खो दिया हो, तभी यह सवाल उठता है कि क्या राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार कार्य कर सकता है अथवा नहीं।
केरल के मामले में संभावित परिणाम:
- यदि केरल सरकार सदन का विशेष सत्र बुलाए जाने की अपनी मांग पर अड़ी रहती है तो सदन को आहूत करने से मनाही का कोई कानूनी आधार नहीं हो सकता। क्योंकि:
- सदन को आहूत करने के संदर्भ में राज्यपाल की शक्तियाँ सीमित हैं।
- यदि राज्यपाल द्वारा फिर भी सदन को आहूत करने से मना किया जाता है तो इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
राज्यपाल
- राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियाँ और राज्यपाल के कार्यालय से संबंधित सभी प्रावधानों का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से अनुच्छेद 162 के तहत किया गया है।
- एक व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
- राज्य में राज्यपाल की भूमिका राष्ट्रपति के समान ही होती है।
- राज्यपाल, राज्य के लिये राष्ट्रपति के समान कर्तव्यों का ही निर्वाह करता है।
- राज्यपाल राज्य का कार्यकारी प्रमुख होता है।
- ऐसा माना जाता है कि राज्यपाल पद की दोहरी भूमिका होती है:
- वह राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जो राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य है।
- वह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है।
राज्यपाल पद के लिये योग्यता
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 157 और अनुच्छेद 158 में राज्यपाल पद के लिये पात्रता को निर्दिष्ट किया गया है। जो एस प्रकार है:
- उसे भारत का नागरिक होना चाहिये।
- उसकी आयु कम-से-कम 35 वर्ष होनी चाहिये।
- वह संसद के किसी सदन का सदस्य या राज्य विधायिका का सदस्य न हो।
- किसी राज्य अथवा संघ सरकार के भीतर लाभ का पद न धारण करता हो।
नियुक्ति
- संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार, राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति की मुहर लगे आज्ञा-पत्र के माध्यम से होती है।
कार्यकाल
- सामान्यतः राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, किंतु उसके कार्यकाल को निम्नलिखित स्थिति में इससे पूर्व भी समाप्त किया जा सकता है:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा।
- संविधान में वैध कारण के बिना राज्यपाल के कार्यकाल को समाप्त करने की अनुमति नहीं दी गई है।
- हालाँकि राष्ट्रपति का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे राज्यपाल को बर्खास्त करे, जिसके कृत्यों को न्यायालय ने असंवैधानिक तथा गैर-कानूनी माना है।
- राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर।
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा।
विवेकाधीन शक्तियाँ
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति: सामान्यतः राज्य में बहुमत वाले दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है, किंतु ऐसी स्थिति में जहाँ किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिला हो तो राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति के लिये अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करता है।
- मंत्रिपरिषद को भंग करना: राज्य विधानसभा में विश्वास मत हासिल न करने पर वह मंत्रिपरिषद का विघटन कर सकता है।
- आपातकाल की घोषणा के लिये राष्ट्रपति को सलाह देना: संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्यपाल जब इस तथ्य से संतुष्ट हो जाता है कि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जहाँ राज्य का प्रशासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है तो वह राष्ट्रपति को ‘राज्य में आपातकाल’ अथवा ‘राष्ट्रपति शासन’ लागू करने की सलाह दे सकता है।
- राष्ट्रपति के विचार के लिये किसी विधेयक को आरक्षित करना: यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 200 में ऐसी स्थितियों का उल्लेख किया गया है, जब राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिये किसी विधेयक को आरक्षित किया जा सकता है, किंतु वह इस मामले में अपने विवेक का भी प्रयोग कर सकता है।
- विधानसभा का विघटन: राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 174 के तहत राज्य के विधानमंडल का सत्र आमंत्रित, सत्रावसान और उसका विघटन करता है। जब राज्यपाल इस बात से संतुष्ट होता है कि मंत्रिपरिषद ने अपना बहुमत खो दिया है तो वह सदन को भंग कर सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भूगोल
हिमशैल A68a
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पता चला है कि हिमशैल (Iceberg) A68a दक्षिण जॉर्जिया द्वीप (Georgia Island) के तट की तरफ खिसक रहा है। यह हिमखंड वर्ष 2017 में अंटार्कटिका से अलग हो गया था।
- इससे जॉर्जिया द्वीप के वन्य जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
प्रमुख बिंदु
हिमशैल:
- हिमशैल उसे कहते हैं जो हिमनद (Glacier) या शेल्फ बर्फ (Shelf Ice) से विखंडित होकर खुले पानी में तैरता रहता है।
- हिमशैल समुद्र की धाराओं के साथ तैरते हैं, लेकिन मार्ग में उथला पानी या तटीय क्षेत्र की उपस्थिति में स्थिर हो जाते हैं।
- यू.एस. नेशनल आइस सेंटर (US National Ice Center) एकमात्र ऐसा संगठन है जो अंटार्कटिक हिमखंडों का नामकरण करता है और उन पर नज़र रखता है।
- हिमशैलों का नामकरण उस अंटार्कटिक चतुर्थांश (Antarctic Quadrant) के आधार पर रखा जाता है जिसमें उन्हें देखा जाता है।
हिमशैल A68a :
- हिमशैल A68a का आकार बंद मुट्ठी से इंगित करती हुई एक उंगली की तरह है जो वर्ष 2017 में पश्चिम अंटार्कटिक प्रायद्वीप (West Antarctic Peninsula) के लार्सन आइस शेल्फ (Larsen Ice Shelf) से अलग हो गया था। इस हिमशैल का तापमान पृथ्वी के दक्षिणी महाद्वीप के किसी भी अन्य हिस्से की तुलना में तेज़ी से बढ़ा है।
- आगे बढ़ने पर इससे छोटे हिमखंड अलग होते गए, जिसके बाद शेष बचे हुए बड़े हिस्से को A68a नाम दिया गया जिसका विस्तार लगभग 2,600 वर्ग किमी. क्षेत्र में है।
- हाल ही में A68a से अलग हुए दो हिमशैलों को USNIC द्वारा A68e और A68f नाम दिया गया।
- सभी हिमखंड के टुकड़े दक्षिणी अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट फ्रंट (Southern Antarctic Circumpolar Current Front) नामक पानी की एक तेज़ धारा के साथ बह रहे हैं।
- अंटार्कटिक सर्कम्पोलर धारा (Antarctic Circumpolar Current) दक्षिणी महासागर की सबसे महत्त्वपूर्ण धारा है, यह एकमात्र धारा है जो पृथ्वी के चारों ओर बहती है ।
- यह धारा अंटार्कटिक महाद्वीप के चारों ओर घेरा बनाते हुए अटलांटिक, हिंद और प्रशांत महासागर के दक्षिणी भागों में पूर्व की ओर बहती है।
- यह हिमशैल एक ब्रिटिश प्रवासी क्षेत्र (British Overseas Territory) दक्षिण जॉर्जिया के द्वीप की ओर खिसक रहा है।
- इससे द्वीप पर मौजूद उन स्थानीय वन्यजीवों का विलोपन हो सकता है जो आस-पास के समुद्र से भोजन प्राप्त करते हैं। पेंगुइन और सील को भोजन की तलाश में दूर तक जाना पड़ सकता है।
- खुले समुद्रों में हिमशैल की मौजूदगी के कुछ सकारात्मक परिणाम भी हैं, जैसे- हिमशैलों के साथ इन क्षेत्रों में धूल (Dust) आती है, जो महासागरीय प्लवक (Plankton) के विकास में उर्वरक का काम करती है। प्लवक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के अच्छे अवशोषक होते हैं।
- ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे (British Antarctic Survey) पारिस्थितिकी तंत्र पर A68a के प्रभाव का अध्ययन करने के लिये एक शोध मिशन शुरू करेगा।
- BAS प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद (Natural Environment Research Council) का एक घटक है तथा NERC, यू.के. रिसर्च एंड इनोवेशन (UK Research and Innovation) का हिस्सा है।
- यह ध्रुवीय क्षेत्रों में विश्व को अग्रणी अंतःविषयक अनुसंधान प्रदान करता है।
हिमनद का खंडन
अर्थ:
- खंडन (Calving), ग्लेशियोलॉजिकल (Glaciological) शब्द है, जिसका इस्तेमाल हिमनद के किनारे की बर्फ के टूटने पर किया जाता है।
- पानी (झीलों या महासागरों) पर बहते हिमनद में खंडन की घटना एक सामान्य बात है, लेकिन यह घटना सूखी भूमि पर भी हो सकती है, तब इसे शुष्क खंडन (Dry Calving) कहा जाता है।
प्रक्रिया:
- खंडन की प्रक्रिया से पहले हिमनदों में छोटी दरारों और फ्रैक्चरों (Fractures) की जगह बड़ी दरारें (Crevasses) विकसित होती हैं।
- ये बड़ी दरारें कई खंडों में विभाजित हो जाती हैं और बाद में टूटकर अलग हो जाती हैं, जिन्हें हिमखंड कहा जाता है।
- हिमानी थूथन (Glacier Snout): यह हिमनद का सबसे निचला छोर होता है, जिसे ग्लेशियर टर्मिनस (Glacier Terminus) या पैर की अंगुली (Toe) भी कहा जाता है।
हिमनद के द्रव्यमान संतुलन पर प्रभाव:
- विखंडन, झीलों की समाप्ति वाले हिमनदों में पृथक्करण की एक बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है, जिसका हिमनदों को संतुलित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- पृथक्करण (Ablation): इसका तात्पर्य उन संयुक्त प्रक्रियाओं (संलयन या पिघलने, वाष्पीकरण आदि) से है जो हिमनद की सतह से बर्फ को हटाते हैं।
- ग्लेशियर का द्रव्यमान संतुलन: यह संतुलन हिमनद प्रणाली में हिम में वृद्धि और कमी के कारण होता है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण खंडन की प्रक्रिया में वृद्धि हुई है।
खंडन के हाल के मामले:
- लार्सन आइस शेल्फ (Larsen Ice Shelf) 20वीं शताब्दी के अंत तक (10,000 से अधिक वर्षों से) स्थिर था।
- इसका एक बड़ा हिस्सा वर्ष 1995 में और वर्ष 2002 में टूट गया। इसके पास स्थित विल्किंस आइस शेल्फ (Wilkins Ice Shelf) का खंडन वर्ष 2008 और 2009 में तथा A68a का खंडन 2017 में हुआ।
- हाइड्रोफ्रैक्चरिंग (Hydrofracturing)- इस घटना में पानी दरारों से सतह पर आने लगता है जिससे बर्फ नीचे चली जाती है।
- हाइड्रोफ्रैक्चरिंग पानी के आधार पर विकसित प्रक्रिया है जिसमें उच्च दबाव के साथ पानी को सतह के नीचे की चट्टानों में डाला जाता है।
- इसका विकास तेल और गैस उद्योग के लिये किया गया था ताकि तेल और गैस का उत्पादन बढ़ाया जा सके।
- ड्रिलिंग या हाइड्रोफ्रैक्चरिंग से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की घटना होती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
GST संबंधी नया नियम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने ऐसे व्यवसाय जिनका मासिक टर्नओवर 50 लाख रुपए से अधिक है, के लिये कुल वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) देयता के कम-से-कम 1% का भुगतान नकद में करना अनिवार्य बना दिया है।
- यह 1 जनवरी 2021 से प्रभावी होगा।
प्रमुख बिंदु:
- यह नया नियम 99% तक जीएसटी देयता के निर्वहन के लिये इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credit- ITC) के प्रयोग को प्रतिबंधित करता है।
- CBIC ने ITC से संबंधित धोखाधड़ी के लगभग 12,000 मामले दर्ज किये हैं और अब तक ऐसे मामलों में 365 लोगों को गिरफ्तार किया है।
- इस कदम से नकली बिल के माध्यम से कर चोरी पर अंकुश लगेगा।
- ITC को कच्चे माल, उपभोक्ता सामग्रियों, वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर चुकाए गए कर को स्पष्ट करने के लिये प्रदान किया जाता है। यह दोहरे कराधान और करों के व्यापक प्रभाव से बचने में मदद करता है।
- यह प्रतिबंध इन मामलों में लागू नहीं होगा-
- जहाँ प्रबंध निदेशक या उसके किसी सहयोगी ने आयकर के रूप में 1 लाख रुपए या उससे ज़्यादा कर अदा किया है।
- पंजीकृत व्यक्ति को अप्रयुक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट के कारण पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में 1 लाख रुपए से अधिक की वापसी राशि प्राप्त हुई हो।
- इस तरह नए नियमों के तहत GST प्रणाली में पंजीकृत कुल व्यवसायों में से केवल 0.37 प्रतिशत ही शामिल हैं।
- आँकड़ों की मानें तो GST प्रणाली के तहत पंजीकृत कुल 1.2 करोड़ व्यवसायों में से मात्र 4 लाख व्यवसाय ऐसे हैं, जिनका मासिक टर्नओवर 50 लाख रुपए से अधिक है।
- वर्तमान में इनमें से केवल 1.5 लाख व्यवसाय ही अपनी GST देयता के 1% से कम का नकद में भुगतान करते हैं और नए नियमों के तहत छूट प्राप्त करने के बाद लगभग लगभग 1.05 लाख अतिरिक्त करदाता इस नियम के दायरे से बाहर हो जाएंगे।
- इस तरह नए नियम केवल 40,000 से 45,000 करदाताओं पर ही लागू होंगे।
- आलोचना
- यह आशंका है कि नकद भुगतान को अनिवार्य बनाने से छोटे व्यवसायों पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इससे उनकी कार्यशील पूंजी संबंधी आवश्यकता में बढ़ोतरी होगी और उनके लिये GST एक और अधिक जटिल अप्रत्यक्ष प्रणाली बन जाएगी।
- सरकार का पक्ष
- राजस्व विभाग का मानना है कि नए नियमों से संबंधित सभी आशंकाएँ पूर्णतः निराधार हैं, और इसके कारण केवल संदेहजनक डीलर और अनुत्तरदायी ऑपरेटर ही प्रभावित होंगे।
- सरकार के अनुसार, ये नए नियम नकली चालान और इनपुट टैक्स क्रेडिट में शामिल लोगों की पहचान करने और उन्हें नियंत्रित करने के लिये GST परिषद की कानून समिति में विस्तृत विचार-विमर्श के बाद बनाए गए हैं।
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC)
- यह वित्त मंत्रालय के अधीन राजस्व विभाग का एक हिस्सा है।
- केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBEC) को वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होने के बाद वर्ष 2018 में CBIC के रूप में नामित किया गया था।
- यह मुख्य तौर पर सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, केंद्रीय माल एवं सेवा कर तथा एकीकृत माल एवं सेवाकर के करारोपण एवं संग्रहण से संबंधित कार्य करता है।
स्रोत-द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-कतर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने कतर के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की और दोनों देशों के मध्य आर्थिक तथा सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने पर चर्चा की।
- यह यात्रा भारत की पश्चिम एशिया के लिये जारी आउटरीच का हिस्सा है, जिसे देश अपने विस्तारित पड़ोस के हिस्से के रूप में देखता है।
- कतर खाड़ी सहयोग परिषद का सदस्य है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत और कतर बहुपक्षीय मंचों पर पारस्परिक हित के सभी मुद्दों पर नियमित परामर्श और समन्वय बनाए रखने के लिये सहमत हुए।
- आपसी हित के मुद्दों में ऊर्जा, बिजली, पेट्रोकेमिकल, निवेश, बुनियादी ढाँचा, विकास, परियोजना निर्यात और शिक्षा शामिल हैं।
- इसके अलावा ऊर्जा, व्यापार, निवेश, खाद्य प्रसंस्करण, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, संस्कृति, रक्षा और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में बहुपक्षीय व द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के तरीकों पर चर्चा की गई।
- दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2019-20 में 10.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
- भारत ने COVID-19 महामारी के दौरान भारतीय समुदाय के लोगों की देखभाल करने के लिये कतर को धन्यवाद दिया।
- भारत और कतर ने महामारी के दौरान उच्च स्तरीय संपर्क बनाए रखा।
- भारत ने अपने साथ व्यापारिक साझेदारी के लिये कतरी व्यवसायी संघ (QBA) की प्रतिबद्धता की सराहना की और उन्हें आत्मनिर्भर भारत अभियान से मिलने वाले अवसरों के संबंध में जानकारी दी।
हाल ही में हुए परिवर्तन:
- दोनों देशों ने COVID-19 महामारी के आर्थिक प्रभाव को दूर करने के लिये प्रमुख पश्चिम एशियाई राज्यों में भारत के आउटरीच के हिस्से, कतर निवेश प्राधिकरण (Qatar Investment Authority) द्वारा निवेश की सुविधा के लिये एक विशेष टास्क फोर्स का गठन करने का निर्णय लिया है।
- दोनों पक्षों ने श्रमिकों के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा के लिये संस्थागत उपायों पर सहमति व्यक्त की है, जिसमें श्रम संबंधी मुद्दों से निपटना और दोनों देशों के मध्य लोगों की सुरक्षित आवाजाही की सुविधा शामिल है।
भारत-कतर संबंध:
आर्थिक संबंध:
- व्यापार
- पिछले कुछ वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गैस और तेल की दरों में गिरावट के कारण दोनों देशों के मध्य व्यापार में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई।
- भारत को क़तर के लिये चौथा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य माना जाता है।
- भारत और कतर दोनों के मध्य बैंकिंग क्षेत्र में भी अच्छे संबंध है।
- निर्यात:
- भारत में कतर से निर्यात होने वाले प्रमुख वस्तुओं में तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG), LPG, रसायन और पेट्रोकेमिकल्स, प्लास्टिक तथा एल्युमीनियम आदि शामिल हैं।
- कतर को भारत से होने वाले प्रमुख निर्यात में अनाज, तांबा, लोहा और इस्पात, सब्जियाँ, प्लास्टिक उत्पाद, निर्माण सामग्री, वस्त्र और गारमेंट्स आदि शामिल हैं।
ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग:
- कतर, भारत में LNG का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।
- भारत अपनी ज़रूरतों के लिये प्राकृतिक गैस का लगभग 70% कतर से आयात करता है।
रक्षा क्षेत्र:
- कतर के साथ भारत का रक्षा सहयोग अब तक प्रशिक्षण, एक-दूसरे के सम्मेलनों/कार्यक्रमों में भाग लेना और भारतीय नौसेना तथा तटरक्षक जहाज़ों द्वारा यात्रा तक सीमित रहा है
- ज़ाएर-अल-बहर (Zair-Al-Bahr) भारतीय और कतर नौसेना के मध्य द्विपक्षीय नौसेना अभ्यास है।
सांस्कृतिक संबंध
- सांस्कृतिक आदान - प्रदान:
- भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (Indian Cultural Centre- ICC) से जुड़े सामुदायिक संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में कतर में प्रदर्शन कर रहे भारतीय कलाकारों का एक नियमित प्रयास है।
- ICC, भारतीय दूतावास, दोहा, और निजी प्रायोजकों के तत्त्वाधान में भारतीय समुदाय के कामकाज से संबंधी संघों का एक शीर्ष निकाय है।
- योग
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाए गए अपने प्रस्ताव पर कतर के समर्थन की एक सह-प्रायोजक के रूप में सराहना की। यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एकमत से रिकॉर्ड 177 सह-प्रायोजकों के साथ अपनाया गया था। इसी प्रस्ताव के आधार पर 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया।
- शिक्षा
- कतर में 14 भारतीय स्कूल हैं, जो 30,000 से अधिक छात्रों को सीबीएसई पाठ्यक्रम में शिक्षा प्रदान करते हैं, जिनमें से अधिकांश स्कूलों में कतर में काम कर रहे भारतीय नागरिकों के बच्चे पढ़ते हैं।
भारतीय समुदाय:
- भारतीय समुदाय कतर में सबसे बड़ा प्रवासी समूह है, यह जनसंख्या अनुमानतः लगभग 700 मिलियन है।
- ये लोग विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं। कतर में भारतीयों को उनकी ईमानदारी, कड़ी मेहनत, तकनीकी विशेषज्ञता और कानून का पालन करने वाले स्वभाव के लिये सम्मान दिया जाता है।
- भारतीयों को लगभग हर स्थानीय प्रतिष्ठान, सरकारी या निजी, विभिन्न क्षमताओं में नियोजित किया जाता है।
- प्रेषित धन:
- कतर में रहने वाले प्रवासी भारतीयों द्वारा भारत में प्रतिवर्ष अनुमानतः 750 मिलियन डॉलर की राशि भेजी जाती है।
आगे की राह:
- कतर, भारत में बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में निवेश करना चाहता है, जिसमें सड़क, राजमार्ग, आर्थिक गलियारे, हवाई अड्डे, बंदरगाह, पर्यटन और होटल उद्योग के अलावा गैस एवं उर्वरक से संबंधित परियोजनाएँ शामिल हैं।
- भारत, कतर में तरलीकृत प्राकृतिक गैस, रासायनिक उद्योगों, यूरिया, पेट्रोकेमिकल्स और विशेष रूप से उर्वरकों के निर्माण और उत्पादन में प्रत्यक्ष निवेश के लिये तत्पर है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
भारत की पहली पूर्णतः स्वचालित मेट्रो
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली मेट्रो की लाइन-8 यानी मैजेंटा लाइन पर देश की पहली पूर्णतः स्वचालित मेट्रो रेल (ड्राइवर-रहित मेट्रो) का उद्घाटन किया है।
- इसके अलावा प्रधानमंत्री ने दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) की एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन पर नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (NCMC) का विस्तार किया है।
प्रमुख बिंदु
ड्राइवर-रहित मेट्रो
- इस उपलब्धि के साथ ही दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) विश्व के उस अत्याधुनिक मेट्रो नेटवर्क में शामिल हो गया है, जहाँ इस तरह की सुविधा उपलब्ध है।
- वर्ष 2014 में देश के केवल पाँच शहरों में मेट्रो रेल थी और वर्तमान में देश के कुल 18 शहरों में मेट्रो रेल मौजूद है और इसी के साथ मेट्रो उपयोगकर्त्ताओं की संख्या भी कई गुना बढ़ गई है।
- दिल्ली मेट्रो की ड्राइवर-रहित मेट्रो रेल पूर्णतः स्वचालित होगी, जिससे मानव त्रुटि की संभावना समाप्त हो जाएगी।
- ट्रेन संचालन प्रोद्योगिकी में स्वचालन के विभिन्न ग्रेड या स्तर (GoA) होते हैं:
- GoA 1: इसमें ट्रेन को पूरी तरह से एक ड्राइवर/चालक द्वारा चलाया जाता है।
- GoA 2 और GoA 3: इसमें चालक की भूमिका ट्रेन के दरवाज़ों के परिचालन और केवल आपात स्थिति में ट्रेन के संचालन तक सीमित हो जाती है तथा इसके अंतर्गत ट्रेनों को शुरू करने व रोकने का कार्य पूर्णतः स्वचालित होता है।
- GoA 4: इसके तहत ट्रेन पूर्णतः बिना चालक के संचालित की जाती है।
महत्त्व
- इसमें ऐसे ब्रेकिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता है, जिसके तहत ब्रेक लगाने पर 50 प्रतिशत ऊर्जा ग्रिड में वापस चली जाती है, जिससे काफी मात्रा में ऊर्जा बच सकेगी।
- विभिन्न बड़ी कंपनियाँ मेट्रो कोचों के निर्माण में शामिल हैं और साथ ही दर्जनों कंपनियाँ मेट्रो ट्रेन के विभिन्न घटकों के निर्माण में संलग्न हैं, इससे देश में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा मिलेगा।
- वर्तमान में मेट्रो रेल के संचालन में 130 मेगावाट सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है, जिसे सरकार 600 मेगावाट तक बढ़ाने का प्रयास कर रही है।
- रीजनल रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम (RRTS) और मेट्रो लाइट मॉडल प्रमुख शहरों और उनके भीतर विभिन्न स्थानों के बीच की दूरी को कम कर देंगे।
नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (NCMC)
- यह कार्डधारक को परिवहन के सभी साधनों तक पहुँच प्रदान करेगा और इससे यात्रियों को टोकन के लिये लंबी कतारों में इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।
- यह उपयोगकर्त्ताओं को एक साथ यात्रा का शुल्क देने, टोल शुल्क देने और खरीदारी के लिये भुगतान करने की अनुमति देता है, साथ ही कार्डधारक इसके माध्यम से पैसे भी निकाल सकते हैं।
- ध्यातव्य है कि ‘वन नेशन, वन कार्ड’ तकनीकी रूप से ‘रुपे कार्ड’ पर निर्भर है और इससे यात्रा के दौरान किराये से संबंधित सभी दिक्कतें खत्म हो जाएंगी।
- यह न केवल लोगों के लिये एक साझा सुविधा उपलब्ध कराएगा, बल्कि इससे अनुसंधान की दृष्टि से बेहतर डेटा भी उपलब्ध हो सकेगा। शोधकर्त्ताओं के पास लोगों के यात्रा पैटर्न का बेहतर डेटा उपलब्ध होगा, जिससे सटीक आकलन की सुविधा मिलेगी और विकास से संबंधित बेहतर योजनाओं का निर्माण किया जा सकेगा।
दिल्ली में अन्य विकासात्मक कार्य
- सरकार द्वारा कर में छूट देकर इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles- EVs) को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- राजधानी दिल्ली के पुराने बुनियादी ढाँचे को आधुनिक तकनीक पर आधारित पर्यावरण के अनुकूल बुनियादी ढाँचे में परिवर्तित किया जा रहा है।
- दिल्ली की सैकड़ों कॉलोनियों के नियमितीकरण के माध्यम से वहाँ रहने वाले लोगों के जीवन-स्तर में सुधार किया गया है।
- नए पर्यटन स्थलों के माध्यम से रोज़गार सृजन के प्रयास किये जा रहे हैं।
- सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना (Central Vista Redevelopment Project) के तहत नए संसद भवन के निर्माण से न केवल दिल्ली के हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलेगा, बल्कि इससे शहर की स्थिति में भी परिवर्तन आएगा।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत वर्ष 2025 में विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिज़नेस रिसर्च (Centre for Economics and Business Research) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2025 तक ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए विश्व की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि भारत वर्ष 2030 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
- CBER, ब्रिटेन की एक कंपनी है जो सार्वजनिक और निजी व्यवसाय-प्रतिष्ठानों (Firm) के लिये स्वतंत्र आर्थिक पूर्वानुमान प्रकाशित करती है।
प्रमुख बिंदु
रिसर्च का निष्कर्ष:
- भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2021 में 9% और वर्ष 2022 में 7% तक विस्तार होगा।
- इस कारण भारत वर्ष 2025 में ब्रिटेन,वर्ष 2027 में जर्मनी और वर्ष 2030 में जापान को पीछे छोड़ते हुए वर्ष 2030 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
- चीन पूर्वानुमानों से पाँच साल पहले ही वर्ष 2028 तक अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
- जापान वर्ष 2030 की शुरुआत तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहेगा जब तक की भारत इससे आगे नहीं निकल जाता, इसके बाद जापान द्वारा जर्मनी को चौथे से पाँचवें स्थान पर कर दिया जाएगा।
वर्तमान परिदृश्य:
- भारत वर्ष 2019 में ब्रिटेन से आगे निकलकर विश्व की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था, लेकिन वर्ष 2020 में पुनः 6वें स्थान पर आ गया।
- विश्व की पाँच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ क्रमशः संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और ब्रिटेन हैं।
- भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में कोविड-19 संकट से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण गिरावट आ रही थी।
- सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) की वृद्धि दर दस साल के अपने निम्न स्तर पर पहुँच गई थी जो वर्ष 2019 में 4.2% पर थी।
- वृद्धि दर में गिरावट कमज़ोर बैंकिंग प्रणाली, GST, विमुद्रीकरण और वैश्विक व्यापार में गिरावट का मिला-जुला परिणाम है।
- GDP वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) में वर्ष 2019 की तुलना में अपने स्तर से 23.9% कम थी, जिसका प्रमुख कारण कम वैश्विक मांग का होना और सख्त राष्ट्रीय लॉकडाउन से घरेलू मांग का गिर जाना था।
सुझाव:
- आर्थिक स्थिति में सुधार की गति को अप्रत्यक्ष रूप से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव से जोड़ा जाएगा।
- विश्व में टीकों के निर्माता के रूप में और 42 वर्षीय टीकाकरण कार्यक्रम (यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम) के साथ जो कि प्रत्येक वर्ष 55 लाख लोगों को लक्षित करता है, भारत कई अन्य विकासशील देशों की तुलना में टीकाकरण को अगले साल से सफलतापूर्वक तथा कुशलता से शुरू करने के लिये बेहतर स्थिति में है।
- दीर्घकालिक समय में वर्ष 2016 के विमुद्रीकरण जैसे सुधार और हाल ही में कृषि क्षेत्र को उदार बनाने के विवादास्पद प्रयास आर्थिक लाभ पहुँचा सकते हैं।
- कृषि क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश भारतीय कार्यबल के साथ सुधार प्रक्रिया में एक समर्पित और क्रमिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है जो दीर्घकाल में कार्य-कुशलता और अल्पकालिक आय में वृद्धि के बीच संतुलित स्थापित करने वाला हो।
- भारत में मौजूद बुनियादी ढाँचे की कमी का मतलब है कि इस क्षेत्र में निवेश से उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
- इसलिये सरकार द्वारा बुनियादी ढाँचे पर किये गए खर्च से अर्थव्यवस्था में विकास सुनिश्चित होगा।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
ज़ीरो कूपन पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने पंजाब और सिंध बैंक के पुनर्पूंजीकरण (Recapitalise) हेतु 5,500 करोड़ रुपए की कीमत के स्पेशल ज़ीरो कूपन रिकैपिटलाइजेशन बॉण्ड्स (Special Zero Coupon Recapitalisation Bonds) जारी किये हैं। पंजाब एंड सिंध बैंक भारत सरकार का उपक्रम है।
प्रमुख बिंदु:
बैंक पुनर्पूंजीकरण:
- इसका तात्पर्य है राज्य द्वारा संचालित बैंकों में पूंजी पर्याप्तता मानदंडों को पूरा करने के लिये उनमें पूंजी डालना है।
- भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 12% की पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio- CAR) बनाए रखने पर ज़ोर दिया जाता है।
- CAR जोखिम भारित संपत्ति और वर्तमान देनदारियों के मध्य बैंक की पूंजी का अनुपात है।
- सरकार विभिन्न उपकरणों का उपयोग करते हुए पूंजी की कमी का सामना कर रहे बैंकों में पूंजी लगाती है। चूंँकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार सबसे बड़ी शेयरधारक है इसलिये बैंकों के पूंजी भंडार को मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी सरकार की है।
- सरकार नए शेयरों की खरीद कर या बॉण्ड जारी करके बैंकों में पूंजी लगाती है।
पुनर्पूंजीकरण का कारण:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा निर्धारित दिशा- निर्देश जो बेसल मानदंडों पर आधारित होते हैं, के तहत बैंकों को अपने पास कुछ निश्चित मात्रा में पूंजी भंडार आरक्षित रखना आवश्यक होता है।
पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड:
- सरकार बॉण्ड जारी करती है जो बैंकों द्वारा स्वीकार किया जाता हैं। सरकार द्वारा एकत्र किया गया धन इक्विटी पूंजी के रूप में बैंकों में जाता है, अत: सरकार इक्विटी हिस्सेदारी में अपना हिस्सा बढ़ाती है जिससे बैंकों के पूंजी भंडार में वृद्धि होती है।
- बैंकों द्वारा पुनर्पूंजीकरण हेतु बॉण्ड में निवेश किये गए धन को एक ऐसे निवेश के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जिस पर ब्याज मिलता है। इससे सरकार को अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को बनाए रखने में मदद मिलती है क्योंकि कोई भी धनराशि सीधे सरकारी कोष से नहीं ली जाती है।
विशेष शून्य कूपन पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड:
- ये विशेष प्रकार के बॉण्ड्स हैं जो केंद्र सरकार द्वारा विशेष रूप से किसी संस्थान को जारी किये जाते हैं।
- केवल वे ही बैंक उनमें निवेश कर सकते हैं, जिन्हें इसके लिये निर्दिष्ट किया गया है, कोई और नहीं।
- यह बॉण्ड व्यापार योग्य नहीं है तथा न ही इनका हस्तांतरण किया जा सकता है। यह केवल एक विशिष्ट बैंक तक ही सीमित है तथा इन्हें एक निर्दिष्ट अवधि के लिये ही जारी किया जाता है।
- यह कोई कूपन नहीं है तथा अंकित मूल्य पर ही जारी किया गया है जिसका भुगतान निर्दिष्ट अवधि के अंत में किया जाएगा।
- कूपन निवेशक को एक बॉण्ड पर प्राप्त होने वाला ब्याज़ है।
- इन बॉण्ड को RBI के दिशा निर्देशों के अनुसार बैंक की परिपक्कव प्रतिभूतियों (Held-To-Maturity- HTM) की श्रेणी में शामिल किया जाता है।
- HTM प्रतिभूतियों को परिपक्वता अवधि तक के लिये खरीदा जाता है।
- ये ऐसे उपकरण हैं जिनमें विभिन्न पुनर्पूंजीकरण बॉण्ड शामिल हैं लेकिन प्रभावी रूप से एक ही उद्देश्य को पूरा करते हैं तथा इन्हें आरबीआई के दिशा-निर्देशों के अनुरूप जारी किया जाता है।
- वित्तीय नवाचार: इन विशेषबॉण्डों के जारी होने से राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा जबकि एक ही समय में बैंक के पास काफी अधिक मात्रा में आवश्यक पूंजी उपलब्ध होगी।
सामान्य ज़ीरो कूपन बॉण्ड और विशेष ज़ीरो कूपन बॉण्ड के मध्य अंतर:
- ज़ीरो-कूपन बॉण्ड:
- इन्हें शुद्ध छूट बॉण्ड या डीप डिस्काउंट बॉण्ड के रूप में भी जाना जाता है। इसे एक रियायती मूल्य पर खरीदा जाता है और फंडधारकों को कोई कूपन या आवधिक ब्याज़ का भुगतान नहीं किया जाता है।
- ज़ीरो कूपनबॉण्ड की खरीद मूल्य और परिपक्वता अवधि के मध्य बराबर का अंतर, निवेशक की वापसी का संकेत देता है।
- ज़ीरो कूपन बॉण्ड सामान्यत 10 से 15 वर्ष की समयावधि के लिये ज़ारी किये जाते हैं।
- अंतर: विशेष ज़ीरो कूपन बॉण्ड समान रूप से ही जारी किये जाते हैं, परंतु उन पर कोई ब्याज़ प्राप्त नहीं होता है। सामान्य ज़ीरो कूपन बॉण्ड पर छूट दी जाती है, इसलिये वे तकनीकी रूप से ब्याज वहन करते हैं।
- बॉण्ड:
- बॉण्ड एक निश्चित आय के साधन हैं जो एक निवेशक द्वारा किसी उधारकर्त्ता को किये गए ऋण का प्रतिनिधित्त्व करता है। दूसरे शब्दों में, बॉण्ड निवेशक और उधारकर्त्ता के मध्य एक अनुबंध के रूप में कार्य करता है।
- अधिकांशतः कंपनियांँ और सरकार बॉण्ड जारी करती हैं तथा निवेशक उन बॉण्ड को बचत एवं प्रतिभूति विकल्प के रूप में खरीदते हैं।
- इन बॉण्ड की एक अवधि होती है इसे परिपक्वता अवधि/मैच्योरिटी पीरियड कहते हैं। मैच्योरिटी पीरियड खत्म होने के बाद, बॉण्ड जारीकर्त्ता कंपनी निवेशक को लाभ के एक हिस्से के साथ राशि का भुगतान करती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
स्वदेशी वैक्सीन ‘न्यूमोसिल’
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत द्वारा ‘न्यूमोसिल’ (PNEUMOSIL) नामक पहली पूर्ण स्वदेशी ‘न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन’ (Pneumococcal Conjugate Vaccine-PCV) को लॉन्च किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
विकास: इस वैक्सीन को पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) द्वारा ‘पाथ’ (PATH) तथा ‘बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ के सहयोग से विकसित किया गया है।
- सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया विश्व की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी (उत्पादन और वैश्विक स्तर पर बेची जाने वाली खुराक की संख्या के आधार पर) है।
- ‘पाथ’ (PATH) सिएटल (USA) में स्थित एक अंतर्राष्ट्रीय, गैर-लाभकारी वैश्विक स्वास्थ्य संगठन है।
- बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन (BMGF) एक अमेरिकी निजी संस्था है, जिसकी स्थापना बिल और मिलिंडा गेट्स द्वारा की गई थी। सिएटल, वाशिंगटन में स्थित इस संस्था का प्राथमिक लक्ष्य विश्वभर में स्वास्थ्य सेवा को बढ़ाना और अत्यधिक गरीबी को कम करना तथा अमेरिका में शैक्षिक अवसरों एवं सूचना प्रौद्योगिकी की पहुँच का विस्तार करना है।
वैक्सीन से जुड़ी जानकारी:
- यह वैक्सीन न्यूमोकोकल जीवाणु को लक्षित करती है, जो निमोनिया और मेनिन्जाइटिस (Meningitis) व सेप्सिस जैसी जानलेवा बीमारियों का प्रमुख कारक है। एक अनुमान के अनुसार, यह जीवाणु प्रतिवर्ष विश्व भर में पाँच वर्ष से कम आयु के 4 लाख बच्चों की मौत का कारण बनता है।
- यह वैक्सीन बाज़ार में एकल खुराक और बहु-खुराक में वहनीय कीमत पर उपलब्ध होगी।
- हालाँकि न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (Pneumococcal Conjugate Vaccines-PCVs) ने न्यूमोकोकल से होने वालीमौतों को कम करने में सहायता की है, परंतु अभी भी कई देशों के लिये इसकी लागत वहन कर पाना बहुत ही कठिन है।
- इस वैक्सीन की अनूठी विशेषता इसकी संरचना है, जिसे विशेष रूप से भारत और दुनिया के अन्य क्षेत्रों में ‘एस निमोनिया’ (S Pneumoniae) के प्रचलित सीरोटाइप (Serotype) प्रसार को नियंत्रित करने के लिये बनाया गया है।
- एक सीरोटाइप या सेरोवर (serovar) बैक्टीरिया या वायरस की प्रजातियों के भीतर या विभिन्न व्यक्तियों की प्रतिरक्षा कोशिकाओं के बीच एक विशिष्ट भिन्ना होती है।
- इस वैक्सीन को जुलाई 2020 में भारतीय औषधि महानियंत्रक द्वारा लाइसेंस प्रदान किया गया था।
महत्त्व:
- इस वैक्सीन के विकास में प्राप्त सफलता अनुसंधान और विकास तथा उच्च कोटि के परिष्कृत टीकों के निर्माण में भारत की क्षमता का एक उदाहरण प्रस्तुत करती है।
- अब तक भारत को पूरी तरह से विदेशी निर्माताओं द्वारा निर्मित न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (PCV) पर निर्भर रहना पड़ता था, जो बहुत अधिक कीमत पर उपलब्ध हो पाते हैं।
- यह वैक्सीन SII को वैश्विक पीसीवी बाज़ार तक किसी विकासशील देश से पहुँचने वाला पहला वैक्सीन निर्माता बनाती है।
- SII एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड (AstraZeneca-Oxford) कोरोनावायरस वैक्सीन का भारतीय संस्करण 'कोविशील्ड' (Covishield) का निर्माता भी है।
न्यूमोकोकल रोग (Pneumococcal Disease) :
- स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया या न्यूमोकोकस नामक बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमण को न्यूमोकोकल रोग के नाम से जाना जाता है।
- यह बैक्टीरिया छोटे बच्चों में रक्तप्रवाह संक्रमण, निमोनिया, मेनिन्जाइटिस और मध्यकर्णशोथ (Middle Ear Infections) का सबसे आम कारण है।
- निमोनिया फेफड़ों का संक्रमण है। कई अलग-अलग बैक्टीरिया, वायरस और यहाँ तक कि कवक भी निमोनिया का कारण बन सकते हैं। न्यूमोकोकस गंभीर निमोनिया के सबसे आम कारणों में से एक है।
- डॉक्टर इन संक्रमणों में से कुछ को "आक्रामक" या इनवेसिव (Invasive) मानते हैं।
- इनवेसिव रोग (Invasive Disease) का अर्थ है कि रोगाणु शरीर के उन हिस्सों पर आक्रमण करते हैं जो सामान्य रूप से कीटाणुओं से मुक्त होते हैं।
- उदाहरण के लिये न्यूमोकोकल बैक्टीरिया रुधिर प्रवाह पर आक्रमण कर सकते हैं, जिससे बैक्टरेमिया (Bacteremia) हो सकता है, या ये मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को कवर करने वाले ऊतक और तरल पदार्थ पर आक्रमण कर सकते हैं, जिससे मेनिन्जाइटिस होता है। जब ऐसा होता है, तो बीमारी आमतौर पर बहुत गंभीर होती है, परंतु कुछ मामलों में रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
दुष्प्रभाव:
- वार्षिक रूप से भारत में निमोनिया से होने वाली मौतों का 71% और गंभीर निमोनिया के 57% मामले देखने को मिलते हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में मृत्यु के कुल मामलों में 15% का कारक निमोनिया ही होता है।
रोकथाम:
- न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (PCV) न्यूमोकोकल बीमारी को रोकती है।
- यह वैक्सीन न्यूमोकोकी परिवार के कई जीवाणुओं का मिश्रण है, जिन्हें निमोनिया के कारक के रूप में जाना जाता है, इसीलिये इस वैक्सीन के नाम में संयुग्म या 'कंजुगेट' शब्द को शामिल किया गया है।
- संयुग्म टीकों दो अलग-अलग घटकों के संयोजन के माध्यम से बनाया जाता है
- भारत सरकार द्वारा न्यूमोकोकल बीमारी से लड़ने के लिये सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) के तहत पीसीवी की पहुँच सुनिश्चित की जा रही है।