डेली न्यूज़ (29 Aug, 2019)



सिटी गैस वितरण नेटवर्क

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस तथा इस्‍पात मंत्री ने 10वें सिटी गैस वितरण (City Gas Distribution-CGD) के बोली राउंड के कार्य की शुरुआत की जिसमें 124 ज़िलों के 50 भौगालिक क्षेत्र (Geographical Areas-GAs) शामिल होंगे।

प्रमुख बिंदु

  • 10वें राउंड के पूरा होने के बाद देश की 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्‍या और 52.73 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र CGD के तहत आ जाएगा।
  • CGD नेटवर्क के विकास से उपभोक्ताओं के लिये स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन या पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) और परिवहन ईंधन के रूप में संपीड़ित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas-CNG) की उपलब्धता बढ़ जाएगी।
  • CGD को 'सार्वजनिक उपयोगिता' (Public Utility) का दर्जा दिया गया है।

भारत में स्वच्छ ऊर्जा मिश्रण

India’s Clean Energy Mix

  • भारत विश्‍व में तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा का उपभोक्‍ता है और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि एक दशक में यह ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्‍ता बन जाएगा।
  • देश में ऊर्जा मिश्रण में गैस की वर्तमान हिस्‍सेदारी 6.2 प्रतिशत है।
  • वर्ष 2030 तक प्राकृतिक गैस की हिस्‍सेदारी को 15 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है।
  • वर्ष 2018-19 में घरेलू गैस उत्‍पादन 32.87 बिलियन क्‍यूबिक मीटर था, जिसके वर्ष 2020-21 तक बढ़कर 39.3 बिलियन क्‍यूबिक मीटर हो जाने का अनुमान है।
  • अगले तीन-चार वर्षों में LNG टर्मिनल क्षमता मौजूदा 38.8 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (Million Metric Tonne Per Annum-MMTPA) से बढ़कर 52.5 MMTPA हो जाने की उम्‍मीद है।
  • वर्तमान में नेशनल गैस ग्रिड की लंबाई 16788 किलोमीटर है तथा अतिरिक्त 14788 किलोमीटर जोड़ने का काम प्रगति पर है।

स्रोत: pib


वायु कनेक्टिविटी: संभावनाएँ एवं विकास

संदर्भ

भारत के बहुत कम राज्यों में नागरिक उड्डयन विभाग (Civil Aviation Departments) सक्रिय हैं। वर्तमान में भारत में विमानन बाज़ार की पहुँच केवल 7% है। जबकि भारत में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की अधिकता को देखते हुए यह अनुमान लगाया जाता है कि भारतीय विमानन क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर शीर्ष तीन देशों में शामिल होने की क्षमता है।

राज्यों की निष्क्रिय भूमिका

  1. नागरिक उड्डयन केंद्रीय क्षेत्र का विषय है और राज्य इसके प्रति उदासात्मक रवैया अपनाते हैं।
  2. जब केंद्र सरकार ने हवाई अड्डों का विकास जारी रखा और हवाई संपर्क को बढ़ाया उसमें भी राज्यों की भूमिका निष्क्रिय थी।

राज्यों की बढ़ती हुई भूमिका

  1. राज्यों के सहयोग को नागरिक उड्डयन क्षेत्र की वृद्धि में एक प्रमुख कारक के रूप में देखा जाता है।
  2. क्षेत्रीय कनेक्टिविटी स्कीम, उड़े देश का आम नागरिक (Ude Desh ka Aam Naagrik- UDAN) इस क्षेत्र के विकास में राज्य सरकारों की हिस्सेदारी को विकसित करने के लिये एक अंतर्निहित तंत्र है।
  3. केंद्र सरकार के साथ 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने पहले ही एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिये हैं।
  4. ‘उड़ान’ को सुलभ और सस्ता बनाने के लिये अब राज्यों और केंद्र की नीतियों को आपस में जोड़ा जा रहा है।

ईंधन का मूल्य निर्धारण

  1. भारत में किसी भी एयरलाइन के लिये विमानन टरबाइन ईंधन (Aviation Turbine Fuel-ATF) की लागत कुल परिचालन लागत की लगभग 40% है।
  2. पेट्रोलियम उत्पादों को GST से बाहर रखना राज्य सरकारों के लिये अनिवार्य हो सकता है।
  3. राज्यों द्वारा ATF पर लगाए जाने वाले मूल्य वर्द्धित कर (VAT) की दर 25% है जो कि बहुत अधिक है तथा यह नागरिक उड्डयन की विकास दर को कम कर देती है।
  4. इस क्षेत्र में हवाई संपर्क के विस्तार के परिणामस्वरूप बढ़ी आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हो रही है, जिसके द्वारा किसी भी उल्लेखनीय राजस्व हानि की भरपाई की जा सकती है।
  5. एक अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organization- ICAO) के अध्ययन से पता चला है कि नागरिक उड्डयन के आउटपुट गुणक और रोज़गार गुणक क्रमशः 3.25 और 6.10 हैं।
  6. UDAN ने राज्य सरकारों को इस योजना के तहत संचालित उड़ानों के लिये ATF पर VAT को 1% तक कम करने के लिये प्रेरित किया है।
  7. झारसुगुड़ा (ओडिशा) और कोल्हापुर (महाराष्ट्र) जैसे हवाई अड्डों ने इन दुर्गम क्षेत्रों को जोड़ने के लिये एयरलाइनों को सफलतापूर्वक आकर्षित किया है।

एयरपोर्ट विकास (Airport development)

  1. कई क्षेत्रीय हवाई अड्डे ऐसे हैं जो राज्यों द्वारा अपने दम पर या भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (Airports Authority of India-AAI) के सहयोग से विकसित किये जा सकते हैं।
  2. अवसंरचना विकास के लिये सार्वजनिक-निजी साझेदारी के विभिन्न मॉडलों का लाभ उठाया जा सकता है।
  3. ‘नो-फ्रिल एयरपोर्ट्स' (No-Frill Airports) बनाने के लिये नवाचारी मॉडलों को खोजा जा सकता है।
  4. भारत में आज़ादी के बाद से अब तक लगभग 70 हवाई अड्डे थे। UDAN के तहत केंद्र सरकार ने पिछले दो वर्षों में 24 Unserved Airports का संचालन किया है तथा अगले 5 वर्षों में 100 और विकसित किये जाने की योजना हैं।

आंतरिक भाग (Hinterland) को जोड़ना

  1. राज्य और केंद्र सरकार दूरदराज के क्षेत्रों में हवाई सेवा विकसित करने के लिये एयरलाइंस का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
  2. एयरलाइंस और एयरपोर्ट ऑपरेटरों की परिचालन लागत को कम करने के लिये राज्य सरकारों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये; उदाहरण के लिये, वैट में कमी करने जैसे वित्तीय समर्थन; एयरलाइनों के साथ व्यवहार्यता अंतर वित्त पोषण तथा गैर-वित्तीय प्रोत्साहन जैसे हवाई अड्डे के संचालकों को मुफ्त में सुरक्षा प्रदान करना, आदि कार्य किये जा सकते हैं।
  3. केंद्र सरकार ने ATF पर उत्पाद शुल्क में रियायतों को घोषणा की हैं और हवाई अड्डों के विकास के लिये बजटीय आवंटन भी सुनिश्चित किया हैं। इसने एयरलाइंस ट्रंक मार्गों के बजाय क्षेत्रीय असंबद्ध मार्गों पर कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करने का काम किया है।

आगे की राह

क्षेत्रीय से लेकर सुदूर क्षेत्रों तक कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिये एयरलाइंस को आकर्षित करने हेतु निम्न हस्तक्षेप आवश्यक हैं:

  1. अवसंरचनात्मक बाधाओं और दुर्गम भू-भाग को ध्यान में रखते हुए छोटे विमान ऑपरेटरों को प्रोत्साहित करना।
  2. ऐसे क्षेत्र जिन्हें सड़क या रेल द्वारा सार्थक रूप से नहीं जोड़ा जा सकता हैं उन्हें हवाई मार्ग से जोड़ा जाना चाहिये।
  3. हवाई संपर्क न केवल यात्रा के समय को कम करेगा बल्कि आपात स्थिति में भी एक वरदान साबित होगा।
  4. यह पूर्वोत्तर भारत, द्वीपों और पहाड़ी राज्यों के लिये भी उपयोगी साबित होगा।
  5. राज्यों को क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये हवाई संपर्क का समर्थन करना चाहिये तथा पर्यटन, स्वास्थ्य और बीमा से संबंधित अपनी प्रासंगिक योजनाओं को अधिक सफल बनाने के प्रयास करने चाहिये।
  6. राज्यों को विमानन क्षेत्र की सुविधा के लिये एक अनुकूल व्यापार वातावरण बनाने की आवश्यकता है। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के सहयोग से हवाई अड्डों के विकास, विमान सेवाओं के विकास में तेज़ी आ सकती है।

स्रोत: द हिंदू


स्कूल एजुकेशन ‘शगुन’

चर्चा में क्यों?

28 अगस्त, 2019 को मानव संसाधन मंत्रालय ने स्कूली शिक्षा को सुदृढ़ता प्रदान करने के उद्देश्य से विश्व के सबसे बड़े ऑनलाइन जंक्शनों में शामिल एकीकृत ऑनलाइन जंक्शन ‘स्कूल एजुकेशन शगुन’ (SE ShaGun) की शुरुआत की। इस ऑनलाइन जंक्शन के ज़रिये स्कूली शिक्षा से जुड़े सभी ऑनलाइन पोर्टल्स और वेबसाइट को जोड़ने की पहल की गई है।

Education ShaGun

‘शगुन’ का अर्थ

  • ‘स्कूल एजुकेशन शगुन’ एक ऐसा ही प्लेटफार्म है, जिसके ज़रिये शिक्षा की नींव को मज़बूती मिलेगी। ‘शगुन’ में ‘श’ शब्द का आशय ‘शाला’ से है, जिसका अर्थ स्कूल से है और ‘गुन’ का तात्पर्य गुणवत्ता से है।

प्रमुख बिंदु

  • 1200 केंद्रीय विद्यालयों, 600 नवोदय विद्यालयों, CBSE से जुड़े 18000 स्कूलों, 30 SCERTs और NTCE से जुड़े 19000 संस्थानों की वेबसाइट्स को ‘स्कूल एजुकेशन शगुन’ पोर्टल से जोड़ा गया है।
  • इस ऑनलाइन प्लेटफार्म के ज़रिये 15 लाख स्कूलों, 92 लाख शिक्षकों और करीब 26 करोड़ विद्यार्थियों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके ज़रिये योजनाओं की जानकारी लेने के साथ ही लोगों को स्कूलों से जुड़ी नई सूचनाएँ भी प्राप्त होंगी।
  • इसके साथ ही स्कूल शिक्षा से जुड़े समस्त आँकड़े एक जगह से प्राप्त कर सकेंगे।
  • ‘स्कूल एजुकेशन शगुन’ के ज़रिये विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ने के लिये सामग्री मिलेगी, साथ ही उन्हें वीडियो आधारित शिक्षा का अवसर भी मिलेगा। वेबसाइट के ज़रिये यह भी जाना जा सकता है कि आपके क्षेत्र में कौन-कौन से स्कूल हैं और वे क्या-क्या सेवाएँ उपलब्ध करा रहे हैं।

‘एकीकृत राष्ट्रीय स्कूली शिक्षा निधि’

  • इसके अलावा मंत्रालय द्वारा ‘एकीकृत राष्ट्रीय स्कूली शिक्षा निधि’ (Integrated National School Education Treasury-INSET) बनाने की भी घोषणा की गई, जिसके ज़रिये विद्यार्थियों, शिक्षकों ओर स्कूलों से जुड़ी तमाम सूचनाएँ एक मंच से मिल सकेंगी।

इसके अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा:

  • हितधारकों के फीडबैक के माध्यम से इंटीग्रेटेड ऑनलाइन जंक्शन (Integrated Online Junction) के डेटा को सुदृढ़ बनाना।
  • ऐसी वेबसाइटों, पोर्टल्स और एप्लीकेशनों के मध्य पूर्ण अंतर-संचालन सुनिश्चित करना जिन्हें पहले से ही जंक्शन में होस्ट किया जा चुका हैं।
  • उच्च गुणवत्ता वाली ई-सामग्री तैयार करना, जिसमें सीखने की क्षमता को बढ़ाने के लिये क्विज़ और पहेलियाँ भी शामिल हो।

स्रोत: PIB


आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क और जालान समिति

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक के आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिये गठित बिमल जालान समिति के सुझाव पर केंद्रीय बैंक ने केंद्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए दिये, साथ ही इस समिति ने प्रत्येक पाँच वर्षों में आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा करने की सिफारिश भी की है।

संबंधित मुद्दे:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना वर्ष 1935 में हुई थी, स्थापना के समय इस बैंक में निजी भागीदारी की अनुमति थी। वर्ष 1949 में भारतीय रिज़र्व बैंक के राष्ट्रीयकरण के बाद यह पूर्णतः सरकार के अंतर्गत कार्य करने लगा था।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 47 के तहत सरकार RBI के अधिशेष वित्त (Surplus Fund) का उपयोग कर सकती है। भारतीय रिज़र्व बैंक इस अधिशेष का किसी तात्कालिक और भविष्य के जोखिमों के लिये प्रयोग करता है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर पिछले तीन वर्षों के दौरान 8.2% से घटकर 6.8% हो गई, साथ ही RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर वर्ष 2019 की पहली तिमाही में पिछले 5 वर्षों की तुलना में सबसे कम (5.8%) दर्ज की गई है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर के लिये जहाँ एक ओर अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ाने की आवश्यकता है, वहीं दूसरी ओर भारतीय रिज़र्व बैंक की नीतिगत स्वतंत्रता और स्वायत्तता का मामला भी अत्यंत गंभीर है।

सरकार का पक्ष:

  • केंद्र सरकार बैंकिंग व्यवस्था में रिकैपिटलाइज़ेशन के माध्यम से वित्त की आपूर्ति बढ़ाना चाहती है जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाया जा सके।
  • भारत में मंदी के कारण आर्थिक गतिविधियाँ धीमी हुई हैं, साथ ही रोज़गार के अवसरों में भी कमी आई है।
  • भारत में रियल एस्टेट सेक्टर और विनिर्माण सेक्टर वित्त की कमी की समस्या से जूझ रहा है, वहीं ऑटोमोबाइल सेक्टर में मांग की कमी के कारण हज़ारों की संख्या में लोग बेरोज़गार हो गए हैं।
  • ऑटोमोबाइल सेक्टर में जहाँ वित्त की कमी के कारण विनिर्माण गतिविधियाँ ठीक से संचालित नहीं हो पा रही हैं, वहीं दूसरी ओर बाज़ार में मुद्रा की तरलता कम होने के कारण लोगों के पास पैसे नहीं हैं जिसकी वजह से लोग इन उत्पादों को कम खरीद पा रहे हैं। अर्थव्यवस्था में इस प्रकार के दुष्चक्र के कारण आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं जिससे इस क्षेत्र में काम करने वाले हज़ारों लोग बेरोज़गार हो गए हैं।
  • मार्केट रिसर्च कंपनी नील्सन के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी समस्या खर्च में कमी है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्विक स्थान छठे से सातवाँ हो गया है।
  • एशियन डेवलपमेंट बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के नए अनुमान के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर वर्ष 2019 में 6.8% रहेगी।

उपरोक्त कारणों के परिप्रेक्ष्य में सरकार अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता बढ़ाकर मंदी की स्थिति को खत्म करके रोज़गार और आर्थिक गतिविधियों को तेज़ करना चाहती है।

भारतीय रिज़र्व बैंक का पक्ष:

  • पिछले कुछ समय में RBI की स्वायत्तता के मुद्दे पर इसके कई अधिकारी इस्तीफा दे चुके हैं। इस स्वायत्तता को लेकर डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अप्रत्यक्ष रूप से कहा कि केंद्रीय बैंक के नीतिगत निर्णयों में सरकार का हस्तक्षेप उचित नहीं है।
  • केंद्रीय बैंक द्वारा अपने अधिशेष वित्त को सरकार को देना ठीक नहीं हैं क्योंकि बेसल जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ ही स्थानीय अर्थव्यवस्था के जोखिमों की प्रतिपूर्ति करना उसका दायित्व है, वित्त के अभाव में उसकी कार्य निष्पादन क्षमता प्रभावित होगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं की प्रभावशीलता को कम करना केंद्रीय बैंक का ही दायित्व है। वर्तमान में संरक्षणवादी नीतियों और करेंसी वार जैसी स्थितियों में भारतीय रिज़र्व बैंक के पास पर्याप्त वित्त होना अतिआवश्यक है। भारत के विपरीत चीन जैसे देशों द्वारा केंद्रीय बैंकों के पास पर्याप्त वित्त संरक्षित किया जा रहा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के सापेक्ष भारतीय रूपए की परिवर्तनीयता भी महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान में एक अमेरिकी डॉलर 72 भारतीय रुपए के सापेक्ष है। मुद्रा परिवर्तनीयता से आयात-निर्यात भी प्रभावित होता रहता है, इसलिये केंद्रीय बैंक के पास इन परिस्थितियों से निपटने हेतु पर्याप्त वित्त और स्वायत्तता का होना आवश्यक है। इस प्रकार की घटनाओं से निपटने हेतु चीन आदि देशों के केंद्रीय बैंकों के पास डॉलर की पर्याप्त आपूर्ति है।

उपरोक्त परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में केंद्रीय बैंक ने बिमल जालान समिति का गठन किया था। बिमल जालान समिति की सिफारिशें निम्नलिखित हैं:

  • समिति ने आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा बाद इस फ्रेमवर्क के तहत RBI के पास उपलब्ध अतिरिक्त धनराशि को केंद्र सरकार को हस्तांतरित करने का सुझाव दिया है।

आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क

(Economic Capital Framework):

  • आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क का तात्पर्य केंद्रीय बैंक के पास रखी गई आवश्यक जोखिम पूंजी से है।
  • केंद्रीय बैंक इस पूंजी के माध्यम से भविष्य के अप्रत्याशित जोखिम, घटना या नुकसान के खिलाफ स्वयं को संरक्षित करता है।
  • समिति ने आर्थिक पूंजी के दो घटकों- वसूल की गई इक्विटी (Realized Equity) और पुनर्मूल्यन शेष (Revaluation Balances) के बीच एक स्पष्ट अंतर किये जाने की सिफारिश की।
  • समिति ने यह भी अनुशंसा की थी कि वसूल की गई इक्विटी (Realized Equity) का उपयोग प्राथमिक जोखिमों को पूरा करने के लिये किया जाए क्योंकि यह आय का मुख्य साधन है। इसके अतिरिक्त पुनर्मूल्यन शेष (Revaluation Balances) को केवल बाज़ार जोखिमों के लिये जोखिम बफर के रूप में रखा जाए क्योंकि वे सत्यापित मूल्यांकन लाभ नहीं होते हैं।
  • रिस्क प्रोविज़निंग (Risk Provisioning) राशि जिसे काॅटिंजेंट रिस्क बफ़र (Contingent Risk Buffer- CRB) भी कहा जाता है, को RBI की बैलेंस शीट के 6.5%- 5.5% के बीच बनाए रखा जाए।
  • CRB 6.5% से 5.5% के मानक में से मौद्रिक तथा वित्तीय स्थिरता जोखिम 5.5%-4.5% और क्रेडिट तथा परिचालन जोखिम 1.0% शामिल होता है।
  • सरप्लस डिस्ट्रीब्यूशन पॉलिसी (Surplus Distribution Policy) के अनुसार, वसूल की गई इक्विटी (Realized Equity) के आवश्यकता से अधिक होने पर पूरी शुद्ध आय सरकार को हस्तांतरित कर दी जाएगी।

आगे की राह:

  • जालान समिति ने अधिशेष वित्त को केंद्र सरकार को हस्तांतरित करने की सिफारिश की है। इसलिये केंद्र सरकार को रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता कम किये बिना इस वित्त का बेहतर इस्तेमाल करना चाहिये।
  • इस प्रकार के वित्त के प्रयोग से संबंधित नीतियों के निर्माण में केंद्रीय बैंक को शामिल करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
  • भारत सरकार आर्थिक विकास हेतु बचत रणनीति के बजाय खर्च रणनीति पर ज़ोर दे रही है।

इसलिये इस रणनीति हेतु पर्याप्त वित्त की आपूर्ति की जानी चाहिये।

भारतीय अर्थव्यवस्था को वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति और वर्तमान आर्थिक मंदी तथा बेरोज़गारी के दुष्चक्र से निकलने हेतु अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता बढ़ाया जाना आवश्यक है लेकिन साथ ही भारतीय रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता भी आवश्यक है, इसलिये दोनों स्थितियों के सामंजस्य से ही बेहतर परिणाम हासिल किये जा सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू


आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सहायक सचिवालय कार्यालय सहित आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (International Coalition for Disaster Resilient Infrastructure-CDRI) की स्थापना को कार्योत्तर मंज़ूरी प्रदान कर दी है। इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री ने 13 अगस्त, 2019 को मंज़ूरी दी थी।

प्रमुख बिंदु

  • 23 सितंबर, 2019 को अमेरिका के न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (UN Climate Action Summit) के दौरान CDRI की शुरुआत किये जाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाएगा।
  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा आयोजित यह शिखर सम्मेलन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और इसके परिणामस्वरूप होने वाली आपदाओं से निपटने की दिशा में प्रतिबद्धता व्यक्त करने के लिये बड़ी संख्या में राष्ट्राध्यक्षों को एक साथ लाएगा तथा CDRI के लिये आवश्यक उच्च स्तर पर ध्यान देने योग्य बनाएगा।

अन्य बातों के अलावा निम्नलिखित पहलों को मंज़ूरी दी गईः

  1. नई दिल्ली में सहायक सचिवालय कार्यालय सहित आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (CDRI) की स्थापना।
  2. सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम (Societies Registration Act), 1860 के अंतर्गत संस्था के रूप में CDRI के सचिवालय की नई दिल्ली में स्थापना ‘CDRI संस्था’ अथवा इससे मिलते-जुलते नाम से उपलब्धता के आधार पर की जाएगी।

3. CDRI को तकनीकी सहायता और अनुसंधान परियोजनाओं का निरंतर आधार पर वित्त पोषण करने, सचिवालय कार्यालय की स्थापना करने तथा बार-बार होने वाले खर्चों के लिये वर्ष 2019-20 से वर्ष 2023-24 तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये आवश्यक राशि हेतु भारत सरकार की ओर से 480 करोड़ रुपए (लगभग 70 मिलियन डॉलर) की सहायता को सैद्धांतिक मंज़ूरी देना।
4. चार्टर दस्तावेज़ का समर्थित स्वरूप CDRI के लिये संस्थापक दस्तावेज़ का कार्य करेगा। NDMA द्वारा विदेश मंत्रालय के परामर्श से संभावित सदस्य देशों से जानकारी लेने के बाद इस चार्टर को अंतिम रूप दिया जाएगा।

प्रमुख प्रभावः

  • CDRI एक ऐसे मंच के रूप में सेवाएँ प्रदान करेगा, जहाँ आपदा और जलवायु के अनुकूल अवसंरचना के विविध पहलुओं के बारे में जानकारी जुटाई जाएगी और उसका आदान-प्रदान किया जाएगा।
  • यह विविध हितधारकों की तकनीकी विशेषज्ञता को एक स्थान पर एकत्र करेगा। इसी क्रम में यह एक ऐसी व्यवस्था का सृजन करेगा, जो देशों को उनके जोखिमों के संदर्भ तथा आर्थिक ज़रूरतों के अनुसार अवसंरचनात्मक विकास करने के लिये उनकी क्षमताओं और कार्यपद्धतियों को उन्नत बनाने में सहायता करेगी।
  • इस पहल से समाज के सभी वर्ग लाभांवित होंगे।

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग, महिलाएँ और बच्चे आपदाओं के प्रभाव की दृष्टि से समाज का सबसे असुरक्षित वर्ग होते हैं तथा ऐसे में आपदा के अनुकूल अवसंरचना तैयार करने के संबंध में ज्ञान और कार्यपद्धतियों में सुधार होने से उन्हें लाभ पहुँचेगा। भारत में पूर्वोत्तर और हिमालयी क्षेत्र भूकंप के खतरे, तटवर्ती क्षेत्र चक्रवाती तूफानों एवं सुनामी के खतरे तथा मध्य प्रायद्वीपीय क्षेत्र सूखे के खतरे वाले क्षेत्र हैं।

नवाचारः

  • विभिन्न प्रकार की आपदा के जोखिम तथा विकास के संदर्भों वाले विभिन्न देशों में आपदा के जोखिम में कमी से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर अनेक तरह की पहल तथा अवसंरचना विकास से संबंधित अनेक तरह की पहल मौजूद है।
  • आपदा के अनुकूल अवसंरचना के लिये वैश्विक संगठन उन चिंताओं को दूर करेगा, जो विकासशील और विकसित देशों, छोटी और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, अवसंरचना विकास की आरंभिक एवंर उन्नत अवस्था वाले देशों तथा मध्यम या उच्च आपदा जोखिम वाले देशों में समान रूप से विद्यमान हैं।
  • अवसंरचना पर ध्यान केंद्रित करते हुए सेंदाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework), सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals-SDGs) और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (Climate Change Adaptation) के मिलन-बिंदु पर ठोस पहल से संबंधित कुछ कार्य हैं।
  • आपदा के अनुकूल अवसंरचना पर फोकस करने से एक ही समय पर सेंदाई फ्रेमवर्क के अंतर्गत हानि में कमी लाने से संबंधित लक्ष्यों पर ध्यान दिया जाएगा, अनेक SDGs पर ध्यान दिया जा सकेगा तथा जलवायु परिवर्तन से संबंधित अनुकूलन में भी योगदान मिलेगा। इसलिये आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन के लिये स्पष्ट अवसर है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक जोखिम के खतरे से संबंधित सूचना का प्रकाशन होने से लोगों को अपने क्षेत्रों के जोखिम के बारे में समझने का अवसर मिलेगा तथा वे स्थानीय और राज्य सरकारों से जोखिम में कमी लाने तथा उससे निपटने के उपायों की मांग कर सकेंगे।

स्रोत: PIB


FDI हेतु संशोधित मापदंड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment-FDI) की समीक्षा के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।

  • इसके परिणामस्वरूप भारत FDI के लिये अधिक आकर्षक गंतव्य बन जाएगा, जिससे भारत के निवेश, रोज़गार और विकास में वृद्धि होगी।
  • ज्ञातव्य है कि अब तक (मार्च 2019) सिंगापुर भारत का शीर्ष FDI स्रोत बना हुआ है।

संशोधित मानदंड

  • कोयले की बिक्री के लिये स्वचालित मार्ग (Automatic Route) के तहत 100 प्रतिशत FDI की अनुमति दी गई है।
  • साथ ही कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग (Contract Manufacturing) में भी स्वचालित मार्ग के तहत 100 प्रतिशत FDI की अनुमति दे दी गई है।
  • यह मेक इन इंडिया (Make in India) पहल हो बढ़ावा देगा और भारत में विनिर्माण केंद्रों की स्थापना हेतु वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करेगा।

कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग

(Contract Manufacturing)

  • यह एक प्रकार का बिज़नेस मॉडल है जिसमें एक फर्म किसी अन्य फर्म के साथ उत्पादन के लिये अनुबंध करती है। यह आउटसोर्सिंग (Outsourcing) का ही एक प्रकार है।
  • कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग के लाभ:
    • लागत में कमी: इस बिज़नेस मॉडल के माध्यम से कंपनियों की पूंजीगत लागत और श्रम लागत में काफी कमी आती है, क्योंकि उन्हें उत्पादन के लिये आवश्यक उपकरणों पर अधिक खर्च नहीं करना पड़ता।
      • कई कंपनियाँ श्रम की लागत में कमी करने के लिये भारत जैसे देशों में कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग करती हैं।
    • उन्नत कौशल: कंपनियाँ अनुबंध करने वाली कंपनी के कौशलों का लाभ उठा सकती हैं।
      • इसके कारण कंपनियाँ अपने मुख्य कार्य पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं जिससे उनके उत्पादन की गुणवता में वृद्धि होती है।
  • प्रिंट मीडिया की ही तरह डिजिटल मीडिया के माध्यम से भी समाचार और करेंट अफेयर्स की अपलोडिंग/स्ट्रीमिंग (Uploading/Streaming) के लिये सरकारी मार्ग (Government Route) के तहत 26 प्रतिशत FDI की अनुमति देने का निर्णय लिया गया है।
  • भारत को आकर्षक निवेश गंतव्य बनाने के उद्देश्य से FDI संबंधी प्रावधानों को हाल के वर्षों में रक्षा सहित व्यापार तथा वित्त जैसे अन्य क्षेत्रों में काफी उदार बनाया गया है।
    • इन्ही प्रयासों के परिणामस्वरूप अवसरः 2018-19 में भारत का कुल FDI 286 बिलियन डॉलर हो गया था।
    • वैश्विक स्तर पर मंदी के बावजूद भी भारत वैश्विक FDI प्रवाह के लिये एक पसंदीदा और आकर्षक गंतव्य बना हुआ है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

(Foreign Direct Investment- FDI)

  • यह एक समूह द्वारा किसी एक देश के व्यवसाय या निगम में स्थायी हितों को स्थापित करने के इरादे से किया गया निवेश होता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) आर्थिक विकास का एक प्रमुख वाहक और देश में आर्थिक विकास के लिये गैर-ऋण वित्त का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से घरेलू अर्थव्यवस्था में नई पूंजी, नई प्रौद्योगिकी आती है और रोज़गार के मौके बढ़ते हैं।

स्रोत: PIB


गिरमिटिया मज़दूरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 23 अगस्त को दास व्यापार और उसके उन्मूलन की याद में अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day for the Remembrance of the Slave Trade and its Abolition) का आयोजन किया गया।

  • ज्ञातव्य है कि वर्ष 1998 में यूनेस्को (UNESCO) ने 23 अगस्त को इस दिन के रूप में मनाने की घोषणा की थी।

संदर्भ

  • गिरमिटिया मज़दूरों और बंधुआ मज़दूरों का प्रवासन भारतीय इतिहास का सबसे कम चर्चित विषय रहा है।
  • महात्मा गांधी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के दबाव के बाद ब्रिटिश भारत की इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल (Imperial Legislative Council) द्वारा 1917 में आधिकारिक तौर पर प्रतिबंधित किये जाने के बावजूद भी भारत में बंधुआ मज़दूरी (जो 1834 में शुरू हुई थी) वर्ष 1922 तक चलती रही।

गिरमिटिया मज़दूरी - ऐतिहासिक नज़र से

  • 1820 के दशक में यूरोप में एक नए तरह के उदार मानवतावाद ने जन्म लिया जिसमें दास प्रथा को अमानवीय माना जाने लगा। इसके पश्चात् 1830-1860 के बीच ब्रिटिश, फ्राँसीसी और पुर्तगालियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में गुलामी पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया।
  • परंतु कुछ विचारकों का मानना है कि उपनिवेशवादियों ने गुलामी को सिर्फ इस कारण प्रतिबंधित किया ताकि वे एक नई प्रथा ‘गिरमिटिया मज़दूरी’ के साथ इसे प्रतिस्थापित कर सकें।
  • ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया तक हो रहा था और उन्हें नए श्रमिकों की आवश्यकता थी, लेकिन दासता या दास प्रथा को अमानवीय करार दे दिया गया था, जिसके कारण अनुबंध श्रम की एक नई अवधारणा का विकास हुआ।
  • भारत से गिरमिटिया मज़दूरों के प्रवासन की शुरुआत दास या गुलाम प्रथा के उन्मूलन के पश्चात् कैरेबियाई क्षेत्र में ब्रिटिशों द्वारा स्थापित चीनी और रबड़ के बागानों को चलाने के लिये की गई थी।
  • गिरमिटिया मज़दूरी के प्रचलन ने कैरेबियाई क्षेत्र सहित फिजी, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, मलेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में भारतीय प्रवासियों की विशाल विरासत का विकास किया।
  • गिरमिटिया मज़दूरों को मासिक आधार पर मज़दूरी का भुगतान किया जाता था और वे उन्हीं बागानों में रहते थे जहाँ वे कार्य करते थे।
  • गिरमिटिया मज़दूरी की शर्तों में यह लिखा होता था, कि कोई भी पुरुष अपनी मज़दूरी की 10 वर्षीय अवधि को पूरा करने के बाद अपने देश वापस लौट सकता है, परंतु ब्रिटिश नहीं चाहते थे कि कोई भी मज़दूर वापस लौटे क्योंकि इससे उनके व्यापार पर प्रभाव पड़ सकता था और इसी उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने पारिवारिक प्रवासन को प्रोत्साहित किया जिसका परिणाम यह हुआ कि कई गिरमिटिया मज़दूर उसी देश में बस गए जहाँ उन्हें काम के लिये ले जाया गया था।

गुलामी थी गिरमिटिया मज़दूरी

  • ब्रिटिश इतिहासकार ह्यूग टिंकर (Hugh Tinker) जिन्होंने ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान गुलामी जैसे विषय पर काफी शोध किया, ने गिरमिटिया मज़दूरी को “एक नए प्रकार की गुलामी” के रूप में परिभाषित किया था।
  • हालाँकि ब्रिटिश साम्राज्य ने गिरमिटिया मज़दूरी को गुलामी से अलग करने के काफी प्रयास किये और इसे ‘समझौते’ के रूप में प्रदर्शित किया।
  • ब्रिटिश सरकार ने गिरमिटिया मज़दूरी के लिये मुख्यतः उन युवाओं और पुरुषों को भर्ती किया जो क्षेत्रीय स्तर पर कृषि के पतन से प्रभावित थे या किसी अन्य आपदा के शिकार हुए थे, क्योंकि खराब आर्थिक स्थिति के कारण ये लोग अफसरों की बातों में आसानी से आ जाते थे।
  • आमतौर पर ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरमिटिया मज़दूरों को उनके कार्य की प्रकृति, वेतन, रहने का स्थान और स्थिति आदि के बारे में गुमराह किया जाता था।
  • इसके अलावा प्रवासियों को कार्यस्थल पर काफी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था, क्योंकि वहाँ पर्याप्त भोजन, स्वच्छ पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा की कमी थी।

गिरमिटिया मज़दूरों का अन्य उपनिवेशों पर प्रभाव

  • भारत से जो भी मज़दूर अन्य देशों में भेजे गए वे अपने साथ अपनी संस्कृति को भी भाषा, भोजन और संगीत के माध्यम से वहाँ ले गए।
  • जब वे इन उपनिवेशों में पहुँचे तो उन्होंने एक अनूठे सामाजिक-सांस्कृतिक पारिस्थितिक तंत्र (Socio-Cultural Ecosystems) का निर्माण किया, जबकि उन्हें अपने कार्य स्थलों से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी।
  • मॉरीशस, सूरीनाम और फिजी में स्थानीय लोगों ने इन भारतीय प्रवासियों का काफी विरोध किया क्योंकि गिरमिटिया मज़दूर बहुत मेहनती थे जिसके कारण बागान के मालिक भी उन्हीं को प्राथमिकता देते थे।
  • अपनी मज़दूरी की शर्तों को पूरा करने के बाद कुछ गिरमिटिया मज़दूर वापस भारत लौट आए, जबकि अधिकतर लोग वहीं रह गए।
  • इन लोगों के वापस न आने का प्रमुख कारण यह था कि उन्होंने अपने जीवन और परिवार को इन उपनिवेशों में दोबारा बसा लिया था और गरीबी के कारण पुनः किसी अन्य स्थान पर जाकर बसना उनके लिये काफी मुश्किल था।
  • मॉरीशस में कई प्रवासियों, जिन्होंने अपनी मासिक मज़दूरी बचाई थी, ने अपनी कार्य संबंधी शर्तों को समाप्त करने के बाद ज़मीन के छोटे भूखंड खरीदे और स्वयं भूस्वामी बन गए।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


विश्व का पहला बायोमैट्रिक नाविक पहचान दस्तावेज़

चर्चा में क्यों?

भारत विश्व का पहला देश बन गया है जिसने नाविकों के फेशियल बायोमैट्रिक डेटा का संग्रह कर बायोमैट्रिक नाविक पहचान दस्तावेज़ (Biometric Seafarer Identity Document-BSID) जारी किया है।

प्रमुख विशेषताएँ

  • नया पहचान पत्र BSID पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) के समझौता संख्या-185 के अनुरूप है। भारत ने अक्तूबर 2015 में इस समझौते पर सहमति व्यक्त की थी।
  • नई फेशियल बायोमैट्रिक तकनीक दो अंगुली या आँख की पुतली आधारित बायोमैट्रिक डेटा से बेहतर है।
  • इससे SID कार्ड प्राप्त नाविक की पहचान अधिक विश्वसनीय होगी साथ ही नाविक की गरीमा एवं निजता भी सुरक्षित होगी।
  • BSID आधुनिक सुरक्षा उपाय है। इसमें एक बायोमैट्रिक चिप लगा होगा। BSID कार्ड की सुरक्षा विभिन्न स्तरों और विभिन्न तकनीकों द्वारा सुनिश्चित की गई है।
  • डेटा संग्रह के दौरान चेहरे को पासपोर्ट आकार के फोटो के साथ मिलान किया जाता है। इसके लिये फोटो मिलान सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है। फेशियल बायोमैट्रिक संग्रह तथा इसके प्रमाणन के लिये एक सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है।
  • जारी किये जाने वाले प्रत्येक SID कार्ड से संबंधित जानकारी राष्ट्रीय डेटाबेस में संग्रह की जाएंगी और इससे संबंधित जानकारी विश्व के किसे भी कोने से प्राप्त की जा सकती है।

अन्य प्रमुख बिंदु

  • भारत में BSID परियोजना सी-डैक (Centre for Development of Advanced Computing-CDAC) मुंबई के सहयोग से चलाई जा रही है।
  • सरकार ने वर्ष 2016 में मर्चेंट शिपिंग (नाविक बायोमैट्रिक पहचान दस्तावेज़) नियम [Merchant Shipping (Seafarers Bio-metric Identification Document) Rules] अधिसूचित किया था।
  • SID कार्ड में नाविकों के बायोमैट्रिक के साथ-साथ भौगोलिक ब्यौरा शामिल होगा। इसके सत्यापन के बाद SID कार्ड नाविकों को जारी किये जाएंगे।

BSID कार्ड जारी करने के लिये मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, नोएडा, गोवा, मंगलौर, कोच्चि, विशाखापत्तन और कांडला में 9 डेटा संग्रह केंद्र बनाए गए है। प्रत्येक भारतीय नागरिक जिसे भारत सरकार द्वारा जारी कन्टिन्यूअस डिस्चार्ज़ सर्टिफिकेट [Merchant Shipping (Seafarers Bio-metric Identification Document) Rules] प्राप्त है उसे BSID कार्ड के लिये योग्य माना जाएगा।

स्रोत: PIB


गिद्धों की संख्या में बढ़ोतरी

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई है कि नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व (Nilgiris Biosphere Reserve) में गिद्धों की संख्या में वर्ष 2012 से 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2012 में नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व में गिद्धों की संख्या लगभग 152 थी। गिद्धों की संख्या में वर्ष 2014 तक वृद्धि हुई, परंतु वर्ष 2015 और 2016 में इनकी संख्या फिर से घटने लगी जिसके बाद वर्ष 2018 में यह संख्या एक बार फिर बढ़कर 192 हो गई।

गिद्धों की संख्या में वृद्धि के कारण

  • विभिन्न क्षेत्रों में गिद्धों की संख्या में कमी का सबसे प्रमुख कारण ज़हरीले मांस का सेवन है।
  • चूँकि अधिकतर किसान पालतू जानवरों को बीमारी की दशा में कई प्रकार की दवाएँ देते हैं और जब उन जानवरों का मांस गिद्ध खाते हैं तो वे भी बीमार हो जाते हैं।
  • इस क्षेत्र में गिद्धों की संख्या बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण यह है कि यहाँ पशु मांस की मांग बहुत ज़्यादा बढ़ गई थी जिसके कारण पशु मालिक बीमार पशुओं को बूचड़खाने में भेज देते थे और बीमारी की दशा में पशुओं को दवाएँ देने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
  • ज्ञातव्य है कि विभिन्न दवाओं का गिद्धों पर पड़ने वाले असर की विस्तृत व्याख्या वर्ष 2008 में सत्यमंगलम टाइगर रिज़र्व की एक कार्यशाला में की गई थी।

वन्यजीव संरक्षण के प्रयास

  • 1990 के दशक में पश्चिमी घाटों और शेष भारत में गिद्धों की आबादी में काफी गिरावट देखने को मिली, जिसके बाद निरंतर निगरानी और संरक्षण प्रयासों के कारण पिछले दशक में गिद्धों की संख्या में काफी सुधार हुआ।
  • एक अन्य कदम के तहत यह तय किया गया है कि पशुपालन विभाग (Department of Animal Husbandry) उन विभिन्न घातक एवं ज़हरीली दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगाएगा जो पशुओं को उनकी बीमारी के समय दी जाती हैं।
  • इसका उद्देश्य इस बात को सुनिश्चित करना है कि ज़हरीले मांस का सेवन करने से गिद्धों की मृत्यु न हो।

स्रोत: द हिंदू


नई राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति की ओर

चर्चा में क्यों?

28 अगस्त, 2019 को नई दिल्ली में 'नई राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति की ओर' (Towards New National Cyber Security Strategy) विषय पर 12वें भारतीय सुरक्षा सम्मेलन का आयोजन किया गया।

सम्मेलन के प्रमुख विषय

  • सम्मेलन के दौरान महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय आधारभूत ढाँचों की सुरक्षा, उभरते साइबर खतरों, घटनाओं, चुनौतियों एवं प्रतिक्रिया जैसे कई विषयों पर चर्चा की गई।
  • साथ ही इस विषय पर भी ध्यान केंद्रित किया गया कि 'डिजिटल संस्कृति' एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में परिवर्तित हो रही है। हर प्रौद्योगिकी की अपनी उपयोगिता है, इसी तरह साइबर प्रौद्योगिकी में इन दिनों बड़ी तेज़ी आई है। लेकिन एक वरदान होने के साथ ही यह प्रौद्योगिकी एक बड़ा खतरा भी बन गई है।

साइबर अपराध क्या है?

साइबर अपराध ऐसे गैर-काूननी कार्य हैं जिनमें कंप्यूटर एवं इंटरनेट नेटवर्क का प्रयोग एक साधन अथवा लक्ष्य अथवा दोनों के रूप में किया जाता है। ऐसे अपराधों में हैकिंग, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी, साइबर स्टॉकिग, सॉफ्टवेयर पाइरेसी, क्रेडिट कार्ड फ्रॉड, फिशिंग आदि को शामिल किया जाता है।

साइबर अपराधों से निपटने की दिशा में भारत के प्रयास

  • भारत में ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000’ पारित किया गया जिसके प्रावधानों के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता के प्रावधान सम्मिलित रूप से साइबर अपराधों से निपटने के लिये पर्याप्त हैं।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धाराएँ 43, 43ए, 66, 66बी, 66सी, 66डी, 66ई, 66एफ, 67, 67ए, 67बी, 70, 72, 72ए और 74 हैकिंग और साइबर अपराधों से संबंधित हैं।
  • सरकार ने साइबर सुरक्षा से संबंधित फ्रेमवर्क का अनुमोदन किया है और इसके लिये राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय को नोडल एजेंसी बनाया गया है।
  • राष्ट्रीय विशिष्ट अवसंरचना और विशिष्ट क्षेत्रों में साइबर सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी अनुसंधान संगठन को नोडल एजेंसी बनाया गया है।
  • इसके अंतर्गत 2 वर्ष से लेकर उम्रकैद तथा दंड अथवा ज़ुर्माने का भी प्रावधान है। सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, 2013’ जारी की गई जिसके तहत सरकार ने अति-संवेदनशील सूचनाओं के संरक्षण के लिये ‘राष्ट्रीय अतिसंवेदनशील सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (National Critical Information Infrastructure protection centre-NCIIPC) का गठन किया।
  • सरकार द्वारा ‘कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (CERT-In)’ की स्थापना की गई जो कंप्यूटर सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय स्तर की मॉडल एजेंसी है।
  • विभिन्न स्तरों पर सूचना सुरक्षा के क्षेत्र में मानव संसाधन विकसित करने के उद्देश्य से सरकार ने ‘सूचना सुरक्षा शिक्षा और जागरूकता’ (Information Security Education and Awareness: ISEA) परियोजना प्रारंभ की है।
  • भारत सूचना साझा करने और साइबर सुरक्षा के संदर्भ में सर्वोत्तम कार्य प्रणाली अपनाने के लिये अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों के साथ समन्वय कर रहा है।
  • अंतर-एजेंसी समन्वय के लिये ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र’ (Indian Cyber Crime Co-ordination Centre-I4C) की स्थापना की गई है।
  • देश में साइबर अपराधों से समन्वित और प्रभावी तरीके से निपटने के लिए 'साइबर स्वच्छता केंद्र' भी स्थापित किया गया है। यह इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology-MeitY) के तहत भारत सरकार की डिजिटल इंडिया मुहिम का एक हिस्सा है।

भारत इंटरनेट का तीसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है और हाल के वर्षों में साइबर अपराध कई गुना बढ़ गए हैं। साइबर सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिये सरकार की ओर से कई कदम उठाए गए हैं। कैशलेस अर्थव्यवस्था को अपनाने की दिशा में बढ़ने के कारण भारत में साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। डिजिटल भारत कार्यक्रम की सफलता काफी हद तक साइबर सुरक्षा पर निर्भर करेगी अतः भारत को इस क्षेत्र में तीव्र गति से कार्य करना होगा।

स्रोत: PIB


चीनी निर्यात सब्सिडी को सहमति

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने गन्‍ना सीज़न 2019-20 के दौरान चीनी मिलों के लिये 10,448 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर से निर्यात सब्सिडी प्रदान करने के लिये मंज़ूरी दे दी है। इस उद्देश्‍य की पूर्ति के लिये कुल अनुमानित व्‍यय लगभग 6,268 करोड़ रुपए होगा।

प्रमुख बिंदु

  • गन्‍ना सीज़न 2019-20 के लिये एकमुश्‍त निर्यात सब्सिडी आवाजाही, उन्‍नयन तथा प्रक्रिया संबंधी अन्‍य लागतों, अंतर्राष्‍ट्रीय और आंतरिक परिवहन की लागतों और निर्यात पर ढुलाई शुल्‍कों सहित लागत व्‍यय को पूरा करने के लिये अधिकतम 60 लाख मीट्रिक टन चीनी के निर्यात पर अधिकतम मान्‍य निर्यात मात्रा के लिये चीनी मिलों को आवंटित की जाएगी।
  • चीनी मिलों द्वारा गन्‍ने की बकाया राशि किसानों के बैंक खाते में सब्सिडी की राशि सीधे तौर पर जमा कराई जाएगी और यदि कोई शेष बकाया राशि होगी तो चीनी मिल के खाते में जमा कराई जाएगी।
  • कृषि समझौते की धारा 9.1 (D) और (E) के प्रावधानों तथा विश्व व्यापार संगठन (WTO) के प्रावधानों के अनुसार सब्सिडी दी जाएगी।
  • गन्‍ना सीज़न 2017-18 (अक्‍तूबर-सितंबर) और गन्‍ना सीज़न 2018-19 के दौरान चीनी के अतिरिक्‍त उत्‍पादन को ध्‍यान में रखते हुए, सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्‍न कदमों से भिन्‍न, मौजूदा गन्‍ना सीज़न 2019-20 में लगभग 142 लाख मीट्रिक टन चीनी का खुला भंडार होगा और सीज़न के अंत में लगभग 162 लाख मीट्रिक टन भंडार होने का अनुमान है।
  • चीनी के 162 लाख मीट्रिक टन के अतिरिक्‍त भंडार से गन्‍ने के मूल्‍यों पर पूरे सीज़न में प्रतिकूल दबाव पैदा होगा जिससे किसानों के गन्‍ने की बकाया धनराशि के भुगतान में चीनी मिलों को कठिनाई होगी।
  • इस स्थिति से निपटने के लिये सरकार ने हाल में 1 अगस्‍त, 2019 से एक वर्ष के लिये चीनी का 40 लाख मीट्रिक टन बफर भंडार तैयार किया है।
  • हालाँकि 31 जुलाई, 2020 तक इस बफर भंडार और गन्‍ना सीज़न 2019-20 के दौरान बी-हेवी मोलेस/गन्‍ना रस से इथानॉल के उत्‍पादन द्वारा चीनी पर संभावित प्रभाव तथा दो महीने के लिये मानक भंडार की ज़रूरत को ध्‍यान में रखते हुए, चीनी का लगभग 60 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्‍त भंडार होगा, जिसका निपटारा निर्यात के माध्‍यम से करना होगा।

लाभ:

  • चीनी मिलों की तरलता में सुधार होगा।
  • चीनी इंवेन्ट्री में कमी आएगी।
  • घरेलू चीनी बाज़ार में मूल्य भावना बढ़ाकर चीनी की कीमतें स्थिर की जा सकेंगी और परिणामस्वरूप किसानों के बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान समय से किया जा सकेगा।
  • चीनी मिलों के गन्ना मूल्य बकायों की मंज़ूरी से सभी गन्ना उत्पादक राज्यों में चीनी मिलों को लाभ होगा।

पृष्ठभूमि:

  • गौरतलब है कि भारत विश्व में ब्राज़ील के बाद चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
  • देश की वार्षिक चीनी खपत का लगभग 90% हिस्सा वाणिज्यिक कार्यों जैसे कि पैकेज खाद्य पदार्थ आदि के लिये उपयोग किया जाता है।
  • चीनी मिलें जिस मूल्य पर किसानों से गन्ना खरीदती हैं उसे उचित और लाभप्रद मूल्य (Fair and Remunerative Price-FRP) कहा जाता है। इसका निर्धारण कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission on Agricultural Costs and Prices-CACP) की सिफारिशों के आधार पर किया जाता है।

स्रोत: PIB


ईस्टर्न इकोनाॅमिक फोरम

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) में 5 सितंबर को आयोजित होने वाले ईस्टर्न इकोनाॅमिक फोरम (Eastern Economic Forum- EEF) की बैठक के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। इस सम्मेलन के दौरान ही भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन भी आयोजित किया जाएगा।

ईस्टर्न इकोनाॅमिक फोरम

(Eastern Economic Forum- EEF):

  • ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम की स्थापना रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा वर्ष 2015 में की गई थी।
  • इस फोरम की बैठक प्रत्येक वर्ष रूस के शहर व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) में आयोजित की जाती है।
  • यह फोरम विश्व अर्थव्यवस्था के प्रमुख मुद्दों, क्षेत्रीय एकीकरण, औद्योगिक तथा तकनीकी क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ रूस और अन्य देशों के सामने वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • यह रूस और एशिया प्रशांत के देशों बीच राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को विकसित करने की रणनीति पर चर्चा करने के लिये एक अंतरराष्ट्रीय मंच के रूप में उभरा है।
  • इस फोरम का मुख्यालय व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) में स्थित है।

भारत-रूस बैठक के मुख्य बिंदु:

  • भारत और रूस एक दीर्घकालिक, विश्वसनीय साझेदार रहे हैं इसलिये दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच व्लादिवोस्तोक के द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के बाद संबंधों के नए आयाम स्थापित होने की संभावना है।
  • व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) में शिखर सम्मेलन के दौरान रक्षा, परमाणु, अंतरिक्ष और ऊर्जा के पारंपरिक क्षेत्रों के साथ ही अंतर-क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर रहेगा।
  • इस सम्मेलन के दौरान भारत और रूस के बीच मिलिट्री लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट (Military Logistics Support Agreement), एग्रीमेंट ऑन रिसिप्रकल लॉजिस्टिक सपोर्ट (Agreement on Reciprocal Logistics Support- ARLS) जैसे समझौते होने की संभावना है। विदित है कि भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (Logistics Exchange Memorandum of Understanding- LEMOA) समझौता हुआ था।
  • भारत और रूस के बीच सैन्य सामानों के साथ ही दोनों देशों द्वारा भारतीय सेना के प्रयोग हेतु बना बनाए जाने वाले Ka-226T हेलीकॉप्टर के निर्माण में भी तेज़ी आने की संभावना है।

रूस का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र:

  • भारत रूस के बीच रूस के उत्तर-पूर्वी भाग जैसे साइबेरिया, बैकाल झील के आसपास का क्षेत्र और ओखोस्टक सागर इत्यादि में सहयोग बढ़ाने की संभावना है। यह क्षेत्र ऊर्जा संभावनाओं की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत दीर्घकालिक गैस आपूर्ति के लिये इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किये हुए है।
  • इस क्षेत्र की भौगोलिक सीमाएँ मंगोलिया, उत्तरी कोरिया, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन को स्पर्श करती हैं।

भारत-रूस संबंध:

भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत-रूस का संबंध सदैव सौहार्द्रपूर्ण रहा हैं। दोनों देशों के संबंधों में व्यापकता के साथ ही समग्रता भी समाविष्ट है, इसलिये पिछले 70 वर्षों की भू-राजनीतिक घटनाओं में उतार-चढ़ाव के बाद भी भारत-रूस के संबंध सदैव सामंजस्यपूर्ण बने रहे। भारत-रूस के संबंधों का स्वरूप निम्नलिखित है:

  • अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति:
    • 1950 के दशक से ही रूस (तात्कालिक- USSR) के साथ भारत का मैत्रीपूर्ण संबंध रहा है तथा वर्ष 1971 की भारत-सोवियत मैत्री संधि द्वारा संबंधों को और अधिक मज़बूत किया गया।
    • 9 अगस्त, 1971 को भारत ने रूस के साथ 20 वर्षीय सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किये थे। इनमें संप्रभुता के प्रति सम्मान, एक-दूसरे के हितों का ध्यान रखना और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व कायम करना शामिल है। रूस और भारत ने वर्ष 1993 में शांति, मैत्री और सहयोग के क्षेत्र में नई संधि की, लेकिन उसका आधार भी इन्हीं बुनियादी सिद्धांतों को बनाया गया।
    • दिसंबर 2010 में सामरिक साझेदारी को विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्‍त सामरिक साझेदारी के स्तर तक बढ़ा दिया गया।
    • इसके अतिरिक्त रूस ने संयुक्त राष्ट्र में सदैव भारत का ही साथ दिया, वह सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन भी करता रहा है।
    • आतंकवाद, अफगानिस्तान और मध्य-पूर्व के संघर्षों के मुद्दे पर रूस ने सदैव भारत का समर्थन किया है।
  • रक्षा क्षेत्र:
    • भारत की स्वतंत्रता के बाद से भारत को सबसे ज़्यादा हथियार रूस निर्यात करता था तात्कालिक भू-राजनीतिक परिस्थितियों में भारत हथियारों के लिये पूर्णतः रूस पर ही निर्भर था।
    • वर्तमान समय में बदलती वैश्विक परिस्थितियों में भारत, इज़राइल और अमेरिका से भी रक्षा उपकरण खरीद रहा है लेकिन आज भी रूस से भारी मात्रा में भारत हथियारों का आयात जारी है।
    • सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का निर्माण दोनों देशों के बीच सैन्य संबंधों में विश्वास का परिचायक है।
    • दोनों देशों के बीच वर्ष 2007 में पाँचवीं पीढ़ी के युद्धक विमान (Fifth Generation Fighter Aircraft- FGFA) बनाने के लिये अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। इस परियोजना पर प्रगति काफी धीमी है क्योंकि यह बेहद जटिल मामला है। बहुउद्देशीय हथियारों और सैन्य उपकरणों के उत्पादन के लिये में दोनों देशों के बीच सघन सहयोग हैं।
  • अंतरिक्ष:
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation) और फेडेरल स्पेस एजेंसी ऑफ रूस (Roscosmos) ने भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन परियोजना गगनयान पर सहयोग के लिये ‘समझौता ज्ञापन’ पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • रेलवे:
    • भारतीय और रूसी रेलवे के बीच सहयोग हेतु ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे जिसके तहत रूसी रेलवे कंपनी आधुनिक रेल मार्ग बनाने में भारत की मदद कर रहा है।
  • परमाणु ऊर्जा
    • रूस और भारत के बीच वर्ष 2014 में स्ट्रैटेजिक विज़न (Strategic Vision) पर हस्ताक्षर के बाद रूस, तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु रिएक्टर की छह इकाइयों का निर्माण कर रहा है। इस परमाणु रिएक्टर की दो इकाइयाँ पहले से ही सक्रिय हैं और चार कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। भारत भविष्य में रूस द्वारा डिज़ाइन की जाने परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में प्रयुक्त उपकरणों के भारत में विनिर्माण पर ज़ोर दे रहा है।
  • अन्य क्षेत्र:
    • भारत और रूस के बीच छोटे उद्योग, उर्वरक और विदेशी मंत्रालयों के मध्य समन्वय हेतु समझौता हुआ है।
    • भारत और रूस कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI), ब्लॉकचेन प्रणाली (Blockchain System), स्वास्थ्य, पर्यटन, डिजिटलीकरण, वित्तीय तकनीक और क्वांटम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं।

वर्तमान में रूस-भारत संबंधों हेतु चुनौतियाँ:

  • नई भू-राजनीतिक परिस्थितियों में भारत का अमेरिका के करीब आना रूसी दृष्टिकोण से काफी नकारात्मक है
  • रूस शीतयुद्ध के बाद चीन को अपने लिये खतरे के रूप में नही देखता है इसलिये वह चीन के साथ सीमा विवादों का निपटारा और आर्थिक तथा कारोबारी संबंधों का विस्तार कर रहा है।
  • चीन रूसी हथियारों और रक्षा प्रौद्योगिकियों का प्रमुख आयातक हो गया है जिससे चीन आसानी से भारतीय सैन्य शक्ति को संतुलित कर रहा है।
  • भारत और रूस के बीच मुख्यतः रक्षा व्यापार ही होता है इसलिये अन्य क्षेत्र उपेक्षित है इससे संबंधों में भी असंतुलन पैदा हो रहा है।
  • रूस का पाकिस्तान के साथ करीबी संबंध बनाना भी भारत के लिये चिंता का विषय है क्योंकि रूस ने पाकिस्तान के विरुद्ध भारत का सदैव समर्थन किया है।

उपरोक्त चुनौतियों के बाद भी भारत और रूस के संबंध लगातार सौहार्द्र बने हुए हैं इसका सबसे प्रमुख उदाहरण ईस्टर्न इकोनाॅमिक फोरम की बैठक में भारत के प्रधानमंत्री को मुख्य अतिथि बनाना है। भारत अमेरिका के साथ विभिन्न समझौते करने के बाद भी रूस के साथ कहीं भी तुष्टिकरण का भाव नही दिखा रहा है।

भारत ने अमेरिका के साथ काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सेंक्शन एक्ट (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) समझौते के बाद भी रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद कर रहा है।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (29 August)

  • 29 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गाँधी इंडोर स्टेडियम में फिट इंडिया अभियान लॉन्च किया। इसका उद्देश्य देश में लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है। ‘फिट इंडिया अभियान’ को सफल बनाने के लिए केंद्र सरकार के कई मंत्रालय आपसी तालमेल से काम करेंगे। इनमें खेल मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, पंचायती राज और ग्रामीण विकास मंत्रालय शामिल हैं। ये मंत्रालय अपने-अपने स्तर पर कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। यह अभियान करीब चार साल तक चलेगा। इसके तहत हर साल फिटनेस को लेकर अलग-अलग विषयों पर अभियान चलाया जाएगा। पहले साल शारीरिक फिटनेस, दूसरे साल खाने की आदतें, तीसरे साल पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली और चौथे साल रोगों से दूर रहने के तरीकों के प्रति लोगों को जागरूक किया जाएगा। यह अभियान गाँव और पंचायत स्तर से शुरू होकर खंड, जिला और राज्यों के स्तर पर चलेगा। इसके लिये विभिन्न स्तरों पर स्वयंसेवकों की टीमें गठित की जाएंगी, जो लोगों को इस अभियान से जोड़ने में मदद करेंगी। गौरतलब है कि ‘फिट इंडिया अभियान’ पर सरकार को सलाह देने के लिए एक समिति का गठन किया गया था, जिसमें भारतीय ओलंपिक संघ, राष्ट्रीय खेल संघ, सरकारी अधिकारियों, निजी निकायों और प्रसिद्ध फिटनेस हस्तियों को शामिल किया गया था।
  • 29 अगस्त के दिन हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद की जयंती को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है। दूसरे विश्व युद्ध से पहले ध्यानचंद ने 1928 (एम्सटर्डम), 1932 (लॉस एंजेलस) और 1936 (बर्लिन) में लगातार तीन ओलंपिक खेलों में भारत भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया। उन्हें 1956 में पद्मभूषण से समानित किया गया था। ज्ञातव्य है कि ध्यानचंद की जयंती के दिन ही खेल जगत में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को भारत के राष्ट्रपति द्वारा खेलों में विशेष योगदान देने के लिए राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता है। इसके तहत भारतीय खिलाड़ियों को राजीव गांधी खेल रत्न, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कारों के अलावा अर्जुन पुरस्कार से नवाज़ा जाता है।
  • देश के प्रतिष्ठित डूरंड कप फुटबॉल के फाइनल में पहली बार खेल रहे गोकुलम केरल ने मोहन बागान को 2-1 से पराजित कर दिया। कोलकाता के साल्ट लेक स्टेडियम में खेले गए डूरंड कप के 129वें संस्करण के फाइनल मैच में गोकुलम के लिये दोनों गोल त्रिनिदाद के फॉरवर्ड मार्कस जोसफ ने किये। केरल की किसी टीम ने 22 साल बाद एशिया की सबसे पुरानी फुटबॉल प्रतियोगिता के खिताब को अपने नाम किया है। इससे पहले एफसी कोच्चि ने यह खिताब जीता था, जबकि मोहन बागान अब तक 16 बार यह खिताब जीत चुका है। कोलकाता के ही एक अन्य क्लब ईस्ट बंगाल को भी इस कप को 16 बार जीतने का गौरव हासिल है। आपको बता दें कि डूरंड कप एशिया और भारत में फुटबॉल का सबसे पुराना टूर्नामेंट है। वर्ष 1888 में शिमला में भारत में पहली फुटबॉल प्रतियोगिता डूरंड कप आयोजित हुई थी। आज भी यह इस खेल की दुनिया की दूसरी सबसे पुरानी प्रतियोगिता है। इसका नाम इसके संस्थापक सर मोर्टीमर डूरंड के नाम पर रखा गया है, जो वर्ष 1884 से वर्ष 1894 के बीच विदेश सचिव थे।
  • पी.वी. सिंधु की विश्व खिताबी सफलता के साथ-साथ मानसी जोशी ने भी भारतीय पैरा बैडमिंटन में अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया। मानसी जोशी ने स्विट्ज़रलैंड के बासेल में विश्व पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप के महिला एकल एसएल-3 फाइनल में अपने ही देश की पारुल परमार को 21-12, 21-7 से हराकर खिताब जीता। ज्ञातव्य है कि मानसी ने वर्ष 2011 में एक दुर्घटना में अपना बायां पैर गंवा दिया था। उसके आठ साल बाद फाइनल में उन्होंने तीन बार की विश्व चैंपियन पारुल परमार को को पराजित किया। मानसी पुलेला गोपीचंद अकादमी में ट्रेनिंग करती हैं।
  • 4 अगस्त को भारत के मिशन चंद्रयान-2 ने पहली बार अपने एलआई4 कैमरे द्वारा ली गई पृथ्वी की तस्वीरें भेजी थीं। 21 अगस्त को चंद्रमा की दूसरी कक्षा में प्रवेश करने के बाद 23 अगस्त को चंद्रयान-2 ने चंद्रमा की सतह से 4375 किलोमीटर की ऊँचाई से तस्वीरें ली हैं। इन तस्वीरों में कई क्रेटर्स को भी चिह्नित किया गया है, जिनमें प्रोफेसर शिशिर कुमार मित्र के नाम पर 'मित्र' क्रेटर भी शामिल है। पद्म भूषण से सम्मानित प्रोफेसर शिशिर कुमार मित्र भारत के प्रख्यात भौतिकशास्त्री थे। इसके अलावा तस्वीरों में जैक्सन, माच और कोरोलेव क्रेटर्स को भी देखा जा सकता है। इसके पहले चंद्रयान-2 ने 21 अगस्त को तस्वीरें ली थीं, जिनमें मरे ओरिएंटल बेसिन और अपोलो क्रेटर्स को चिह्नित किया गया था। गौरतलब है कि चंद्रयान के साथ भेजा गया लैंडर ‘विक्रम’ 6 सितंबर को चंद्रमा की सतह पर पहुँचेगा और उसके बाद रोवर 'प्रज्ञान' अपने प्रयोग शुरू करेगा। लैंडिंग के बाद 6 पहियों वाला रोवर प्रज्ञान लैंडर से अलग हो जाएगा। इसके बाद 14 दिन तक रोवर 'प्रज्ञान' चंद्रमा की सतह पर 500 मीटर तक चलेगा। यह चंद्रमा की सतह की तस्वीरें और विश्लेषण योग्य आँकड़े इकट्ठा करेगा और इसे विक्रम या ऑर्बिटर के ज़रिये हर 15 मिनट में पृथ्वी को भेजेगा।