आपदा प्रबंधन
भूकंप आपदा जोखिम इंडेक्स रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये
भूकंप आपदा जोखिम इंडेक्स रिपोर्ट क्या है?
मेन्स के लिये
आपदा प्रबंधन में भूकंप आपदा जोखिम इंडेक्स रिपोर्ट की उपयोगिता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अथॉरिटी (National Disaster Management Authority-NDMA) तथा IIIT- हैदराबाद के सहयोग से भूकंप आपदा जोखिम इंडेक्स रिपोर्ट (Earthquake Disaster Risk Index) का प्रकाशन किया गया।
मुख्य बिंदु:
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 56 प्रतिशत क्षेत्र, जहाँ लगभग 82 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, बड़े भूकंपों के दृष्टिकोण से सुभेद्य हैं।
- इस इंडेक्स में देश के 50 शहरों तथा 1 ज़िले (बरेली) को शामिल किया गया।
- इस सर्वेक्षण में शहरों को जनसंख्या घनत्व, घरों की बनावट में जोखिम के आधार पर तथा स्मार्ट सिटी योजना को ध्यान में रखते हुए शामिल किया गया।
- वे शहर जो पहाड़ों की ढलान पर बसे थे, वहाँ भूकंप की निम्न अनावृति (Low Exposure) थी, जबकि समतल क्षेत्रों में जहाँ जनसंख्या घनत्व अधिक है वहाँ इसकी उच्च अनावृति (High-Exposure) थी।
- सर्वेक्षण में शामिल सभी शहरों में भूकंप सुभेद्यता (Vulnerability)- पाँच शहरों में निम्न (Low), 36 शहरों में मध्यम (Medium) तथा 9 शहरों में उच्च (High) पाई गई।
- 50 शहरों के सर्वेक्षण से प्राप्त अंतिम आँकड़ों के आधार पर केवल सात शहरों को निम्न स्तरीय जोखिम की श्रेणी में रखा गया है, जबकि 30 शहरों को मध्यम तथा 13 शहरों को उच्च जोखिम की श्रेणी में शामिल किया गया है।
- खतरा (Hazard) का तात्पर्य है कि भूकंप के दौरान कोई क्षेत्र कितनी तीव्रता का कंपन महसूस करता है। यह प्राकृतिक घटना है तथा इस पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता है।
- अनावृति (Exposure) का आशय इससे है कि किसी स्थान विशेष में कितने भवनों का निर्माण हुआ है जो भूकंप के दौरान प्रभावित हो सकते हैं।
- सुभेद्यता (Vulnerability) का तात्पर्य भूकंप प्रवण (Prone) क्षेत्र में बनी इमारतों की सहनशक्ति से है। सुभेद्यता को व्यवस्थित इंजीनियरिंग तथा आर्किटेक्चर द्वारा ठीक किया जा सकता है।
आगे की राह:
- इस रिपोर्ट के माध्यम से तथा अन्य जन जागरूकता के प्रयासों द्वारा भूकंप के खतरों के प्रति सचेत होने की आवश्यकता है जिससे भूकंप प्रवण क्षेत्रों में घरों के निर्माण से बचा जा सके।
- आर्किटेक्ट तथा इंजीनियरों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में नए भवनों के निर्माण में निर्धारित मानदंडों का प्रयोग करते हुए भूकंपरोधी घर बनाए जाएँ।
- इस अध्ययन से प्राप्त आँकड़े नीति निर्माताओं के लिये भूकंप जैसी आपदा से बचाव तथा उसके प्रभाव को कम करने में सहायक हो सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
मोटर बीमा संबंधी नए दिशा-निर्देश
प्रीलिम्स के लिये:
IRDA, IIB, टेलीमैटिक्स बीमा
मेन्स के लिये:
भारत में मोटर बीमा संबंधी प्रस्ताव और इनके लाभ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and development Athaurity of India- IRDAI) द्वारा गठित एक पैनल ने टेलीमैटिक्स बीमा (Telematics Insurance)- ‘नामित बीमा नीति’ (Named Driver Policy) के कार्यान्वयन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।
प्रमुख बिंदु:
- पैनल ने निजी कारों और दो पहिया वाहनों के लिये नामित चालक नीति का विकल्प प्रस्तुत किया है।
- नामित चालक नीति के रूप में मोटर बीमा कवरेज उन चालकों को दिया जाएगा जो विशेष रूप से पॉलिसी में नामित होंगे, वाहन चलाने वाले अन्य व्यक्तियों के लिये बीमा कवरेज की सुविधा नहीं होगी।
मोटर की क्षति से संबंधित उत्पाद संरचना के लिये पैनल के सुझाव:
मोटर की क्षति के लिये उत्पाद संरचना की समीक्षा करते हुए पैनल ने निम्नलिखित सुझाव दिये हैं-
- मोटर वाहनों में यात्रा करने वाले सभी लोगों के पास, मूल पॉलिसी के तहत, बीमित वाहन को दुर्घटना से प्राप्त 25,000 रुपए तक का चिकित्सा व्यय कवरेज होना चाहिये तथा इसके लिये बीमाकर्त्ताओं द्वारा उचित प्रीमियम लिया जाना चाहिये।
- इसके अलावा पैनल ने सुझाव दिया है कि कीड़ों या कृन्तकों द्वारा पहुँचाई गई क्षति या पानी के कारण इंजन में होने वाली क्षति आकस्मिक और बाहरी साधनों के तहत मूल बीमा नीति का हिस्सा होनी चाहिये।
- निजी कारों और दो पहिया वाहनों (बिलकुल नए के अलावा) के लिये, वर्तमान वाहनों की कीमतों में निर्माता द्वारा लगाए गए सभी पुर्जो का मूल्य शामिल करते हुए बीमा राशि को शामिल किया जाना चाहिये।
- तीन साल तक की नई निजी कारों के लिये वर्तमान ऑन रोड कीमत (On Road Price) में वाहन के इनवॉइस वैल्यू, रोड टैक्स और पंजीकरण शुल्क तथा निर्माता द्वारा लगाए गए सभी सामानों के मूल्य को शामिल करते हुए बीमा राशि को शामिल किया जाना चाहिये।
- बीमाधारक द्वारा लगाए गए सामान के मूल्य का उल्लेख अलग से किया जाना चाहिये।
- तीन वर्ष से अधिक के वाहनों के लिये, बीमित राशि, नई मूल्यह्रास तालिका के अनुसार होनी चाहिये।
नई मूल्यह्रास तालिका:
- बीमा राशि 7वें वर्ष के बाद बीमाधारक और बीमाकर्त्ता के बीच पारस्परिक रूप से सहमत मूल्य पर होनी चाहिये।
- वाणिज्यिक वाहनों के लिये बीमा राशि में वर्तमान दिन के चालान का मूल्य (Invoice Value) तथा कार की संरचना निर्माण की लागत (यदि हो तो) शामिल होनी चाहिये।
- निर्माता द्वारा लगाए गए सभी पुर्जो पर मूल्यह्रास का समायोजन 10% वार्षिक दर से होना चाहिये।
- चोरी, नुकसान आदि के दावों के लिये देय राशि, बीमा राशि होनी चाहिये।
- पैनल के अनुसार, अवमूल्यन की दर वाहनों के प्रकार पर निर्भर करेगी।
- इसके तहत अब वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने पर पहले की तुलना में अधिक मुआवजा मिलेगा।
- दोपहिया वाहनों के संदर्भ में 6 महीने पुराने वाहन पर 95%, एक साल पुराने वाहन पर 90%, 7 साल पुराने वाहन पर 40% तक की राशि मिलेगी।
- वहीं कारों पर पहले 3 साल तक कोई अवमूल्यन नहीं लगाया जाएगा। तीन साल बाद अवमूल्यन दर 40% और 7वें साल में 60% हो जाएगी।
टेलीमैटिक्स बीमा (Telematics Insurance):
- टेलीमैटिक्स या ब्लैक बॉक्स बीमा (Black Box Insurance), एक प्रकार का कार बीमा है जिसके अंतर्गत एक छोटा बॉक्स कार में लगाया जाता है।
- यह बॉक्स कार की गतिविधियों जैसे- कार कब, कहाँ और कितने किलोमीटर चलाई गई है, से संबंधित सभी आँकड़े संगृहीत करता है।
- इन आँकड़ों का प्रयोग व्यक्तिगत नवीकरण उद्धरण (Personalised Renewal Quotes) या प्रीमियम की गणना और दुर्घटना चेतावनी तथा चोरी की वसूली जैसी सेवाओं में किया जा सकता है।
- इस बॉक्स के चार घटक होंगे-
- जीपीएस प्रणाली (GPS system)
- गति संवेदक या त्वरणमापी (Motion Sensor or Accelerometer)
- सिम कार्ड (Sim Card)
- कंप्यूटर सॉफ्टवेयर (Computer Software)
- भारतीय बीमा सूचना ब्यूरो (Insurance Information Bureau of India- IIBI) इन आँकड़ों के संरक्षण और प्रबंधन का कार्य करेगा।
भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण
(Insurance Regulatory and Development Authority of India-IRDAI)
- भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) वैधानिक निकाय है।
- इसका गठन बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 के अंतर्गत किया गया था।
- यह एक स्वायत्त संस्था है।
- इस10 सदस्यीय निकाय में एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक और चार अंशकालिक सदस्य होते हैं।
- इसका कार्य भारत में बीमा और बीमा उद्योगों को विनियमित करना तथा उन्हें बढ़ावा देना है।
- इसका मुख्यालय हैदराबाद में है।
भारतीय बीमा सूचना ब्यूरो
(Insurance Information bureau of India- IIB)
- वर्ष 2009 में भारतीय बीमा सूचना ब्यूरो का गठन बीमा उद्योग की कार्यप्रणाली सरल करने हेतु IRDA द्वारा किया गया था।
- IIB, IRDA अधिनयम 1999 की धारा (2) (1) (e) के तहत बीमा कंपनियों से डेटा लेने, संगृहीत करने के लिये अधिकृत है।
लाभ:
- मोटर बीमा के नए नियमों और शर्तों का मानकीकृत और सरल शब्दांकन ग्राहक को कवरेज और बहिष्करण को बेहतर शब्दों में समझने में सहायता करेगा।
- इसके अलावा इससे वाहनों की गलत बिक्री की संभावना भी कम होगी।
- बीमाधारक के लिये कम जोखिम उत्पन्न होगा तथा नुकसान अनुपात के सुधार में मददगार साबित होगा।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
15वें वित्त आयोग का कार्यकाल बढ़ाने की मंज़ूरी
प्रीलिम्स के लिये:
वित्त आयोग
मेन्स के लिये:
वित्त आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, वित्त आयोग का गठन, वित्त आयोग के अधीन विचारणीय विषय, वित्त आयोग की अवधि में वृद्धि से होने वाले लाभ
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15वें वित्त आयोग के कार्यकाल को एक वर्ष तक के लिये बढ़ा दिया है। अब आयोग वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये अंतरिम रिपोर्ट और वित्तीय वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक के लिये पूर्ण रिपोर्ट 30 अक्तूबर, 2020 तक प्रस्तुत करेगा।
प्रमुख बिंदु
- कार्यकाल के विस्तार से वित्त आयोग को 2020 से 2026 तक की अवधि के लिये अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में सहजता होगी।
- इस दौरान आयोग नए आर्थिक सुधारों और वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए वित्तीय अनुमानों के लिये विभिन्न तुलनात्मक अनुमानों की जाँच-पड़ताल भी कर सकेगा।
नोट:
- संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत राष्ट्रपति वित्त आयोग का गठन करेगा। इसकी अवधि प्रत्येक 5 वर्ष में या राष्ट्रपति के आवश्यक समझने के अनुसार पहले समाप्त होगी।
- स्पष्ट है कि यह निर्णय भारत के संविधान में निहित प्रवधानों के विपरीत नहीं है।
कार्यकाल क्यों बढ़ाया गया?
- वित्त आयोग के विचारणीय विषय व्यापक स्वरूप के हैं। ऐसे में जो कार्य आयोग को सौंपा गया है वह व्यापक क्षेत्र में फैला है। इनके आशयों की व्यापक जाँच और इन्हें राज्यों की ज़रूरतों के अनुसार बनाने के लिये केंद्र सरकार को अतिरिक्त समय की ज़रूरत होगी।
- चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण, कई तरह के प्रतिबंध लगे होने के चलते आयोग ने हाल ही में विभिन्न राज्यों का दौरा पूरा किया है। इससे आयोग को राज्यों की आवश्यकताओं के विस्तृत आकलन करने के लिये पर्याप्त समय चाहिये।
इस निर्णय से सरकार को क्या लाभ होगा?
जिस अवधि के कवरेज में आयोग की सिफारिशें लागू होनी हैं, उसमें प्रस्तावित बढ़ोतरी से राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के लिये मध्यावधि संसाधन की योजना बनाने में मदद मिलेगी। अप्रैल 2021 के बाद आयोग को 5 वर्ष की कवरेज अवधि उपलब्ध होने से राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार, दोनों को मध्यम से लंबी अवधि हेतु योजनाओं को तैयार करने में मदद मिलेगी। यह अनुमान है कि मौजूदा वित्त वर्ष में शुरू किये गए आर्थिक सुधारों का प्रभाव 2020-21 की पहली तिमाही के अंत में प्राप्त आँकड़ों में दिखाई देगा।
स्रोत: pib
शासन व्यवस्था
मिज़ोरम में वन अधिकार कानून
प्रीलिम्स के लिये:
वन अधिनियम, 1927
मेन्स के लिये:
मिज़ोरम में वन संबंधी कानूनों से संबंधित विभिन्न मुद्दे
चर्चा में क्यों?
19 नवंबर, 2019 को मिज़ोरम सरकार ने अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकार) अधिनियम, 2006 [The Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006- FRA, 2006] के कार्यान्वयन को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया है।
प्रमुख बिंदु
- संविधान के अनुच्छेद 371 (G) के तहत मिज़ोरम के लिये विशेष प्रावधान किये गए हैं।
- मिज़ोरम में संसद द्वारा पारित भूमि स्वामित्व तथा स्थानांतरण से संबंधित सभी कानूनों का लागू होने से पहले राज्य की विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव के माध्यम से पारित किया जाना अनिवार्य है।
- राज्य सरकार ने इसी प्रावधान का प्रयोग करते हुए राज्य में FRA, 2006 के क्रियान्वयन को रोकने का प्रस्ताव पारित किया है।
- जिस प्रकार अनुच्छेद 370 का उपयोग करते हुए जम्मू-कश्मीर में FRA, 2006 के अधिनियमन को रोका गया था उसी प्रकार संविधान के इस विशेष प्रावधान (371, G) का प्रयोग करके मिज़ोरम सरकार ने राज्य से FRA, 2006 को रद्द करने के लिये प्रस्ताव पारित किया।
- मिज़ोरम सरकार ने अनुच्छेद 371 (G) का प्रयोग भारतीय वन अधिनियम, 1927 में प्रस्तावित संशोधन को अस्वीकार करने के शस्त्र के रूप में किया है। राज्य सरकार वन अधिकार अधिनियम, 2006 को रद्द करने के लिये भी इसी अनुच्छेद का प्रयोग कर रही है।
- मिज़ोरम विधानसभा द्वारा 21 दिसंबर, 2009 को एक संकल्प पारित करके FRA, 2006 को पूरे मिज़ोरम में लागू किया गया था।
अन्य तथ्य:
- राज्य में वनों का एक बड़ा हिस्सा लाई, मारा और चकमा (Lai, Mara and Chakma) स्वायत्त ज़िला परिषदों के स्वामित्व में है।
- भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा 2017 की राज्य वन रिपोर्ट के अनुसार, मिज़ोरम में कुल 5,641 वर्ग किलोमीटर वन भूमि का लगभग 20 प्रतिशत अवर्गीकृत वन के रूप में है जो स्वायत्त ज़िला परिषदों के अधीन है।
- सभी पूर्वोत्तर राज्यों में मिज़ोरम में अवर्गीकृत वन का क्षेत्र सबसे कम है। इसका मतलब यह है कि FRA, 2006 के कार्यान्वयन की संभावना मिज़ोरम में सबसे अधिक है।
- उत्तर-पूर्वी राज्यों में ‘पूर्वोत्तर औद्योगिक एवं निवेश संवर्द्धन नीति’ (North East Industrial and Investment Promotion Policy) के लागू होने से सभी सरकारों का ध्यान ज़मीन पाने पर केंद्रित होगा। मिज़ोरम जैसे राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा वनाच्छादित है तथा उस भूमि पर विभिन्न समुदायों का स्वामित्त्व है।
- हाल ही में प्रारंभ किया गया क्षतिपूरक वनीकरण कोष से भी मिज़ोरम सरकार द्वारा लिये गए इस निर्णय की पुष्टि होती है।
अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006
[The Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006- FRA, 2006]
- FRA, 2006 हमारे देश के वनवासियों और जनजातीय समुदायों द्वारा वनों पर उनके अधिकारों का दावा करने के लिये किये गए संघर्ष का परिणाम है, जिस पर वे परंपरागत रूप से निर्भर थे।
- यह अधिनियम हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में लाखों आदिवासियों और अन्य वनवासियों के वन अधिकारों के लिये महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूरे भारत में वंचित आदिवासियों तथा अन्य वनवासियों के वन अधिकारों की बहाली करता है
स्रोत- डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मुद्रा विनिमय समझौता
प्रीलिम्स के लिये:
सार्क समूह, मुद्रा विनिमय समझौता
मेन्स के लिये:
सार्क देशों के साथ मुद्रा विनिमय समझौते की रुपरेखा में किये गए संशोधन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने सार्क (The South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) देशों के साथ मुद्रा विनिमय (Currency Swap) समझौते की रूपरेखा को संशोधित करने का निर्णय लिया है।
मुख्य बिंदु:
- RBI द्वारा सार्क देशों के साथ वर्ष 2019 से 2022 तक के लिये मुद्रा विनिमय समझौते की रुपरेखा को संशोधित करने का निर्णय लिया है।
- यह संशोधित रुपरेखा 14 नवंबर, 2019 से 13 नवंबर, 2022 तक प्रभावी रहेगी।
- RBI उन्हीं सार्क देशों के केंद्रीय बैंकों (Central Banks) के साथ द्विपक्षीय मुद्रा विनिमय समझौते के परिचालन के बारे में विचार-विमर्श करेगा जो देश इस समझौते का लाभ उठाना चाहते हैं।
- RBI वर्ष 2019-2022 तक मुद्रा विनिमय समझौते की संशोधित रुपरेखा के तहत 2 बिलियन डॉलर के समग्र कोष के अंतर्गत मुद्रा विनिमय की व्यवस्था जारी रखेगा।
- इस नए संशोधित मुद्रा विनिमय समझौते के अंतर्गत अमेरिकी डॉलर, भारतीय रुपए या यूरो में आहरण किया जा सकता है। साथ ही इस संशोधित समझौते के अंतर्गत भारतीय रुपए में आहरण करने पर कुछ विशेष रियायतें भी प्रदान की गई हैं।
मुद्रा विनिमय समझौता
(Currency Swap Agreement):
- मुद्रा विनिमय समझौता दो देशों के बीच ऐसा समझौता है जो संबंधित देशों को अपनी मुद्रा में व्यापार करने और आयात-निर्यात के लिये अमेरिकी डॉलर जैसी किसी तीसरी मुद्रा के प्रयोग के बिना पूर्व निर्धारित विनिमय दर पर भुगतान करने की अनुमति देता है।
- भारत सरकार ने सार्क सदस्य देशों के साथ मुद्रा विनिमय समझौते को विदेशी मुद्रा की अल्पकालिक वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने और अन्य सार्क देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये तथा समस्या का समाधान होने तक भुगतान संतुलन के संकट को दूर करने के उद्देश्य से 15 नवंबर, 2012 को मंज़ूरी दी थी।
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ
(South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC):
- सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक और राजनीतिक संगठन है।
- इस समूह में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।
- वर्ष 2007 से पहले सार्क के सात सदस्य थे, अप्रैल 2007 में सार्क के 14वें शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान इसका आठवाँ सदस्य बन गया था।
- सार्क की स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को हुई थी और इसका मुख्यालय काठमांडू (नेपाल) में है।
- प्रत्येक वर्ष 8 दिसंबर को सार्क दिवस मनाया जाता है।
- इस संगठन का संचालन सदस्य देशों की मंत्रिपरिषद द्वारा नियुक्त महासचिव करता है, जिसकी नियुक्ति तीन साल के लिये देशों के वर्णमाला क्रम के अनुसार की जाती है।
स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस
भारत-विश्व
भारत और सऊदी अरब
मेन्स केलिये:
भारत-सऊदी अरब संबंध
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत-सऊदी अरब के मध्य रणनीतिक साझेदारी परषिद की स्थापना तथा नशीली दवाइयों, मादक पदार्थों और प्रतिबंधित रसायनों की अवैध बिक्री एवं तस्करी को रोकने के लिये हस्ताक्षरित अनुबंध को कार्योत्तर स्वीकृति प्रदान की।
प्रमुख बिंदु
- इस अनुबंध के चलते दोनों देशों के उच्च स्तरीय नेतृत्व इस रणनीतिक भागीदारी के तहत चल रही पहलों/परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी करने के लिये नियमित तौर पर मिलने में समर्थ होंगे।
- इससे रणनीतिक जुड़ाव के नए क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिलेगी और यह अर्जित किये जाने वाले लक्ष्यों और प्राप्त होने वाले लाभों को भी परिभाषित करेगा।
लाभ:
- इस प्रस्ताव का उद्देश्य लिंग, वर्ग या आय के पूर्वाग्रह के बिना सऊदी अरब के साथ बेहतर आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों से नागरिकों को लाभ पहुँचाना है।
- सऊदी अरब के साथ किया गया यह अनुबंध रक्षा, सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला करने, ऊर्जा सुरक्षा तथा नवीकरणीय ऊर्जा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में भागीदारी के नए मार्ग प्रशस्त करेगा।
- समझौता ज्ञापन से संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ नियंत्रण सम्मेलन द्वारा परिभाषित नशीली दवाइयों, नशीले पदार्थों एवं प्रतिबंधित रसायनों की अवैध बिक्री एवं तस्करी रोकने के लिये दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ेगा।
- समझौता ज्ञापन के तहत नशीली दवाइयों के उत्पादकों, तस्करों एवं अवैध विक्रेताओं की संदिग्ध गतिविधियों, आग्रह करने पर एनडीपीसी की अवैध बिक्री के विवरण और नशीली दवाइयों से संबंधित आरोप में गिरफ्तार विक्रेताओं के वित्तीय हालात से संबंधी जानकारियाँ साझा करने का प्रावधान है।
- समझौता ज्ञापन के तहत नशीली दवाइयों, नशीले पदार्थों की अवैध बिक्री के आरोप में गिरफ्तार दूसरे देश के नागरिकों के विवरण के बारे में अधिसूचित करने और गिरफ्तार व्यक्ति को दूतावास संबंधी मदद मुहैया कराने का प्रावधान है।
- समझौता ज्ञापन के तहत दोनों में से किसी भी देश में अंदर बरामद की गई नशीली दवाइयों, नशीले पदार्थों का रासायनिक विश्लेषण और नशीली दवाइयों एवं नशीले पदार्थों के बारे में आँकड़े/सूचना साझा करने का प्रावधान है।
अवैध नशीली दवाइयों की बिक्री एक वैश्विक अवैध व्यापार बन गया है। नशीले पदार्थों का बड़े स्तर पर उत्पादन और विभिन्न सरल मार्गों खासकर अफगानिस्तान के ज़रिये इनका प्रसार बढ़ने से युवाओं के बीच इनका उपभोग ऊँचे स्तर पर पहुँच चुका है जिसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है तथा समाज में अपराध बढ़े हैं। नशीले पदार्थों की बिक्री से दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में बगावत और आतंकवाद के लिये धन मुहैया कराया जाता है।
भारत-सऊदी अरब संबंध
- भारत-सऊदी अरब के मध्य द्विपक्षीय आर्थिक संबंध विभिन्न प्रयासों के बावजूद सीमित ही बने हैं। पिछले कुछ वर्षों में तेल के दामों में आई गिरावट ने इस व्यापार में और कमी की है। वर्ष 2019 के प्रथम 9 माह के लिये द्विपक्षीय व्यापार 22 बिलियन डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 9 प्रतिशत कम है। यह व्यापार अत्यधिक असंतुलित है, एक ओर जहाँ कुल व्यापार में भारतीय निर्यात का हिस्सा केवल 20 प्रतिशत है, वहीं दूसरी ओर इस व्यापार में प्रमुख हिस्सा तेल से संबंधित है।
- भारत एवं सऊदी अरब दोनों इस बात के पक्षधर हैं कि व्यापार में न सिर्फ विविधता होनी चाहिये बल्कि यह संतुलित भी होना चाहिये, जिससे यह दीर्घकाल तक सतत् बना रहे। संबंधों में उतर-चढ़ाव के कारण भारत में सऊदी अरब का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश कुल विदेशी निवेश का 0.05 प्रतिशत है, इसे भी स्वाभाविक रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है।
- हालाँकि सऊदी अरब ने अपने विज़न 2030 के रणनीतिक दस्तावेज़ में आठ प्रमुख साझीदारों की सूची में भारत को भी शामिल किया है। साथ ही सऊदी अरामको महाराष्ट्र के पश्चिमी तट पर स्थित रायगढ़ में प्रस्तावित 44 बिलियन डॉलर की रिफाइनरी में प्रमुख साझीदार बनने जा रही है। इसके अतिरिक्त सऊदी अरब भारत के रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों में भी सहयोग प्रदान कर रहा है।
- विदित है कि भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आयात पर निर्भर है तथा सऊदी अरब भी अपने तेल निर्यात के लिये भारत को एक बाज़ार के रूप में देख रहा है।
निष्कर्ष
- वर्तमान में भारत-सऊदी अरब संबंध तेल व्यापार से आगे बढ़ रहे हैं तथा दोनों देश आर्थिक और रणनीतिक स्तर पर भी करीब आए हैं। यह समय की मांग है कि दोनों देशों के बीच एक मज़बूत साझेदारी हो जिससे दोनों देश अपने साझा हितों की पूर्ति कर सकें।
स्रोत: pib
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी
प्रीलिम्स के लिये:
विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी
मेन्स के लिये:
विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी के कार्य तथा रुस के संबंध में उठाए गए कदम
चर्चा में क्यों?
विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (World Anti-Doping Agency- WADA) ने वर्ष 2020 के टोक्यो ओलंपिक सहित अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में रूस पर चार वर्ष का प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया है।
प्रमुख बिंदु
- पिछले कुछ वर्षों से रूस पर एक परिष्कृत डोपिंग कार्यक्रम चलाने का आरोप लगाया जा रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने दक्षिण कोरिया के प्योंगचांग में वर्ष 2018 के शीतकालीन ओलंपिक में रूस की भागीदारी पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- रूसी ओलंपिक समिति को निलंबित कर दिया गया था और इस कार्यक्रम में भाग लेने से रोक लगा दी थी। केवल कुछ रूसी एथलीटों को सख्त शर्तों के तहत प्रदर्शन करने की अनुमति दी गई थी।
जाँच प्रक्रिया
वर्ष 2014 से लगातार लग रहे आरोपों के बाद, अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (International Olympic Committee- IOC), WADA और अन्य वैश्विक महासंघों ने जाँच शुरू की।
- मास्को लैब के कामकाज पर नज़र रखने के लिये कनाडा के वकील रिचर्ड मैकलारेन के नेतृत्व में WADA ने एक स्वतंत्र जाँच शुरू की।
- IOC ने निम्न दो संदर्भों में जाँच की:
- सोची गेम्स (Sochi Games) में नमूनों के हेरफेर के साक्ष्य की जाँच।
- दूसरा रूसी राज्य की भागीदारी का पता लगाना।
- IOC आयोग ने दर्जनों रूसी एथलीटों को खेलों में डोपिंग रोधी नियम के उल्लंघन का दोषी पाया।
विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी
- इसे वर्ष 1999 में एक अंतर्राष्ट्रीय स्वतंत्र एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया था, यह खेल आंदोलन और विश्व की सरकारों द्वारा समान रूप से वित्त पोषित है।
- इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।
- इसकी प्रमुख गतिविधियों में वैज्ञानिक अनुसंधान, शिक्षा, एंटी-डोपिंग क्षमताओं का विकास करना और विश्व एंटी-डोपिंग संहिता (कोड) की निगरानी करना शामिल है। विश्व एंटी-डोपिंग संहिता (कोड) सभी खेलों एवं देशों में डोपिंग विरोधी नीतियों का सामंजस्य स्थापित करने वाला दस्तावेज़ है।
- ईमानदारी, जवाबदेही और उत्कृष्टता एजेंसी के मुख्य मूल्य हैं।
अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति
International Olympic Committee
- यह एक गैर-लाभकारी स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो खेल के माध्यम से एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिये प्रतिबद्ध है।
- इसका गठन 23 जून, 1894 को किया गया था और यह ओलंपिक आंदोलन का सर्वोच्च अधिकार है।
- यह ओलंपिक खेलों के नियमित आयोजन को सुनिश्चित करता है, सभी संबद्ध सदस्य संगठनों का समर्थन करता है और उचित तरीकों से ओलंपिक मूल्यों को बढ़ावा देता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजव्यवस्था
तारांकित प्रश्न
प्रीलिम्स के लिये:
तारांकित एवं अतारांकित प्रश्न
मेन्स के लिये:
प्रश्नकाल से संबंधित संसदीय कार्यवाही
चर्चा में क्यों?
27 नवंबर, 2019 को लोकसभा में पूछे गए सभी 20 तारांकित प्रश्नों का मौखिक उत्तर दिया गया।
मुख्य बिंदु:
- वर्ष 1972 के बाद यह पहली बार है, जब लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान 20 तारांकित प्रश्न उठाए गए तथा सभी 20 प्रश्नों के मौखिक उत्तर दिये गए।
- पूछे गए तारांकित प्रश्न प्रधानमंत्री कार्यालय, कोयला, वाणिज्य एवं उद्योग, संचार, रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक तथा सूचना प्रौद्योगिकी, विदेश, विधि और न्याय, खान, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, रेलवे, अंतरिक्ष तथा सांख्यिकी व कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रियों से संबंधित थे।
पूर्व स्थिति:
- 5वीं लोकसभा के दौरान वर्ष 1972 से तारांकित प्रश्नों की सूची में प्रश्नों की संख्या को 20 पर सीमित कर दिया गया था।
- इससे पूर्व, 14 मार्च, 1972 को 5वीं लोकसभा के दौरान एक दिन में सबसे अधिक 14 प्रश्नों का मौखिक उत्तर दिया गया था।
संसद में प्रश्नकाल की कार्यवाही:
- संसदीय कार्य दिवस का पहला घंटा (11 से 12 बजे तक का समय) ‘प्रश्नकाल’ कहलाता है।
- इस अवधि के दौरान संसद सदस्यों द्वारा मंत्रियों से प्रश्न पूछे जाते हैं।
- इस अवधि में पूछे गए प्रश्न की निम्नलिखित श्रेणी के होते हैं-
- तारांकित प्रश्न (Starred Questions): ऐसे प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा मौखिक रूप में दिया जाता है एवं इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न (Supplementary Questions) पूछे जाने की अनुमति होती है।
- अतारांकित प्रश्न (Unstarred Questions): ऐसे प्रश्नों का उत्तर मंत्री द्वारा लिखित रूप में दिया जाता है एवं इन प्रश्नों पर अनुपूरक प्रश्न पूछने का अवसर नहीं मिलता है।
- अल्पसूचना प्रश्न (Short Notice Questions): ऐसे प्रश्नों का संबंध किसी लोक महत्त्व के तात्कालिक विषय से होता है, इनका उत्तर भी मौखिक रूप से दिया जाता है एवं इस पर पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
- निजी सदस्यों से पूछा जाने वाला प्रश्न: ऐसे प्रश्न उन सदस्यों से पूछे जाते हैं, जो मंत्रिपरिषद के सदस्य नहीं होते, किंतु किसी विधेयक, संकल्प या सदन के किसी विशेष कार्य के लिये उत्तरदायी होते है।
स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस
भारत-विश्व
भारत-म्याँमार
मेन्स के लिये:
भारत-म्याँमार संबंध
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने मानव तस्करी रोकने, पीड़ितों को छुड़ाने और उन्हें स्वदेश भेजने के लिये भारत और म्याँमार के बीच द्विपक्षीय सहयोग समझौता ज्ञापन को मंज़ूरी दे दी है।
समझौता ज्ञापन का उद्देश्य:
- दोनों देशों के बीच दोस्ताना संबंध को और मज़बूती प्रदान करना एवं मानव तस्करी को रोकने, पीड़ितों को छुड़ाने और उन्हें स्वदेश भेजने के लिये द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाना।
- मानव तस्करी के सभी रूपों को प्रतिबंधित करने के लिये सहयोग बढ़ाना और तस्करी के शिकार लोगों को सुरक्षा एवं सहयोग प्रदान करना।
- दोनों देशों में मानव तस्करों और संगठित अपराध सिंडिकेट के खिलाफ त्वरित जाँच और अभियोजन सुनिश्चित करना।
- आप्रवासन एवं सीमा नियंत्रण सहयोग को मजबूत करना और मानव तस्करी रोकने के लिये संबंधित मंत्रालयों तथा संगठनों के साथ रणनीति का क्रियान्वयन।
- मानव तस्करी रोकने के प्रयासों के तहत कार्यसमूह/कार्यबल का गठन करना।
- मानव तस्करों एवं तस्करी के शिकार लोगों के आँकड़े जुटाना और भारत तथा म्यांमार के मध्य समझोते में तय बिंदुओं के तहत सूचना का आदान-प्रदान करना।
- दोनों देशों से जुड़ी एजेंसियों के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाना।
- तस्करी के शिकार लोगों के बचाव, उन्हें छुड़ाना और स्वदेश वापस भेजने के लिये मानक संचालन प्रक्रिया तय करना और उसका पालन करना।
पृष्ठभूमि:
मानव तस्करी की समस्या राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जटिल मुद्दा बन गया है। मानव तस्करी की जटिल प्रकृति की वजह से घरेलू, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे निपटने के लिये बहुआयामी रणनीति की ज़रूरत है। मानव तस्करी रोकने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भी सख्त ज़रूरत है। भारत और म्याँमार के बीच सीमा नियंत्रण, संचार एजेंसियों और विभिन्न संगठनों के बीच सहयोग मानव तस्करी रोकने और क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने का एक प्रभावी साधन हो सकता है।
भारत-म्याँमार संबंध
म्याँमार के साथ भारत की 1600 किलोमीटर से ज़्यादा लंबी साझा ज़मीनी और समुद्री सीमा है। पिछले दशक में हमारा व्यापार दोगुने से भी अधिक बढ़ गया है। हमारे निवेश संबंध भी काफी सुदृढ़ हुए हैं। म्याँमार के साथ भारत के विकास संबंधी सहयोग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। फिलहाल भारत की ओर से दी जाने वाली सहायता राशि 1.73 अरब डॉलर से अधिक है। भारत का पारदर्शी विकास सहयोग म्याँमार की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार है जिसका आसियान से जुड़ने के मास्टर प्लान यानी वृहद् योजना के साथ पूरा तालमेल है।
स्रोत: pib
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
नुजेन मोबिलिटी सम्मेलन-2019
प्रीलिम्स के लिये:
न्यूजेन मोबिलिटी सम्मेलन, इंटरनेशनल सेंटर ऑफ ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी,
मेन्स के लिये:
स्मार्ट एवं हरित भविष्य के लिये उन्नत ऑटोमोटिव (मोटर वाहन) प्रौद्योगिकियों का महत्त्व
चर्चा में क्यों?
इंटरनेशनल सेंटर ऑफ ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी (International Centre for Automotive Technology-ICAT) गुरुग्राम के मानेसर में 27 से 29 नवंबर, 2019 तक ‘न्यूजेन मोबिलिटी समिट (NuGen Mobility Summit) 2019’ का आयोजन कर रहा है।
उद्देश्य
- इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य नए विचारों, जानकारियों, वैश्विक अनुभवों, नवाचारों और भावी तकनीकी रुझानों को साझा करना है, ताकि स्मार्ट एवं हरित भविष्य के लिये उन्नत ऑटोमोटिव (मोटर वाहन) प्रौद्योगिकियों को तेज़ी से विकसित कर अपनाया जा सके।
- इस आयोजन से वैश्विक स्तर पर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई प्रगति को समझने हेतु ऑटोमोटिव उद्योग के सभी हितधारकों को एकजुट करने के लिये एक प्लेटफॉर्म का निर्माण करने में मदद मिलेगी।
आयोजक
- इस शिखर सम्मेलन का आयोजन SAENIS, SAE INDIA, SAE इंटरनेशनल, नैट्रिप (National Automotive Testing and R&D Infrastructure Project-NATRiP), DIMTS, भारी उद्योग विभाग (Department of Heavy Industry), सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH), SIAM (Society of Indian Automobile Manufacturers) और ACMA (Automotive Component Manufacturers Association of India) के सहयोग से किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
- ICAT द्वारा आयोजित किये जाने वाले सम्मेलनों की शृंखला में नुजेन मोबिलिटी सम्मेलन 2019 पहला है।
- तीन दिन का यह सम्मेलन ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी क्षेत्र में सबसे बड़ा सम्मेलन है।
- सम्मेलन के विषयों में ई-मोबिलिटी, हाइड्रोमोबिलिटी, कनेक्टेड व्हीकल तथा ITS शामिल किये गए हैं।
लाभ
- इससे देश में 125 वर्षों से उपयोग किये जाने वाले IC ईंजन का उचित विकल्प पाने में मदद मिलेगी।
- यह सम्मेलन वैश्विक आवश्यकताओं के अनुसार नए प्रौद्योगिकी समाधान विकसित करने पर फोकस है। नुजेन जेनरेशन मोबिलिटी, हरित, सुरक्षित तथा किफायती होगी।
ICAT मानेसर
- ICAT मानेसर, भारी उद्योग विभाग के अंतर्गत NATRIP इंप्लीमेंटेशन सोसायटी (NATRIP Implementation Society -NATIS) का एक प्रभाग है।
- ICAT वाहनों की सभी श्रेणियों के परीक्षण, सत्यापन, डिज़ाइन और मान्यता के लिये सेवाएँ प्रदान करता है।
- यह वाहनों के मूल्यांकन और संबंधित घटकों के विकास हेतु अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाने में ऑटोमोटिव उद्योग की सहायता करने वाला एक मिशन है, जो नई पीढ़ी के गतिशीलता समाधानों हेतु वर्तमान और भविष्य के नियमों में विश्वसनीयता, स्थायित्व और अनुपालन सुनिश्चित करता है।
इसमें कृषि क्षेत्र को ऑटोमोबिल क्षेत्र से जोड़ने के महत्त्व को दोहराया गया और कहा गया कि यह क्षेत्र जैव डीज़ल, कृषि तथा ऑटो इंडस्ट्री का भाग्य जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाकर बदल सकता है। जैव डीज़ल के लिये अखाद्य तेल के उत्पादन से देश के कृषि आधार को समर्थन दिया जा सकता है। सरकार ऑटोमोटिव उद्योग को महत्त्वपूर्ण मानती है और कारगर नीतियों से उद्योग को समर्थन देना चाहती है।
स्रोत: pib
जैव विविधता और पर्यावरण
उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2019
प्रीलिम्स के लिये
उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2019 क्या है?
मेन्स के लिये
पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में विभिन्न देशों की भूमिका।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environmental Programme-UNEP) ने उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2019 (Emission Gap Report 2019) प्रकाशित की, जिसमें जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों को लेकर चिंता जाहिर की गई है।
मुख्य बिंदु:
- रिपोर्ट में यह बात कही गई कि यदि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में वर्ष 2020-30 के दौरान प्रतिवर्ष 7.6 प्रतिशत की कमी नहीं की गई तो विश्व, पेरिस समझौते के तहत किये 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकेगा।
- रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों (Green House Gases-GHG) के उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
- इस वजह से वर्तमान में कुल वैश्विक GHG उत्सर्जन 55.3 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (Gigatonne Carbon Dioxide Equivalent-GtCO2e) हो गया है।
- रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में यदि पेरिस समझौते के तहत निर्धारित सभी लक्ष्यों का पालन किया जाता है, तब भी वर्ष 2030 तक वैश्विक तापमान में 3.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी जिसके जलवायु पर व्यापक एवं घातक परिणाम होंगे।
- उपभोग आधारित उत्सर्जन अनुमान (Consumption-based Emission Estimates) के आधार पर कुछ विकासशील देशों द्वारा अधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जन किये जाने के बावजूद यह विकसित देशों की तुलना में कम है। उदाहरण के तौर पर चीन यूरोपियन संघ की तुलना में अधिक CO2 या CO2e का उत्सर्जन करता है परंतु प्रति व्यक्ति CO2 उपभोग के मामले में यह यूरोपियन संघ से कहीं पीछे है।
- विश्व का 78 प्रतिशत GHG का उत्सर्जन G20 देशों द्वारा होता है जबकि चीन, अमेरिका, यूरोपियन संघ तथा भारत मिलकर 55 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
- यद्यपि लगभग 65 देशों ने वर्ष 2050 तक अपने GHG के उत्सर्जन में कुल शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है लेकिन इसके क्रियान्वयन के लिये कुछ ही देशों ने अपनी रणनीति बनाई है।
उत्सर्जन गैप (Emission Gap) क्या है?
- उत्सर्जन अंतर को प्रतिबद्धता गैप (Commitment Gap) भी कहा जा सकता है। इसके द्वारा यह आकलन किया जाता है कि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिये हमें क्या करना चाहिये तथा हम वास्तविकता में क्या कर रहे हैं।
- इसके द्वारा कार्बन उत्सर्जन को निर्धारित लक्ष्यों तक कम करने के लिये आवश्यक स्तर तथा वर्तमान के कार्बन उत्सर्जन स्तर का अंतर निकाला जाता है।
इस रिपोर्ट में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने हेतु भविष्य की रणनीति के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई है जो इस प्रकार है:
- GHG उत्सर्जन में कमी करने तथा वर्ष 2030 तक पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु वर्ष 2020 से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 7.6 प्रतिशत की कटौती करनी होगी।
- वैश्विक तापमान में वृद्धि दर को 2oC तक लाने के लिये वर्ष 2020 तक देशों को अपनी राष्ट्रीय निर्धारित भागीदारी (Nationally Determined Contribution-NDC) के लक्ष्य को तीन गुना बढ़ाना होगा, जबकि 1.5oC तक लाने के लिये इस लक्ष्य को पाँच गुना करना होगा।
- राष्ट्रीय निर्धारित भागीदारी (NDC): यह पेरिस समझौते के तहत इसके सदस्य देशों द्वारा निर्धारित एक लक्ष्य है जिसके माध्यम से प्रत्येक देश अपने स्तर पर GHG उत्सर्जन में कमी करने का प्रयास करेगा ताकि इस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
- G20 के सदस्य देशों द्वारा GHG उत्सर्जन में कमी हेतु निर्देश दिये गए हैं। इसके अलावा इसमें G20 के सात बड़े GHG उत्सर्जक देशों के लिये एक दिशा-निर्देश जारी किया गया है ताकि वैश्विक CO2 या CO2e के उत्सर्जन में कमी की जा सके। ये देश हैं- अमेरिका, जापान, चीन, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, यूरोपियन संघ तथा भारत।
- GHG के उत्सर्जन में कमी हेतु वैश्विक अर्थव्यवस्था के अकार्बनीकरण (Decarbonization) की आवश्यकता होगी जिसके लिये मूलभूत ढाँचागत बदलाव ज़रूरी है।
- CO2 या CO2e के उत्सर्जन में कमी के लिये आवश्यक होगा कि अक्षय उर्जा के स्रोतों के प्रयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ उर्जा के उपयोग में दक्षता के लिये प्रयास किया जाना चाहिये। इसके लिये रिपोर्ट में निम्नलिखित सुझाव बताए गए हैं-
- विद्युत निर्माण में नवीकरणीय उर्जा का प्रयोग।
- तीव्र अकार्बनीकरण के लिये उर्जा उत्पादन प्रणालियों से कोयले के प्रयोग पर रोक।
- विद्युत आधारित यातायात के साधनों का विकास।
- उर्जा गहन उद्योगों को अकार्बनीकृत करना।
- सभी तक उर्जा की पहुँच सुनिश्चित करने के साथ ही भविष्य में GHG के उत्सर्जन में कमी करना।
- रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में नवीकरणीय उर्जा के स्रोतों की कीमतों में काफी कमी आई है तथा आगामी वर्षों में इसमें और कमी की उम्मीद की जा रही है। अतः इसके प्रयोग को बढ़ावा देने से जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- ऐसे पदार्थ जिनकी वैश्विक स्तर पर मांग अधिक है तथा इनके उत्पादन में GHG का उत्सर्जन अधिक होता है, उनमें संरचनात्मक सुधार किया जाए ताकि वे अधिक टिकाऊ बन सकें एवं 3R (Reduce, Reuse, Recycle) के द्वारा उनके उत्पादन को सीमित किया जा सके।
- इनमें लोहा तथा इस्पात, सीमेंट, चूना एवं प्लास्टर, भवन निर्माण सामग्री, प्लास्टिक और रबर उत्पाद आदि शामिल हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू
विविध
RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (28 नवंबर)
लोकपाल का लोगो और मोटो
नवगठित लोकपाल ने अपने प्रतीक चिह्न (Logo) और ध्येय वाक्य (मोटो) लॉन्च कर दिया है। ‘इशावस्या उपनिषद’ के एक श्लोक “मा गृधाह कस्यस्विधनम्” को ‘ध्येय वाक्य’ चुना गया है जिसका अर्थ है- ‘किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति हासिल करने का लोभ न करें।’
त्रिस्तरीय चयन प्रक्रिया के आधार पर उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के रहने वाले प्रशांत मिश्र के डिज़ाइन को लोकपाल के ‘लोगो’ के लिये चुना गया है। यह ‘लोगो’ लोकपाल के शाब्दिक अर्थ पर आधारित है। इसमें ‘लोक’ का अर्थ जनता और ‘पाल’ का मतलब देखभाल करने वाला है। ‘लोगो’ में तीन रंग हैं जो लोकपाल के राष्ट्रीय तत्त्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। गौरतलब है कि लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 के तहत गठित लोकपाल एक संवैधानिक निकाय है। इसका गठन कुछ विशेष श्रेणियों के नौकरशाहों/पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के लिये किया गया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने 23 मार्च,2019 को लोकपाल के अध्यक्ष के रूप में न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को शपथ दिलाई थी।
एलियूड किपचोगे
दो घंटे से कम समय में मैराथन पूरी करने वाले पुरुष एथलीट एलियूड किपचोगे (Eliud Kipchoge) को वर्ष का सर्वश्रेष्ठ पुरुष एथलीट पुरस्कार दिया गया है। किपचोगे ने हाल ही में तब इतिहास रचा था, जब उन्होंने 42.195 किलोमीटर की दूरी एक घंटे 59 मिनट 40.2 सेकेंड में तय की थी। इस ओलंपिक चैम्पियन के नाम एक और विश्व रिकॉर्ड भी है, जो दो घंटे एक मिनट 39 सेकेंड का है।
दालिलाह मुहम्मद
400 मीटर महिला बाधा दौड़ में विश्व चैम्पियन दालिलाह मुहम्मद (Dalilah Muhammad) को वर्ष की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट का पुरस्कार दिया गया है। अमेरिका की दालिलाह ने जुलाई में अमेरिकी ट्रायल्स में 52.20 सेकेंड के समय से वर्ष 2003 से चले आ रहे रिकार्ड को तोड़कर विश्व रिकार्ड बनाया था। इसके बाद उन्होंने दोहा में नए विश्व रिकार्ड समय 52.16 सेकेंड से विश्व चैम्पियनशिप स्वर्ण पदक जीता था। विदित हो कि International Association of Athletics Federations द्वारा विश्व एथलेटिक्स के 50 प्रतिशत खिलाड़ियों, कोचों व पत्रकारों के 25 प्रतिशत तथा आम जनता के 25 प्रतिशत मतों से विजेताओं को चुना जाता है।
एडमिरल सुशील कुमार
पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार का 79 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह वर्ष 1998 से वर्ष 2001 तक भारतीय नौसेना के प्रमुख रहे थे। एडमिरल सुशील कुमार ने वर्ष 1965 व वर्ष 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में हिस्सा लिया था। वे गोवा मुक्ति संग्राम में भी शामिल रहे। वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के दौरान भी वह उस समूह में शामिल थे जो रणनीति बना रहा था। पूर्व एडमिरल संसद पर हुए हमले के जवाब में बनी ऑपरेशन पराक्रम योजना के दौरान चीफ्स ऑफ स्टॉफ कमेटी के अध्यक्ष थे। चीफ्स ऑफ स्टॉफ कमेटी में थलसेना, नौसेना और वायुसेना प्रमुख होते हैं। उन्होंने ‘ए प्राइम मिनिस्टर टू रिमेंबर- मेमोरीज ऑफ मिलिट्री चीफ' नाम से एक किताब भी लिखी हैं। उनके रणकौशल को देखते हुए उन्हें परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल से नवाज़ा गया था।