चकमा और हाजोंग समुदाय
प्रिलिम्स के लिये:चकमा और हाजोंग समुदाय मेन्स के लिये:चकमा और हाजोंग समुदायों के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ और उन्हें संबोधित करने के उपाय, इन संवेदनशील समूहों की सुरक्षा और बेहतरी हेतु गठित कानून, संस्थान एवं निकाय। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने अपने एक आदेश में गृह मंत्रालय और अरुणाचल प्रदेश सरकार को राज्य से चकमा और हाजोंग समुदाय के लोगों की कथित नस्लीय प्रोफाइलिंग और स्थानांतरण के खिलाफ छह सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
- इसके अलावा गृह मंत्रालय और अरुणाचल प्रदेश सरकार दोनों को "यह सुनिश्चित करने हेतु निर्देशित किया गया है कि चकमा एवं हाजोंग लोगों के मानवाधिकार सभी तरीकों से सुरक्षित हों।”
- विदित हो कि दोनों समुदायों के सदस्य कथित तौर पर घृणा अपराध, पुलिस अत्याचारों और मानवाधिकारों से वंचित रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को चकमा और हाजोंग लोगों को नागरिकता देने का निर्देश दिया था, लेकिन इसे अभी तक पूर्णतः लागू नहीं किया गया है।
- वर्ष 1996 में दिये गए एक निर्णय में न्यायालय ने कहा था कि "राज्य के भीतर रहने वाले चकमा समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जाएगी"।
- इन आदेशों के आलोक में और यह देखते हुए कि चकमा/हाजोंग समुदाय के अधिकांश सदस्य राज्य में ही पैदा हुए थे तथा शांति से रह रहे हैं, अगस्त 2021 में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की घोषणा कि चकमा/हाजोंग समुदाय के लोगों को राज्य के बाहर स्थानांतरित कर दिया जाएगा, पूर्णतः अनुचित थी।
- उसके बाद चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया (सीडीएफआई) ने अवैध जनगणना के माध्यम से अरुणाचल प्रदेश के 65,000 चकमा और हाजोंग आदिवासियों की नस्लीय प्रोफाइलिंग के खिलाफ एनएचआरसी से तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया क्योकि राज्य से उनका निर्वासन/निष्कासन/स्थानांतरण 31 दिसंबर, 2021 से शुरू होने वाला था (बाद में जनगणना की योजना को हटा दिया गया था)।
- नस्लीय प्रोफाइलिंग सरकार या पुलिस गतिविधि है जिसमें लोगों की जाँच के लिये उनकी पहचान करने हेतु नस्लीय और सांस्कृतिक विशेषताओं का उपयोग करना शामिल है।
- वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को चकमा और हाजोंग लोगों को नागरिकता देने का निर्देश दिया था, लेकिन इसे अभी तक पूर्णतः लागू नहीं किया गया है।
- विशेष जनगणना के मुद्दे:
- चकमा संगठनों ने कहा कि जनगणना उनके जातीय मूल के कारण दो समुदायों की नस्लीय रूपरेखा के अलावा और कुछ नहीं थी एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व भारत द्वारा अनुमोदित नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय के अनुच्छेद 1 का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 14 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को भारत के क्षेत्र में कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
- अक्तूबर 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 मार्च को नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया।
- चकमा संगठनों ने कहा कि जनगणना उनके जातीय मूल के कारण दो समुदायों की नस्लीय रूपरेखा के अलावा और कुछ नहीं थी एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व भारत द्वारा अनुमोदित नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय के अनुच्छेद 1 का उल्लंघन है।
- चकमा और हाजोंग:
- मिज़ोरम और त्रिपुरा में बौद्ध चकमाओं की एक बड़ी आबादी है जबकि हिंदू हाजोंग ज़्यादातर मेघालय के गारो हिल्स एवं आस-पास के क्षेत्रों में निवास करते हैं।
- अरुणाचल प्रदेश के चकमा और हाजोंग तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान एवं वर्तमान बांग्लादेश के चटगांँव पहाड़ी क्षेत्रों से आए हुए प्रवासी हैं।
- 1960 के दशक में कर्णफुली नदी पर कप्टई बांँध से विस्थापित होकर चकमा और हाजोंग ने भारत में शरण मांगी तथा वर्ष 1964 से 1969 तक अरुणाचल प्रदेश के दक्षिणी एवं दक्षिण-पूर्वी हिस्सों में राहत शिविरों में आकर बस गए।
- उनमें से अधिकांश वर्तमान अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग ज़िले में निवास करते हैं।
- नागरिकता की स्थिति:
- 65,000 चकमा और हाजोंग लोगों से लगभग 60,500 नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 3 के तहत जन्म से नागरिक हैं, जिनका जन्म 1 जुलाई, 1987 से पहले हुआ है, या इस तिथि से पहले पैदा हुए लोगों के वंशज के रूप में हैं।
- वर्ष 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद शेष 4,500 जीवित प्रवासियों के आवेदनों पर आज तक कार्रवाई नहीं की गई है।
- वर्ष 2019 का नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, जिसने वर्ष 1955 के अधिनियम की दो धाराओं में संशोधन किया, का चकमा-हाजोंग समुदाय से कोई संबंध नहीं है, क्योंकि उन्हें वर्ष 1960 के दशक में भारत संघ द्वारा स्थायी रूप से बसाया गया था।
- चूँकि 95% प्रवासियों का जन्म ‘नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी’ या अरुणाचल प्रदेश में हुआ था, इसलिये बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन-1873, जिसके तहत राज्य में आने वाले बाहरी लोगों के लिये इनर लाइन परमिट अनिवार्य है, उन पर लागू नहीं होता है।
- 65,000 चकमा और हाजोंग लोगों से लगभग 60,500 नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 3 के तहत जन्म से नागरिक हैं, जिनका जन्म 1 जुलाई, 1987 से पहले हुआ है, या इस तिथि से पहले पैदा हुए लोगों के वंशज के रूप में हैं।
आगे की राह
- दशकों पुराने मुद्दे का समाधान राज्य में कानून के शासन और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का सम्मान करने में निहित है।
- चकमा-हाजोंग मुद्दे से लाभ प्राप्त करने वाले राजनेताओं को अपनी राजनीति बंद करनी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
बैड बैंक के लिये आरबीआई की मंज़ूरी लंबित
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, बैड बैंक, नेशनल एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड, इंडिया डेट रेज़ोल्यूशन कंपनी लिमिटेड, एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी, इंडियन बैंक्स एसोसिएशन, नॉन-परफॉर्मिंग लोन। मेन्स के लिये:मौद्रिक नीति, बैंकिंग क्षेत्र और एनबीएफसी, बैड बैंक, नेशनल एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड, इंडिया डेट रेज़ोल्यूशन कंपनी लिमिटेड, एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी, नॉन-परफॉर्मिंग लोन और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
'बैड बैंक' स्थापित करने के प्रस्ताव के कार्यान्वयन हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मंज़ूरी अभी भी लंबित है।
- सितंबर 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तनावग्रस्त ऋण संपत्ति प्राप्त करने के लिये राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्निमाण कंपनी (National Asset Reconstruction Company Limited-NARCL)) द्वारा जारी रसीदों को वापस करने हेतु 30,600 करोड़ रुपए की गारंटी को मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
- NARCL & IDRCL:
- NARCL की स्थापना और एक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (ARC) के रूप में कारोबार करने के लिये आरबीआई द्वारा लाइसेंस जारी किया गया है।
- NARCL विभिन्न चरणों में विभिन्न वाणिज्यिक बैंकों से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए की दबावग्रस्त संपत्ति का अधिग्रहण करेगी।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) NARCL में 51% के साथ स्वामित्त्व बनाए रखेंगे।
- इसके साथ ही इंडिया डेट रेज़ोल्यूशन कंपनी लिमिटेड (IDRCL) नामक एक एसेट्स मैनेजमेंट कंपनी के रूप में कार्य करने के लिये एक अलग कंपनी की स्थापना की गई है, जो परिसंपत्तियों का प्रबंधन एवं समाधान प्रदान करेगी और मूल्य से संबंधित परिचालन पहलुओं में भी मदद करेगी तथा इसका उद्देश्य सर्वोत्तम संभव वसूली एवं समाधान प्रक्रिया को विकसित करना होगा।
- IDRCL में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) और सार्वजनिक वित्तीय संस्थान (FI) की अधिकतम 49% की हिस्सेदारी होगी। शेष 51% की हिस्सेदारी निजी क्षेत्र के ऋणदाताओं के पास होगी।
- NARCL प्रमुख रूप से 51% स्वामित्त्व वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्वामित्त्व में है, लेकिन IDRCL के मामले में 51% शेयर निजी क्षेत्र के हाथों में हैं।
- NARCL की स्थापना और एक परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (ARC) के रूप में कारोबार करने के लिये आरबीआई द्वारा लाइसेंस जारी किया गया है।
- दोहरी संरचना का कार्य:
- NARCL पहले बैंकों से बैड लोन खरीदेगा।
- यह सहमत मूल्य (agreed price) का 15% नकद और शेष 85% "सुरक्षा रसीद" के रूप में भुगतान करेगा।
- जब संपत्तियांँ बेची जाएंगी तो IDRCL की मदद से वाणिज्यिक बैंकों को बाकी का भुगतान किया जाएगा।
- यदि बैड बैंक बैड लोन को बेचने में असमर्थ है, या उसे घाटे में बेचना है, तो सरकारी गारंटी लागू होगी।
- वाणिज्यिक बैंक को क्या मिलना चाहिये था और बैड बैंक क्या जुटाने में सक्षम था, इसके मध्य का अंतर सरकार द्वारा प्रदान किये गए 30,600 करोड़ रुपए से पूरा किया जाएगा।
- यह गारंटी पांँच वर्ष की अवधि के लिये बढ़ाई गई है।
- भारतीय बैंकों की मांग:
- आमतौर पर एक एकल इकाई को मालिक के रूप में जवाबदेह ठहराया जाता है तथा संपत्ति की वसूली के लिये भौगोलिक क्षेत्रों का पालन किया जाता है।
- संभवतः इस मुद्दे को हल करने के लिये एक 'प्रिंसिपल एंड एजेंट मैकेनिज्म' (Principal and Agent mechanism) या इसी प्रकार की व्यवस्था विकसित हो सकती है।
- ऐसा माना जाता है कि भारतीय बैंक संघ द्वारा एक दोहरी संरचना की मांग की गई थी जिसमें AMC को निजी तौर पर आयोजित एक इकाई के रूप में, नियामक संस्थाओं के दायरे से बाहर रखा जाए।
- आरबीआई द्वारा छूट:
- RBI दोहरी संरचना की अनुमति देने के लिये इच्छुक नहीं है जिसमें एक इकाई गैर-निष्पादित ऋण (Non-Performing Loans) प्राप्त करती है और दूसरी समाधान है। RBI द्वारा इस बात के संकेत दिये गए हैं कि अधिग्रहण और समाधान दोनों को एक ही कानूनी इकाई के तहत रखा जाना चाहिये।
- उत्पन्न समस्याओं में दो अलग-अलग संस्थाओं - NARCL और IDRCL की प्रस्तावित स्थापना के साथ स्वामित्व संरचना और परिचालन तंत्र से उत्पन्न होने वाले मुद्दे शामिल हैं।
बैड बैंक
- बैड बैंक के बारे में:
- तकनीकी रूप से बैड बैंक एक परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी (Asset Reconstruction Company-ARC) या परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (Asset Management Company- AMC) है जो वाणिज्यिक बैंकों के बैड ऋणों को अपने नियंत्रण में लेकर उनका प्रबंधन और निर्धारित समय पर धन की वसूली करती है।
- बैड बैंक ऋण देने और जमा स्वीकार करने की प्रकिया का भाग नहीं होता है, लेकिन वाणिज्यिक बैंकों की बैलेंस शीट ठीक करने में मदद करता है।
- बैड लोन का अधिग्रहण आमतौर पर ऋण के बुक वैल्यू से कम होता है और बैड बैंक बाद में जितना संभव हो उतना वसूल करने की कोशिश करता है।
- बैड बैंक के प्रभाव:
- वाणिज्यिक बैंकों का दृष्टिकोण: वाणिज्यिक बैंक उच्च NPA स्तर के कारण परेशान हैं, बैड बैंक की स्थापना से इससे निपटने में मदद मिलेगी।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि बैंक अपनी सभी ऐसी संपत्तियों से छुटकारा पा लेगा, जो एक त्वरित कदम में उसके मुनाफे को कम कर रहे थे।
- जब वसूली का पैसा वापस भुगतान के रूप में दिया जाएगा, तो यह बैंक की स्थिति में सुधार करेगा। इस बीच यह फिर से उधार देना शुरू कर सकता है।
- सरकार और करदाता परिप्रेक्ष्य: चाहे डूबे हुए ऋणों से ग्रसित PSB का पुनर्पूंजीकरण हो या सुरक्षा रसीदों की गारंटी देना हो, पैसा करदाताओं की जेब से आ रहा है।
- जबकि पुनर्पूंजीकरण और इस तरह की गारंटी को प्रायः "सुधार" के रूप में नामित किया जाता है, वे एक अच्छे रूप में बैंड अनुदान/सहायता (Band Aids) हैं।
- PSBs में ऋण देने की प्रक्रिया में सुधार करना ही एकमात्र स्थायी समाधान है।
- अगर बैड बैंक बाज़ार में ऐसे बैड एसेट्स को बेचने में असमर्थ रहते हैं तो वाणिज्यिक बैंकों को राहत देने की योजना ध्वस्त हो जाएगी। इसका भार वास्तव में करदाता पर पड़ेगा।
- वाणिज्यिक बैंकों का दृष्टिकोण: वाणिज्यिक बैंक उच्च NPA स्तर के कारण परेशान हैं, बैड बैंक की स्थापना से इससे निपटने में मदद मिलेगी।
आगे की राह
- जब तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का प्रबंधन राजनेताओं और नौकरशाहों के प्रति समर्पित रहेगा, व्यावसायिकता में कमी बनी रहेगी और उधार देने में विवेकपूर्ण मानदंडों का उल्लंघन होता रहेगा।
- इसलिये एक बैड बैंक एक अच्छा विचार है, लेकिन मुख्य चुनौती बैंकिंग प्रणाली में अंतर्निहित संरचनात्मक समस्याओं से निपटने और उसके अनुसार सुधारों की घोषणा करने में है।
स्रोत: द हिंदू
टीपू सुल्तान
प्रिलिम्स के लिये:भारत का इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, टीपू सुल्तान तथा आंग्ल-मैसूर युद्ध। मेन्स के लिये:आधुनिक भारतीय इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम, टीपू सुल्तान और स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मुंबई में टीपू सुल्तान पर एक खेल के मैदान का नामकरण करने पर विवाद खड़ा हो गया।
प्रमुख बिंदु
- संक्षिप्त परिचय:
- नवंबर 1750 में जन्मे टीपू सुल्तान हैदर अली के पुत्र और एक महान योद्धा थे, जिन्हें ‘मैसूर के बाघ’ के रूप में भी जाना जाता है।
- वह अरबी, फारसी, कन्नड़ और उर्दू भाषा में पारंगत व्यक्ति थे।
- हैदर अली (शासनकाल- 1761 से 1782 तक) और उनके पुत्र टीपू सुल्तान (शासनकाल- 1782 से 1799 तक) जैसे शक्तिशाली शासकों के नेतृत्व में मैसूर की शक्ति में काफी बढ़ोतरी हुई।
- टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल के दौरान कई प्रशासनिक नवाचारों की शुरुआत की, जिसमें उनके द्वारा शुरू किये गए सिक्के, नया मौलूदी चंद्र-सौर कैलेंडर और एक नई भूमि राजस्व प्रणाली शामिल थी, जिसने मैसूर रेशम उद्योग के विकास की शुरुआत की।
- पारंपरिक भारतीय हथियारों के साथ-साथ उन्होंने तोपखाने और रॉकेट जैसे पश्चिमी सैन्य तरीकों को अपनाया ताकि उनकी सेनाएँ प्रतिद्वंद्वियों को मात दे सकें और उनके विरुद्ध भेजी गई ब्रिटिश सेनाओं का मुकाबला कर सकें।
- सशस्त्र बलों का रखरखाव:
- टीपू सुल्तान ने अपनी सेना को यूरोपीय मॉडल के आधार पर संगठित किया।
- यद्यपि उन्होंने अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिये फ्राँसीसी अधिकारियों की मदद ली, किंतु उन्होंने फ्राँसीसी अधिकारियों को कभी भी एक दबाव समूह के रूप में विकसित होने की अनुमति नहीं दी।
- वह एक नौसैनिक बल के महत्त्व से अच्छी तरह वाकिफ थे।
- वर्ष 1796 में उन्होंने ‘नौवाहन विभाग बोर्ड’ की स्थापना की और 22 युद्धपोतों तथा 20 फ्रिगेट के बेड़े के निर्माण की योजना बनाई।
- उन्होंने मैंगलोर, वाजेदाबाद और मोलिदाबाद में तीन डॉकयार्ड स्थापित किये। हालाँकि उनकी योजनाएँ साकार नहीं हो सकीं।
- टीपू सुल्तान ने अपनी सेना को यूरोपीय मॉडल के आधार पर संगठित किया।
- मराठों के खिलाफ युद्ध:
- वर्ष 1767 में टीपू ने पश्चिमी भारत के कर्नाटक क्षेत्र में मराठों के खिलाफ घुड़सवार सेना की कमान संभाली और वर्ष 1775-79 के बीच कई मौकों पर मराठों के खिलाफ युद्ध किया।
- आंग्ल-मैसूर युद्धों में भूमिका:
- अंग्रेज़ों ने हैदर और टीपू को एक ऐसे महत्त्वाकांक्षी, अभिमानी और खतरनाक शासकों के रूप में देखा जिन्हें नियंत्रित करना अंग्रेज़ों के लिये आवश्यक हो गया था।
- चार आंग्ल-मैसूर युद्ध हुए जिनके आधार पर निम्नलिखित संधियाँ की गईं।
- 1767-69: मद्रास की संधि।
- 1780-84: मैंगलोर की संधि।
- 1790-92: श्रीरंगपटनम की संधि।
- 1799: सहायक संधि।
- कंपनी ने अंततः श्रीरंगपटनम के युद्ध में जीत हासिल की और टीपू सुल्तान अपनी राजधानी श्रीरंगपटनम की रक्षा करते हुए मारे गए।
- मैसूर को वाडियार वंश के पूर्व शासक वंश के अधीन रखा गया था और राज्य के साथ एक सहायक गठबंधन किया गया।
- अन्य संबंधित बिंदु:
- वह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संरक्षक भी थे तथा उन्हें भारत में 'रॉकेट प्रौद्योगिकी के अग्रणी' के रूप में श्रेय दिया जाता है।
- उन्होंने रॉकेट के संचालन की व्याख्या करते हुए एक सैन्य मैनुअल (फतुल मुजाहिदीन) लिखा।
- टीपू लोकतंत्र के एक महान प्रेमी और महान राजनयिक थे जिन्होंने वर्ष 1797 में जैकोबिन क्लब की स्थापना करने में श्रीरंगपटनम में फ्राँसीसी सैनिकों को समर्थन दिया था।
- टीपू स्वयं जैकोबिन क्लब के सदस्य बने और स्वयं को सिटीज़न टीपू कहलाने की अनुमति दी।
- उन्होंने श्रीरंगपटनम में ट्री ऑफ लिबर्टी का रोपण किया।
- वह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संरक्षक भी थे तथा उन्हें भारत में 'रॉकेट प्रौद्योगिकी के अग्रणी' के रूप में श्रेय दिया जाता है।
सहायक संधि
- लॉर्ड वेलेजली ने वर्ष 1798 में भारत में सहायक संधि प्रणाली की शुरुआत की, जिसके तहत सहयोगी भारतीय राज्य के शासकों को अपने शत्रुओं के विरुद्ध अंग्रेज़ों से सुरक्षा प्राप्त करने के बदले ब्रिटिश सेना के रखरखाव के लिये आर्थिक भुगतान करने को बाध्य किया गया था।
- सहायक संधि करने वाले देशी राजा अथवा शासक किसी अन्य राज्य के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने या अंग्रेज़ों की सहमति के बिना समझौते करने के लिये स्वतंत्र नहीं थे।
- यह संधि राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति थी, लेकिन इसका पालन अंग्रेज़ों ने कभी नहीं किया।
- मनमाने ढंग से निर्धारित एवं भारी-भरकम आर्थिक भुगतान ने राज्यों की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया एवं राज्यों के लोगों को गरीब बना दिया।
- वहीं ब्रिटिश अब भारतीय राज्यों के व्यय पर एक बड़ी सेना रख सकते थे।
- वे संरक्षित सहयोगी की रक्षा एवं विदेशी संबंधों को नियंत्रित करते थे तथा उनकी भूमि पर शक्तिशाली सैन्य बल की तैनाती करते थे।
- लॉर्ड वेलेजली ने वर्ष 1798 में हैदराबाद के निज़ाम के साथ ‘सहायक संधि’ पर हस्ताक्षर किये।
- इस संधि पर वर्ष 1801 में अवध के नवाब को हस्ताक्षर करने के लिये मज़बूर किया गया।
- पेशवा बाजीराव द्वितीय ने वर्ष 1802 में बेसिन में सहायक संधि पर हस्ताक्षर किये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
असामान्य ठंड और वृष्टि-बहुल शीत ऋतु
प्रिलिम्स के लिये:पश्चिमी विक्षोभ, ला नीना। मेन्स के लिये:ला नीना मौसम पैटर्न तथा भारत के मौसम पर उनका प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
भारत, विशेष रूप से उत्तर भारत में वर्ष 2021-22 की शीत ऋतु असामान्य रूप से अत्यधिक ठंडी और लंबी अवधि की रही है एवं दिन के दौरान सामान्य से अधिक ठंड देखी गई।
प्रमुख बिंदु
- असामान्य ठंड और वृष्टि-बहुल शीतऋतु के बारे में:
- अत्यधिक ठंड:
- दिसंबर 2021 के बाद से उत्तर, उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत के क्षेत्रों में तापमान लगातार सामान्य से नीचे बना हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप ठंडे दिन या "कोल्ड डे" की स्थिति बन गई है। तकनीकी रूप से इसका मतलब एक दिन से अधिक की ठंड से होता है।
- एक ठंडा दिन वह होता है जिसमें अधिकतम तापमान 16 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है, ऐसी घटना जो आमतौर पर भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों में सर्दियों के महीनों के दौरान देखी जाती है।
- दिसंबर 2021 के बाद से उत्तर, उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत के क्षेत्रों में तापमान लगातार सामान्य से नीचे बना हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप ठंडे दिन या "कोल्ड डे" की स्थिति बन गई है। तकनीकी रूप से इसका मतलब एक दिन से अधिक की ठंड से होता है।
- वृष्टि-बहुल शीत ऋतु:
- उत्तर भारत के पड़ोसी क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान हल्की से मध्यम तीव्रता की वर्षा भी आमतौर पर देखी जाती है।
- हालाँकि इस वर्ष जनवरी माह में भारत के मध्य, उत्तर-पश्चिमी, उत्तरी, पूर्वी और उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर वर्षा देखी गई है।
- इस महीने कम-से-कम 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अधिक बारिश दर्ज की गई है।
- सामान्य से कम कोहरा :
- दिसंबर एवं जनवरी माह पूरे उत्तर भारत में घने कोहरे (dense fog) के लिये जाने जाते हैं।
- जनवरी 2022 में राष्ट्रीय राजधानी सामान्य 292 घंटों के मुकाबले 252 घंटे कोहरे से प्रभावित रही है।
- आईएमडी (IMD) के अधिकारियों ने कहा है कि वर्तमान सर्दियों में दिल्ली में वर्ष 1991-92 के बाद से सबसे कम कोहरा दर्ज किया गया है।
- दिसंबर एवं जनवरी माह पूरे उत्तर भारत में घने कोहरे (dense fog) के लिये जाने जाते हैं।
- अत्यधिक ठंड:
- कारण:
- पश्चिमी विक्षोभ:
- 25 जनवरी, 2022 तक सात पश्चिमी विक्षोभ भारत के ऊपर से गुज़रे हैं, ये सभी इतने मज़बूत थे कि इसने पाकिस्तान और पूर्वोत्तर भारत के बीच बड़े भौगोलिक क्षेत्रों में व्यापक बारिश, बर्फबारी व अशांत मौसम की स्थिति पैदा हो गई थी।
- इसके कारण उत्तरी महाराष्ट्र में ओलावृष्टि और तमिलनाडु में भारी वर्षा हुई।
- ला नीना (La Niña):
- अधिक संख्या में पश्चिमी विक्षोभ ला नीना की घटना से जुड़े हुए हैं।
- वर्तमान में मध्यम तीव्रता वाली ला नीना स्थितियाँ हैं जो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में सामान्य समुद्री सतह के तापमान की तुलना में ठंडी होती हैं।
- सुदूर उत्तर से ठंडी हवाएँ:
- पश्चिमी विक्षोभ के भारत को पार करने के बाद देश के सुदूर उत्तर से ठंडी हवाएँ निचले अक्षांशों में प्रवेश कर रही हैं और तेलंगाना तथा महाराष्ट्र तक भी पहुँच सकती हैं, जिससे ठंडे मौसम व शीत लहर की स्थिति बन जाती है।
- निचले बादल और नमी:
- निचले बादलों की उपस्थिति और भारत-गंगा के मैदानी इलाकों में नमी की मौजूदगी ने इसे ठंडे दिन की स्थिति और दिन के दौरान अनुभव किये जाने वाले अतिरिक्त सर्द के कारक हेतु अनुकूल बना दिया।
- यह सीज़न का अब तक का सबसे लंबा और सबसे तीव्र चरण था।
- पश्चिमी विक्षोभ:
पश्चिमी विक्षोभ
- पश्चिमी विक्षोभ को भूमध्य सागर में उत्पन्न होने वाले एक ‘बहिरूष्ण उष्णकटिबंधीय तूफान’ के रूप में चिह्नित किया जाता है, जो एक निम्न दबाव का क्षेत्र है तथा उत्तर-पश्चिम भारत में अचानक वर्षा, बर्फबारी एवं कोहरे के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह विक्षोभ ‘पश्चिम’ से ‘पूर्व’ की दिशा की ओर आता है।
- ये विक्षोभ अत्यधिक ऊँचाई पर पूर्व की ओर चलने वाली ‘वेस्टरली जेट धाराओं’ (Westerly Jet Streams) के साथ यात्रा करते हैं।
- विक्षोभ का तात्पर्य ‘विक्षुब्ध’ क्षेत्र या कम हवा वाले दबाव क्षेत्र से है।
- प्रकृति में संतुलन मौजूद है जिसके कारण एक क्षेत्र में हवा अपने दबाव को सामान्य करने की कोशिश करती है।
- "बहिरूष्ण कटिबंधीय तूफान" शब्द में तूफान कम दबाव के क्षेत्र को संदर्भित करता है तथा "अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय"का अर्थ है उष्णकटिबंधीय के अतिरिक्त। चूंँकि पश्चिमी विक्षोभ की उत्पत्ति उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से बाहर होती है, इसलिये "बहिरूष्ण कटिबंधीय" शब्द उनके साथ जुड़ा हुआ है।
ला नीना:
- ला नीना घटनाएँ पूर्व-मध्य विषुवतीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में औसत समुद्री सतही तापमान से निम्न तापमान की द्योतक हैं।
- इसे समुद्र की सतह के तापमान में कम-से-कम पाँच क्रमिक त्रैमासिक अवधि में 0.9°F से अधिक की कमी द्वारा दर्शाया जाता है।
- जब पूर्वी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में जल का तापमान सामान्य की तुलना में कम हो जाता है तो ला नीना की घटना देखी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पूर्वी विषुवतीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में एक उच्च दाब की स्थिति उत्पन्न होती है।
- भारत में ला नीना आमतौर पर सामान्य सर्दियों की तुलना में ठंडा और सामान्य से अधिक वर्षा के लिये ज़िम्मेदार है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन, चीन-मध्य एशिया सम्मेलन, दिल्ली घोषणा, अश्गाबात समझौता, शंघाई सहयोग संगठन, भारत-मध्य एशिया संवाद। मेन्स के लिये:वैश्विक समूह, भारत और उसका पड़ोस, भारत के लिये मध्य एशिया का महत्त्व, क्षेत्र की भू-राजनीतिक गतिशीलता। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने आभासी प्रारूप में पहले भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन की मेजबानी की।
- इसमें कज़ाखस्तान गणराज्य, किर्गिज़ गणराज्य, ताजिकिस्तान गणराज्य, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान गणराज्य के राष्ट्रपतियों ने भाग लिया।
- यह पहल भारत-मध्य एशिया सम्मेलन भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगाँठ के साथ मेल खाता है।
- यह शिखर सम्मेलन चीन-मध्य एशिया सम्मेलन के दो दिन बाद हुआ था, जिसमें चीन ने सहायता के तौर पर 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की पेशकश की थी और प्रतिवर्ष लगभग 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वर्तमान स्तर से व्यापार को 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का वादा किया था।
प्रमुख बिंदु:
- शिखर सम्मेलन का संस्थानीकरण:
- इस सम्मेलन में भारत-मध्य एशिया संबंधों को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के अगले कदमों पर चर्चा की गई एवं, नेताओं ने हर 2 साल में इसे आयोजित करने का एतिहासिक निर्णय लेकर शिखर सम्मेलन तंत्र को संस्थागत बनाने पर सहमति व्यक्त की।
- शिखर सम्मेलन की बैठकों के लिये आधार तैयार करने हेतु विदेश मंत्रियों, व्यापार मंत्रियों, संस्कृति मंत्रियों और सुरक्षा परिषद के सचिवों की नियमित बैठकों पर भी सहमति व्यक्त की गई।
- नए तंत्र का समर्थन करने के लिये नई दिल्ली में एक भारत-मध्य एशिया सचिवालय स्थापित किया जाएगा।
- भारत-मध्य एशिया सहयोग:
- नेताओं ने व्यापार और संपर्क, विकास सहयोग, रक्षा व सुरक्षा के क्षेत्रों में और विशेष रूप से सांस्कृतिक एवं लोगों से लोगों के बीच संपर्क के क्षेत्रों में सहयोग के लिये दूरगामी प्रस्तावों पर चर्चा की। इनमें शामिल हैं:
- ऊर्जा और संपर्क पर गोलमेज बैठक।
- अफगानिस्तान और चाबहार बंदरगाह के इस्तेमाल पर वरिष्ठ आधिकारिक स्तर पर संयुक्त कार्य समूह।
- मध्य एशियाई देशों में बौद्ध प्रदर्शनी और सामान्य शब्दों का भारत-मध्य एशिया शब्दकोश।
- संयुक्त आतंकवाद विरोधी अभ्यास।
- मध्य एशियाई देशों से भारत में हर साल 100 सदस्यीय युवा प्रतिनिधिमंडल की यात्रा और मध्य एशियाई राजनयिकों के लिये विशेष पाठ्यक्रम।
- नेताओं द्वारा एक व्यापक संयुक्त घोषणा को अपनाया गया जो एक स्थायी और व्यापक भारत-मध्य एशिया साझेदारी के लिये उनके सामान्य दृष्टिकोण की गणना करता है।
- नेताओं ने व्यापार और संपर्क, विकास सहयोग, रक्षा व सुरक्षा के क्षेत्रों में और विशेष रूप से सांस्कृतिक एवं लोगों से लोगों के बीच संपर्क के क्षेत्रों में सहयोग के लिये दूरगामी प्रस्तावों पर चर्चा की। इनमें शामिल हैं:
- अफगानिस्तान:
- नेताओं ने एक वास्तविक प्रतिनिधि और समावेशी सरकार के साथ शांतिपूर्ण, सुरक्षित एवं स्थिर अफगानिस्तान के लिये अपने मज़बूत समर्थन को दोहराया।
- भारत ने अफगान लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने की अपनी निरंतर प्रतिबद्धता से अवगत कराया।
- भारत का रुख:
- कज़ाखस्तान: यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण भागीदार बन गया है। भारत ने हाल ही में कज़ाखस्तान में हुए जन-धन के नुकसान पर भी संवेदना व्यक्त की।
- उज़्बेकिस्तान: भारत की राज्य सरकारें भी उज़्बेकिस्तान के साथ इसके बढ़ते सहयोग में सक्रिय भागीदार हैं।
- ताजिकिस्तान: सुरक्षा के क्षेत्र में दोनों देशों का पुराना सहयोग रहा है।
- तुर्कमेनिस्तान: यह क्षेत्रीय संपर्क के क्षेत्र में भारतीय दृष्टिकोण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है जो अश्गाबात समझौते में भागीदारी से स्पष्ट है।
- मध्य एशिया में क्षेत्रीय संपर्क अश्गाबात समझौता 2018 का एक प्रमुख अंग है।
भारत के लिये शिखर सम्मेलन का महत्त्व
- भू-राजनीतिक गतिशीलता:
- यह शिखर सम्मेलन भारत तथा मध्य एशियाई देशों के नेताओं द्वारा एक व्यापक और स्थायी भारत-मध्य एशिया साझेदारी के महत्त्व का प्रतीक है।
- यह एक ऐसे महत्त्वपूर्ण समय पर आयोजित किया जा रहा है जब पश्चिम और रूस तथा संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) व चीन के बीच तनाव बढ़ रहा है। भारत को भी भू-राजनीतिक परिणामों का सामना करना पड़ा है जैसे चीन के साथ सीमा तनाव तथा अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा।
- यह राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा का अनुसरण करता है जो भारत को यूरेशिया में चीन को संतुलित करने और अफगानिस्तान से खतरों को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकता है
- कज़ाखस्तान में हालिया अशांति ने यह भी प्रदर्शित किया है कि "नए अभिनेता" इस क्षेत्र में प्रभाव के लिये होड़ में हैं, हालाँकि उनके इरादे अभी भी स्पष्ट नहीं हैं।
- व्यापार:
- भारत ने हमेशा सभी पाँच मध्य एशियाई राज्यों के साथ उत्कृष्ट राजनयिक संबंध बनाए रखा है, वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका दौरा किया है। फिर भी उनके साथ भारत का व्यापार वर्ष 2019 में केवल 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर ही रहा है।
- वर्ष 2017 में भारत इस क्षेत्र के साथ जुड़ने के लिये शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में शामिल हो गया। लेकिन SCO में शामिल होना रूस एवं चीन जैसे प्रतिद्वंद्विता को नियंत्रित करने के लिये केवल एक रास्ता है ताकि किसी भी शक्ति को इस क्षेत्र पर हावी होने से रोका जा सके।
- रूस, भारत-चीन तनाव को नियंत्रित करने के लिये SCO का उपयोग करता है।
- सुरक्षा:
- शिखर सम्मेलन भारत की कूटनीति के लिये एक बड़ा कदम है। चूँकि यह क्षेत्र भारत की सुरक्षा नीति हेतु अधिक महत्त्वपूर्ण है, इसलिये इस क्षेत्र के प्रति भारत के बहुआयामी दृष्टिकोण को सुविधाजनक बनाने हेतु शिखर सम्मेलन का प्रभाव महत्त्वपूर्ण होगा।
भारत-मध्य एशिया वार्ता:
- यह भारत और मध्य एशियाई देशों जैसे- कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान व उज़्बेकिस्तान के बीच एक मंत्री स्तरीय संवाद है।
- शीत युद्ध के पश्चात् वर्ष 1991 में USSR के पतन के बाद सभी पाँच राष्ट्र स्वतंत्र राज्य बन गए।
- तुर्कमेनिस्तान को छोड़कर वार्ता में भाग लेने वाले सभी देश शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य हैं।
- बातचीत कई मुद्दों पर केंद्रित है जिसमें कनेक्टिविटी में सुधार और युद्ध से तबाह अफगानिस्तान में स्थिरता संबंधी उपाय शामिल है।
आगे की राह
- भारत को सबसे पहले इस क्षेत्र की अपनी ‘बिग पिक्चर इमेजिनेशन’ को सही करने की आवश्यकता है। मध्य एशिया निस्संदेह भारत के सभ्यतागत प्रभाव का क्षेत्र है।
- फरगना घाटी ‘ग्रेट सिल्क रोड’ में भारत का क्रॉसिंग-पॉइंट था। यहीं से बौद्ध धर्म शेष एशिया में फैल गया।
- घाटी अभी भी भारत को तीन देशों से जोड़ती है: उज्बेकिस्तान, किर्गिजस्तान और ताजिकिस्तान।
- जब अन्य देश अपने दृष्टिकोण से इस क्षेत्र के साथ जुड़ते हैं, जैसे- आर्थिक (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से चीन), सामरिक (सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन से रूस), जातीय (तुर्क परिषद से तुर्की )और धार्मिक से इस्लामी विश्व, तब शिखर स्तरीय वार्षिक बैठक के माध्यम से इस क्षेत्र को सांस्कृतिक व ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य देना भारत के लिये उपयुक्त होगा।
- रूस के अपवाद के साथ मध्य एशिया का किसी भी देश के प्रति कोई विशेष रुख नहीं है जबकि जिन देशों के रणनीतिक दृष्टिकोण अक्सर अपारदर्शी होते हैं, वे चीन से सावधान रहते हैं।
- हालाँकि भारत पर बहुत कम या बिल्कुल भी आर्थिक निर्भरता की तुलना में उनके चीन के साथ मज़बूत आर्थिक संबंध हैं।
- पाकिस्तान के प्रति या तो जनसंख्या के क्रमिक इस्लामीकरण के कारण या शायद पाकिस्तान के प्रति रूस के बदले हुए रवैये के कारण इस क्षेत्र का नकारात्मक रवैया कम हो रहा है,।
- पीढ़ीगत बदलाव के साथ भारत की सॉफ्ट पावर फीकी पड़ रही है। इसको रोकने की ज़रूरत है। वाणिज्य के अलावा केवल एक मूल्य-संचालित सांस्कृतिक नीति ही भारत-मध्य एशिया बंधनों के पुनर्निर्माण के वर्तमान अपरिभाषित लक्ष्यों को प्रतिस्थापित कर सकती है।