डेली न्यूज़ (27 Oct, 2020)



डेटा संरक्षण पर संसदीय समिति की कार्रवाई

प्रिलिम्स के लिये:  

डेटा संरक्षण विधेयक, संसदीय विशेषाधिकार 

मेन्स के लिये:

डेटा स्थानीयकरण का महत्त्व, डेटा संरक्षण हेतु सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019’ (Personal Data Protection Bill, 2019) की समीक्षा के लिये गठित संसद की संयुक्त समिति द्वारा फेसबुक इंडिया (फेसबुक की भारतीय इकाई) को समिति के प्रश्नों का लिखित उत्तर देने के लिये दो सप्ताह का समय दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ध्यातव्य है कि 23 अक्तूबर, 2020 को फेसबुक इंडिया की सार्वजनिक नीति निदेशक, ‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक’ पर गठित संसद की संयुक्त समिति के समक्ष प्रस्तुत हुईं, हालाँकि ई-काॅमर्स कंपनी अमेज़न ने 28 अक्तूबर, 2020 को समिति से समक्ष प्रस्तुत होने से मना कर दिया।
  •  अमेज़न के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण कंपनी के ‘विषय विशेषज्ञ’ अमेरिका से भारत आने का जोखिम नहीं उठा सकते।
  • गौरतलब है कि संसदीय समिति ने उपयोगकर्त्ताओं के डेटा की सुरक्षा और संरक्षण के संदर्भ में फेसबुक, अमेज़न, गूगल और पेटीएम आदि कंपनियों से उनके विचार मांगे थे। 
    • पिछले कुछ समय से ऑनलाइन कंपनियों पर आरोप लगते रहे हैंकि उनके द्वारा अपने व्यावसायिक लाभ के लिये उपयोगकर्त्ताओं के गोपनीय डेटा की सुरक्षा के साथ समझौता किया जाता है।

डेटा सुरक्षा पर पूछताछ:

  • समिति द्वारा फेसबुक से उसके निर्णय लेने की प्रक्रिया, राजस्व मॉडल, कर (Tax) भुगतान करने का तरीका, विज्ञापनदाताओं और इन विज्ञापनदाताओं के लिये लक्षित दर्शक चुनने की प्रक्रिया, नए उपयोगकर्त्ताओं की आयु का पता लगाने व उपयोगकर्त्ताओं की पृष्ठभूमि का सत्यापन की प्रक्रिया के संदर्भ में प्रश्न पूछे गए।
  • समिति द्वारा इसी मामले में पूछताछ के लिये अगले सप्ताह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और पेटीएम के अधिकारियों को भी बुलाया गया है।  

समिति द्वारा अमेज़न पर कार्रवाई: 

  • समिति की अध्यक्षा और लोकसभा सदस्य मीनाक्षी लेखी ने अमेज़न की प्रतिक्रिया को संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन बताया है।
  • साथ ही उन्होंने कहा कि यदि निर्धारित तिथि पर कंपनी का कोई प्रतिनिधि समिति के समक्ष नहीं उपस्थित होता है तो ऐसी स्थिति में कंपनी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019

(Personal Data Protection Bill, 2019): 

  • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को केंद्रीय इलेक्ट्राॅनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा दिसंबर 2019 में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था जिसके बाद लोकसभा द्वारा इसे स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था।
  • इस विधेयक का उद्देश्य नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा को सुरक्षा प्रदान करने के साथ इसके लिये एक डेटा सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना करना है।
  • यह विधेयक सरकार, भारत की निजी कंपनियों और विदेशी कंपनियों द्वारा व्यक्तिगत डेटा को एकत्र करने, स्थानांतरित करने तथा इसके प्रसंस्करण की प्रक्रिया को विनियमित करने की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
  • यह विधेयक सरकार को कुछ विशेष प्रकार के व्यक्तिगत डेटा को विदेशों में स्थानांतरित करने की अनुमति देने का अधिकार प्रदान करता है, साथ ही यह सरकारी एजेंसियों को नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने की छूट प्रदान करता है।
  • यह विधेयक सरकार के नेतृत्त्व में बने तकनीकी आधारित समाधानों को भी बढ़ावा देता है, उदाहरण के लिये इस विधेयक के तहत केंद्र सरकार को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह सेवाओं की आपूर्ति के बेहतर लक्ष्यीकरण और साक्ष्य आधारित नीतियों के निर्माण के लिये किसी भी इकाई या कंपनी को गैर-व्यक्तिगत डेटा या अज्ञात डेटा प्रदान करने के लिये निर्देश दे सकती है।

लाभ: 

  • डेटा स्थानीयकरण से किसी मामले की जाँच के दौरान कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये आसानी से डेटा की पहुँच सुनिश्चित की जा सकेगी, जिससे इंटरनेट से जुड़े अपराधों को रोकने में सहायता प्राप्त होगी।
  • साथ ही डेटा स्थानीयकरण के माध्यम से इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों के व्यापार की बेहतर निगरानी संभव होगी।
  • वर्तमान में डेटा अर्थव्यवस्था में भारतीय कंपनियों की भूमिका बहुत ही सीमित है, ऐसे में डेटा स्थानीयकरण के माध्यम से भारतीय बाज़ार में स्थानीय कंपनियों के हितों की रक्षा की जा सकेगी।  

चुनौतियाँ:    

  • कई सामाजिक कार्यकर्त्ता समूहों ने इस विधेयक के तहत सरकार को नागरिकों के डेटा के संदर्भ में दी गई छूट की आलोचना की है। उनके अनुसार, सरकार द्वारा इसका उपयोग लोगों की निगरानी और दमन के लिये किया जा सकता है। 
  • गौरतलब है कि श्रीकृष्णन समिति द्वारा तैयार किये गए मसौदे में सभी प्रकार के व्यक्तिगत डेटा को देश के अंदर ही संरक्षित किये जाने पर बल दिया गया था, जबकि वर्तमान विधेयक में सिर्फ महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा के संदर्भ में ही इसकी अनिवार्यता निर्धारित की गई है। 

संसदीय विशेषाधिकार: 

  • संसदीय विशेषधिकारों से आशय उन विशेष अधिकारों, उन्मुक्तियों या छूट से है जो संसद के दोनों सदनों, इनकी समितियों और इनके सदस्यों को प्राप्त होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लेख किया गया है।
  • संसदीय विशेषाधिकार को व्यापक रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। 
    1. व्यक्तिगत अधिकार: वे अधिकार जिनका उपयोग सदस्य व्यक्तिगत रूप से करते हैं। 
    2. सामूहिक अधिकार: वे अधिकार जिन्हें संसद के दोनों सदनों को सामूहिक रूप से प्रदान किया जाता है।
  • सामूहिक विशेषाधिकारों में सदन को अपनी रिपोर्ट, वाद-विवाद और कार्यवाही के प्रकाशन, जाँच करने, गवाह की उपस्थिति तथा संबंधित प्रपत्र या रिकार्ड को प्रस्तुत करने के लिये आदेश देने का अधिकार शामिल है। साथ ही यह सदस्यों एवं बाहरी लोगों को इसके अधिकारों के हनन या सदन की अवमानना करने पर निंदा करने, चेतावनी या कारावास का दंड (सदस्यों के मामले में बर्खास्तगी या निष्कासन) देने का अधिकार प्रदान करता है।  
    • गौरतलब है कि संविधान के तहत भारत के महान्यायवादी (Attorney General) व केंद्रीय मंत्रियों को संसदीय विशेषधिकार प्रदान किये गए हैं परंतु राष्ट्रपति को ये अधिकार नहीं प्राप्त हैं, हालाँकि राष्ट्रपति का पद संसद का एक अंतरिम भाग होता है। 

स्रोत : द हिंदू


चिली में नए संविधान के लिये जनमत संग्रह

प्रिलिम्स के लिये

चिली की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

नए संविधान को लेकर चिली में जनमत संग्रह और चिली का संवैधानिक इतिहास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण अमेरिकी देश चिली में तानाशाही-युग के संविधान को बदलने और एक नए संविधान का निर्माण करने के लिये जनमत संग्रह किया गया, जिसमें अधिकांश लोगों ने नए संविधान के निर्माण के पक्ष में मतदान किया।

प्रमुख बिंदु 

  • जनमत संग्रह के परिणाम को स्वीकार करते हुए चिली के राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा ने नए संविधान के निर्माण हेतु एक साथ मिलकर कार्य करने का आह्वान किया।

नया संविधान- पृष्ठभूमि 

  • चिली के राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा ने नवंबर 2019 में भारी विरोध प्रदर्शनों के बाद नए संविधान के निर्णय के लिये जनमत संग्रह कराने हेतु सहमति व्यक्त की थी, ज्ञात है कि इन प्रदर्शनों के दौरान चिली की राजधानी सैंटियागो में एक मिलियन से अधिक लोगों ने सड़कों पर अपना विरोध व्यक्त किया था।
  • चिली में मेट्रो के किराए में 4 फीसदी वृद्धि को लेकर शुरू हुए इन विरोध प्रदर्शनों में बाद में कई अन्य मुद्दों को भी शामिल कर लिया गया और धीरे-धीरे ये प्रदर्शन एक विशाल रूप लेने लगे। यद्यपि ये प्रदर्शन काफी शांतिपूर्वक शुरू हुए थे, किंतु समय के साथ इन्होंने हिंसक रूप ले लिया और इसमें काफी संख्या में लोगों की मृत्यु भी हुई।
  • पुराने तानाशाही-युग के संविधान में सुधार लाना प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगों में से एक थी, क्योंकि चिली के इस तानाशाही-युग के संविधान के तहत स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और पेंशन जैसे क्षेत्रों का अधिकार निजी लोगों को दे दिया गया था, जिसके कारण लगाकर असमानता में बढ़ोतरी हो रही थी।

चिली का संविधान और बदलाव की मांग

  • चिली में नए संविधान की मांग के मूल कारणों को जानने के लिये 1970 के दशक में चिली की राजनीति को समझना आवश्यक है। दरअसल 1970-73 के बीच चिली में वामपंथ की तरफ झुकाव रखने वाली साल्वोडोर आयेन्दे की सरकार थी। इस सरकार ने लोकलुभावन योजनाएँ लागू की किंतु इन योजनाओं से अर्थव्यवस्था पर कोई विशिष्ट प्रभाव नहीं पड़ा, जिसके कारण सैन्य विद्रोह हुआ और तख्तापलट के बाद ऑगस्टो पिनोचे की सरकार सत्ता में आई, जिसने चिली के लिये नया संविधान बनाया और ‘आर्थिक उदारीकरण’ की नीति अपनाई।
  • चिली के मौजूदा संविधान में बदलाव के लिये सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि इसका निर्माण एक तानाशाही शासक द्वारा अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से किया गया था, जिसके कारण इसमें आम सहमति और वैधता का अभाव है। 
  • चिली का संविधान पूर्णतः रूढ़िवादिता की ओर झुका हुआ है और आम नागरिकों को राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा लेने के लिये कोई विकल्प प्रदान नहीं करता है।
  • कई आलोचक मानते हैं कि चिली का संविधान अर्थव्यवस्था के उचित विनियमन की व्यवस्था नहीं करता है और न ही यह स्वास्थ्य, शिक्षा, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच प्रदान करता है।
  • असल में चिली के संविधान का निर्माण ही इस तरह से किया गया था कि इसके माध्यम से सामाजिक कल्याण प्रणाली को पूर्णतः निजीकृत कर दिया गया और इसमें सरकार के हस्तक्षेप को न्यूनतम कर दिया गया। 
    • नतीजतन, चिली अल्प वित्त पोषित सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली, जीवन-यापन की उच्च लागत और निजी ऋण के उच्च स्तर जैसी समस्याओं से ग्रसित हो गया।
    • हालाँकि हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि चिली के इस नव-उदारवादी संविधान से देश में काफी आर्थिक विकास और एक नए मध्यम वर्ग का निर्माण भी हुआ।

उदारीकरण का उदाहरण: चिली

  • चिली में नए संविधान के साथ ऑगस्टो पिनोचे की सरकार ने ‘उदारीकरण’ की नीति भी अपनाई, इस नीति के तहत ट्रेड यूनियन को प्रतिबंधित कर दिया गया, स्थानीय व्यवसायों को टैक्स से मिलने वाली छूट हटा दी गई और निजीकरण को बढ़ावा देते हुए देश की लगभग सभी सरकारी इकाइयों का निजीकरण कर दिया।
  • सरकार की इस नीति और नए संविधान के कारण चिली में आर्थिक असमानता बढ़ने लगी और विद्यालय तथा अस्पताल जैसी सभी बुनियादी चीज़े निजी लोगों के पास पहुँच गईं।
    • चिली सरकार के एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2006 में चिली के सबसे अमीर 20 प्रतिशत लोगों ने चिली के सबसे गरीब 20 प्रतिशत से 10 गुना अधिक कमाई की थी, इन आँकड़ों से चिली में आर्थिक असामनता को स्पष्ट देखा जा सकता है।
  • चिली में अर्थव्यवस्था का निजीकरण इस प्रकार हुआ है कि मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग उसका लाभ लेने में सक्षम नहीं हैं, जबकि मध्यम वर्ग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा कर के रूप में देता है।

चिली के बारे में

Chile

  • दक्षिण अमेरिका के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर स्थित चिली पश्चिम में प्रशांत महासागर और पूर्व में एंडीज़ पर्वतमाला के बीच स्थित एक लैटिन अमेरिकी देश है।
  • चिली विश्व के सबसे लंबे और सबसे संकीर्ण देशों में से एक है, जो कि उत्तर में पेरू, पूर्व में बोलीविया और अर्जेंटीना, दक्षिण में ड्रेक पैसेज (Drake Passage) और पश्चिम में प्रशांत महासागर साथ अपनी सीमा साझा करता है।
  • ज्ञात हो कि विश्व के प्रमुख रेगिस्तानों में से एक 'अटाकामा रेगिस्तान' उत्तरी चिली में स्थित एक तटीय रेगिस्तान है। 
  • चिली दक्षिण अमेरिका के उन दो देशों (दूसरा इक्वाडोर) में से है जिसकी सीमाएँ ब्राज़ील से नहीं मिलती है और विश्व का सबसे बड़ा तांबा उत्पादक शहर ‘चुक्वीकमाटा’ (Chuquicamata) चिली में अवस्थित है। 
  • चिली की राजधानी ‘सैंटियागो’ है और तकरीबन 756,096 वर्ग किलोमीटर में फैले इस देश में लगभग 17.9 मिलियन लोग निवास करते हैं।

स्रोत: द हिंदू


भारत सुनामी के खतरे से ज्यादा सुरक्षित: INCOIS

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय सुनामी सूचना प्रणाली केंद्र, भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र, IOC-UNESCO, सुनामी रेडी पहल

मेन्स के लिये:

भारतीय सुनामी सूचना प्रणाली

चर्चा में क्यों?

'भारतीय राष्ट्रीय सागरीय सूचना प्रणाली केंद्र' (Indian National Centre for Ocean Information System- INCOIS) के निदेशक के अनुसार, भारत वर्ष 2004 में आई सुनामी की तुलना में वर्तमान में ज्यादा सुरक्षित है।

प्रमुख बिंदु:

  • सुनामी एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ है हार्बर वेव। सुनामी तथा ज्वार से उत्पन्न लहरों को कभी-कभी एक ही समझ लिया जाता है, लेकिन उनका दैनिक महासागरीय ज्वार से कोई संबंध नहीं है।
  • अधिकांश सुनामी, भूकंपों (रिक्टर स्केल पर 6.5 से अधिक परिमाण के) के कारण उत्पन्न होती हैं, हालाँकि सुनामी ज्वालामुखी प्रस्फुटन, भूस्खलन, परमाणु विस्फोट के कारण भी उत्पन्न हो सकती है।

भारत की सुनामी के प्रति सुभेद्यता:

  • भारतीय तट की सुनामी के प्रति सुभेद्यता की पहचान ऐतिहासिक सुनामी एवं भूकंप की आवृति, उनके परिमाण, प्लेटो में भ्रंश की सापेक्ष स्थिति और सुनामी मॉडलिंग द्वारा की गई है।
  • भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों एवं द्वीप क्षेत्रों सहित निम्नलिखित पाँच संभावित सुनामी उत्पत्ति क्षेत्रों की पहचान की गई है:
    • अंडमान-निकोबार एवं सुमात्रा द्वीप आर्क;
    • इंडो-बर्मीज़ जोन;
    • नैसेंट सीमा (मध्य हिंद महासागर में);
    • चागोस द्वीपसमूह; 
    • मकरान अभिवाहित (Subduction) क्षेत्र।

भारत की INCOIS प्रणाली का विकास:

  • INCOIS की स्थापना वर्ष 1999 में सागरीय क्षेत्र में उपयोगकर्त्ताओं को कई प्रकार की निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। 
  • यह संस्थान, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ( Ministry of Earth Sciences) के तहत एक स्वायत्त संगठन है।
  • यह मछुआरों से लेकर अपतटीय तेल अन्वेषण उद्योगों जैसे उपयोगकर्त्ताओं को अपनी सेवाएँ प्रदान करता है।

भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र:

  • INCOIS, ‘भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र’ (Indian Tsunami Early Warning Centre- ITEWC) के माध्यम से सुनामी, तूफान की लहरों आदि पर तटीय आबादी के लिये निगरानी और चेतावनी संबंधी सेवाएँ प्रदान करता है।
  • ITEWC की स्थापना वर्ष 2004 की सुनामी के बाद वर्ष 2007 में की गई थी।
  • ITEWC केंद्र पूरे हिंद महासागर क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक महासागरों में होने वाली सुनामी हेतु उत्तरदायी भूकंपों का पता लगाने में सक्षम है।
  • ITWC प्रणाली के अवलोकन नेटवर्क, पूर्वानुमान मॉडल, संचार और कंप्युटेशनल सिस्टम का लगातार उन्नयन/अपग्रेडेशन किया जा रहा है। 

ITWC
हिंद महासागर सुनामी चेतावनी और शमन प्रणाली:

  • वर्ष 2004 की सुनामी के बाद ‘हिंद महासागर सुनामी चेतावनी और शमन प्रणाली’ (Indian Ocean Tsunami Warning and Mitigation System- IOTWMS) के लिये ‘अंतर सरकारी समन्वय समूह (Intergovernmental Coordination Group- ICG) का गठन किया गया था।   
  • यूनेस्को के 'अंतरसरकारी महासागरीय आयोग' (IOC-UNESCO) को ICG- IOTWMS के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय बैठकों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच समन्वय के लिये मैंडेट/ जनादेश प्राप्त है।
  • वर्ष 2011 में IOC-UNESCO द्वारा  हिंद महासागर क्षेत्र के 28 देशों के लिये 'सुनामी सेवा प्रदाता' के रूप में 'भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र' को क्षेत्रीय चेतावनी केंद्र के रूप में मान्यता दी गई थी।

सुनामी रेडी पहल:

  • IOC-UNESCO द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन-आधारित सामुदायिक मान्यता के लिये पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ‘सुनामी रेडी पहल’ (TR-I) को प्रारंभ किया गया है।
  • सुनामी रेडी पहल’ (TR-I) में 11 महत्त्वपूर्ण संकेतकों के माध्यम से तटीय समुदायों की क्षमता निर्माण करने के लिये एक प्रभावी संरचित ढाँचे का निर्माण किया जाएगा।

 प्लेटों के ऊर्ध्वाधर विस्थापन का मापन:

  • अंडमान-निकोबार जैसे सुभेद्य क्षेत्रों में 10 मिनट से भी कम समय में सुनामी की चेतावनी जारी करने लिये ‘टेक्टोनिक प्लेटों’ के ऊर्ध्वाधर विस्थापन का मापन आवश्यक होता है। इसके लिये 35 स्टेशनों (जिनमें से 31 जीपीएस स्टेशन तैयार हैं) का एक नेटवर्क स्थापित किया जा रहा है। 

संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र:

  • INCOIS, हैदराबाद 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' के ओशनसैट सैटेलाइट के आँकड़ों का प्रयोग ‘संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र’ (Potential Fishing Zone- PFZ) संबंधी एडवाज़री (Advisories) तैयार करने में किया जाता है।
  • इसके माध्यम से मत्स्य की प्रजातियों के विकास के विशिष्ट क्षेत्रों यथा येलोफिन, टूना आदि के संबंध में सलाह दी जाती है।
  • हाल ही में इस क्षेत्र में भूस्थैतिक उपग्रहों और संख्यात्मक मॉडलिंग के उपयोग के माध्यम से सुधार किया गया है।

SVAS प्रणाली:

  • लघु पोत सलाहकार और पूर्वानुमान सेवा प्रणाली (Small Vessel Advisory and Forecast Services System- SVAS) को विशेष रूप से मत्स्यन में प्रयुक्त जहाज़ों के परिचालन में सुधार करने के लिये शुरू किया गया है।

उपग्रह आधारित संदेश प्रसारण:

  • 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (ISRO) और 'भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण' (AAI) द्वारा 'स्वदेशी नौवहन उपग्रह संचार प्रणाली' नाविक (NAVIC) की साझेदारी से एक उपग्रह आधारित संदेश प्रसारण सेवाओं को विकसित किया जा रहा है।

निष्कर्ष:

  • भारतीय राष्ट्रीय सुनामी सूचना प्रणाली केंद्र (INCOIS)  द्वारा प्रारंभ विभिन्न पहलों का न केवल सुनामी के प्रबंधन में महत्त्व है अपितु इन सेवाओं के माध्यम से देश को ‘ब्लू इकॉनोमी' के लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा 'गहन सागरीय अर्थव्यवस्था' (Deep sea economy) पर भारत की समझ को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

स्रोत: द हिंदू


हिमालयन विवर्तनिक क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

रिक्टर पैमाना, मरकली पैमाना, भारत में भूकंप ज़ोन 

मेन्स के लिये:

भूकंप के पूर्वानुमान में हिमालय क्षेत्र में खोजे गए टेक्टोनिक क्षेत्र का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) के तहत एक स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी(Wadia Institute of Himalayan Geology-WIHG), देहरादून के वैज्ञानिकों द्वारा हिमालय क्षेत्र में नए विवर्तनिक/टेक्टोनिक सक्रिय ( Tectonically Active) क्षेत्र की पहचान की गई है।  

प्रमुख बिंदु: 

  • नए क्षेत्र: वैज्ञानिकों द्वारा हिमालय के सिवनी क्षेत्र या लद्दाख में स्थित सिंधु सिवनी क्षेत्र (Indus Suture Zone- ISZ) को विवर्तनिक अथवा टेक्टोनिक सक्रिय क्षेत्र के रूप में खोजा गया है।
    • यह वह क्षेत्र है जहाँ पर भारतीय और एशियाई प्लेटें आपस में मिलती हैं।
    •  इस खोज से पहले इस इलाके को बंद क्षेत्र (Locked Zone) के रूप में जाना जाता था।
  • वैज्ञानिकों द्वारा हिमालय के सिवनी क्षेत्र का विस्तृत भौगोलिक अध्ययन किया गया ओर पता चला कि यह क्षेत्र वास्तव में बंद क्षेत्र न होकर सक्रिय टेक्टोनिक क्षेत्र है।
  •  वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन के लिये हिमालय के सबसे सुदूर स्थित लद्दाख क्षेत्र को चुना गया।
  • भू-वैज्ञानिकों ने देखा कि जहाँ नदियाँ ऊँचे क्षेत्रों से जुड़ी हुई हैं, वहाँ पर नदी की गाद वाले इलाके झुके हुए तथा उनकी सतह टूटी हुई है। इसके अलावा नदियों का मूल स्रोत काफी क्षीण हो चुका है।परिणामस्वरूप उथली घाटियों का निर्माण हुआ है।
  • इन चट्टानों का अध्ययन देहरादून स्थित प्रयोगशाला में ऑप्टिकली स्टीमुलेटेड ल्यूमिनेसेंस (Optically Stimulated Luminescence-OSL) के माध्यम से किया गया। 
    • इसमें भूकंप की आवृत्ति तथा पहाड़ों की ऊँचाई घटने की दर का अध्ययन किया गया। 
    • भौगोलिक गादों का अध्ययन ल्यूमिनेसेंस डेटिंग विधि (Luminescence Dating Method ) द्वारा किया जाता है।

इस अध्ययन कार्य को टेक्नोफिज़िक्स(Technophysics) जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

प्राप्त परिणाम:

  • प्रयोगशाला से प्राप्त आँकड़ों और भौगोलिक क्षेत्र के अध्ययन से यह बात सामने आई है कि सिंधु सिवनी इलाके में नए टेक्टोनिक क्षेत्र पिछले 78000 से 58000 वर्षों से सक्रिय हैं। 
  • इस क्षेत्र में वर्ष 2010 में अपशी गाँव में कम तीव्रता का (रिक्टर स्केल पर 4 तीव्रता) भूकंप चट्टानों के टूटने की वजह से आया था।

हिमालय क्षेत्र में भूकंप का कारण:

  • हिमालय मुख्य रूप से मेन सेंट्रल थ्रस्ट ( Main Central Thrust-MCT), मेन बाउंड्री थ्रस्ट (Main Boundary Thrust-MBT) और मेन फ्रंटल थ्रस्ट (Main Frontal Thrust-MFT) से निर्मित माना जाता है जो कि उत्तर की ओर झुका हुआ है।
    • अब तक की स्थापित मान्यता के अनुसार मेन फ्रंटल थ्रस्ट को छोड़कर बाकी सभी थ्रस्ट बंद थे। इस स्थिति में हिमालय में जो भी बदलाव होते हैं उनके लिये मेन फ्रंटल थ्रस्ट को ज़िम्मेदार माना जाता था। 

नई खोज का आधार:

  • नई खोज इस बात की पुष्टि करती है कि सिवनी क्षेत्र में स्थिति पुरानी परतें सक्रिय टेक्टोनिक प्लेट हैं। 
    • ऐसे में मौजूदा हिमालय के विकास मॉडल की नए सिरे से गंभीरतापूर्वक दोबारा अध्ययन करने की ज़रूरत है जिसमें नई तकनीकी और बृहत भौगोलिक आँकड़े का इस्तेमाल किया जा सकेगा।
    • हिमालय में विवर्तनिक (टेक्टोनिक) रूप से सक्रिय नए क्षेत्र की पहचान होने से भूकंप के अध्ययन और उसके अनुमान में बदलाव देखने को मिलेगा।

भूकंप से निपटने हेतु मुख्य 6 आधार स्तंभ:

  • भूकंप प्रवण क्षेत्रों में आपात स्थिति के लिये क्षमता निर्माण।
  • नई भूकंपरोधी संरचनाओं का निर्माण।
  • पुरानी संरचनाओं के आधार पर पुन: समायोजन एवं सुदृढ़ीकरण।
  • नियमन एवं प्रवर्तन (अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप भारत में भी प्रत्येक 5 वर्षों में मानकों का पुनरीक्षण)।
  • जागरूकता एवं तैयारी (भूकंप निवारण से संबंधित शिक्षा का प्रसार)।
  • क्षमता निर्माण (प्रशिक्षण, प्रलेखन इत्यादि)।

भूकंपीय तीव्रता का मापन:

रिक्टर पैमाना 

मरकली पैमाना

  • इसे परिमाण पैमाने (Magnitude scale) के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसे तीव्रता पैमाने (Intensity Scale) के रूप में भी जाना जाता है।
  • भूकंप के दौरान उत्पन्न ऊर्जा के मापन से संबंधित है।
  • घटना के कारण होने वाले नुकसान का मापन।
  • इसे 0-10 तक पूर्ण संख्या में व्यक्त किया जाता है। हालाँकि 2 से कम तथा 10 से अधिक रिक्टर तीव्रता के भूकंप का मापन सामान्यतः संभव नहीं है।
  • पैमाने की परास 1-12 तक होती है।

भूकंपीय तीव्रता का निर्धारक: 

  • अतीत में आए भूकंप।
  • तनाव ऊर्जा बजट की गणना।
    • महाद्वीपीय विस्थापन के धरातलीय प्लेटों के विरूपण के कारण पृथ्वी के आंतरिक भागों में संग्रहीत ऊर्जा को तनाव ऊर्जा (Strain Energy) कहा जाता है।
  • सक्रिय भ्रंश का मानचित्रण।

भारत में भूकंप ज़ोन:

Seismic-Zone

  • भूकंपीयता से संबंधित वैज्ञानिक जानकारी, अतीत में आए भूकंप तथा विवर्तनिक व्यवस्था के आधार भारत को चार ‘भूकंपीय ज़ोनों’ में (II, III, IV और V) वर्गीकृत किया गया है।
  • ध्यातव्य है कि पूर्व भूकंप क्षेत्रों को उनकी गंभीरता के आधार पर पाँच ज़ोनों में विभाजित किया गया था, लेकिन 'भारतीय मानक ब्यूरो' ने प्रथम 2 ज़ोनों का एकीकरण करके देश को चार भूकंपीय ज़ोनों में बाँटा है।
  • 'भारतीय मानक ब्यूरो भूकंपीय खतरे का मानचित्रण और कोड प्रकाशित करने के लिये आधिकारिक एजेंसी है।

आगे की राह:

  • भूकंप का सामान्यत: पूर्वानुमान संभव नहीं हैं। हालाँकि भूकंपीय ज़ोन V और IV में बड़े भूकंप आने की संभावना है जो पूरे हिमालय तथा Delhi-NCR क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं।
  • अत: जीवन तथा संपत्तियों के संभावित नुकसान को कम करने का एकमात्र उपाय भूकंप के खिलाफ प्रभावी तैयारी है। इस संबंध में जापान जैसे देशों के साथ बेहतर सहयोग स्थापित किया जा सकता है।
  • नगरीय नियोजन तथा भवनों के निर्माण में आवश्यक भूकंपीय मानकों को लागू किये जाने की आवश्यकता है।
  • भूकंपीय आपदा के प्रबंधन की दिशा में लोगों की भागीदारी, सहयोग और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।

स्रोत: पीआईबी


एकल पुरुष अभिभावक के लिये चाइल्ड केयर लीव

प्रिलिम्स के लिये

छठा और सातवाँ वेतन आयोग, चाइल्ड केयर लीव

मेन्स के लिये

सरकारी कर्मचारियों की दक्षता बढ़ाने हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) द्वारा किये गए कुछ प्रमुख सुधारों के बारे में सूचना देते हुए केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने घोषणा की है कि पुरुष सरकारी कर्मचारी भी अब बच्चों की देखभाल से संबंधित ‘चाइल्ड केयर लीव’ प्राप्त करने में सक्षम होंगे।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह के अनुसार, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) द्वारा इस संबंध में पहले ही आदेश जारी कर दिया गया था, किंतु कुछ कारणों की वजह से लाभार्थियों तक इसका प्रचार नहीं हो सका था।
  • कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) के निर्णय के मुताबिक, केंद्र सरकार के केवल वही पुरुष कर्मचारी ‘चाइल्ड केयर लीव’ (Child Care Leave) प्राप्त कर सकेंगे, जो ‘एकल पुरुष अभिभावक’ हैं, जिसमें ऐसे पुरुष कर्मचारी शामिल हैं जो विधुर (Widower) अथवा तलाकशुदा हैं या फिर अविवाहित हैं और इस कारण एकल अभिभावक के रूप में उन पर बच्चे की देखभाल करने का उत्तरदायित्त्व है।
  • ‘चाइल्ड केयर लीव’ पर जाने वाला कोई कर्मचारी अब सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति से मुख्यालय छोड़ सकता है। इसके अलावा ‘चाइल्ड केयर लीव’ पर जाने वाले कर्मचारी छुट्टी के दौरान भी ‘लीव ट्रैवल कंसेशन’ (LTC) का लाभ उठा सकते हैं।
  • दिव्यांग बच्चे के मामले में ‘चाइल्ड केयर लीव’ को बच्चे की 22 वर्ष की आयु तक ही दिये जाने के प्रावधान को हटा दिया गया है और अब किसी भी उम्र के दिव्यांग बच्चे के लिये सरकारी कर्मचारी द्वारा ‘चाइल्ड केयर लीव’ का लाभ उठाया जा सकता है।

महत्त्व

  • केंद्र सरकार के इस निर्णय को सरकारी कर्मचारियों के जीवन को और अधिक आसान बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण तथा प्रगतिशील सुधार के रूप में देखा जा सकता है।
    • इससे पूर्व एकल पुरुष अभिभावकों को प्रायः अपने बच्चों की देखभाल के लिये समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
  • इन सुधारों से उन सरकारी कर्मचारियों को काफी लाभ होगा, जिनके बच्चे किसी प्रकार की दिव्यंगता से प्रभावित हैं।
  • इन सभी फैसलों का मूल उद्देश्य एक सरकारी कर्मचारी को अपनी अधिकतम क्षमता के साथ योगदान करने में सक्षम बनाना है। विदित हो कि सातवें केंद्रीय वेतन आयोग ने भी ऐसे पुरुष सरकारी कर्मचारियों को चाइल्ड केयर लीव (CCL) का लाभ प्राप्त करने की अनुमति देने की सिफारिश की थी, जो अकेले बच्चे का पालन-पोषण कर रहे हैं।

चाइल्ड केयर लीव (CCL)

  • नियमों के अनुसार, चाइल्ड केयर लीव (CCL) अब तक महिला सरकारी कर्मचारियों को उनके छोटे बच्चों (18 वर्ष की आयु तक) की देखभाल के लिये पूरी सेवा के दौरान अधिकतम दो वर्ष (730 दिन) के लिये दी जाती थी।
    • चाइल्ड केयर लीव (CCL) का लाभ केवल 2 बच्चों तक ही प्राप्त किया जा सकती है।
  • चाइल्ड केयर लीव (CCL) से संबंधित अवकाश की मंज़ूरी पहले 365 दिनों के लिये 100 प्रतिशत सवेतन अवकाश और अगले 365 दिनों के लिये 80 प्रतिशत सवेतन अवकाश के साथ दी जाती है, जिसकी सिफारिश सातवें केंद्रीय वेतन आयोग द्वारा की गई थी।
  • पृष्ठभूमि
    • असल में छठे केंद्रीय वेतन आयोग ने सरकार से ऐसी नीतियाँ बनाने की सिफारिश की थी, जिससे महिला कर्मचारी अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारी निभा सकें, इसी के साथ केंद्र सरकार ने महिला कर्मचारियों के लिये चाइल्ड केयर लीव (CCL) की शुरुआत की।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में 30% की वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये: 

नाइट्रोजन के ऑक्साइड

मेन्स के लिये:

नाइट्रोजन बजट 

चर्चा में क्यों?

नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, वर्ष 1980 से 2016 के बीच नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) के मानवजनित उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह शोध कार्य 'अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन पहल' (International Nitrogen Initiative- INI) और 'ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट ऑफ फ्यूचर अर्थ' द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था जिसमें 14 देशों के 48 संस्थानों के 57 वैज्ञानिक शामिल हुए।
  • अध्ययन में 21 प्राकृतिक और मानवीय स्रोतों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें पाया गया कि कुल उत्सर्जन का 43 प्रतिशत मानव स्रोतों से आया है।
  • यह 'वैश्विक नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन' का अब तक का सबसे व्यापक अध्ययन है। इसमें प्राकृतिक तथा मानवजनित (मानव निर्मित) दोनों स्रोतों से उत्सर्जित नाइट्रोजन का अध्ययन किया गया है।

नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOx):

  • नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) को ओज़ोन का पूर्ववर्ती (Precursors) माना जाता है जो ओज़ोन के समान क्षोभमंडल में एक ‘ग्रीन-हाउस गैस’ (GHG) है।
  • नाइट्रोजन के पाँच आक्साइडों में से केवल तीन अर्थात् नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), नाइट्रिक ऑक्साइड (NO), और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) ही महत्त्वपूर्ण मात्रा में वातावरण में मौजूद हैं, नाइट्रोजन के अन्य दो ऑक्साइड नाइट्रोजन ट्राइऑक्साइड (NO3)और नाइट्रोजन पेंटाऑक्साइड (N2O5) हैं।
  • नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) अम्ल वर्षा और और क्षोभमंडल में ओज़ोन के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाती है।

नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O):

  • नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में 300 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीन-हाउस गैस है। नाइट्रस ऑक्साइड 125 वर्षों तक वातावरण में रह सकती है। 
  • नाइट्रस ऑक्साइड का वैश्विक संकेंद्रण स्तर वर्ष 1750 के 270 PPB (Parts Per Billion) से बढ़कर वर्ष 2018 में 331 PPB हो गया है अर्थात्  इसमें 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है । 
  • मानवजनित उत्सर्जन के कारण पिछले पाँच दशकों में इसके संकेंद्रण में सर्वाधिक वृद्धि हुई है।
  • वर्तमान में नाइट्रस ऑक्साइड ओज़ोन परत के लिये सबसे प्रमुख खतरा है, क्योंकि इसका संकेंद्रण लंबे समय तक वातावरण में बना रहता है।
  • विकासशील देशों यथा- भारत, चीन और ब्राज़ील आदि का नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में प्रमुख योगदान है।

Global-N2O-Budget

अध्ययन का महत्त्व:

  • नाइट्रस ऑक्साइड की वायुमंडल में बढ़ती मात्रा के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन में गैर-कार्बन स्रोतों का योगदान बढ़ रहा है, जबकि वर्तमान में वैश्विक जलवायु परिवर्तन वार्ताओं का मुख्य ध्यान कार्बन के उत्सर्जन और शमन पर केंद्रित है।
  • जलवायु संकट और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के मध्य भी द्वैतवाद (Dichotomy) देखने को मिलता है। पिछले चार दशकों में नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों के प्रयोग से आया है। भोजन तथा पशु-चारे की बढ़ती मांग के कारण नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन की मात्रा में वृद्धि हो सकती है।

आगे की राह:

  • 'संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा' (UNEA-4) को  'स्थायी नाइट्रोजन प्रबंधन' (Sustainable Nitrogen Management) पर संकल्प को लागू करने की दिशा में कार्य करना चाहिये। 
    • यह संकल्प सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये 'वैश्विक नाइट्रोजन चक्र' के बेहतर प्रबंधन हेतु विकल्प तलाशने का समर्थन करता है। 
  • 'नाइट्रस ऑक्साइड' के उत्सर्जन को कम करने के लिये अच्छी तरह से स्थापित प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों की वैश्विक उपलब्धता के लिये सभी देशों को एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिये।
  • यूरोपीय देशों द्वारा अपनाई गई औद्योगिक और कृषि नीतियों से नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी करने में मदद मिली है। ऐसे प्रयासों को यूरोप के साथ ही विश्व स्तर पर अपनाए जाने की आवश्यकता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


मृदा-संचारित हेलमनिथेसिस के प्रसार में कमी

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन, हेलमनिथेसिस, एनीमिया

मेन्स के लिये:

हेलमनिथेसिस के प्रसार को रोकने के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा है कि भारत के  राज्यों में कृमि के प्रसार/फैलाव (Worm Prevalence)  में कमी आई है।  

प्रमुख बिंदु: 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) के अनुसार,  उच्च मृदा-संचारित हेलमनिथेसिस (Soil-Transmitted Helminthiases-STH) से संक्रमित क्षेत्रों में नियमित रूप से साफ-सफाई का ध्यान रखकर बच्चों और किशोरों में कृमि के संक्रमण को समाप्त किया जा सकता है।
  • हेलमनिथेसिस (Helminthiases) परजीवी कृमि (Parasitic Worms) के कारण होने वाली बीमारी या संक्रमण है।

Deworming-infants

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2012 में STH पर प्रकाशित WHO की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1-14 वर्ष आयु वर्ग के 64% बच्चों पर STH का खतरा/जोखिम था।
  • उस समय स्वच्छता एवं सफाई कार्यक्रमों तथा STH के सीमित प्रसार के आधार पर प्राप्त डेटा से जोखिम का अनुमान लगाया गया था।
  • भारत में STH के जोखिम की सटीकता का आकलन करने के लिये स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रव्यापी बेसलाइन STH मैपिंग के समन्वय व संचालन के लिये  राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (National Centre for Disease Control-NCDC) को नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है।
  • देश भर में आधारभूत एसटीएच मैपिंग का कार्य वर्ष 2016 के अंत तक पूर्ण कर लिया गया और इससे प्राप्त आँकड़ों में काफी विविधता देखी गई जो मध्य प्रदेश में 12.5% ​​और तमिलनाडु में 85% थी ।
  • NCDC और अन्य भागीदारों के नेतृत्व में निरंतर चल रहे उच्च कवरेज नेशनल डिवर्मिंग डे (National Deworming Day-NDD) कार्यक्रम के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिये मंत्रालय द्वारा  सर्वेक्षण को और अधिक विस्तारित किया गया है ।

निरंतर किये गए सर्वेक्षण के परिणाम: 

  • 14 राज्यों में सर्वेक्षण का कार्य पूरा कर लिया गया है। इन सभी 14 राज्यों में प्रचलित  बेसलाइन  सर्वेक्षण की तुलना में निरंतर /अनुवर्ती सर्वेक्षण में कृमि प्रसार में कमी देखी गई।
  • निरंतर/अनुवर्ती सर्वेक्षण में छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में कृमि प्रसार में पर्याप्त कमी देखी गई है।
    • छत्तीसगढ़ राज्य में अब तक NDD कार्यक्रम के 10 चरणों को सफलतापूर्वक पूरा किया गया हैं, जिनमें देखा गया है कि कृमि प्रसार में वर्ष 2016 के 74.6% से वर्ष 2018 में 13.9% तक की कमी हुई है।
    • सिक्किम में NDD कार्यक्रम  के 9 चरणों को पूरा किया जा चुका है जिनके अनुसार कृमि प्रसार वर्ष 2015 के 80.4% से घटकर वर्ष 2019 में 50.9% को गया है।
    • राजस्थान एकमात्र राज्य है जिसने केवल 21.1 की निम्न आधार रेखा (Low Baseline of 21.1) के कारण वार्षिक चरण को लागू किया तथा वर्ष 2013 के  सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2019 में 1% से कम के स्तर के साथ कृमि प्रसार में महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई है।

राष्‍ट्रीय कृमि निवारण  दिवस कार्यक्रम

(National Deworming Day Programme): 

  • राष्‍ट्रीय कृमि निवारण  दिवस कार्यक्रम का संचालन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से WHO तथा तकनीकी भागीदारों के साथ महिला और बाल विकास मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय एवं तकनीकी सहायता मंत्रालय द्वारा मिलकर किया जा रहा है। इस कार्यक्रम को वर्ष 2015 में शुरू किया गया था।
  • इस कार्यक्रम को स्कूलों और आँगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से अर्द्धवार्षिक आधार (10 फरवरी और 10 अगस्त) पर लागू किया जाता है।
  • देश में इस वर्ष (2020) की शुरुआत में (जो COVID-19 महामारी के कारण रुका था) अंतिम दौर में, 25 राज्यों/संघ-राज्य क्षेत्रों में 11 करोड़ बच्चों और किशोरों को एल्बेंडाज़ोल की गोलियाँ (Albendazole Tablets) दी गईं।
    • WHO द्वारा अनुमोदित अल्बेंडाज़ोल टैबलेट का उपयोग विश्व स्तर पर मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन  (Mass Drug Administration-MDA) कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में बच्चों और किशोरों में आँतों के कीड़े (Intestinal Worms) के उपचार के लिये  किया जाता है।

मृदा-संचारित  हेल्मिन्थ्स

(Soil-Transmitted Helminths):

  • मृदा-संचारित हेल्मिन्थ्स मनुष्यों को संक्रमित करने वाला एक  कृमि/कीट है जो दूषित मृदा के माध्यम से प्रेषित/ संचारित होता है।
    • आँतों के कीड़े परजीवी के रूप में मानव  आँत में रहते हैं तथा जीवित रहने के लिये एक बच्चे के आवश्यक पोषक तत्त्वों और विटामिन का उपभोग करते हैं।
  •   हेल्मिन्थ्स के तीन मुख्य प्रकार हैं जो लोगों को संक्रमित करते हैं, इनमें शामिल हैं-
    • राउंडवॉर्म (एस्केरिस लुम्ब्रिकॉइड्स), Roundworm (Ascaris lumbricoides) 
    • व्हिपवॉर्म (ट्रिचोरिस ट्राइचिरा),Whipworm (Trichuris trichiura)
    • हुकवॉर्म (नेकेटर एमिरिकेनस और एंकिलोस्टोमा ड्यूएनेल), Hookworms (Necator americanus and Ancylostoma duodenale)
      • ये कीड़े अपने भोजन और जीवित रहने के लिये मानव शरीर पर निर्भर रहते हैं और वहाँ रहने के दौरान हर दिन हज़ारों अंडे देते हैं।

संचरण:

  • मृदा-संचारित हेलमन्थ्स के अंडे का प्रसार संक्रमित लोगों के मल द्वारा होता है, जिन क्षेत्रों में स्वच्छता का अभाव होता है, उस स्थान पर ये अंडे मिट्टी को दूषित करते हैं।

प्रभाव:

  • चूँकि कृमि/कीड़े रक्त सहित मेज़बान (मानव शरीर) के ऊतकों को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं जिसके कारण मानव शरीर में लोहे और प्रोटीन की कमी हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप एनीमिया यानी शरीर में कम हीमोग्लोबिन  (Haemoglobin- Hb) के कारण कोशिकाओं द्वारा ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है।
  • कृमि संक्रमण से पेचिस/दस्त भी हो सकते हैं, संक्रमित व्यक्ति में भूख कम लगना, कम पोषक पदार्थों का सेवन और दुर्बलता देखने को मिलती है। (एक ऐसी स्थिति जो छोटी आँत के माध्यम से पोषक तत्त्वों के अवशोषण को रोकती है।)

उपचार:

WHO द्वारा मान्य/अनुमोदित दवाओं में अल्बेंडाज़ोल (Albendazole), 400 मिलीग्राम तथा मेबेंडाज़ोल (Mebendazole), 500 मिलीग्राम गैर-चिकित्सा कर्मियों (जैसे शिक्षकों) द्वारा दी जाने वाली सस्ती और आसानी से उपलब्ध होने वाली दवाएँ हैं।

स्रोत: पीआईबी