लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 27 Jul, 2020
  • 49 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मुक्त व्यापार समझौता: भारत और ब्रिटेन

प्रीलिम्स के लिये 

संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति, मुक्त व्यापार समझौते

मेन्स के लिये 

भारत-ब्रिटेन व्यापार संबंध, व्यापार समझौतों को लेकर भारत की नीति

चर्चा में क्यों?

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति (Joint Economic and Trade Committee-JETCO) की 14वीं बैठक के दौरान भारत और ब्रिटेन ने आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने के उद्देश्य से मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreeme-FTA) के प्रति साझा प्रतिबद्धता की पुष्टि की है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि भारत और ब्रिटेन दोनों देशों के बीच हाल ही में आयोजित 14वीं संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति (Joint Economic and Trade Committee-JETCO) की बैठक के दौरान इस विषय पर चर्चा की गई।
    • वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और ब्रिटेन की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मंत्री एलिज़ाबेथ ट्रस (Elizabeth Truss) ने संयुक्‍त तौर पर इस बैठक की अध्यक्षता की।
  • 14वीं संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति- मुख्य निर्णय
    • संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति (JETCO) की 14वीं बैठक के दौरान भारत और ब्रिटेन दोनों ही देशों के प्रतिनिधियों ने मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए दोनों देशों के बीच मौजूद व्यापार बाधाओं को समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की।
    • बैठक के दौरान निर्णय लिया गया कि मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की दिशा में प्रारंभिक उपायों के तौर पर दोनों पक्ष चरणबद्ध तरीके से सीमित व्यापार समझौते करेंगे।
    • बैठक में यह भी तय किया गया है कि मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के संबंध में बातचीत को आगे बढ़ाने के लिये पीयूष गोयल और एलिज़ाबेथ ट्रस के नेतृत्त्व में आगामी दिनों में एक बैठक का आयोजन किया जाएगा।
    • वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी और ब्रिटेन में उनके समकक्ष रानिल जयवर्धने (Ranil Jayawardena) इस संबंध में वार्ता को आगे बढाने के लिये मासिक बैठकों का आयोजन भी करेंगे।

BPSC

संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति

  • संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति (JETCO) ब्रिटेन की कंपनियों को अपनी पहुँच बढ़ाने और भारतीय व्यवसायों तथा नीति निर्माताओं के साथ नई साझेदारी विकसित करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
  • JETCO के माध्यम से सरकार-से-सरकार के स्तर की वार्ता का आयोजन किया जाता है और इन वार्ताओं में बाज़ार उदारीकरण तथा बाज़ार पहुँच के मुद्दों को संबोधित किया जाता है।

मुक्त व्यापार समझौता और भारत

  • सामन्यतः मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) का प्रयोग दो या दो से अधिक देशों के बीच व्यापार को सरल बनाने के उद्देश्य से किया जाता है। 
    • मुक्त व्यापार समझौते के तहत दो अथवा दो से अधिक देशों के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात-निर्यात पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा (Quotas) आदि को सरल बनाया जाता है।
  • गौरतलब है कि मुक्त व्यापार समझौते के अंतर्गत बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), निवेश, सार्वजनिक खरीद तथा प्रतिस्पर्द्धा संबंधी नीतियों को भी कवर किया जाता है।
  • बीते कुछ दिनों में भारत की मुक्त व्यापार संबंधी नीति में परिवर्तन दिखाई दे रहा है और भारत अमेरिका, यूरोपीय संघ (EU) तथा ब्रिटेन जैसे देशों के साथ व्यापार समझौतों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो कि भारतीय निर्यातकों के लिये एक प्रमुख बाज़ार हैं।
  • बीते दिनों विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने एक बयान में कहा था कि ‘मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) ने भारत के क्षमता निर्माण में कुछ खास मदद नहीं की है।’
    • हालाँकि उन्होंने स्पष्ट किया था कि सभी FTAs एक समान नहीं है।

भारत और ब्रिटेन- आर्थिक संबंध

  • भारत विश्व की सबसे तेज़ी से विकसित होती अर्थव्यवस्था है और भारत में एक बड़ी संख्या में मौजूद मध्य वर्ग ब्रिटिश निर्यातकों के लिये एक मुख्य आकर्षण है।
  • आँकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष भारत और ब्रिटेन के बीच कुल 24 बिलियन पाउंड (Pound) का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था।
  • बीते दिनों ब्रिटेन सरकार के तहत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभाग (DIT) द्वारा जारी आँकड़ों में  सामने आया था कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत, ब्रिटेन में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया था।
  • ध्यातव्य है कि भारत और ब्रिटेन एक मज़बूत और ऐतिहासिक संबंध साझा करते हैं।
  • ब्रिटेन, भारत के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों में से एक है और वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान ब्रिटेन, भारत के शीर्ष 25 व्यापारिक भागीदारों की सूची में 15वें स्थान पर था।

स्रोत: पी.आई.बी


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति

प्रीलिम्स के लिये

भारत की विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार संबंधी पूर्व की नीतियाँ

मेन्स के लिये

पाँचवीं विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति का महत्त्व और पूर्व की नीतियों से तुलना

चर्चा में क्यों?

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय अक्तूबर माह तक भारत की पाँचवीं विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति (Science, Technology and Innovation Policy-STIP) के पहले मसौदे को प्रस्तुत करने की योजना बना रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • नीति संबंधी प्रमुख तथ्य
    • गौरतलब है कि किसी भी समस्या के समाधान की प्रक्रिया आमतौर पर बहुआयामी एवं अंतर-संस्थागत होती है और कोई भी वैज्ञानिक किसी एक बहुआयामी समस्या को हल नहीं कर सकता है, इसलिये भारत की पाँचवीं विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति को अधिक समावेशी बनाने का प्रयास कर रही है।
    • उदाहरण के लिये उन किसानों से भी सुझाव प्राप्त किया जाएगा, जिनके पास या तो कुछ विशिष्ट समस्याएँ हैं अथवा किसी विशिष्ट समस्या का समाधान मौजूद है।
    • उल्लेखनीय है कि यह नीति नए भारत के लिये COVID-19 से मिले सबक को एकीकृत करने के साथ-साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास, डिज़ाइन आदि के क्षेत्र में जनसांख्यिकीय लाभांश के अवसर का लाभ उठाकर एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लक्ष्य को भी साकार करेगी।
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अनुसार, इस नीति की निर्माण प्रक्रिया में मुख्यतः चार ट्रैक शामिल किये गए हैं:
      • ट्रैक 1: इस ट्रैक में मुख्य तौर पर ‘विज्ञान नीति फोरम’ के माध्यम से एक व्यापक सार्वजनिक एवं विशेषज्ञ परामर्श की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।  ‘विज्ञान नीति फोरम’ नीति की प्रारूपण प्रक्रिया के दौरान तथा उसके बाद विशेषज्ञों से इनपुट प्राप्त करने के लिये एक समर्पित मंच है।
      • ट्रैक 2: इस ट्रैक के अंतर्गत सिफारिशों को स्वीकार करने के लिये विशेषज्ञों के विषयगत (Thematic) परामर्श शामिल हैं। इस उद्देश्य के लिये 21 मुख्य विषयगत समूहों का गठन किया गया है।
      • ट्रैक 3: इस ट्रैक के अंतर्गत विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों और राज्यों के साथ परामर्श करना शामिल है।
      • ट्रैक 4: इस ट्रैक के अंतर्गत उच्च स्तरीय बहु-हितधारकों के साथ परामर्श की प्रक्रिया शामिल है।
  • उद्देश्य और महत्त्व
    • वर्ष 2003 के वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक में भारत 56वें स्थान पर था, जबकि इस सूचकांक में चीन 44वें स्थान पर था, किंतु इस सूचकांक में वर्ष 2014 में भारत 71वें स्थान पर आ गया और चीन 28वें स्थान पर पहुँच गया।
    • इसी बीच वैश्विक नवाचार सूचकांक, 2014 (Global Innovation Index 2014) में भारत 76वें स्थान पर पहुँच गया, जबकि चीन 29वें स्थान पर।
    • भारत की पाँचवीं विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय समस्याओं और संकटों के लिये वैज्ञानिक समाधानों की आवश्यकता को पूरा करते हुए इसी अंतर को कम करना है, जो कि वर्तमान समय में भी इसी प्रकार मौजूद है।
    • भारत की यह पाँचवीं विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति (STIP) एक ऐसे समय में तैयार की जा रही है, जब भारत समेत संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी का सामना कर रहा है और आशा भरी नज़रों से विज्ञान की ओर देख रहा है।
  • पूर्व की नीतियों में निहित कमियाँ 
    • विशेषज्ञ मानते हैं कि पूर्व में बनाई गई कई विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार संबंधी नीतियों में सबसे प्रमुख समस्या यह थी कि उन्हें सही ढंग से कार्यान्वयित नहीं किया गया था।
    • उदाहरण के लिये नीति किसी एक सरकार द्वारा बनाई गई, किंतु उसकी कार्यान्वयन प्रक्रिया के दौरान कोई दूसरी सरकार सत्ता में आ गई, जिसके कारण नीति के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न हुई।
    • इस प्रकार इन नीतियों पर अधिक ध्यान न देने के कारण उनका कुछ खास प्रभाव देखने को नहीं मिला।

UP-PCS

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार संबंधी पूर्व की नीतियाँ

  • देश में अब तक कुल चार विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार संबंधी नीतियाँ बनाई गई हैं।
    • वैज्ञानिक नीति संकल्प (1958): इस संबंध में भारत द्वारा पहली नीति वर्ष 1958 में बनाई गई थी, इस नीति का निर्माण होमी जहाँगीर भाभा द्वारा किया गया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे संसद में प्रस्तुत किया था। वैज्ञानिक नीति संकल्प (1958) ने भारत में विज्ञान और वैज्ञानिक उद्यम की नींव रखी थी।
    • प्रौद्योगिकी नीति वक्तव्य (Technology Policy Statement) 1983: प्रौद्योगिकी नीति वक्तव्य, 1983 की प्राथमिक विशेषता स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के प्रचार एवं विकास के माध्यम से तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त करना थी। इस नीति में यह स्वीकार किया गया कि भारत को आयातित प्रौद्योगिकियों को अपनाने में कुशलता दिखानी चाहिये, किंतु यह राष्ट्रीय हित की कीमत पर नहीं किया जा सकता। 
    • विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति 2003: इस नीति का उद्देश्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल बनाए रखना था, ताकि तेज़ी से भूमंडलीकृत हो रहे विश्व में दुनिया में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने और सतत् विकास के प्राथमिक लक्ष्य को पूरा किया जा सके। 
    • विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति 2013: इस नीति के तहत वर्ष 2010 से वर्ष 2020 के दशक को नवाचार के दशक के रूप में परिभाषित किया गया। नीति के तहत यह स्वीकार किया गया कि विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये भारतीय अर्थव्यवस्था को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन करना आवश्यक है। यह नीति एक मज़बूत राष्ट्रीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की दिशा में एक कदम था।

आगे की राह

  • चूँकि वैश्विक स्तर पर तकनीक तेज़ी से बदल रही है, इसलिये आवश्यक है कि भारत की इस नई विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार संबंधी नीति को इस प्रकार बनाया जाए कि वह स्वयं को इस परिवर्तन के अनुरूप ढाल सके, साथ ही प्रौद्योगिकी में बदलाव के साथ तालमेल स्थापित करने के लिये आवश्यक है कि प्रतिवर्ष इस नीति की समीक्षा की जाए।
    • ध्यातव्य है कि अब तक जो नीतियाँ बनाई गई हैं, वे स्वयं को परिवर्तन के अनुकूल ढालने में सक्षम नहीं रही हैं, साथ ही उनकी समीक्षा भी दशकों बाद ही की जाती थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

अरुणाचल हिमालय का भूकंपीय अध्ययन

प्रीलिम्स के लिये:

पॉइसन अनुपात, भूकंप की गहराई, LVZ, हिमालय का निर्माण जैसे पारंपरिक मुद्दे 

मेन्स के लिये:

भूकंपीय अध्ययन का महत्त्व, मुख्य परीक्षा में उदाहरण के तौर पर इसे संदर्भित किया जा सकता है

चर्चा में क्यों?

'वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी' (WIHG) द्वारा भारत के सबसे पूर्वी हिस्से में अरुणाचल हिमालय (Arunachal Himalaya) के चट्टानों की लोचशीलता और भूकंपीयता के अध्ययन से पता चला है कि यह क्षेत्र दो अलग-अलग गहराई पर मध्यम तीव्रता के भूकंप उत्पन्न कर रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • WIGH भारत सरकार के 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' (Department of Science & Technology- DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।
  • यह हिमालय के भू-आवेग संबंधी विकास के संबंध में नई अवधारणाओं और मॉडलों के विकास के लिये अनुसंधान कार्यों को संपन्न करता है।
  • अरुणाचल हिमालय को भूकंपीय ज़ोन-V में रखा गया है, इस प्रकार यह भूकंप के लिये सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। 

शोध के निष्कर्ष:

  • अरुणाचल हिमालयी क्षेत्र की भू-पर्पटी में दो अलग-अलग गहराईयों पर मध्यम तीव्रता के भूकंपीय क्षेत्र अवस्थित है।
    • कम परिमाण (Low magnitude) के भूकंप, जो कि  1-15 किमी. की गहराई पर उत्पन्न होते हैं।
    • 4.0 से अधिक परिमाण वाले भूकंप, जो अधिकतर 25-35 किमी. की गहराई पर उत्पन्न होते हैं। 
  • मध्यवर्ती गहराई का क्षेत्र भूकंपीयता से रहित है तथा यह आंशिक रूप से पिघलित अवस्था में है।
  • इस क्षेत्र में भू-पर्पटी की मोटाई ब्रह्मपुत्र घाटी में 46.7 किमी.  से लेकर अरुणाचल हिमालय में लगभग 55 किमी. तक विस्तृत है और सीमांत पर उत्थान के कारण भू-पर्पटी और मेंटल के बीच एक असंबद्धता पाई जाती है,  जिसे मोहो असंबद्धता (Moho D) कहा जाता है।
  • लोहित घाटी के उच्च भागों में अत्यधिक उच्च पॉइसन अनुपात (High Poisson’s Ratio) दर्ज  किया गया है,  जो अधिक गहराई पर भू-पर्पटी की आंशिक पिघलित अवस्था को दर्शाता है।

UK-PCS

पॉइसन अनुपात (Poisson’s Ratio):

  • पॉइसन अनुपात पॉइसन प्रभाव का एक मापक है, जो लोडिंग या बल की दिशा की  लंबवत दिशाओं में किसी सामग्री के विस्तार या संकुचन का वर्णन करता है।
  • सरल शब्दों में कहा जाए तो किसी सामग्री का जितना अधिक पॉइसन अनुपात होगा, वह सामग्री उतनी ही लोचदार विरूपण प्रदर्शित करती है।
  • रबड़ का पॉइसन अनुपात उच्च जबकि कॉर्क में शून्य के करीब होता है।

शोध की प्रक्रिया:

  • WIHG ने भारत के पूर्वी भाग में चट्टानों और भूकंपीय गुणों को समझने के लिये अरुणाचल हिमालय की लोहित नदी घाटी के किनारे  ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) के माध्यम से जुड़े हुए 11 ब्रॉडबैंड भूकंपीय स्टेशन स्थापित किये हैं।
  • शोध के लिये टेलिसिस्मिक (Teleseismic) और सिस्मोमीटरों (Seismometers) की मदद से मापे गए स्थानीय भूकंप डेटा का उपयोग किया गया।
    • टेलिसिस्मिक ऐसे भूकंपों के विषय में जानकारी देता है जो माप स्थल से 1000 किमी. से अधिक दूरी पर उत्पन्न होते हैं। 

शोध का महत्त्व:

क्षेपण प्रक्रिया को समझने में सहायक:

  • प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार, हिमालय का निर्माण भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के बीच लगभग 50-60 मिलियन वर्ष पूर्व टकराव के कारण हुआ। इस सिद्धांत के अनुसार यूरेशियन प्लेट के नीचे भारतीय प्लेट का निरंतर क्षेपण हो रहा है जिसके कारण अभी भी हिमालय का उत्थान जारी है।
  • यह अध्ययन, ट्यूटिंग-टिडिंग सेचर ज़ोन (Tuting-Tidding Suture Zone) में भारतीय प्लेट की क्षेपण प्रक्रिया को समझने में मदद करता है।
    • ट्यूटिंग-टिडिंग सेचर ज़ोन (TTSZ) पूर्वी हिमालय का एक प्रमुख हिस्सा है जहाँ हिमालय अक्षसंघीय  मोड़ (Syntaxial Bend) अर्थात् हेयरपिन मोड़ बनाता हुआ दक्षिण की तरफ  इंडो-बर्मा श्रेणी से जुड़ जाता है।
  • क्षेपण प्रक्रिया के क्षेत्र के अपवाह प्रतिरूप तथा स्थलाकृतियों में बदलाव आता है जिसके कारण हिमालय पर्वत बेल्ट और आसपास के क्षेत्रों में बड़े भूकंप आने का खतरा रहता है। अत: ऐसे क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की निर्माण गतिविधियों को शुरू करने से पूर्व भूकंप की संभावित गहराई और तीव्रता की जानकारी होना आवश्यक है।

Indian-crust

अवसंरचनात्मक विकास:

  • भारत पूर्वोत्तर राज्यों में अवसंरचनात्मक विकास कार्यों जैसे सड़कों और पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण पर जोर दे रहा है, अत: इस क्षेत्र में भूकंपीयता के पैटर्न को समझने की आवश्यकता है।

भूकंप की गहराई (Depth of an Earthquake):

  • भूकंप, पृथ्वी की सतह तथा सतह से लगभग 700 किमी. की गहराई तक कहीं भी उत्पन्न हो सकते  है। वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये 0-700 किमी. की इस भूकंप की गहराई की सीमा को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है; उथला,  मध्यवर्ती और गहरा।
  • उथले भूकंप 0-70 किमी. के बीच, मध्यवर्ती भूकंप 70-300 किमी. की गहराई पर और गहरे भूकंप 300-700 किमी. की गहराई पर उत्पन्न होते हैं।

Earthquake

कम-वेग का क्षेत्र (Low-Velocity Zone-  LVZ):

  • ऊपरी मेंटल में कम भूकंपीय तरंगों के कम वेग के आधार पर LVZ की पहचान की जाती है। यह 180–220 किमी. की गहराई का क्षेत्र होता है। 
  • इस क्षेत्र में उच्च भूकंपीय ऊर्जा में कमी हो जाती है। 
  • यह क्षेत्र आंशिक पिघलित अवस्था में पाया जाता है, अत: यह उच्च विद्युत चालकता वाला क्षेत्र होता है।
  • LVZ के निचले भाग की असम्बद्धता को लेहमान की असम्बद्धता भी कहा जाता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

स्थानीय निकायों के लिये ऑडिट ऑनलाइन

प्रीलिम्स के लिये : 

ऑडिट ऑनलाइन, 15 वित्त आयोग, PES

 मेंस के लिये:  

ऑनलाइन एडिटिंग के लाभ एवं मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंचायती राज मंत्रालय (Ministry of Panchayati Raj) ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 के लिये देश की ग्राम पंचायतों (Gram Panchayats- GP) का ऑनलाइन ऑडिट करने का निर्णय लिया है। यह प्रक्रिया मंत्रालय द्वारा विकसित ऑडिट ऑनलाइन एप द्वारा की जाएगी।

प्रमुख बिंदु:

  • इस प्रक्रिया के पहले चरण में देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों के 20% ग्राम पंचायतों को शामिल किया जाएगा।
    • चालू वित्त वर्ष के दौरान ऑनलाइन ऑडिट के लिये लगभग 50,000 पंचायतों को शामिल किये जाने की संभावना है।
    • इसके अलावा आगामी वित्त वर्ष 2021-22 में देश भर की सभी पंचायतों को इसमें शामिल किया जाएगा। 
  • चालू बीते वर्ष में पंचायतों के लेखा-जोखा खातों का ऑडिट इस बात पर केंद्रित होगा कि उन्होंने वित्त  (Finance commission-FS) आयोग द्वारा प्राप्त अनुदानों  का उपयोग कैसे किया।
    • 15वें वित्त आयोग ने ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये लगभग 60, 750 करोड़ रुपए आवंटन की सिफारिश की थी जो पिछले वर्ष 14वें वित्त आयोग के द्वारा आवंटित की गई राशि के लगभग समान थी।

लाभ

  • हाल के दिनों में कोविड-19 महामारी के दौरान लॉकडाउन की स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए ऑनलाइन ऑडिट भौतिक सत्यापन के विकल्प के साथ अधिक प्रासंगिक है।
  • ऑफलाइन प्रणाली में समय पर आँकड़ों की उपलब्धता एक प्रमुख मुद्दा था।
  • ऑनलाइन ऑडिट आँकड़ों तक पहुँच को आसान बनाएगा जिससे ज़िला, राज्य और केंद्र स्तर पर निगरानी की जा सकेगी।
    • इसके अलावा पहले किए गए कार्यों की तस्वीर अपलोड करके परियोजनाओं का भौतिक निरीक्षण करने में सहायक होगा।
  • ऑनलाइन प्रक्रिया में ऑडिटर कर स्वीकृति और भुगतान से संबंधित सभी दस्तावेज़ों को ऑनलाइन देख सकेंगे। 
    • साथ ही आवश्यकता पड़ने पर पंचायतों से अतिरिक्त दस्तावेज़ों की मांग भी कर सकते हैं।

 ऑडिट ऑनलाइन

  • यह पंचायती राज मंत्रालय द्वारा शुरू किये गए ई-पंचायत मिशन मोड प्रोजेक्ट (e-panchayat Mission Mode Project- MMP) के तहत पंचायत इंटरप्राइजेज़ सूट (Panchayat Enterprise Suite- PES) में एक भाग के रूप में विकसित एक ओपन सोर्स ऐप है।
  • यह लेखा परीक्षकों द्वारा पंचायतों के तीनों स्तरों पर ज़िला, ब्लॉक और ग्राम पंचायत शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULB) तथा विभागों में खातों की वित्तीय ऑडिट की सुविधा प्रदान करता है।
  • यह न केवल खातों की ऑनलाइन और ऑफलाइन ऑडिट की सुविधा प्रदान करता है बल्कि ऑडिट टीम में शामिल किए गए सभी लेखा परीक्षकों से संबंधित सूची का पिछले रिकॉर्ड को बनाए रखने के उद्देश्य से भी कार्य करता है।
  • इसके अलावा यह सूचना सार्वजनिक डोमेन और अन्य अनुप्रयोगों द्वारा उपयोग करने के लिये भी उपलब्ध रहती है।

पंचायत इंटरप्राइजेज सूट- PES

  • पंचायती राज मंत्रालय ने देश भर के पंचायती राज्य संस्थानों में ई-गवर्नेंस को शुरू करने तथा मज़बूत करने के उद्देश्य से ई-गवर्नेंस पहल को प्रभावी रूप से अपनाने के लिये पंचायती राज्य संस्थानों से संबंधित क्षमता निर्माण हेतु MMP शुरू किया था।
  • ई-पंचायत के तहत 11 कोर कॉमन एप तैयार किये गये थे, जो पंचायतों के पूरे कामकाज को जैसे- नियोजन, निगरानी, बजट, लेखा, सामाजिक लेखा परीक्षा आदि से लेकर नागरिक सेवा वितरण संचालन जैसे-  प्रमाण पत्र, लाइसेंस आदि को अभिलक्षित करते हैं।
  • इन 11 सॉफ्टवेयर एप को मिलाकर पंचायत इंटरप्राइजेज सूट का निर्माण होता है।

 आगे की राह 

  • यदि पंचायतों को कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से दिनों दिन बढ़ रहे सभी कार्यों को अनिवार्य रूप से करना है तो सूचना एवं प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग की आवश्यकता है।
  • ई-ग्रामस्वराज (e-GramSwaraj) और स्वामित्व कार्यक्रम (Swamitva Programme) को लॉन्च करना इसी उद्देश्य को रेखांकित करता है।
  • इसके अलावा एक ऐसे डिजिटल समावेशी समाज बनाने की एक मज़बूत आवश्यकता है जहाँ ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा तकनीक का लाभ उठा सकें तथा स्वतंत्र रूप से सेवाओं और सूचनाओं को साझा व उनका उपयोग कर सकें एवं विकास प्रक्रिया में अधिक प्रभावी ढंग से भाग ले सकें।
  •  यह राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना 2.0 के अनुरूप होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

मानव परीक्षण

मेन्स के लिये:

मानव परीक्षण के विभिन्न चरण, COVID-19 वैक्सीन में मानव परीक्षण की प्रासंगिकता 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 के उपचार हेतु उपयोग में लाई जाने वाली संभावित दवाएँ तथा वैक्सीन विश्व स्तर पर शोधकर्त्ताओं के लिये अनुसंधान का विषय बनी हुई है। भारत सहित विश्व के कुछ अन्य देशों में इसके उपचार के लिये प्रयुक्त होने वाली संभावित वैक्सीन ‘मानव परीक्षण’ (Human Trials) के विभिन्न चरणों में है जिस कारण वर्तमान समय में ‘मानव परीक्षण’ चर्चाओं में बना हुआ है।

प्रमुख बिंदु 

  • वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व में कोरोना वायरस से संबंधित 18 वैक्सीन ‘मानव परीक्षण’ के विभिन्न चरणों में है जिनमे भारत की दो वैक्सीन भी शामिल हैं।
    • इनमे से एक को हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक (Bharat Biotech) कंपनी  द्वारा तथा दूसरी को अहमदाबाद स्थित फार्मास्यूटिकल फर्म ज़ाइडस कैडिला (Zydus Cadila) द्वारा विकसित किया जा रहा है।
  • मानव परीक्षण किसी वैक्सीन को विकसित करने के क्रम में अंतिम चरण होता है। हालाँकि इसमें भी कई चरण होते हैं जिस कारण इसे सफलतापूर्वक पूर्ण होने में लंबा समय या फिर कुछ वर्षों का समय भी लग सकता है।

मानव परीक्षण:

  • मानव परीक्षण में दवा या वैक्सीन का मनुष्यों पर प्रयोग किया जाता है।
  • हालांकि परीक्षण के दौरान मनुष्यों पर वैक्सीन का प्रयोग पूर्ण रूप से सुरक्षित होता है फिर भी 
  • मनुष्यों पर दवा या वैक्सीन के परीक्षण के दौरान मुख्य रूप से दो पहलुओं की जांच की जाती हैं- 
    • क्या दवा या वैक्सीन प्रयोग के लिये सुरक्षित है?
    • क्या दवा या वैक्सीन वही कार्य करने में सक्षम है जिसके लिये इसका परीक्षण किया जा रहा है अर्थात् क्या यह रोगजनक (Pathogen) के विरुद्ध प्रतिरक्षा (Immunity) क्षमता विकसित करने में कारगर है?

UP-PCS

मानव परीक्षणों की आवश्यकता: 

  • कोई वैक्सीन या दवा मनुष्य के शरीर पर किस प्रकार प्रतिक्रिया करेगा इसे सिर्फ मानव परीक्षण के द्वारा ही जाना जा सकता है।
  • मानव परीक्षण में शोधकर्त्ताओं द्वारा न केवल एक टीके की प्रभावकारिता का परीक्षण किया जाता है, बल्कि यह भी पता लगाने की कोशिश की जाती है कि प्रयोग के दौरान इसका कोई दुष्प्रभाव होगा या नहीं?,
  • मानव परीक्षण से प्राप्त सकारात्मक या नकारात्मक परिणामों के आधार पर ही शोधकर्त्ताओं द्वारा अपने कार्य की प्रगति को आगे निर्धारित किया जाता है अर्थात् यदि  परिणाम सकारात्मक प्राप्त होते हैं तो परीक्षण को आगे बढ़ाया जाता है और यदि परिणाम नकारात्मक होते हैं तो इसे यही समाप्त कर दिया जाता है।

मानव परीक्षण का आधार:

  • किसी भी दवा या वैक्सीन का मनुष्य पर परीक्षण करने से पूर्व उसमें प्रयोग होने वाले यौगिकों की प्रयोगशाला में जांच की जाती है तथा जानवरों पर परीक्षण किया जाता है। इस चरण को पूर्व-नैदानिक परीक्षण (Pre-Clinical Trials) के रुप में जाना जाता है।
  • पूर्व-नैदानिक परीक्षण का मुख्य उद्देश्य इस बात का पता लगाना है कि क्या यह वैक्सीन मानव परीक्षण की दृष्टि से सुरक्षित है या नहीं? 
    • इसके अलावा इसका उद्देश्य यह भी देखना है कि क्या वैक्सीन उस कार्य को करने में सक्षम है जिसके लिये इसे विकसित किया जा रहा है?
  • यदि शोधकर्त्ताओं को पूर्व-नैदानिक परीक्षणों के परिणाम सकारात्मक प्राप्त होते हैं तो वे अगले चरण अर्थात् मानव परीक्षण के लिये नियामक संस्था (भारत में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया) से अनुमोदन प्राप्त करते हैं।

भारत में मानव परीक्षण हेतु नियामक संस्थान:

  • ब्रिटिश समय से ही ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (Indian Council of Medical Research- ICMR) भारत में मानव परीक्षण से संबंधित दिशा-निर्देशों की एक विस्तृत सूची जारी करती है।
    • 187 पृष्ठों की यह सूची/दस्तावेज़ जिसका शीर्षक ‘नेशनल एथिकल गाइडलाइंस फॉर बायोमेडिकल एंड हेल्थ रिसर्च इन्वोल्विंग ह्यूमन पार्टिसिपेंटस ’ (National Ethical Guidelines For Biomedical And Health Research Involving Human Participants) है को अंतिम बार वर्ष 2017अद्यतन (Update) किया गया है जिसमे मानव परीक्षण से संबंधित प्रत्येक पक्ष को शामिल किया गया है।
  • भारत में मानव परीक्षणों का निरीक्षण करने वाली संस्था ‘केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन’ (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSO ) है जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत कार्य करती है। 
    • यह केंद्रीय संस्था नई दवा या वैक्सीन को अंतिम अनुमोदन प्रदान करती है जिसे मानव परीक्षणों के लिये प्रयोग किया जाता है। 
  • मानव परीक्षणों के लिये मंज़ूरी प्रदान करने वाली संस्था ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (Drugs Controller General of India) है जो CDSO के अंतर्गत कार्यरत है।
  • ज़मीनी स्तर पर प्रत्येक मानव परीक्षण का निरीक्षण करने के लिये एक नैतिक समिति  (Ethics Committee- EC) का गठन किया जाता है।
    • इस समिति का गठन चिकित्सा संस्थान अर्थात चिकित्सीय कॉलेज या फिर अस्पताल के स्तर पर किया जाता।
    • यदि मानव परीक्षण किसी गैर चिकित्सीय संस्थान (जैसे-निजी कंपनी के अनुसंधान केंद्र) द्वारा किया जा रहा है तो किसी पास के अस्पताल की नैतिक समिति द्वारा इसका निरीक्षण किया जाता है।
    • ICMR के अनुसार, नैतिकता समिति संस्थागत स्तर पर मानव परीक्षण को शुरू करने हेतु अनुमोदन प्रदान करती है तथा इस बात को सुनिश्चित करती है कि मानव परीक्षण उचित वैज्ञानिक-सांख्यिकीय अभ्यासों (Sound Scientific-Statistical Practices) पर आधारित है जो नैतिकता के उच्च मानकों का पालन करता है।
    • समिति द्वारा मानव परीक्षणों के प्रत्येक पहलू पर नज़र रखी जाती है।

मानव परीक्षण में शामिल व्यक्ति:

  • मानव परीक्षण में किन व्यक्तियों को शामिल किया जाना होता हैं? यह इस बात पर निर्भर करता है कि शोधकर्त्ताओं द्वारा किस उद्देश्य के लिये मानव परीक्षण किया जाना है।
    • उदाहरण के तौर पर COVID- 19 के परीक्षण में वो लोग शामिल नहीं हो सकते हैं जो  COVID- 19 से संक्रमित थे या है क्योंकि दोनों ही स्थिति में व्यक्ति द्वारा वायरस के प्रति प्रतिरक्षा क्षमता विकसित होने के कारण वैक्सीन की प्रभावकारिता को सही ढंग से नहीं पहचाना जा सकता है।
    • ठीक इसके विपरीत कैंसर के लिये मानव परीक्षण में ऐसे लोगों को शामिल किया जाता हैं जो पहले से ही कैंसर से पीड़ित है।
  • मानव परीक्षण के लिये चयनित व्यक्ति को परीक्षणों के हर संभावित जोखिमों से अवगत कराया जाता है जिसके बाद ही परीक्षण में शामिल व्यक्ति को परीक्षण के लिये अपनी सहमति से देनी होती है।
  • मानव परीक्षण के दौरान व्यक्ति को न केवल निश्चित मानदंडों का पालन करना होता है बल्कि कुछ निश्चित खाद्य पदार्थों, दवा का सेवन एवं गर्भ धारण न करने इत्यादि के लिये भी मानदंड निर्धारित किये जाते हैं।

मानव परीक्षण का प्रभाव:

  • व्यक्ति पर पड़ने वाले मानव परीक्षण का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि परीक्षण किस उद्देश्य के लिये किया जा रहा है।
  • मानव परीक्षण में शामिल व्यक्ति को यादृच्छिक andomly) तरीके से  ‘प्रायोगिक समूह’ (Experimental Group) या फिर ‘नियंत्रण समूह’ (Control Group) में रखा जाता है।
    • ‘प्रायोगिक समूह’ में वे व्यक्ति शामिल होते हैं जिनपर अभी उपचार (Treatment ) के लिये अध्ययन किया जाना है, जबकि ‘नियंत्रण समूह’ में वे व्यक्ति शामिल होते हैं जिन्हें ऐसे उपचार से उपचारित (Treated) किया जाता है जो व्यक्ति के लिये पहले से ही सुरक्षित और प्रभावी होता है।
    • ‘प्रायोगिक समूह’ या फिर ‘नियंत्रण समूह’ शोधकर्ता को प्रयोगात्मक दवा या वैक्सीन की प्रभावकारिता का उचित उपचार करने के लिये तुलनात्मक अध्ययन करने में सहायक होता है। 
  • हालांकि  COVID-19 एक नए वायरस की वजह से हो रहा है जिसे उपर्युक्त वर्णित (प्रायोगिक समूह/नियंत्रण समूह) किसी भी तरीके से उपचारित नहीं किया जा सकता है। अतः COVID-19 वैक्सीन के लिये मानव परीक्षण में ‘नियंत्रण समूह’ को संभवतः एक 'प्लेसबो' (Placebo) दिया जाता है। 
    • 'प्लेसबो' एक ऐसा पदार्थ है जो स्वास्थ्य व्यक्ति को किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करता है।
    • मानव परीक्षण के दौरान प्रायोगिक वैक्सीन या प्लेसबो को मनुष्य के शरीर में इंजेक्शन के माध्यम से या फिर एक खुराक के रूप में प्रवेश कराया जाता है। इसके बाद रक्त, मूत्र, आदि के नमूने को चिकित्सीय परीक्षण के लिये एकत्र किया जाता है।

मानव परीक्षण के चरण:

कोरोना वैक्सीन के अनुसंधान में शोधकर्ताओं द्वारा 3 चरणों को शामिल किया गया है ये चरण मानव परीक्षण की ही 3 अलग-अलग अवस्थाएँ है। 

  • प्रथम चरण 
    • प्रथम चरण में शोधकर्त्ताओं द्वारा इस बात का पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि क्या वैक्सीन मनुष्य के लिये सुरक्षित है या नहीं? क्या मानव शरीर इसे सहन करने में सक्षम है?
    • इसके अलावा प्रथम चरण में इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि क्या वैक्सीन प्रतिरक्षा क्षमता के कुछ स्तरों को विकसित करने में सक्षम है या नहीं?
  • द्वितीय चरण: 
    • द्वितीय चरण में, इस बात पर ध्यान केंद्रित किया जाता है कि वैक्सीन प्रतिरक्षा क्रिया के वांछित स्तर को उत्पन्न करने के लिये कितनी प्रभावी है?
    • इस चरण में शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की सही मात्रा उत्पन्न करने के लिये वैक्सीन की सही खुराक के स्तर को तैयार किया जाता है।
    • मानव परीक्षण में शामिल लोगों पर वैक्सीन के संभावित दुष्प्रभावों  का समग्र रूप से एवं सावधानीपूर्वक निरीक्षण किया जाता है।
  • तृतीय चरण:
    • इस चरण में शोधकर्त्ताओं द्वारा द्वितीय चरण से प्राप्त परिणामों की  पुष्टि की जाती है तथा यह बताने का प्रयास किया जाता है कि लोगों को दी जाने वाली प्रायोगिक वैक्सीन कितनी सुरक्षित है?
    • यह मानव परीक्षणों का अंतिम महत्वपूर्ण चरण है जिसमे टीका की प्रभावकारिता एवं सुरक्षा के लिये अनिवार्य रूप से तीन जांच शामिल की जाती है।
    • उपर्युक्त तीन चरणों के बाद ही वैक्सीन बाजार में उपयोग के लिये उपलब्ध होगी जिसे अनुमोदन के लिये प्रस्तुत किया जाएगा।
    • सार्वजनिक उपयोग के लिये वैक्सीन स्वीकृत होने के बाद नैदानिक अनुसंधान का एक और चरण होता है। जो मानव परीक्षण का चुतर्थ चरण है।
      • इस चरण में मुख्य रूप से वैक्सीन निर्मातााओं एवं शोधकर्त्ताओं द्वारा विश्व में प्रयोग की जाने वाली वैक्सीन के प्रभावों अर्थात सुरक्षा और प्रभावकारिता पर निरंतर नजर रखी जाती हैं।

मानव परीक्षण में शामिल लोगों की संख्या:

  • मानव परीक्षण के किसी विशेष चरण में कितने लोगों को शामिल किया जाना चाहिये इसके लिये कोई अंतरराष्ट्रीय मानक निर्धारित नहीं है।
  • सामान्यत चरण 1 में बहुत कम लोग, जबकि चरण 2 और 3 में लोगों के एक बड़े समूह को शामिल किया जाता है। 

वैक्सीन प्राप्त करने में लगने वाला समय: 

  • यदि रोग के लिये किसी गलत वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है तो वह बेहतर प्रतिरक्षा क्षमता का निर्माण नहीं करेगा या सबसे खराब स्थिति में वह संक्रमण को और अधिक बढ़ा सकता है। अतः किसी भी वैक्सीन के अनुसंधान एवं परीक्षण में वर्षों का समय लग सकता है।
  • उदाहरण के लिये एचआईवी की खोजे को लगभग चार दशक हो चुके हैं और अभी भी हमारे पास इस वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है।
  • वर्तमान अभिलेखों के आधार पर, सबसे तीव्र गति से विकसित की जाने वाली वैक्सीन गलदण्ड रोग/ मम्प्स शॉट (Mumps Shot) रोग के लिये है जिसे लिये 4 वर्ष के मानव परीक्षण को अनुमोदित किया गया है।
  • COVID-19 की वैक्सीन को आने में कितना समय लगेगा निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है वैज्ञानिक लगातार शोध कार्य में लगे हुए हैं।
    • हालाँकि ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगले वर्ष अर्थात वर्ष 2021 के मध्य तक या फिर अंत तक वैक्सीन सार्वजनिक उपयोग के लिये तैयार हो जाएगी।
    • हालाँकि कुछ विशेषज्ञों द्वारा इस समय सीमा को अतिआशावादी बताया जा रहा है।

भारत में मानव परीक्षण की स्थिति: 

भारत की दो वैक्सीन मानव परीक्षण के चरण में हैं जिनमें एक को परंपरागत सूत्र (Traditional Formulation) द्वारा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहयोग से हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक द्वारा विकसित किया गया है, जबकि दूसरी को रेडिकल टेक्नोलॉजी (Radical Technology) के आधार पर अहमदाबाद स्थित निजी फार्मा कंपनी ज़ाइडस कैडिला द्वारा विकसित किया गया है।

  • भारत बायोटेक: 
    • भारत बायोटेक वैक्सीन के मानव परीक्षण जुलाई के मध्य में शुरू हुए।
    • इसके चरण I में 375 लोग शामिल हैं, जबकि चरण II में 750 लोग शामिल होंगे। 
    • शोधकर्ताओं का अनुमान है कि सभी चरणों के सयुक्त परीक्षणों को पूर्ण होने में एक वर्ष तीन माह का समय लगेगा।
  • ज़ाइडस कैडिला:
    • ज़ाइडस कैडिला फर्म द्वारा निर्मित कोरोनावायरस वैक्सीन ZyCoV-D के लिये जुलाई के मध्य से मानव परीक्षण शुरू किया जा चुके है।
    • इसके संयुक्त चरण I एवं चरण II में  मानव परीक्षणों में कुल 1048 लोगों को शामिल किया जाएगा जिसे पूरा होने का अनुमानित समय एक वर्ष का है।

आगे की राह: 

  • हालाँकि यह अभी निश्चित तौर पर नहीं कहाँ जा सकता कि कोरोना के उपचार के लिये उपयुक्त वैक्सीन प्राप्त करने में कितना और समय लगेगा क्योकि यह पूर्ण रुप से ‘मानव परीक्षण’ के परिणामों पर निर्भर करेगा जो वर्तमान में भारत सहित विश्व के अन्य देशों में विभिन्न चरणों में हैं।
  • बावज़ूद सभी संभावित संभावनाओं के महामारी के उपचार के लिये एक उचित वैक्सीन प्राप्त होने की उम्मीद की जा सकती है क्योंकि विभिन्न चरणों में वैक्सीन के बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
  • फिर भी जब तक अंतिम रूप से कोई वैक्सीन प्राप्त नहीं होती है तब तक सभी आवश्यक बातों पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है ताकि संक्रमण को एक सीमित स्तर पर रोका जा सके।
  • विश्व के सभी देशों को WHO द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को जागरूकता एवं ईमानदारी से पालन करने की भी आवश्यकता है। 
  • यह एक वैश्विक महामारी है जिसका समाधान वैश्विक प्रयासों एवं पहलों के से ही संभव है। 

स्रोत: इंडिया टुडे


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2