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डेली न्यूज़

  • 27 Jun, 2020
  • 50 min read
शासन व्यवस्था

OBC उप-श्रेणीकरण आयोग के कार्यकाल का विस्तार

प्रीलिम्स के लिये

OBC उप-श्रेणीकरण आयोग, अनुच्छेद 340

मेन्स के लिये

भारतीय संविधान में आरक्षण संबंधी प्रावधान, OBC उप-श्रेणीकरण की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes-OBC) के उप-श्रेणीकरण के मुद्दे के परीक्षण हेतु गठित आयोग के कार्यकाल विस्तार को स्वीकृति दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जी. रोहिणी की अध्यक्षता में गठित आयोग के कार्यकाल को 6 माह के लिये विस्तृत कर दिया गया है, जिसका अर्थ है कि आयोग के पास अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये 31 जनवरी, 2021 तक का समय है।

कार्यकाल विस्तार का कारण

  • इस संबंध में आयोग ने कहा है कि वर्तमान OBC की केंद्रीय सूची में आ रहे दोहराव, अस्पष्टताओं, विसंगतियों, भाषाई त्रुटियों को दूर किये जाने की आवश्यकता है, जिसके कारण उसे अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने में कुछ अधिक समय लगेगा।
    • इसलिये आयोग ने अपने कार्यकाल को 31 जुलाई, 2020 तक बढ़ाने की मांग की थी।
  • हालाँकि COVID-19 महामारी के चलते देश भर में लागू किये गए लॉकडाउन और यात्रा पर प्रतिबंधों के कारण आयोग अपने कार्य को पूरा नहीं कर पा रहा है, इसलिये आयोग के कार्यकाल में 6 महीने यानी 31 जनवरी, 2021 तक विस्तार किया जा रहा है।

OBC का उप-श्रेणीकरण 

  • मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने OBC आरक्षण की व्यवस्था तो कर दी गई, किंतु OBC के ही अंतर्गत आने वाले अत्यधिक कमज़ोर वर्ग के लिये कुछ विशेष व्यवस्था नहीं की गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि OBC आरक्षण का अधिकांश लाभ OBC वर्ग से संबंधित कुछ ताकतवर जातियों के पास ही सिमटकर रह गया।
    • दरअसल भारतीय सामाजिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि OBC के तहत आने वाली कुछ जातियाँ इसी श्रेणी के तहत आने वाली कुछ अन्य जातियों से सामाजिक और आर्थिक ही आधार पर बेहतर स्थिति में हैं।
  • इसी स्थिति के मद्देनज़र OBC वर्ग के ही अंदर श्रेणीकरण की मांग कई वर्षों से की जा रही है। ध्यातव्य है कि देश में ऐसे कई राज्य हैं, जहाँ श्रेणीकरण की इस व्यवस्था को लागू भी कर दिया गया है, हालाँकि OBC आरक्षण से संबंधित केंद्रीय सूची में इस प्रकार के वर्गीकरण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

आयोग का गठन

  • ध्यातव्य है कि सर्वप्रथम वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (National Commission for Backward Classes-NCBC) ने OBC को अत्यंत पिछड़े वर्गों, अधिक पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों जैसी तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किये जाने की सिफारिश की थी।
  • इसी को ध्यान में रखते हुए 2 अक्तूबर, 2017 को संविधान के अनुच्छेद 340 के अंतर्गत दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी की अध्यक्षता में इस आयोग का गठन किया गया था।
    • इस आयोग के गठन का मुख्य उद्देश्य अति पिछड़े वर्ग (OBC) के अंतर्गत सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना था।
  • इस आयोग का गठन केंद्रीय OBC सूची में मौजूद 5000 जातियों को उप-वर्गीकृत करने के कार्य को पूरा करने हेतु किया गया था, ताकि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अवसरों के अधिक न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित किया जा सके।
  • इस आयोग में OBC के तहत आने वाली जातियों, उप-जातियों और समुदायों की पहचान करने तथा उन्हें उप-श्रेणियों में वर्गीकृत करने के लिये तंत्र और मापदंड विकसित करने का कार्य भी सौंपा गया था।

आयोग के गठन से लाभ

  • OBC की वर्तमान केंद्रीय सूची में शामिल ऐसे समुदाय जिन्हें केंद्र सरकार के पदों पर नियुक्ति और केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण योजना का उचित लाभ नहीं मिला है, उनको आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन से लाभ मिलने का अनुमान है। 
  • ध्यातव्य है कि ऐसी जातियों और ऐसे समुदायों के पास आरक्षण व्यवस्था होने के बावजूद भी उनका उत्थान नहीं हो पाया है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 340 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार, भारतीय राष्ट्रपति सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं की जाँच करने के लिये तथा उनकी दशा में सुधार करने से संबंधित सिफारिश प्रदान के लिये एक आदेश के माध्यम से आयोग की नियुक्ति कर सकते हैं।
  • राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त आयोग संदर्भित मामलों की जाँच करेगा और उनके द्वारा पाए गए तथ्यों तथा अपनी सिफारिशों समेत अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

भारत में OBC आरक्षण का इतिहास

  • ध्यातव्य है कि सर्वप्रथम वर्ष 1953 में गठित कालेलकर आयोग (Kalelkar Commission) ने राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के अतिरिक्त अन्य पिछड़े वर्गों की पहचान की थी।
  • गौरतलब है कि वर्ष 1979 में ‘सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान’ के उद्देश्य से  मंडल आयोग का गठन किया गया, आयोग ने समूहों के पिछड़ेपन का निर्धारण के लिये ग्यारह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक संकेतकों का इस्तेमाल किया गया और वर्ष 1980 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग के लिये सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की।
  • वर्ष 1990 में सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक बदलाव आया। हालाँकि कई जगह सरकार के इस निर्णय का व्यापक विरोध होने लगा, किंतु इंद्रा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस निर्णय पर मुहर लगा दी।
  • वर्ष 1993 में संसद में पारित कानून के तहत ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (NCBC) का गठन एक वैधानिक निकाय के रूप में किया गया, जिसे 1993 से वर्ष 2016 के बीच कुल 7 बार पुनर्गठित किया गया।
  • इस आयोग के गठन का मुख्य उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं में सुधार करना था।
  • अगस्त 2018 में 102वें संविधान संशोधन के माध्यम से ‘राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ (NCBC) को संवैधानिक दर्ज़ा प्रदान कर दिया गया और भारतीय संविधान में अनुच्छेद 338B शामिल किया गया।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल

प्रीलिम्स के लिये 

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल

मेन्स के लिये 

कार्य व इसका महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force-FATF) की पूर्ण बैठक चीन की अध्यक्षता में आयोजित की गई।

प्रमुख बिंदु 

  • इससे पूर्व FATF के तत्त्वावधान में धन शोधन और आतंकी वित्तपोषण पर गठित यूरेशियन समूह (Eurasian Group on Combating Money Laundering and Financing of Terrorism-EAG) के 32वें पूर्ण अधिवेशन का भी आयोजन किया गया था।
  • इस अधिवेशन में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency-NIA) और प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) के अधिकारियों ने आतंकी वित्त-पोषण के रोकथाम हेतु एक विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया।
  • वित्तीय कार्रवाई कार्य बल अवैध वित्तपोषण की रोकथाम के संभावित उपायों पर वैश्विक महामारी के प्रभाव की निगरानी कर रहा है।
  • FATF ने  COVID-19 से संबंधित अपराधों में वृद्धि देखी, जिनमें धोखाधड़ी, साइबर-अपराध, सरकारी धन या अंतर्राष्ट्रीय वित्त सहायता का दुरुपयोग आदि शामिल है। 

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल

  • FATF की स्थापना वर्ष 1989 में एक अंतर-सरकारी निकाय के रूप में हुई थी।
  • FATF का उद्देश्य मनी लॉड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण जैसे खतरों से निपटना और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिये अन्य कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है।
  • FATF की सिफारिशों को वर्ष 1990 में पहली बार लागू किया गया था। उसके बाद 1996, 2001, 2003 और 2012 में FATF की सिफारिशों को संशोधित किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे प्रासंगिक और अद्यतन रहें, तथा उनका उद्देश्य सार्वभौमिक बना रहे।
  • किसी भी देश का FATF की ‘ग्रे’ लिस्ट में शामिल होने का अर्थ होता है कि वह देश आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉड्रिंग पर अंकुश लगाने में विफल रहा है।
  • किसी भी देश का FATF की ‘ब्लैक’ लिस्ट में शामिल होने का अर्थ होता है कि उस देश को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्तीय सहायता मिलनी बंद हो जाएगी।
  • वर्तमान में FATF में भारत समेत 37  सदस्य देश और 2 क्षेत्रीय संगठन शामिल हैं। भारत FATF का 2010 से सदस्य है।
  • लश्कर-ए- तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के वित्त के स्रोत को बंद करने में विफल रहने के कारण पाकिस्तान पूर्व की भांति FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ में बना हुआ है। पाकिस्तान को पहले आतंकी फंडिंग नेटवर्क और मनी लॉन्ड्रिंग सिंडिकेट्स के खिलाफ 27-पॉइंट एक्शन प्लान का अनुपालन सुनिश्चित करने या "ब्लैक लिस्टिंग" का सामना करने के लिये जून 2020 तक की समय सीमा दी गई थी।
  • हालाँकि वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण यह समयसीमा बढ़ाकर अक्तूबर, 2020 कर दी है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आसियान देशों की दक्षिण चीन सागर पर चेतावनी

प्रीलिम्स के लिये: 

आसियान, दक्षिण चीन सागर 

मेन्स के लिये: 

दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियों का वैश्विक परिदृश्य के साथ-साथ  भारत पर  प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘आसियान देशों’ (ASEAN Countries) द्वारा आसियान शिखर सम्मेलन में दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक गतिविधियों को लेकर चेतावनी दी गई है।

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मुख्य बिंदु

  • दक्षिण पूर्व एशिया में बढ़ती असुरक्षा को लेकर ऑनलाइन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के सम्मेलन के माध्यम से एकजुटता दिखाते हुए वियतनाम और फिलीपींस ने चीन को कहा कि COVID-19 के संकट के दौरान कोई भी देश दक्षिण चीन सागर में खतरा पैदा करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा न दे।
  • वियतनाम और फिलीपींस विवादित दक्षिण चीन सागर में चीन की एकतरफा कार्यवाही द्वारा द्वीपों पर नियंत्रण की कोशिश को लेकर पहले ही अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं।
  • वियतनाम और फिलीपींस द्वारा भी अप्रैल में चीन की इस कार्यवाही के खिलाफ आपत्ति दर्ज़ की गई थी  क्योंकि चीन द्वारा एकतरफा रूप से  उन अशांत जलमार्गों में द्वीपों पर नए प्रशासनिक ज़िलों के निर्माण की घोषणा की गई थी, जिन पर वियतनाम और फिलीपींस के भी अपने दावे प्रस्तुत करते हैं।

दक्षिण चीन सागर की भौगोलिक स्थिति: 

  • दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे से सटा हुआ और एशिया के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
  • यह चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है जो सिंगापुर से लेकर ताइवान की खाड़ी तक लगभग 3.5 मिलियन वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है और इसमें स्पार्टली और पार्सल जैसे द्वीप समूह शामिल हैं।
  • इसके आस-पास इंडोनेशिया का करिमाता, मलक्का, फारमोसा जलडमरूमध्य और मलय व सुमात्रा प्रायद्वीप आते हैं। दक्षिण चीन सागर का दक्षिणी भाग चीन की मुख्य भूमि को स्पर्श करता है, तो वहीं इसके दक्षिण–पूर्वी हिस्से पर ताइवान की दावेदारी है।
  • दक्षिण चीन सागर का पूर्वी तट वियतनाम और कंबोडिया से सीमा बनता है। पश्चिम में फिलीपींस है, तो दक्षिण चीन सागर के उत्तरी इलाके में इंडोनेशिया के बंका व बैंतुंग द्वीप हैं। 

दक्षिण चीन सागर में विवाद के कारण: 

  • इस क्षेत्र में  विवाद का मुख्य कारण समुद्र पर विभिन्न क्षेत्रों का दावा और समुद्र का क्षेत्रीय सीमांकन है।
  • चीन दक्षिण-चीन सागर के 80% हिस्से को अपना मानता है। यह एक ऐसा समुद्री क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक तेल और गैस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार इसकी परिधि में करीब 11 अरब बैरल प्राकृतिक गैस और तेल तथा मूंगे के विस्तृत भंडार मौजूद हैं। 
  • मछली व्यापार में शामिल देशों के लिये यह जल क्षेत्र महत्त्वपूर्ण तो है ही साथ ही इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण इसका सामरिक महत्त्व भी बढ़ जाता है। जिस कारण भी चीन  इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व कायम रखना चाहता है।  

आसियान देशों द्वारा दक्षिण चीन सागर में चीन के विरोध का कारण : 

  • अप्रैल, 2020 में चीन द्वारा विवादित दक्षिण चीन सागर में पैरासेल आइलैंड के पास वियतनाम के एक  मछली पकड़ने वाले पोत को डुबो दिया है।
  • पारसेल को वियतनाम और ताइवान दोनों अपना हिस्सा मानते हैं। चीन के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए वियतनाम द्वारा इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन’ बताया गया। 
  • इसके आलावा चीन द्वारा फिलीपींस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले हिस्से को अपने हैनान प्रांत का ज़िला घोषित कर दिया गया था।

दक्षिण चीन सागर में भारत की भूमिका: 

  • भारत स्पष्ट रूप से ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ द लॉ ऑफ द सी , 1982’ (United Nations Convention on the Law of the Sea) के सिद्धांतो के आधार पर दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्र व निर्बाध जल परिवहन का समर्थन करता है। 
  • भारत का यह भी मानना है कि दक्षिण चीन सागर विवाद में शामिल क्षेत्र के सभी देशों को किसी भी प्रकार की धमकी और बल प्रयोग किये बिना आपसी विवादों को हल करना चाहिये, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता है तो न चाहते हुए भी जटिलताएँ पैदा हो जाएंगी और क्षेत्र की शांति व स्थिरता को खतरा पैदा हो जाएगा। 
  • भारत, वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों के साथ सैन्य साज़ो सामान के आयात-निर्यात की गतिविधियों को बढ़ा रहा है। इस प्रकार भारत पूर्वी एशिया खासतौर पर चीन के साथ विवाद में उलझे हुए देशों के महत्त्वपूर्ण सैन्य भागीदार के रूप में उभर सकता है। 
  • दक्षिण चीन सागर विवाद को भारत के लिये पूर्वी एशियाई पड़ोसियों के साथ रिश्ते सुधारने के महत्त्वपूर्ण मौके के रूप में देखा जा रहा है।
  • अमेरिका के साथ मिलकर भारत इस क्षेत्र के लोगों की क्षमताओं में वृद्धि करने में सहायता कर  सकता है तथा इस प्रकार इस क्षेत्र में चीन की बढ़ रही आक्रामक भूमिका को संतुलित करने में भारत-अमेरिका का महत्त्वपूर्ण भागीदार बन सकता है।   

निष्कर्ष:

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में चीन के इस कार्य को राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से आसियान देशों द्वारा गैर ज़िम्मेदार कदम बताकर आलोचना की गई है। पूरा विश्व जब महामारी के खिलाफ एकजुट खड़ा है, ऐसे में दक्षिण चीन सागर में कोई भी कार्यवाही अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के साथ-साथ कुछ क्षेत्रों में सुरक्षा और स्थिरता को और अधिक बढ़ा सकती है। ऐसे समय में चीन पर सामरिक एवं आर्थिक कूटनीतिक दवाब बनाकर विवाद को बढ़ने से रोकने की आवश्यकता है । इन सबके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सख्ती से पालन करने की भी आवश्यक है।   

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

नशा मुक्त भारत अभियान

प्रीलिम्स के लिये:

नशा मुक्त भारत अभियान

मेन्स के लिये:

‘सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय’ द्वारा नशा मुक्ति के लिये किये गए प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय’ (Ministry of Social Justice and Empowerment) द्वारा ‘नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ (Nternational Day Against Drug Abuse and Illicit Trafficking) के अवसर पर देश के 272 ज़िलों के लिये एक नशीली दवा-रोधी कार्य योजना/’नशा मुक्त भारत’ (Drug-Free India Campaign) अभियान की शुरुआत की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • नशा मुक्त भारत अभियान वर्ष 2020-21 के लिये देश के 272 ज़िलों में शुरू किया गया है।
  • यह अभियान न केवल संस्थागत सहयोग पर, बल्कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से नशा मुक्त भारत अभियान के लिये पहचाने गए ज़िलों में सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों  (community outreach programmes) पर भी ध्यान केंद्रित करेगा। 
  • इस अभियान के तहत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय नशा मुक्ति में कार्यरत संस्थानों के लिये धन जुटाने तथा युवाओं के बीच नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिये स्कूलों और कॉलेजों में नशा मुक्ति अभियान को संचालित करेगा। 
  • इस अभियान में जागरूकता सृजन कार्यक्रम, समुदाय की आउटरीच और दवा पर निर्भर आबादी की पहचान, उपचार सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ सेवा-प्रदाताओं के लिये क्षमता-निर्माण कार्यक्रम को शामिल किया गया हैं।
  • नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ के अवसर पर  ‘सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय’  द्वारा नशा मुक्ति अभियान का लोगो व टैग लाइन ‘नशा मुक्त भारत-सशक्त भारत’ भी जारी किया गया।

सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय:

  • नशीली दवा की माँग में कमी लाने के लिये सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय नोडल मंत्रालय है। 
  • यह मंत्रालय नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम के सभी पहलुओं पर निगरानी का कार्य  करता है। 
  • सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय द्वारा नशे की समस्या का  विस्तार से  मूल्यांकन करने, नशे के आदी व्यक्ति का उपचार  एवं उनका पुनर्वास करने, लोगों में नशे की प्रति जागरुकता सृजित करने के साथ-साथ देशभर में नशा मुक्ति केंद्र चलाने के लिये एनजीओ को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस:

  • विश्व स्तर पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग एवं अवैध तस्करी को रोकने के लिये 26 जून को ‘नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ मनाया जाता है।
  • यह दिवस अंतर्राष्ट्रीय समाज को नशीली दवाओं के दुरुपयोग से मुक्त करने के लिये कार्रवाई करने और इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र के दृढ संकल्प की अभिव्यक्ति के रूप में मनाया जाता है।
  • वर्ष 2020 में इस दिवस की थीम ‘Better Knowledge for Better Care’ है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन पर पूर्ण प्रतिबंध: भारत पर प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये

भारत का आयात और निर्यात

मेन्स के लिये

चीन के सामान के बहिष्कार का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद से ही देश में चीन विरोधी स्वर तेज़ हो रहे हैं और देश में चीन के सामानों का बहिष्कार करने की मांग भी बढ़ती जा रही है।

प्रमुख बिंदु

  • हालाँकि इस घटनाक्रम से विभिन्न उद्योग निकायों के बीच भय की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जो कि चीन के निर्यात पर प्रतिबंध लग जाने से भारतीय उद्योगों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।
  • फार्मास्युटिकल्स से लेकर दूरसंचार और ऑटोमोबाइल से जुड़े उद्योग संघों का विचार है कि चीन के खिलाफ कोई भी कार्यवाही करना तब तक भारत के हित में नही होगा जब तक भारत के घरेलू उद्योग की क्षमता का सही ढंग से विकास नहीं किया जाता है। 
  • विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इससे पूर्व चीन के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही की जाती है तो यह भारत के निर्यात समेत भारत की अर्थव्यवस्था के लिये काफी नुकसानदायक साबित होगा।

चीन के आयात पर भारत की निर्भरता

  • उल्लेखनीय है कि भारत के शीर्ष आयातों विशेषकर मध्यवर्ती उत्पादों और कच्चे माल में चीन का काफी बड़ा हिस्सा मौजूद है।
  • चीन, भारत में इलेक्ट्रिकल मशीनरी, उपकरण और उनके हिस्सों, परमाणु रिएक्टरों, जैविक एवं अकार्बनिक रसायनों और वाहनों एवं उनके हिस्सों आदि का शीर्ष निर्यातक रहा है। 
  • आँकड़े बताते हैं कि भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में चीन का कुल 45 प्रतिशत हिस्सा है। 
  • भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अनुसार, भारत द्वारा विश्व से खरीदी जाने वाली लगभग एक-तिहाई मशीनरी और लगभग 40 प्रतिशत कार्बनिक रसायन चीन से ही आता है।
  • इनमें से कई उत्पाद भारतीय निर्माताओं द्वारा तैयार माल के उत्पादन में उपयोग किए जाते हैं, इस प्रकार चीन भारत की विनिर्माण आपूर्ति श्रृंखला में पूरी तरह से एकीकृत है।
    • उदाहरण के लिये भारत में बनने वाले कुछ मोबाइल फोन के कुछ हिस्से ऐसे भी हैं, जिन्हें लगभग 90 प्रतिशत चीन से आयात किया जाता है।
  • इसके अलावा निर्यात बाज़ार के रूप में भी चीन भारत का एक प्रमुख भागीदार है।
  • 15.5 बिलियन डॉलर के साथ चीन भारतीय निर्यात का तीसरा सबसे बड़ा गंतव्य है, वहीं इसका दूसरा पहलू यह है कि भारत चीन के कुल निर्यात का केवल 2 प्रतिशत का ही भागीदार है।

चीन पर प्रतिबंध का भारत पर प्रभाव

  • फार्मास्यूटिकल्स, दूरसंचार और ऑटोमोबाइल उद्योगों से संबंधित सभी उद्योग संघों ने चीन के आयात के पूर्ण बहिष्कार पर चिंता ज़ाहिर की है। भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (FIEO) के के अनुसार, कच्चे माल पर अत्यधिक निर्भरता के कारण देश में चीन के सामान पर ‘पूर्ण प्रतिबंध संभव नहीं है।
  • उदाहरण के लिये भारतीय दवा निर्माताओं द्वारा कई आवश्यक दवाओं के निर्माण के लिये लगभग 3.6 बिलियन डॉलर की सामग्री का आयात किया जाता है, जिसमें से लगभग 68 प्रतिशत हिस्सा चीन का है।
    • ध्यातव्य है कि यदि भारत सरकार द्वारा फार्मास्यूटिकल्स आयात पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो भारतीय बाज़ारों में दवाओं की काफी कमी आ सकती है।

क्या हैं विकल्प?

  • विशेषज्ञों का मानना है कि चीन में बने अंतिम उत्पादों का बहिष्कार करने अथवा न करने का निर्णय व्यक्ति विशेष पर छोड़ा दिया जाना चाहिये, जबकि चीन से आयात किये जाने वाले सस्ते कच्चे माल पर शुल्क बढ़ाना स्पष्ट तौर पर एक अवसर के रूप में देखा जा सकता है।
  • इससे भारत को अल्पावधि में महत्त्वपूर्ण सामग्री प्राप्त करने में मदद मिलेगी और इस अवधि में भारत वैकल्पिक व्यापार भागीदार भी खोज सकेगा।
  • CII के अनुसार, अमेरिका, वियतनाम, जापान, मैक्सिको और कुछ यूरोपीय देशों को महत्त्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, वाहनों और दवा घटकों के लिये वैकल्पिक आयात के रूप में देखा जा सकता है।
  • हालाँकि इन वैकल्पिक स्रोतों से कच्चे माल की लागत अधिक होगी और भारतीय उपभोक्ताओं को वस्तु के लिये अधिक मूल्य देना पड़ेगा।
  • FIEO के अनुसार, भारत को चीन और हॉन्गकॉन्ग के साथ अपने व्यापार की निर्भरता कम करने के लिये एक विस्तृत योजना लागू करनी होगी।
  • भारत सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की शुरुआत की है, आवश्यक है कि भारत के घरेलू उद्योगों को भी एक विकल्प के रूप में देखा जाए और उनके विकास के लिये यथासंभव प्रयास किये जाएँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

एंथ्रोपाॅज़ काल

प्रीलिम्स के लिये

एंथ्रोपाॅज़, ग्रेट पॉज

मेन्स के लिये

COVID-19 से प्रेरित लॉकडाउन अवधि का पर्यावरणीय प्रभाव आकलन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में यू.के में शोधकर्त्ताओं ने COVID-19 से प्रेरित लॉकडाउन अवधि का उल्लेख करने के लिये एक शब्द 'एंथ्रोपाॅज़' (Anthropause) गढ़ा है और वे अन्य प्रजातियों पर इस अवधि के प्रभाव का अध्ययन करेंगे। 

प्रमुख बिंदु: 

  • 'एंथ्रोपाॅज़' (Anthropause) दो शब्दों [एंथ्रोपो (Anthropo) अर्थात् मनुष्य से संबंधित और पाॅज़ (Pause) अर्थात् ठहराव] से मिलकर बना है।
  • यह COVID-19 से प्रेरित लॉकडाउन अवधि के लिये अधिक सटीक शब्द है जिसे 'ग्रेट पॉज़' (Great Pause) के रूप में भी संदर्भित किया जा रहा है। 
  • यह विशेष रूप से आधुनिक मानव गतिविधियों के लिये वैश्विक ठहराव (विशेष रूप से यात्रा) को संदर्भित करता है।

वैश्विक स्तर पर इस अवधि का विभिन्न प्रजातियों पर प्रभाव:

  • COVID-19 के मद्देनज़र विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में लॉकडाउन के परिणामस्वरूप प्रकृति विशेष रूप से शहरी वातावरण (Urban Environments) में बदलाव देखा गया। 
    • लॉकडाउन के कारण वन्यजीवों का असामान्य व्यवहार एवं अप्रत्याशित वन्यजीवों को कई बार देखा गया है उदाहरण के तौर पर चिली के डाउनटाउन सैंटियागो (Santiago) में प्यूमा (Pumas) को, इटली में ट्राइस्टे (Trieste) बंदरगाह के पास शांत जल में डॉल्फिन को, तेल अवीव (इज़राइल) के शहरी पार्कों में दिन के उजाले में सियार को देखा गया।   
    • मानवीय नज़रों से दूर तथा पोत यातायात और ध्वनि प्रदूषण के स्तर में कमी के बाद वन्यजीव दुनिया के महासागरों में अधिक स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं।
  • वहीँ दूसरी ओर विभिन्न शहरी आवास वाले जीव-जंतुओं जैसे चूहे और बंदरों के लिये लॉकडाउन अवधि अधिक कठिन एवं चुनौतीपूर्ण हो गया है जो मनुष्यों द्वारा प्रदान किये गए भोजन पर निर्भर हैं।

अध्ययन का महत्त्व:

  • 21वीं सदी में इस लॉकडाउन अवधि का अध्ययन मानव-वन्यजीव संबंधों के लिये एक मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा क्योंकि मानव आबादी का विस्तार अभूतपूर्व दर से हो रहा है जो प्राकृतिक वातावरण में नकारात्मक बदलाव के लिये ज़िम्मेदार है।
  • मानव एवं वन्यजीवों के व्यवहार से संबंधित यह अंतर्संबंध एक बहुमूल्य जानकारी प्रदान करने में मदद कर सकता है। जो निम्नलिखित तरीकों से उपयोगी हो सकता है:-

आगे की राह:

  • इस प्रकार COVID-19 महामारी बड़ी मात्रा में डेटा क्लस्टर का निर्माण करके वन्यजीवों की प्रतिक्रियाओं से संबंधित एक वैश्विक परिदृश्य निर्मित करने का अवसर देती है।
  • इस तरह की सहयोगी परियोजनाएँ उपर्युक्त उल्लिखित स्थानिक एवं कालिक दृष्टिकोणों को एकीकृत करेंगी जो ‘कार्य-कारण संबंधों’ को उजागर करने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

परागणक सप्ताह

प्रीलिम्स के लिये:

परागणक सप्ताह,परागणक, मोनोक्रॉपिंग के बारे में 

मेन्स के लिये:

परागणकों का जैवविविधता के संरक्षण में महत्त्व 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में ‘खाद्य और कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organization- FAO) द्वारा इस बात के लिये चेतावनी दी गई है कि विश्व में लगभग 40% ‘अकशेरुक परागणक प्रजातियाँ’ (invertebrate pollinator species ) विलुप्त हो सकती हैं, जिनमें मधुमक्खियाँऔर तितलियाँ प्रमुख रूप से शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • 22 से 28 जून, 2020 को परागणक सप्ताह (Pollinator Week) के रूप में आयोजित किया जा रहा है।
  • यह  एक वार्षिक कार्यक्रम है, जिसे पोलिनेटर पार्टनरशिप (Pollinator Partnership- P2) द्वारा हर वर्ष आयोजित किया जाता है।
  • संपूर्ण विश्व में 1,200 फसलों की  किस्मों सहित 180,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ प्रजनन के लिये परागणकों (Pollinators) पर निर्भर हैं।
  • ‘खाद्य और कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organization- FAO) के अनुसार, विश्व भर में परागणकों की 150,000 प्रजातियाँ विद्यमान हैं जो सिर्फ फूलों पर मडराती हैं इनमें से 25,000 से 30,000 प्रजातियाँ मधुमक्खियों की शामिल है।
  • वर्तमान पर्यावरणीय दशाओं के चलते मधुमक्खियों और तितलियों की तरह छोटे जीवों पर तेज़ी से खतरा बढ़ा है। 

परागणक सप्ताह:

  • परागणक सप्ताह ऐसे ही जीवों की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिये 22 से 28 जून तक ‘राष्ट्रीय परागणक सप्ताह’ (National Pollinator Week) ) के रूप में मनाया जाता है।
  • पोलिनेटर वीक (22-28 जून) की शुरुआत गैर-लाभकारी पोलिनेटर पार्टनरशिप (non-profit Pollinator Partnership) तथा यूनाइटेड स्टेट्स सीनेट (United States' Senate) द्वारा वर्ष 2007 में शुरू की गई थी।

परागणकों के बारे में:

  • परागणकों की दो श्रेणियाँ हैं- अकशेरुकी (।invertebrates) और कशेरुक (Vertebrates)
    • अकशेरूकीय परागणकों में मधुमक्खियाँ, पतंगे, मक्खियाँ, ततैया, भृंग तथा तितलियाँ शामिल हैं। 
    • कशेरुक परागणकों में बंदर, कृंतक, गिलहरी तथा पक्षी शामिल हैं।

परागणकों की संख्या में कमी:

  • ‘खाद्य और कृषि संगठन’ के अनुसार, विश्व भर में लगभग 40% अकशेरूकीय परागणकर्ता प्रजातियाँ जिनमें विशेष रूप से मधुमक्खियों और तितलियाँ की संख्या में कमी हो रही है।
  • भारत में, जंगली मधुमक्खियों की एपिस प्रजाति (Genus) की संख्या में पिछले 30 सालों में काफी गिरावट देखी गई है। इनमें एशियाई मधुमक्खी सेराना (Cerana) और छोटे आकार वाली मधुमक्खी, फ्लोरिया (Florea) भी शामिल है। 
  • खराब कचरा प्रबंधन के कारण हर दिन लगभग 168 मक्खियों की मृत्यु हो जाती हैं।
  • दक्षिण भारत में मधुमक्खी की आबादी में गिरावट देखी गई है ।
  • वर्ष 2014 के एक अध्ययन ‘रोल ऑफ डिस्पोज़ेबल पेपर कप’ (Role of Disposable Paper Cups) को दक्षिण भारत में मधुमक्खियों की संख्या में कमी के कारणों को जानने के लिये किया गया। अध्ययन में बताया गया कि कुल मिलाकर हर महीने 35,211 मक्खियों की मौत हुई है।
  • अमेरिका में भी मधुमक्खियों की आबादी में गिरावट देखी गई। में FAO के अनुसार, वर्ष 2017 में अमेरिका में 32 लाख 80 हजार मधुमक्खियों की कालोनी थी जो कि वर्ष 2017 तक पाँच वर्षों  में 12 प्रतिशत की गिरावट के साथ 28 लाख 80 हज़ार ही रह गई है ।
  • इस प्रकार FAO के अनुसार, लगभग 16.5 प्रतिशत कशेरुकी परागणकों के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है।
  • FAO के आकलन के अनुसार, तेज़ी से खत्म हो रहे परागणकों में चमगादड़ों की 45 प्रजातियाँ, ना उड़ पाने वाले स्तनधारियों की 36 प्रजातियाँ, हमिंगबर्ड की 26 प्रजातियाँ,  सनबर्ड की सात प्रजातियाँ तथा पर्शियन बर्ड की 70 प्रजातियों  पर  खतरा बना हुआ हैं ।

परागणकों की प्रजाति में गिरावट के प्रमुख कारण

  • परागणकों की संख्या में गिरावट के कई कारण हैं। उनमें से अधिकांश मानव गतिविधियों में  बढ़ोत्तरी का परिणाम हैं।
  • भूमि-उपयोग परिवर्तन एवं विखंडन।
  • रासायनिक कीटनाशकों, फफूंदनाशकों और कीटनाशकों के उपयोग सहित कृषि विधियों में परिवर्तन।
  • फसलों और फसल चक्र में परिवर्तन जैसे जेनेटिकली मॉडीफाइड ऑर्गेनिज़्म (Genetically Modified Organisms- GMOs) और मोनोक्रॉपिंग ( Monocropping) अर्थात एक ही प्रकार की फसल उगाना को बढ़ावा ।
  • भारी धातुओं और नाइट्रोजन से उच्च पर्यावरण प्रदूषण।
  • विदेशी फसलों का को उगाना।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 27 जून, 2020

मैरी डब्‍लयू. जैकसन

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने अमेरिका समेत विश्व के कई अन्य देशों में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध चल रहे अभियानों का समर्थन करते हुए अपने मुख्यालय का नाम ‘मैरी डब्‍लयू. जैकसन’ (Mary W. Jackson) के नाम पर रखने की घोषणा की है। ध्यातव्य है कि ‘मैरी जैकसन’ नासा (NASA) की सबसे पहली अफ्रीकी अमेरिकी महिला इंजीनियर थीं। मैरी जैकसन का जन्म 09 अप्रैल, 1921 को अमेरिका में ऐसे समय में हुआ था, जब अमेरिका में नस्लीय भेदभाव अपने चरम पर था। मैरी जैकसन ने हैम्पटन इंस्टीट्यूट (वर्तमान में हैम्पटन विश्वविद्यालय) से गणित और भौतिक विज्ञान में दोहरी डिग्री के साथ स्नातक करने के बाद मैरीलैंड राज्य (Maryland State) के एक विद्यालय में गणित की शिक्षिका के रूप में कार्य किया। वर्ष 1951 में वे नेशनल एडवाइज़री कमेटी फॉर एयरोनॉटिक्‍स (National Advisory Committee for Aeronautics) द्वारा एक गणितज्ञ के रूप में नियुक्त की गईं, इसी संस्था को वर्ष 1958 में नासा के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया गया। गणितज्ञ के रूप में शामिल होने के बाद और और अधिक अध्ययन किया, जिसके बाद वर्ष 1958 में उन्हें पदोन्नति मिली और वे नासा की पहली अश्वेत महिला इंजीनियर बन गईं। उन्होंने अपने लगभग दो दशक लंबे इंजीनियरिंग कैरियर में कई रिपोर्टों और शोधों पर कार्य किया। मैरी जैकसन वर्ष 1985 में सेवानिवृत्त हो गईं। 

मुख्यमंत्री मातृ पुष्टि उपहार योजना

कुपोषण और मातृ मृत्यु दर से मुकाबला करने हेतु त्रिपुरा सरकार ने ‘मुख्यमंत्री मातृ पुष्टि उपहार योजना’ (Mukhyamantri Matru Pushti Uphaar) की शुरुआत की है, जिसके तहत राज्य सरकार द्वारा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को मुफ्त में पोषण किट प्रदान की जाएगी। इस योजना की घोषणा करते हुए राज्य के समाज कल्याण एवं सामाजिक शिक्षा मंत्री संताना चकमा (Santana Chakma) ने कहा कि योजना के तहत सरकार द्वारा प्रदान की जा रही किट से कम-से-कम 40,000 महिलाओं को लाभ होगा, उल्लेखनीय है कि प्रत्येक किट का मूल्य लगभग 500 रुपए प्रति किट होगा। अनुमान के अनुसार, राज्य सरकार की इस पहल में प्रत्येक वर्ष तकरीबन 8 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। गर्भवती महिलाओं को अपने घर के पास के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में समय-समय पर जाँच करवानी होगी और प्रत्येक जाँच के बाद उन्हें किट प्रदान की जाएगी, इस किट के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिये मूंगफली, सोयाबीन, मिश्रित दालें, गुड़ और घी जैसी खाद्य सामग्री शामिल होंगी। सामान्य शब्दों में कहें तो कुपोषण (Malnutrition) वह अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन, अव्यवस्थित रूप से लेने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है और जिसके कारण गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग दिवस

वैश्विक स्तर पर प्रत्येक वर्ष 27 जून को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग दिवस (Micro, Small and Medium-sized Enterprises Day) के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 6 अप्रैल, 2017 को आयोजित 74वीं पूर्ण बैठक में प्रतिवर्ष 27 जून को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग दिवस के रूप में घोषित किया था, इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और नवाचार को बढ़ावा देने में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के महत्त्व को पहचानना है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के आँकड़ों के अनुसार, MSME के तहत भारत में लगभग 6.34 उद्यम सक्रिय हैं, इनमें से अधिकांश (लगभग 51%) देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं। हाल ही में सरकार ने MSMEs की परिभाषा में परिवर्तन किया है, नई परिभाषा के अनुसार, ‘सूक्ष्म’ उद्यम वह है जिसमें संयंत्र और मशीनरी तथा उपकरण में एक करोड़ से अधिक का निवेश नहीं होता है तथा जिसका कारोबार पाँच करोड़ रुपए से अधिक नहीं होता है। ‘लघु’ उद्यम वे होते हैं जिनमें संयंत्र और मशीनरी तथा उपकरण में 10 करोड़ रुपए से अधिक निवेश नहीं होता है तथा जिसका कारोबार 50 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होता है। वहीं मध्यम उद्यम की परिभाषा में वे उद्यम शामिल हैं, जिसमें संयंत्र और मशीनरी तथा उपकरण में 50 करोड़ रुपए से अधिक निवेश नहीं होता है तथा जिसका कारोबार 250 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होता है। 

गरीब कल्याण रोज़गार अभियान

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गरीब कल्याण रोज़गार अभियान के वेब पोर्टल का शुभारंभ किया है। गरीब कल्याण रोज़गार अभियान भारत सरकार का समग्र रोज़गार सृजन और ग्रामीण बुनियादी ढाँचा निर्माण कार्यक्रम है, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 20 जून, 2020 को की गई थी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य COVID-19 महामारी के चलते पैदा हुए हालात के कारण अपने गृह क्षेत्र लौटने वाले प्रवासी कामगारों को आगामी चार माह तक रोज़गार उपलब्ध कराना है।  ये पोर्टल आम जनता को ‘गरीब कल्याण रोज़गार अभियान’ के विभिन्न ज़िला-वार और योजना-वार घटकों के बारे में जानकारी प्रदान करने के अलावा 6 राज्यों के 116 ज़िलों में 50,000 करोड़ रुपए की व्यय निधि के साथ शुरू किये गए कार्यों को पूरा करने की प्रगति की निगरानी रखने में मदद करेगा। केंद्र सरकार के इस अभियान के अंतर्गत कुल छ: राज्यों यथा- बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड तथा ओडिशा को शामिल किया गया है। यह 125 दिनों का अभियान है, जिसे मिशन मोड रूप में संचालित किया जा रहा है।


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