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डेली न्यूज़

  • 27 May, 2020
  • 70 min read
भारतीय विरासत और संस्कृति

पुरंदर दास: कर्नाटक संगीत के पिता

प्रीलिम्स के लिये:

पुरंदर दास, कर्नाटक संगीत, हिंदुस्तानी संगीत 

मेन्स के लिये:

भारतीय शास्त्रीय संगीत का ऐतिहासिक संबंध 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘पुरातत्व, विरासत एवं संग्रहालय विभाग’ (Department of Archeology,Heritage and Museum) ने कर्नाटक के तीर्थहल्ली (Thirthahalli) तालुका के अरगा ग्राम पंचायत के केशवपुरा में अनुसंधान कार्य शुरू करने का निर्णय लिया।

  • इस शोध का उद्देश्य पुरंदर दास के जन्मस्थान के बारे में स्पष्ट पुरातात्त्विक साक्ष्य का पता लगाना है। जिन्हें ‘कर्नाटक संगीत के पिता’ के रूप में सम्मानित किया गया था।

प्रमुख बिंदु:

  • पुरंदर दास के जन्मस्थान से संबंधित रहस्य को सुलझाने के लिये राज्य सरकार ने कन्नड़ विश्वविद्यालय, हम्पी को एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश दिया था।
  • इस समिति में आर.के. पद्मनाभ (संगीत विशेषज्ञ), लीलादेवी आर. प्रसाद (कन्नड़ एवं संस्कृति के पूर्व मंत्री), कन्नड़ भक्ति साहित्य के विशेषज्ञ ए. वी. नवादा, वीरन्ना राजूरा, अरालूमाल्लिगे पार्थसारथी और शिवानंद विरक्थमत्त को नामित किया गया था। 
  • इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस मुद्दे (पुरंदर दास के जन्मस्थान से संबंधित) पर और शोध करने की सिफारिश की थी।

पुरंदर दास (Purandara Dasa):

  • पुरंदर दास को कर्नाटक संगीत के पिता के रूप में सम्मानित किया गया था। कर्नाटक संगीत में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के सम्मान में उन्हें व्यापक रूप से ‘संगीत पितामह’ के रूप में जाना जाता है।
  • वे भगवान कृष्ण के महान भक्त, वैष्णव कवि, संत एवं समाज सुधारक थे।
  • वह द्वैत दार्शनिक संत व्यासतीर्थ के शिष्य थे और कनकदास के समकालीन थे। उनके गुरु व्यासतीर्थ ने एक गीत: दसरेंदर पुरंदर दारासराय, में पुरंदर दास की महिमा का बखान किया है।
    • कनकदास (1509-1609) कर्नाटक संगीत के प्रसिद्ध संगीतकार, कवि, दार्शनिक और संत थे। उन्हें कर्नाटक संगीत के लिये कन्नड़ भाषा में रचित रचनाएँ ‘कीर्तनास’ (Keertanas) और ‘ऊगाभोग’ (Ugabhoga) के लिये जाना जाता है।
  • वह एक संगीतकार, गायक और दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत (कर्नाटक संगीत) के मुख्य संस्थापकों में से एक थे।
  • हरिदास परंपरा (भगवान हरि या भगवान कृष्ण का सेवक) की शुरुआत करने से पहले पुरंदर दास एक अमीर व्यापारी थे और उन्हें ‘श्रीनिवास नायक’ कहा जाता था।
  • इतिहासकार बताते हैं कि पुरंदर दास का जन्म मलनाड में हुआ था और उनको मिली 'नायक' की उपाधि का श्रेय विजयनगर साम्राज्य को जाता है क्योंकि विजयनगर शासन के दौरान ‘नायक’ की उपाधि मलनाड के धनी व्यापारियों सहित स्थानीय प्रभावशाली लोगों को दी गई थी।

जन्मस्थान से संबंधित मुद्दा:

  • जैसा कि 'पुरंदरा विट्ठला' उनकी रचनाओं का नाम था जिसके कारण यह व्यापक रूप से माना जाता था कि इस रहस्यवादी कवि का जन्म महाराष्ट्र के पुरंदरगढ़ में हुआ था।
  • हालाँकि मलनाड में कई लोगों ने दावा किया कि वह इस क्षेत्र (मलनाड) से हैं।
  • इतिहासकारों के अनुसार, विजयनगर शासन के दौरान मलनाड में अरगा एक मुख्य व्यावसायिक केंद्र था जिसका संबंध कवि पुरंदर दास से था।
    • केशवपुरा के आसपास के क्षेत्रों के नामों (वर्थेपुरा, विट्ठलनागुंडी, दसानागड्डे) का उल्लेख करते हुए यह तर्क दिया गया था कि ये स्थान वैष्णव परंपरा से प्रभावित व्यापारी समुदाय से संबंधित था।
    • पुरंदर दास की रचनाओं में प्रयोग किये गए कई शब्दों का उपयोग मलनाडवासी अपने उस समय के दैनिक जीवन में करते थे।
  • पुरंदर दास के जन्मस्थान के बारे में रहस्य को सुलझाने के लिये कर्नाटक सरकार ने कन्नड़ विश्वविद्यालय, हम्पी को एक विशेषज्ञ समिति बनाने का निर्देश दिया था।

कर्नाटक संगीत:

  • कर्नाटक संगीत शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली है। यह संगीत अधिकांशतः भक्ति संगीत के रूप में होता है और इसके अंतर्गत अधिकतर रचनाएँ हिन्दू देवी-देवताओं को संबोधित होती हैं। तमिल भाषा में कर्नाटक का आशय प्राचीन, पारंपरिक और शुद्ध से है। कर्नाटक संगीत की मुख्य विधाएँ निम्नलिखित हैं- 
  • अलंकारम- सप्तक के स्वरों की स्वरावलियों को अलंकारम कहते हैं। इनका प्रयोग संगीत अभ्यास के लिये किया जाता है। 
  • लक्षणगीतम्- यह गीत का एक प्रकार है जिसमें राग का शास्त्रीय वर्णन किया जाता है। पुरंदरदास के लक्षणगीत कर्नाटक में गाए जाते हैं। 
  • स्वराजाति- यह प्रारंभिक संगीत शिक्षण का अंग है। इसमें केवल स्वरों को ताल तथा राग में बाँटा जाता है। इसमें गीत अथवा कविता नहीं होते हैं।
  • आलापनम्- आकार में स्वरों का उच्चारण आलापनम् कहलाता है। इसमें कृति का स्वरूप व्यक्त होता है। इसके साथ ताल-वाद्य का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • कलाकृति, पल्लवी- कलाकृति में गायक को अपनी प्रतिभा दिखाने का पूर्ण अवसर मिलता है। द्रुत कलाकृति और मध्यम कलाकृति इसके दो प्रकार हैं। पल्लवी में गायक को राग और ताल चुनने की छूट होती है। 
  • तिल्लाना- तिल्लाना में निरर्थक शब्दों का प्रयोग होता है। इसमें लय की प्रधानता होती है। इसमें प्रयुक्त निरर्थक शब्दों को ‘चोल्लुक्केट्टू’ कहते हैं।
  • पद्म, जवाली- ये गायन शैलियाँ उत्तर भारतीय संगीत की विधाएँ- ठुमरी, टप्पा, गीत आदि से मिलती-जुलती हैं। ये शैलियाँ सुगम संगीत के अंतर्गत आती हैं। इन्हें मध्य लय में गाया जाता है। पद्म श्रृंगार प्रधान तथा जवाली अलंकार व चमत्कार प्रधान होती है। 
  • भजनम्- यह गायन शैली भक्ति भावना से परिपूर्ण होती है। इसमें जयदेव और त्यागराज आदि संत कवियों की पदावलियाँ गाई जाती हैं। 
  • रागमालिका- इसमें रागों के नामों की कवितावली होती है। जहाँ-जहाँ जिस राग का नाम आता है, वहाँ उसी राग के स्वरों का प्रयोग होता है, जिससे रागों की एक माला सी बन जाती है।

हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत:

  • भारतीय संगीत के विकास के दौरान हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत के रूप में दो अलग-अलग उप-प्रणालियों का उदय हुआ।
  • ये दोनों शब्द पहली बार हरिपाल की ‘संगीता सुधाकर’ (Sangeeta Sudhakara) में उभरे जो 14वीं शताब्दी में लिखी गई थी।

समानताएँ:

  • दोनों ही शैलियों में शुद्ध तथा विकृत कुल 12 स्वर लगते हैं। दोनों शैलियों में शुद्ध तथा विकृत स्वरों से थाट या मेल की उत्पत्ति होती है। 
  • जन्य-जनक का सिद्धांत दोनों ही स्वीकार करते हैं। दोनों ने संगीत में सुर-ताल के महत्त्व को स्वीकार किया है। 
  • दोनों के गायन में अलाप तथा तान का प्रयोग होता है। 

विषमताएँ:

  • कर्नाटक संगीत समरूप भारतीय परंपरा का जबकि हिंदुस्तानी संगीत एक विषम भारतीय परंपरा का प्रतिनिधित्त्व करता है।
  • हिंदुस्तानी संगीत में लखनऊ, जयपुर, किराना, आगरा आदि जैसे विभिन्न घराने हैं वहीं कर्नाटक संगीत में इस तरह के घराने नहीं मिलते हैं।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

आरोग्य सेतु एप अब ओपन सोर्स

प्रीलिम्स के लिये:

आरोग्य सेतु ऐप, ओपन सोर्स, बग बाउंटी कार्यक्रम  

मेन्स के लिये:

आरोग्य सेतु एप एवं निजता का मुद्दा 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने ‘आरोग्य सेतु एप’ को उपयोगकर्त्ताओं को ‘ओपन-सोर्स’ (Open-Source) के रूप में उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘आरोग्य सेतु एप’का एंड्रॉयड संस्करण पहले से उपलब्ध है जबकि आईओएस (iPhone Operating System- iOS) संस्करण अगले दो सप्ताह में जारी किया जाएगा तथा सर्वर कोड बाद में जारी किया जाएगा।
  • सरकार के अनुसार, आरोग्य सेतु एप के 98% उपयोगकर्त्ता एंड्रॉयड फोन का उपयोग करते हैं।

आरोग्य सेतु एप: 

  • आरोग्य सेतु एप को 'सार्वजनिक-निजी साझेदारी' (Public-Private Partnership- PPP) के जरिये तैयार एवं गूगल प्ले स्टोर पर लॉन्च किया गया है।
  • इस एप का मुख्य उद्देश्य COVID-19 से संक्रमित व्यक्तियों एवं उपायों से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराना है।
  • एक बार स्मार्टफोन में इन्स्टॉल होने के पश्चात् यह एप नज़दीक के किसी फोन में आरोग्य सेतु के इन्स्टॉल होने की पहचान कर सकता है

ओपन सोर्स का अर्थ:

  • ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर एक ऐसा सॉफ्टवेयर होता है जिसमें डेवलपर्स द्वारा; जिसने सॉफ्टवेयर का निर्माण किया है, सॉफ्टवेयर के सोर्स कोड (वह कोड जिससे प्रोग्राम बनता हैं) को एक लाइसेंस के साथ सभी के लिये सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराया जाता है।
  •  जिसमें अन्य सॉफ्टवेयर डेवलपर्स तथा एप उपयोगकर्त्ता आवश्यक सुधार कर सकते हैं। 

ओपन सोर्स का महत्त्व:

  • अप्रैल, 2020 में जब से आरोग्य सेतु एप को लॉन्च किया गया है, तब से उपयोगकर्त्ता की गोपनीयता एवं सुरक्षा संबंधी कई सवाल उठाए जा रहे हैं। ओपन सोर्स के निर्माण से पारदर्शिता में वृद्धि होगी।
  • एप के माध्यम से यदि उपयोगकर्त्ता यह जानना चाहता है कि वह COVID-19 पॉज़िटिव व्यक्ति के संपर्क में आया है या नहीं, इसके लिये एप्लिकेशन, ब्लूटूथ और लोकेशन डेटा का उपयोग करता है। अत: कई डेवलपर्स और शोधकर्त्ता एप के ट्रेसिंग एप्लिकेशन हटाने की मांग कर रहे थे।
  • भारत सरकार ने आरोग्य सेतु एप के एंड्रॉइड संस्करण को ओपन सोर्स बना दिया है, जिसका अर्थ है कि डेवलपर्स एप के स्रोत कोड का निरीक्षण करने तथा आवश्यक संशोधन करने में सक्षम होंगे।
  • सार्वजनिक डोमेन में स्रोत कोड जारी करने से मज़बूत और सुरक्षित प्रौद्योगिकी का निर्माण करने में सहायता मिलेगी।

ओपन सोर्स निर्माण की दिशा में कदम:

  • ओपन सोर्स के विकास को 'राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र' (National Informatics Centre- NIC) द्वारा प्रबंधित किया जाएगा। सभी कोड सुझावों को समीक्षा के माध्यम से संसाधित किया जाएगा।
  • भारत सरकार ने 'आरोग्य सेतु एप' को अधिक मज़बूत और सुरक्षित बनाने के लिये डेवलपर्स से एप की कमियों तथा कोड सुधार में मदद करने का अनुरोध किया है।
  • सरकार ने आरोग्य सेतु की सुरक्षा का परीक्षण करने के उद्देश्य से ‘बग बाउंटी कार्यक्रम’ (Bug Bounty Programme) शुरू किया है।

बग बाउंटी कार्यक्रम (Bug Bounty Programme):

  • ‘बग बाउंटी कार्यक्रम’ का उद्देश्य भारतीय डेवलपर्स समुदाय को एप की सुरक्षा खामियों को खोजने के लिये प्रोत्साहित करना है। विजेताओं को 1 लाख रुपये से पुरस्कृत किया जाएगा। 
  • कार्यक्रम का आयोजन MyGov टीम द्वारा किया गया है, जो सरकार के डिजिटल कार्यक्रमों को नागरिकों तक एप के माध्यम से पहुँचाने का काम देखती है। 
  • आरोग्य सेतु एप में सुधार का सुझाव देने के लिये अतिरिक्त 1 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा। 

आगे की राह:

  • 114 मिलियन से अधिक लोगों द्वारा नियमित रूप से उपयोग किये जा रहे उत्पाद का स्रोत कोड जारी करना चुनौतीपूर्ण है, तथापि स्रोत कोड को विकसित करना और बनाए रखना ‘टीम अरोग्य सेतु’ और डेवलपर्स की ज़िम्मेदारी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सोमालिया-केन्या समुद्री विवाद

प्रीलिम्स के लिये:

महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा पर आयोग (CLCS)

मेन्स के लिये:

महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा पर आयोग के कार्य 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 महामारी के मद्देनज़र, सोमालिया तथा केन्या के बीच समुद्री सीमा विवाद पर 8 जून को 'अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय' (International Court of Justice- ICJ) में होने वाली सुनवाई स्थगित किये जाने की संभावना है।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID-19 महामारी के कारण सोमालिया के दो बड़े मामलों, प्रथम केन्या के साथ समुद्री सीमा विवाद तथा द्वितीय वहाँ होने वाले सामान्य चुनावों को अनिश्चित काल के लिये स्थगित किया जा सकता है।
  • विवादित समुद्री क्षेत्र में ऊर्जा की व्यापक संभावना होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी मामले में रूचि ले रहे हैं। यूनाइटेड किंगडम और नॉर्वे ने सोमालिया के दावे का समर्थन किया है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और फ्राँस ने केन्या के दावे का समर्थन किया है। 

समुद्री विवाद का कारण:

  • सोमालिया और केन्या के बीच हिंद महासागर में समुद्री सीमा के परिसीमन को लेकर विवाद है। विवाद का मूल कारण दोनों देशों द्वारा महाद्वीपीय शेल्फ के आधार पर सामुद्रिक सीमा का निर्धारण है। 
  • दोनों देशों के मध्य लगभग 1,00,000 वर्ग किमी. क्षेत्र को लेकर विवाद है। इस क्षेत्र में तेल और गैस के विशाल भंडार मौजूद है।

Somalia

विवाद समाधान के प्रयास:

  • वर्ष 2009 में दोनों देशों द्वारा एक 'समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किया गया। जिसके तहत दोनों देश 'महाद्वीपीय शेल्फ सीमा पर आयोग’ (Commission on the Limits of the Continental Shelf- CLCS) को अलग-अलग दावों की प्रस्तुतियाँ पेश करने पर सहमत हुए।  दोनों देशों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि दोनों देश एक-दूसरे के दावों का विरोध नहीं करेंगे। 
  • दोनों देशों ने CLCS की सिफारिशों के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार समझौता खोजने के प्रति भी प्रतिबद्धता जाहिर की है।
  • लेकिन वर्ष 2014 में सोमालिया विवाद समाधान के लिये मामले को 'अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय' (ICJ) में ले गया जहाँ अक्तूबर 2019 में ICJ द्वारा मामले में सुनवाई 8 जून, 2020 तक के लिये स्थगित कर दी गई।

महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा पर आयोग (CLCS):

  • ‘महाद्वीपीय शेल्फ सीमा पर आयोग’ (CLCS), का कार्य ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के  कार्यान्वयन में मदद करना है। 
  • यह समुद्री आधार रेखा से 200 नॉटिकल मील से आगे के महाद्वीपीय शेल्फ के आधार पर महाद्वीपीय सीमाओं को निर्धारित करने हेतु सिफारिश करता है।
  • आयोग में भू विज्ञान, भू भौतिकी, जल विज्ञान आदि क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले 21 सदस्य होते हैं। आयोग के सदस्यों का चुनाव कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले देशों द्वारा किया जाता है। सदस्यों का चुनाव इस प्रकार किया जाता है कि वे विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

महाद्वीपीय शेल्फ और ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’:

  • ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (Exclusive Economic Zone-EEZ) का निर्धारण आधार रेखा से 200 नॉटिकल समुद्री मील तक किया जाता है परंतु महाद्वीपीय शेल्फ की लंबाई इससे अधिक हो तो समुद्री सीमा का निर्धारण महाद्वीपीय शेल्फ के अनुसार किया जाता है। 
    • EEZ बेसलाइन से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक फैला होता है। इसमें तटीय देशों को सभी प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन का संप्रभु अधिकार प्राप्त होता है।

Territorial-Sea

निष्कर्ष:

  • CLCS का कार्य उन तटीय राज्यों द्वारा प्रस्तुत वैज्ञानिक और तकनीकी आँकड़ों पर विचार करना है, जहाँ महाद्वीपीय शेल्फ की लंबाई 200 नॉटिकल मील से अधिक होने पर देशों के मध्य समुद्री सीमा को लेकर विवाद है।
  • CLCS को समुद्री सीमाओं के परिसीमन करते समय बिना किसी पूर्वाग्रह के कार्य करना चाहिये तथा समुद्री सीमा विवादों में शामिल सभी पक्षों की दलीलों पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

कोविड-19 के खिलाफ न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी

प्रीलिम्स के लिये: 

एंटीबॉडीज, सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा

मेन्स के लिये:

COVID-19 तथा इससे संबंधित विभिन्न अध्ययन, COVID-19 के उपचार में न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फ्राँस के एक अस्पताल में कार्यरत कर्मचारियों पर किये एक अध्ययन में यह बात सामने आई कि COVID-19 के हल्के लक्षणों वाले लगभग सभी चिकित्सकों तथा नर्सों में ऐसे एंटीबॉडी का विकास हुआ है जो उन्हें इस वायरस से पुनः संक्रमित होने से बचा सकता है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह अध्ययन ‘मेडरिक्सिव’ (Medrxiv) जोकि स्वास्थ विषयों में संबंधित एक इंटरनेट साइट है, पर प्रकाशित किया गया है।
  • अध्ययन के अनुसार, COVID-19 के हल्के लक्षणों की शुरुआत के बाद लगभग 13 दिनों में अस्पताल के लगभग सभी कर्मचारियों में नोवेल कोरोना वायरस को निष्प्रभावी करने में सक्षम एंटीबॉडी विकसित हुए।
  • इस अध्ययन में शामिल स्ट्रासबर्ग यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स (Strasbourg University Hospitals) के 91% व्यक्तियों में तटस्थ/निष्प्रभावकारी/न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी पाए गए।
    • किसी भी संक्रमण के बाद, मेज़बान (Host) को न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी का उत्पादन करने में कुछ समय लगता है।
    • ये एक प्रकार के एंटीबॉडी हैं जो एक संक्रामक एजेंट (उदाहरण के लिये, वायरस) द्वारा किसी कोशिका को संक्रमित करने या उसके जैविक प्रभाव को बाधित करने से रोकने में सक्षम होते हैं।
    • एंटीबॉडी एक सुरक्षात्मक प्रोटीन है जो शरीर में बाह्य पदार्थ, जिसे एंटीजन कहते हैं, की उपस्थिति के कारण प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा निर्मित होता है। 
  • इस अध्ययन से यह बात भी सामने आई कि रोगियों को वायरस के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा (Protective Immunity) मिल सकती है।

सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा (Protective immunity):

  • यह संक्रामक रोग के खिलाफ सुरक्षा विकसित करने की स्थिति है जो टीकाकरण, पूर्व में हुए संक्रमण या अन्य कारकों द्वारा उत्पन्न प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया द्वारा प्राप्त होती है।
  • कई साक्ष्यों से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी की उपस्थिति COVID-19 संक्रमण के लिये सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा से संबंधित हो सकती है।
  • गंभीर बीमारियों वाले रोगियों में एंटीबॉडी टिटर आमतौर पर अधिक होते हैं। लेकिन अध्ययन में पाया गया कि अधिक गंभीर बीमारी (जैसे- पुरुष, शरीर का अत्यधिक वज़न, और उच्च रक्तचाप) से जुड़े कारकों वाले व्यक्तियों में अन्य की तुलना में एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने के लिये उच्च टिटर (आवश्यक मात्रा) होने की संभावना अधिक थी।  

एंटीबॉडी टिटर (Antibody titres ):

  • एंटीबॉडी टिटर एक माप/परीक्षण है जो किसी जीव के रक्त में उपस्थित एंटीबॉडी की मात्रा को प्रदर्शित करता है। एंटीबॉडी की मात्रा और विविधता शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से संबंधित है।
  • एलिसा एंटीबॉडी टिटर के निर्धारण का एक सामान्य साधन है। 

आगे की राह

  • वर्तमान में, कोरोनावायरस बीमारी के लिये कोई विशिष्ट उपचार या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। ऐसे इस अध्ययन के निष्कर्ष द्वारा वैज्ञानिकों को COVID-19 को और बेहतर तरीके से समझने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, COVID-19 रोगियों में विशिष्ट एंटीबॉडी की लाभकारी या हानिकारक भूमिका को चिह्नित करने के लिये भविष्य में और अधिक अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

वनाग्नि संबंधी चिंता: समग्र विश्लेषण

प्रीलिम्स के लिये

वनाग्नि से संबंधित आँकड़े

मेन्स के लिये

वनाग्नि के कारण और उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के बीच उत्तराखंड बीते कुछ दिनों से जंगलों में लगी भीषण आग का सामना कर रहा है, जिसके कारण उत्तराखंड सरकार के लिये परिस्थितियाँ काफी चुनौतीपूर्ण हो गई हैं।

प्रमुख बिंदु

  • नवीनतम आँकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 2020 की शुरुआत से अब तक उत्तराखंड में वनाग्नि की कुल 46 घटनाएँ दर्ज की जा चुकी हैं, जिसके परिणामस्वरूप राज्य की तकरीबन 51.34 हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित हुई है। 
  • राज्य में वनाग्नि की अधिकांश (तकरीबन 21) घटनाएँ केवल कुमाऊँ क्षेत्र में दर्ज की गईं, जिसके कारण यह क्षेत्र वनाग्नि के कारण सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है।
  • वहीं गढ़वाल क्षेत्र में वनाग्नि की 16 घटनाएँ हुईं और राज्य के आरक्षित वन क्षेत्र (Reserve Forest Area) में वनाग्नि की कुल 9 घटनाएँ दर्ज की गईं।
  • अनुमान के अनुसार, इस वर्ष वनाग्नि की घटनाओं के कारण राज्य के वन विभाग को तकरीबन 1.32 लाख रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ा।
  • वहीं इस वर्ष राज्य में अब तक वनाग्नि के कारण 2 लोगों की मृत्यु भी हो गई।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) की रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड के जंगलों में जून 2018 से नवंबर 2019 के मध्य वनाग्नि की कुल 16 हजार घटनाएँ देखी गईं। 

वनाग्नि एक वैश्विक चिंता के रूप में 

  • बीते वर्ष सितंबर माह में शुरू हुई ऑस्ट्रेलिया की भीषण वनाग्नि ने देश में काफी बड़े पैमाने पर विनाश किया था, जिसके कारण लगभग 10 लाख हेक्टेयर भूमि का नुकसान हो गया था।
  • ब्राज़ील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (National Institute for Space Research-INPE) के आँकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 में ब्राज़ील के अमेज़न वनों (Amazon Forests) ने कुल 74,155 बार आग का सामना किया था। साथ ही यह भी सामने आया था कि अमेज़न वन में आग लगने की घटना वर्ष 2019 में वर्ष 2018 से 85 प्रतिशत तक बढ़ गई थी। 
  • दुनिया भर में वनाग्नि की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं और भारत भी इन घटनाओं से खुद को बचा नहीं पाया है। भारत में भी प्रतिवर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में कई वनाग्नि की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। 

वनाग्नि के कारण

  • भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में वनाग्नि के अलग-अलग कारण होते हैं, जिसमें प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मानवीय कारण भी शामिल हैं।
  • आकाशीय बिजली (Lightning) वनाग्नि के प्राकृतिक कारणों में सबसे प्रमुख है, जिसके कारण पेड़ों में आग लगती है और धीरे-धीरे आग पूरे जंगल में फैल जाती है। इसके अतिरिक्त उच्च वायुमंडलीय तापमान और कम आर्द्रता वनाग्नि के लिये अनुकूल परिस्थिति प्रदान करती हैं।
  • वहीं विश्व भर में देखे जानी वाली वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ मानव निर्मित होती हैं। वनाग्नि के मानव निर्मित कारकों में कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना आदि शामिल हैं।
    • ब्राज़ील के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के अनुसार, अमेज़न वर्षा वनों में दर्ज की जाने वाली 99 प्रतिशत आग की घटनाएँ मानवीय हस्तक्षेप के कारण या आकस्मिक रूप से या किसी विशेष उद्देश्य से होती हैं।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की रिपोर्ट भी दर्शाती है कि भारत में भी वनाग्नि की तकरीबन 95 प्रतिशत घटनाएँ मानवीय कारणों से प्रेरित होती हैं।
  • उच्च तापमान, हवा की गति और दिशा तथा मिट्टी एवं वातावरण में नमी आदि कारक वनाग्नि को और अधिक भीषण रूप धारण करने में मदद करते हैं।

वनाग्नि के प्रभाव

  • जंगलों में लगने वाली आग के कारण उस क्षेत्र विशिष्ट की प्राकृतिक संपदा और संसाधन को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
  • वनाग्नि के कारण जानवरों के रहने का स्थान नष्ट हो जाता है, जिसके कारण नए स्थान की खोज में वे शहरों की ओर जाते हैं और शहरों की संपत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • अमेज़न जैसे बड़े जंगलों में वनाग्नि के कारण जैव विविधता और पौधों तथा जानवरों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • जंगलों में लगने वाली आग न केवल जंगलों को तबाह करती है, बल्कि इसके कारण मानवीय जीवन और मानवीय संपत्ति को भी काफी नुकसान होता है।
  • वनाग्नि के प्रभावस्वरूप वनों की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्त्वों में भारी कमी देखने को मिलती है, जिन्हें वापस प्राप्त करने में काफी लंबा समय लगता है।
  • चूँकि वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ काफी व्यापक पैमाने पर होती हैं, इसलिये इनके कारण आस-पास के तापमान में काफी वृद्धि होती है।

वनाग्नि का सकारात्मक पक्ष

  • विश्लेषकों का मत है कि वनाग्नि जंगलों में पाई जाने वाली कई प्रजातियों निष्क्रिय बीजों को पुनर्जीवित करने में मदद करती है। 
  • कई अध्ययनों में सामने आया है कि वनाग्नि के कारण जंगलों में पाई जाने वाली अधिकांश आक्रामक प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं। उदाहरण के लिये कुछ समय पूर्व कर्नाटक में आदिवासी समुदायों ने प्रचलित ‘कूड़े में लगाई जाने वाली आग’ की परंपरा का बहिष्कार कर दिया था, जिसके कारण क्षेत्र विशिष्ट में लैंटाना (Lantana) प्रजाति की वनस्पति इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि उसने वहाँ के स्थानिक पौधों का अतिक्रमण कर लिया था।

निष्कर्ष

समय के साथ वनाग्नि से संबंधित घटनाएँ वैश्विक स्तर पर एक गंभीर चिंता का रूप धारण करती जा रही हैं, भारत में भी लगातार बढ़ रही वनाग्नि की घटनाओं ने नीति निर्माताओं को पर्यावरण संरक्षण, आपदा प्रबंधन और वन्य जीवों तथा वन्य संपदा के संरक्षण की दिशा में विमर्श करने हेतु विवश किया है। आवश्यक है कि देश में वनाग्नि प्रबंधन के लिये विभिन्न नवीन विचारों की खोज की जाए, इस संबंध में वनाग्नि प्रबंधन को लेकर विभिन्न देशों द्वारा अपनाए जा रहे मॉडल की समीक्षा की जा सकती है और उन्हें भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित किया जा सकता है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


कृषि

शहरी क्षेत्रों में टिड्डियों का आगमन

प्रीलिम्स के लिये:

टिड्डी, टिड्डी चेतावनी संगठन

मेन्स के लिये:

शहरी क्षेत्रों में टिड्डियों के आगमन से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

फसलों को बुरी तरह प्रभावित करने वाली टिड्डियों का पिछले कुछ दिनों से राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र (विदर्भ क्षेत्र) के शहरी क्षेत्रों में देखा जाना चिंता का विषय है।

प्रमुख बिंदु:

  • शहरी क्षेत्रों में टिड्डियों का आगमन:
  • दरअसल 11 अप्रैल को भारत-पाकिस्तान सीमा के आस-पास के क्षेत्रों में टिड्डियों को पहली बार देखा गया था।
  • मई के शुरूआती दिनों में ही पाकिस्तान से होते हुए टिड्डियों का आगमन राजस्थान की तरफ होने लगा था
  • मानसून से पहले आगमन होने की वज़ह से इनके मार्गों में सूखाग्रस्त क्षेत्र जहाँ भोजन व आश्रय न मिलने के कारण ये टिड्डियाँ हरी वनस्पति की तलाश में राजस्थान की तरफ बढ़ती गई। 
  • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation-FAO) के अनुसार, टिड्डियाँ भोजन की तलाश हेतु शहरी क्षेत्रों में प्रवेश कर रहीं हैं।

टिड्डी (Locusts):

  • मुख्यतः टिड्डी एक प्रकार के उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है जो विभिन्न प्रकार की फसलों को नुकसान पहुँचाती हैं। 
  • टिड्डियों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डियाँ सबसे खतरनाक और विनाशकारी मानी जाती हैं।
  • सामान्य तौर पर ये प्रतिदिन 150 किलोमीटर तक उड़ सकती हैं। साथ ही 40-80 मिलियन टिड्डियाँ 1 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में समायोजित हो सकती हैं।

टिड्डियों के पूर्वागमन के कारण:

  • टिड्डियों के पूर्वागमन का प्रमुख कारण मई और अक्तूबर 2018 में आए मेकुनु और लुबान नामक चक्रवाती तूफान हैं, जिनके कारण दक्षिणी अरब प्रायद्वीप के बड़े रेगिस्तानी इलाके झीलों में तब्दील हो गए थे। अतः इस घटना के कारण भारी मात्रा में टिड्डियों का प्रजनन हुआ था।
  • नवंबर 2019 में पूर्वी अफ्रीका में टिड्डियों ने भारी मात्रा में फसलों को नुकसान पहुँचाया था साथ ही पूर्वी अफ्रीका में भारी वर्षा होने कारण इनकी जनसंख्या में वृद्धि हुई तत्पश्चात ये दक्षिणी ईरान और पाकिस्तान की तरफ चलती गई।

टिड्डियों का भारत में प्रभाव:

  • वर्तमान में फसल के नुकसान होने की संभावना कम है क्योंकि किसानों ने अपनी रबी की फसल की कटाई पहले ही कर ली है। लेकिन महाराष्ट्र में टिड्डियों की बढ़ती जनसंख्या को लेकर नारंगी उत्पादक काफी चिंतित हैं।
  • टिड्डी चेतावनी संगठन (Locust Warning Organization-LWO) के अनुसार, भारत में बड़ी समस्या तब होगी जब टिड्डियों की प्रजनन संख्या में वृद्धि होगी।
  • दरअसल एक मादा टिड्डी 3 महीने के जीवन चक्र के दौरान 80-90 अंडे देती है। साथ ही इनके प्रजनन में बाधा उत्पन्न न होने की स्थिति में एक समूह प्रति वर्ग किलोमीटर में 40-80 मिलियन टिड्डियों की संख्या हो सकती हैं।

टिड्डियों से बचाव हेतु किये गए प्रयास:

  • टिड्डियों से बचाव हेतु वृक्षों पर कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया जा रहा है।
  • राजस्थान में 21,675 हेक्टेयर में कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया गया है।
  • भारत द्वारा ब्रिटेन को 60 विशेष कीटनाशक स्प्रेयर (मशीन) का ऑर्डर दिया गया है।
  • ड्रोन से भी कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया जा रहा है।

भारत में टिड्डियाँ:

  • भारत में टिड्डियों की निम्निखित चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं:- रेगिस्तानी टिड्डी, प्रवासी टिड्डी, बॉम्बे टिड्डी, ट्री टिड्डी।
  • आमतौर पर जुलाई-अक्तूबर के महीनों में इन्हें आसानी से देखा जा सकता है क्योंकि ये गर्मी और बारिश के मौसम में ही सक्रिय होती हैं।
  • वर्ष 1993 में राजस्थान में टिड्डियों ने सबसे ज्यादा फसलों को नुकसान पहुँचाया था।

टिड्डी चेतावनी संगठन

(Locust Warning Organization-LWO):

  • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय (Directorate of Plant Protection, Quarantine & Storage) के अधीन आने वाला टिड्डी चेतावनी संगठन मुख्य रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में टिड्डियों की निगरानी, ​​सर्वेक्षण और नियंत्रण के लिये ज़िम्मेदार है।
  • इसका मुख्यालय फरीदाबाद में स्थित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

पंजाब में फसल अवशिष्ट दहन में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

हैप्पी सीडर, बायो-कोल

मेन्स के लिये:

फसल अवशिष्ट दहन समस्या 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब में गेहूं की फसल कटाई के साथ फसल अवशिष्ट दहन की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, पंजाब में 15 अप्रैल से 24 मई के बीच फसल अवशिष्ट  दहन की कुल 13,026 घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जबकि वर्ष 2019 तथा वर्ष 2018 में इसी दौरान ऐसी घटनाओं की संख्या क्रमश: 10,476 तथा 11,236 थी।
  • ‘पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ के अनुसार, फसल दहन की सबसे अधिक घटनाएँ मोगा ज़िले में, जबकि अमृतसर दूसरे स्थान पर है।

पराली तथा कृषि अवशिष्ट दहन:

  • पराली, धान की फसल कटने के बाद बचा बाकी हिस्सा होता है, जिसकी जड़ें ज़मीन में होती हैं। किसान धान पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी किसान के लिये बेकार होता है।  उन्हें अगली फसल बोने के लिये खेत खाली करने होते हैं इसके लिये सूखी पराली का दहन कर दिया जाता है। 
  • हाल ही में रबी फसल की कटाई के बाद गेहूं के अवशिष्ट दहन में वृद्धि देखी गई है।

फसल अवशिष्टों की जलाने से नुकसान:

  • गेहूं के अवशिष्टों की जलाने से पर्यावरण को प्रदूषित होता है वायु की गुणवत्ता में गिरावट देखी जाती है। विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, विश्व में होने वाली हर आठ मौतों में से एक वायु प्रदूषण के कारण होती है। वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लगभग 65 लाख लोगों की मृत्यु होती है। 
  • अवशिष्ट दहन से मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है। 
  • वायु गुणवत्ता में गिरावट होने से लोगों की श्वसन क्रिया प्रभावित होती है। 
  • COVID-19 महामारी से पीड़ित रोगियों की रिकवरी दर प्रभावित हो सकती है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, जिन लोगों द्वारा प्रतिबंध का उल्लंघन किया है उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है और उन किसानों के खिलाफ भी पुलिस द्वारा मामले दर्ज किये जा रहे हैं, जो गेहूं के भूसे को जला रहे हैं। 
  • फसल अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध तथा उल्लंघन करने वाले लोगों पर कार्रवाई को ‘वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम’, (Air Prevention and Control of Pollution Act)- 1981 के तहत विनियमित किया जाता है।
  • राज्य में 3,141 फसल अवशिष्ट दहन घटनाओं की पहचान की गई है, जिसमें अपराधियों के खिलाफ 39, 27,500 रुपए के चालान जारी किये गए हैं तथा 322 किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।

पराली दहन नियंत्रित करने की दिशा में पहल:

  • जलवायु परिवर्तन की समस्या को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए ‘पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ द्वारा जलवायु परिवर्तन के लिये ‘राष्ट्रीय अनुकूलन कोष’ के अंतर्गत फसल अवशेष प्रबंधन के माध्यम से किसानों में जलवायु सुदृढ़ता निर्माण पर एक ‘क्षेत्रीय परियोजना’ को स्वीकृति प्रदान की है।
  • पराली की समस्या का हल खोजने के लिये भारत एक ‘स्वीडिश तकनीक’ का परीक्षण कर रहा है जो धान के फसल अवशेष को ‘जैव-कोयला’ (Bio-coal) में परिवर्तित कर सकती है।
  • हैप्पी सीडर’ (Turbo Happy Seeder-THS) के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।  हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) ट्रैक्टर के साथ लगाई जाने वाली एक प्रकार की मशीन होती है जो फसल के अवशेषों को उनकी जड़ समेत उखाड़ फेंकती है।
  • फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन के लिये कृषि में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिये केंद्रीय क्षेत्रक योजना’ के तहत किसानों को स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनों को खरीदने के लिये 50% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और साथ ही स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनरी के कस्टम हायरिंग केंद्रों (Custom Hiring Center) की स्थापना के लिये परियोजना लागत की 80% तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

निष्कर्ष:

  • अधिक मशीनीकरण, पशुधन में कमी, कम्पोस्ट बनाने हेतु दीर्घ-अवधि आवश्यकता तथा अवशेषों का कोई वैकल्पिक उपयोग नहीं होने के कारण खेतों में फसलों के अवशेष जलाए जा रहे हैं। यह न केवल ग्लोबल वार्मिंग के लिये बल्कि वायु की गुणवत्ता, मिट्टी की सेहत और मानव स्वास्थ्य के लिये भी बेहद दुष्प्रभावी है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

रेपो रेट में कटौती

प्रीलिम्स के लिये

रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट

मेन्स के लिये

मौद्रिक नीति से संबंधित मुद्दे और उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने रेपो रेट (Repo Rate) में 0.4 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • RBI की घोषणा के साथ ही रेपो रेट अब 4.40 प्रतिशत से घटकर 4.0 प्रतिशत पर पहुँच गया है और रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) 3.35 प्रतिशत पर आ गया है।
  • RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, बीते 2 महीने में लॉकडाउन के कारण घरेलू आर्थिक गतिविधियाँ काफी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।’ ज्ञात हो कि शीर्ष 6 औद्योगीकृत राज्यों के अनुसार, औद्योगिक उत्पादन का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा रेड अथवा ऑरेंज ज़ोन में है।
  • उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष फरवरी माह से RBI ने नीतिगत रेपो दर में समग्र तौर पर 250 बेसिस पॉइंट्स की कमी की है, जिसके कारण रेपो रेट 6.5 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक पहुँच गया है।
  • इसके अतिरिक्त RBI ने ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं को आवधिक ऋण (Term Loan) की किस्तों के निलंबन को आगामी तीन महीनों (1 जून, 2020 से 31 अगस्त, 2020 तक) तक बढ़ाने की अनुमति दी है।
    • इससे उधारकर्त्ताओं, विशेष रूप से ऐसी कंपनियों, जिन्होंने उत्पादन को रोक दिया है और जो नकदी प्रवाह की समस्याओं का सामना कर रही हैं, को अपनी इकाइयों को फिर से शुरू करने में मदद मिलेगी।

प्रभाव

  • केंद्रीय बैंक की घोषणा के साथ ही ऋण EMI विशेष रूप से होम लोन (Home Loan) के सस्ता होने की उम्मीद है।
  • विभिन्न आर्थिक संकेतक मार्च 2020 में शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मांग कम होने का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। 
    • ऐसे में RBI के इस निर्णय को मौजूदा आर्थिक स्थिति में मांग को बढ़ाने के लिये एक प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
  • आमतौर पर, जब भी केंद्रीय बैंक अपनी प्रमुख ब्याज दरों में कटौती करता है, तो देश के विभिन्न सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंक भी इसका पालन करते हुए अपने ग्राहकों के लिये अपनी उधार की दरों को कम करते हैं। 
  • इस संबंध में घोषणा करते हुए RBI ने कहा कि COVID-19 महामारी का सर्वाधिक प्रभाव घरेलू खपत पर देखने को मिला है। महामारी जनित लॉकडाउन के कारण मार्च माह में औद्योगिक उत्पादन 17 प्रतिशत कम हो गया, जबकि विनिर्माण गतिविधि 21 प्रतिशत तक गिर गईं।
  • RBI के इस नवीनतम कदम से विस्तारित लॉकडाउन के कारण व्यवसायों के समक्ष मौजूद आर्थिक चुनौतियों के कुछ कम होने की उम्मीद है।

आलोचना

  • कई जानकारों का मानना है कि RBI द्वारा घोषित इस कटौती से केवल मौजूदा उधारकर्त्ताओं को ही लाभ प्राप्त होगा, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों की स्थिति अच्छी न होने के कारण इस निर्णय का लाभ प्राप्त करने के लिये कोई विशेष प्रस्ताव बैंकों के समक्ष नहीं होगा।
  • छोटी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (Non-Banking Financial Companies-NBFCs) और छोटे निगम आवश्यक तरलता प्रदान करने के बावजूद तनावग्रस्त रह सकते हैं।
  • वित्त विशेषज्ञों को उम्मीद है कि RBI के निर्णय से गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets) में काफी वृद्धि होगी, क्योंकि लगभग छह महीने तक ऋण न चुकाने से देश की ऋण संस्कृति (Credit Culture) पर भी असर पड़ेगा।

रेपो रेट

  • जैसा कि हम जानते हैं कि बैंकों को अपने काम-काज के लिये अक्सर बड़ी रकम की ज़रूरत होती है।
  • बैंक इसके लिये RBI से अल्पकालिक ऋण मांगते हैं और इस ऋण पर रिज़र्व बैंक को उन्हें जिस दर से ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।

रिवर्स रेपो रेट 

  • यह रेपो रेट के ठीक विपरीत होता है अर्थात् जब बैंक अपनी कुछ धनराशि को रिज़र्व बैंक में जमा कर देते हैं जिस पर रिज़र्व बैंक उन्हें ब्याज देता है। रिज़र्व बैंक जिस दर पर ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

अवैध ड्रग्स आपूर्ति

प्रीलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय

मेन्स के लिये:

संगठित अंतर्राष्ट्रीय अभिकर्त्ता द्वारा अवैध ड्रग्स आपूर्ति से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय’ (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) ने ‘सिंथेटिक ड्रग्स इन ईस्ट एंड साउथईस्ट एशिया’ (Synthetic Drugs in East and Southeast Asia) पर रिपोर्ट जारी की है। 

प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन के कारण अवैध ड्रग्स की बरामदगी में भले ही कमी आई है परंतु इसकी आपूर्ति में कोई कमी नहीं आई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, महामारी से निपटने हेतु सरकारों की प्राथमिकताओं और संसाधनों में बदलाव कर ड्रग के रोकथाम और उपचार कार्यक्रमों को मज़बूत करने के प्रयास से नुकसान हो सकता है।
  • रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि आगामी महीनों में ड्रग्स की बरामदगी, कीमत और ड्रग्स से संबंधित गिरफ्तारी या मृत्यु के मामले में आने वाले उतार-चढ़ाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से COVID-19 महामारी से संबंधित नहीं होंगे।   
  • ड्रग्स की आपूर्ति में कमी को सक्रिय संगठित अपराध समूहों द्वारा त्वरित रूप से पूरा करने के कारण कुछ तस्करी मार्गों पर जोखिम का स्तर बढ़ गया है।
  • ‘संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय’ के अनुसार, चिंता का मुख्य कारण सिंथेटिक दवा मेथम्फेटामाइन (Methamphetamine) है। वैश्वीकृत आपूर्ति श्रृंखला की आवश्यकताओं के बिना मेथम्फेटामाइन का निर्माण, तस्करी और आपूर्ति की जाती है।

भारत के संदर्भ में:

  • वर्ष 2019 में भारत में ‘एंफैटेमिन टाइप स्टिमुलैंट्स’ (Amphetamine-type Stimulants- ATS) की बरामदगी अत्यधिक हुई थी जिसके निम्नलिखित कारण हैं:-
    • गोल्डन ट्रायंगल से लेकर बांग्लादेश और भारत के कुछ क्षेत्रों में मेथम्फेटामाइन की तस्करी में वृद्धि।
    • गोल्डन ट्रायंगल वह क्षेत्र है जहां थाईलैंड, लाओस और म्यांमार की सीमाएँ रुक और मेकांग नदियों (Mekong River) के संगम पर मिलती हैं। 
    • यह दक्षिण-पूर्व एशिया का मुख्य अफीम उत्पादक क्षेत्र तथा यूरोप और उत्तरी अमेरिका में नशीले पदार्थों की आपूर्ति हेतु सबसे पुराने मार्गों में से एक है।

Myanmar-India-Drug_trail

चुनौतियाँ:

  • निचले मेकांग क्षेत्र की सीमाओं पर भी तस्करी कई तरह से की जाती है जिसके कारण इन क्षेत्रों में तस्करी रोकना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है ।
  • सीमाओं और व्यापार को बंद करने के कारण कंटेनरीकृत तस्करी, कोरियर और बॉडी-पैकिंग के तरीके कम हो गए हैं। हालाँकि पदार्थों की तस्करी में कमी आने की स्थिति में तस्कर कई अन्य तरीकों को अपना सकते हैं।
  • गोल्डन ट्राएंगल क्षेत्र में सरकारी नियंत्रण सीमित है जिसके कारण पदार्थों की तस्करी भारी मात्रा में होती है।
  • लॉकडाउन के कारण ड्रग्स की खरीद-बिक्री करने वालों की आय पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अतः इस प्रभाव के कारण अपराध में वृद्धि होने की संभावना भी बढ़ गई है।

आगे की राह:

  • अवैध मादक पदार्थों के खतरे से निपटने के लिये भारत लगातार प्रयासरत है लेकिन ज़मीनी स्तर पर इस तरह की तस्करी को रोकने हेतु सख्त नीतियों की आवश्यकता है।
  • देश की सीमाओं से पार उन देशों में भी प्रयास किये जाने की ज़रूरत है जहाँ अवैध मादक पदार्थों का उत्पादन होता है। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

बैंक बोर्ड ब्यूरो

प्रीलिम्स के लिये:

बैंक बोर्ड ब्यूरो, पी. जे. नायक समिति

मेन्स के लिये:

सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय कंपनियों में आर्थिक सुधार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?
हाल ही में बैंक बोर्ड ब्यूरो (Banks Board Bureau- BBB) द्वारा न्यू इंडिया एश्योरेंस (New India Assurance- NIA) के महाप्रबंधक एस. एस. राजेश्वरी को दिल्ली स्थित ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी (Oriental Insurance Company- OIC) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक पद के लिये चयनित किया गया है।

प्रमुख बिंदु: 

  • OIC के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक पद के लिये BBB द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की 5 बीमा कंपनियों के वरिष्ठ महाप्रबंधकों के साक्षात्कार लिये गए थे। 
  • यह पहली बार है कि OIC के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (Chairman and Managing Director- CMD) पद के लिये वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से साक्षात्कार लिया गया है।
  • गौरतलब है कि OIC के वर्तमान CMD 60 वर्ष की आयु पूरी होने के कारण इस माह के अंत में सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
  • ऐसा दूसरी बार हुआ है कि BBB द्वारा किसी साक्षात्कार के दिन ही उसके परिणाम घोषित कर दिये गए हैं।
    • इससे पूर्व जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (General Insurance Corporation) और एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (Agriculture Insurance Company of India Limited- AIC) के CMD पदों के परिणाम साक्षात्कार के दिन ही घोषित कर दिये गए थे।     

नियुक्ति की प्रक्रिया: 

  • साक्षात्कार के परिणामों के जारी होने के बाद अब केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा OIC के CMD की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी। 
  • केंद्रीय वित्तमंत्री की अनुमति के बाद आधिकारिक नियुक्ति पत्र को केंद्रीय मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति के पास भेजा जाएगा, जहाँ से इसे प्रधानमंत्री की सहमति हेतु प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा जाएगा। 

नियुक्ति के प्रभाव:  

  • विशेषज्ञों के अनुसार, OIC के CMD की नियुक्ति इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की तीन सामान्य बीमा कंपनियों {नेशनल इंश्योरेंस कंपनी (National Insurance Company- NIC) और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस और OIC) के विलय की योजना में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती है। 
  • साथ ही केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने संकेत दिये हैं कि जल्द ही सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य सामान्य बीमा कंपनियों के निदेशकों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
    • ध्यातव्य है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने लगभग दो वर्षों से सार्वजनिक क्षेत्र की चार बीमा कंपनियों के निदेशकों की नियुक्ति रोक दी थी। इसके कारण इन चार सार्वजनिक कंपनियों में अधिकांश निदेशकों के पद खाली हैं।     

बैंक बोर्ड ब्यूरो (Banks Board Bureau- BBB):

  • देश के बैंकिग क्षेत्र की चुनौतियों को दूर करने के लिये वर्ष 2014 में भारतीय रिज़र्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन द्वारा एक्सिस बैंक के पूर्व अध्यक्ष ‘पी. जे. नायक’ की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।  
  • पी. जे. नायक समिति की सिफारिशों के आधार पर 28 फरवरी’ 2016 को भारत सरकार ने ब्यूरो के गठन और इसकी संरचना की घोषणा की।
  • भारतीय बैंकिग क्षेत्र ने आधिकारिक रूप से 1, अप्रैल 2016 से कार्य करना प्रारंभ किया था। 
  • बैंक बोर्ड ब्यूरो का मुख्यालय मुंबई में स्थित है। 

बैंक बोर्ड ब्यूरो के कार्य: 

  • BBB एक एक स्वायत्त संस्तुतिकर्ता संस्था के रूप में कार्य करती है।

बैंक बोर्ड ब्यूरो के प्रमुख कार्यों में से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks- PSBs) और वित्तीय संस्थाओं (Financial Institution- FI) के निदेशक मंडल (पूर्णकालिक निदेशक और गैर- कार्यकारी अध्यक्ष) की नियुक्ति हेतु सरकार को सुझाव देना।
  •  PSBs/Fi और इनके अधिकारियों तथा निदेशक मंडल के कार्यनिष्पादन संबंधी डेटा का डेटा बैंक बनाना एवं इसे सरकार के साथ साझा करना।
  • PSBs और Fi के प्रबंधकीय कर्मियों हेतु नीति और आचार संहिता बनाने तथा इसे लागू करने के संबंध में सरकार को परामर्श देना।
  • बैंकों को व्यापार/कारोबार की रणनीति बनाने और पूँजी जुटाने की योजना में सहायता प्रदान करना, आदि।

स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 27 मई, 2020

मेजर सुमन गवनी

भारतीय सेना की अधिकारी मेजर सुमन गवनी को प्रतिष्ठित संयुक्त राष्ट्र सैन्य जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड-2019 (United Nations Military Gender Advocate of the Year Award-2019) के लिये चुना गया है। उल्लेखनीय है कि यह पहली बार है जब किसी भारतीय को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। मेजर सुमन गवनी संयुक्त राष्ट्र मिशन के तहत दक्षिण सूडान में तैनात थीं और उन्होंने हाल ही में अपना मिशन पूरा किया था। मेजर सुमन गवनी के अतिरिक्त ब्राज़ील सेना की एक कमांडर ‘कर्ला मोंटेइरो डे कास्त्रो अराउजो’ (Carla Monteiro de Castro Araujo) को भी ‘संयुक्त राष्ट्र सैन्य जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड-2019’ से सम्मानित किया जाएगा। इस संबंध में घोषणा करते हुए संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस (Antonio Guterres) ने दोनों ही महिलाओं को ‘प्रभावशाली आदर्श’ की संज्ञा दी। यह लगातार दूसरा अवसर है जब ब्राज़ील के शांतिदूत को यह सम्मान मिला है। ब्राज़ील की सेना की कमांडर ‘कर्ला मोंटेइरो डे कास्त्रो अराउजो’ वर्तमान में सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में कार्य कर रही हैं। मेजर सुमन गवानी वर्ष 2011 में भारतीय सेना में शामिल हुईं थीं, जहाँ उन्होंने ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (Officers Training Academy) से स्नातक किया और फिर सेना सिग्नल कोर (Army Signal Corps) में शामिल हो गईं। ‘संयुक्त राष्ट्र सैन्य जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर अवार्ड’ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 में उल्लेखित सिद्धांतों को बढ़ावा देने में एक व्यक्तिगत शांतिदूत के समर्पण और प्रयास को मान्यता देता है। यह पुरस्कार सर्प्रथम वर्ष 2016 में प्रदान किया गया था।

सनराइज़ फूड्स का अधिग्रहण

भारतीय बहु-उद्योग कंपनी ITC ने सनराइज़ फूड्स प्राइवेट लिमिटेड की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने पर सहमति व्यक्त की है। इस प्रस्तावित अधिग्रहण को FMCG व्यवसाय को तेज़ी से बढ़ाने की ITC की रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। विदित हो कि सनराइज़ फूड्स प्राइवेट लिमिटेड पश्चिम बंगाल में संगठित मसाला उद्योग की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान इसका राजस्व 25.5 प्रतिशत बढ़कर 502 करोड़ रुपए हो गया था। इस संबंध में ITC द्वारा की गई  घोषणा के अनुसार, अधिग्रहण का यह निर्णय वर्ष 2030 तक अपने FMCG कारोबार से राजस्व में 1 लाख करोड़ रुपए के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। ITC भारत की अग्रणी निजी क्षेत्र की कंपनियों में से एक है, जिसका बाज़ार पूंजीकरण (Market Capitalisation) लगभग 50 बिलियन डॉलर और सकल बिक्री मूल्य (Gross Sales Value) 10.8 बिलियन डॉलर है। ITC की स्थापना वर्ष 1910 में की गई थी और इसका मुख्यालय पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में स्थित है।

रामकिंकर बैज

हाल ही में संस्कृति मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (National Gallery of Modern Art-NMGA) द्वारा रामकिंकर बैज की 115वीं जयंती के अवसर पर वर्चुअल टूर (Virtual Tour) का आयोजन किया गया। आधुनिक भारत के सबसे मौलिक कलाकारों में से एक रामकिंकर बैज एक प्रतिष्ठित मूर्तिकार और चित्रकार थे। रामकिंकर बैज का जन्म पश्चिम बंगाल के बांकुरा ज़िले में हुआ था, वे ऐसे परिवार से संबंधित थे जिनकी आर्थिक और आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति काफी कमज़ोर थी, किंतु वे अपनी प्रतिभा के बल पर पर भारतीय कला के सबसे प्रतिष्ठित प्रारंभिक आधुनिकतावादियों में स्‍वयं को शुमार करने में सफल रहे। वर्ष 1925 में उन्होंने शांतिनिकेतन स्थित कला विद्यालय यानी कला भवन में प्रवेश लिया और नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में कला से संबंधित अनेक बारीकियां सीखीं। कला भवन से अपनी पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद ही वे संकाय के एक सदस्य बन गए और फि‍र उन्‍होंने नंदलाल बोस और बिनोद बिहारी मुखर्जी के साथ मिलकर शांतिनिकेतन को आज़ादी-पूर्व भारत में आधुनिक कला के सबसे महत्त्वपूर्ण केंद्रों में से एक बनाने में अग्रणी भूमिका अदा की। वर्ष 1970 में भारत सरकार ने उन्हें भारतीय कला में उनके अमूल्‍य योगदान के लिये पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था। तमाम उपलब्धियों और प्रसिद्धियों के बाद  2 अगस्त, 1980 को रामकिंकर बैज का निधन हो गया।

लाख की खेती को कृषि का दर्जा

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में लाख की खेती (Lac Farming) को कृषि गतिविधि घोषित करने के वन विभाग के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अनुसार, इस प्रकार का निर्णय राज्य के किसानों के लिये काफी लाभदायक साबित होगा। विदित हो कि राज्य में लाख की खेती को कृषि का दर्जा मिलने के बाद, लाख उत्पादन से जुड़े किसान भी अन्य किसानों की तरह सहकारी समितियों के माध्यम से आसान ऋण प्राप्त कर सकेंगे। छत्तीसगढ़, भारत में लाख के प्रमुख उत्पादक राज्यों में से एक है। छत्तीसगढ़ में लाख की खेती की अपार संभावनाएँ हैं और यहाँ के किसान कुसुम, पलाश तथा बेर के पेड़ों में परंपरागत तरीके से लाख की खेती करते आ रहे हैं, किंतु व्यवस्थित और आधुनिक तरीके के अभाव में किसानों को उतना लाभ मिल पाता है।


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