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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पराली जलाने की समस्या से निपटने हेतु क्षेत्रीय परियोजना

  • 30 Dec 2017
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

जलवायु परिवर्तन की समस्या को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन कोष के अंतर्गत फसल अवशेष प्रबंधन के माध्यम से किसानों में जलवायु सुदृढ़ता निर्माण पर एक क्षेत्रीय परियोजना को स्वीकृति प्रदान की है। 

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय संचालन समिति की बैठक में परियोजना को स्वीकृति दी गई। बैठक की अध्यक्षता पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन सचिव द्वारा की गई। 
  • पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान राज्यों के लिये लगभग 100 करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना के पहले चरण को स्वीकृति दी गई है। 

उद्देश्य

  • इस परियोजना का उद्देश्य न केवल जलवायु परिवर्तन प्रभाव को मिटाना और अनुकूलन क्षमता को बढ़ावा देना है, बल्कि पराली जलाने से होने वाले प्रतिकूल पर्यावरण प्रभावों से निपटना भी है। 
  • इसके अंतर्गत सबसे पहले किसानों को वैकल्पिक व्यवहारों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा। इस कार्य के लिये जागरुकता अभियान और क्षमता सृजन गतिविधियों का संचालन किया जाएगा। 
  • वैकल्पिक व्यवहारों से किसानों के आजीविका विकल्पों को बढ़ाने में मदद मिलेगी और उनकी आय भी बढ़ेगी। 
  • वर्तमान मशीनों के प्रभावी उपयोग के अतिरिक्त फसल अवशेषों के समय पर प्रबंधन के लिये अनेक तकनीकि उपाय किये जा रहे हैं। 
  • सफल पहलों को ऊपर उठाते हुए और नए विचारों से ग्रामीण क्षेत्रों में लागू करने योग्य और सतत् उद्यमिता मॉडल बनाए जाएंगे।
  • सीमित बजटीय प्रावधान के बावजूद एनएएफसीसी द्वारा 2015 में लॉन्च किये जाने के बाद से कृषि, पशुपालन, जल, वानिकी जैसे कमज़ोर क्षेत्रों को कवर करने वाली 27 नवाचारी परियोजनाओं को मंजू़री प्रदान की गई है।

वैश्विक संदर्भ में

  • विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, विश्व में होने वाली हर आठ मौतों में से एक वायु प्रदूषण के कारण होती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लगभग 65 लाख लोग काल के गाल में समा जाते हैं। 
  • प्रतिवर्ष होने वाली कुल मौतों में से 11.5% वायु प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले रोगों के कारण होती हैं। रिपोर्ट में 2025 तथा 2050 की संभावनाओं की चर्चा करते हुए कहा गया है कि यदि स्थिति इसी प्रकार बनी रही तो दक्षिण एशिया, विशेषकर भारत में हालात बेहद चिंताजनक हो सकते हैं। 
  • यूनीसेफ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व भर में 30 करोड़ बच्चे वायु प्रदूषण के संपर्क में हैं, जिसकी वज़ह से उन्हें गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं। 
  • इसमें यह भी बताया गया है कि विश्व में प्रत्येक सात में से एक बच्चा ऐसी हवा में साँस लेता है, जो अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं होती। दक्षिण एशिया में प्रत्येक 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में साँस लेने को मज़बूर हैं।
  • लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष 460 लाख डॉलर प्रदूषण जनित रोगों पर खर्च होते हैं, जो विश्व की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग 6.2% है।

पराली क्या होती है?

  • पराली धान की फसल कटने के बाद बचा बाकी हिस्सा होता है, जिसकी जड़ें ज़मीन में होती हैं। किसान धान पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी किसान के लिये बेकार होता है। 
  • उन्हें अगली फसल बोने के लिये खेत खाली करने होते हैं तो सूखी पराली को आग के हवाले कर दिया जाता है। 
  • आजकल पराली इसलिये भी अधिक होती है क्योंकि  किसान अपना समय बचाने के लिये मशीनों से धान की कटाई करवाते हैं। मशीनें धान का केवल ऊपरी हिस्सा काटती हैं और नीचे का हिस्सा अब पहले से ज़्यादा बचता है। इसे हरियाणा तथा पंजाब में पराली कहा जाता है। 
  • यदि किसान हाथों से धान की कटाई करें तो खेतों में पराली नहीं के बराबर बचती है। बाद में किसान इस पराली को पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। 

निष्कर्ष
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों से फसल अवशेष जलाने की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हुई है। दिल्ली के पड़ोसी राज्यों हरियाणा और पंजाब में धान की फसल की कटाई के बाद खेतों को साफ करने के लिये उनमें आग लगा दी जाती है, जिसके चलते इससे उत्पन्न होने वाला धुआँ दिल्ली की हवा को प्रदूषित कर देता है।  पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के अधिकतर स्थानों पर पराली जलाए जाने के मामले सामने आते रहते हैं। अधिक मशीनीकरण, पशुधन में कमी, कम्पोस्ट बनाने हेतु दीर्घ-अवधि आवश्यकता तथा अवशेषों का कोई वैकल्पिक उपयोग नहीं होने के कारण खेतों में फसलों के अवशेष जलाए जा रहे हैं। यह न केवल ग्लोबल वार्मिंग के लिये बल्कि वायु की गुणवत्ता, मिट्टी की सेहत और मानव स्वास्थ्य के लिये भी बेहद दुष्प्रभावी है।

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