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डेली न्यूज़

  • 27 Feb, 2020
  • 72 min read
सामाजिक न्याय

केरल में छात्र आंदोलनों पर प्रतिबंध

प्रीलिम्स के लिये:

असम गण परिषद, असम समझौता

मेन्स के लिये:

छात्र आंदोलनों के पक्ष और विपक्ष में तर्क

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने विभिन्न कॉलेजों और स्कूलों के प्रबंधन द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कॉलेज एवं स्कूल परिसर में सभी प्रकार के राजनीतिक आंदोलनों पर प्रतिबंध लगा दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि शैक्षणिक संस्थाएँ शिक्षण संबंधी गतिविधियों के लिये होती हैं न कि विरोध प्रदर्शन के लिये और किसी को भी अन्य छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने का हक नहीं है।
    • न्यायालय ने कहा कि “शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और किसी को भी उस अधिकार का उल्लंघन करने का हक नहीं है।”
  • छात्र राजनीति पर प्रतिबंध लगाने के उच्च न्यायालय के निर्णय की चौतरफा आलोचना की जा रही है। छात्र संगठनों का कहना है कि “यह निर्णय उनके मौलिक अधिकारों का हनन करता है। छात्र राजनीति/आंदोलन ही विद्यार्थियों में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को स्थापित करने में अहम भूमिका अदा करते हैं।”

भारत में छात्र आंदोलन

  • भारत के शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति का जुड़ाव भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समय से रहा है। विश्वविद्यालयों को राजनीति की नर्सरी भी कहा जाता है।
  • भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान विश्वविद्यालय सर्वाधिक सक्रिय राजनीतिक अखाड़ों में से एक थे। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के विरुद्ध जब भी कोई आंदोलन छेड़ा तो उनके पास हमेशा छात्रों के लिये एक राजनीतिक संदेश होता था।
  • आज़ाद भारत में भी देश में कई महत्त्वपूर्ण छात्र नेता हुए। 1960 से 70 के दशक में भारतीय छात्र और आंदोलनों और राजनीति में आदर्शवाद की भावना काफी प्रबल थी।
  • वर्ष 1974 में जेपी आंदोलन के दौरान भारतीय छात्र भ्रष्टाचार और राजनेताओं तथा काला बाज़ार के मध्य संबंध का विरोध करने के लिये एक साथ सड़कों पर आए। देखते-ही-देखते यह आंदोलन मुख्य रूप से हिंदी पट्टी के राज्यों में काफी व्यापक हो गया।
  • 25 जून, 1975 को तत्कालीन सरकार ने आपातकाल घोषित कर दिया। इस दौरान आपातकाल का विरोध करने वालों में विभिन्न छात्र नेताओं की अहम भूमिका थी। देश भर में कई विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों और संकाय सदस्यों ने व्यापक स्तर पर भूमिगत विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया।
    • इस दौरान तत्कालीन दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के अध्यक्ष अरुण जेटली और छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष जय प्रकाश नारायण सहित 300 से अधिक छात्र संघ नेताओं को जेल भेज दिया गया।
  • असम में बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों के विरुद्ध वर्ष 1979 में ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ (All Assam Students Union-AASU) ने एक आंदोलन की शुरुआत की। वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की हिंसक कार्यवाही की शुरुआत हुई तब लाखों की संख्या में लोग अवैध रूप से असम में शरण लेने लगे। इन अवैध प्रवासियों के कारण असम के मूल निवासियों में भाषायी, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो गई जिससे इस आंदोलन की शुरुआत हुई।
    • असम गण परिषद के तत्कालीन नेता और आदोलन के पश्चात् हुए असम समझौते के हस्ताक्षरकर्त्ता प्रफुल्ल महंत वर्ष 1985 में 35 वर्ष की उम्र में असम के मुख्यमंत्री भी बने।
  • इस प्रकार भारत में छात्र आंदोलनों का एक लंबा और गौरवशाली इतिहास मौजूद है, जिन्होंने देश को कई बड़े राजनेता प्रदान किये हैं।

छात्र आंदोलन के पक्ष में तर्क

  • भारत के कुल मतदाताओं में युवा मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग मौजूद है, जिसके कारण यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि उन्हें देश के राजनीतिक मुद्दों की संपूर्ण जानकारी हो।
  • राजनीतिक निर्णय प्रत्यक्ष तौर पर देश के नागरिकों को प्रभावित करते हैं। और देश का नागरिक होने के नाते छात्रों का यह हक है कि वे अनुचित राजनीतिक निर्णयों और मुद्दों को प्रभावित कर सकें।
  • राजनीति छात्रों को उनके अधिकारों के समुचित उपयोग को लेकर जागरूक करती है।
  • यदि छात्रों को इंजीनियर या डॉक्टर बनने के लिये तैयार किया जा सकता है, तो उन्हे एक अच्छा राजनीतिज्ञ बनने के लिये भी तैयार किया जा सकता है।
  • राजनीति में अपराधी तत्त्वों के प्रवेश को रोकने के लिये यह आवश्यक है कि विद्यार्थी जीवन से ही छात्रों को राजनीति की शिक्षा प्रदान की जाए।

छात्र आंदोलन के विपक्ष में तर्क

  • मौजूदा शिक्षा महज सूचनात्मक न होकर प्रभावात्मक अधिक है, जिसके कारण शिक्षकों द्वारा छात्रों को राजनीतिक रूप से प्रभावित करने का संदेह बना रहता है।
  • कुछ प्रशासकों का मानना है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुशासन बनाए रखने के लिये छात्रसंघ चुनाव बंद कर देना चाहिये। इससे विश्वविद्यालय परिसरों में राजनीतिक दलों का दखल बढ़ता है और शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • छात्र संघों को उनके मूल राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया जाता है। अतः अधिकांश समय वे छात्र हितों के स्थान पर अपने दलगत हितों के लिये कार्य करते हैं। यही छात्र संगठन राजनैतिक विरोधियों के लिये आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहते हैं।
  • शैक्षणिक संस्थानों के राजनीतिकरण का परिणाम प्रायः यह होता है कि अकादमिक नियुक्तियाँ दलगत आधार पर होने लगती हैं और पाठ्यक्रम का निर्धारण पार्टी लाइन के आधार पर किया जाने लगता है।

निष्कर्ष

देश के लगभग सभी सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों में छात्रों की काफी अहम भूमिका रही है। ये आंदोलन कभी विशुद्ध रूप से छात्र मुद्दों तो कभी आम सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रित थे। छात्र आंदोलनों ने देश को कई प्रमुख राजनेता और समाज सुधारक दिये हैं। अतः कहा जा सकता है कि छात्र राजनीति और आंदोलनों के महत्त्व को पूर्णतः नज़रअंदाज़ करना सही नहीं है। हालाँकि छात्र आंदोलनों के साथ कई नकारात्मक पक्ष भी निहित हैं, किंतु इन पर विचार विमर्श कर इन्हें दूर किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सिद्धांत

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन 2020, एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ 1981, वर्ष 1993 का द्वितीय न्यायाधीश केस, न्यायिक चार्टर

मेन्स के लिये:

न्यायपालिका की स्वतंत्रता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन 2020 (International Judicial Conference 2020) में भारत के प्रधानमंत्री की प्रशंसा की वहीं हाल ही में प्रधानमंत्री ने भी उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए कुछ ‘महत्वपूर्ण निर्णयों’ का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय की सराहना की थी। इससे न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच बढ़ती घनिष्ठता से संवैधानिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

मुख्य बिंदु:

  • उपरोक्त घटनाक्रम को देखें तो कार्यपालिका और न्यायपालिका आपस में मेल-जोल प्रतीत होता है जबकि भारतीय संविधान में दोनों की स्वतंत्रता की बात कही गई है।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता

(Independence of The Judiciary):

  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का आधार स्तम्भ है। इसमें तीन आवश्यक शर्तें निहित हैं-
    1. न्यायपालिका को सरकार के अन्य विभागों के हस्तक्षेप से उन्मुक्त होना चाहिये।
    2. न्यायपालिका के निर्णय व आदेश कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के हस्तक्षेप से मुक्त होने चाहिये।
    3. न्यायाधीशों को भय या पक्षपात के बिना न्याय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिये।

एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ 1981

(S.P. Gupta vs Union Of India 1981)

  • वर्ष 1981 के एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने कहा था कि न्यायाधीशों को आर्थिक या राजनीतिक शक्ति के सामने सख्त होना चाहिये और उन्हें विधि के शासन (Rule of Law) के मूल सिद्धांत को बनाए रखना चाहिये।
  • विधि का शासन न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सिद्धांत है जो वास्तविक सहभागी लोकतंत्र की स्थापना करने, एक गतिशील अवधारणा के रूप में कानून के शासन को बनाए रखने और समाज के कमज़ोर वर्गों को सामाजिक न्याय (Social Justice) प्रदान करने हेतु महत्वपूर्ण है।

विधि का शासन (Rule of law):

  • विधि का शासन या कानून का शासन (Rule of law) का अर्थ है कि कानून सर्वोपरि है तथा वह सभी लोगों पर समान रूप से लागू होता है।

सामाजिक न्याय (Social Justice):

  • सामाजिक न्याय का उद्देश्य राज्य के सभी नागरिकों को सामाजिक समानता उपलब्ध करना है। समाज के प्रत्येक वर्ग के कल्याण के लिये व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आज़ादी आवश्यक है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। यहाँ सामाजिक न्याय का अर्थ लैंगिक, जातिगत, नस्लीय एवं आर्थिक भेदभाव के बिना सभी नागरिकों की मूलभूत अधिकारों तक समान पहुँच सुनिश्चित करना है।
  • न्यायपालिका को संविधान में उल्लेखित प्रावधानों की व्याख्या करते समय विधि के शासन को ध्यान में रखना चाहिये।
  • न्यायिक प्रशासन को संविधान से कानूनी मंजूरी प्राप्त है और इसकी विश्वसनीयता लोगों के विश्वास पर टिकी हुई है और उस विश्वास के लिये न्यायपालिका की स्वतंत्रता अपरिहार्य है।

वर्ष 1993 का द्वितीय न्यायाधीश केस

(The Second Judges Case of 1993):

  • वर्ष 1993 के ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन’ (SCARA) बनाम भारत संघ मामले में नौ न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने वर्ष 1981 के एसपी गुप्ता मामले के निर्णय को खारिज़ कर दिया और उच्चतम/उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण के लिये 'कॉलेजियम सिस्टम' नामक एक विशिष्ट प्रक्रिया तैयार करने की बात कही।
  • साथ ही संवैधानिक पीठ ने कहा कि उच्चतम/उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये केवल उसी व्यक्ति को उपयुक्त माना जाना चाहिये जो सक्षम, स्वतंत्र और निडर हो।
    • कानूनी विशेषज्ञता, किसी मामले को संभालने की क्षमता, उचित व्यक्तिगत आचरण, नैतिक व्यवहार, दृढ़ता एवं निर्भयता एक श्रेष्ठ न्यायाधीश के रूप में उसकी नियुक्ति के लिये आवश्यक विशेषताएँ हैं।

आचरण का मानक

(Standard of conduct):

  • वर्ष 1995 के ‘सी. रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्जी एवं अन्य’ मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक न्यायाधीश के लिये आचरण का मानक सामान्य जन के आचरण के मानक की अपेक्षा अधिक है। इसलिये न्यायाधीश समाज में आचरण के गिरते मानकों में आश्रय लेने से उनके द्वारा दिये गए निर्णयों से न्यायिक ढाँचा बिखर सकता है।
  • उच्चतम/उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों को मानवीय दुर्बलताओं और कमजोर चरित्र से युक्त नहीं होना चाहिये। बल्कि उन्हें किसी आर्थिक, राजनीतिक या अन्य किसी भी प्रकार दबाव में आये बिना जनता के प्रति संवेदनशील होना चाहिये। अर्थात् न्यायाधीशों का व्यवहार लोगों के लिये लोकतंत्र, स्वतंत्रता एवं न्याय प्राप्ति का स्रोत होता है तथा विरोधाभासी ‘विधि के शासन’ की बारीकियों तक पहुँचता है।

फ्रांसिस बेकन ने न्यायाधीशों के बारे में कहा है कि “न्यायाधीशों को मज़ाकिया से अधिक प्रबुद्ध, प्रशंसनीय से अधिक श्रद्धेय और आत्मविश्वास से अधिक विचारपूर्ण होना चाहिये। सभी चीजों के ऊपर सत्यनिष्ठा उनकी औषधि एवं मुख्य गुण है। मूल्यों में संतुलन, बार कौंसिल और न्यायिक खंडपीठ के बीच श्रद्धा, स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली की बुनियाद है।”

न्यायिक चार्टर (Judicial Charter):

  • इसे ‘न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्स्थापन’ (The Restatement of Values of Judicial Life) नामक चार्टर भी कहा जाता है। इसे उच्चतम न्यायालय ने 7 मई, 1997 को अपनाया था।
  • यह एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका के लिये मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। यह न्यायिक नैतिकता के सिद्धांतों की एक पूरी संहिता है। जो निम्नलिखित हैं-
    1. न्याय केवल होना ही नहीं चाहिये बल्कि इसे होते हुए देखा भी जाना चाहिये। उच्चतर न्यायपालिका के सदस्यों का व्यवहार एवं आचरण न्यायपालिका की निष्पक्षता के प्रति लोगों के विश्वास की पुष्टि करता है।
    2. एक न्यायाधीश को एक क्लब के किसी भी कार्यालय, समाज या अन्य ऐसोसिएशन से चुनाव नहीं लड़ना चाहिये इसके अलावा वह कानून से जुड़े समाज को छोड़कर इस तरह के ऐच्छिक कार्यालय से संबद्ध नहीं रहेगा।
    3. बार कौंसिल के व्यक्तिगत सदस्यों के साथ घनिष्ठ संबंधों विशेष रूप से जो एक ही अदालत में अभ्यास करते हैं, से परहेज़ करना चाहिये।
    4. यदि बार कौंसिल का कोई सदस्य न्यायाधीश के समक्ष पेश होने के लिये उसके करीबी संबंधियों के साथ आता है तो एक न्यायाधीश को अपने परिवार के किसी भी सदस्य जैसे पति या पत्नी, बेटा, बेटी, दामाद या बहू या कोई अन्य करीबी रिश्तेदार को अनुमति नहीं देनी चाहिये।
    5. न्यायाधीशों के परिवार का कोई भी सदस्य जो बार का सदस्य है, को उस निवास का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी जिसमें न्यायाधीश वास्तव में निवास करते हैं या पेशेवर काम के लिये अन्य सुविधाएँ हैं।
    6. एक न्यायाधीश को अपने कार्यालय की गरिमा के अनुरूप पृथकता का स्तर (Degree of Aloofness) बनाये रखना चाहिए।
    7. एक न्यायाधीश एक ऐसे मामले की सुनवाई एवं निर्णय नहीं करेगा जिसमें उसके परिवार का कोई सदस्य, कोई करीबी रिश्तेदार या मित्र संबंधित हो।
    8. एक न्यायाधीश सार्वजनिक बहस में भाग नहीं लेगा तथा राजनीतिक मामलों पर या लंबित मामलों पर जनता के बीच अपने विचार व्यक्त नहीं करेगा।
    9. एक न्यायाधीश से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने निर्णयों को अपने पास ही सुरक्षित रखे। अर्थात् वह मीडिया को साक्षात्कार नहीं देगा।
    10. एक न्यायाधीश अपने परिवार, करीबी संबंधी एवं दोस्तों को छोड़कर उपहार या आतिथ्य स्वीकार नहीं करेगा।
    11. एक न्यायाधीश उस कंपनी के मामलों को नहीं सुनेगा और न ही निर्णय करेगा जिसमें उसके शेयर हैं किंतु यदि उसने अपने हितों का खुलासा किया है तो उस कंपनी के मामलों की सुनवाई कर सकता है।
    12. एक न्यायाधीश शेयर, स्टॉक आदि की अटकलें नहीं लगाएगा।
    13. एक न्यायाधीश को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यापार या व्यवसाय में संलग्न नहीं होना चाहिये। (एक कानूनी आलेख या एक शौक के रूप में किसी भी गतिविधि का प्रकाशन व्यापार या व्यवसाय नहीं माना जाएगा)
    14. एक न्यायाधीश को किसी भी उद्देश्य हेतु फंड की स्थापना में योगदान करने के लिये नहीं कहना चाहिये। तथा सक्रिय रूप से खुद को भी उससे संबद्ध नहीं करना चाहिये।
    15. एक न्यायाधीश को अपने कार्यालय से जुड़े विशेषाधिकार के रूप में किसी भी वित्तीय लाभ की तलाश नहीं करनी चाहिये जब तक कि यह स्पष्ट रूप से उपलब्ध न हो। इस संबंध में किसी भी संदेह को मुख्य न्यायाधीश के माध्यम से हल किया जाना चाहिए और स्पष्ट किया जाना चाहिये।
    16. प्रत्येक न्यायाधीश को प्रत्येक समय इस बात के प्रति सचेत रहना चाहिये कि वह जनता की निगाह में है और उसके द्वारा कोई चूक नहीं होनी चाहिये। वह जिस उच्च पद पर आसीन हो उसका सार्वजनिक सम्मान हो।

न्यायिक जवाबदेही

(Judicial Accountability):

  • एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में संवैधानिक अधिकारों एवं दायित्वों के संरक्षक के रूप में न्यायपालिका सार्वजनिक जवाबदेही से ऊपर नहीं हो सकती है।
  • न्यायिक स्वतंत्रता और जवाबदेही के सिद्धांतों को कभी-कभी मौलिक रूप से एक दूसरे के विपरीत माना जाता है किंतु न्यायिक स्वतंत्रता और जवाबदेही परस्पर जुड़े हुए हैं।
  • न्यायिक स्वतंत्रता ‘स्वतंत्रता का एक अनिवार्य स्तंभ और विधि के शासन’ को संदर्भित करता है।
  • एक लोकतांत्रिक प्रणाली में न्यायिक जवाबदेही का सबसे मजबूत संभव साधन महाभियोग है। यह भारत में उपलब्ध मुख्य जवाबदेही तंत्र है।

न्यायिक नैतिकता (Judicial Ethics):

  • न्यायिक नैतिकता न्यायाधीशों की सही कार्यवाही से संबंधित मूल सिद्धांत हैं। इसमें नैतिक कार्यवाही, न्यायाधीशों का आचरण एवं चरित्र, उनके उद्देश्य (जिनमें क्या सही है और क्या गलत) शामिल होते हैं।

24 मई, 1949 को संविधान सभा में बहस के दौरान के. टी. शाह का वक्तव्य:

  • यह संविधान न्यायाधीशों, राजदूतों या राज्यपालों की नियुक्ति के संबंध में कार्यपालिका के हाथों में इतनी शक्ति एवं प्रभाव को केंद्रित करने का विकल्प चुनता है तो कार्यपालिका की तानाशाही प्रवृत्ति उभर सकती है। इसलिये ऐसी कुछ नियुक्तियों को राजनीतिक प्रभाव से हटाना चाहिये और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को राजनीतिक प्रभाव से पूरी तरह बाहर होना चाहिये।

आगे की राह:

  • कार्यपालिका और न्यायपालिका का आपसी मेल-जोल न्यायपालिका की निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता की अवधारणा को कम करने का काम करता है और न्यायपालिका के प्रति सामान्य जन के विश्वास को कम करता है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि संवैधानिक सिद्धांतों एवं विधि के शासन को सर्वोपरि रखते हुए कार्यपालिका के खिलाफ मामले तय करेंगे।
  • चूँकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारत के संविधान की मूल संरचना है अतः इस स्वतंत्रता को संरक्षित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

‘यू.के. इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनिशिएटिव’

प्रीलिम्स के लिये:

यू.के. इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनिशिएटिव, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग

मेन्स के लिये:

भारतीय विश्वविद्यालयों में उच्च एवं मध्यम स्तरीय प्रशासन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा ‘यू.के इंडिया एजुकेशन एंड रिसर्च इनिशिएटिव’ (UK India Education and Research Initiative-UKIERI) के तत्त्वावधान में ‘प्रशासकों के लिये उच्च शिक्षा नेतृत्व विकास कार्यक्रम’ (Higher Education Leadership Development Programme for Administrator) प्रारंभ किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग इस कार्यक्रम का संचालन विश्व स्तर पर संस्थागत विशेषज्ञता और नेतृत्व उत्कृष्टता में मान्यता प्राप्त संस्थान यू..के. स्थित ‘एडवांस एचई’ (Advance HE) के साथ प्रशिक्षण भागीदार के रूप में करेगा, इसे भारत में ब्रिटिश काउंसिल द्वारा संचालित किया जा रहा है।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय विश्वविद्यालयों में उच्च और मध्यम स्तर के प्रशासनिक अधिकारियों के लिये नेतृत्व विकास कार्यक्रम संचालित करना है।

कार्यक्रम के बारे में?

  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत यू.के. के प्रशिक्षकों द्वारा दो कार्यशालाएँ आयोजित की जाएंगी, जिनके माध्यम से रजिस्ट्रार और संयुक्त/उप/ सहायक रजिस्ट्रार स्तर के 300 शैक्षणिक प्रशासकों को प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि उन्हें उच्च शिक्षा संस्थानों में व्यावसायिक परिवर्तन लाने के लिये सक्षम बनाया जा सके।
  • इस कार्यक्रम को भविष्य में स्थायी रूप से लागू करने के लिये 300 प्रतिभागियों में से 30 संभावित नेतृत्व विकास कार्यक्रम प्रशिक्षकों को चुना जाएगा और अन्य प्रतिभागियों को प्रशिक्षित करने के लिये अतिरिक्त प्रशिक्षण दिया जाएगा।

कार्यक्रम के निहितार्थ:

  • यह एक अनूठा कार्यक्रम है जो भारतीय विश्वविद्यालयों के मध्य और उच्च स्तर के पदाधिकारियों में नेतृत्व क्षमता बढ़ाने के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को प्रोत्साहन प्रदान करेगा।
  • यह कार्यक्रम शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिये संस्थागत विकास की दिशा में सरकारों की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करते हुए एक उपयुक्त कदम उठाने में सहायता करेगा।
  • यह कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय स्तर की उच्च शिक्षा समावेशी प्रणालियों को ग्रहण करने के लिये प्रोत्साहित करेगा तथा ऐसे वैश्विक दृष्टिकोण विकसित करने का प्रयास करेगा जो यू.के. और भारत में आर्थिक एवं सामाजिक विकास का समर्थन करते हैं।
  • यह कार्यक्रम प्रशासकों के लिये उनके प्रदर्शन और क्षमताओं को बेहतर बनाने हेतु एक प्रेरक के रूप में कार्य करेगा, जिसके परिणामस्वरूप भारत में संस्थागत ढाँचा मज़बूत होगा तथा और विश्वविद्यालयों की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य वरिष्ठ और मध्यम स्तर के अकादमिक प्रशासकों को प्रशिक्षित करना है ताकि वे भारत के विश्वविद्यालयों में नए दृष्टिकोण, क्षमता, उपकरण और कौशल का प्रयोग करके प्रणालीगत बदलाव ला सकें।
  • ‘प्रशासकों के लिये उच्च शिक्षा नेतृत्व विकास कार्यक्रम’ विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक अधिकारियों की प्रभावशीलता सुनिश्चित करता है।

भारत में उच्च शिक्षा संबंधी समस्याएँ:

  • भारत में उच्च शिक्षा की खराब स्थिति को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है-
    • भारत में उच्च शिक्षा में नामांकन दर अत्यंत कम है।
    • उच्च शिक्षण संस्थानों में मानव संसाधन की भी अत्यधिक कमी है।
    • बदलते वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप भारत में उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम नहीं बदला गया है।
    • इन संस्थानों में स्वायत्तता की कमी है।
    • शोध कार्यों का स्तर निम्न है।

आगे की राह:

‘प्रशासकों के लिये उच्च शिक्षा नेतृत्व विकास कार्यक्रम’ के अतिरिक्त यह आवश्यक है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नियामक संस्थाओं को मज़बूत और पारदर्शी बनाया जाए तथा भारत में शिक्षा के बजट में वृद्धि करने के साथ-साथ स्कूली शिक्षा को भी स्तरीय बनाया जाए, तभी भारत की उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाया जा सकेगा।

स्रोत-पीआईबी


शासन व्यवस्था

NOTA का विकल्प

प्रीलिम्स के लिये:

चुनाव आयोग, NOTA

मेन्स के लिये:

चुनाव सुधार से संबंधित मुद्दे, NOTA के विकल्प के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने नोटा (None of the Above- NOTA) से संबंधित आँकड़े जारी किये हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • EVM में NOTA विकल्प की शुरुआत पहली बार वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम और राजस्थान में संपन्न हुए चुनावों से हुई।
  • NOTA विकल्प के शुरू होने से अब तक दिल्ली पहला ऐसा राज्य है जिसने दिल्ली में हुए 5 चुनावों (वर्ष 2013, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव एवं वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव) में NOTA से संबंधित आँकड़ों को प्रदर्शित किया है। ध्यातव्य है कि NOTA विकल्प की शुरुआत के बाद दिल्ली में संपन्न हालिया विधानसभा चुनाव देश में 45वाँ चुनाव था।

नोटा (NOTA) के बारे में

  • इसका अर्थ है ‘इनमें से कोई नहीं’।
  • भारत में नोटा के विकल्प का उपयोग पहली बार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2013 में दिये गए एक आदेश के बाद शुरू हुआ, विदित हो कि ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम भारत सरकार’ (People's Union Of Civil Liberties vs Union Of India) मामले में शीर्ष न्यायालय ने आदेश दिया था कि जनता को मतदान के लिये नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए।
  • इस आदेश के बाद भारत नकारात्मक मतदान का विकल्प उपलब्ध कराने वाला विश्व का 14वाँ देश बन गया।
  • ईवीएम मशीन में नोटा (NONE OF THE ABOVE-NOTA) के उपयोग के लिये गुलाबी रंग का बटन होता है।
  • यदि पार्टियाँ गलत उम्मीदवार खड़ा करती हैं तो जनता नोटा का बटन दबाकर पार्टियों के प्रति अपना विरोध दर्ज़ करा सकती है।

NOTA की शुरुआत के कारण

  • वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि जिस प्रकार नागरिकों को मत देने का अधिकार है उसी प्रकार उन्हें किसी भी उम्मीदवार को मत न देने का अधिकार भी प्राप्त है। इसके बाद जनवरी, 2014 में नोटा के प्रावधान संबंधी अधिसूचना जारी की गई थी।
  • लोकतंत्र में मतदाताओं द्वारा उम्मीदवारों को चुनने या न चुनने के अधिकार को सुरक्षित करने हेतु यह विकल्प लाया गया था। इसके पीछे का उद्देश्य चुनाव को साफ-सुथरा बनाना है।
  • नोटा की माँग का एक उद्देश्य यह भी था कि लोकतंत्र में जनता के मालिकाना हक को सुनिश्चित किया जाए। यह जनप्रतिनिधियों को निरंकुश न होने तथा उन्हें उनके दायित्वों के प्रति ईमानदार बनाए रखने के लिये कारगर व्यवस्था हो सकती है। जनता को उम्मीदवारों को नकारने का विकल्प देना इस बात का परिचायक है कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है।

NOTA के पक्ष में तर्क

  • इस संदर्भ में यह तर्क दिया जाता है कि यह मतदाताओं को किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का अधिकार देकर चुनाव में प्रतिभागी उम्मीदवारों के प्रति असंतोष जाहिर करने का महत्त्वपूर्ण विकल्प है।
  • इस विकल्प की सहायता से जनता को अब दो भ्रष्ट उम्मीदवारों में से कम भ्रष्ट उम्मीदवार को चुनने से राहत मिली है तथा मतदाता अपने मत का सही उपयोग कर सकता है।
  • इस विकल्प के कारण राजनैतिक दल चुनाव में ईमानदार प्रतिभागी को ही उम्मीदवार के रूप में नामाँकित करने का प्रयास करेंगे जिससे राजनीति के अपराधीकरण की प्रक्रिया पर अंकुश लगेगा।
  • यह विकल्प लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया को स्वच्छ बनाने में महत्त्वपूर्ण विकल्प माना जा रहा है।

विपक्ष में तर्क

  • इसके विपक्ष में सबसे बड़ा तर्क यह है कि चुनाव में यह विकल्प केवल नकारात्मक मताधिकार देता है, किसी उम्मीदवार की उम्मीदवारी को निरस्त करने का नहीं। जिसका चुनाव में उम्मीदवार की जीत या हार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
    • उदाहरण के लिये, यदि चुनाव में 100 मतदाताओं में से 99 मतदाताओं ने NOTA का विकल्प चुना है किंतु एक मतदाता ने किसी उम्मीदवार को चुना है तो वह उम्मीदवार विजयी घोषित होगा और उन 99 मतों का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है।
  • NOTA का विकल्प केवल नकारात्मक वोटिंग का अधिकार है, उम्मीदवार की उम्मीदवारी को निरस्त करने का नहीं। इसी कारण पूर्व चुनाव आयुक्त ने भारत में NOTA को दंतहीन विकल्प की संज्ञा दी।
  • आलोचकों का मानना है कि वर्तमान नियमों पर आधारित NOTA का विकल्प एक महत्त्वहीन विकल्प है जो मतदाता के मतों की अवहेलना करता है।
  • दरअसल जो लोग नोटा के मौजूदा स्वरूप से असंतुष्ट हैं, उनका तर्क यह है कि इससे मतदाता को चुनाव में भाग ले रहे प्रत्याशियों को खारिज करने का हक नहीं मिलता।

NOTA से संबंधित अन्य तथ्य

  • NOTA के संदर्भ में दिल्ली के मतदाताओं की प्राथमिकता राष्ट्रीय औसत से कम है। दिल्ली के मतदाताओं ने वर्ष 2013 में 0.63% तथा वर्ष 2015 में NOTA के पक्ष में 0.39% मतदान किया। किंतु हालिया विधानसभा चुनावों में NOTA का वोट प्रतिशत बढ़कर 0.46% हो गया है।
  • वर्ष 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों में NOTA को 1.8% मत प्राप्त होने के बावजूद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (निर्दलीय को छोड़कर) के अलावा किसी भी राजनीतिक दल से अधिक वोट मिले थे।
  • वर्ष 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में NOTA, दो निर्वाचन क्षेत्रों - लातूर (ग्रामीण) और पलस-कडगाँव में दूसरे स्थान पर था।
  • NOTA को सशक्त करने के संदर्भ में भी कई प्रयास किये गए-
    • वर्ष 2018 में पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एस. कृष्णमूर्ति ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में फिर से चुनाव कराने की सिफारिश की थी जहाँ जीत का अंतर NOTA की कुल संख्या से कम है।
    • NOTA के स्थान पर ‘अस्वीकार करने का पूर्ण अधिकार’ (Right to Reject) मांगने के लिये मद्रास उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी।
    • वर्ष 2018 में महाराष्ट्र एवं हरियाणा राज्य चुनाव आयोग (State Election Commission- SEC) ने एक आदेश जारी किया था कि यदि नोटा को सबसे अधिक वैध मत प्राप्त होते हैं तो उस विशेष सीट के लिये उक्त चुनाव को रद्द कर दिया जाएगा और इस तरह के पद के लिये नए सिरे से चुनाव किया जाएगा।

आगे की राह

  • चुनाव में NOTA विकल्प को सार्थकता प्रदान करने हेतु इसे सशक्त करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में NOTA को अन्य उम्मीदवारों की तुलना में अधिक वोट मिलते हैं तो चुनाव को रद्द कर पुनः करवाना चाहिये साथ ही उक्त उम्मीदवारों को पुनर्निर्वाचन में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त राजनीति के अपराधीकरण एवं अपराधियों के राजनीतिकरण को रोकने हेतु व्यापक चुनाव सुधार की आवश्यकता है।
  • साथ ही सरकार एवं चुनाव आयोग को मतदाताओं में नोटा के बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास करना चाहिये जिससे कि मतदाता नोटा के निहितार्थ को समझ सके।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, तकनीकी वस्त्र

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन से संबंधित पहलू और भारतीय तकनीकी वस्त्रों की स्थिति

चर्चा में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने 1,480 करोड़ रुपए की कुल लागत वाले राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन (National Technical Textiles Mission) की स्थापना को मंज़ूरी दी है। ज्ञात हो कि इस मिशन की स्थापना का प्रस्ताव सर्वप्रथम वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण के दौरान रखा था।

मिशन से संबंधित प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन को चार साल की अवधि (2020-21 से 2023-24 तक) में कार्यान्वित किया जाएगा जिसकी अनुमानित लागत 1,480 करोड़ रुपए है।
  • इस मिशन का उद्देश्य भारत को तकनीकी वस्त्र के क्षेत्र में एक वैश्विक लीडर के रूप में स्थापित करना है।
  • इस मिशन के मुख्यतः 4 घटक हैं:
    • अनुसंधान, नवाचार और विकास
      1,000 करोड़ रुपए के परिव्यय वाले मिशन का पहला घटक अनुसंधान, नवाचार और विकास पर केंद्रित होगा। इस घटक के तहत (1) कार्बन, फाइबर, अरामिड फाइबर, नाइलॉन फाइबर और कम्‍पोज़िट में अग्रणी तकनीकी उत्‍पादों के उद्देश्‍य से फाइबर स्‍तर पर मौलिक अनुसंधान (2) भू-टेक्‍सटाइल, कृषि-टेक्‍सटाइल, चिकित्‍सा-टेक्‍सटाइल, मोबाइल-टेक्‍सटाइल और खेल-टेक्‍सटाइल के विकास पर आधारित अनुसंधान अनुप्रयोगों दोनों को प्रोत्‍सा‍हन दिया जाएगा।
    • संवर्द्धन और विपणन विकास
      इस घटक का उद्देश्य बाज़ार विकास, बाज़ार संवर्द्धन, अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी सहयोग, निवेश प्रोत्साहन और 'मेक इन इंडिया' पहल के माध्यम से प्रतिवर्ष 15 से 20 प्रतिशत की औसत वृद्धि के साथ घरेलू बाज़ार के आकार को वर्ष 2024 तक 40 से 50 अरब डॉलर करना है।
    • निर्यात संवर्द्धन
      इस घटक के तहत तकनीकी वस्त्रों के निर्यात को बढ़ाकर वर्ष 2021-22 तक 20,000 करोड़ रुपए किये जाने का लक्ष्य है जो कि वर्तमान में लगभग 14,000 करोड़ रुपए है। साथ ही वर्ष 2023-24 तक प्रतिवर्ष निर्यात में 10 प्रतिशत औसत वृद्धि भी सुनिश्चित की जाएगी। इस घटक में प्रभावी तालमेल और संवर्द्धन गतिविधियों के लिये एक तकनीकी वस्त्र निर्यात संवर्द्धन परिषद की स्थापना की जाएगी।
    • शिक्षा, प्रशिक्षण एवं कौशल विकास
      मिशन के इस चरण के तहत उच्चतर इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी स्‍तर पर तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा और इसके अनुप्रयोग का दायरा इंजीनियरिंग, चिकित्सा, कृषि, जलीय कृषि और डेयरी जैसे क्षेत्रों तक विस्तृत किया जाएगा। साथ ही कौशल विकास को बढ़ावा दिया जाएगा और मानव संसाधन को अत्यधिक कुशल बनाया जाएगा ताकि परिष्कृत तकनीकी वस्त्र विनिर्माण इकाइयों की आवश्यकता पूरी की जा सके।

देश का तकनीकी वस्त्र बाज़ार और मिशन की आवश्यकता

  • भारतीय तकनीकी वस्त्र बाज़ार का अनुमानित आकार 16 अरब डॉलर है जो 250 अरब डॉलर के वैश्विक तकनीकी वस्त्र बाज़ार का लगभग 6 प्रतिशत है। हालाँकि देश में तकनीकी वस्त्रों की पहुँच काफी कम (मात्र 5 से 10 प्रतिशत) है, जबकि विकसित देशों में यह आँकड़ा 30 से 70 प्रतिशत के आस-पास है।
  • देश में शिक्षा, कौशल विकास और मानव संसाधन तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण और तेज़ी से उभरते तकनीकी वस्त्र क्षेत्र की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। अतः इस क्षेत्र में कार्य किया जाना आवश्यक है।

तकनीकी वस्त्र

  • तकनीकी वस्त्र (Technical Textile) उन वस्त्रों को कहते हैं जिनका निर्माण सौंदर्य विशेषताओं के स्थान पर मुख्य रूप से तकनीकी तथा उससे संबंधित आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया जाता है। इनके निर्माण का मुख्य उद्देश्य कार्य-संपादन (Functionality) होता है।
  • तकनीकी वस्त्रों का उपयोग कृषि, वैज्ञानिक शोध, चिकित्सा, सैन्य क्षेत्र, उद्योग तथा खेलकूद के क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर होता है। तकनीकी वस्त्रों के उपयोग से कृषि, मछली पालन तथा बागवानी की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
  • ये सेना, अर्द्ध-सैनिक बल, पुलिस एवं अन्य सुरक्षा बलों की बेहतर सुरक्षा के लिये भी अहम हैं। इसके अलावा यातायात अवसंरचना (Transportation Infrastructure) को मज़बूत और टिकाऊ बनाने के लिये इनका प्रयोग रेलवे, बंदरगाहों तथा हवाई जहाज़ों में किया जाता है।

स्रोत: पी.आई.बी और द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

COP-13

प्रीलिम्स के लिये:

कोप-13, गांधीनगर डिक्लेरेशन

मेन्स के लिये:

प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण, जैव-विविधता

चर्चा में क्यों?

15-22 फरवरी, 2020 तक गुजरात की राजधानी गांधीनगर में ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण (Conservation of Migratory Species of Wild Animals-CMS) की शीर्ष निर्णय निर्मात्री निकाय कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP) के 13वें सत्र का आयोजन किया गया।

विषय (Theme)

“प्रवासी प्रजातियाँ पृथ्वी को जोड़ती हैं और हम मिलकर उनका अपने घर में स्वागत करते हैं।”

(Migratory species connect the planet and together we welcome them home)

शुभंकर (Mascot)

गिबी (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड)

प्रतीक चिह्न (Logo)

COP-13 के प्रतीक चिह्न में दक्षिण भारत की एक पारंपरिक कला ‘कोलम’ का प्रयोग करते हुए भारत के महत्त्वपूर्ण प्रवासी जीवों-अमूर फाल्कन, मरीन टर्टल को दर्शाया गया है।

COP-13 की पृष्ठभूमि:

  • CMS सदस्य देशों का यह सम्मेलन प्रवासी पक्षियों, उनके प्रवास स्थान और प्रवास मार्ग के संरक्षण पर होने वाला विश्व का एकमात्र सम्मेलन है।
  • इस सम्मेलन का आयोजन हर 3 वर्ष में किया जाता है।
  • यह सम्मेलन इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मई 2019 में ‘जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (IPBES)’ द्वारा जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर जारी एक समीक्षा रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में वन्यजीवों और वनस्पतियों की लगभग 10 लाख प्रजातियाँ लुप्तप्राय की स्थिति में हैं।
  • सम्मेलन में लिये गए निर्णय ‘पोस्ट 2020 वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क’ रणनीति के लिये आधार प्रदान करेंगे।
  • वर्ष 2020 में ही ‘पोस्ट 2020 वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क’ के तहत भविष्य की नीतियों की रूपरेखा तथा संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के अंतिम दशक (2020-2030) के लक्ष्य निर्धारित किये जायेंगे। अतः COP-13 सम्मेलन में लिये गए निर्णय आगामी दशक में विकास और प्रकृति के बीच समन्वय के लिये महत्त्वपूर्ण होंगे।

वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण (CMS)

  • CMS एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि है, इसे बॉन कन्वेंशन (Bonn Convention) के नाम से भी जाना जाता है।
  • वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nation Environment Programme-UNEP) के तहत जर्मनी के बॉन (Bonn) शहर में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
  • यह समझौता वर्ष 1983 में आधिकारिक रूप से लागू हुआ और वर्तमान में इस समझौते के 130 सक्रिय सदस्य (यूरोपियन यूनियन व 129 अन्य देश) हैं।
  • CMS का मुख्यालय बॉन (Bonn), जर्मनी में स्थित है।

CMS के कार्य:

  • CMS के अनुसार, सभी वन्यजीव अपनी विविधताओं के साथ पृथ्वी की प्राकृतिक संरचना का महत्त्वपूर्ण अंग हैं और हर स्थिति में इनका संरक्षण किया जाना चाहिये।
  • CMS प्रवासी जीवों के प्रवास मार्ग और प्रवास क्षेत्र से संबंधित देशों को एक साथ लाने का काम करता है।
  • इसके साथ ही CMS प्रवासी जीवों के संरक्षण के लिये संबंधित देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित प्रयासों को कानूनी आधार प्रदान करता है।
  • प्रवासी प्रजातियों, उनके आवास और प्रवास मार्गों के संरक्षण में विशेषज्ञता वाले एकमात्र वैश्विक सम्मेलन के रूप में CMS कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, गैर-सरकारी तथा निजी क्षेत्र के संगठनों एवं मीडिया के साथ मिलकर काम करता है।
  • वर्तमान में CMS के तहत 173 प्रजातियों को संरक्षण प्राप्त है।

CMS और भारत

  • भारत वर्ष 1983 से इस सम्मेलन का सदस्य रहा है।
  • इसके साथ ही भारत ने कुछ प्रजातियों के संरक्षण और प्रबंधन के लिये गैर-बाध्यकारी MOU पर हस्ताक्षर भी किये हैं। इनमें साइबेरियन क्रेन (1998), मरीन टर्टल (2007), डूगोंग (2008) और रैप्टर (2016) शामिल हैं।

COP-13 के परिणाम

  • COP-13 में CMS की संरक्षित प्रजातियों की सूची में 10 नई प्रजातियों को जोड़ा गया है।
  • इस सूची के परिशिष्ट-I में 7 प्रजातियों ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, एशियाई हाथी, बंगाल फ्लोरिकन, जगुआर, वाइट-टिप शार्क, लिटिल बस्टर्ड और एंटीपोडियन अल्बाट्राॅस को शामिल किया है। ध्यातव्य है कि CMS के परिशिष्ट-I में वन्यजीवों की लुप्तप्राय (Endangered) प्रजातियों को रखा जाता है।
  • परिशिष्ट-II में प्रवासी जीवों की 3 प्रजातियों को जोड़ा गया है। परिशिष्ट-II में वन्यजीवों की उन प्रजातियों को शामिल किया जाता है, जिनकी संख्या में असामान्य कमी दर्ज की गई हो तथा उनके संरक्षण के लिये वैश्विक सहयोग की ज़रूरत हो।
  • परिशिष्ट-II में जोड़ी गई प्रजातियों में उरियल (Urial), स्मूथ हैमरहेड शार्क और टोपे शार्क (Tope shark) शामिल हैं।
  • इसके साथ ही वन्य जीवों की लक्षित 14 अन्य प्रजातियों के संरक्षण हेतु ठोस कदम उठाने के लिये कार्ययोजना पर सहमति।

गांधीनगर घोषणा (डिक्लेरेशन):

  • COP-13 सम्मेलन के दौरान “गांधीनगर डिक्लेरेशन” नामक एक घोषणा-पत्र जारी किया गया, इस घोषणा-पत्र में प्रवासी पक्षियों और उनके वास स्थान के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में CMS की भूमिका की सराहना की गई।
  • इस घोषणा-पत्र में प्रवासी जीवों के वास स्थान के क्षरण और उनके अनियंत्रित दोहन को प्रवासी जीवों के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया गया।
  • घोषणा-पत्र में वर्तमान वैश्विक ‘पारिस्थितिक संकट’ (Ecological Crisis) को स्वीकार करते हुए इस समस्या से निपटने के लिये शीघ्र और मज़बूत कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • घोषणा-पत्र में CMS और अन्य जैव-विविधता से संबंधित सम्मेलनों के लक्ष्यों की प्राप्ति में ‘जलवायु परिवर्तन पर UNFCCC’ के पेरिस समझौते के महत्त्व को स्वीकार किया गया।
  • पोस्ट 2020 ग्लोबल फ्रेमवर्क:
    • आगामी दशकों में जैव-विविधता में सकारात्मक सुधार के लिये नीति-निर्धारण में ‘Post 2020 ग्लोबल फ्रेमवर्क’ के महत्त्व को स्वीकार किया गया है।
    • घोषणापत्र में ‘पोस्ट-2020 वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क’ के अंतर्गत पर्यावरण संवर्द्धन के क्षेत्र में बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों, क्षेत्रीय और सीमा पार सहयोग प्रणाली, आदि के माध्यम से वैश्विक सहयोग बढ़ाने तथा सामुदायिक स्तर पर योजनाओं के बीच अनुभव साझा करने जैसे प्रयास शामिल करने की सलाह दी गई है।
    • इसके साथ ही ‘पोस्ट-2020 वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क’ के तहत योजना की सफलता (लक्ष्यों पर प्रगति की स्थिति, जैव-विविधताओं को जोड़ने पर कार्य-प्रगति) के मूल्यांकन के लिये प्रवासी प्रजातियों की स्थिति के विभिन्न सूचकांकों जैसे-वाइल्ड बर्ड इंडेक्स, लिविंग प्लैनेट इंडेक्स, आदि को शामिल करने की बात कही गई है।
  • गांधीनगर घोषणा-पत्र में CMS सदस्यों और अन्य हितधारकों को प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण तथा जैव-पारिस्थितिकी के क्षेत्र में संपर्क एवं कार्य क्षमता को बढ़ाने के लिये ‘पोस्ट-2020 वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क’, 2030 सतत् विकास लक्ष्य आदि योजनाओं के तहत वैश्विक सहयोग बढ़ाने व आवश्यक संसाधनों को उपलब्ध कराने की मांग की गई है।

रैप्टर समझौता-ज्ञापन (Raptor MOU):

COP-13 सम्मेलन में पूर्वी अफ्रीका के देश इथिओपिया (Ethiopia) ने CMS द्वारा प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिये स्थापित ‘CMS एमओयू ऑन कंजर्वेशन ऑफ माइग्रेटरी बर्ड्स ऑफ प्रे इन अफ्रीका एंड यूरेशिया’ नामक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, इस समझौते को ‘रैप्टर समझौता-ज्ञापन (Raptor MOU)’ के नाम से भी जाना जाता है। यह समझौता अफ्रीका और यूरेशिया क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध और उनके संरक्षण को बढ़ावा देता है। भारत ने मार्च 2016 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।

अन्य महत्त्वपूर्ण समझौते:

COP-13 सम्मेलन में प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिये विभिन्न प्रयासों को आम सहमति से स्वीकार किया गया, इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • जैव-विविधता और प्रवासी प्रजातियों के मुद्दों को राष्ट्रीय ऊर्जा तथा जलवायु नीति में शामिल करना एवं वन्यजीव अनुकूल अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
  • प्रवासी पक्षियों के गैर-कानूनी शिकार और उनके व्यापार को रोकने के लिये प्रयासों को तेज़ करना।
  • मूलभूत आधारिक संरचनाओं (सड़क, रेल आदि) के विकास के दौरान प्रवासी प्रजातियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम करना।
  • जलीय वन्यजीवों के मांस के अनियंत्रित उपयोग पर अंकुश लगाना।
  • समुद्र में मछली पकड़ने के दौरान शार्क या अन्य संरक्षित प्रजातियों के अनैच्छिक शिकार की निगरानी करना एवं इसके समाधान के लिये नीति बनाना।
  • संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिये जीवों के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश के प्रति समझ को बढ़ाना।
  • CMS के परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध प्रजातियों के व्यापार पर नियंत्रण और उनके संवर्द्धन के लिये सामूहिक प्रयास।

CMS राजदूत:

CMS के कार्यों और प्रवासी प्रजातियों की समस्याओं के प्रति विश्व भर में जागरूकता फैलाने के लिये COP-13 में तीन नए CMS राजदूत नियुक्त किये गए हैं:

  1. ईयन रेडमंड - स्थलीय प्रवासी प्रजातियों के लिये
  2. साशा डेंच (पर्यावरणविद्) - प्रवासी पक्षियों के लिये
  3. रणदीप हुड्डा (अभिनेता और पर्यावरण कार्यकर्त्ता) - प्रवासी जलीय जीवों के लिये

COP-13 में भारत की भूमिका

  • COP-13 समेलन में CMS के ‘चैंपियन प्रोग्राम’(Champion Programme) के तहत भारत को ‘स्माल ग्रांट्स प्रोग्राम’ (Small Grants Program) के लिये अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • इस सम्मेलन के बाद भारत को अगले तीन वर्षों के लिये COP का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
  • भारत सेंट्रल एशियाई फ्लाईवे (CAF) के मुद्दे का नेतृत्व करते हुए CAF के लिये एक फ्रेमवर्क का निर्माण करेगा।
  • CAF के विकास के लिये भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय कार्ययोजना जारी की गई है, इसके तहत सभी हितधारकों के सहयोग से प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के साथ आर्द्रभूमि (wetland) का संरक्षण एवं विकास किया जाएगा।
  • भारत प्रवासी पक्षियों के संरक्षण और इस क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के लिये संस्थान की स्थापना करेगा।
  • मरीन टर्टल पॉलिसी: भारत सरकार द्वारा समुद्री कछुओं की प्रवासी प्रजातियों और उनके वास स्थान (Habitat) के संरक्षण तथा विकास के लिये कार्ययोजना का निर्माण किया जा रहा है।
    • इसके तहत समुद्री कछुओं के प्रवास स्थान की पहचान कर उनके संरक्षण और उन्हें चिकित्सा सहायता प्रदान करने जैसे प्रयास किये जाएंगे।
    • संबंधित क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त बनाने के साथ ही योजना के कार्यान्वयन में सभी हितधारकों (मछुआरों आदि) को शामिल किया जाएगा।
    • इस योजना में सर्वेक्षण के लिये केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान की सहायता ली जाएगी, इस परियोजना पर 5 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है।
  • इसके अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा सीमावर्ती देशों के साथ प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिये ‘ट्रांस-बाउंड्री संरक्षित क्षेत्र’ चिह्नित करने जैसे प्रयास किये जाएंगे।

कौन हैं प्रवासी प्रजातियाँ?

प्रवासी प्रजातियाँ जीवों की वे प्रजातियाँ हैं, जो वर्ष के विभिन्न समयों/भागों में भोजन, तापमान, जलवायु जैसे विभिन्न कारकों के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। अलग-अलग प्रवास स्थानों के बीच प्रवासी जीवों की यह यात्रा कई बार हज़ारों किमी. से अधिक होती है।

भारत में प्रवासी प्रजातियों के प्रमुख प्रवास क्षेत्र:

हिंद महासागर के साथ लंबी तटीय सीमा होने के अलावा भारतीय उपमहाद्वीप इस क्षेत्र में पक्षियों के महत्त्वपूर्ण प्रवास मार्ग सेंट्रल एशियन फ्लाईवे (Central Asian Flyway-CAF) का हिस्सा है। इसके कारण वर्ष भर बहुत से प्रवासी जीव भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रवास के लिये आते रहते हैं। भारत के कुछ प्रवासी क्षेत्रों में ‘नलबाना पक्षी अभयारण्य’ (ओड़िसा) बार-हेडेड गीज (कलहंस) के लिये, ‘केवलादेव नेशनल पार्क’ (राजस्थान) साइबेरियाई पक्षियों के लिये और नगालैंड का वोखा (Wokha) ज़िला- अमूर फाल्कन के लिये जाने जाते हैं।

प्रवास में होने वाली समस्याएँ:

पिछले कुछ वर्षों में प्रवासी जीवों की संख्या में भारी कमी देखी गई है, जीवों की घटती संख्या और उनके प्रवास में होने वाली समस्याओं में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और इनका अवैध शिकार प्रमुख हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवासी जीवों को अपने प्राकृतिक स्थान को छोड़कर नए स्थानों पर जाना पड़ता है, असुरक्षित तथा प्रतिकूल वातावरण का प्रभाव प्रजातियों की उत्तरजीविता और उनकी प्रजनन क्षमता पर पड़ता है। इसके साथ ही नए स्थानों पर प्रवास से उनका शिकार किये जाने का भी खतरा बढ़ जाता है।

  • अवैध शिकार: कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा संरक्षित घोषित होने के बावजूद प्रवासी पक्षियों का अवैध शिकार ऐसे जीवों के अस्तित्व के लिये एक बड़ी समस्या है। उदाहरण- नगालैंड में अमूर फाल्कन या पाकिस्तान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का शिकार आदि।
  • प्रदूषण: प्रदूषण के कई प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव प्रवासी जीवों की घटी संख्या का कारण रहे हैं। इनमें समुद्री कचरे से प्रवासी कछुओं के वास स्थान को क्षति, पक्षियों के प्राकृतिक आवास का क्षरण व जल प्रदूषण शामिल हैं।
  • अन्य कारण: प्रवासी प्रजातियों की उत्तरजीविता की अन्य चुनौतियों में कई मानवीय विकास गतिविधियाँ जैसे-सड़क या रेल मार्ग, विद्युत तार, कृषि में प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशक आदि हैं।

क्या है फ्लाई-वे (Flyway)?

प्रवासी जीवों द्वारा, विभिन्न देशों या महाद्वीपों में अपने प्रवास के दौरान, उपयोग किये जाने वाले एक निश्चित मार्ग को फ्लाई-वे के रूप में जाना जाता है।

वस्तुतः फ्लाई-वे विभिन्न देशों और महाद्वीपों के पारिस्थितिक तंत्रों तथा प्रवास स्थानों को जोड़ने का कार्य करते हैं।

Central Asian Flyway-CAF: सेन्ट्रल एशियन फ्लाई-वे प्रवासी पक्षियों के विश्व के 9 प्रवास मार्गों में से एक है, इस फ्लाई-वे के अंतर्गत आर्कटिक और हिंद महासागर के बीच यूरेशिया के लगभग 30 देश शामिल हैं। संपूर्ण विश्व के जलीय प्रवासी पक्षियों की लगभग 182 प्रजातियाँ CAF क्षेत्र में प्रवास करती हैं, जिनमें से 29 प्रजातियों को वैश्विक रूप से संकटग्रस्त या निकट संकटग्रस्त की श्रेणी में रखा गया है। यह मार्ग इन प्रजातियों के प्रवास और प्रजनन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

Asian-migratory

चुनौतियाँ:

  • कई महत्त्वपूर्ण देशों जैसे-इज़राइल, ऑस्ट्रेलिया,दक्षिण अफ्रीका, यूरोपीय संघ आदि ने संरक्षित प्रजातियों के आयात या निर्यात से संबंधित जानकारी CMS सचिवालय को साझा करने को अनिवार्य नहीं माना है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, CMS के पास अपने निर्णयों को अनिवार्य रूप से लागू कराने के लिये कोई प्रावधान नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि सदस्य देश किसी समझौते का हिस्सा बनकर भी उसका पालन नहीं करते हैं तो CMS उस समझौते के सफल क्रियान्वयन के लिये कुछ नहीं कर सकता।

आगे की राह:

  • प्रवासी प्रजातियाँ देशों को वैश्विक स्तर पर जोड़ने के साथ ही पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, अतः सभी देशों को इनके संरक्षण के लिये मिलकर प्रयास करना चाहिये।
  • विभिन्न वैश्विक संगठनों के माध्यम से सतत् विकास और प्रकृति संरक्षण में समन्वय के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।
  • प्रवासी प्रजातियों व जैव-विविधता के संवर्द्धन में सभी देशों की भूमिका और उनके अनिवार्य योगदान को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू एवं इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 27 फरवरी, 2020

फ्लोटिंग दर ऋणों को एक्‍सटर्नल बेंचमार्क से जोड़ने का निर्देश

रिज़र्व बैंक ने देश भर के सभी बैंकों को फ्लोटिंग दर पर मझौले उद्यमों (Medium Enterprises) को दिये जाने वाले ऋणों को एक्‍सटर्नल बेंचमार्क से जोड़ने का निर्देश दिया है। बेंचमार्क दर वह न्‍यूनतम दर है जिस पर बैंक ऋण दे सकते हैं। रिजर्व बैंक ने हाल ही में जारी विज्ञप्ति में कहा है कि यह निर्देश 1 अप्रैल, 2020 से प्रभावी होगा। ज्ञात हो कि सूक्ष्‍म एवं लघु उद्यमों के लिये फ्लोटिंग ऋण दरें पहले से ही एक्‍सटर्नल बेंचमार्क दरों से जोड़ी जा चुकी हैं। इस निर्णय का उद्देश्‍य मौद्रिक नीति के प्रभाव को सशक्‍त बनाना है ताकि ऋण दरों में कटौती का लाभ मझौले उद्यमों को मिल सके। रिज़र्व बैंक के अनुसार, उन क्षेत्रों में मौद्रिक नीति हस्‍तांतरण में सुधार हुआ है जहाँ फ्लोटिंग दर पर नए ऋणों को एक्‍सटर्नल बेंचमार्क से जोड़ा गया है।

EASE 3.0

हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने EASE 3.0 रिफाॅर्म एजेंडा लॉन्च किया है। इसे EASE 2.0 की वार्षिक रिपोर्ट के साथ लॉन्च किया गया है। EASE 3.0 का मुख्य उद्देश्य सार्वजानिक क्षेत्र की बैंकिंग तकनीक को सक्षम और स्मार्ट बनाना तथा ग्राहकों के लिये बैंकिंग में आसानी सुनिश्चित करना है। EASE का विस्तृत रूप ‘एनहैंस्ड एक्सेस एंड सर्विस एक्सिलेंस’ (Enhanced Access and Service Excellence) है। ये प्रौद्योगिकी-आधारित बैंकिंग सुधारों का संग्रह है। इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी के माध्यम से देश के बैंकिंग में क्षेत्र में सुधार लाना है ताकि बेहतर बैंकिंग अनुभव, व्यापक वित्तीय समावेशन और आसान ऋण वितरण सुनिश्चित किया जा सके। ज्ञात हो कि इस पहल के माध्यम से देश में पेपरलेस और डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा मिलेगा।

जावेद अशरफ

राजनयिक जावेद अशरफ को फ्राँस में भारत का नया राजदूत नियुक्त किया गया है। अशरफ 1991 बैच के भारतीय विदेश सेवा (IFS) के अधिकारी हैं। वर्तमान में वह सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त हैं। इस संदर्भ में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, जावेद अशरफ जल्द ही पद संभाल लेंगे। जावेद अशरफ, फ्राँस में भारत के मौजूदा राजदूत विनय मोहन क्वात्रा का स्थान लेंगे। दोनों देशों के बीच बढ़ते रणनीतिक संबंधों के मद्देनज़र यह एक अहम पद है। विनय मोहन क्वात्रा को नेपाल में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया है। जावेद अशरफ को नवंबर 2016 में सिंगापुर के भारतीय उच्चायुक्त के तौर पर नियुक्त किया गया था। इससे पूर्व वह वर्ष 1993 से लेकर वर्ष 1999 तक फ्रैंकफर्ट और बर्लिन में स्थित भारतीय दूतावास में भी तैनात रहे। इसके पश्चात् वर्ष 1999 से लेकर वर्ष 2004 तक उन्होंने नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के अमेरिका डिवीज़न में भी कार्य किया। इसके अतिरिक्त जावेद अशरफ ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में संयुक्त सचिव के रूप में भी अपनी सेवाएँ दी हैं।

मारिया शारापोवा

5 ग्रैंड स्लैम विजेता रूस की टेनिस खिलाड़ी मारिया शारापोवा ने 32 वर्ष की उम्र में सन्यास लेने की घोषणा की है। मारिया शारापोवा का जन्म 19 अप्रैल, 1987 को साइबेरिया के न्यागन शहर में हुआ था। मारिया शारापोवा ने वर्ष 2004 में दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी सेरेना विलियम्स को हरा कर विंबलडन के रूप में अपना पहला ग्रैंड स्लैम जीता था। इसके अलावा वर्ष 2012 में उन्होंने फ्रेंच ओपन जीतकर अपने कैरियर स्लैम भी पूरा किया था। वर्ष 2012 के पश्चात् उन्होंने वर्ष 2014 में फ्रेंच ओपन जीता। ज्ञात हो कि वर्ष 2016 में मारिया शारापोवा को डोपिंग के आरोप में 15 माह के लिये प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिसके पश्चात् अप्रैल 2017 में उन्होंने वापसी की थी। ध्यातव्य है कि मारिया शारापोवा वह पहली खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 5 बार ग्रैंड स्लैम चैंपियनशिप जीती है।


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