इन्फोग्राफिक्स
इन्फोग्राफिक्स
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
GM सरसों
प्रिलिम्स के लिये:धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH-11), बार्नेज/बारस्टार सिस्टम, ब्रोंकाइटिस, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC), BT कपास मेन्स के लिये:GM फसलों और धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH-11) का महत्त्व |
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में खेत में जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) सरसों धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH-11) का परीक्षण किया गया और इसे अधिक उत्पादक पाया गया।
- DMH-11, मधुमक्खियों के प्राकृतिक परागण को नकारात्मक रूप से प्रभावित नही करता है|
आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें:
- GM फसलें उन पौधों से प्राप्त होती हैं जिनके जीन कृत्रिम रूप से संशोधित किये जातें हैं, आमतौर इसमें किसी अन्य फसल के आनुवंशिक गुणों जैसे- उपज में वृद्धि, खरपतवार के प्रति सहिष्णुता, रोग या सूखे से प्रतिरोध या बेहतर पोषण मूल्य का समामेलन किया जा सके।
GM सरसों:
- धारा सरसों हाइब्रिड (DMH-11) एक स्वदेशी रूप से विकसित ट्रांसजेनिक सरसों है। यह हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) सरसों का आनुवंशिक तौर पर संशोधित रूप है।
- DMH-11 भारतीय सरसों की किस्म 'वरुण' और पूर्वी यूरोपीय 'अर्ली हीरा-2' सरसों के बीच संकरण का परिणाम है।
- इसमें दो एलियन जीन ('बार्नेज' और 'बारस्टार') होते हैं जो बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स नामक मिट्टी के जीवाणु से आइसोलेट होते हैं एवं उच्च उपज वाली वाणिज्यिक सरसों की संकर प्रजाति विकसित करने में सहायक हैं।
- वरुण में बार्नेज अस्थायी बाँझपन की स्थिति उत्पन्न करता है जिसके कारण यह स्वाभाविक रूप से स्व-परागण नहीं कर सकता है। अर्ली हीरा-2 में बरस्टार बार्नेज के प्रभाव को रोकता है जिससे बीज उत्पन्न होते हैं।
- DMH-11 ने राष्ट्रीय जाँच की तुलना में लगभग 28% और क्षेत्रीय जाँचों की तुलना में 37% अधिक उपज प्रदर्शित की है। इसके उपयोग को GEAC द्वारा अनुमोदित किया जा चुका है।
- "बार जीन" संकर बीज की आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखता है।
बार्नेज/बारस्टार प्रणाली की आवश्यकता:
- संकर बीज उत्पादन के लिये कुशल नर बंध्यता और उर्वरता बहाली प्रणाली की आवश्यकता होती है।
- सरसों में वर्तमान में उपलब्ध पारंपरिक साइटोप्लाज्मिक -जेनेटिक नर बंध्यता प्रणाली में कुछ पर्यावरणीय परिस्थितियों में बंध्यता के टूटने की सीमाएँ हैं जिससे बीज की शुद्धता कम हो जाती है।
- आनुवंशिक रूप से तैयार की गई बार्नेज/बारस्टार प्रणाली सरसों में संकर बीज उत्पादन के लिये एक कुशल और मज़बूत वैकल्पिक विधि प्रदान करती है।
- भारत में फसलीय पौधों के आनुवंशिक परिवर्तन के लिये केंद्र (CGMCP) ने बार्नेज/बारस्टार प्रणाली में कुछ बदलावों के साथ एक सफल प्रयास किया है जिसके परिणामस्वरूप जीएम सरसों हाइब्रिड एमएच-11 का विकास संभव हो सका, जिसमें वर्ष 2008 से 2016 के दौरान आवश्यक विनियामक परीक्षण प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
क्यों आवश्यक है जीएम सरसों?
- घरेलू मांग को पूरा करने के लिये भारत का खाद्य तेलों का आयात लगातार बढ़ रहा है। यह अंततः विदेशी मुद्रा में कमी का कारण बनता है। जीएम सरसों कृषि-आयात पर विदेशी मुद्रा निकासी को कम करने हेतु आवश्यक है।
- भारत में तिलहनी फसलों अर्थात् सोयाबीन, रेपसीड सरसों, मूँगफली, तिल, सूरजमुखी, कुसुम और अलसी की उत्पादकता इन फसलों की वैश्विक उत्पादकता की तुलना में बहुत कम है।
- आनुवंशिक रूप से विविध बीजों के संकरण से बढ़ी हुई उपज और अनुकूलन के साथ संकर प्रजाति उत्पन्न होती है।
DMH-11 संबंधी सुरक्षा चिंताएँ:
- तकनीक के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले तीन जीनों- बार्नेज, बारस्टार और बार की सुरक्षा पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
- निर्धारित दिशा-निर्देशों और लागू नियमों के अनुसार मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन करने के लिये तीन वर्षों (BRL-I के दो वर्ष तथा BRL-II का एक वर्ष) के फील्ड परीक्षण किये गए हैं।
- यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि जीएम सरसों की विषाक्तता, एलर्जी, संरचनागत विश्लेषण, क्षेत्र परीक्षण और पर्यावरण सुरक्षा अध्ययनों पर व्यापक शोध से पता चला है कि वे भोजन तथा फीड के उपयोग के साथ-साथ उत्पादन के लिये भी सुरक्षित हैं।
- DMH-11 में "बार जीन" होता है जो शाकनाशी सहिष्णुता के लिये ज़िम्मेदार होता है। शाकनाशी सहिष्णुता के संबंध में "बार जीन" की प्रभावशीलता सवालों के घेरे में है।
आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का महत्त्व
- आनुवंशिक रूप से विविध पौधों के संकरण से उपज और अनुकूलन के साथ संकर प्रजाति उत्पन्न होती है। इस प्रक्रिया को हाइब्रिड विगोरोथेरोसिस के रूप में जाना जाता है जिसका चावल, मक्का, बाजरा, सूरजमुखी और कई सब्जियों आदि फसलों में व्यापक रूप से उपयोग किया गया है।
- यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित है कि सामान्य रूप से संकर फसलों में पारंपरिक किस्मों की तुलना में 20-25% अधिक उपज मिलती हैं।
- देश में रेपसीड सरसों की उत्पादकता बढ़ाने में हाइब्रिड तकनीक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. कीटों के प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: C व्याख्या:
Q. बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया गया है? (a) फसल पौधों का क्लोनल प्रवर्द्धन (b) आनुवंशिक रूप से संशोधित फसली पौधों का विकास (c) पादप वृद्धिकर पदार्थों का उत्पादन (d) जैव उर्वरकों का उत्पादन उत्तर: B व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. किसानों के जीवन स्तर को सुधारने में जैव प्रौद्योगिकी कैसे मदद कर सकती है? (2019) |
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
शराब पर प्रतिबंध
प्रिलिम्स के लिये:महात्मा गांधी, शराब, अनुच्छेद 47, DPSP, सातवीं अनुसूची मेन्स के लिये:शराबबंदी के फायदे और नुकसान, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में बिहार में हुई एक ज़हरीली शराब त्रासदी ने कई लोगों की जान ले ली और कई अन्य गंभीर रूप से बीमार व अंधे हो गए।
भारत में शराबबंदी की पृष्ठभूमि:
- भारत में शराबबंदी के प्रयास महात्मा गांधी की सोच से प्रभावित हुए हैं, जिन्होंने शराब के सेवन को बुराई से ज़्यादा एक बीमारी के रूप में देखा।
- भारत की स्वतंत्रता के बाद गांधीवादी शराब बंदी के लिये प्रयास करते रहे हैं।
- इन प्रयासों के कारण संविधान में अनुच्छेद 47 को शामिल किया गया।
- भारत के कई राज्यों ने शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है।
- उदाहरण के लिये हरियाणा ने मद्यनिषेध के कई प्रयास किये लेकिन अवैध आसवन और अवैध शराब व्यापार को नियंत्रित न कर पाने के कारण उसे इस नीति को छोड़ने के लिये बाध्य होना पड़ा, इसके परिणामस्वरूप कई मौतें भी हुईं।
- गुजरात में 1 मई, 1960 से शराबबंदी लागू है, लेकिन कालाबाज़ारी के ज़रिये शराब का कारोबार जारी है।
- बिहार में अप्रैल 2016 में लागू शराबबंदी, जो शुरुआत में सफल होती दिखी और कुछ सामाजिक लाभ भी देती दिखी।
- हालाँकि अवैध शराब के सेवन से हुई कई मौतों के बाद यह नीति असफल होती दिख रही है।
- वर्तमान में पाँच राज्यों (बिहार, गुजरात, लक्षद्वीप, नगालैंड और मिज़ोरम) में पूर्ण शराबबंदी और कुछ में आंशिक शराबबंदी लागू है।
शराब के संबंध में भारतीय संविधान में प्रावधान:
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (अनुच्छेद 47):
- इसमें उल्लेख किया गया है कि राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये कदम उठाएगा और नशीले पेय तथा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक नशीले पदार्थों के सेवन पर रोक लगाएगा।
- हालाँकि DPSPs कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं, वे लक्ष्य निर्धारित करते हैं कि राज्य को ऐसी स्थितियाँ स्थापित करने की आकांक्षा रखनी चाहिये जिसके तहत नागरिक एक अच्छा जीवन जी सकें।
- इस प्रकार भारतीय संविधान शराब को एक अवांछनीय बुराई के रूप में देखता है जिसे राज्यों द्वारा नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
- सातवीं अनुसूची:
- संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, शराब एक राज्य का विषय है, यानी राज्य विधानसभाओं के पास इसके बारे में कानूनों का मसौदा तैयार करने का अधिकार और ज़िम्मेदारी है, जिसमें "मादक पदार्थ शराब का उत्पादन, निर्माण, कब्ज़ा, परिवहन, खरीद एवं बिक्री" शामिल है।
- इस प्रकार शराबबंदी और निजी बिक्री के बीच पूरे स्पेक्ट्रम में आने वाले शराब के संबंध में कानून सभी राज्यों में अलग-अलग हैं।
सभी राज्यों द्वारा शराब पर प्रतिबंध न लगाए जाने का कारण:
- संविधान शराब पर प्रतिबंध को एक लक्ष्य के रूप में निर्धारित करता है फिर भी अधिकांश राज्यों के लिये शराब पर प्रतिबंध लगाना बहुत मुश्किल है।
- यह मुख्य रूप से इसलिये है क्योंकि शराब से प्राप्त राजस्व को नज़रअंदाज करना आसान नहीं है और इसने राज्य सरकारों के राजस्व में लगातार बड़े हिस्से का योगदान दिया है।
- उदाहरण के लिये महाराष्ट्र राज्य में शराब से प्राप्त राजस्व अप्रैल 2020 में (देश भर में कोविड लॉकडाउन के दौरान) 11,000 करोड़ रुपए का था, जबकि मार्च में यह 17,000 करोड़ रुपए था।
निषेध के फायदे और नुकसान:
- फायदे :
- विभिन्न अध्ययनों ने शराब को घरेलू दुर्व्यवहार या घरेलू हिंसा से जोड़ने के साक्ष्य प्रदान किये हैं।
- बिहार का मामला: महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर (प्रति 100,000 महिला आबादी) और घटना (पूर्ण संख्या) दोनों के संदर्भ में स्पष्ट रूप से गिरावट आई है।
- विभिन्न अध्ययनों ने शराब को घरेलू दुर्व्यवहार या घरेलू हिंसा से जोड़ने के साक्ष्य प्रदान किये हैं।
- नुकसान:
- संगठित अपराध समूहों को मज़बूत करना:
- निषेध एक संपन्न भूमिगत अर्थव्यवस्था के लिये अवसर प्रदान करता है जो राज्य के नियामक ढाँचे के बाहर शराब वितरित करता है।
- यह संगठित अपराध समूहों (या माफिया) को मज़बूत करने से लेकर नकली शराब के वितरण तक की समस्याएँ उत्पन्न करता है।
- बिहार के मामले में यह देखा गया था कि शराबबंदी लागू होने के एक वर्ष बाद मादक द्रव्यों के सेवन में वृद्धि हुई थी।
- सरकार ने शराब को और अधिक दुर्गम बना दिया फिर भी इसे पूरी तरह से प्रचलन से बाहर करना असंभव है।
- निषेध एक संपन्न भूमिगत अर्थव्यवस्था के लिये अवसर प्रदान करता है जो राज्य के नियामक ढाँचे के बाहर शराब वितरित करता है।
- समाज के गरीब वर्गों पर प्रभाव:
- मद्यनिषेध समाज के गरीब वर्गों को असमान रूप से प्रभावित करता है, उच्च वर्ग अभी भी महँगी (और सुरक्षित) शराब खरीदने में सक्षम हैं।
- बिहार में इसके निषेध कानूनों के तहत दर्ज अधिकांश मामले अवैध या निम्न गुणवत्ता वाली शराब की खपत से संबंधित हैं।
- मद्यनिषेध समाज के गरीब वर्गों को असमान रूप से प्रभावित करता है, उच्च वर्ग अभी भी महँगी (और सुरक्षित) शराब खरीदने में सक्षम हैं।
- न्यायपालिका पर बोझ:
- बिहार ने अप्रैल 2016 में पूर्ण शराबबंदी लागू की थी। हालाँकि इससे निश्चित रूप से शराब की खपत में कमी आई है, लेकिन संबंधित सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक लागत शराबबंदी के लाभ को सही ठहराने के लिये बहुत अधिक रही है। शराबबंदी ने न्यायिक प्रशासन को पंगु बना दिया।
- पूर्व सीजेआई एन.वी. रमना ने कहा था कि बिहार में शराबबंदी जैसे निर्णयों ने न्यायालयों पर भारी बोझ डाला है। वर्ष 2021 तक न्यायालयों में शराब प्रतिबंध से संबंधित तीन लाख मामले लंबित थे।
- बिहार ने अप्रैल 2016 में पूर्ण शराबबंदी लागू की थी। हालाँकि इससे निश्चित रूप से शराब की खपत में कमी आई है, लेकिन संबंधित सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक लागत शराबबंदी के लाभ को सही ठहराने के लिये बहुत अधिक रही है। शराबबंदी ने न्यायिक प्रशासन को पंगु बना दिया।
- संगठित अपराध समूहों को मज़बूत करना:
आगे की राह
- एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
- सार्वजनिक स्वास्थ्य की आवश्यकताओं से समझौता किये बिना शराब उत्पादन और बिक्री के विनियमन को एकीकृत करने वाले सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- एक प्रभावी और स्थायी शराब नीति का लक्ष्य कई हितधारकों, जैसे- महिला समूहों और विक्रेताओं के बीच समन्वित कार्रवाई के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
- शराब का विनियमन:
- विनियमन पक्ष में शराब पीकर गाड़ी चलाने और शराब के विज्ञापनों पर नियमों को कड़ा किया जा सकता है तथा अत्यधिक शराब पीने के खतरों संबंधी लेबलिंग को अनिवार्य किया जा सकता है।
- विकसित देशों ने अत्यधिक शराब के सेवन के परिणामों को देखते हुए लोगों को शिक्षित करने हेतु व्यावहारिक परामर्श को अपनाया है। इस तरह के अभियान लोगों को उनकी जीवनशैली के बारे में शिक्षित विकल्प प्रदान करने में मदद करते हैं।
- विनियमन पक्ष में शराब पीकर गाड़ी चलाने और शराब के विज्ञापनों पर नियमों को कड़ा किया जा सकता है तथा अत्यधिक शराब पीने के खतरों संबंधी लेबलिंग को अनिवार्य किया जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
सुशासन दिवस
प्रिलिम्स के लिये:सुशासन दिवस, अटल बिहारी वाजपेयी, भारत छोड़ो आंदोलन मेन्स के लिये:सुशासन और संबंधित चुनौतियाँ, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती (25 दिसंबर) को प्रतिवर्ष सुशासन दिवस (Good Governance Day) के रूप में मनाया जाता है।
सुशासन:
- परिचय:
- ‘शासन’ निर्णय लेने की एवं जिसके द्वारा निर्णय लागू किये जाते हैं, की प्रक्रिया है।
- शासन शब्द का उपयोग कई संदर्भों में किया जा सकता है जैसे कि कॉर्पोरेट प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन, राष्ट्रीय प्रशासन और स्थानीय शासन।
- सुशासन को ‘विकास के लिये देश के आर्थिक एवं सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में शक्ति का प्रयोग करने के तरीके’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
- सुशासन की अवधारणा चाणक्य के युग में भी मौज़ूद थी। उन्होंने अर्थशास्त्र में इसका विस्तार से उल्लेख किया।
- नागरिक केंद्रित प्रशासन सुशासन की नींव पर आधारित होता है।
- सुशासन के 8 सिद्धांत:
- भागीदारी:
- लोगों को वैध संगठनों या प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी राय देने में सक्षम होना चाहिये।
- इसमें पुरुष एवं महिलाएँ, समाज के कमज़ोर वर्ग, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक आदि शामिल हैं।
- भागीदारी का तात्पर्य संघ एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से भी है।
- कानून का शासन:
- कानूनी ढाँचे को निष्पक्ष रूप से लागू किया जाना चाहिये, विशेषकर मानवाधिकार कानूनों के परिप्रेक्ष्य में।
- ‘कानून के शासन’ के बिना राजनीति, मत्स्य न्याय (Matsya Nyaya) के सिद्धांत का पालन करेगी जिसका अर्थ है ताकतवर कमज़ोर पर हावी होगा।
- सहमति उन्मुख:
- सर्वसम्मति उन्मुख निर्णय लेने से यह सुनिश्चित होता है कि भले ही प्रत्येक व्यक्ति, जो वह चाहता है उसे प्राप्त न कर पाए परंतु सभी को सामान्य न्यूनतम संसाधन उपलब्ध कराए जा सकते हैं, जो किसी अन्य के लिये हानिकारक भी नहीं होगा।
- यह एक समुदाय के सर्वोत्तम हितों पर व्यापक आम सहमति को पूरा करने के लिये अलग-अलग हितों की मध्यस्थता करता है।
- भागीदारी और समावेशिता:
- सुशासन एक समतामूलक समाज को बढ़ावा देता है।
- लोगों को अपना जीवन-स्तर सुधारने या उसको बनाए रखने के अवसर प्राप्त होने चाहिये।
- प्रभावशीलता और दक्षता:
- प्रक्रियाओं और संस्थानों को ऐसे परिणाम देने में सक्षम होना चाहिये जो उनके समुदाय की आवश्यकताओं को पूरा करते हों।
- अधिकतम उत्पादन के लिये समुदाय के संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिये।
- उत्तरदायित्व:
- सुशासन का उद्देश्य लोगों की बेहतरी है और यह सरकार द्वारा लोगों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित किये बगैर नहीं किया सकता है।
- सरकारी संस्थानों, निजी क्षेत्रों और नागरिक समाज संगठनों द्वारा सार्वजनिक एवं संस्थागत हितधारकों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- पारदर्शिता:
- सूचनाओं की प्राप्ति आम जनता के लिये सुलभ होनी चाहिये और यह उनके समझने और निगरानी योग्य होनी चाहिये।
- इसका अर्थ मुक्त मीडिया और उन तक सूचना की समग्र पहुँच भी है।
- जवाबदेही:
- संस्थानों और प्रक्रियाओं के तहत उचित समयावधि में सभी हितधारकों को सेवा प्रदान कि जानी चाहिये।
- भागीदारी:
भारत में सुशासन के मार्ग में आने वाली बाधाएँ:
- महिला सशक्तीकरण:
- सरकारी संस्थानों और अन्य संबद्ध क्षेत्रों में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- भ्रष्टाचार:
- भारत में उच्च स्तर के भ्रष्टाचार को शासन की गुणवत्ता के सुधार के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में माना जाता है।
- न्याय में देरी:
- एक नागरिक को समय पर न्याय पाने का अधिकार है, लेकिन कई कारक हैं, जिसके कारण एक सामान्य व्यक्ति को समय पर न्याय नहीं मिलता है। इस तरह के एक कारण के रूप में न्यायालयों में कर्मियों और संबंधित सामग्री की कमी है।
- प्रशासनिक प्रणाली का केंद्रीकरण:
- निचले स्तर की सरकारें केवल तभी कुशलता से कार्य कर सकती हैं जब वे ऐसा करने के लिये सशक्त हों। यह विशेष रूप से पंचायती राज संस्थानों के लिये प्रासंगिक है जो वर्तमान में निधियों की अपर्याप्तता के साथ-साथ संवैधानिक रूप से सौंपे गए कार्यों को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना कर रही हैं।
- राजनीति का अपराधीकरण:
- राजनीतिक प्रक्रिया का अपराधीकरण और राजनेताओं, सिविल सेवकों तथा व्यावसायिक घरानों के बीच साँठगाँठ सार्वजनिक नीति निर्माण और शासन पर बुरा प्रभाव डाल रहा है।
- अन्य चुनौतियाँ:
- पर्यावरण सुरक्षा, सतत् विकास और वैश्वीकरण, उदारीकरण और बाज़ार अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ।
सुशासन में सुधार के लिये भारतीय पहल:
- गुड गवर्नेंस इंडेक्स (GGI):
- GGI को देश में शासन की स्थिति निर्धारित करने के लिये कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है।
- यह राज्य सरकार और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों के प्रभाव का आकलन करता है।
- राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना:
- इसका उद्देश्य "आम आदमी की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये ‘सामान्य सेवा वितरण आउटलेट्स’ के माध्यम से सस्ती कीमत पर सभी सरकारी सेवाओं को स्थानीय स्तर पर सुलभ बनाना और ऐसी सेवाओं की दक्षता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है।"
- सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005:
- यह शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में एक प्रभावी भूमिका निभाता है।
- अन्य पहल: नीति आयोग की स्थापना, मेक इन इंडिया कार्यक्रम, लोकपाल आदि।
अटल बिहारी वाजपेयी:
- अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को ग्वालियर (अब मध्य प्रदेश का एक हिस्सा) में हुआ था।
- उन्होंने वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया जिसने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का अंत कर दिया।
- वर्ष 1947 में वाजपेयी ने दीनदयाल उपाध्याय के समाचार पत्रों के लिये एक पत्रकार के रूप में राष्ट्रधर्म (एक हिंदी मासिक), पांचजन्य (एक हिंदी साप्ताहिक) और दैनिक समाचार पत्रों-स्वदेश और वीर अर्जुन में काम करना शुरू किया। बाद में श्यामा प्रसाद मुखर्जी से प्रभावित होकर वाजपेयी जी वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ में शामिल हो गए।
- वह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे और वर्ष 1996 तथा 1999 में दो बार इस पद के लिये चुने गए थे।
- एक सांसद के रूप में वाजपेयी को वर्ष 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद के रूप में पंडित गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो उन्हें "सभी सांसदों के लिये एक रोल मॉडल” के रूप में परिभाषित करता है।
- उन्हें वर्ष 2015 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से और वर्ष 1994 में दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. विभिन्न स्तरों पर सरकारी प्रणाली की प्रभावशीलता और शासन प्रणाली में लोगों की भागीदारी अन्योन्याश्रित हैं ”। भारत के संदर्भ में उनके संबंधों की चर्चा कीजिये। (2016) प्रश्न. 'शासन', 'सुशासन' और 'नैतिक शासन' शब्दों से आप क्या समझते हैं? (2016) |
स्रोत: पी.आई.बी.
नीतिशास्त्र
डार्क पैटर्न
प्रिलिम्स के लिये:डार्क पैटर्न मेन्स के लिये:डार्क पैटर्न, कंपनियों द्वारा डार्क पैटर्न का उपयोग, उपयोगकर्त्ताओं को डार्क पैटर्न का नुकसान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में "डार्क पैटर्न" या "भ्रामक पैटर्न" के मामलों में वृद्धि देखी गई है जहाँ इंटरनेट आधारित कंपनियाँ उपयोगकर्त्ताओं को कुछ शर्तों से सहमत होने या कुछ लिंक पर क्लिक करने के लिये बरगला (Tricking) रही हैं।
- ऐसी स्वीकृति और क्लिक के परिणामस्वरूप प्रयोक्ताओं के इनबॉक्स में ऐसे विज्ञापित ईमेल (जिनकी सदस्यता समाप्त करना या हटाने का अनुरोध करना कठिन हो) भेजे जा रहे हैं जिन्हें वे कभी नहीं प्राप्त करना चाहते।
डार्क पैटर्न:
- परिचय:
- डार्क पैटर्न अनैतिक UI/UX (यूज़र इंटरफेस/यूज़र एक्सपीरियंस) इंटरैक्शन हैं, जो यूज़र्स को भ्रमित करने या उनसे कुछ ऐसा करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं, जो वे नहीं करना चाहते।
- बदले में वे डिज़ाइनों को नियोजित करने वाली कंपनी या प्लेटफॉर्म को लाभान्वित करते हैं।
- डार्क पैटर्न का उपयोग करके डिजिटल प्लेटफॉर्म उपयोगकर्त्ता द्वारा उपयोग की जा रही सेवाओं और उनके ब्राउज़िंग अनुभव पर उनके नियंत्रण के बारे में पूरी जानकारी का अधिकार छीन लेते हैं।
- डार्क पैटर्न के उदाहरणों में शामिल हैं- ऑनलाइन सौदों हेतु बेसलेस काउंटडाउन, छोटे प्रिंट में लिखी गई शर्तें, कैंसिलेशन बटन का न दिखना या उस पर क्लिक करने में कठिनाई, विज्ञापनों को समाचार रिपोर्ट या चर्चित व्यक्ति के समर्थन के रूप में प्रदर्शित करना, ऑटो-प्लेइंग वीडियो, लेन-देन पूरा करने हेतु उपयोगकर्त्ताओं को अकाउंट बनाने के लिये मजबूर करना, फ्री ट्रायल समाप्त होने के बाद बिना किसी सूचना के क्रेडिट कार्ड पर चार्ज लगाना और उपयोगकर्त्ताओं के जानने योग्य जानकारी को छिपाने के लिये धूमिल रंगों का उपयोग करना।
- डार्क पैटर्न अनैतिक UI/UX (यूज़र इंटरफेस/यूज़र एक्सपीरियंस) इंटरैक्शन हैं, जो यूज़र्स को भ्रमित करने या उनसे कुछ ऐसा करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं, जो वे नहीं करना चाहते।
- कंपनियों द्वारा उपयोग:
- सोशल मीडिया कंपनियाँ और बिग टेक कंपनियाँ जैसे कि एप्पल, अमेज़न , स्काइप, फेसबुक, लिंक्डइन , माइक्रोसॉफ्टऔर गूगल अपने लाभ के लिये उपयोगकर्त्ता अनुभव को डाउनग्रेड करने हेतु डार्क या भ्रामक पैटर्न का उपयोग करते हैं।
- अमेज़न प्राइम सब्सक्रिप्शन में भ्रामक, बहु-चरणीय कैंसिलेशन प्रक्रिया हेतु अमेज़न को यूरोपीय संघ में आलोचना का सामना करना पड़ा।
- उपभोक्ता नियामकों के साथ संवाद करने के बाद अमेज़न ने वर्ष 2022 में यूरोपीय देशों में ऑनलाइन ग्राहकों के लिये अपनी कैंसिलेशन प्रक्रिया को आसान बनाया।
- सोशल मीडिया में लिंक्डइन (LinkedIn) उपयोगकर्त्ताओं को अक्सर प्रभावशाली लोगों से अवांछित, प्रायोजित संदेश प्राप्त होते हैं।
- इस विकल्प को अक्षम करना कई चरणों के साथ एक कठिन प्रक्रिया है जिसके लिये उपयोगकर्त्ताओं को प्लेटफॉर्म नियंत्रणों से परिचित होने की आवश्यकता होती है।
- इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर डार्क पैटर्न का एक अन्य रूप प्रायोजित वीडियो विज्ञापन हैं, जो उन रील्स और स्टोरी के बीच मौजूद होते हैं जिन्हें देखने का विकल्प उपयोगकर्त्ता चुनते हैं और स्पाँसर्ड का लेबल दिखाई देने से पहले वह वीडियो कुछ सेकंड तक चल चुका होता है।
- गूगल के स्वामित्त्व वाले यूट्यूब उपयोगकर्त्ताओं को यूट्यूब प्रीमियम के लिये साइन-अप करने हेतु कहा गया है, जिसमें अन्य वीडियोज़ को थंबनेल के साथ अंतिम सेकंड के वीडियो के साथ पॉप-अप किया गया है।
- सोशल मीडिया कंपनियाँ और बिग टेक कंपनियाँ जैसे कि एप्पल, अमेज़न , स्काइप, फेसबुक, लिंक्डइन , माइक्रोसॉफ्टऔर गूगल अपने लाभ के लिये उपयोगकर्त्ता अनुभव को डाउनग्रेड करने हेतु डार्क या भ्रामक पैटर्न का उपयोग करते हैं।
- उपयोगकर्त्ताओं को नुकसान:
- डार्क पैटर्न इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के अनुभव को खतरे में डालते हैं और उन्हें बिग टेक फर्मों द्वारा वित्तीय एवं डेटा शोषण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं।
- डार्क पैटर्न उपयोगकर्त्ताओं को भ्रमित करते हैं, ऑनलाइन बाधाएँ पेश करते हैं, सरल कार्यों को समय लेने वाला बनाते हैं, उपयोगकर्त्ताओं को अवांछित सेवाओं/उत्पादों के लिये साइन- अप करवाने व उन्हें अधिक पैसे देने या उनकी इच्छा से अधिक व्यक्तिगत जानकारी साझा करने के लिये मजबूर करते हैं।
आगे की राह
- डार्क और भ्रामक पैटर्न केवल लैपटॉप एवं स्मार्टफोन तक ही सीमित नहीं हैं। संघीय व्यापार आयोग (FTC) की रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि जैसे-जैसे संवर्द्धित वास्तविकता (AR) और आभासी वास्तविकता (VR) प्लेटफॉर्म तथा उपकरणों का उपयोग डार्क पैटर्न में बढ़ता है, वैसे-वैसे उपयोगकर्त्ताओं के इन नए चैनलों का भी अनुसरण करने की संभावना बढ़ती है।
- इंटरनेट उपयोगकर्त्ता जो अपने दैनिक जीवन में डार्क पैटर्न को पहचानने में सक्षम हैं, वे अधिक अनुकूल मंच चुन सकते हैं तथा अपनी पसंद और गोपनीयता के अधिकार का सम्मान करेंगे।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
पर्स सीन फिशिंग
प्रिलिम्स के लिये:12 समुद्री मील, पश्चिमी तट, विशेष आर्थिक क्षेत्र, राज्य विषय। मेन्स के लिये :पर्स सीन फिशिंग तकनीक और इसके लाभ। |
चर्चा में क्यों?
केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि कुछ तटीय राज्यों द्वारा पर्स सीन फिशिंग पर लगाया गया प्रतिबंध, उचित नहीं है।
संबंधित मुद्दे:
- वर्तमान में तमिलनाडु, केरल, पुद्दुचेरी, ओडिशा, दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन और दीव तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के प्रादेशिक जल में 12 समुद्री मील तक पर्स सीन फिशिंग पर प्रतिबंध लागू है।
- जबकि गुजरात, आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक तथा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है।
पर्स सीन फिशिंग:
- परिचय:
- एक पर्स सीन, फ्लोटिंग और लीडलाइन के साथ जाल की एक लंबी दीवार से बना होता है और इसमें गियर के निचले किनारे से पर्स के छल्ले लटके होते हैं, जिसके माध्यम से स्टील के तार या रस्सी से बनी एक पर्स लाइन चलती है जिसमें मछलियाँ फँसती है।
- इस तकनीक का उपयोग भारत के पश्चिमी तटों पर व्यापक रूप से किया जाता है।
- लाभ:
- खुले पानी में पर्स सीन फिशिंग को मछली पकड़ने का एक कुशल रूप माना जाता है।
- इसका सीबेड से कोई संपर्क नहीं है और जिसके कारण यह मछली पकड़ने का एक निम्न स्तर हो सकता है ।
- इसका उपयोग मछली एकत्र करने वाले उपकरणों के आसपास मौजूद होने वाली मछलियों को पकड़ने के लिये भी किया जा सकता है
- इसका उपयोग खुले समुद्र में टूना और मैकेरल जैसी एकल-प्रजाति के पेलाजिक (मिडवाटर) मछली के समूहों को लक्षित करने के लिये किया जाता है।
चिंताएँ:
- कुछ राज्यों में यह तकनीक पश्चिमी तटों पर सार्डिन, मैकेरल, एंकोवी और ट्रेवेली जैसी छोटी, पीलाजिक शोलिंग मछलियों के घटते स्टॉक के बारे में चिंताओं से जुड़ी है।
- वैज्ञानिकों का तर्क है कि पिछले दस वर्षों में ऐसी मछलियों की कमी के लिये अल नीनो घटना सहित जलवायु परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार हैं।
- हालाँकि पारंपरिक तरीकों का उपयोग करने वाले मछुआरों ने पर्स सीन फिशिंग को दोषपूर्ण बताया है, अगर प्रतिबंध हटा दिया जाता है तो इन छोटी मछलियों की उपलब्धता में और गिरावट आ सकती है।
- उन्होंने यह भी मांग की है कि चूँकि केंद्र ने प्रतिबंध हटाने का समर्थन किया है, अतः केंद्र को इस पहलू के संदर्भ में विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिये।
- एक बड़ी चिंता सारडाइन मछली की कमी होना है जिसे केरल के लोगों द्वारा बड़े चाव से खाया जाता है ।
- वर्ष 2021 में केरल ने केवल 3,297 टन सारडाइन मछली पकड़ी, जो 2012 में पकड़ी गई 3.9 लाख टन से बहुत कम थी।
- पर्स सीन एक गैर-लक्षित मछली पकड़ने की विधि है और किशोर मछलियों सहित जाल के रास्ते में आने वाली सभी प्रकार की मछलियों को पकड़ता है। अतः यह समुद्री संसाधनों के लिये बहुत हानिकारक है।
बैन के खिलाफ केंद्र सरकार के तर्क?
- केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट पर पर्स सीन फिशिंग पर प्रतिबंध हटाने की सिफारिश की है।
- विशेषज्ञ पैनल ने कहा है कि मछली पकड़ने के इस तरीके के "उपलब्ध सबूतों को देखते हुए अब तक किसी भी गंभीर संसाधन की कमी नहीं हुई है"।
- विशेषज्ञ पैनल ने कुछ शर्तों के अधीन प्रादेशिक जल और विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में मछली पकड़ने के लिये पर्स सीन फिशिंग की सिफारिश की है।
- समिति ने "पर्स सीन फिशिंग पर राष्ट्रीय प्रबंधन योजना" बनाने का भी सुझाव दिया है।
मछली पकड़ने का क्षेत्राधिकार:
- मत्स्यपालन राज्य का विषय है और प्रादेशिक जल में समुद्री मत्स्यपालन के लिये प्रबंधन योजना राज्य का कार्य है।
- राज्य सूची में 61 विषय (मूल रूप से 66 विषय) होते हैं।
- ये स्थानीय महत्त्व के हैं जैसे स्थानीय सरकार, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस, कृषि, वन, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, मत्स्यपालन, शिक्षा, राज्य कर और शुल्क। सामान्य परिस्थितियों में राज्यों के पास राज्य सूची में उल्लिखित विषयों पर कानून बनाने की विशेष शक्ति होती है।