डेली न्यूज़ (26 May, 2020)



उत्तर भारत में ग्रीष्म लहर

प्रीलिम्स के लिये

ग्रीष्म लहर, भारत मौसम विज्ञान विभाग

मेन्स के लिये

स्वास्थ्य पर ग्रीष्म लहर का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में गर्मी का तीव्र प्रकोप देखने को मिल रहा है और राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के कुछ ज़िलों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक हो गया है, जो कि सामान्य तापमान से 5 डिग्री अधिक है।

प्रमुख बिंदु

  • हाल ही में राजस्थान के चुरू (Churu) में तापमान 47 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जबकि उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में यह 46 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
  • गर्मी के तीव्र प्रकोप को देखते हुए राज्य व ज़िला प्रशासन ने आम लोगों को सावधानी बरतने की चेतावनी दी है।
  • तटीय आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र के कई हिस्सों में भी तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया, जिससे इन क्षेत्रों में ग्रीष्म लहर (Heat Wave) की स्थिति पैदा हो गई है।
  • मौसम विशेषज्ञ मानते हैं कि उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में व्याप्त शुष्क उत्तर-पूर्वी हवाएँ इन क्षेत्र में तीव्र गर्मी का एक प्रमुख कारण है। 
  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) ने उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों के लिये ग्रीष्म लहर (Heat Wave) की गंभीर स्थिति में प्रयोग किया जाने वाला ‘रेड अलर्ट’ (Red Alert) जारी किया है। 
  • IMD के अनुसार, दोपहर 1 से शाम 5 बजे के दौरान लोगों को सावधानी बरतने तथा घर से बाहर न निकलने के लिये ‘रेड अलर्ट’ जारी किया गया है, क्योंकि इस दौरान गर्मी की तीव्रता सबसे अधिक होती है।
  • गौरतलब है कि IMD किसी भी मौसम की गंभीरता के आधार पर इस प्रकार की चेतावनी जारी करता है, इसमें ‘ग्रीन अलर्ट’, ‘येलो अलर्ट’, ‘ऑरेंज अलर्ट’ और ‘रेड अलर्ट’ आदि शामिल हैं।

प्रभाव

  • ग्रीष्म लहर (Heat Wave) की चेतावनी ऐसे समय में जारी की गई है जब कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन के बीच देश भर में लाखों प्रवासी मज़दूर अपने गृह राज्यों में वापस जा रहे हैं।
  • ऐसे में इन मज़दूरों के लिये अपने गृह राज्य तक का रास्ता तय करना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है। भीषण गर्मी के अलावा मज़दूरों को आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। 
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत के 23 राज्यों में 73 ग्रीष्म लहर (Heat Wave) देखी गईं थीं, जिसमें तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया था और इसके प्रभाव से लगभग 10 लोगों की मृत्यु हुई हो गई थी।

ग्रीष्म लहर (Heat Wave) का अर्थ?

  • विभिन्न देशों में उनके तापमान के आधार पर ग्रीष्म लहर (Heat Wave) को वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि एक ही अक्षांश पर तापमान में भिन्नता पाई जाती है।
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization-WMO) ने वर्ष 2016 में प्रकाशित अपने दिशा-निर्देशों में तापमान और मानवीय गतिविधियों जैसे कुछ कारकों को ग्रीष्म लहर की तीव्रता के मानक आधार के रूप में चिह्नित किया था।
  • भारत मौसम विज्ञान विभाग ने मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस तापमान को ग्रीष्म लहर के मानक के रूप में निर्धारित किया है।
  • जहाँ सामान्य तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है वहाँ 5 से 6 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर सामान्य तथा 7 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान बढ़ने पर गंभीर ग्रीष्म लहर की घटनाएँ होती हैं।
  • जहाँ सामान्य तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहता है वहाँ पर 4 से 5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाने पर सामान्य ग्रीष्म लहर और 6 डिग्री सेल्सियस से अधिक तामपान बढ़ने पर गंभीर ग्रीष्म लहर की घटनाएँ होती हैं।

स्रोत: द हिंदू


नील नदी पर ‘ग्रैंड रेनेसां डैम’ विवाद

प्रीलिम्स के लिये:

ग्रैंड  रेनेसां डैम, नील नदी

मेन्स के लिये:

ग्रैंड  रेनेसां डैम विवाद

चर्चा में क्यों?

इथियोपिया द्वारा नील नदी पर एक ‘मेगा जल विद्युत परियोजना’ का निर्माण किया जा रहा है जिसने नदी के अनुप्रवाह में स्थित देशों यथा- मिस्र तथा इथियोपिया के मध्य ‘जल-युद्ध’ की संभावना को बढ़ा दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • अफ्रीका की सबसे लंबी ‘नील नदी’ के जल बंटवारे को लेकर अफ्रीकी महाद्वीप के कई देशों के मध्य एक दशक से अधिक समय से विवाद चल रहा है।
  • वर्ष 2020 के अंत में इथियोपिया और मिस्र नील नदी पर जलविद्युत परियोजना के भविष्य को लेकर वाशिंगटन डीसी में बातचीत शुरू करने जा रहे हैं।

नील नदी:

  • नील नदी विश्व की सबसे लंबी नदी है। यह भूमध्य रेखा के दक्षिण से निकलकर उत्तर पूर्वी अफ्रीका से होकर भूमध्य सागर में गिरती है। इसकी लंबाई लगभग 4,132 मील (6,650 किलोमीटर) है। नदी के अपवाह बेसिन का क्षेत्रफल लगभग 1,293,000 वर्ग मील (3,349,000 वर्ग किलोमीटर) है। 
  • नील नदी बेसिन तंज़ानिया, बुरुंडी, रवांडा, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, युगांडा, दक्षिण सूडान, इथियोपिया, सूडान और मिस्र में विस्तृत है।
  • नील नदी की दो प्रमुख सहायक नदियाँ- व्हाइट नील और ब्लू नील हैं। व्हाइट नील नदी का उद्गम मध्य अफ्रीका के ‘महान अफ्रीकी झील’ (African Great Lakes) क्षेत्र से होता है जबकि ब्लू नील का उद्गम इथियोपिया की 'लेक टाना' से होता है। 

Ethiopia-Nile-dam

नदी विवाद का कारण:

  • व्हाइट नील नदी मुख्यत: युगांडा, दक्षिण सूडान, सूडान और मिस्र से होकर बहती है। जबकि ब्लू नील नदी का अपवाह बेसिन पूर्वी अफ्रीका के देशों यथा- इथियोपिया तथा सूडान  आदि में विस्तृत है। 
  • ब्लू नील नदी जो नील नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, इथियोपिया से होकर बहती है। इथियोपिया द्वारा वर्ष 2011 में ब्लू नील नदी पर बांध निर्माण का कार्य शुरू किया गया था जिस पर मिस्र द्वारा आपत्ति जताई गई थी ।
  • इथियोपिया द्वारा नील नदी पर बनाया जा रहा 'ग्रैंड रेनेसां डैम' (Grand Rennaissance Dam) अफ्रीका का सबसे बड़ा बांध होगा।
  • सूडान ने भी इस परियोजना पर आपत्ति दर्ज करवाई है।
  • आवश्यक जल स्रोत के रूप में अफ्रीका में नील नदी का बहुत अधिक महत्त्व है, अत: वर्तमान नदी विवाद दोनों राष्ट्रों (इथियोपिया और मिस्र) के बीच पूर्ण संघर्ष में भी बदल सकता है। अत: अमेरिका ने इस नदी विवाद में मध्यस्थता करने के लिये कदम बढ़ाया है।

ग्रैंड रेनेसां डैम (Grand Rennaissance Dam):

  • यह अफ्रीका की सबसे बड़ी बांध परियोजना है जिसका नील नदी पर स्थायी प्रभाव पड़ेगा।
  • बांध का निर्माण इथियोपिया के तराई क्षेत्रों में ब्लू नील नदी पर किया गया है। 

क्यों है संघर्ष की संभावना?

  • नील नदी पर इथियोपिया द्वारा बनाई जा रही मेगा परियोजना के कारण, इथियोपिया नील नदी के जल को नियंत्रित कर सकता है। यह मिस्र के लिये चिंता का विषय है क्योंकि मिस्र नील नदी के अनुप्रवाह में स्थित है।
  • मिस्र ने परियोजना पर आपत्ति जताई है तथा इस परियोजना के लिये एक लंबी समयावधि प्रस्तावित की है ताकि नील नदी के जल स्तर में अचानक तीव्र कमी देखने को न मिले।
  •  पिछले चार वर्षों में मिस्र, इथियोपिया और सूडान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता का आयोजन किया जा रहा है परंतु तीनों देश किसी समझौते तक पहुँचने में असमर्थ रहे हैं।

इथियोपिया के लिये बांध का महत्त्व:

  • इथियोपिया का मानना है कि बाँध निर्माण से लगभग 6,000 मेगावाट विद्युत उत्पन्न की जा सकेगी। इथियोपिया की 65% आबादी वर्तमान में विद्युत की कमी का सामना कर रही है। बांध निर्माण से देश के विनिर्माण उद्योग की मदद मिलेगी तथा पड़ोसी देशों को विद्युत की आपूर्ति करने से राजस्व में वृद्धि की संभावना है। 

नदी जल विवाद की वर्तमान स्थिति:

  • हाल ही में मिस्र ने इथियोपिया और सूडान के साथ फिर से वार्ता को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई है। मिस्र का मानना है कि वह किसी भी समझौते पर सहमति बनाते समय इथियोपिया और सूडान के हितों को भी ध्यान में रखेगा।
  • इथियोपिया का मानना है कि उसे बांध को जल से भरने के लिये मिस्र की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। मिस्र ने 1 मई को ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ को लिखा कि बांध निर्माण से मिस्र के आम नागरिकों की खाद्य एवं  जल सुरक्षा तथा आजीविका प्रभावित होगी। मिस्र ने यह भी कहा कि इस बांध निर्माण के कारण दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष भी हो सकता है।

आगे की राह:

  • अमेरिका के नदी जल विवाद पर मध्यस्था करने पर सहमति जताई है। अत: अफ्रीकी देशों को चाहिये की वे अमेरिका के नेतृत्त्व में या बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के स्वयं सभी हितधारक देशों को एक साथ मिलकर मामले को सुलझाने का प्रयास कर करना चाहिये। इसके लिये ‘नील बेसिन पहल’ जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों का उपयोग किया जा सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अमेरिका की ‘ओपन स्काई संधि’ से अलग होने की चेतावनी

प्रीलिम्स के लिये

ओपन स्काई संधि, नाटो

मेन्स के लिये

वैश्विक शांति और अंतर्राष्ट्रीय समझौते, अमेरिका-रूस तनाव  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने अमेरिका को ‘ओपन स्काई संधि’ (Open Skies Treaty-OST) से अलग करने  की चेतावनी दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • अमेरिकी राज्य सचिव के अनुसार, अमेरिका के इस फैसले का कारण रूस द्वारा लगातार खुले तौर पर इस संधि का उल्लंघन किया जाना है।
  • ध्यातव्य है कि यह संधि सदस्य देशों को एक दूसरे देश की सीमा में सैन्य गतिविधियों की जाँच के लिये निगरानी उड़ानों की अनुमति देती है, हालाँकि निगरानी उड़ान शुरू करने से एक निर्धारित अवधि के पहले संबंधित देश को इसकी सूचना देना अनिवार्य है।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2019 में अमेरिका ने पश्चिमी देशों और रूस के बीच हुई मध्यम दूरी परमाणु बल संधि (Intermediate-Range Nuclear Forces-INF Treaty) से स्वयं को अलग कर लिया था। 
  • हालाँकि रूस के उप विदेश मंत्री ने कहा कि जब तक यह संधि (OST) अस्तित्त्व में है वे संधि में निर्धारित अपने अधिकारों और दायित्त्वों का पालन करते रहेंगे।

संधि से अलग होने का कारण: 

  • अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार, अमेरिका और रूस के संबंध बहुत अच्छे हैं परंतु जब तक रूस इस संधि (OST) का सही से पालन नहीं करता हम इस संधि से बाहर रहेंगे। उन्होंने कहा कि इस बात की भी संभावना है कि हम एक नई संधि स्थापित करें या इस संधि में कुछ संशोधन कर इसे पुनः लागू कर लिया जाए।  
    • हालाँकि वर्तमान में अमेरिका इस संधि से अलग होने की बात कर रहा है परंतु रूस की अपेक्षा अमेरिका ने ही इस संधि ज़्यादा लाभ उठाया है।   
    • एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2002-16 के बीच अमेरिका ने रूस की सीमा में 196 निगरानी उड़ानें भरी जबकि इसी दौरान रूस के द्वारा अमेरिकी सीमा में केवल 71 निगरानी उड़ानों का संचालन किया गया। 
  • उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के अधिकारियों ने भी रूस पर अपने कुछ क्षेत्रों में निगरानी उड़ान की अनुमति न देने का आरोप लगाया है।  

प्रभाव: 

  • पिछले वर्ष INF संधि से अलग होने और वर्तमान में OST से अलग होने की चर्चा के बाद इस बात की संभावना बढ़ गई है कि अमेरिका फरवरी 2021 में समाप्त हो रही ‘नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि’ का पुनः नवीनीकरण नहीं करना चाहेगा। 
  • अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने इसी वर्ष अमेरिकी काॅन्ग्रेस के समक्ष चीन की बढती परमाणु शक्ति के संदर्भ में अपनी चिंता ज़ाहिर की थी।
    • अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने कहा कि यदि चीन को शामिल किये बगैर  ‘नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि’ {New Strategic Arms Reduction Treaty-(START)} ऐसे ही जारी रहती है तो चीन अपने परमाणु हथियारों को दो गुना कर सकता है।
    • ‘नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि’ को फरवरी 2011 में रूस और अमेरिका के बीच लागू किया गया था। इस संधि का उद्देश्य दोनों देशों में परमाणु और गैर-परमाणु हथियारों के विस्तार पर अंकुश लगाना था।   
    • एक अन्य अमेरिकी रक्षा अधिकारी के अनुसार, ‘नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि में सत्यापन से संबंधित गंभीर कमियाँ थी और अमेरिका हथियार नियंत्रण की एक नई व्यवस्था स्थापित करने का इच्छुक है, जिसमें चीन को भी शामिल किया जा सके। 
  • हाल के कुछ वर्षों में रूस और यूक्रेन के सीमावर्ती क्षेत्रों में संघर्ष के मामलों में वृद्धि देखी गई है, ऐसे में  यदि इस संधि को समाप्त किया जाता है तो इससे सुरक्षा की दृष्टि से यूरोप के कुछ देशों की चिंताएँ बढ़ सकती हैं।

आगे की राह:     

  • OST संधि के माध्यम से न सिर्फ सदस्य देशों के बीच संवाद बढ़ाने और तनाव कम करने में सफलता प्राप्त हुई बल्कि शीत युद्ध के बाद वैश्विक शांति बनाए रखने में भी इस संधि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
  • हाल के बदलते वैश्विक परिवेश में इस संधि की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ी है, ऐसे में आवश्यकता है कि संधि से जुड़े अन्य देशों के सहयोग से रूस और अमेरिका के बीच आपसी मतभेद को दूर कर इस संधि को और अधिक मज़बूत किया जाए।  

‘ओपन स्काई संधि’ (Open Skies Treaty-OST):

  • इस संधि की अवधारणा शीत युद्ध के शुरूआती वर्षों के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइज़नहावर (Dwight Eisenhower) ने प्रस्तुत की थी।
  • सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ‘जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश’ (George H.W. Bush) के प्रशासन के दौरान मार्च 1992 में फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी (Helsinki) में इस संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे।     
  • यह संधि वर्ष 2002 में अमेरिकी राष्ट्रपति ‘जॉर्ज डब्ल्यू. बुश’ (George W. Bush)  के प्रशासन के दौरान प्रभाव में आई थी।
  • इस संधि में 34 हस्ताक्षरकर्त्ता देशों (अमेरिका और रूस सहित) को संधि में शामिल अन्य देशों की सीमाओं में सैन्य गतिविधियों की जाँच के लिये गैर-हथियार वाले निगरानी विमानों की उड़ान की अनुमति देती है।  
  • इस संधि का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच विश्वास को बढ़ाना और परस्पर सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता को मज़बूती प्रदान करना है। 
  • इस संधि के अनुसार, किसी सदस्य देश पर निगरानी विमानों की उड़ान हेतु संबंधित देश को (निगरानी उड़ान के इच्छुक देश द्वारा) कम-से-कम 72 घंटे पूर्व इसकी सूचना दी जानी अनिवार्य है। 
  • संधि की शर्तों के तहत कोई भी सदस्य देश 96 घंटे से अधिक की निगरानी उड़ान की अनुमति देने के लिये बाध्य नहीं होगा।    
  • भारत इस संधि में नहीं शामिल है।    

स्रोत : द हिंदू


गिलोय की बिक्री में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

गिलोय,  प्रधानमंत्री वन धन योजना, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह

मेन्स के लिये:

गिलोय की बिक्री में वृद्धि तथा विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों? 

गिलोय (Giloy) और अन्य उत्पादों का विपणन करने वाली ‘आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था’ (Adivasi Ekatmik Samajik Sanstha) ने हाल के दिनों में काफी प्रगति दर्ज की है। 

प्रमुख बिंदु: 

  • उल्लेखनीय है कि कातकारी समुदाय (Katkari Community) के एक समूह ने  ‘आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था’ के जरिये कातकारी जनजातियों के विभिन्न कार्यों को सुगम बनाने का कार्य आरंभ किया है। 
  • समूह द्वारा स्थानीय बाज़ारों में गिलोय (Giloy) को बेचने का उद्यम आरंभ किया गया है। इस उद्यम से अधिक-से-अधिक जनजातीय समूह इस संस्था के साथ जुड़ रहे हैं।
  • जनजातीय कार्य मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) के भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (TRIFED) द्वारा संचालित प्रधानमंत्री वन धन योजना (Pradhan Mantri Van Dhan Yojana- PMVDY) के तहत इस संस्था को उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं के कारण भी गिलोय की मांग में तेज़ी दर्ज की गई है। 
  • गिलोय की मांग को बढ़ावा देने हेतु एक वेबसाइट भी बनाई गई है जिसके माध्यम से लॉकडाउन की अवधि के दौरान भी ‘गिलोय’ की बिक्री की जा रही है।
  • गिलोय और अन्य वन्य उत्पाद हेतु ‘बैकवार्ड एवं फारवर्ड लिंकेजों’ की स्थापना करने के लिये इस स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups- SHGs) को प्रशिक्षित करने की योजना है।
  • बैकवार्ड लिंकेजों में जनजातीयों को ‘गिलोय से संबंधित कार्य को कैसे किया जाए’ के बारे में  प्रशिक्षित किया जाएगा तथा उन्हें इसके पौधरोपण का तरीका भी सिखाया जाएगा।
  • फारवर्ड लिंकेजों में जनजातीयों को विभिन्न उत्पादों को बनाने हेतु गिलोय को संसाधित करने की विधि का भी  प्रशिक्षण दिया जाएगा जिससे वे उत्पाद का बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकें।

गिलोय (Giloy):

  • आयुर्वेद में गिलोय ‘गुडूची’ नाम से विख्यात है। जिसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
  • गिलोय विभिन्न प्रकार के बुखारों (वायरल बुखार, मलेरिया आदि) तथा मधुमेह रोग के उपचार हेतु उपयोग में लाया जाता है।
  • पाउडर या क्रीम के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है।

उद्देश्य:

  • समूह का उद्देश्य गिलोय को केवल स्थानीय बाज़ारों तथा फार्मा कंपनियों तक सीमित न रख कर डी-मार्ट जैसे बड़े रिटेल चेनों की सहायता से इसको दूर दराज़ के बाज़ारों तक भी ले जाना है। 
  • ‘आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था’ द्वारा किये गए प्रयासों के तहत उत्पाद हेतु बाज़ार का विस्तार करने के साथ ही अन्य वन उत्पादों को बढ़ावा देने हेतु प्रयास भी शामिल हैं। 

विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह

(Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs):

  • आदिवासी समूहों में PVTGs अत्यधिक कमज़ोर हैं। वर्ष 1973 में ढेबर आयोग (Dhebar Commission) ने आदिम जनजाति समूह (Primitive Tribal Groups-PTGs) को एक अलग श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया था ।
  • वर्ष 2006 में भारत सरकार ने आदिम जनजाति समूह का नाम बदलकर विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह कर दिया था।
  • गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs)  द्वारा 75 जनजातीय समूहों को ‘विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 
  • 18 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में ऐसे 75 समूहों की पहचान कर उन्हें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • ‘विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह’ की कुछ बुनियादी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
    • इनमें अधिकतर समरूपता पाई जाती है।
    • इनका शारीरिक कद अपेक्षाकृत अलग होता है।
    • इनकी कोई लिखित भाषा नहीं होती है।

स्रोत: पीआईबी


‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना

प्रीलिम्स के लिये:

मेरा पानी मेरी विरासत योजना, किसान बचाओ-खेती बचाओ अभियान 

मेन्स के लिये:

जल संरक्षण हेतु कृषि को नियंत्रित करने के प्रयास तथा संबद्ध समस्याएँ एवं उनका समाधान 

चर्चा में क्यों?

हरियाणा के किसानों द्वारा राज्य सरकार द्वारा हाल ही में शुरू की गई ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ (Mera Pani Meri Virasat) योजना के विरुद्ध ‘ट्रैक्टर मार्च’ निकाला गया। किसानों द्वारा इस विरोध प्रदर्शन को 'किसान बचाओ-खेती बचाओ' (Kisan Bachao-Kheti Bachao) अभियान नाम दिया गया है।

‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना

(Mera Pani Meri Virasat) Scheme

  • हरियाणा राज्य सरकार द्वारा जल संरक्षण के उद्देश्य से ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ (Mera Pani Meri Virasat) योजना की शुरुआत की गई है।
    • इस योजना के माध्यम से राज्य सरकार पानी की अधिक खपत वाले धान के स्थान पर ऐसी फसलों को प्रोत्साहित करेगी जिनके लिये कम पानी की आवश्यकता होती है। 
    • योजना के तहत, आगामी खरीफ सीजन के दौरान धान के अलावा अन्य वैकल्पिक फसलों की बुवाई करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि के रूप में प्रति एकड़ 7,000 रुपए भी दिये प्रदान किये जाएंगे।

योजना में शामिल क्षेत्र:

  • इस योजना में रतिया, सीवन, गुहला, पिपली, शाहाबाद, बाबैन, इस्माइलाबाद और सिरसा सहित आठ ब्लॉक शामिल हैं। 
    • ये आठ ब्लॉक धान समृद्ध क्षेत्रों में शामिल है जहाँ भूजल स्तर की गहराई 40 मीटर से अधिक है।
  • वर्ष 2019 में इन आठ ब्लॉकों द्वारा कुल 2,06,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की खेती की गई थी।
  • वर्ष 2020 में सरकार का लक्ष्य इन ब्लॉकों के 50% धान क्षेत्र (1,03,000 हेक्टेयर) में धान को मक्का, कपास, बाजरा और दलहन सहित वैकल्पिक फसलों के साथ प्रतिस्थापित करना है। 

किसानों द्वारा योजना के विरोध के कारण:

  • विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों का मत है कि राज्य सरकार को यह तय करने का निर्णय किसानों पर छोड़ देना चाहिये कि वी अपने खेत में कौन-सी फसल फसल उगाएँ।
  • इसके अलावा किसानों का तर्क यह भी है कि मक्का जैसी वैकल्पिक फसल बोने के लिये ब्लॉक के अधिकांश हिस्सों की मिट्टी/मृदा और जलवायु अनुकूल स्थितियाँ विद्यमान नहीं है। 
  • इसके अलावा, सरकार द्वारा दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि भी पर्याप्त नहीं है। 

स्रोत: द हिंदू


पूर्वी एवं पश्चिमी घाटों का संरक्षण

प्रीलिम्स के लिये:

गाडगिल समिति, कस्तूरीरंगन समिति, पारिस्थितकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (ESA), पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट 

मेन्स के लिये:

पूर्वी एवं पश्चिमी घाटों के संरक्षण का मुद्दा

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने 21 मई, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पश्चिमी घाटों से संबंधित ‘पारिस्थितकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र’ (Ecologically Sensitive Area- ESA) की अधिसूचना से जुड़े मामलों के बारे में विचार-विमर्श करने के लिये छह राज्यों अर्थात् केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों, कैबिनेट मंत्रियों और राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ बातचीत की।

प्रमुख बिंदु:

  • इस क्षेत्र के सतत् एवं समावेशी विकास को बरकरार रखते हुए पश्चिमी घाटों की जैव विविधता के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिये भारत सरकार ने डॉ. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कार्यदल का गठन किया था।
  • इस समिति ने सिफारिश की थी कि छह राज्यों- केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में आने वाले भौगोलिक क्षेत्रों को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जा सकता है।

पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र

(Ecologically Sensitive Area- ESA):

  • यह संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर स्थित क्षेत्र होता है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) द्वारा ESAs को अधिसूचित किया जाता है।
  • इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों को शामिल करने वाले संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।

किसी क्षेत्र को ESA घोषित करने का उद्देश्य:

  • कुछ प्रकार के 'शॉक अब्ज़ार्बर' बनाने के इरादे से इन क्षेत्रों के आसपास की गतिविधियों का प्रबंधन एवं नियमन करना।
  • अत्यधिक संरक्षित एवं अपेक्षाकृत कम संरक्षित क्षेत्रों के बीच एक संक्रमण क्षेत्र (Transition Zone) प्रदान करने के लिये।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 3 (2) (v)  जो उद्योगों के संचालन को प्रतिबंधित करता है या कुछ क्षेत्रों में किये जाने वाली प्रक्रियाओं या उद्योगों को संचालित करने हेतु कुछ सुरक्षा उपायों को बनाए रखने के लिये प्रतिबंधित करता है, को प्रभावी करने के लिये।

गाडगिल समिति ने क्या कहा?

  • इसने पारिस्थितिक प्रबंधन के उद्देश्यों के लिये पश्चिमी घाट की सीमाओं को परिभाषित किया। यह सीमा कुल क्षेत्र का 1,29,037 वर्ग किमी. था, जो उत्तर से दक्षिण तक 1.490 किमी. में विस्तृत है।
  • इसने प्रस्तावित किया कि इस पूरे क्षेत्र को ‘पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र’ (ESA) के रूप में नामित किया जाए।
  • साथ ही इस क्षेत्र के भीतर छोटे क्षेत्रों को उनकी मौजूदा स्थिति और खतरे की प्रकृति के आधार पर पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ ) को I, II या III के रूप में पहचाना जाना था।
  • इस समिति ने इस क्षेत्र को लगभग 2,200 ग्रिड में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें से 75% ESZ-I या II के तहत या वन्यजीव अभ्यारण्य या प्राकृतिक उद्यानों के माध्यम से पहले से ही संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत आते हैं।
  • इसके अलावा समिति ने इस क्षेत्र में इन गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये एक पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण बनाए जाने का प्रस्ताव भी दिया।

बाद में कस्तूरीरंगन समिति का गठन क्यों किया गया?

  • गाडगिल समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2011 में प्रस्तुत की थी जिसकी सिफारिशों से छह राज्यों- केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में से कोई भी सहमत नहीं था।
  • तब सरकार ने आगे की दिशा तय करने के लिये कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया, जिसने अप्रैल, 2013 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी।
  • कस्तूरीरंगन की रिपोर्ट गडगिल रिपोर्ट द्वारा सुझाए गए पश्चिमी घाट के 64% क्षेत्र को पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA) के अंतर्गत लाने के बजाय सिर्फ 37% क्षेत्र को इसके अंतर्गत लाने की बात करती है।

कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशें:

  • खनन, उत्खनन और रेत खनन पर प्रतिबंध लगाया जाए।
  • किसी नई ताप विद्युत परियोजना की अनुमति न दी जाए किंतु प्रतिबंधों के साथ पनबिजली परियोजनाओं की अनुमति दी जाए।
  • नए प्रदूषणकारी उद्योगों पर प्रतिबंध लगाया जाए।
  • 20,000 वर्ग मीटर तक के भवन एवं निर्माण परियोजनाओं की अनुमति दी जा सकती है किंतु टाउनशिप पर पूरी तरह से प्रतिबंधित लगाने की बात कही गई है।
  • अतिरिक्त सुरक्षा उपायों के साथ ‘वनों के डायवर्ज़न’ (Forest Diversion) की अनुमति दी जा सकती है।

पश्चिमी घाट का महत्त्व:

  • पश्चिमी घाट ताप्ती नदी से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के 6 राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात में फैला है।
  • पश्चिमी घाट, भारत के सबसे ज़्यादा वर्षण क्षेत्रों में से एक है साथ ही यह भारतीय प्रायद्वीप की जलवायु को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित भी करता है। 
  • प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम पश्चिमी घाट से ही होता है। इसलिये दक्षिण भारत का संपूर्ण अपवाह तंत्र पश्चिमी घाट से ही नियंत्रित होता है।
  • पश्चिमी घाट भारतीय जैव विविधता के सबसे समृद्ध हॉटस्पॉट में से एक है, साथ ही यह कई राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों को भी समावेशित करता है। 
  • यूनेस्को विश्व धरोहर समिति ने इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया है। 

पूर्वी घाट: 

  • पूर्वी घाट की असंबद्ध पहाड़ी श्रृंखलाएँ ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में फैली हुई हैं जो कि अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का उदहारण है।
  • यहाँ 450 से अधिक स्थानिक पौधों की प्रजातियाँ विद्यमान होने के बावजूद भी यह क्षेत्र भारत के सर्वाधिक दोहन किये गए और निम्नीकृत पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है।

स्रोत: पीआईबी 


मधुमक्खी पालन और भारत

प्रीलिम्स के लिये

आत्मनिर्भर भारत अभियान, मधुमक्खी पालन

मेन्स के लिये

मधुमक्खी पालन से संबंधित चुनौतियाँ और सरकार द्वारा इस क्षेत्र के विकास हेतु किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

राष्‍ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation- NCDC) द्वारा आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने के अपने लक्ष्‍य के तहत सरकार मधुमक्खी पालन को भी बढ़ावा दे रही है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत मधुमक्खी पालन के लिये 500 करोड़ रुपए का आवंटन किया है। 
  • केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री के अनुसार, भारत में वर्ष 2005-06 की तुलना में अब शहद उत्पादन 242 प्रतिशत बढ़ गया है, वहीं इसके निर्यात में 265 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • शहद के निर्यात में हो रही बढ़ोतरी इस बात का प्रमाण है कि मधुमक्‍खी पालन वर्ष 2024 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्‍य हासिल करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कारक रहेगा।

भारत और मधुमक्खी पालन

  • सामान्य शब्दों में मधुमक्खी पालन का अभिप्राय मधुमक्खियों को नियंत्रित करने और उन्हें संभालने की मानवीय गतिविधि से होता है।
  • मधुमक्खी पालक वह व्यक्ति होता है जो शहद अथवा अन्य उत्पादों को एकत्रित करने के उद्देश्य से मधुमक्खियों को पालता है।
  • नवीनतम आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत विश्व में शहद के 5 सबसे बड़े उत्पादकों में शामिल है, जबकि वर्ष 2017-18 में शहद उत्‍पादन के मामले में भारत 64.9 हज़ार टन शहद उत्‍पादन के साथ दुनिया में आठवें स्‍थान पर था।

मधुमक्खी पालन क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  • कभी-कभी मधुमक्खी पालन क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के प्रभावस्वरूप मधुमक्खियों के विनाश जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • ध्यातव्य है कि मधुमक्खी खाने वाले पक्षी जलवायु परिवर्तन के कारण सर्दियों में महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में चले जाते हैं, जिसके कारण इन राज्यों के मधुमक्खी पालकों को नुकसान का सामना करना पड़ता है।

इस संबंध में सरकार के प्रयास

  • राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी बोर्ड (National Bee Board) ने राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी पालन एवं मधु मिशन (National Beekeeping and Honey Mission-NBHM) के लिये मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षण हेतु चार माड्यूल (Modules) बनाए गए हैं, जिनके माध्यम से देश में 30 लाख किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है। इन्हें सरकार द्वारा वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है।
    • राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी पालन एवं मधु मिशन (NBHM) एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है, जिसे भारत सरकार द्वारा मुख्य रूप से ‘मीठी क्रांति’ के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन के विकास और समग्र संवर्द्धन के लिये शुरू किया गया है
  • साथ ही सरकार मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गठित की गई समिति की सिफारिशों का भी कार्यान्‍वयन कर रही है। 
  • सरकार ने ‘मीठी क्रांति’ (Sweet Revolution) के तहत ‘हनी मिशन’ (Honey Mission) की भी घोषणा की है, जिसके मुख्यतः चार भाग हैं और इससे किसानों को काफी लाभ प्राप्त होगा। 
    • ‘मीठी क्रांति’ (Sweet Revolution) को राज्य में शहद उत्पादन में वृद्धि पर ज़ोर देने के लिये उठाए गए एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा सकता है, जो किसानों की आय दोगुनी करने में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता हो सकती है।
  • मधुमक्खी पालन का कार्य करके गरीब व्यक्ति भी कम पूंजी में अधिक मुनाफा प्राप्त कर सके इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने मधुमक्खी पालन के लिये 500 करोड़ रुपए का राहत पैकेज देने की घोषणा की है।

मधुमक्‍खी पालन विकास समिति और उसकी सिफारिशें

  • प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा प्रो. देबरॉय की अध्‍यक्षता में मधुमक्‍खी पालन विकास समिति (Beekeeping Development Committee- BDC) का गठन किया गया था।
  • BDC का उद्देश्य भारत में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के नए तौर तरीकों की पहचान करना था जिससे कृषि उत्पादकता, रोज़गार सृजन और पोषण सुरक्षा बढ़ाने तथा जैव विविधता को बनाए रखने में मदद मिल सके।
  • समिति की प्रमुख सिफारिशें-
    • मधुमक्‍खियों को कृषि उत्‍पाद के रूप में देखा जाना चाहिये तथा भूमिहीन मधुमक्‍खी पालकों को किसान का दर्जा दिया जाना चाहिये।
    • मधुमक्खियों की पसंद वाले पौधों को सही स्‍थानों पर लगाना चाहिये तथा ऐसे बागानों का प्रबंधन महिला स्वयं सहायता समूहों को सौंपा जाए।
    • मधुमक्‍खी पालकों को राज्‍य सरकारों द्वारा प्रशिक्षण और विकास की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
    • राष्‍ट्रीय मधुमक्‍खी बोर्ड को संस्थागत रूप दिया जाए तथा कृषि और किसान कल्‍याण मंत्रालय के तहत इसे शहद और परागण बोर्ड का नाम दिया जाए। 
    • शहद सहित मधुमक्खियों से जुड़े अन्‍य उत्‍पादों के संग्रहण, प्रसंस्‍करण और विपणन के लिये राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय स्‍तर पर अवसंरचनाओं का विकास किया जाए।

स्रोत: पी.आई.बी.


प्रवासियों की वास्तविक समय ऑनलाइन निगरानी

प्रीलिम्स के लिये:

भौगोलिक सूचना तंत्र

मेन्स के लिये:

वेब आधारित भौगोलिक सूचना तंत्र का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

'इंडिया ऑब्ज़र्वेटरी' (India Observatory) जो कि एक ओपन-सोर्स डेटाबेस के रूप में कार्य करती है, ने एक 'भौगोलिक सूचना तंत्र' (Geographic Information System- GIS) आधारित डैशबोर्ड का निर्माण किया है जो प्रवासियों की आवाजाही को दर्शाने में सक्षम है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस मंच का निर्माण गैर-लाभकारी संगठन ‘वन पारिस्थितिक सुरक्षा’ (Forest Ecological Security- FES) आनंद, गुजरात के सहयोग से किया गया है, जिसे 'CoAST इंडिया' (Collaboration/Covid Action Support Group) कहा जाता है।
  • यह मंच 55 संगठनों के माध्यम से जमीनी स्तर पर; विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करता है। 

वेब आधारित भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS):

  • वेब आधारित भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) में वेब तथा अन्य परिसंचालनों का उपयोग कर स्थानिक जानकारी का अनुप्रयोग, सूचनाओं को संसाधित एवं प्रसारित किया जाता है। 
  • यह उपयोगकर्त्ताओं को आँकड़ों के एकत्रीकरण, विश्लेषण एवं परिणामों को अधिक से अधिक व्यक्तियों तक प्रसारित करने में मदद करता है तथा नीति निर्माताओं के लिये उपयुक्त आँकड़ों को उपलब्ध कराने में मदद करता है।

प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी में प्रयुक्त GIS में बदलाव :

  • वन पारिस्थितिक सुरक्षा (FES) संगठन मुख्यतः वनों, जल निकायों, संरक्षण आदि पारिस्थितिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है। जो 'उपग्रह आधारित निगरानी' के माध्यम से इनकी निगरानी करता है। 
  • पारिस्थितिक निगरानी के लिये 1,800 से अधिक मापदंडों का उपयोग किया जाता है। FES द्वारा इसी प्रणाली में आवश्यक बदलाव करके प्रवासियों की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग (Real Time Tracking) की जाएगी। 

उत्तर प्रदेश द्वारा प्रवासी श्रमिकों का कौशल मानचित्र:

  • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 25 मई, 2020 को लॉकडाउन के दौरान राज्य में लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिये कौशल मानचित्र को जारी किया गया। 
  • कौशल आधारित मानचित्र का उपयोग करके सरकार इन श्रमिकों को इनके कौशल और अनुभव के अनुसार राज्य में रोज़गार प्रदान करेगी तथा इसके लिये एक प्रवासी आयोग का गठन करेगी।

प्रवासी GIS डैशबोर्ड के मुख्य तत्त्व:

  • प्रवासियों को डैशबोर्ड पर वास्तविक समय निगरानी के लिये चार प्रकार के तत्त्वों की जानकारी होना आवश्यक है: 
    • प्रवासियों और समाज के सुभेद्य लोगों के स्थान की जानकारी; 
    • उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं की पहचान;
    • मार्गों में महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता,
    • गैर-सरकारी संगठन तथा नागरिक समाज संगठन को जोड़ना।

प्रवासी मानचित्रण की कार्यप्रणाली:

  •  COVID-19 महामारी के व्यापक प्रसार के बाद 'रैपिड कम्युनिटी रिस्पॉन्स COVID' (Rapid Community Response to Covid- RCRC) नामक एक समूह का गठन किया गया तथा प्रवसियों की निगरानी की लिये डैशबोर्ड का निर्माण किया गया। 
  • लोगों की आवाजाही, भोजन की आवश्यकता, वित्तीय सहायता, चिकित्सा देखभाल आदि की नियमित सूचना डैशबोर्ड के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है तथा सूचनाओं को नियमित रूप से अद्यतन किया जाता है।
  • 15 अप्रैल को प्रवासियों की आवाजाही को दर्शाने वाले 'प्रवासी मानचित्र' (Migrant Map) कार्य कर रहा है।
  • आँकड़ों का डैशबोर्ड पर मानचित्रण करने के लिये संकटग्रस्त लोगों द्वारा की जाने वाली फोन कॉल का उपयोग किया गया।
  • प्रवास से संबंधित आँकड़ों को सरकारों और छोटे स्थानीय नागरिक समूहों को उपलब्ध कराया जाता है ताकि प्रवासियों को वास्तविक समय पर सहायता उपलब्ध कराई जा सके। 
  • ‘प्रवासी मानचित्र’ के माध्यम से, वास्तविक समय प्राप्त प्रवास संबंधी स्थानिक आँकड़ों की क्षेत्र में उपलब्ध प्रशासनिक सुविधाओं यथा परिवहन, स्वास्थ्य सुविधाओं, वायु परिवहन आदि से मेल किया जाता है तथा आवश्यक प्रशासनिक कदम उठाया जाता है। 

GIS प्रणाली में ओपन-सोर्स डेटा का महत्त्व:

  • ओपन-सोर्स डेटा का महामारी प्रबंधन की दृष्टि से बहुत अधिक महत्त्व है क्योंकि ये आँकड़े स्थानीय रूप से उपलब्ध होते हैं तथा इन आँकड़ों की प्राप्ति के लिये किसी बड़े संगठन या सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • भू-स्थानिक आँकड़ों की सरकार, नागरिक समाज और उद्योग सभी के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। हालाँकि वर्तमान समय में भारत में 'राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण' या 'भारतीय सर्वेक्षण' के पास उपलब्ध आँकड़ों को 'रणनीतिक' दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है तथा ये आँकड़े बड़े पैमाने पर जनता के लिये उपलब्ध नहीं होते है।

निष्कर्ष: 

  • वेब आधारित GIS, स्थानीय सूचना के प्रसार एवं उनकी विशिष्टताओं एवं सम्बद्ध कार्यों के लिये उपयोगी है। प्राकृतिक अनुसंधान स्थानिक आँकड़ों के प्रदर्शन हेतु भारत में अनेक महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग विकसित किये हैं। पारंपरिक रूप में स्थानिक आँकड़ों को GIS आँकड़ों के प्रसार के लिये तैयार किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कांगड़ा चाय

प्रीलिम्स के लिये: 

अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस, कांगड़ा चाय 

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस (21 मई) के अवसर पर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्थित ‘हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Institute of Himalayan Bioresource Technology- IHBT) में आयोजित सेमिनार में वैज्ञानिकों द्वारा इस बात की पुष्टि की गई कि कांगड़ा चाय (Kangra Tea) में ऐसे गुण विद्यमान हैं जो कोरोना वायरस के संक्रमण से प्रभावी रूप से लड़ने में सक्षम हैं

प्रमुख बिंदु:

  • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (The Indian Council of Medical Research- ICMR) द्वारा COVID-19 से लड़ने के लिये संशोधित प्रोटोकॉल में प्रतिरोधक क्षमता में सुधार और उपचार के लिये हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (H ydroxychloroquine- HCQ) के स्थान पर HIV-रोधी दवा के उपयोग को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
  • कांगड़ा चाय के बारे में ही यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि इस चाय में मौजूद रसायन प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाने और कोरोना वायरस संक्रमण को अवरुद्ध करने में HIV-रोधी दवाओं की तुलना में अधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं। 

हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (IHBT):

  • इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा सितंबर, 1942 में एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी।
  • हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा संपूर्ण भारत में CSIR की मौजूदगी में 38 राष्‍ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 दूरस्‍थ केंद्रों, 3 नवोन्‍मेषी कॉम्‍प्‍लेक्‍सों और 5 यूनिटों के सक्रिय नेटवर्क का संचालन किया जा रहा है।

कांगड़ा चाय:

  • कांगड़ा भारत के सबसे छोटे चाय क्षेत्रों में से एक है। कांगड़ा चाय हरी और काली दोनों प्रकार की होती है।
  • काली कांगड़ा चाय स्वाद में मीठी होती है जबकि हरी चाय का स्वाद सुगंधित लकड़ी के समान होता है। 
  • इसका निर्यात पेशावर के रास्ते काबुल और मध्य एशिया में किया जाता है।
  • कांगड़ा चाय को पंजीकृत भौगोलिक संकेतक (GI) प्राप्त है।

कांगड़ा चाय पर वैज्ञानिक प्रयोग: 

  • वैज्ञानिकों द्वारा कंप्यूटर-आधारित मॉडल का उपयोग करते हुए जैविक रूप से सक्रिय 65 रसायनों/पॉलीफेनोल्स का परीक्षण किया गया।
  • ये पॉलीफेनोल्स (Polyphenols), COVID-19 से ग्रस्त मरीजों के इलाज के लिये स्वीकृत HIV रोधी दवाओं की तुलना में अधिक कुशलता एवं व्यावसायिक रूप से एक विशिष्ट वायरल प्रोटीन को बांध सकते हैं।
  • परीक्षण में देखा गया कि ये रसायन उन वायरल प्रोटीनों की गतिविधि को अवरुद्ध करने में सक्षम है, जो मानव कोशिकाओं में वायरस को पनपने हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध कराते है।

कांगड़ा चाय द्वारा निर्मित अन्य उत्पाद:

  • वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) से संबद्ध ‘हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान’ द्वारा अपने प्रौद्योगिकी साझेदारों के साथ मिलकर चाय आधारित प्राकृतिक सुगंधित तेलों से युक्त अल्कोहल हैंड सैनिटाइज़र का उत्पादन व आपूर्ति भी की जा रही है। 
  • IHBT द्वारा चाय के अर्क का उपयोग कर हर्बल साबुन भी बनाया गया है। शोधकर्त्ताओं का ऐसा मानना है कि यह साबुन प्रभावी रूप से फफूंदरोधी, जीवाणुरोधी व विषाणुरोधी गुणों से युक्त है।

स्रोत: पी.आई.बी


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 26 मई, 2020

आभास झा

भारतीय मूल के अर्थशास्त्री आभास झा को विश्व बैंक (World Bank) में दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिये जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन पर कार्यविधि प्रबंधक (Practice Manager) के पद पर नियुक्त किया गया है। उल्लेखनीय है कि आभास झा की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब भारत और बांग्लादेश को चक्रवाती तूफान ‘अम्फान’ के कारण काफी नुकसान का सामना करना पड़ा है। कार्यविधि प्रबंधक के तौर पर आभास झा के अधिकार क्षेत्र में भारत, अफगानिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और मालदीव आदि देश शामिल हैं। कार्यविधि प्रबंधन के तौर पर आभास झा का कार्य उक्त देशों की समस्याओं का सर्वाधिक उपयुक्त समाधान देने हेतु उच्च योग्य पेशेवरों के एक समूह की तैनाती करना और इनका नेतृत्त्व करना है। विश्व बैंक में इस महत्त्वपूर्ण पद को प्राप्त करने वाले आभास झा का संबंध मूल रूप से बिहार की राजधानी पटना से है। आभास झा वर्ष 2001 में विश्व बैंक में शामिल हुए थे और वह बांग्लादेश, भूटान, भारत तथा श्रीलंका के विश्व बैंक कार्यालय में कार्यकारी निदेशक के तौर पर कार्य कर चुके हैं। विश्व बैंक संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) की ऋण प्रदान करने वाली एक विशिष्ट संस्था है, इसका उद्देश्य सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एक वृहद वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल करना तथा विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन के प्रयास करना है। यह नीति सुधार कार्यक्रमों एवं संबंधित परियोजनाओं के लिये ऋण प्रदान करता है। उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक केवल विकासशील देशों को ऋण प्रदान करता है।

क्रिकेट से संबंध व्यापक दिशा-निर्देश

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (International Cricket Council-ICC) ने कोरोनावायरस महामारी के बीच क्रिकेट से संबंधित गतिविधियों को एक बार पुनः शुरू करने को लेकर व्यापक दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इन दिशा-निर्देशों में सुरक्षा मानकों के पालन पर विशेष ध्यान दिया गया है। ICC द्वारा जारी इन दिशा-निर्देशों में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट गतिविधियों को पुनः शुरू करने के लिये प्रमुख चिकित्सा अधिकारियों की नियुक्ति और प्रशिक्षण शिविरों में 14-दिवसीय प्री-मैच आइसोलेशन (अलगाव) की सिफारिश की गई है। ICC के अनुसार, यह चिकित्सा अधिकारी सरकारी निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने और प्रशिक्षण तथा प्रतिस्पर्द्धाओं के दौरान स्वास्थ्य संबंधी नियम लागू कराने हेतु ज़िम्मेदार होगा। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के सुझावों के अनुसार, T20s में लौटने वाले किसी भी गेंदबाज़ को अंतर्राष्ट्रीय मैच में गेंदबाज़ी करने के लिये कम-से-कम 5-6 सप्ताह की तैयारी की आवश्यकता होगी। अनिवार्य प्रशिक्षण के दौरान गेंदबाज़ों को चोट लगने पर टीम को नुकसान न हो इसके लिये ICC ने सभी देशों को ‘बड़े’ समूह के साथ यात्रा करने की सलाह दी है। साथ ही ICC ने प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्द्धाओं के दौरान स्वास्थ्य जाँच की समुचित प्रणाली विकसित करने की भी सिफारिश की है। उल्लेखनीय है कि विश्व भर में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के बाद से ही क्रिकेट समेत के बाद सभी देशों में क्रिकेट गतिविधियाँ पूर्ण रूप से बंद पड़ी हैं।

बलबीर सिंह सीनियर

25 मई, 2020 को प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर का 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। पूर्व हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर का जन्म 10 अक्तूबर, 1924 को पंजाब के एक गाँव में हुआ था। बलबीर सिंह सीनियर भारत के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी थे, जो कि तीन बार ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता टीम के सदस्य रहे थे। बलबीर सिंह सीनियर लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबॉर्न (1956) ओलंपिक में गोल्ड जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे। बलबीर सिंह सीनियर वर्ष 1975 में भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर और चीफ कोच के पद पर भी थे और उनके कोच रहते भारतीय हॉकी टीम ने पुरुष हॉकी विश्वकप भी जीता था। बलबीर सिंह सीनियर को वर्ष 1957 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और यह पहला अवसर था, जब किसी खिलाड़ी को यह सम्मान मिला था। वर्ष 2015 में बलबीर सिंह सीनियर को मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था।  वर्ष 1948 में लंदन ओलंपिक के दौरान अपने पहले अंतर्राष्ट्रीय मैच में बलबीर सिंह सीनियर ने कुल छह गोल किये थे।

विश्व थायराइड दिवस

थायराइड के संबंध में जागरुकता फैलाने और इसके उपचार हेतु लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 25 मई को विश्व थायराइड दिवस (World Thyroid Day) मनाया जाता है। विश्व थायराइड दिवस की शुरुआत वर्ष 2008 में की गई थी। इस दिवस की स्थापना मुख्य रूप से थायराइड के नए उपचारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और शिक्षा तथा रोकथाम कार्यक्रमों की तत्काल आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करने के लिये विश्व स्तर पर अमेरिकन थायराइड एसोसिएशन (American Thyroid Association) और यूरोपीय थायराइड एसोसिएशन (European Thyroid Association) के नेतृत्त्व में चल रहे अभियान के एक हिस्से के रूप में की गई थी। थायराइड ग्रंथि, गर्दन के सामने वाले हिस्से में पाई जाती है। आँकड़ों के अनुसार, प्रत्येक 10वाँ वयस्क हाइपोथायरायडिज्म (Typothyroidism) रोग से ग्रसित है, इस रोग में थायराइड ग्रंथि पर्याप्त थायराइड हार्मोन्स का उत्पादन नहीं कर पाती है।