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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    पूर्वी घाट की अपेक्षा पश्चिमी घाट पर वर्षा अधिक क्यों होती है? पश्चिमी घाट के कर्नाटक भाग पर महाराष्ट्र व केरल भाग की अपेक्षा अधिक वर्षा होने के कारणों की विवेचना करें।

    27 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • पूर्वी घाट की अपेक्षा पश्चिमी घाट पर अधिक वर्षा होने का कारण।
    • पश्चिमी घाट के कर्नाटक भाग पर महाराष्ट्र व केरल भाग की अपेक्षा अधिक वर्षा प्राप्त करने के कारण।

    पश्चिमी घाट प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी भाग पर गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होती है और महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्याकुमारी में समाप्‍त हो जाती है। वहीं पूर्वी घाट प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी भाग पर ओडिशा से तमिलनाडु तक फैला हुआ है।

    हिन्द महासागर से उठने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाएँ दो शाखाओं में विभक्त होती हैं, एक शाखा अरब सागर से होती हुई प्रायद्वीपीय भारत की ओर आगे बढ़ती है, तो दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से आगे बढ़ती है।

    अरब सागर की शाखा प्रायद्वीप के पश्चिमी भाग पर स्थित पश्चिमी घाट से टकराकर ऊपर उठती है तथा पर्वतीय वर्षा करती है। जब ये पवनें पश्चिमी घाट को पार करके दूसरी तरफ नीचे उतरती हैं तो ये गर्म हो जाती हैं, जिससे इनकी आर्द्रता खत्म हो जाती है तथा पश्चिमी घाट के पूर्वी भाग में वर्षा नहीं करती हैं। यह एक वृष्टिछाया प्रदेश है जो कि पूर्वीघाट से संबंधित है।

    इस प्रकार अरब सागर शाखा से पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल पर कई स्थानों पर औसत वार्षिक वर्षा 300 सेमी. से भी अधिक होती है, जबकि इसका पूर्वी ढाल वृष्टिछाया प्रदेश के अंतर्गत आ जाने से बहुत कम वर्षा प्राप्त कर पाता है। पश्चिमी घाट एक सतत् पर्वत  शृंखला है जिसमें हवाएँ आसानी से प्रायद्वीप भारत के आंतरिक भागों में आसानी से नहीं पहुँच पाती हैं इसलिए इन क्षेत्रों में कम वर्षा होती है।

    बंगाल की खाड़ी शाखा की हवाओं का पूर्वी घाट के समानांतर बहने से पूर्वी घाट पर्याप्त वर्षा प्राप्त नहीं कर पाता है। पूर्वी घाट की ऊँचाई पश्चिमी घाट की अपेक्षा कम होने की दशा में भी यह हवाओं को कम मात्रा में रोक पाता है और कम वर्षा प्राप्त करता है।

    इस प्रकार उपरोक्त कारणों की वजह से पश्चिमी घाट पूर्वी घाट की तुलना में अधिक वर्षा प्राप्त करता है।

    अभी हाल ही में भारतीय मौसम विभाग के आँकड़ों के अनुसार यह पाया गया कि पश्चिमी घाट के कर्नाटक भाग द्वारा महाराष्ट्र व केरल भाग की अपेक्षा अधिक वर्षा प्राप्त की जाती है। इसके लिये निम्नलिखित कारण ज़िम्मेदार हैं-

    • पश्चिमी घाट के कर्नाटक भाग में पहाड़ों की स्थलाकृति अधिक चौड़ी है, जबकि महाराष्ट्र भाग में स्थलाकृतियाँ सँकरी हैं। इसमें कर्नाटक भाग में आर्द्र हवाओं को अधिक दूरी तय करनी पड़ती है, जिससे जलकणों को एकत्रित होने का अधिक समय मिल जाता है और वह संगठित होकर वर्षा करते हैं। वहीं महाराष्ट्र भाग में सँकरी पहाड़ी स्थलाकृतियों के कारण हवाएँ कम समय में इन्हें पार कर लेती हैं तथा जल के कण संगठित होकर वर्षा नहीं कर पाते।
    • केरल भाग में पृथक पहाड़ी स्थलाकृतियाँ पाई जाने के कारण हवाएँ उनके बीच से निकल जाती हैं तथा वर्षा कम मात्रा में हो पाती है वहीं, कर्नाटक भाग में संगठित पहाड़ी स्थलाकृतियाँ पाई जाने के कारण हवाएँ निकल नहीं पाती हैं तथा वर्षा करती हैं।
    • कर्नाटक भाग की पहाडि़यों की ढाल मंद है, जबकि महाराष्ट्र व केरल की पहाडि़यों की ढाल तीव्र है। मंद ढाल की दशा में हवाओं के समूह अपनी ऊर्जा व गति दोनों अधिक समय तक बनाए रखते हैं जो कि बादलों के बनने में मदद करते हैं तथा वर्षा को बढ़ावा देते हैं वहीं तीव्र ढाल की दशा में ऐसी क्रियाविधि नहीं पाई जाती है जिससे उन क्षेत्रों में कम वर्षा होती है इत्यादि।

    उपरोक्त कारणों से पश्चिमी घाट के भिन्न-भिन्न भागों पर वर्षा में अंतर देखा जाता है।

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