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डेली न्यूज़

  • 25 Aug, 2020
  • 52 min read
सामाजिक न्याय

दिव्यांग व्यक्तियों के लिये खाद्य सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक वितरण से संबंधित प्रश्न, आत्मनिर्भर भारत पैकेज

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय’ द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सभी पात्र दिव्यांग व्यक्तियों को ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013’ [National Food Security Act (NFSA), 2013] के अंतर्गत शामिल करने का निर्देश जारी किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह निर्देश ‘केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय’ के अंतर्गत संचालित ‘खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग’ द्वारा जारी किया गया है।
  • इसके तहत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि NFSA के तहत सभी पात्र दिव्यांग व्यक्तियों को इस अधिनियम तथा ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ [Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana (PMGKAY)] के प्रावधानों के अनुसार निर्धारित खाद्यान्न प्राप्त हो।
  • ऐसे सभी पात्र व्यक्ति जिन्हें अभी तक यह लाभ नहीं प्राप्त हो रहा है उन्हें पात्रता मानदंड के अनुरूप नए राशन कार्ड जारी करते हुए इसके तहत शामिल किया जाना चाहिये।
  • इसके साथ ही दिव्यांग व्यक्तियों को निर्धारित मानदंडों के अनुरूप राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा निर्धारित प्राथमिकता वाले परिवारों के तहत शामिल किया जाना चाहिये।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की धारा-10 में किसी व्यक्ति को ‘अंत्योदय अन्न योजना’ (Antyodaya Anna Yojana- AAY) के तहत शामिल (योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार) करने और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों के अनुसार शेष घरों को प्राथमिकता वाले घरों के रूप में शामिल करने का प्रावधान है।
    • अंत्योदय अन्न योजना के तहत लाभार्थियों की पहचान के मानदंडों में दिव्यांगता को भी शामिल किया गया है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की धारा-38 के तहत केंद्र सरकार को इस अधिनियम के उपबंधों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु समय-समय पर राज्य सरकारों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने का अधिकार दिया गया है।

लाभ:

  • भारत सरकार द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत पैकेज ऐसे लोगों के लिये है जो NFSA या किसी भी राज्य में सार्वजनिक वितरण योजना के तहत लाभार्थी नहीं हैं।
  • ऐसे में बिना राशन कार्ड वाले दिव्यांग व्यक्ति भी आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत लाभ पाने के पात्र हैं।
  • यह योजना 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगी ऐसे में खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने सभी राज्यों और केंद्रशासित राज्यों से अनुरोध किया है कि बिना राशन कार्ड वाले दिव्यांग व्यक्तियों की पहचान की जाए तथा उन्हें इस योजना का लाभ प्रदान किया जाए।

‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013’ [National Food Security Act (NFSA), 2013]:

  • ‘राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013’ को 10 सितंबर, 2013 को अधिसूचित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये लोगों को वहनीय मूल्‍यों पर अच्‍छी गुणवत्‍ता के खाद्यान्‍न की पर्याप्‍त मात्रा उपलब्‍ध कराते हुए उन्‍हें खाद्य और पौषणिक सुरक्षा प्रदान करना है।
  • इसके तहत ‘लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ (Targeted Public Distribution System- TPDS) के अंतर्गत सब्सिडीयुक्त खाद्यान्‍न प्राप्‍त करने के लिये 75%ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी के कवरेज का प्रावधान है।

लाभ के प्रावधान:

  • इसके तहत पात्र व्यक्तियों को चावल, गेहूं और मोटे अनाज क्रमश: 3, 2 और 1 रूपए प्रति किलोग्राम के मूल्य उपलब्ध कराए जाते हैं।
    • इस मूल्य पर प्रत्येक लाभार्थी प्रतिमाह 5 किलोग्राम खाद्यान्‍न प्राप्त कर सकता है।
  • इसके तहत वर्तमान अंत्‍योदय अन्‍न योजना में शामिल परिवार प्रति माह 35 किलोग्राम खाद्यान्‍न प्राप्त‍ कर सकते हैं।
  • गर्भवती महिलाओं और स्‍तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्‍था के दौरान तथा बच्‍चे के जन्‍म के 6 माह बाद भोजन के अलावा कम से कम 6000 रुपए का मातृत्‍व लाभ प्रदान करने का प्रावधान है।
  • वर्तमान में चंडीगढ़, पुडुचेरी में और दादरा व नगर हवेली में इस अधिनियम के क्रियान्वयन में नकद अंतरण विधि का प्रयोग किया जा रहा है।
  • इसके तहत खाद्य सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में जमा की जाती है और उन्हें खुले बाज़ार से खाद्यान्‍न खरीदने का विकल्‍प दिया जाता है।

‘अंत्योदय अन्न योजना’ (Antyodaya Anna Yojana- AAY):

  • ‘अंत्योदय अन्न योजना’ की शुरुआत दिसंबर 2000 में की गई थी।
  • इस योजना का उद्देश्य ‘गरीबी रेखा से नीचे रह रही आबादी तक खाद्यान्न की कमी को पूरा करना था।
  • शुरुआत में इस योजना के तहत लाभार्थी परिवार को प्रति माह 25 किग्रा. खाद्यान्‍न दिये जाने का प्रावधान था जिसे अप्रैल 2002 में बढ़ाकर 35 किग्रा. कर दिया गया।

स्त्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

मुंबई उपनगरीय रेलवे प्रणाली के क्षमता विस्तार पर समझौता

प्रिलिम्स के लिये

मुंबई उपनगरीय रेलवे प्रणाली, मुंबई शहरी परिवहन परियोजना-III, एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक

मेन्स के लिये

सामाजिक आर्थिक विकास में सार्वजानिक परिवहन विशेषतः रेल परिवहन की भूमिका

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार, महाराष्ट्र सरकार, मुंबई रेलवे विकास निगम और एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) ने मुंबई में उपनगरीय रेलवे प्रणाली की नेटवर्क क्षमता, सेवा गुणवत्ता और सुरक्षा में सुधार के लिये 500 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • मुंबई शहरी परिवहन परियोजना-III यात्रियों को उच्च-कार्बन सड़क परिवहन से दूर ले जाकर कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद करेगी तथा यात्रियों को कुशल एवं सुविधाजनक रेल-आधारित गतिशीलता की ओर ले जाएगी। इसके अलावा, बेहतर सुरक्षा और सेवा की गुणवत्ता का महिला यात्रियों को काफी लाभ मिलेगा।
  • परियोजना की कुल अनुमानित लागत 997 मिलियन डॉलर है, जिसमें से 500 मिलियन डॉलर की राशि एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB), 310 मिलियन डॉलर महाराष्ट्र सरकार और 187 मिलियन डॉलर रेल मंत्रालय द्वारा दी जाएगी।
    • एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) के माध्यम से लिये जा रहे 500 मिलियन डॉलर के ऋण में 5 वर्ष की छूट अवधि है और कुल 30 वर्ष की परिपक्वता अवधि मौजूद है।

लाभ

  • इस परियोजना से मुंबई में उपनगरीय रेलवे प्रणाली की नेटवर्क क्षमता में वृद्धि होने के साथ ही यात्रियों के यात्रा समय और जानलेवा दुर्घटनाओं में कमी आने की उम्मीद है।
  • अनुमान के अनुसार, इस परियोजना के प्राथमिक लाभार्थियों में 22 प्रतिशत महिला यात्री शामिल हैं जो बेहतर सुरक्षा और सेवा की गुणवत्ता से लाभान्वित होंगी।
  • यह परियोजना सड़क आधारित परिवहन की तुलना में तेज़, अधिक विश्वसनीय और उच्च गुणवत्ता वाली परिवहन सेवाएँ प्रदान करके मुंबई की उपनगरीय रेलवे प्रणाली के यात्रियों को बेहतर गतिशीलता, सेवा गुणवत्ता और सुरक्षा प्रदान में सहायता करेगी।
    • उल्लंघन नियंत्रण उपायों की शुरूआत के माध्यम से यात्रियों और जनता को प्रत्यक्ष सुरक्षा लाभ होगा।

आवश्यकता

  • आँकड़ों के अनुसार, मुंबई उपनगरीय रेलवे नेटवर्क प्रति दिन आठ मिलियन यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाता है और यह प्रति वर्ष लगभग 3 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, इस तरह यह दुनिया के कुछ सबसे अधिक भीड़भाड़ वाले शहरों में से एक है।
  • ऐसे में रेल में सुविधाओं की कमी, घटिया स्टेशनों और गंभीर सुरक्षा चिंताओं आदि ने उपयोगकर्त्ताओं के समक्ष एक गंभीर समस्या पैदा की है।
  • आँकड़ों के मुताबिक, तो वर्ष 2002-2012 के बीच, मुंबई उपनगरीय रेलवे नेटवर्क पर 36,152 से अधिक लोगों की मौत (औसतन 9.9 प्रति दिन) हुई और 36,688 लोगों को चोटें आईं।
  • दुर्घटनाओं और मौतों का एक प्रमुख कारण स्टेशनों तथा रेलगाड़ियों में होने वाली भीड़भाड़ के साथ-साथ स्टेशनों पर नियमों का उल्‍लंघन भी है।

मुंबई महानगर क्षेत्र- जनसंख्या का बढ़ता बोझ

  • मुंबई महानगर क्षेत्र (Mumbai Metropolitan Region) 22.8 मिलियन (वर्ष 2011) की आबादी के साथ, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला महानगरीय क्षेत्र है और वर्ष 2031 तक यहाँ की आबादी के 29.3 मिलियन और वर्ष 2041 तक 32.1 मिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • यह जनसंख्या वृद्धि मुंबई के शहरी विस्तार की मुख्‍य संचालक है, जो महाराष्ट्र राज्य को शहरी और बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाने की योजना को प्राथमिकता देने के लिये मजबूर करता है।
  • आँकड़ों के अनुसार, मुंबई में नियमि‍त आवाजाही करने वाले लगभग 86 प्रतिशत लोग सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर हैं हालाँकि, यात्रा के संबंध में बढ़ती मांग के साथ आपूर्ति में उतनी तेज़ी से वृद्धि नहीं हुई है।


एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) के बारे में

  • एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) एक बहुपक्षीय विकास बैंक है जो एशिया में सामाजिक एवं आर्थिक परिणामों को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है।
  • एशियाई इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) ने जनवरी 2016 में अपना कार्य शुरू किया था और वर्तमान में इसके 103 अनुमोदित सदस्य हैं।
  • एशिया और अन्य क्षेत्रों के टिकाऊ बुनियादी ढाँचे और अन्य उत्पादक क्षेत्रों में निवेश करके AIIB लोगों, सेवाओं और बाज़ारों को बेहतर ढंग से जोड़ रहा है, जो भविष्य में अरबों लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा और बेहतर भविष्य का निर्माण करेगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सुपर एप

प्रिलिम्स के लिये:

सुपर एप, कृत्रिम बुद्धिमत्ता

मेन्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी और डेटा सुरक्षा से जुड़े प्रश्न


चर्चा में क्यों?

टाटा समूह द्वारा अगले वर्ष की शुरुआत तक एक ‘सुपर एप’ (Super App) लॉन्च करने की तैयारी की जा रही है। इस सुपर एप को टाटा समूह की नव स्थापित इकाई ‘टाटा डिजिटल’ द्वारा विकसित किये जाने का अनुमान है।

प्रमुख बिंदु:

क्या है सुपर एप?

  • सुपर एप, किसी कंपनी द्वारा विकसित एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसके माध्यम से वह ग्राहकों को एक ही स्थान पर कई प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध कराता है।
  • भौतिक रूप से सुपर एप की तुलना एक शॉपिंग मॉल (Shopping Mall) से की जा सकती है, जहाँ ग्राहकों के लिये कई प्रकार के उत्पाद, सेवाएँ और ब्रांड आदि एक ही स्थान पर उपलब्ध होते हैं।
  • चीन द्वारा विकसित वीचैट (WeChat) एप, सुपर एप का एक उदाहरण है, इसकी शुरुआत एक मैसेजिंग एप (Messaging App) के रूप में हुई थी परंतु धीरे-धीरे इसने भुगतान, टैक्सी, शॉपिंग, फूड ऑर्डर में विस्तार करते हुए एक सुपर एप के रूप में स्वयं को स्थापित किया है।

सुपर एप की अवधारण और इससे जुड़े क्षेत्र:

  • सामान्यतः जिन कंपनियों के पास कई प्रकार के उत्पाद और सेवाएँ होती हैं, वे इन्हें एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने के लिये सुपर एप का प्रयोग करते हैं।
  • सुपर एप की अवधारणा पहले चीन और दक्षिण पूर्वी एशिया में देखी गई, जहाँ वीचैट और ग्रैब (Grab) जैसी कंपनियों ने अपने प्लेटफॉर्म पर सोशल मीडिया और मैसेजिंग के उपभोक्ता ट्रैफिक का लाभ उठाते हुए ग्राहकों को अन्य सेवाएँ उपलब्ध करानी शुरू कर दी, जिससे इनके राजस्व में भी वृद्धि हुई।
  • हालाँकि पश्चिम एशिया में सुपर एप के प्रचलन के संदर्भ में अलग दृष्टिकोण देखने को मिला है।
  • यहाँ पारंपरिक व्यावसायिक समूह जो पहले से ही शॉपिंग मॉल, किराना और मनोरंजन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सक्रिय हैं, वे भी अब डिजिटल संपत्ति के निर्माण पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इन व्यवसायों में दैनिक रूप से आने वाले ग्राहकों की संख्या और उनमें दोबारा खरीद की आवृति बहुत अधिक है तथा एक ऑनलाइन सेवाप्रदाता की दृष्टि से यह किसी भी क्षेत्र सुपर एप की प्रगति/सफलता का प्रमुख आधार है।
  • टाटा समूह द्वारा अपनी उपभोक्ता सेवाओं को एकत्र करने की योजना चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया की प्रौद्योगिकी कंपनियों की तुलना में खाड़ी क्षेत्र के फर्मों/व्यवसायों के अधिक निकट है।

भारत में सुपर एप के विकास से जुड़े संस्थान:

  • भारत में टाटा समूह द्वारा सुपर एप के विकास से पहले ही कुछ कंपनियाँ सुपर एप पारितंत्र (Super App Ecosystem) में सक्रिय हैं।
  • वर्तमान में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के ‘जियो प्लेटफॉर्म द्वारा खरीदारी, वीडियो स्ट्रीमिंग (Video Streaming), भुगतान, क्लाउड स्टोरेज (Cloud Storage), टिकट बुकिंग आदि और अलीबाबा समूह के निवेश वाले पेटीएम (PayTM) एप द्वारा भुगतान, टिकट बुकिंग, खेल, ऑनलाइन शॉपिंग, बैंकिंग, उपभोक्ता वित्त, आदि तथा फ्लिपकार्ट समूह के स्वामित्त्व वाले भुगतान एप ‘फोनपे’ (PhonePe) द्वारा ओला कैब्स, स्विगी, डेकाथलॉन, दिल्ली मेट्रो आदि से अनुबंध कर एक ही एप में इससे जुड़ी सेवाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं।

भारत में सुपर एप की प्रासंगिकता:

  • किसी भी ऐसा देश या क्षेत्र को उस स्थिति में सुपर एप के लिये तैयार माना जा सकता है जब वहाँ की एक बड़ी आबादी इंटरनेट के प्रयोग के लिये डेस्कटॉप कंप्यूटर की अपेक्षा स्मार्टफोन को अधिक प्राथमिकता देती है और वहाँ एप इकोसिस्टम (App Ecosystem) का विकास स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप न हुआ हो।
  • भारत पहले ही ऐसा बड़ा बाज़ार बन चुका है जहाँ पहली बार इंटरनेट का उपयोग करने वाले अधिकांश उपभोक्ता इसका इस्तेमाल अपने फोन के माध्यम से करते हैं, जो सुपर ऐप बनाने में भारतीय कंपनियों की रूचि का सबसे बड़ा कारण है।
  • विभिन्न प्रकार की सेवाओं को एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने से आर्थिक लाभ के साथ ही ऐसे एप कंपनियों को बड़ी मात्रा में ‘उपभोक्ता डेटा’ (Consumer Data) उपलब्ध कराते हैं, जिसका उपयोग उपभोक्ताओं के व्यवहार को समझने के लिये किया जा सकता है।

सुपर एप से जुड़ी चिंताएँ:

  • एक बड़े समूह द्वारा अधिकांश सेवाओं के लिये ग्राहकों को अपने इकोसिस्टम तक सीमित रखने के प्रयासों से बाज़ार में एक ही समूह के एकाधिकार की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं।
  • इसके साथ ही यह कई मामलों में गोपनीयता से जुड़ी चिंताओं को भी बढ़ाता हैं, जैसे- यदि एक सुपर एप में किसी थर्ड पार्टी सेवा प्रदाता (Third-Party Service Provider) को जोड़ा गया हो।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे एप द्वारा एकत्र डेटा का उपयोग मशीनों को ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (Artificial Intelligence) और उपभोक्ता व्यवहार का अधिक सटीकता से अनुमान लगाने हेतु प्रशिक्षित करने के लिये किया जा सकता है।

डेटा सुरक्षा संबंधी प्रयास :

  • वर्ष 2017 में न्यायमूर्ति बी. एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में स्थापित 10 सदस्यीय समिति ने डेटा स्थानीयकरण, डेटा सुरक्षा हेतु अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना और डेटा सुरक्षा संबंधी नियमों के उल्लंघन के मामलों में सजा का प्रावधान करने का सुझाव दिया था।
  • केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत ‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019’ (Personal Data Protection Bill, 2019) में व्यक्तिगत डेटा के संदर्भ में नागरिकों के अधिकारों, डेटा एकत्र कर रही संस्था के उत्तरदायित्त्वों, डेटा प्रसंस्करण से जुड़ी कानूनी बाध्यताओं और भारतीय सीमा से बाहर डेटा भेजे जाने से संबंधित प्रावधानों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

आगे की राह:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में सुपर एप के प्रचलन में कमी का एक बड़ा कारण डेटा सुरक्षा से जुड़ी चिंताएँ ही रही हैं।
  • वर्तमान में भारत में डेटा सुरक्षा से जुड़े किसी विशेष कानूनी प्रावधान के साथ जन-जागरूकता की भारी कमी है।
  • सरकार द्वारा सुपर एप के क्षेत्र में सक्रिय कंपनियों की गतिविधियों की निगरानी के साथ भविष्य में इससे जुड़े प्रभावी कानूनों के निर्माण के लिये इस क्षेत्र के विशेषज्ञों से परामर्श तथा जन-जागरूकता को बढ़ावा देने के विशेष प्रयास किये जाने चाहिये।

स्त्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

चुनावी बॉण्ड की बिक्री

प्रिलिम्स के लिये

चुनावी बॉण्ड योजना

मेन्स के लिये

चुनावी बॉण्ड से संबंधित विभिन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों

केंद्र सरकार अक्तूबर-नवंबर 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉण्ड की बिक्री की अनुमति दे सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • चुनावी बॉण्ड योजना, 2018 को 2 जनवरी 2018 को आधिकारिक गजट में अधिसूचित किया गया था जिसमें समय-समय पर चुनावी बॉण्ड जारी करने संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
  • चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को दान देने हेतु एक वित्तीय साधन है।
  • चुनावी बॉण्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख और 1 करोड़ के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
  • भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
  • यह बॉण्ड एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होता है।
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 (A) के अंतर्गत पंजीकृत प्रत्येक पार्टी और हालिया लोकसभा या राज्य चुनाव में कम-से-कम 1% मत हासिल करने के बाद भारत निर्वाचन आयोग द्वारा एक सत्यापित खाता आवंटित किया जाता है।
    • चुनावी बॉण्ड का लेन-देन केवल इसी खाते के माध्यम से किया जा सकता है।
  • बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है या भारत में शामिल या स्थापित है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया है।
    • एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
    • बॉण्ड पर दाता के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • आम चुनावों के दौरान केंद्र सरकार इन बॉण्डों की बिक्री के लिये तीस दिनों की अतिरिक्त अवधि निर्दिष्ट कर सकती है।
  • ऐसे कुछ अवसर आए हैं जब सरकार ने इन बॉण्डों को जारी करने के लिये निर्दिष्ट आवधिकता से विचलन किया है।
    • उदाहरण के लिये- 1-10 नवंबर 2018 से चुनावी बॉण्ड की छठी किश्त जारी की गई और वर्ष 2019 के आम चुनावों के दौरान मार्च, अप्रैल और मई के महीनों में चुनावी बॉण्ड बेचे गए।

विवादास्पद स्थिति:

  • हालाँकि पारंपरिक व्यवस्था के अंतर्गत जो भी चुनावी चंदा मिलता था वह मुख्यतः नकद में दिया जाता था, जिससे काले धन की संभावना काफी बढ़ जाती थी। परंतु चूँकि वर्तमान प्रणाली के अंतर्गत चुनावी बॉण्ड केवल चेक या ई-भुगतान के माध्यम से ही खरीदा जा सकता है, जिससे काले धन की संभावना कम होती है हालाँकि यह भी अधिक विवादास्पद है।
  • अनामिता:
    • न तो दान देने वाला (जो एक व्यक्ति या एक कॉर्पोरेट हो सकता है) और न ही राजनीतिक दल यह बताने के लिये बाध्य है कि दान किससे आता है।
      • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जिन राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से दान मिला है उन्हें भारत निर्वाचन आयोग को विवरण प्रस्तुत करना होगा।
    • यह व्यवस्था राजनीतिक जानकारी की स्वतंत्रता के मौलिक संवैधानिक सिद्धांत की अवहेलना करती है जो संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (A) का एक अनिवार्य तत्त्व है।
  • वित्तीय अपारदर्शिता:
    • यह राजनीतिक वित्त में पारदर्शिता के मूल सिद्धांत की अवहेलना करता है क्योंकि यह सार्वजनिक जांच, कॉर्पोरेट्स और संपत्ति की पहचान छिपाने में मदद करती है।
  • असममित अपारदर्शिता:
    • सरकार हमेशा यह जानने की स्थिति में है कि दाता कौन है क्योंकि बॉण्ड केवल SBI के माध्यम से खरीदे जाते हैं।
  • काले धन का माध्यम:
    • कोई भी विक्षुब्ध, खत्म हो रही कंपनी या शैल कंपनियां किसी राजनीतिक पार्टी को गुमनाम रूप से असीमित राशि दान कर सकती हैं, जो उन्हें व्यापार के लिये एक सुविधाजनक मार्ग (Channel) दे सकती हैं,

आगे की राह

  • भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को तोड़ने और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता के क्षरण को रोकने के लिये साहसिक सुधारों के साथ-साथ शासन प्रणाली और राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन को ठीक करने की आवश्यकता है। संपूर्ण शासन तंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने के लिये मौजूदा कानूनों में खामियों को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
  • ऐसे मतदाता जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है जो भारत के नागरिकों को परिवर्तन की मांग करने के लिये प्रेरित कर सकें। यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और पार्टियों को अस्वीकार करना प्रारंभ कर देंगे जो अतिव्यय करते हैं या उन्हें रिश्वत देते हैं तो देश का लोकतंत्र स्वयं ही एक स्तर और ऊपर उठ जाएगा।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

स्थानीय स्वशासन और महिलाएँ

प्रिलिम्स के लिये

73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन, स्थानीय स्वशासन संबंधी अन्य कानूनी प्रावधान

मेन्स के लिये

स्थानीय स्वशासन की अवधारणा और इसमें महिलाओं की भूमिका


चर्चा में क्यों?

हरियाणा सरकार, पुरुषों और महिला उम्मीदवारों के लिये पंचायत चुनावों में 50:50 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिये एक विधेयक लाने की योजना बना रही है, जिसके तहत प्रत्येक कार्यकाल की समाप्ति के बाद महिला और पुरुष उम्मीदवारों के बीच सीटों की अदला-बदली की जाएगी।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि हरियाणा इस प्रकार की विधि को अपनाने वाला देश का पहला राज्य होगा।
  • हरियाणा का यह फॉर्मूला सरपंचों और ग्राम वार्डों, खंड समितियों और ज़िला परिषदों के सदस्यों के पद पर लागू किया जाएगा।
  • हरियाणा में नियम के लागू होने पर यदि किसी वार्ड या गांव की अध्यक्षता एक पुरुष द्वारा की जाती है, तो इसका प्रतिनिधित्व अगले कार्यकाल में एक महिला द्वारा किया जाएगा।
  • उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के अनुसार, इस विधेयक का उद्देश्य महिलाओं के लिये आरक्षण की व्यवस्था करना नहीं है, बल्कि इस विधेयक का उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं के लिये समान अवसर सुनिश्चित करना है।
    • ध्यातव्य है कि देश के राज्यों में महिलाओं को स्थानीय स्वशासन में 50 प्रतिशत का आरक्षण प्रदान किया गया है, और ऐसे राज्यों में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व तकरीबन 67 प्रतिशत है।
  • लाभ: इस प्रकार की व्यवस्था का उद्देश्य महिलाओं और पुरुषों के बीच अवसर की समानता सुनिश्चित करना है।
  • सीमाएँ: महिलाओं को पंचायत के भीतर विभिन्न परस्पर विरोधी हितों का प्रबंधन करने और बातचीत करने के कौशल सीखने में समय लग सकता है, हालाँकि सरकार द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को इस संबंध में प्रशिक्षण दिया जा सकता है।

स्थानीय स्वशासन की अवधारणा

  • लोकतंत्र का सही अर्थ होता है सार्थक भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही। जीवंत और मज़बूत स्थानीय शासन भागीदारी और जवाबदेही दोनों को सुनिश्चित करता है।
  • स्थानीय स्वशासन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि यह देश के आम नागरिकों के सबसे करीब होता है और इसलिये यह लोकतंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करने में सक्षम होता है।
  • सही मायनों में स्थानीय सरकार का अर्थ है, स्थानीय लोगों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन। यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि स्थानीय समस्याओं और ज़रूरतों की समझ केंद्रीय या राज्य सरकारों की अपेक्षा स्थानीय लोगों को अधिक होती है।


स्थानीय स्वशासन में महिलाओं की भागीदारी

  • वर्ष 1992 में भारत सरकार ने शासन के विकेंद्रीकृत मॉडल को अपनाने तथा भागीदारी एवं समावेशन को मज़बूत करने के लिये 73वें और 74वें संविधान संशोधन को पारित किया।
  • इस संशोधन के माध्यम से महिलाओं तथा अनुसूचित जाति (SC) एवं अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित लोगों के लिये सीटों के आरक्षण को अनिवार्य कर दिया गया।
  • ऐसे कई अध्ययन मौजूद हैं जो यह दर्शाते हैं कि सरकार द्वारा दिये गए इस आरक्षण ने सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में काफी सुधार किया है।
  • कई अध्ययनों में पाया गया है कि स्थानीय स्वशासन में महिलाओं की भागीदारी की सबसे अच्छी बात यह है कि स्थानीय शासन में मौजूद महिलाएं संवेदनशील वर्गों खासतौर पर महिलाओं और बच्चों की ज़रूरतों और हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य करती हैं।

स्थानीय स्वशासन में महिलाओं के लिये चुनौती

  • पितृसत्तात्मकता: प्रायः यह देखा जाता है कि कई महिलाओं को अपने परिवार से चुनाव लड़ने की अनुमति ही नहीं मिलती है, साथ ही कई महिलाएँ अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के लिये पर्दे के पीछे से काम करती रहती हैं और उन्हें कोई नहीं जान पाता है।
    • घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ, पर्दा प्रथा और घरेलू हिंसा आदि कारक महिलाओं के कामकाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
  • आवश्यक कौशल का अभाव: अधिकांश महिला प्रतिनिधि पहली बार इस प्रकार सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करती हैं, जिसके कारण पंचायतों के मामलों का प्रबंधन करने के लिये उनके पास पर्याप्त ज्ञान और कौशल का अभाव होता है।
    • सरकारी प्रशिक्षण एजेंसियों द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम समय में सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों को कवर करने में असमर्थ हैं।
  • दो बच्चों की नीति: भारत के कई राज्यों ने पंचायत के चुनाव लड़ने के लिये दो अथवा दो से कम बच्चों की नीति को सख्ती से लागू किया है, कई बार यह नीति स्थानीय स्तर पर चुनाव लड़ने में महिलाओं के समक्ष बाधा उत्पन्न करती है।
  • जाति व्यवस्था: ग्रामीण भारत की जड़ों में मौजूद जाति व्यवस्था महिलाओं खासतौर पर अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिये स्वतंत्र एवं प्रभावी रूप से कार्य करने में चुनौती खड़ी करती है।
  • प्रशासनिक स्तर पर महिलाओं की कमी: प्रशासनिक तथा अन्य स्तरों पर महिला सहकर्मियों के प्रतिनिधित्त्व के अभाव के कारण भी महिलाओं को अपने रोज़मर्रा के काम-काज में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह

  • हरियाणा सरकार का वर्तमान प्रस्ताव एक स्वागतयोग्य कदम है। हालाँकि, राज्य सरकार को यह ध्यान रखना चाहिये कि महिलाओं और पुरुषों के बीच सामाजिक-राजनीतिक समानता सुनिश्चित करने के लिये केवल प्रतिनिधित्व में समानता लाना ही पर्याप्त नहीं है, इसके अलावा महिलाओं की अपेक्षाकृत वंचित स्थिति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये।
  • ग्रामीण स्थानीय स्वशासन में महिलाओं के प्रतिनिधित्त्व को बढ़ाने से संसद में भी उनके बेहतर प्रतिनिधित्त्व की संभावना बढ़ जाएगी, जो कि वर्तमान में केवल 14 प्रतिशत है।
  • महिला प्रतिनिधियों के क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में सरकारों को नागरिक समाज संगठनों, महिला समूहों, शैक्षणिक संस्थानों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे यूएन वीमेन (UN Women) आदि को भी शामिल किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डीएनए बिल का दुरुपयोग संभव: संसदीय समिति

प्रिलिम्स के लिये:

डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक

मेन्स के लिये:

डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक

चर्चा में क्यों?

‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति’ की मसौदा रिपोर्ट के अनुसार, ‘डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक’ [DNA Technology (Use and Application) Regulation Bill], 2019 का जाति या समुदाय-आधारित प्रोफाइलिंग के लिये दुरुपयोग किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु:

  • संसदीय स्थायी समिति की बैठक में मसौदा रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाना था परंतु कोरम की पूर्ति न होने का कारण इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका।
  • संसदीय स्थायी समिति ने डीएनए बिल को अपरिपक्व तथा दुरुपयोग की संभावना वाला बताया है।

पृष्ठभूमि:

  • अगस्त 2018 में ‘डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक’ लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन वह व्यपगत हो गया।
  • 8 जुलाई, 2019 को विधेयक को फिर से लोकसभा में पेश किया गया। 17 अक्तूबर 2019 को विधेयक को संसदीय स्थायी समिति को निर्दिष्ट किया गया।
  • संसदीय स्थायी समिति को मानसून सत्र, 2020 के पहले सप्ताह के अंत तक अपनी मसौदा रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी (विस्तारित अवधि)।

विधेयक के प्रमुख प्रावधान:

  • डीएनए डेटा का उपयोग:
    • विधेयक के अनुसार, केवल विधेयक की अनुसूची में सूचीबद्ध मामलों के संबंध में ही डीएनए परीक्षण की अनुमति है।
    • अनुसूची में भारतीय दंड संहिता- 1860 के तहत अपराध और पितृत्त्व निर्धारण मुकदमा जैसे नागरिक मामलों तथा व्यक्तिगत पहचान की स्थापना से संबंधित मामलों को शामिल किया गया है।
  • डीएनए का संग्रह:
    • डीएनए प्रोफाइल तैयार करते समय जाँच अधिकारियों द्वारा व्यक्तियों के शारीरिक नमूनों को एकत्र किया जा सकता है। अधिकारियों को कुछ स्थितियों में संग्रह के लिये व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होगी।
    • कुछ मामलों में यदि व्यक्ति द्वारा सहमति नहीं दी जाती है, तो जाँच अधिकारी ज़िला मजिस्ट्रेट से इस संबंध में आदेश प्राप्त कर सकते हैं।
  • डीएनए डेटा बैंक:
    • विधेयक में एक राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक और प्रत्येक राज्य या दो या अधिक राज्यों के लिये क्षेत्रीय डीएनए डेटा बैंकों की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
    • डीएनए प्रयोगशालाओं को उनके द्वारा तैयार डीएनए डेटा को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डीएनए डेटा बैंकों के साथ साझा करना आवश्यक होगा।
    • प्रत्येक डेटा बैंक को डेटा की निम्न श्रेणियों के लिये सूचकांक बनाए रखने की आवश्यकता होगी:
      1. अपराध दृश्य सूचकांक
      2. संदिग्ध या विचाराधीन कैदियों का सूचकांक
      3. अपराधी सूचकांक
      4. लापता व्यक्ति सूचकांक
      5. अज्ञात मृतक व्यक्तियों का सूचकांक।
  • डीएनए प्रोफाइल को हटाना:
    • विधेयक के अनुसार, डीएनए प्रोफाइल के प्रवेश, प्रतिधारण या हटाने (Entry, Retention or Removal) के मापदंड नियमों द्वारा निर्दिष्ट किये जाएंगे।
  • डीएनए नियामक बोर्ड:
    • विधेयक में डीएनए नियामक बोर्ड की स्थापना का प्रावधान किया गया है, जो डीएनए डेटा बैंकों और डीएनए प्रयोगशालाओं की निगरानी की दिशा में कार्य करेगा।
  • डीएनए प्रयोगशालाएँ:
    • किसी भी प्रयोगशाला उपक्रम को डीएनए परीक्षण के लिये बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने की आवश्यकता होगी।
  • अपराध:
    • विधेयक में विभिन्न अपराधों के लिये दंड निर्दिष्ट हैं, जिनमें (i) डीएनए जानकारी के प्रकटीकरण (ii) प्राधिकरण को अनुमति के बिना डीएनए नमूने का उपयोग करना आदि शामिल हैं।

संसदीय समिति द्वारा उठाए गए चिंता के विषय:

  • संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग:
    • डीएनए प्रोफाइल, किसी व्यक्ति की अत्यंत संवेदनशील जानकारी जैसे कि वंशावली, त्वचा का रंग, व्यवहार, बीमारी, स्वास्थ्य की स्थिति और बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता को प्रकट कर सकती है।
    • इस प्रकार, अनाधिकृत रूप से प्राप्त जानकारी का दुरुपयोग व्यक्तियों और उनके परिवारों से संबंधित जानकारी को प्राप्त करने में किया जा सकता है।
    • इस प्रकार से प्राप्त जानकारी का उपयोग किसी विशेष जाति/समुदाय को आपराधिक गतिविधियों से जोड़ने के लिये भी किया जा सकता है।
  • डीएनए प्रोफाइल संग्रह:
    • विधेयक में भविष्य में अन्वेषण के लिये संदिग्धों, विचाराधीन कैदियों, पीड़ितों और उनके रिश्तेदारों के डीएनए प्रोफाइल को संग्रहीत करने का प्रस्ताव है।
    • संसदीय स्थायी समिति का मानना है कि केवल दोषियों के डीएनए डेटाबेस को संग्रहीत किया जाना चाहिये अन्य श्रेणियों में नहीं, क्योंकि इससे डेटा दुरुपयोग की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाएगी।
  • व्यक्ति की सहमति का उल्लंघन:
    • विधेयक में कई मामलों में DNA नमूने लेने से पूर्व व्यक्ति की सहमति को आवश्यक माना गया है लेकिन इस मामले में मजिस्ट्रेट की शक्तियों का दुरुपयोग किया जा सकता है।
    • मजिस्ट्रेट कब-कब , व्यक्ति की सहमति को अधिभावी (ओवरराइड) कर सकता है, इस संबंध में विधेयक में कोई आधार तथा कारणों के संबंध में स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं दिये गए हैं।
  • स्वतंत्र जाँच का अभाव:
    • संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की है कि जैविक नमूनों को नष्ट करने और डेटाबेस से डीएनए प्रोफाइल को हटाने के प्रस्तावों की स्वतंत्र जाँच की जानी चाहिये।
  • निजता का उल्लंघन:
    • विधेयक यह भी प्रावधान करता है कि नागरिक मामलों से सबंधित डीएनए प्रोफाइल को भी डेटा बैंकों में ही संग्रहीत किया जाएगा हालाँकि इसके लिये अलग से सूचकांक तैयार नहीं किया जाएगा।
    • संसदीय स्थायी समिति के अनुसार, इस प्रकार नागरिक मामलों का डीएनए प्रोफाइल संग्रह, निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है

डीएनए विधेयक की आवश्यकता:

  • अनेक खामियों के बावज़ूद तत्काल रूप से डीएनए विधेयक को संसद में पास किये जाने की आवश्यकता है।
  • 'राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो' के अनुसार, प्रतिवर्ष 1,00,000 बच्चे लापता हो जाते हैं, विधेयक लापता बच्चों की पहचान करने में मदद करेगा। विधेयक, अज्ञात लोगों की पहचान करने में भी मदद करेगा।
  • बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में शामिल अपराधियों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
  • वर्तमान में भारत में डीएनए परीक्षण बेहद सीमित पैमाने पर किया जा रहा है, जो कुल आवश्यकता के 2-3% का प्रतिनिधित्त्व करते हैं, अत: विधेयक के माध्यम से व्यापक डीएनए परीक्षण करने में मदद मिलेगी।

वैश्विक परिदृश्य:

  • यूएस इंटरपोल के ग्लोबल डीएनए प्रोफाइलिंग सर्वे परिणाम- 2016 के अनुसार, वर्तमान में 69 देशों; जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और चीन भी शामिल हैं, में राष्ट्रीय डीएनए डेटाबेस पहले से स्थापित हैं।
  • 'मानव आनुवंशिक डेटा पर घोषणा'; जिसे 16 अक्तूबर 2003 को यूनेस्को के 32वीं आम सभा सम्मेलन में सर्वसम्मति से अपनाया गया था, का उद्देश्य मानव आनुवंशिक डेटा तथा जैविक नमूने के संग्रह, प्रसंस्करण, उपयोग और भंडारण में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

निष्कर्ष:

  • यदि ‘डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक’, 2019 कानून का रूप ले लेता है तो तमाम खामियों के बावज़ूद यह आशा की जा सकती है कि इस प्रकार के अपराधों में इस प्रौद्योगिकी के विस्तारित उपयोग से न केवल न्यायिक प्रक्रिया में तेज़ी आएगी, बल्कि सज़ा दिलाने की दर भी बढ़ेगी।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तालिबान प्रतिनिधि मंडल का पाकिस्तान दौरा

प्रिलिम्स के लिये:

अमेरिका और तालिबान शांति समझौता

मेन्स के लिये:

क्षेत्रीय शांति पर तालिबान शांति समझौते का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तालिबान के दोहा स्थित राजनीतिक कार्यालय से एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि मंडल अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया पर पाकिस्तानी नेतृत्त्व से चर्चा के लिये पाकिस्तान पहुँचा।

प्रमुख बिंदु:

  • तालिबान के राजनीतिक प्रमुख ‘मुल्ला अब्दुल गनी बरादर’ (Mullah Abdul Ghani Baradar) के नेतृत्त्व में यह उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि मंडल पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के निमंत्रण पर इस्लामाबाद पहुँचा है।
  • पाकिस्तानी विदेश मंत्री के अनुसार, पाकिस्तान अफगान मुद्दे पर एक मध्यस्थ/सहायक की भूमिका निभा रहा है, जिसके कारण अमेरिका और तालिबान के बीच यह समझौता सुनिश्चित हो सका है तथा अब इसका भविष्य अफगानिस्तान प्रशासन के निर्णय पर निर्भर करता है।
  • यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब दोनों तरफ से कैदियों के हस्तांतरण के विवादित प्रावधान के बीच अफगान शांति वार्ता पुनः स्थगित हो गई है।
  • गौरतलब है कि पिछले 10 माह में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर की यह दूसरी पाकिस्तान यात्रा है।
  • पाकिस्तानी विदेशमंत्री के अनुसार, अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में अगला तार्किक कदम अंतर-अफगान वार्ता होगी जिसे शीघ्र ही शुरू किया जाना चाहिये।

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2001 में अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के प्रवेश के लगभग 2 दशक बाद फरवरी 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • इस समझौते के तहत अमेरिका अगले 14 महीनों में अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिक वापस बुलाने पर सहमत हुआ था।
  • फरवरी 2020 के समझौते के तहत अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच कैदियों की रिहाई पर भी एक समझौता हुआ।
  • इसके तहत अफगानिस्तान सरकार द्वारा देश की जेलों में बंद लगभग 5,000 तालिबानी कैदियों और तालिबान द्वारा पकड़े गए लगभग 1000 सरकारी कर्मचारियों तथा सैन्य कर्मियों को ‘अंतर-अफगान वार्ता’ (Intra-Afghan Negotiations) के पहले रिहा करने पर सहमति व्यक्त की गई थी।

शांति प्रक्रिया के बाधित होने का कारण:

  • वर्तमान में तालिबान द्वारा लगभग 1,000 सरकारी कर्मचारियों और सैन्य कर्मियों तथा अफगानिस्तान सरकार द्वारा लगभग 4,680 चरमपंथियों को रिहा किया जा चुका है।
  • हालाँकि अफगानिस्तान सरकार ने हाल ही में कुछ बचे हुए (लगभग 300) तालिबानी कैदियों को रिहा करने मना कर दिया है। अफगानिस्तान सरकार के अनुसार, ये कैदी कई गंभीर हमलों से संबंधित हैं।

पाकिस्तान का हस्तक्षेप :

  • अफगानिस्तान सरकार द्वारा पाकिस्तान पर तालिबान को आश्रय देने और फंडिंग उपलब्ध कराने का आरोप लगाया जाता रहा है।
  • गौरतलब है कि 1990 के दशक के दौरान अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार को मान्यता देने वाले देशों में से पाकिस्तान भी एक था।
  • यदि अफगानिस्तान में तालिबान की स्थिति मज़बूत होती है तो इससे अफगानिस्तान की राजनीति में पाकिस्तान का हस्तक्षेप बढ़ेगा।

भारत पर प्रभाव :

  • भारत हमेशा से ही अफगानिस्तान में विदेशी हस्तक्षेप से मुक्त एक लोकतांत्रिक सरकार का समर्थक रहा है।
  • अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते हस्तक्षेप का लाभ पाकिस्तान कश्मीर में चरमपंथ को बढ़ावा देने के लिये कर सकता है।

आगे की राह:

  • अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना को पूरी तरह से हटाए जाने से क्षेत्र में एक बार पुनः अस्थिरता बढ़ सकती है।
  • भारत को क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिये तालिबान से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित करने पर विचार करना चाहिये।

स्त्रोत: द हिंदू


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