भारतीय इतिहास
खुदाई खिदमतगार आंदोलन
प्रीलिम्स के लिये:खुदाई खिदमतगार आंदोलन मेन्स के लिये:खुदाई खिदमतगार आंदोलन की भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका |
चर्चा में क्यों?
किस्सा ख्वानी बाज़ार (Qissa Khwani Bazaar) नरसंहार को 90 बरस बीत गए हैं। 23 अप्रैल, 1930 को खुदाई खिदमतगार (Khudai Khidmatgar) आंदोलन के अहिंसक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ब्रिटिश सैनिकों द्वारा की गई नरसंहार कार्यवाही के रूप में इतिहास में दर्ज यह स्थल इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली का एक उदाहरण है।
खुदाई खिदमतगार कौन थे?
- खान अब्दुल गफ्फार खान ने वर्ष 1929 में खुदाई खिदमतगार (सर्वेंट ऑफ गॉड) आंदोलन की शुरुआत की। सामान्य लोगों की भाषा में वे सुर्ख पोश थे। खुदाई खिदमतगर आंदोलन गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन से प्रेरित था।
- खुदाई खिदमतगार उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में पश्तून/पख्तून (या पठान; पाकिस्तान और अफगानिस्तान का मुसलमान जातीय समूह) स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्त्व में संचालित ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक अहिंसक आंदोलन था।
- समय के साथ-साथ इस आंदोलन ने राजनीतिक रूप धारण कर लिया था, जिसके कारण इस क्षेत्र में आंदोलन की बढ़ती ख्याति अंग्रेज़ों की नज़र में आ गई।
- वर्ष 1929 में खान अब्दुल गफ्फार खान और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के बाद यह आंदोलन ऑल इंडिया मुस्लिम लीग से समर्थन प्राप्त करने में विफल रहा, जिसके बाद यह आंदोलन औपचारिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गया।
- खुदाई खिदमतगार के सदस्यों को संगठित किया गया और पुरुषों ने गहरे लाल रंग की शर्ट (जिसे वे वर्दी के रूप में पहनते थे) और महिलाओं ने काले रंग के वस्त्र धारण किये। खुदाई खिदमतगारों ने भारत के विभाजन का विरोध किया।
किस्सा ख्वानी बाज़ार नरसंहार क्यों हुआ?
- अब्दुल गफ्फार खान और खुदाई खिदमतगार के अन्य नेताओं को 23 अप्रैल, 1930 को अंग्रेज़ों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि उन्होंने उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत के उटमानज़ई (Utmanzai) शहर में आयोजित एक सभा में भाषण दिया था।
- अब्दुल गफ्फार खान को उनके अहिंसक तरीकों के लिये जाना जाता है, यही वजह रही कि खान की गिरफ्तारी को लेकर पेशावर सहित पड़ोसी शहरों में विरोध प्रदर्शन होने लगे।
- खान की गिरफ्तारी के ही दिन पेशावर के किस्सा ख्वानी बाज़ार में विरोध प्रदर्शन हुए। ब्रिटिश सैनिकों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिये बाज़ार क्षेत्र में प्रवेश किया, परंतु भीड़ ने प्रदर्शन-स्थल छोड़ने से इनकार कर दिया।
- इसके प्रत्त्युत्तर में ब्रिटिश सेना अपने वाहनों के साथ भीड़ में घुस गई, उन्होंने बहुत-से प्रदर्शनकारियों को कुचल डाला। इसके बाद ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ बरसानी शुरू कर दीं जिसमें बहुत से बेगुनाह लोग मारे गए।
खान अब्दुल गफ्फार खान का परिचय
- फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर अब्दुल गफ्फार खान को बाचा खान और बादशाह खान के नाम से भी जाना जाता है। महात्मा गांधी के एक दोस्त ने उन्हें फ्रंटियर गांधी का नाम दिया था।
- उनका जन्म 6 फरवरी 1890 को हुआ था। वह अपने 98 वर्ष के जीवनकाल में कुल 35 वर्ष जेल में रहे। वर्ष 1988 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें पेशावर स्थित उनके घर में नज़रबंद कर दिया था और उसी दौरान 20 जनवरी, 1988 को उनकी मृत्यु हो गई।
- अब्दुल गफ्फार खान एक राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता थे, उन्हें उनके अहिंसात्मक आंदोलन के लिये जाना जाता है।
- उन्होंने सदैव ‘मुस्लिम लीग’ द्वारा की जाने वाली देश के विभाजन की मांग का विरोध किया, परंतु जब अंत में कांग्रेस ने देश के विभाजन को स्वीकार कर लिया, तो उन्हें बहुत निराशा हुई। इस निराशा को उन्होंने कुछ यूँ बयाँ किया “आप लोगों ने हमें भेड़ियों के सामने फेंक दिया।”
- विभाजन के बाद उन्होंने पाकिस्तान में रहने का निर्णय लिया और पाकिस्तान के भीतर ही ‘पख्तूनिस्तान’ नामक एक स्वायत्त प्रशासनिक इकाई की मांग की। पाकिस्तान सरकार ने उन पर संदेह करते हुए उन्हें उन्हीं के घर में नज़रबंद रखा और अंततः भारतीय इतिहास के एक करिश्माई नेता का जीवन जेल में ही बीत गया।
- वर्ष 1987 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिकी H-1B वीज़ा नियमों में सख्ती
प्रीलिम्स के लिये:H-1B वीज़ा, COVID-19 मेन्स के लिये:वैश्विक राजनीति पर COVID-19 का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका (USA) में COVID-19 के कारण बेरोज़गारी में हो रही वृद्धि को देखते हुए H-1B वीज़ा सहित प्रवासी कामगारों से जुड़ी अन्य सभी योजनाओं को स्थगित करने की मांग तेज़ हुई है।
मुख्य बिंदु:
- अमेरिकी राष्ट्रपति को भेजे पत्र में एक अमेरिकी सांसद ने COVID-19 के कारण बढ़ती बेरोज़गारी के दौरान अमेरिकी कामगारों की आय और रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा देने हेतु H-1B, H4, L1, B1, B2, ‘ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग प्रोग्राम’ (Optional Practical Training Program) और प्रवासी श्रमिकों से जुड़ी अन्य योजनाओं पर रोक लगाने की मांग की है।
- ध्यातव्य है कि हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने देश में अगले 90 दिनों के नए ग्रीन कार्ड जारी किये जाने पर रोक लगा दी थी।
- इसके अतिरिक्त देश में COVID-19 की महामारी के दौरान अमेरिकी कामगारों के हितों की रक्षा हेतु अमेरिकी राष्ट्रपति ने 22 अप्रैल, 2020 को एक उद्घोषणा जारी की थी।
- इस उद्घोषणा की धारा-6 में अमेरिका के श्रम (Labor), राज्य (State) और होमलैंड सिक्योरिटी (Homeland Security) सचिवों को उद्घोषणा जारी होने के 30 दिनों के अंदर अमेरिकी कामगारों को प्राथमिकता देने और उनके रोज़गार के संदर्भ में अतिरिक्त सुझाव देने को कहा गया था।
आव्रजन को स्थगित करने का कारण:
- वर्तमान में COVID-19 की महामारी के कारण विश्व के कई देशों की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
- अमेरिकी नेताओं के अनुसार, इस महामारी के कारण अमेरिका में लगभग 26 मिलियन लोग बेरोज़गार हुए हैं।
- एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में अमेरिका में लगभग 30 लाख लोग H-1B वीज़ा पर रहकर काम करते हैं और वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये अमेरिकी सरकार को अन्य देशों के कामगारों से H-1B के लगभग 2,75,000 आवेदन प्राप्त हुए थे।
- जानकारों के अनुसार, लगभग 24% H-1B वीज़ाधारक प्रतिवर्ष ग्रीन कार्ड के लिये आवेदन करते हैं।
- अमेरिका में बेरोज़गारी में हो रही वृद्धि के साथ सरकार पर प्रवासी कामगारों को देश में आने से रोकने के लिये दबाव बढ़ा है।
H-1B वीज़ा (H-1B Visa):
- H-1B अमेरिकी सरकार द्वारा दिया जाने वाला एक वीज़ा है, जिसके तहत अन्य देशों के कुशल कामगारों को एक निश्चित अवधि के लिये अस्थाई रूप से अमेरिका में रहकर कार्य करने की अनुमति दी जाती है।
- H-1B वीज़ा प्राप्त करने हेतु कुछ न्यूनतम शैक्षिक मानक भी सुनिश्चित किये गए है। जैसे- स्नातक या समकक्ष डिग्री होना अथवा नियोक्ता द्वारा निर्धारित योग्यता आदि।
- वर्तमान में अमेरिकी सरकार द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष में अधिकतम H-1B वीज़ा जारी किये जाने की सीमा 65,000 सुनिश्चित की गई है।
- हालाँकि अमेरिकी शिक्षण संस्थानों से परास्नातक या इससे उच्चतर डिग्री वाले पहले 20,000 आवेदकों को इससे छूट दी गई है।
स्वास्थ्य कर्मियों को राहत:
- एक अन्य अमेरिकी सांसद जॉश हार्डर (Josh Harder) ने ‘कांग्रेस की प्रवर समिति’ (Congressional Select Committee) को लिखे एक पत्र में समिति को H-1B वीज़ा पर कार्य कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों को संरक्षण प्रदान करने के लिये आवश्यक कदम उठाने की मांग की है।
-
सांसद जॉश हार्डर के अनुसार वे एक विधेयक पर कार्य कर रहे हैं जिससे COVID-19 के दौरान नौकरी गँवाने वाले H-1B वीज़ाधारक स्वास्थ्य कर्मियों के 60 दिन के ग्रेस पीरियड (Grace Period) में वृद्धि की जा सके।
- वर्तमान में अमेरिका में बजट की कमी के कारण नौकरी गँवाने वाले प्रवासी स्वास्थ्य कर्मियों को 60 दिनों के अंदर दूसरी नौकरी शुरू करनी होती है अन्यथा उन्हें देश छोड़ना पड़ेगा।
कारण:
- एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में अमेरिकी स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत लगभग 17% स्वास्थ्य कर्मी अन्य देशों से आए हुए प्रवासी नागरिक हैं।
- वर्तमान में आर्थिक दबाव के कारण अमेरिका के कई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालने पर विवश हुए हैं।
- H-1B वीज़ा नियमों के कारण कई स्वास्थ्य कर्मियों को अमेरिका से बाहर जाना पड़ सकता है, ऐसे में पहले से ही स्वास्थ्य कर्मियों की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों की समस्याएँ और बढ़ जाएँगी।
भारत पर प्रभाव:
- भारत के बहुत से युवा कामगार अमेरिका में कार्य करने और अमेरिकी नागरिकता पाने के लिये H-1B वीज़ा का रास्ता अपनाते हैं।
- वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये अमेरिकी सरकार को प्राप्त हुए 2,75,000 आवेदनों में 67% भारत से भेजे गए थे।
- अमेरिका द्वारा H-1B वीज़ा संबंधी नियमों में सख्ती भारतीय कामगारों और कंपनियों के लिये एक बड़ी समस्या है।
- साथ ही ऐसे भारतीय जिनकी नागरिकता H-1 B नवीनीकरण (Renewal) हेतु प्रक्रियाधीन होगी उनके लिये वीज़ा नियमों में संशोधन चिंता का कारण बन सकते हैं।
समाधान:
- विशेषज्ञों के अनुसार, COVID-19 की महामारी से वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के परिणामस्वरूप आने वाले दिनों में विश्व के बहुत से देश स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा के लिये आव्रजन में अधिक-से-अधिक कमी करने का प्रयास करेंगे।
- ऐसे में सरकार को देश में रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न करने पर विशेष ध्यान देना होगा।
- देश में विदेशी निवेश को बढ़ावा देकर नए संसाधनों का विकास कर इस समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) क्षेत्र की कई कंपनियों जैसे-TCS आदि एक नए मॉडल पर कार्य कर रहीं हैं जिसके तहत आधे से अधिक कर्मचारियों को घर से कार्य करने की सुविधा होगी, इसके माध्यम से भारत में रह रहे कामगार विश्व के अन्य देशों में स्थित कंपनियों में अपनी सेवाएँ दे पाएँगे।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
ऑपरेशन ट्विस्ट का पुनः उपयोग
प्रीलिम्स के लिये:खुला बाज़ार परिचालन, ऑपरेशन ट्विस्ट,भारतीय रिज़र्व बैंक मेन्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ऑपरेशन ट्विस्ट से अर्थव्यवस्था को सुधारने हेतु किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा खुला बाज़ार परिचालन (Open Market Operations-OMO) के तहत सरकारी प्रतिभूतियों की एक साथ खरीद और बिक्री करने हेतु पुनः निर्णय लिया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि 27 अप्रैल, 2020 से RBI ने तरलता स्थिति तथा बाज़ार की स्थितियों की समीक्षा करके 10 हज़ार करोड़ रुपए की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद/बिक्री का निर्णय लिया है।
- RBI वर्ष 2026-30 के बीच परिपक्व होने वाले 10 हज़ार करोड़ के बॉन्ड खरीदेगी तथा इतनी ही धनराशि की ट्रेज़री बिल की बिक्री करेगा। अतः इस निर्णय से 10 वर्ष के बॉन्ड पर बॉन्ड यील्ड में 20 आधार अंक की कमी आएगी।
बॉन्ड यील्ड (Bond Yield):
- बॉन्ड यील्ड बॉन्ड पर रिटर्न मिलने वाली धनराशि है। बॉन्ड की कीमत में उतार-चढ़ाव से बॉन्ड यील्ड पर विपरीत असर पड़ता है। जब बॉन्ड की कीमत बढ़ती है तो बॉन्ड यील्ड घटता है तथा बॉन्ड की कीमत घटती है तो बॉन्ड यील्ड बढ़ता है।
ऑपरेशन ट्विस्ट के बारे में:
- ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation Twist) पहली बार वर्ष 1961 में अमेरिकी डॉलर को मज़बूत करने और अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिये लाया गया था।
- ‘ऑपरेशन ट्विस्ट’ के अंतर्गत केंद्रीय बैंक दीर्घ अवधि के सरकारी ऋण पत्रों को खरीदने के लिये अल्पकालिक प्रतिभूतियों की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग करता है, जिससे लंबी अवधि के ऋणपत्रों पर ब्याज दरों के निर्धारण में आसानी होती है।
- ‘ऑपरेशन ट्विस्ट’ से अल्पकालिक प्रतिभूतियों को दीर्घकालिक प्रतिभूतियों में परिवर्तित किया जाता है।
खुला बाज़ार परिचालन
(Open Market Operations-OMO):
- खुला बाज़ार परिचालन (OMO) धन की कुल मात्रा को विनियमित या नियंत्रित करने के लिये मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरणों में से एक है, जिसे RBI द्वारा अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने हेतु उपयोग में लाया जाता है।
- RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री या खरीद के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति की स्थिति को समायोजित करने के लिये खुले बाज़ार का संचालन किया जाता है।
- केंद्रीय बैंक, आर्थिक प्रणाली के अंतर्गत तरलता में कमी लाने के लिये सरकारी प्रतिभूतियाँ बेचता है और इस प्रणाली को नियंत्रित रखने के लिये सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदता है।
- RBI द्वारा अर्थव्यवस्था में रुपए के मूल्य को समायोजित करने के लिये अन्य मौद्रिक नीति उपकरणों जैसे रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात और वैधानिक तरलता अनुपात के साथ OMO का उपयोग किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
महामारी का अर्थशास्त्र
प्रीलिम्स के लियेCOVID-19, राजकोषीय घाटा, प्रत्यक्ष मुद्रीकरण मेन्स के लियेCOVID-19 से निपटने हेतु किये गए प्रयास, प्रत्यक्ष मुद्रीकरण की सीमाएँ |
चर्चा में क्यों?
- कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण लोगों की आय के स्तर में गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप खपत के स्तर में भी गिरावट आई है।
प्रमुख बिंदु
- जिस प्रकार देश में कोरोनावायरस का प्रकोप बढ़ रहा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि पहले से ही धीमी गति से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था आगामी समय में पूर्ण रूप से मंदी की चपेट में आ सकती है।
- विभिन्न संस्थाओं द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार, चालू वित्तीय वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि अपेक्षाकृत काफी धीमी रह सकती है, वहीं विश्व के कुछ देश तो संकुचन की ओर भी जा सकते हैं।
गिरावट का कारण
- अन्य शब्दों में कहें तो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं (जैसे- वाहन और एयर कंडीशनर) तथा सेवाओं (जैसे- पर्यटन और परिवहन) की समग्र मांग में गिरावट आई है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था की समग्र मांग में गिरावट का प्रभाव अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि दर पर पड़ा है।
- हालाँकि देश की समग्र मांग में गिरावट कोरोनावायरस महामारी से पूर्व भी देखी जा रही थी, बीते वर्ष अक्तूबर में अपनी मौद्रिक नीति रिपोर्ट में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने निजी खपत में हो रही गिरावट के रुझान पर चिंता व्यक्त की थी। इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक आम लोगों द्वारा की जाने वाली मांग पर ही टिकी हुई है।
- ऐसे में प्रश्न उठता है कि मांग को बढ़ावा देने के लिये क्या किया जा सकता है? अधिक मांग के लिये लोगों को अधिक पैसे की आवश्यकता होगी, किंतु भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रही है।
अर्थव्यवस्था को बचाने हेतु किये गए प्रयास
- कोरोनावायरस जनित मंदी की आशंका को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) अर्थव्यवस्था की वित्तीय प्रणाली में तरलता को बढ़ावा देने की भरपूर कोशिश कर रहा है। RBI ने वित्तीय बाज़ार से सरकारी बॉन्ड (Government Bonds) खरीद कर वित्तीय बाज़ार को तरलता प्रदान की है।
- हालाँकि जोखिम-से-प्रभावित होने के कारण अधिकांश बैंक नए ऋण प्रदान करने को तैयार नहीं हैं और नए ऋण प्रदान किये बिना अर्थव्यवस्था में तरलता को बढ़ावा देना काफी मुश्किल कार्य है।
- भारतीय समाज के संवेदनशील और गरीब वर्ग को सहायता प्रदान करने और भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये केंद्र सरकार ने भी 1.70 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की है।
- इसके अतिरिक्त विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भी अपने स्तर पर काफी प्रयास किये जा रहे हैं।
चुनौतियाँ
- सरकार के वित्तीय साधन पहले से ही काफी दबाव का सामना कर रहे हैं और सरकार का राजकोषीय घाटा अनुमेय सीमा को पार चुका है।
- सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिये कितनी उधारी की ज़रूरत होगी।
- इस प्रकार यदि सरकार को किसी प्रकार का राहत पैकेज प्रदान करना है, तो उसे एक बड़ी राशि उधार लेनी होगी, जिससे सरकार का राजकोषीय घाटा और अधिक बढ़ जाएगा।
- मौज़ूदा परिस्थितियों में देश की सभी आर्थिक और गैर-आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई हैं और सरकार को कर एवं गैर-कर राजस्व प्राप्त नहीं हो रहा है, जिससे सरकार के लिये स्वास्थ्य एवं कल्याण पर अधिक खर्च करना चुनौतीपूर्ण बन गया है।
- इसके अलावा यदि सरकार बाज़ार से उधार लेना भी चाहे तो आवश्यक है कि बाज़ार में भी उतना पैसा होना चाहिये, किंतु मौजूदा आँकड़े दर्शाते हैं कि घरेलू परिवारों की बचत काफी कम है और उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे सरकार की ऋण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
- विदित हो की विदेशी निवेशक भी अमेरिका जैसी सुरक्षित अर्थव्यवस्था में निवेश कर रहे हैं और ऐसे अनिश्चितता के समय में ऋण देने को तैयार नहीं हैं।
- इस प्रकार बाज़ार में इतना धन नहीं है कि वह सरकार की ऋण संबंधी अवश्यकताओं को पूरा सके।
- विश्लेषकों के अनुसार, आने वाले समय में परिस्थितियाँ और भी खराब हो सकती हैं और अर्थव्यवस्था के सामान्य होने की प्रक्रिया काफी धीमी और कठिनाई से भरी हो सकती है।
‘प्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण- एक उपाय के रूप में
- कई विश्लेषक मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान रखते हुए सरकारी घाटे के ‘प्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण (Direct Monetisation) को एक बेहतर उपाय के रूप में देखा रहे हैं।
- उदाहरण के लिये एक ऐसे परिदृश्य की कल्पना करें जिसमें सरकार वित्तीय प्रणाली को नज़रअंदाज़ करते हुए प्रत्यक्ष तौर पर RBI के साथ व्यवहार करती है और उसे सरकारी बाण्ड्स (Government Bonds) के बदले में नई मुद्रा छापने के लिये कहती है।
- नई मुद्रा छापने के एवज़ में RBI को सरकारी बाण्ड्स प्राप्त होते हैं जो कि RBI की परिसंपत्ति हैं, क्योंकि ऐसे बाण्ड्स निर्दिष्ट तिथि पर निर्दिष्ट राशि का भुगतान करने के लिये सरकार के दायित्त्व का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- अब सरकार के पास खर्च करने के लिये आवश्यक नकदी होगी और सरकार विभिन्न उपायों जैसे- गरीबों के लिये प्रत्यक्ष हस्तांतरण, अस्पतालों का निर्माण और छोटे एवं मध्यम उद्यमों के श्रमिकों को मज़दूरी सब्सिडी प्रदान करने आदि के माध्यम से अर्थव्यवस्था में तनाव को कम कर सकेगी।
- इस प्रकार सरकार के राजकोषीय घाटे को कम करने के लिये नई मुद्रा को छापना ‘प्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण है, यह ‘अप्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण से काफी अलग होता है, इसमें RBI ‘ओपन मार्केट ऑपरेशन्स’ (Open Market Operations-OMOs) के माध्यम से अर्थव्यवस्था को तरलता प्रदान करने का प्रयास करता है।
यूनाइटेड किंगडम (UK) में ‘प्रत्यक्ष' मुद्रीकरण
- 9 अप्रैल, 2020 को UK में, बैंक ऑफ इंग्लैंड (Bank of England) ने UK सरकार को प्रत्यक्ष मुद्रीकरण की सुविधा प्रदान की थी, किंतु बैंक ऑफ इंग्लैंड के मौज़ूदा गवर्नर एंड्रयू बेली (Andrew Bailey) ने अंतिम क्षण तक इस कदम का विरोध किया था।
‘प्रत्यक्ष' मुद्रीकरण की सीमाएँ
- राजकोषीय घाटे के ‘प्रत्यक्ष’ मुद्रीकरण की अवधारणा आर्थिक जगत में एक अत्यंत विवादास्पद विषय है। हाल ही में RBI के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने सरकार को ‘प्रत्यक्ष' मुद्रीकरण के प्रति आगाह किया था।
- सामान्यतः यह उपकरण सरकार को उस समय समग्र मांग में बढ़ोतरी करने का अवसर प्रदान करता है जब निजी मांग में गिरावट आई है, जैसा कि मौजूदा स्थिति में हो रहा है, किंतु यदि सरकार इस उपकरण के प्रयोग को सही समय पर बंद नहीं करती तो यह एक और बड़े संकट को उत्पन्न कर सकता है।
- इस नए पैसे का प्रयोग कर सरकार आम लोगों की आय में बढ़ोतरी का प्रयास करती है और अर्थव्यवस्था में निजी मांग को बढ़ावा देती है। और इस प्रकार अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलता है।
- ध्यातव्य है कि मुद्रास्फीति में वृद्धि एक सीमा तक सही है, क्योंकि यह व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करती है, किंतु यदि सरकार समय पर ‘प्रत्यक्ष' मुद्रीकरण को नहीं रोकती है तो अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति पैदा हो सकती है।
- उच्च मुद्रास्फीति और उच्च सरकारी ऋण अर्थव्यवस्था में व्यापक स्तर पर अस्थिरता उत्पन्न कर सकते हैं।
आगे की राह
- कोरोनावायरस महामारी के कारण भारत समेत संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था संकट का सामना कर रही है। विभिन्न आर्थिक संकेत दर्शाते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इस महामारी का दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।
- ऐसे समय में आवश्यक है कि भारत में विभिन्न विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों को मिलाकर एक समूह का गठन किया जाए जो इस विषय पर विचार-विमर्श करें कि महामारी और महामारी के पश्चात् किन उपायों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी में जाने से बचाया जा सकता है।
- साथ ही हमें विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संस्थानों के साथ मिलकर भी कार्य करना होगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कृषि
आधार सीडिंग की अवधि में छूट
प्रीलिम्स के लियेप्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना मेन्स के लियेविभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ और उन्हें उपाय |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN Scheme) के तहत असम एवं मेघालय राज्यों तथा जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों के लाभार्थियों को लाभ प्रदान करने के लिये डेटा की आधार सीडिंग की अनिवार्य आवश्यकता में 31 मार्च, 2021 तक छूट देने को मंज़ूरी प्रदान की है।
प्रमुख बिंदु
- नियमों के अनुसार, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN Scheme) के तहत लाभ की राशि केवल PM-किसान पोर्टल पर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों द्वारा अपलोड किये गए लाभार्थियों के आधार सीडेड (Aadhaar Seeded) डेटा के जरिये ही जारी की जाती है।
- हालाँकि, असम एवं मेघालय राज्यों तथा जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों को 31 मार्च, 2020 तक इस नियम से छूट प्रदान की गई थी, जो कि अब खत्म हो चुकी है। इस राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को छूट प्रदान करने का मुख्य कारण यह है कि उस समय इनका इनका आधार डेटाबेस काफी कम था।
आवश्यकता
- केंद्र सरकार द्वारा किये गए आकलन के अनुसार, असम, मेघालय, जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के पात्र के डेटा की आधार सीडिंग के कार्य को पूरा करने में अभी बहुत अधिक समय लगेगा।
- अतः यदि डेटा की आधार सीडिंग की अनिवार्य आवश्यकता में छूट की अवधि को बढाया नहीं जाता है तो इन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लाभार्थी 1 अप्रैल, 2020 के बाद से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ उठाने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।
- इन राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में लाभार्थी किसानों की कुल संख्या, जिन्हें अब तक कम-से-कम एक किस्त का भुगतान किया गया है, असम में 27,09,586, मेघालय में 98,915 और लद्दाख समेत जम्मू-कश्मीर में 10,01,668 है।
आधार सीडिंग (Aadhaar Seeding) और इसका महत्त्व
- आधार सीडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा क्षेत्र विशिष्ट के निवासियों के आधार नंबर को सेवा प्रदाताओं द्वारा सेवा वितरण डेटाबेस में शामिल किया जाता है ताकि सेवा वितरण के दौरान डेटाबेस के माध्यम से लाभार्थियों की पहचान आसानी से की जा सके।
- ध्यातव्य है कि आधार नंबर स्वयं में एक अनूठा नंबर होता है और यह एक व्यक्ति के संपूर्ण जीवनकाल में परिवर्तित नहीं होता है, इस प्रकार उस व्यक्ति की पहचान करने के लिये यह सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प होता है।
- आधार का प्रयोग किये बिना किसी लाभार्थी को लाभ हस्तांतरित करने के लिये सरकार/संस्था को बैंक खाता नंबर, IFSC कोड और बैंक शाखा विवरण आदि की आवश्यक होती है, किंतु यदि इस कार्य के लिये आधार डेटाबेस का प्रयोग किया जाता है तो इस कार्य को केवल 12 अंकों के नंबर के साथ पूरा किया जा सकता है।
- इसके माध्यम से प्रशासनिक बोझ कम किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 फरवरी, 2019 को लघु एवं सीमांत किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
- आरंभ में यह योजना केवल लघु एवं सीमांत किसानों (2 हेक्टेयर से कम जोत वाले) के लिये ही शुरू की गई थी, किंतु योजना लागू होने के कुछ समय पश्चात् कैबिनेट द्वारा लिये गए निर्णय के उपरांत यह योजना देश भर के सभी किसानों हेतु लागू कर दी गई।
- इस योजना के तहत पात्र किसान परिवारों को प्रतिवर्ष 6,000 रुपए की दर से आय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। यह आय सहायता 2,000 रुपए की तीन समान किस्तों में लाभान्वित किसानों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष रूप से हस्तांतरित की जाती है, ताकि संपूर्ण प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
‘डीप न्यूड’ संबंधी मुद्दा
प्रीलिम्स के लिये:कृत्रिम बुद्धिमत्ता, फिशिंग मेन्स के लिये:कृत्रिम बुद्धिमत्ता की उपयोगिता से उत्पन्न चुनैतियाँ |
चर्चा में क्यों?
भारत के साइबर क्राइम अधिकारी उन एप और वेबसाइटों पर नज़र रख रहे हैं जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) एल्गोरिदम का उपयोग करके आम लोगों की नग्न तस्वीरें बनाते हैं।
प्रमुख बिंदु:
- डीप न्यूड (Deep Nude) के बारे में:
- कंप्यूटर की सहायता से बनाई गई नग्न तस्वीरों और वीडियो को डीप न्यूड कहा जाता हैं। साइबर अपराधी कृत्रिम बुद्धिमत्ता सॉफ्टवेयर की मदद से वीडियो, ऑडियो और तस्वीरों पर नग्न सामग्री अध्यारोपित कर देते हैं।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता एल्गोरिदम का उपयोग कर किसी व्यक्ति के बोलने के तरीके, सिर तथा चेहरे की गतिविधियों को किसी अन्य व्यक्ति के साथ अध्यारोपित कर देने से यह बताना मुश्किल हो जाता है कि यह वीडियो/तस्वीरें सही हैं या गलत। कंप्यूटर द्वारा तैयार की गईं इन वीडियो/तस्वीरों की सत्यता की जाँच गहन विश्लेषण से ही की जा सकती है।
- वर्ष 2017 में पहली बार एक व्यक्ति द्वारा ‘डीप फेक’ (Deepfake) नाम से अकाउंट बनाकर सोशल मीडिया पर नग्न सामग्री पोस्ट की गई तत्पश्चात दुनियाभर में इस तरह के एप और वेबसाइटों को बनाने का चलन बढ़ गया। इनमें से प्रमुख एप फेसएप (FaceApp) और डीप न्यूड (Deep Nude) हैं।
डीप न्यूड का प्रभाव:
- ‘फयेत्तविले स्टेट यूनिवर्सिटी’ (Fayetteville State University) के अनुसार, साइबर स्पेस (Cyber Space) में डीप न्यूड द्वारा आधुनिक तरीके से धोखाधड़ी की जाती है। वर्तमान में धोखाधड़ी फर्जी खबर, फर्जी ई-मेल/फिशिंग अटैक, सोशल इंजीनियरिंग साइबर अटैक, इत्यादि के माध्यम से की जाती है।
फिशिंग (Phishing):
- इस प्रकार के साइबर हमलों में हैकर, लोगों को मोबाइल संदेश या ई-मेल इस उद्देश्य से भेजता है ताकि उनकी गोपनीय जानकारियों को चुराया जा सके। उदाहरण के लिये, हैकर आपको ऐसा ई-मेल भेज सकता है जो किसी विश्वसनीय स्रोत जैसे- बैंक अथवा सरकार आदि द्वारा प्रसारित प्रतीत होता हो, परंतु असल में वह संदेश ऐसे ही किसी अन्य संदेश की कॉपी होता है और आप जैसे ही अपनी गोपनीय जानकारियाँ उसमें भरते हैं, वैसे ही वे जानकारियाँ हैकर के पास पहुँच जाती हैं।
क्या डीप फेक वैधानिक है?
- दुनिया के कई देशों में डीपफेक की वैधानिकता जटिल है। अमेरिका के संदर्भ में बात करें तो, यदि किसी व्यक्ति को डीपफेक द्वारा परेशान किया जाता है तो वह मानहानि का दावा करने के साथ ही नग्न सामग्री को इंटरनेट से हटाने हेतु बाध्य कर सकता है।लेकिन अमेरिका में मौजूदा कानूनी प्रावधान किसी व्यक्ति को धर्म, अभिव्यक्ति और याचिका के अधिकार से संबंधित स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। अतः इंटरनेट से सामग्री को हटाने हेतु बाध्य करना प्रथम संशोधन (अमेरिकी संविधान) का उल्लंघन है।
- साइबर सिविल राइट्स इनिशिएटिव (Cyber Civil Rights Initiative) के अनुसार, अमेरिका के 46 राज्यों में 'रिवेंज पॉर्न' (किसी को परेशान कर बदलना लेना) से संबंधित कानून है।
निष्कर्ष:
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता विगत कई दशकों से चर्चा के केंद्र में रहा एक ज्वलंत विषय है। वैज्ञानिक इसके अच्छे और बुरे परिणामों को लेकर समय-समय पर विचार-विमर्श करते रहते हैं। जहाँ दुनिया तकनीक के माध्यम से तेज़ी से बदल रही है वहीं इसने कई नई समस्याओं को भी जन्म दिया है, जिनका समाधान करने के लिये नित नए उपाय अपनाए जाने चाहिये।
- साइबर दुनिया के गलत इस्तेमाल पर अंकुश लगाना ज़रूरी है। साइबर सुरक्षा और सोशल मीडिया के दुरुपयोग का मुद्दा ऐसा है, जिसकी और अनदेखी नहीं की जानी चाहिये। विभिन्न प्लेटफॉर्म्स के ज़रिये गलत सामग्री के साझा करने से लोगों के निजता के अधिकार का हनन होता है, ऐसे में इसके खिलाफ कड़ा नियमन करने तथा साइबर अपराधों और हमलों को लेकर काफी सजग रहने की आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 अप्रैल, 2020
हरियाणा में पत्रकारों को बीमा
हाल ही में हरियाणा सरकार ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के दौरान रिपोर्टिंग कर रहे सभी पत्रकारों को 10 लाख रुपए का बीमा कवर प्रदान करने का निर्णय लिया है। इस संबंध में सूचना देते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि सरकार उन सभी पत्रकारों के कार्य की सराहना करती है जो इस महामारी के दौरान भी अपनी जान जोखिम में डालते हुए इसकी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। इसीलिये इस दौरान कार्य रहे सभी मान्यता प्राप्त व संबद्ध पत्रकारों को बीमा कवर प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। उल्लेखनीय है कि यदि कोरोना वायरस के कारण उस पत्रकार की मृत्यु हो जाती है तो 10 लाख रुपए की बीमा राशि उसके आश्रितों को प्रदान की जाएगी। हरियाणा पत्रकार संघ (Haryana Patarkar Sangh) ने राज्य सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है। हरियाणा पत्रकार संघ के अनुसार, सभी पत्रकारों को 10 लाख रुपए का बीमा कवर देकर न केवल पत्रकार, बल्कि उनके परिवार के लोगों की भी मदद की जा सकेगी। ध्यातव्य है कि हरियाणा में कोरोना वायरस संक्रमण के कुल 280 मामले सामने आ चुके हैं और राज्य में इस वायरस के कारण अब तक 3 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
‘वाइटल’ वेंटिलेटर
अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के इंजीनियरों ने विशेष रूप से COVID-19 रोगियों के उपचार के लिये ‘वाइटल’ (VITAL) नाम से एक नया हाई प्रेशर वेंटिलेटर बनाया है। यहाँ ‘वाइटल’ (VITAL) का अर्थ ‘वेंटिलेटर इंटरवेंशन टेक्नोलॉजी एक्सिसेबल लोकली’ (Ventilator Intervention Technology Accessible Locally) से है। इस वेंटिलेटर की विशेषता यह है कि इसे आसानी से बनाया जा सकता है। यह वेंटिलेटर मामूली लक्षणों वाले रोगियों के उपचार के लिये तैयार किया गया है। वर्तमान में अमेरिका के फूड एंड ड्रंग एडमिनिस्ट्रेशन (Food and Drug Administration-FDA) द्वारा इस वेंटिलेटर के आपात प्रयोग हेतु इसकी समीक्षा की जा रही है। वाइटल वेंटिलेटर के निर्माताओं के अनुसार, इस वेंटिलेटर से सामान्य लक्षणों वाले मरीज़ों का इलाज किया जाएगा, ताकि अमेरिका में सीमित मात्रा में मौज़ूद परंपरागत वेंटिलेटरों से कोरोना वायरस के गंभीर मरीज़ों को सुरक्षा प्रदान की सके। नासा द्वारा विकसित यह वेंटीलेटर परंपरागत वेंटीलेटरों से काफी सस्ता भी है। ‘वाइटल’ वेंटिलेटर को दक्षिणी कैलिफोर्निया (Southern California) स्थित नासा की जेट प्रपलसन लैबोरेट्री (Jet Propulsion Laboratory) में विकसित किया गया है। ध्यातव्य है कि वैश्विक स्तर पर अमेरिका कोरोना वायरस महामारी के कारण सर्वाधिक प्रभावित हुआ है और अमेरिका में संक्रमित लोगों की संख्या 9 लाख के भी पार जा चुकी है।
विश्व मलेरिया दिवस
प्रत्येक वर्ष 25 अप्रैल को मलेरिया के रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये निरंतर निवेश की आवश्यकता को उजागर करने तथा इस संबंध में राजनीतिक प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने हेतु विश्व मलेरिया दिवस (World Malaria Day) का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2020 के लिये विश्व मलेरिया दिवस की थीम ‘ज़ीरो मलेरिया स्टार्ट्स विद मी’ (Zero Malaria Starts With Me) है। विश्व मलेरिया दिवस एक उच्च स्तरीय अभियान है जिसका उद्देश्य राजनीतिक एजेंडे में मलेरिया को उच्च स्थान प्रदान करना, अतिरिक्त संसाधन जुटाना, आम लोगों को मलेरिया की रोकथाम और इसके देखभाल के प्रति जागरूक बनाना है। ध्यातव्य है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) द्वारा जारी की जाने वाली ‘विश्व मलेरिया रिपोर्ट (World Malaria Report) के अनुसार, वर्ष 2014 से 2018 के मध्य मलेरिया के रोकथाम में कोई भी वैश्विक प्रगति नहीं की जा सकी है। विश्व मलेरिया दिवस की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की निर्णय निर्माता संस्था विश्व स्वास्थ्य असेंबली (World Health Assembly) के 60वें अधिवेशन में मई, 2007 में की गयी थी। मलेरिया प्लास्मोडियम परजीवियों (Plasmodium Parasites) के कारण होने वाला मच्छर जनित रोग है।
WHO को चीन की अतिरिक्त सहायता
चीन ने कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) को 3 करोड़ डॉलर की अतिरिक्त सहायता प्रदान करने की घोषणा की है। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को 2 करोड़ डॉलर की धन राशि प्रदान की थी। चीन के अनुसार, मौज़ूदा समय में कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली को और अधिक मज़बूत बनाने की आवश्यकता है। विदित हो कि हाल ही में अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पर कोरोना वायरस के कुप्रबंधन का आरोप लगते हुए उसकी फंडिंग पर रोक लगा दी थी। अमेरिका का मत है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने में विफल रहा है और संगठन ने वायरस के बारे में चीन के ‘दुष्प्रचार’ को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण संभवतः वायरस ने और अधिक गंभीर रूप धारण कर लिया है। चीन द्वारा की गई घोषणा से कोरोना वायरस के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई को और अधिक मज़बूती प्रदान की जा सकेगी।