शासन व्यवस्था
नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2022
प्रिलिम्स के लिये:शहरी स्थानीय निकाय, नगर निगम, भारतीय संविधान का 74वाँ संशोधन। मेन्स के लिये:शहरी स्थानीय निकायों की कार्यात्मक स्वायत्तता के लिये चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2022 जल्द ही संसद में पेश किया जाएगा।
- इसका उद्देश्य नगर निकाय के विभाजन के 10 साल बाद राजधानी दिल्ली के तीनों (दक्षिण, उत्तर और पूर्व दिल्ली) नगर निगमों का विलय करना है।
विलय की पृष्ठभूमि और आवश्यकता:
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2011 में सरकार ने बेहतर दक्षता के लिये एमसीडी को तीन भागों में बाँटने का प्रस्ताव रखा था।
- गृह मंत्रालय द्वारा नवंबर 2011 में इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई थी, जिसके बाद दिल्ली सरकार ने एक विशेष विधानसभा सत्र बुलाया और दिसंबर 2011 में दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक पारित किया।
- त्रि विभाजन के लिये अंतिम अधिसूचना जनवरी 2012 में जारी की गई, जिसके अंतर्गत उत्तर और दक्षिण नगर निगम को 104 वार्ड तथा पूर्वी दिल्ली नगर निगम को 64 वार्ड प्रदान किये गए।
- आवश्यकता:
- कई समस्याओं का सामना करना:
- तीन भागों में विभाजित एमसीडी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा जैसे कि सफाई कर्मचारियों (स्वीपर्स) के वेतन का भुगतान न करना, तीन नागरिक निकायों के बीच संपत्ति का असमान वितरण, अक्षम प्रबंधन और बढ़ता नुकसान आदि।
- असमान विभाजन:
- क्षेत्रीय विभाजन और प्रत्येक निगम की राजस्व-सृजन क्षमता के संदर्भ में तीनों नगर निगमों का विभाजन असमान था।
- परिणामस्वरूप तीनों निगमों के दायित्वों तथा उपलब्ध संसाधनों में बहुत अधिक अंतर था।
- अधिक अंतराल :
- समय के साथ यह अंतर बढ़ता गया तथा तीनों नगर निगमों की वित्तीय कठिनाइयों में वृद्धि होने लगी, जिससे वे अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन एवं सेवानिवृत्ति लाभों का भुगतान करने में असमर्थ हो गए तथा इस प्रकार दिल्ली में नागरिक सेवाओं को बनाए रखने में गंभीर बाधाएँ उत्पन्न होने लगीं।
- कई समस्याओं का सामना करना:
नगर निगम:
- परिचय:
- भारत में नगर निगम दस लाख से अधिक लोगों की आबादी वाले किसी भी महानगर/शहर के विकास के लिये ज़िम्मेदार एक शहरी स्थानीय निकाय है।
- महानगर पालिका, नगर पालिका, नगर निगम, सिटी कारपोरेशन आदि इसके कुछ अन्य नाम हैं।
- राज्यों में नगर निगमों की स्थापना राज्य विधानसभाओं के अधिनियमों द्वारा तथा केंद्रशासित प्रदेशों में संसद के अधिनियमों के माध्यम से की जाती है।
- नगरपालिका अपने कार्यों के संचालन के लिये संपत्ति कर राजस्व पर अधिक निर्भर रहती है।
- भारत में पहला नगर निगम वर्ष 1688 में मद्रास में स्थापित किया गया तथा उसके बाद वर्ष 1726 में बॉम्बे और कलकत्ता में नगर निगम स्थापित किये गए।
- भारत में नगर निगम दस लाख से अधिक लोगों की आबादी वाले किसी भी महानगर/शहर के विकास के लिये ज़िम्मेदार एक शहरी स्थानीय निकाय है।
- नगर निगम के निर्माण की आवश्यकता:
- भारत के शहरों में बढ़ती आबादी और शहरीकरण ने स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, आवास एवं परिवहन जैसी आवश्यक सामुदायिक सेवाएँ प्रदान करने हेतु राज्य सरकार से संपत्ति कर तथा निश्चित अनुदान एकत्र करने में सक्षम एक स्थानीय शासी निकाय की स्थापना की आवश्यकता को जन्म दिया है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारत के संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद-40 को शामिल करने के अलावा स्थानीय स्वशासन की स्थापना के लिये कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं किया गया था।
- 74वें संशोधन अधिनियम, 1992 ने संविधान में एक नया भाग IX-A सम्मिलित किया है, जो नगर पालिकाओं और नगर पालिकाओं के प्रशासन से संबंधित है।
- इसमें अनुच्छेद 243P से 243ZG शामिल हैं। इसने संविधान में एक नई बारहवीं अनुसूची भी जोड़ी। 12वीं अनुसूची में 18 मद शामिल हैं।
- संरचना:
- प्रत्येक नगरपालिका क्षेत्र को उस विशेष शहर की जनसंख्या के आधार पर वार्ड के रूप में ज्ञात भौगोलिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
- प्रत्येक वार्ड एक प्रतिनिधि का चुनाव करता है, जिसे उस वार्ड के निवासियों द्वारा चुना जाता है। वार्ड समिति के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर पाँच वर्ष के लिये किया जाता है।
- एक पार्षद या नगरसेवक एक निश्चित वार्ड का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है।
- नगर की जनसंख्या नगर निगम क्षेत्र में वार्डों की संख्या निर्धारित करती है। इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, वंचित वर्ग और महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित होती हैं।
विगत वर्षों के प्रश्नभारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का शिक्षा पर प्रभाव है? (2012) 1. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
लेड/सीसा विषाक्तता
प्रिलिम्स के लिये:लेड/सीसा विषाक्तता, लेड/सीसा, एनीमिया, उच्च रक्तचाप, गुर्दे की क्षति, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम। मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, लेड/सीसा विषाक्तता एवं संबंधित चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जाम्बिया में ‘काब्वे खदान’ के आसपास रहने वाले हज़ारों बच्चों के रक्त में लेड/सीसा का उच्च स्तर पाया गया है।
लेड/सीसा विषाक्तता:
- परिचय:
- लेड/सीसा विषाक्तता प्रायः शरीर में लेड/सीसे के अवशोषण के कारण होती है और इसके कारण विशेष रूप से थकान, पेट में दर्द, दस्त, भूख न लगना, एनीमिया, मांसपेशियों के पक्षाघात या अंगों की कमज़ोरी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
- 6 वर्ष से कम आयु के बच्चे विशेष रूप से लेड/सीसा विषाक्तता की चपेट में आते हैं, जो उनके मानसिक और शारीरिक विकास को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। अत्यधिक लेड विषाक्तता मानव स्वास्थ्य के लिये घातक हो सकती है।
- लेड के संपर्क में आने से एनीमिया, उच्च रक्तचाप, गुर्दे की दुर्बलता, इम्यूनोटॉक्सिसिटी और प्रजनन अंगों में विषाक्तता भी होती है।
- वैश्विक लेड खपत का तीन-चौथाई हिस्सा मोटर वाहनों के लिये लेड-एसिड बैटरी के निर्माण हेतु प्रयोग किया जाता है।
- लेड/सीसा विषाक्तता के कारण:
- प्रायः लोग व्यावसायिक एवं पर्यावरणीय स्रोतों के माध्यम से लेड विषाक्तता का शिकार हो सकते हैं। यह मुख्य रूप से निम्नलिखित का परिणाम हो सकता है:
- लेड/सीसा युक्त सामग्री, जैसे- लेड पेंट को जलाने तथा लेड एविएशन फ्यूल का उपयोग करने से उत्पन्न लेड कणों का श्वसन।
- लेड/सीसा-दूषित धूल, पानी (सीसायुक्त पाइप्स से) और भोजन का अंतर्ग्रहण।
- प्रायः लोग व्यावसायिक एवं पर्यावरणीय स्रोतों के माध्यम से लेड विषाक्तता का शिकार हो सकते हैं। यह मुख्य रूप से निम्नलिखित का परिणाम हो सकता है:
लेड/सीसे का अर्थ:
- लेड/सीसा, प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली एक ज़हरीली धातु है, जो पृथ्वी की क्रस्ट में पाई जाती है।
- शरीर में लेड/सीसा मस्तिष्क, यकृत, गुर्दे और हड्डियों में वितरित हो जाता है। यह दाँतों और हड्डियों में जमा हो जाता है, जहाँ यह लंबे समय तक मौजूद रहता है।
- मानव जोखिम का आकलन आमतौर पर रक्त में लेड/सीसे के माप के माध्यम से किया जाता है।
- गर्भावस्था के दौरान हड्डियों में मौजूद लेड/सीसा रक्त में पहुँच जाता है, जिससे विकासशील भ्रूण भी इसके संपर्क में आ जाता है।
- लेड के कारण होने वाली क्षति को रोका जा सकता है।
लेड/सीसा संबंधी रोग भार?
- इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) के अनुसार, वर्ष 2019 में स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभावों के कारण दुनिया भर में 900000 मौतें हुईं और स्वस्थ जीवन के 21.7 मिलियन वर्ष (विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष, या DALYs) का नुकसान हुआ।
- इसका सबसे ज्यादा बोझ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में देखा गया था।
विश्व की प्रतिक्रिया क्या रही है?
- WHO की प्रतिक्रिया:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये चिंताजनक 10 रसायनों में से एक सीसा है।
- WHO ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के साथ मिलकर लेड पेंट (Lead Paint) को खत्म करने के लिये एक ग्लोबल अलायंस बनाया है।
- कई देशों में लेड पेंट एक्सपोज़र का एक सतत् स्रोत है।
- WHO, ग्लोबल एन्वायरनमेंट फैसिलिटी (GEF) द्वारा वित्तपोषित एक परियोजना का भी भागीदार है जिसका उद्देश्य लेड पेंट पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नियंत्रण लागू करने में कम-से-कम 40 देशों का समर्थन करना है।
- वर्ष 1992 के रियो अर्थ समिट द्वारा स्थापित GEF, पर्यावरण से संबंधित कार्रवाई के लिये एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
- भारत की प्रतिक्रिया:
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) ने घरेलू और सजावटी पेंट नियम, 2016 में सीसा संबंधी सामग्री के विनियमन लिये एक अधिसूचना जारी की है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)शरीर में श्वास अथवा खाने से पहुँचा सीसा (लेड) स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है। पेट्रोल में सीसे का योग प्रतिबंधित होने के बाद से अब सीसे की विषाक्तता उत्पन्न करने वाले स्रोत कौन-कौन से हैं? 1- प्रगलन इकाइयाँ निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय राजनीति
अनुच्छेद 355 और संवैधानिक तंत्र में व्यवधान
प्रिलिम्स के लिये:संवैधानिक तंत्र में व्यवधान, राष्ट्रीय आपातकाल, संवैधानिक आपातकाल, वित्तीय आपातकाल। मेन्स के लिये:भारतीय संविधान, आपातकालीन प्रावधान, आपातकाल के प्रकार। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले में चुनाव के बाद की हिंसा का हवाला देते हुए कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति से संविधान के अनुच्छेद 355 को लागू करने का आग्रह किया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करे।
- याचिकाकर्त्ता द्वारा संवैधानिक तंत्र में उत्पन्न व्यवधान पर अनुच्छेद 355 लगाने की मांग की गई है।
प्रमुख बिंदु
अनुच्छेद 355:
- अनुच्छेद 355 संविधान में उस प्रावधान को संदर्भित करता है जिसमें कहा गया है कि "संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की रक्षा करे, साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित करे कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करे।"
- अनुच्छेद 355 आपातकालीन प्रावधानों का हिस्सा है जो संविधान के भाग XVIII में शामिल अनुच्छेद 352 से अनुच्छेद 360 तक में निहित है।
अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 355 के बीच संबंध:
- अनुच्छेद 356 के तहत केंद्र किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने या व्यवधान/अवरोध की स्थिति उत्पन्न होने पर राज्य सरकार के कार्यों को अपने अधीन ले लेता है।
- इसे लोकप्रिय रूप से 'राष्ट्रपति शासन' के रूप में जाना जाता है।
- 'राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार: राष्ट्रपति शासन को अनुच्छेद 356 के तहत दो आधारों पर घोषित किया जा सकता है:
- अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा जारी करने का अधिकार देता है। यदि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें किसी राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार चलने में सक्षम न हो तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 356 का उपयोग कर राष्ट्रपति शासन लगा सकता है।
- अनुच्छेद 365 के अनुसार, जब भी कोई राज्य केंद्र के किसी निर्देश का पालन करने या उसे लागू करने में विफल रहता है, तो राष्ट्रपति के लिये यह मानना वैध होगा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राज्य की सरकार संविधान के प्रावधान के अनुसार नहीं चल सकती है।
- संसदीय अनुमोदन और अवधि: राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा इसके जारी होने की तारीख से दो महीने के भीतर अनुमोदित किया जाना चाहिये।
- राष्ट्रपति शासन के परिणाम: जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है तो राष्ट्रपति को निम्नलिखित असाधारण शक्तियाँ प्राप्त होती हैं:
- वह राज्य सरकार के कार्यों और राज्यपाल या राज्य में किसी अन्य कार्यकारी प्राधिकरण में निहित शक्तियों को ले सकता है।
- वह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग संसद द्वारा किया जाना है।
- वह राज्य में किसी भी निकाय या प्राधिकरण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के निलंबन सहित अन्य सभी आवश्यक कदम उठा सकता है।
- न्यायिक समीक्षा का दायरा: वर्ष 1975 के 38वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 356 को अंतिम और निर्णायक रूप से लागू करने में राष्ट्रपति की संतुष्टि, जिसे किसी भी आधार पर किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जाएगी।
- लेकिन इस प्रावधान को बाद में 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम द्वारा हटा दिया गया था, जिसका अर्थ था कि राष्ट्रपति की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है।
आपातकालीन प्रावधान:
- ये प्रावधान केंद्र सरकार को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम बनाते हैं।
- भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधान भारत सरकार अधिनियम 1935 से लिये गए हैं।
- हालाँकि आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन वीमर (जर्मन) संविधान से लिया गया है।
- आपातकालीन प्रावधानों का उद्देश्य देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता एवं सुरक्षा, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था और संविधान की रक्षा करना है।
- संविधान तीन प्रकार की आपात स्थितियों को निर्धारित करता है:
- राष्ट्रीय आपातकाल
- संवैधानिक आपातकाल
- वित्तीय आपातकाल
राष्ट्रीय आपातकाल का अर्थ:
- राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के आधार पर की जा सकती है। संविधान इस प्रकार की आपातस्थिति को दर्शाने हेतु 'आपातकाल की उद्घोषणा' अभिव्यक्ति का प्रयोग करता है।
- घोषणा के आधार:
- अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है, जब भारत या उसके एक हिस्से की सुरक्षा को युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा हो।
- राष्ट्रपति युद्ध या सशस्त्र विद्रोह या बाह्य आक्रमण की वास्तविक घटना से पहले ही राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
- जब 'युद्ध' या 'बाह्य आक्रमण' के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है, तो इसे 'बाह्य आपातकाल' के रूप में जाना जाता है।
- दूसरी ओर, जब 'सशस्त्र विद्रोह' के आधार पर आपातकाल की घोषणा की जाती है, तो इसे 'आंतरिक आपातकाल' के रूप में जाना जाता है।
- 'सशस्त्र विद्रोह' शब्द को 44वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में जोड़ा गया था। इस शब्द से पहले इसे ‘आंतरिक अशांति’ के रूप में जाना जाता था।
वित्तीय आपातकाल का अर्थ:
- घोषणा के आधार: अनुच्छेद 360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार देता है यदि वह इस बात से संतुष्ट है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसके कारण भारत या उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से की वित्तीय स्थिरता या क्रेडिट को खतरा है।
मौलिक अधिकारों पर आपातकाल का प्रभाव:
- अनुच्छेद 358 और 359 मौलिक अधिकारों पर राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभाव का वर्णन करते हैं। इन दो प्रावधानों को नीचे समझाया गया है:
- अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों का निलंबन: अनुच्छेद 358 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है तो अनुच्छेद 19 के तहत सभी छह मौलिक अधिकार स्वतः निलंबित हो जाते हैं।
- अन्य मौलिक अधिकारों का निलंबन: अनुच्छेद 359 के तहत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान आदेश द्वारा मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन हेतु किसी भी अदालत में जाने के अधिकार को निलंबित करने की शक्ति प्राप्त है।
- हालाँकि यह ज्ञातव्य है कि राष्ट्रपति शासन और वित्तीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं होते हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. किस पंचवर्षीय योजना के दौरान आपातकाल लगाया गया था, नए चुनाव हुए थे और जनता पार्टी चुनी गई थी? (2009) (a) तीसरी उत्तर: (c) किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के निम्नलिखित में से कौन-से परिणामों का होना आवश्यक नहीं है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
'सुजलम 2.0' धूसर जल पुनर्चक्रण परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:धूसर जल, SBM-G फेज II, MGNREGS, सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल, जल जीवन मिशन, जल शक्ति अभियान। मेन्स के लिये:जल संकट का मुद्दा और उठाए जाने वाले कदम। |
चर्चा में क्यों?
विश्व जल दिवस (22 मार्च) के अवसर पर जल शक्ति मंत्रालय ने धूसर जल तथा रसोई, स्नान और कपड़े धोने से या अपवाह के जल के पुन: उपयोग के लिये एक देशव्यापी परियोजना शुरू की।
धूसर जल:
- धूसर जल को घरेलू प्रक्रियाओं (जैसे बर्तन धोना, कपड़े धोना और स्नान करना) से उत्पन्न अपशिष्ट जल के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- धूसर जल में हानिकारक बैक्टीरिया और यहाँ तक कि मृदा एवं भूजल को दूषित करने वाले अपशिष्ट भी हो सकते हैं।
- अभी तक भारत के पास शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में धूसर जल के प्रबंधन एवं उपयोग के लिये एक केंद्रीयकृत नीतिगत ढाँचा नहीं है। हालाँकि अपशिष्ट जल के उपचार हेतु कुछ दिशा-निर्देश मौजूद हैं।
- उदाहरण के लिये- केंद्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन (CPHEEO) ने उपचारित पानी के लिये अनुमत निर्वहन मानकों को निर्दिष्ट किया है; जैसे- कृषि एवं बागवानी में उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग (एमओएचयूए, 2012)।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) निर्देश देता है कि उपचारित अपशिष्ट जल को मानकों को पूरा करने और मौजूदा भूजल के अनुकूल होने के बाद कृत्रिम भूजल पुनर्भरण के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
'सुजलम 2.0' ग्रे-वाटर रिसाइकलिंग प्रोजेक्ट:
- परिचय:
- यह परियोजना पंचायतघर, स्वास्थ्य सुविधाओं, स्कूलों, आँगनवाड़ी केंद्रों (AWCs), सामुदायिक केंद्रों और अन्य सरकारी संस्थानों में संस्थागत स्तर के ग्रे-वाटर प्रबंधन परिसंपत्तियों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेगी।
- व्यक्तिगत एवं सामुदायिक ग्रे-वाटर प्रबंधन परिसंपत्तियों के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- अगस्त 2021 में शुरू किये गए ‘सुजलम 1.0’ अभियान के तहत सभी राज्यों एवं स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी से बड़ी सफलता हासिल की गई।
- पूरे देश में घरेलू और सामुदायिक स्तर पर 10 लाख से अधिक सोख्ता गड्ढे बनाए गए।
- परियोजना हेतु वित्तपोषण:
- ग्रे-वाटर प्रबंधन हेतु गतिविधियों को निष्पादित करने के लिये वित्तपोषण, स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण चरण-II या 15वें वित्त आयोग से जुड़े अनुदान या मनरेगा के माध्यम से या सभी के अभिसरण के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा।
‘ग्रे-वाटर’ संकट को संबोधित करने की आवश्यकता:
- ताज़े पानी की बचत से घरेलू पानी के बिलों को काफी कम किया जा सकता है, साथ ही इससे सार्वजनिक जल आपूर्ति को कम करने में भी मदद मिलेगी।
- सीवर या साइट पर उपचार प्रणालियों में प्रवेश करने वाले अपशिष्ट जल की मात्रा को कम करना।
- विश्व भर में 2.2 अरब लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं।
- सतत् विकास लक्ष्य 6 का उद्देश्य सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता के लिये सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करना है।
- अनुमान है कि भारत में प्रतिदिन 31 अरब लीटर ग्रे-वाटर उत्पन्न होता है।
- सुजलम 2.0 अभियान के तहत 6 लाख से अधिक गाँवों में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन पर ज़ोर दिया जाएगा।
- वर्तमान के संदर्भ में ग्रामीण घरों से बहुत अधिक पानी का प्रवाह होगा।
- अगस्त, 2019 में शुरू होने के बाद से जल जीवन मिशन के तहत 6 करोड़ नल के पानी के कनेक्शन प्रदान किये गए हैं।
- देश में कुल 9.24 करोड़ घरों में नल के माध्यम से पानी उपलब्ध कराया जाता है।
संबंधित पहल:
- भारत:
- जल शक्ति अभियान:
- इसे पानी की कमी वाले ज़िलों को शामिल करने के लिये वर्ष 2019 में शुरू किया गया है, वर्ष 2021 में इसका विस्तार ग्रामीण और शहरी ज़िलों तक किया गया है।
- अटल भुजल योजना:
- इसे वर्ष 2019 में शुरू किया गया है जिसे 7 राज्यों के चुनिंदा क्षेत्रों में लागू किया जा रहा है, इसके तहत लोग अपनी जल सुरक्षा योजना तैयार करते हैं जिसमें यह विवरण दिया जाता है कि उन्हें पानी कैसे मिल रहा है, कितना पानी खर्च किया जा रहा है, किस प्रकार की जल संरक्षण पद्धति लागू की गई है और कोई इसका उपयोग कैसे नियंत्रित कर सकता है।
- जल शक्ति अभियान:
- वैश्विक स्तर पर:
- ग्लोबल वाटर सिस्टम प्रोजेक्ट, जिसे वर्ष 2003 में अर्थ सिस्टम साइंस पार्टनरशिप (Earth System Science Partnership- ESSP) और ग्लोबल एन्वायरनमेंटल चेंज (Global Environmental Change- GEC) कार्यक्रम की संयुक्त पहल के रूप में लॉन्च किया गया था, ताज़े जल के मानव-प्रेरित परिवर्तन और इसके प्रभाव के बारे में वैश्विक चिंता का प्रतीक है।
आगे की राह
- जल संरक्षण हेतु सतत् व्यवहार प्रथाओं को विकसित करने की आवश्यकता है।
- केंद्र सरकार को पेयजल के दूषित होने की समस्या से निपटने हेतु तत्काल आधार पर जल शोधन या रिवर्स ऑस्मोसिस (Reverse Osmosis- RO) सयंत्रों की स्थापना के लिये उपाय करना चाहिये।
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
‘जीसैट-7B’ और भारत के अन्य सैन्य उपग्रह
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय सेना हेतु समर्पित उपग्रह, जीसैट-7, रुक्मिणी, GSAT-7A, एंग्री बर्ड, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटेलिजेंस गैदरिंग सैटेलाइट, एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन। मेन्स के लिये:अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ, सीमा प्रबंधन, उपग्रह निगरानी। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने ‘जीसैट-7B’ (GSAT-7B) उपग्रह हेतु स्वीकृति प्रदान की है। यह उपग्रह भारतीय सेना के लिये एक समर्पित उपग्रह होगा।
- यह उपग्रह भारतीय सेना को सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी निगरानी बढ़ाने में मदद करेगा।
- वर्तमान में भारत के पास केवल दो समर्पित सैन्य उपग्रह हैं- जीसैट-7 (रुक्मिणी) और जीसैट-7ए (एंग्री बर्ड), जो कि क्रमशः भारतीय नौसेना एवं वायु सेना द्वारा उपयोग किये जाते हैं।
‘जीसैट-7बी’ उपग्रह की भूमिका:
- अभी तक भारतीय सेना ‘जीसैट-7ए’ और अन्य उपग्रहों पर निर्भर रही है, लेकिन इस नई अत्याधुनिक तकनीक से सेना की क्षमता में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होगी।
- यह सैन्य उपग्रह ‘फेल-सेफ’ (Fail-Safe) स्थिति में सुरक्षित संचार सहायता प्रदान करने में मददगार होगा।
- ‘जीसैट-7बी’ मुख्य रूप से सेना की संचार ज़रूरतों को पूरा करेगा।
- यद्यपि इस उपग्रह की कई विशेषताएँ आधिकारिक तौर पर गुप्त रखी गई हैं, किंतु यह उम्मीद की जाती है कि अत्याधुनिक, मल्टी-बैंड, सैन्य-ग्रेड वाला यह उपग्रह सेना की संचार एवं निगरानी आवश्यकताओं को बखूबी पूरा करेगा।
- ऐसा उपग्रह भारतीय सेना के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा, क्योंकि वर्तमान में भारत को सीमाओं पर चीन और पाकिस्तान के दोहरे खतरे का सामना करना पड़ रहा है।
- इस तरह के उपग्रह के इस्तेमाल का मतलब यह भी होगा कि सेना के रेडियो संचार उपकरणों की विशाल शृंखला एक ही मंच के तहत आ सकती है।
‘जीसैट-7’ सैटेलाइट की भूमिका:
- ‘जीसैट-7’ शृंखला के उपग्रह रक्षा सेवाओं की संचार ज़रूरतों को पूरा करने के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित उन्नत उपग्रह हैं।
- GSAT 7 (रुक्मिणी) सैन्य संचार ज़रूरतों के लिये सेवाओं की एक शृंखला प्रदान करता है, जिसमें मल्टी-बैंड संचार सहित लो बिट वॉयस रेट से लेकर हाई बिट वॉयस रेट जैसी डेटा सुविधाएँ शामिल हैं।
- यह भारत का पहला सैन्य उपग्रह है।
- GSAT 7 उपग्रह को अगस्त, 2013 में फ्रेंच गुयाना के कौरौ से एरियन 5 ECA रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था।
- यह 2,650 किलोग्राम का उपग्रह है जिसकी हिंद महासागर क्षेत्र में लगभग 2,000 समुद्री मील की दूरी है।
- यह उपग्रह मुख्य रूप से भारतीय नौसेना द्वारा संचार से संबंधित अपनी ज़रूरतों के लिये उपयोग किया जाता है।
- उपग्रह अल्ट्रा-हाई फ़्रीक्वेंसी (UHF), सी-बैंड और केयू-बैंड के साथ पेलोड को ले जाता है तथा नौसेना को भूमि प्रतिष्ठानों, जहाज़ो, पनडुब्बियों व विमानों के बीच एक सुरक्षित, वास्तविक समय संचार लिंक हेतु मदद करता है।
- यूएचएफ, सी-बैंड और केयू-बैंड अलग-अलग सैटेलाइट फ्रीक्वेंसी बैंड हैं।
- उपग्रह को 249 किमी. पेरिगी (पृथ्वी के निकटतम बिंदु), 35,929 किमी. अपोजी (पृथ्वी से सबसे दूर बिंदु) तथा भूमध्य रेखा के संबंध में 3.5 डिग्री के झुकाव के भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में अंतः स्थापित किया गया था।
GSAT 7A उपग्रह की भूमिका:
- GSAT 7A को वर्ष 2018 में श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
- यह उपग्रह भारतीय वायुसेना के ग्राउंड रडार स्टेशनों, एयरबेस और एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट (AEW&C) के बीच संपर्क बढ़ाने में मदद करता है।
- यह मानव रहित हवाई वाहनों (UAV) के उपग्रह नियंत्रित संचालन में भी मदद करता है जो ज़मीन नियंत्रित संचालन की तुलना में संचालन को बहुत अधिक विश्वसनीयता प्रदान करता है।
- इस उपग्रह में मोबाइल उपयोगकर्त्ताओं के लिये स्विच करने योग्य आवृत्ति के साथ केयू बैंड में 10 चैनल तथा एक निश्चित ग्रेगोरियन या परवलयिक एंटीना एवं चार स्टीयरेबल एंटेना होते हैं।
- IAF के लिये GSAT 7C उपग्रह को एक प्रस्ताव द्वारा डीएसी ने वर्ष 2021 में मंज़ूरी दी थी।
भारत के पास अन्य प्रकार के सैन्य उपग्रह:
- अप्रैल 2020 में इसरो द्वारा विकसित एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटेलिजेंस गैदरिंग सैटेलाइट (Electromagnetic Intelligence Gathering Satellite- EMISAT) को पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV-C45) के माध्यम से लॉन्च किया गया था।
- इसमें कौटिल्य नामक एक इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस (ELINT) पैकेज है, जो ग्राउंड-आधारित रडार को इंटरसेप्ट करता है और पूरे भारत में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी भी करता है।
- यह उपग्रह ग्लोब के एक पोल से दूसरे पोल का चक्कर लगाता है और भारत के साथ सीमा साझा करने वाले देशों के रडार से जानकारी एकत्र करने में सहायक है।
- भारत के पास RISAT 2BR1 सिंथेटिक अपर्चर रडार इमेजिंग उपग्रह भी है, जिसे दिसंबर 2019 में श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था।
आगे की राह
- GSAT-7B सही दिशा में एक कदम है, लेकिन भारत को वास्तविक समय की जानकारी या इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस बनने से पहले एक लंबा रास्ता तय करना है, जो संभवतः आधुनिक गति को बनाए रखने हेतु आवश्यक होता है।
- अंतरिक्ष के क्षेत्र में चीन पहले से ही मज़बूत स्थिति में है और वह पहले से ही अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भारी निवेश कर रहा है।
विगत वर्षों के प्रश्न (UPSC):प्रश्न. निम्नलिखित में से किसके माप/अनुमान हेतु उपग्रह छवियों/रिमोट सेंसिंग डेटा का उपयोग किया जाता है? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न: भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न: भारत के उपग्रह प्रमोचित करने वाले वाहनों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न: भारत द्वारा प्रमोचित खगोलीय वेधशाला, ‘ऐस्ट्रोसैट’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: A. केवल 1 उत्तर:D |