शासन व्यवस्था
पेसा अधिनियम
प्रिलिम्स के लिये:पेसा अधिनियम, 73वाँ संविधान संशोधन, लघु वनोत्पाद मेन्स के लिये:पेसा अधिनियम की विशेषताएँ एवं इससे जुड़ी समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (पेसा), 1996 के तहत मसौदा नियम तैयार किये हैं, इसे छत्तीसगढ़ पंचायत प्रावधान (अनुसूचित का विस्तार) नियम, 2021 करार दिया है।
- छत्तीसगढ़ में आदिवासी कुछ समय से पेसा नियम लागू करने की मांग कर रहे हैं क्योंकि इससे उन्हें अपने संसाधनों पर अधिक अधिकार मिलेगा।
- विधेयक में शक्ति के अवमूल्यन और ग्राम स्तर पर ग्राम सभाओं को मज़बूत करने की परिकल्पना की गई है।
- छह राज्यों (हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र) ने पेसा कानून बनाए हैं और यदि ये नियम लागू होते हैं तो छत्तीसगढ़ इन्हें लागू करने वाला सातवाँ राज्य बन जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- पेसा अधिनियम 1996 के बारे में:
- पृष्ठभूमि: ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिये 1992 में 73वाँ संविधान संशोधन पारित किया गया था।
- इस संशोधन द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्था के लिये कानून बनाया गया।
- हालांँकि अनुच्छेद 243 (M) के तहत अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में यह प्रतिबंधित था।
- वर्ष 1995 में भूरिया समिति की सिफारिशों के बाद भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों हेतु आदिवासी स्वशासन सुनिश्चित करने के लिये पेसा अधिनियम 1996 अस्तित्व में आया।
- राज्य सरकार की भूमिका: पेसा, अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ग्राम सभाओं (ग्राम विधानसभाओं) के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने हेतु केंद्र द्वारा अधिनियमित किया गया था।
- राज्य सरकारों को अपने संबंधित पंचायत राज अधिनियमों में संशोधन करने की आवश्यकता थी जो कि पेसा के जनादेश के साथ असंगत होगा।
- उद्देश्य: यह कानूनी रूप से आदिवासी समुदायों, अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों के अधिकार को स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से स्वयं को शासित करने के अधिकार को मान्यता देता है।
- यह प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को स्वीकार करता है।
- पृष्ठभूमि: ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिये 1992 में 73वाँ संविधान संशोधन पारित किया गया था।
- पेसा अधिनियम में ग्राम सभा का महत्व:
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण: पेसा ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। इस प्रबंधन में निम्नलिखित शामिल है:
- जल, जंगल, ज़मीन पर संसाधन।
- लघु वनोत्पाद।
- मानव संसाधन: प्रक्रियाएँ और कार्मिक जो नीतियों को लागू करते हैं।
- स्थानीय बाज़ारों का प्रबंधन।
- भूमि अलगाव को रोकना।
- नशीले पदार्थों को नियंत्रित करना।
- पहचान का संरक्षण: ग्राम सभाओं की शक्तियों में सांस्कृतिक पहचान और परंपरा का रखरखाव, आदिवासियों को प्रभावित करने वाली योजनाओं पर नियंत्रण और एक गाँव के क्षेत्र के भीतर प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण शामिल है।
- संघर्षों का समाधान: इस प्रकार पेसा अधिनियम ग्राम सभाओं को बाहरी या आंतरिक संघर्षों के खिलाफ अपने अधिकारों और परिवेश के सुरक्षा तंत्र को बनाए रखने में सक्षम बनाता है।
- पब्लिक वॉचडॉग: ग्राम सभा को अपने गाँव की सीमा के भीतर नशीले पदार्थों के निर्माण, परिवहन, बिक्री और खपत की निगरानी और निषेध करने की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
- लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण: पेसा ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। इस प्रबंधन में निम्नलिखित शामिल है:
- पेसा से संबंधित मुद्दे:
- आंशिक कार्यान्वयन: राज्य सरकारों को इस राष्ट्रीय कानून के अनुरूप अपने अनुसूचित क्षेत्रों के लिये राज्य कानूनों को अधिनियमित करना चाहिये।
- इसके परिणामस्वरूप पेसा आंशिक रूप से कार्यान्वित हुआ है।
- आंशिक कार्यान्वयन ने आदिवासी क्षेत्रों, जैसे- झारखंड में स्वशासन को विकृत कर दिया है।
- प्रशासनिक बाधाएँ: कई विशेषज्ञों ने दावा किया है कि पेसा स्पष्टता की कमी, कानूनी दुर्बलता, नौकरशाही उदासीनता, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, सत्ता के पदानुक्रम में परिवर्तन के प्रतिरोध आदि के कारण सफल नहीं हुआ।
- वास्तविकता के स्थान पर कागज़ी अनुसरण: राज्य भर में किये गए सोशल ऑडिट में यह भी बताया गया है कि वास्तव में विभिन्न विकास योजनाओं को ग्राम सभा द्वारा केवल कागज़ पर अनुमोदित किया जा रहा था, वास्तव में चर्चा और निर्णय लेने के लिये कोई बैठक नहीं हुई थी।
- आंशिक कार्यान्वयन: राज्य सरकारों को इस राष्ट्रीय कानून के अनुरूप अपने अनुसूचित क्षेत्रों के लिये राज्य कानूनों को अधिनियमित करना चाहिये।
भारत की जनजातीय नीति:
- भारत में अधिकांश जनजातियों को सामूहिक रूप से अनुच्छेद 342 के तहत ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में मान्यता दी गई है।
- भारतीय संविधान का भाग X: अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र में निहित अनुच्छेद 244 (अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन) द्वारा इन्हें आत्मनिर्णय के अधिकार (Right to Self-determination) की गारंटी दी गई है।
- संविधान की 5वीं अनुसूची में अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन एवं नियंत्रण तथा छठी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन संबंधी उपबंध किये गए हैं।
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 या पेसा अधिनियम।
- जनजातीय पंचशील नीति।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 वन में रहने वाले समुदायों के भूमि और अन्य संसाधनों के अधिकारों से संबंधित है।
आगे की राह
- यदि पेसा अधिनियम को अक्षरश: लागू किया जाता है, तो यह आदिवासी क्षेत्र में मरणासन्न स्वशासन प्रणाली को फिर से जीवंत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
- यह पारंपरिक शासन प्रणाली में खामियों को दूर करने और इसे अधिक लिंग-समावेशी एवं लोकतांत्रिक बनाने का अवसर भी देगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2021
प्रिलिम्स के लिये:ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2021, ‘इंटरनेशनल आइडिया’ मेन्स के लिये:ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2021 के प्रमुख तथ्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी रिपोर्ट, 2021 के अनुसार, वर्ष 2020 में सत्तावाद की ओर बढ़ने वाले देशों की संख्या उच्च लोकतांत्रिक मूल्यों वाले देशों की तुलना में अधिक थी।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- इस रिपोर्ट का उद्देश्य वैश्विक बहस को प्रभावित करना और वर्तमान रुझानों व लोकतंत्र के लिये चुनौतियों का विश्लेषण करना है, जो कोविड-19 महामारी के कारण बढ़ गई हैं।
- यह नीति निर्माताओं, सरकारों और लोकतंत्र का समर्थन करने वाले नागरिक समाज संगठनों की नवीन सोच को जाग्रत करने के लिये विशिष्ट नीतिगत सिफारिशें प्रदान करता है।
- इसे ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस’ (आईडीईए) द्वारा जारी किया गया है।
- लोकतंत्र और चुनावी सहायता के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्थान के बारे में:
- ‘इंटरनेशनल आइडिया’ एक अंतर-सरकारी संगठन है जो दुनिया भर में स्थायी लोकतंत्र का समर्थन करता है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1995 में हुई थी और वर्तमान में 33 देश इसके सदस्य हैं।
- यह सभी स्तरों पर लोकतांत्रिक राजनीतिक संस्थानों और प्रक्रियाओं के निर्माण, सुदृढ़ीकरण तथा सुरक्षा समर्थन के माध्यम से सार्वभौमिक मानव आकांक्षा और सतत् विकास के एक प्रवर्तक के रूप में दुनिया भर में लोकतंत्र को आगे बढ़ाता है।
- रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- लोकतांत्रिक गिरावट: स्थापित लोकतंत्रों सहित लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारें तेज़ी से सत्तावादी रणनीति अपना रही हैं।
- महामारी का प्रभाव: महामारी ने आंदोलन पर अपरिहार्य प्रतिबंध लगाकर पूरे क्षेत्र में लोकतंत्र पर काफी ज़ोर दिया, जहाँ सरकारें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध की आलोचना के प्रति संवेदनशील थीं।
- निरंकुशता के संकट से प्रभावित देशों की संख्या के मामले में वर्ष 2020 में सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया गया।
- इस प्रकार महामारी का गैर-लोकतांत्रिक देशों पर विशेष रूप से हानिकारक प्रभाव पड़ा है क्योंकि उन्होंने नागरिक सुविधाओं की कमी वाले क्षेत्रों को पहले ही बंद कर दिया था।
- प्रचलित समर्थन: इस डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग (Democratic Backsliding) को अक्सर महत्त्वपूर्ण प्रचलित/लोकप्रिय समर्थन प्राप्त हुआ है।
- भारतीय परिदृश्य: रिपोर्ट में ब्राज़ील और भारत के मामले को "बैकस्लाइडिंग के कुछ सबसे चिंताजनक उदाहरणों" के रूप में उजागर किया गया है।
- हालाँकि वर्ष 2000 से ही भारत एक मध्य-स्तरीय प्रदर्शन करने वाले लोकतंत्र की श्रेणी में आता है।
- प्रमुख सुझाव:
- नए सामाजिक अनुबंध: राजनीतिक या नागरिक सुधारों को पूरा करने या एक नया सामाजिक अनुबंध विकसित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह लोगों की इच्छाओं और वर्तमान सरकारों के
- कार्यों के बीच के अंतराल को पाटता है।
- यह कार्य सतत् विकास की दिशा में उन्मुख उत्तरदायी, समावेशी, जवाबदेह और पारदर्शी संस्थानों को डिज़ाइन करके किया जा सकता है।
- संस्थानों को मज़बूत बनाना: स्थापित लोकतंत्रों में प्रथाओं को अद्यतन कर, नए लोकतंत्रों में लोकतांत्रिक क्षमता का निर्माण करके और चुनावी अखंडता, मौलिक स्वतंत्रता तथा अधिकारों की रक्षा एवं संपन्न लोकतांत्रिक प्रणालियों हेतु आवश्यक जाँच व संतुलन द्वारा मौजूदा संस्थानों का पुनर्निर्माण करना।
- नागरिक समाज को मज़बूत बनाना: शिक्षा में निवेश और स्वतंत्र नागरिक समाज के समर्थन द्वारा दुष्प्रचार का मुकाबला कर तथा लोकतांत्रिक संस्कृतियों, मूल्यों व प्रथाओं का विकास करने वाले मुक्त और स्वतंत्र मीडिया का समर्थन करके बढ़ते अधिनायकवाद और डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग को रोका जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
एसडीजी शहरी सूचकांक: नीति आयोग
प्रिलिम्स के लिये:एसडीजी शहरी सूचकांक मेन्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु भारत द्वारा किये गए प्रयास, भारत-जर्मन सहयोग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत-जर्मन सहयोग के तहत नीति आयोग ने ‘सतत् विकास लक्ष्य (SDG) शहरी सूचकांक और डैशबोर्ड’ 2021-22 जारी किया।
- इससे पूर्व जून 2021 में ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDG) इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड 2020-21’ का तीसरा संस्करण जारी किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- सूचकांक और डैशबोर्ड नीति आयोग और जर्मनी की ‘अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी’ (GIZ) तथा BMZ के बीच सहयोग का परिणाम है, जो भारत-जर्मन विकास सहयोग के तहत शहरों में एसडीजी स्थानीयकरण के क्रियान्वयन पर केंद्रित है।
- इसमें एसडीजी ढाँचे के 46 लक्ष्यों में 77 एसडीजी संकेतकों पर 56 शहरी क्षेत्रों को रैंक प्रदान करना है।
- यह एसडीजी स्थानीयकरण को और मज़बूत करेगा तथा शहर स्तर पर मज़बूत एसडीजी निगरानी सुनिश्चित करेगा।
- रैंकिंग स्केल:
- शहरी क्षेत्रों को 0-100 के पैमाने पर रैंक प्रदान किया गया है।
- 100 के स्कोर का अर्थ है कि शहरी क्षेत्र ने वर्ष 2030 के लिये निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया है; 0 के स्कोर का अर्थ है कि यह शहरी क्षेत्रों में लक्ष्यों को प्राप्त करने से कफी दूर है।
- शहरी क्षेत्र के समग्र प्रदर्शन को मापने के लिये लक्ष्यवार स्कोर से समग्र शहरी क्षेत्र का स्कोर प्राप्त किया जाता है।
- शहरी क्षेत्रों को उनके समग्र स्कोर के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
- आकांक्षी: 0-49
- परफॉर्मर: 50-64
- फ्रंट-रनर: 65-99
- अचीवर: 100
- राज्यों का प्रदर्शन:
- शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता:
- शिमला, कोयंबटूर, चंडीगढ़, तिरुवनंतपुरम और कोच्चि।
- सबसे खराब प्रदर्शनकर्त्ता:
- धनबाद, मेरठ, ईटानगर, गुवाहाटी और पटना।
- शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता:
- सूचकांक का महत्त्व:
- शहर तीव्र गति से विकास का इंजन बन रहे हैं। ‘एसडीजी अर्बन इंडेक्स और डैशबोर्ड’ शहरों में एक मज़बूत एसडीजी निगरानी प्रणाली स्थापित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है और यह भारत की एसडीजी स्थानीयकरण यात्रा में एक अनिवार्य भूमिका अदा करेगा।
- नीति आयोग का विचार है कि भारत में विकास के मार्ग को निर्धारित करने में शहरों और शहरी क्षेत्रों की बढ़ती प्रमुखता को देखते हुए यह परिवर्तनकारी बदलाव काफी आवश्यक है।
- यह शहरी स्थानीय निकाय (ULB) स्तर के डेटा, निगरानी और रिपोर्टिंग सिस्टम की शक्ति और अंतराल पर प्रकाश डालता है।
- शहर तीव्र गति से विकास का इंजन बन रहे हैं। ‘एसडीजी अर्बन इंडेक्स और डैशबोर्ड’ शहरों में एक मज़बूत एसडीजी निगरानी प्रणाली स्थापित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है और यह भारत की एसडीजी स्थानीयकरण यात्रा में एक अनिवार्य भूमिका अदा करेगा।
भारत-जर्मन विकास सहयोग:
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2008 में भारत-जर्मन विकास सहयोग के 50 वर्ष पूरे हुए हैं। 1950 के दशक में शुरू हुआ भारत-जर्मन सहयोग इतनी तेज़ी से बढ़ा कि कुछ ही समय में भारत जर्मन विकास सहायता का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता बन गया।
- ओडिशा में ‘राउरकेला स्टील प्लांट’ का निर्माण 1960 के दशक की शुरुआत में इस गहन सहयोग का उदहारण था।
- बाद में दोनों देशों ने भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक मद्रास में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की।
- 1990 के दशक में दोनों देशों ने गरीबी में कमी एवं सामाजिक बुनियादी ढाँचे के विकास के क्षेत्र में सहयोग किया।
- परिचय:
- भारत-जर्मन विकास सहयोग भारत-जर्मन रणनीतिक साझेदारी का एक मुख्य स्तंभ है।
- दोनों देश सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (Millennium Development Goals- MDG) को प्राप्त करने के लिये समान रूप से प्रतिबद्ध हैं, इसके अलावा वे जलवायु और पर्यावरण के क्षेत्र में वैश्विक चुनौतियों से निपटना चाहते हैं।
- यह भारत और जर्मनी के बीच संबंधों के नीतिगत ढाँचे में बेहतर रूप से एकीकृत है।
- जर्मनी द्वारा भारत को वैश्विक विकास भागीदारों में से एक के रूप में देखा जाता है जिसकी वैश्विक विकास के मुद्दों को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- कार्यक्रम केंद्र:
- वर्तमान में भारत-जर्मन विकास सहयोग कार्यक्रम निम्नलिखित पारस्परिक रूप से सहमत प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर केंद्रित है:
- ऊर्जा
- प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन
- सतत् शहरी विकास
- वर्तमान में भारत-जर्मन विकास सहयोग कार्यक्रम निम्नलिखित पारस्परिक रूप से सहमत प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर केंद्रित है:
स्रोत: पीआईबी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सबसे तेज़ ‘स्पिनिंग व्हाइट ड्वार्फ’: J0240+1952
प्रिलिम्स के लिये:स्पिनिंग व्हाइट ड्वार्फ, ब्लैक ड्वार्फ, चंद्रशेखर सीमा मेन्स के लिये:सबसे तेज़ ‘स्पिनिंग व्हाइट ड्वार्फ’ के बारे में प्रमुख तथ्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खगोलविदों की एक टीम ने सबसे तेज़ ‘स्पिनिंग व्हाइट ड्वार्फ’ (J0240+1952) की पुष्टि की है जो हर 25 सेकंड में एक घूर्णन पूरा करता है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह ‘बाइनरी स्टार सिस्टम’ का एक हिस्सा है; चुंबकीय प्रोपेलर प्रणाली के प्रभाव में इसका अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण प्लाज़्मा के रूप में अपने बड़े तारे से सामग्री खींच रहा है।
- चुंबकीय प्रोपेलर प्रणाली के तहत व्हाइट ड्वार्फ बाइनरी स्टार सिस्टम से प्लाज़्मा को आकर्षित करता है। हालाँकि व्हाइट ड्वार्फ का चुंबकीय क्षेत्र एक सुरक्षात्मक बाधा के रूप में कार्य करता है, जिससे अधिकांश प्लाज़्मा इससे दूर हो जाता है।
- व्हाइट ड्वार्फ:
- व्हाइट ड्वार्फ वे तारे हैं जिन्होंने उस हाइड्रोजन को जला दिया जिसे वे परमाणु ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते थे।
- ऐसे तारों का घनत्व बहुत अधिक होता है।
- एक सामान्य व्हाइट ड्वार्फ हमारे सूर्य के आधे आकार का होता है और इसकी सतह का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 100,000 गुना अधिक होता है।
- हमारे सूर्य जैसे तारे नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं के माध्यम से अपने कोर में हाइड्रोजन को हीलियम में संलयित करते हैं।
- एक तारे के कोर में संलयन ऊष्मा और बाहरी दबाव पैदा करता है लेकिन यह दबाव एक तारे के द्रव्यमान से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण द्वारा संतुलन में रखा जाता है।
- जब हाइड्रोजन का ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है तो यह विलुप्त हो जाता है और संलयन धीमा हो जाता है एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण तारे अपने आप व्हाइट ड्वार्फ के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
- ब्लैक ड्वार्फ: अंततः सैकड़ों अरबों वर्षों में एक व्हाइट ड्वार्फ तब तक ठंडा रहता है जब तक कि वह ब्लैक ड्वार्फ नहीं बन जाता।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि सभी व्हाइट ड्वार्फ शांत नहीं होते हैं और ब्लैक ड्वार्फ में बदल जाते हैं।
- इस बिंदु पर इसके केंद्र पर दबाव इतना अधिक हो जाता है कि तारा थर्मोन्यूक्लियर सुपरनोवा में विस्फोट कर देगा।
- व्हाइट ड्वार्फ वे तारे हैं जिन्होंने उस हाइड्रोजन को जला दिया जिसे वे परमाणु ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते थे।
चंद्रशेखर सीमा
- चंद्रशेखर सीमा एक स्थिर सफेद बौने तारे के लिये सैद्धांतिक रूप से संभव अधिकतम द्रव्यमान है।
- सफेद बौने तारों के द्रव्यमान की ऊपरी सीमा सौर द्रव्यमान के 1.44 गुना से अधिक विशाल नहीं हो सकती है।
- किसी भी अपक्षयी वस्तु को अनिवार्य रूप से न्यूट्रॉन स्टार या ब्लैक होल में गिरना चाहिये।
- इस सीमा का नाम नोबेल पुरस्कार विजेता सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पहली बार 1931 में इस विचार का प्रस्ताव रखा था।
- सितारों की संरचना और विकास में शामिल भौतिक प्रक्रियाओं पर उनके काम के लिये वर्ष 1983 में उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-अमेरिका व्यापार नीति फोरम
प्रिलिम्स के लिये:विश्व व्यापार संगठन, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन, व्यापार नीति फोरम, टोटलाइज़ेशन एग्रीमेंट मेन्स के लिये:भारत-अमेरिका व्यापार संबंध तथा भारत-अमेरिका व्यापार नीति फोरम की विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चार वर्ष के अंतराल के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच व्यापार नीति फोरम/मंच (TPF) का आयोजन किया गया था। फोरम ने दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को 'आगामी उच्च स्तर' पर ले जाने का संकल्प लिया और 'संभावित लक्षित टैरिफ कटौती' को लेकर विचारों का आदान-प्रदान किया।
प्रमुख बिंदु
- उद्देश्य: कृषि, गैर-कृषि वस्तुओं, सेवाओं, निवेश और बौद्धिक संपदा पर टीपीएफ के कार्य समूहों को सक्रिय करना तथा लाभकारी तरीके से पारस्परिक चिंता के मुद्दों का समाधान करना।
- साथ ही अतिरिक्त बाज़ार तक पहुँच स्थापित करने जैसे मुद्दों को हल करके दोनों देशों को ठोस लाभ प्रदान करना है।
- फोरम की मुख्य विशेषताएँ:
- म्युचुअल मार्केट एक्सेस: फोरम ने भारत से अमेरिकी बाज़ार तक पहुँच की सुविधा के लिये एक समझौते के तहत कई कृषि एवं पशु उत्पादों हेतु भारतीय बाज़ार में समान पहुँच के लिये पारस्परिक रूप से फैसला लिया है।
- GSP की बहाली: भारत ने अमेरिका से सामान्य प्राथमिकता प्रणाली (जनरलाइज़्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस-GSP) के लाभों की बहाली की मांग की है।
- समग्रता समझौता: फोरम दोनों पक्षों के श्रमिकों के हित में सामाजिक सुरक्षा संरक्षण के समन्वय के लिये "समग्रता समझौते" (Totalization Agreement) पर बातचीत करने पर भी सहमत हुआ।
- टोटलाइज़ेशन एग्रीमेंट दो देशों के बीच समान आय के लिये दोहरी सामाजिक सुरक्षा योगदान को रोकने वाला एक समझौता है।
- यह दोनों देशों के श्रमिकों को अपनी सेवानिवृत्ति की बचत को स्थानांतरित करने की अनुमति देगा, जिसकी कमी विशेष रूप से यू.एस. में भारतीय IT श्रमिकों को प्रभावित करती है।
- नियम आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली की ओर: भारत और अमेरिका ने बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं और लोकतंत्रों के बीच एक पारदर्शी, नियम आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली के साझा दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिये विश्व व्यापार संगठन (WTO) एवं जी20 सहित विभिन्न बहुपक्षीय व्यापार निकायों में भागीदारी पर भी चर्चा की।
- फोरम ने दोनों देशों के बीच बकाया WTO विवादों पर पारस्परिक रूप से सहमत समाधान खोजने का भी निर्णय लिया।
- इथेनॉल आपूर्ति: अमेरिका ने वर्ष 2025 तक पेट्रोल के साथ 20% इथेनॉल सम्मिश्रण के अपने लक्ष्य के लिये भारत को इथेनॉल की आपूर्ति में रुचि दिखाई।
- फार्मा सहयोग: दोनों पक्षों ने स्वास्थ्य जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सुरक्षित फार्मास्यूटिकल निर्माण आधार और जोखिम रहित वैश्विक आपूर्ति शृंखला विकसित करने में सहयोग के साथ साझेदारी का निर्णय लिया।
- सर्विस फ्रंट (Services Front): फोरम ने उन तरीकों पर चर्चा की जिसमें कानूनी, नर्सिंग व लेखा सेवाएँ व्यापार तथा निवेश में वृद्धि की सुविधा प्रदान कर सकती हैं और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान सेवाओं एवं डिजिटल अर्थव्यवस्था पर एक साथ काम करने की मांग की।
- महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में सहयोग: दोनों देश साइबर स्पेस, सेमी-कंडक्टर्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, 5जी और भविष्य की पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी जैसी महत्त्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों के महत्त्व को पहचानते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: दोनों देशों ने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिये अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के दृष्टिकोणों पर विचारों का आदान-प्रदान किया, जैसा कि भारत-अमेरिका जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 साझेदारी में सहमति व्यक्त की गई थी।
आगे की राह
- टैरिफ हटाने की पहल: संभावित सौदे की दिशा में भारत के लिये पहला कदम पहल करना और एकतरफा अपने प्रतिशोधी शुल्क को हटाने पर विचार करना है। यह व्यापार वार्ता में एक रचनात्मक पक्षकार बनने के इच्छुक भारत का प्रतिनिधित्व करेगा।
- भले ही अमेरिका की प्रतिबद्धता के बिना टैरिफ हटाना विश्वास में बढ़ोतरी है, यह अंततः द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के लिये फायदेमंद होगा।
- चीन का मुकाबला करना: रणनीतिक दृष्टिकोण से भारत के लिये चीन का मुकाबला करने का एक उपाय यही है कि भारत अपने उन भागीदारों के साथ व्यापार संबंधों को गहन करे जिन्होंने भारत के विकास का समर्थन करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- अमेरिका के साथ समझौता करना भारत के लिये रणनीतिक और आर्थिक दोनों रूप से लाभप्रद होगा।
- चूँकि अमेरिकी कंपनियाँ अपनी कुछ विनिर्माण गतिविधियों को चीन से बाहर स्थानांतरित करने पर विचार कर रही हैं, एक जीवंत व्यापार रणनीति, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को पूरकता प्रदान कर विनिर्माण एवं निर्यात दोनों को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।
- डिजिटल विकास को सुगम बनाना: डिजिटल क्षेत्र (जो 100 बिलियन डॉलर से अधिक के द्विपक्षीय व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है) में विकास को बढ़ावा देने के लिये दोनों पक्षों को कई मूलभूत मुद्दों- डिजिटल सेवा कर, सीमा पार डेटा प्रवाह, साझा सेलुलर मानक आदि को संबोधित करने की आवश्यकता होगी।
- यह महत्त्वपूर्ण है कि डिजिटल सेवा कर के मामले में भारत उभरते वैश्विक समझौतों के साथ अनुकूलता लाए, जिससे व्यापार में तेज़ी आएगी।