डेली न्यूज़ (24 Jul, 2020)



कृषि अवशेषों का दहन और प्रदूषण

प्रीलिम्स के लिये

पार्टिकुलेट मैटर 

मेन्स के लिये

कृषि अवशेषों  के दहन का पर्यावरण पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हालिया अध्ययन के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने वाले समय के चुनाव की अपेक्षा दिल्ली की मौसम संबंधी परिस्थितियाँ और हरियाणा तथा पंजाब में जलाए जाने वाले भूसे की मात्रा प्रदेश में वायु गुणवत्ता को खराब करने में अधिक भूमिका निभाती हैं।

प्रमुख बिंदु

  • फसल जलना (Crop Burning):
    • पंजाब और हरियाणा में पराली को जलाकर सर्दियों के मौसम में होने वाली बुआई के लिये खेतों को तैयार किया जाता है।
    • खेतों को अक्तूबर-नवंबर के आसपास तैयार किया जाता है, यही वह समय होता है जब दक्षिण पश्चिम मानसून की वापसी हो रही होती है।
    • ऐसे में पराली (भूसे) के जलने से निष्कासित होने वाले प्रदूषक और पार्टिकुलेट मैटर दिल्ली में प्रदूषण के अन्य स्रोतों के साथ-साथ मिलकर वातावरण की निचली परत में रह जाते हैं और सर्दियों के मौसम में दिल्ली और इसके आस-पास की वायु गुणवत्ता को बुरी से प्रभावित करते हैं।

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क्या होते हैं पार्टिकुलेट मैटर?

पीएम-1.0:- इसका आकार एक माइक्रोमीटर से कम होता है। ये छोटे पार्टिकल बहुत खतरनाक होते हैं। इनके कण साँस के द्वारा शरीर के अंदर पहुँचकर रक्तकणिकाओं में मिल जाते हैं। इसे पार्टिकुलेट सैंपलर से मापा जाता है।

पीएम-2.5:- इसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये आसानी से साँस के साथ शरीर के अंदर प्रवेश कर गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान, जकड़न पैदा करते हैं। इन्हें एम्बियंट फाइन डस्ट सैंपलर पीएम-2.5 से मापते हैं।

पीएम-10:- रिसपाइरेबल पार्टिकुलेट मैटर का आकार 10 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये भी शरीर के अंदर पहुँचकर बहुत सारी बीमारियाँ फैलाते हैं।

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  • कारण:
    • धान की फसल को मिलने वाली सब्सिडी और सुनिश्चित खरीद के कारण किसान धान की पैदावार को बढ़ाने की दिशा में निंरतर मेहनत कर रहा है, अधिक पैदावार से अधिक अवशेष उत्पन्न हो रहे हैं।
    • कृषि के बढ़ते आधुनिकीकरण और मशीनीकरण के चलते किसान खेत में ही धान की फसल से दाने निकाल लेते हैं जिससे बड़ी मात्रा में धान की ठूंठ खेतों में ही छूट जाती हैं, परिणामतः खेतों को साफ करने के लिये किसान ठूंठों को जला देते हैं।
    • पंजाब भूजल संरक्षण अधिनियम (Punjab Preservation of Subsoil Water Act), 2009:
      • इसने भूजल निकासी को हतोत्साहित करने के लिये किसानों को धान की बुवाई में देरी करने (जून के अंत तक) के लिये बाध्य किया है।
      • इसके कारण धान की बुवाई में वर्ष 2002-2008 की तुलना में औसतन 10 दिन की देरी होती है, इससे फसल में होने वाली देरी के कारण, पराली के दहन का समय लगभग वही होता है जब दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी हो रही होती है।
  • अध्ययन के परिणाम:
    • ध्यातव्य है कि वर्ष 2016 में दिल्ली के गंभीर वायु प्रदूषण में फसल अवशेषों के दहन का योगदान लगभग 40% था।
    • यह अध्ययन काफी हद तक गणितीय प्रतिरूपण पर निर्भर करता है।
      • फसल के जलने और PM स्तर के एकत्रित डेटा को गणितीय मॉडल में प्रदर्शित किया गया।
      • अध्ययन से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2016 में दिल्ली के गंभीर वायु प्रदूषण के संदर्भ में बात करें तो हम पाते हैं कि यदि किसान निर्धारित समय से 10 दिन पहले फसल अवशेषों का दहन करते तो संभवतः दिल्ली के गंभीर वायु प्रदूषण में फसला दहन का योगदान बेहद मामूली (1%) होता।

आगे की राह

  • फसल अवशेषों को जलाए जाने से रोकने से राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) को बढ़ावा मिलेगा, जिसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक वार्षिक PM सांद्रता में 20-30% तक की कमी लाना है।
  • इसके अलावा, सरकार प्रोत्साहन और अभियोजन के संयोजन के माध्यम से लोगों को इस संबंध में जागरूक कर सकती है। हरित विधियों का उपयोग करने वाले किसानों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
  • हालाँकि इस संदर्भ में कानून की भूमिका न्यूनतम प्रतीत होती है, फिर भी यह मौसम संबंधी स्थितियों के आधार पर आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर वायु गुणवत्ता की समस्याओं को कम करने या बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्रोत-द हिंदू


न्यायेत्तर हत्याएँ

प्रीलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 141

मेन्स के लिये:

पुलिस के अधिकार तथा वर्तमान परिस्थितियों में इनकी व्याख्या

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर प्रदेश पुलिस ने गैंगस्टर विकास दुबे को एक मुठभेड़ (न्यायेत्तर हत्या) में मार गिराया। इस संदर्भ में कई विशेषज्ञों ने इस मुठभेड़ पर सवाल उठाए और मामले की न्यायिक जाँच की मांग की।

प्रमुख बिंदु

  • पुलिस के अधिकार:
    • पुलिस बल को आत्मरक्षा के वैयक्तिक एवं एकमात्र उद्देश्य के लिये या जहाँ शांति और व्यवस्था को बनाए रखने के लिये यह आवश्यक है, अपराधी को घायल करने या जान से मारने का अधिकार है।
      • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-96 के तहत, प्रत्येक मनुष्य को निजी रक्षा का अधिकार है जो कि एक प्राकृतिक और एक अंतर्निहित अधिकार है।
      • आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा-46 पुलिस को बल प्रयोग करने के लिये अधिकृत करती है, एक ऐसा अपराधी जिसने कोई ऐसा अपराध किया है जिसकी सज़ा मृत्युदंड या आजीवन कारावास हो सकती है, के संदर्भ में यदि बल का प्रयोग, यहाँ तक कि हत्या भी, आवश्यक हो जाता है तो पुलिस कर सकती है।

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  • न्यायेत्तर हत्या की संख्या बढ़ने के कारण:
    • जन समर्थन: ऐसे मामले लोगों के न्यायपालिका में विश्वास की कमी से उभरते हैं क्योंकि कई लोग मानते हैं कि न्यायालय समय पर न्याय प्रदान नहीं करेंगे।
      • राजनीतिक समर्थन: कई नेता कानून और व्यवस्था को बनाए रखने में अपनी उपलब्धि के रूप में एनकाउंटर की संख्या को प्रमुखता देते हैं।
      • पुरस्कार: बहुत बार मुठभेड़ों के लिये पुलिस बलों को पुरस्कृत किया जाता है।
        • सरकार मुठभेड़ों में शामिल टीमों को पदोन्नति और नकद प्रोत्साहन प्रदान करती है।
      • अप्रभावी संस्थाएँ: इस संदर्भ में मानवाधिकारों की रक्षक संस्थाएँ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग कई वर्षों से निरर्थक साबित हो रही हैं।
        • हालाँकि इस तरह के मामलों को न्यायपालिका के समक्ष उठाया जा सकता है, हालाँकि अब ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है।
      • एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की नायक की भाँति पूजा की जाती है: अक्सर ऐसा देखेने को मिलता है कि एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मी समाज में नायक के रूप में उभरकर सामने आते हैं क्योंकि कई लोग ये मानते हैं कि ये पुलिसकर्मी अपराधियों को मारकर समाज की सफाई का काम कर रहे हैं।
        • कई बार उन्हें सिल्वर स्क्रीन पर हीरो के रूप में भी पेश किया जाता है, और उनके कृत्यों को “वीर” कृत्य के रूप में दर्शाया जाता है, जिन पर बड़े-बड़े बजट की फिल्में बनती हैं।
        • हालाँकि लोग, मीडिया और यहाँ तक कि न्यायपालिका भी इस तथ्य को दरकिनार कर देते हैं कि जब तक किसी मुद्दे की पूर्ण रूप से जाँच नहीं होती है और वास्तविक कहानी का पता नहीं चलता है तब तक ये सभी हत्याएँ संदिग्ध हैं।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • भारत के संविधान में भारत के लिये कानून के शासन द्वारा शासित देश का प्रयोजन किया गया है।
    • विधि के शासन के अनुसार, भारत में संविधान सर्वोच्च शक्ति है और विधायिका एवं कार्यपालिका संविधान से अपने अधिकार प्राप्त करती हैं।
    • आपराधिक जाँच के लिये कानून द्वारा एक प्रक्रिया निर्धारित की गई है जो संविधान में अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रूप में अंतर्निहित है। यह मौलिक अधिकार है और यह हर व्यक्ति के लिये उपलब्ध है। यहाँ तक कि राज्य भी इस अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकता है।
    • इसलिये यह पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि वह संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करे और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के अधिकार को बनाए रखे, चाहे वह निर्दोष हो या अपराधी।
  • सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश:
    • PUCL बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले (2014) में सर्वोच्च न्यायालय ने रिट याचिकाओं के जवाब में कुछ दिशा-निर्देश जारी किये. इन याचिकाओं को मुंबई पुलिस द्वारा की गई 99 मुठभेड़ों की वास्तविकता पर सवाल उठाए गए थे,  वर्ष 1995 और 1997 के बीच हुई इन मुठभेड़ों में 135 कथित अपराधियों को गोली मार दी गई थी।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस मुठभेड़ों के दौरान हुई मौत के मामलों में पूरी तरह से प्रभावी और स्वतंत्र जाँच के लिये मानक प्रक्रिया के रूप में 16 दिशा-निर्देशों को निर्धारित किया। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
    • आपराधिक गतिविधियों के बारे में टिप-ऑफ (खुफिया): 
      • FIR दर्ज करना: यदि किसी टिप-ऑफ (खुफिया) जानकारी के अनुसरण में, पुलिस आग्नेयास्त्रों का उपयोग करती है और इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उचित आपराधिक जाँच शुरू करने संबंधी प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिये और बिना किसी देरी के उसे अदालत में भेज दिया जाना चाहिये।
      • स्वतंत्र जाँच: इस प्रकार की मौतों के संदर्भ में एक स्वतंत्र CID टीम या फिर किसी वरिष्ठ अधिकारी की निगरानी में किसी दूसरे पुलिस स्टेशन के अधिकारियों की टीम द्वारा जाँच की जानी चाहिये. इस प्रकार की जाँच में निम्नलिखित आवश्यक शर्तों को पूरा किया जाना चाहिये-पीड़ित की पहचान करना, संबंधित साक्ष्यों को खोजना और उन्हें सुरक्षित रखना, घटना स्थल पर मौजूद गवाहों की पहचान कर उन्हें सुरक्षित करना, आदि
      • NHRC को सूचित करना: किसी भी एनकाउंटर के विषय में NHRC या राज्य मानवाधिकार आयोग (जैसा भी मामला हो) को तत्काल सूचित किया जाना चाहिये 
      • त्वरित कार्रवाई: IPC के तहत अपराध के रूप में, अगर कोई पुलिस अधिकारी झूठी मुठभेड़ का दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिये और उस समय के लिये उस अधिकारी को निलंबित कर दिया जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने निर्देश दिया कि इन आवश्यकताओं/मानदंडों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत घोषित एक कानून मानते हुए पुलिस मुठभेड़ों में होने वाली मौत और गंभीर चोट के सभी मामलों में सख्ती का रवैया अपनाया जाना चाहिये।
  • NHRC दिशा-निर्देश:
    • मार्च 1997 में न्यायाधीश एम.एन. वेंकटाचलैया (तत्कालीन NHRC अध्यक्ष) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से यह सुनिश्चित करने के लिये कहा कि मुठभेड़ों से संबंधित मामलों में पुलिस निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का पालन करे:   
      • FIR को रजिस्टर करना: जब किसी थाने के मुख्य अधिकारी को मुठभेड़ में हुई हत्या के संबंध में सूचना मिलती है तो उसे उपयुक्त रजिस्टर में उस सूचना को दर्ज करना होगा
      • जाँच करना: प्राप्त जानकारी को संदिग्ध जानकारी माना जाएगा, मौत को संदर्भित करने वाले तथ्यों (जैसे कि क्या अपराध हुआ है, यदि हुआ है तो किसके द्वारा) एवं परिस्थितियों की जाँच के लिये तत्काल कदम उठाए जाने चाहिये।
      • मुआवज़ा देना: मृतक के आश्रितों को मुआवज़ा दिया जा सकता है यदि मुठभेड़ से संबंधित जाँच से प्राप्त परिणामों के आधार पर पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाया जाता है तो मृतक के आश्रितों को मुआवज़ा दिया जा सकता है।
      • स्वतंत्र एजेंसी: जब भी किसी एनकाउंटर दल में एक ही पुलिस स्टेशन से जुड़े पुलिस अधिकारी शामिल होते हैं, तो उचित यह होगा कि जाँच के लिये मामलों को किसी अन्य स्वतंत्र जाँच एजेंसी जैसे कि राज्य की CID को मामले भेज दिये जाए।
  • वर्ष 2010 में NHRC ने निम्नलिखित को शामिल करते हुए उक्त दिशा-निर्देशों में वृद्धि कर दी:
    • मजिस्ट्रियल जाँच: पुलिस कार्रवाई के दौरान होने वाली सभी मौतों के मामलों में जितनी जल्दी हो सके (अधिमानतः तीन महीने के भीतर) एक मजिस्ट्रियल जाँच होनी चाहिये।
    • आयोग को रिपोर्ट करना: राज्य के किसी भी पुलिस स्टेशन में होने वाली सभी मौतों के विषय में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/ज़िले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को 48 घंटे के भीतर आयोग को प्रारंभिक रिपोर्ट भेजनी होगी।
    • सभी मामलों में आयोग को तीन महीने के भीतर दूसरी रिपोर्ट भेजी जानी चाहिये, जिसके माध्यम से पोस्टमार्टम रिपोर्ट, वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की गई जाँच/मजिस्ट्रियल जाँच के निष्कर्ष आदि समाहित हो।

आगे की राह

  • एनकाउंटर में होने वाली मौतों की स्वतंत्र जाँच की जानी चाहिये क्योंकि इनसे विधि के शासन का नियम प्रभावित होता है। यह सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है कि समाज में एक कानून व्यवस्था विद्यमान है जिसका प्रत्येक राज्य प्राधिकरण और जनता द्वारा पालन किया जाना चाहिये।
  • पुलिस कर्मियों पर हो सकने वाले किसी भी हमले को रोकने के लिये अभियुक्तों की उचित हिरासत की व्यवस्था करना।
  • इसके अलावा, आपराधिक न्याय प्रणाली की समीक्षा करने और अपेक्षित पुलिस सुधार किये जाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • पुलिस कर्मियों को बेहतर ढंग से प्रशिक्षित करने और उन्हें सभी प्रासंगिक कौशल से युक्त करने के लिये मानक दिशा-निर्देशों को निर्धारित करने की आवश्यकता है ताकि वे किसी भी भयानक स्थिति से प्रभावी ढंग से निपट सकें।
    • गिरफ्तारी के समय/गिरफ्तार व्यक्तियों के संदर्भ में मानव अधिकारों के पक्ष को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


सार्वजनिक खरीद में बोली लगाने संबंधी नियमों में सख्ती

प्रीलिम्स के लिये

सामान्य वित्तीय नियमावली, 2017 और संबंधित संशोधन, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

मेन्स के लिये

सरकार द्वारा जारी किये गए आदेश और भारत-चीन व्यापार संबंधों पर इनका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने सामान्य वित्तीय नियमावली, 2017 (General Financial Rules 2017) में संशोधन करते हुए भारत के साथ सीमा साझा करने वाले देशों के निवेशकों की ओर से सार्वजनिक खरीद में बोली लगाने पर कुछ प्रतिबंध अधिरोपित किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • सार्वजनिक खरीद पर प्रतिबंध
    • वित्त मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के अनुसार, भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों का कोई भी बोलीदाता भारत की किसी भी सार्वजनिक खरीद में बोली लगाने के लिये तभी पात्र होगा, जब वह बोलीदाता उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) द्वारा गठित पंजीकरण समिति के साथ पंजीकृत होगा। 
    • इसके अलावा क्रमशः विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय से राजनीतिक एवं सुरक्षा संबंधी मंज़ूरी भी अनिवार्य होगी।
    • कारण: भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों के बोलीदाताओं पर इस प्रकार के प्रतिबंध मुख्य रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और भारत के हितों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाले अन्य कारणों के मद्देनज़र लिया गया है।

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  • राज्यों पर भी लागू होगा आदेश
    • वित्त मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, यह आदेश राज्य सरकारों पर भी लागू होगा, क्योंकि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में राज्य काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
    • गौरतलब है कि राज्य सरकार के संबंध में मंज़ूरी के लिये सक्षम प्राधिकरण का गठन स्वयं राज्य सरकारों द्वारा किया जाएगा, किंतु इस स्थिति में भी क्रमशः गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय से राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मंज़ूरी अनिवार्य होगी।
    • उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा जारी यह आदेश सरकारी बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों, स्वायत्त निकायों, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) और सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त सार्वजनिक निजी भागीदारी परियोजनाएँ आदि पर लागू होगा।
  • नियम में अपवाद और छूट
    • ध्यातव्य है कि सरकार ने कुछ सीमित मामले में इस नियम के तहत छूट भी प्रदान की है, जिसमें 31 दिसंबर, 2020 तक COVID-19 से संबंधित चिकित्सा आपूर्ति की खरीद शामिल है।
    • सरकार द्वारा जारी एक अन्य आदेश के अनुसार, जिन देशों को भारत सरकार द्वारा लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit) प्रदान किया है अथवा जिन्हें सरकार विकास संबंधी सहायता प्रदान करती है, उन्हें पूर्व पंजीकरण की आवश्यकता से छूट दी गई है। 
    • सरकार का प्रतिबंध संबंधी आदेश सभी नई निविदाओं (Tenders) पर लागू होगा।
    • वहीं पहले से आमंत्रित निविदाओं के मामले में, यदि मूल्यांकन का पहला चरण पूरा नहीं हुआ है, तो नए आदेश के तहत पंजीकृत न होने वाले बोलीदाताओं को योग्य नहीं माना जाएगा।
    • यदि पहला चरण पूरा कर लिया गया है, तो नियमों के अनुसार, आमंत्रित निविदाओं को रद्द कर दिया जाएगा और इस प्रक्रिया को पुनः नए सिरे से शुरू किया जाएगा। 
  • इस कदम के निहितार्थ
    • वर्तमान में भारत कुल 7 देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्याँमार के साथ थल सीमाएँ साझा करता है।
    • गौरतलब है कि भारत सरकार ने अपने आदेश के माध्यम से बांग्लादेश, नेपाल और म्याँमार जैसे देशों को छूट प्रदान की है, जिन्हें या तो भारत ने लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit) प्रदान किया है या फिर भारत उनको विकास संबंधी सहायता प्रदान कर रहा है।
    • ऐसे में इस निर्णय का सबसे अधिक प्रभाव चीन और पाकिस्तान पर देखने को मिलेगा और इन देशों के बोलीदाताओं को अब सार्वजनिक खरीद में हिस्सा लेने से पूर्व सरकार से मंज़ूरी प्राप्त करनी होगी।
    • कई विशेषज्ञ भारत सरकार द्वारा की गई इस कार्रवाई को चीन के विरुद्ध एक बड़ी दंडात्मक व्यापार कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप चीन के बोलीदाताओं को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

FDI संबंधी नियमों पर भी प्रतिबंध

  • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व भारत सरकार ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों में भारत की थल सीमा (Land Border) से जुड़े पड़ोसी देशों से ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (Foreign Direct Investment- FDI) के लिये सरकार की अनुमति को अनिवार्य कर दिया था। 
  • संबंधित आदेश के अनुसार, ऐसे सभी विदेशी निवेश के लिये सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी जिनमें निवेश करने वाली संस्थाएँ या निवेश से लाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति भारत के साथ थल सीमा साझा करने वाले देशों से हो। 
  • केंद्र सरकार के इस इस नियम का मुख्य उद्देश्य COVID-19 के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक दबाव के बीच भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ को रोकना है।

स्रोत: द हिंदू


प्ली बारगेनिंग

प्रीलिम्स के लिये:

प्ली बारगेनिंग, तब्लीगी जमात 

मेन्स के लिये:

भारत में प्ली बारगेनिंग का उपयोग एवं इसका महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विभिन्न देशों से संबंधित तब्लीगी जमात के कई सदस्यों को ‘प्ली बारगेनिंग’/दलील सौदेबाज़ी (Plea Bargaining) प्रक्रिया के माध्यम से अदालती मामलों से रिहा/मुक्त कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इन विदेशी नागरिकों पर कोविड-19 महामारी के दौरान जारी दिशा-निर्देशों और वीज़ा शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप था।
  • इन आरोपों के निपटान में ‘प्ली बारगेनिंग’ इस्तेमाल किया गया ताकि ट्रायल में लगने वाले समय को बचाया जा सके। हालाँकि भारत में एक दशक से अधिक समय से आपराधिक मामलों में फंसे आरोपियों के पास ‘प्ली बारगेनिंग’ का विकल्प उपलब्ध होने के बावजूद इसका प्रयोग अभी भी सामान्य/आम नहीं है।

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प्ली बारगेनिंग क्या है?

  • एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें किसी दंडनीय अपराध के लिये आरोपित व्यक्ति अपना अपराध स्वीकार कर ‘प्ली बारगेनिंग’ की प्रक्रिया के माध्यम से कानून के तहत निर्धारित सज़ा से कम सज़ा प्राप्त करने के लिये अभियोजन से सहायता लेता है।
  • इसमें मुख्य रूप से अभियुक्त (Accused) और अभियोजक (Prosecutor) के बीच ट्रायल के पूर्व वार्ता (Pre-trial Negotiations) को शामिल किया जाता है।

भारत में क्या प्रावधान है? 

  • वर्ष 2006 तक भारत में ‘प्ली बारगेनिंग’ की अवधारणा कानून का हिस्सा नहीं थी। 
  • भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) में एक अभियुक्त के पास एक पूर्ण मुकदमे की पैरवी करने के बजाय ‘दोषी’ की पैरवी करने का प्रावधान है, हालाँकि यह ‘प्ली बारगेनिंग’ के समान नहीं है।
  • भारत विधि आयोग ने अपनी 142वीं रिपोर्ट में, उन लोगों के लिये ‘रियायती उपचार’ (Concessional Treatment) प्रक्रिया पर विचार विमर्श प्रस्तुत किया है जो स्वयं को अपनी इच्छा से ‘दोषी’ मानते हैं लेकिन विधि आयोग द्वारा इस बात के प्रति भी सावधानी बरती गई है कि इसमें अभियोजन के साथ कोई सौदेबाजी/बारगेनिंग शामिल नहीं होनी चाहिये।
  • वर्ष 2006 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code- CrPC) के अध्याय XXI-A में संशोधन कर ‘प्ली बारगेनिंग’ को एक भाग के रूप में शामिल किया गया।
    •  इसमें धारा 265A से 265L को शामिल किया गया है।

किन परिस्थितियों में इसकी अनुमति है? 

  • अमेरिकी और अन्य देशों के विपरीत, जहाँ अभियोजक संदिग्ध अपराधी के साथ बारगेनिंग/सौदेबाजी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, भारतीय सहिता में एक ऐसी प्रक्रिया की दलील प्रस्तुत की गई है जिसे केवल आरोपी द्वारा ही शुरू किया जा सकता है। 
  • अभियुक्त को ‘प्ली बारगेनिंग’ के लिये अदालत में आवेदन प्रस्तुत करना होगा।
  • भारत में बहुत ही सीमित मामलों के लिये ‘प्ली बारगेनिंग’ के अभ्यास की अनुमति है, केवल एक ऐसा अपराधी जिसे मृत्युदंड, आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की सज़ा दी गई है, वह अध्याय XXI-A के तहत ‘प्ली बारगेनिंग’ का उपयोग नहीं कर सकता है।
  • यह उन निजी शिकायतों पर भी लागू होता है जिन्हें एक आपराधिक अदालत द्वारा संज्ञान में लिया गया है।
  • कुछ ऐसे मामलें भी हैं जिनका दलीलों के माध्यम से निपटारा नहीं किया जा सकता है जिनमें शामिल है-
    • देश की ‘सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों’ को प्रभावित करने वाले अपराध।
    • 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे या किसी महिला के विरुद्ध किया गया कोई अपराध।

यह कैसे कार्य करता है?

  • आवेदक अदालत में एक याचिका एवं हलफनामा प्रस्तुत करता है। इस याचिका एवं हलफनामे में आवेदक द्वारा इस बात की जानकारी दी जाती है कि याचिकाकर्त्ता स्वेच्छा से इसे प्राथमिकता दे रहा है और वह अपराध के लिये कानून में प्रदान की गई सज़ा की प्रकृति और प्रभाव को समझता है।
  • इसके बाद अदालत अभियोजक और शिकायतकर्त्ता या पीड़ित को सुनवाई के लिये नोटिस जारी करती है।
  • आवेदन की स्वैच्छिक प्रकृति का निर्धारण न्यायाधीश द्वारा कैमरे के समक्ष किया जाता है जहाँ दूसरा पक्ष मौजूद नहीं होता है।
  • इसके बाद अदालत अभियोजक, जाँच अधिकारी और पीड़ित को ‘मामले के संतोषजनक निपटान’ के लिये बैठक आयोजित करने की अनुमति देती है जिसमें आरोपी द्वारा पीड़ित को मुआवज़े का भुगतान और अन्य खर्च देना होता है।
  • एक बार आपसी संतुष्टि हो जाने के बाद, अदालत सभी पक्षों और पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित एक रिपोर्ट के माध्यम से व्यवस्था को औपचारिक बना देती है। 
    • आरोपी को एक निश्चित अवधि के कारावास की सज़ा हो सकती है जो अपराध के लिये निर्धारित मूल सज़ा की अवधि की आधी होती है। 
    • यदि किस अपराध के संदर्भ में सज़ा की कोई न्यूनतम अवधि निर्धारित नहीं है, तो कानून में निर्धारित अधिकतम सज़ा की एक-चौथाई अवधि तक की सज़ा दी जाती है।
  • प्ली बारगेनिंग के पक्ष और विपक्ष में तर्क
  • पक्ष
    • अपराधिक न्याय प्रणाली के सुधारों पर वर्ष 2000 में गठित जस्टिस मलिमथ कमेटी ने प्ली बारगेनिंग के संबंध में विधि आयोग की विभिन्न सिफारिशों का समर्थन किया।
      • आपराधिक मामलों के परिणाम पर बनी रहने वाली अनिश्चितता की स्थिति को खत्म करना संभव होगा।
      • मामलों की सुनवाई में तेज़ी आएगी। 
      • मुकदमेबाज़ी पर होने वाले व्यय को कम किया जा सकेगा।
      • इससे सज़ा/दंड की दरों पर नाटकीय प्रभाव पड़ेगा। यह संयुक्त राज्य अमेरिका में यह बेहद आम है, लंबे और जटिल ट्रायल से बचने का यह एक सफल तरीका है। नतीजतन, वहाँ सज़ा की दर काफी अधिक है।
      • लंबे समय से विचाराधीन मुकदमों के चलते कैदी वर्षों तक जेल में बंद रहते हैं, जिससे जेलों में भीड़ बढ़ती जा रही हैं, इस प्रकार के विकल्पों से लंबित मामलों के निपटान में भी मदद मिलेगी।
      • यह अपराधियों को जीवन में एक नई शुरुआत करने में भी मददगार साबित हो सकता है।
  • विपक्ष
    • जिन लोगों को प्ली बारगेनिंग के लिये मजबूर किया जाता है उन लोगों के पास ज़मानत कराने का विकल्प भी मौजूद नहीं होता हैं।
    • यहाँ तक कि ऐसे मामलों में अदालत भी अपनी स्वैच्छिक प्रकृति का परिचय देती है क्योंकि गरीबी, अज्ञानता और अभियोजन पक्ष के दबाव के कारण किसी को उस अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिये जो उसने किया ही नहीं है।
    • न्यायपालिका ने अपने पूर्व के फैसलों में (विशेषकर इस प्रक्रिया के लागू होने से पहले) अपराधियों के साथ प्ली बारगेनिंग को यह कहकर अस्वीकार किया है कि एक नियमित ट्रायल के बाद मामले को परिस्थितियों के हिस्से के रूप में उदार वाक्य माना जा सकता है।
    • इसके अलावा, यह निष्पक्ष जाँच के पीड़ित के अधिकार को भी प्रभावित कर सकता है, इस प्रकिया में जाँच एजेंसियों द्वारा ज़बरदस्ती किये जाने और भ्रष्टाचार जैसे उपकरण बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
    • कुछ लोगों का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के विरुद्ध है जो आत्म-उत्पीड़न के खिलाफ एक अभियुक्त को सुरक्षा प्रदान करता है।
  • आगे की राह 
  • यहाँ इस बात पर विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है कि प्ली बारगेनिंग आरोपी और पीड़ित के लिये भले ही फायदेमंद हो, लेकिन इस प्रक्रिया के संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित किया जाना बेहद आवश्यक है।
  • प्ली बारगेनिंग आपराधिक अदालतों में बढ़ते मामलों की संख्या को नियंत्रित करने और न्यायिक संसाधनों, बुनियादी ढाँचे और खर्चों को युक्तिसंगत बनाने की दिशा में एक संभावित उपाय है।

स्रोत: द हिंदू


महिला अधिकारियों को सेना में स्थाई कमीशन

प्रीलिम्स के लिये: 

 स्थाई कमीशन,  ‘शॉर्ट सर्विस कमीशन’ (Short Service Commission-SSC)

मेन्स के लिये: 

सेना में महिलाओं की भूमिका, लैंगिक समानता से संबंधित प्रश्न 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को ‘स्थाई कमीशन’ (Permanent Commission) प्रदान करने के लिये औपचारिक सरकारी मंज़ूरी पत्र जारी किया है

प्रमुख बिंदु:

  • केंद्र सरकार के इस आदेश के बाद ‘शाॅर्ट सर्विस कमीशन’ (Short Service Commission-SSC) से चयनित महिला अधिकारी सेना की सभी 10 शाखाओं/विभागों में ‘स्थायी कमीशन’ (Permanent Commission) प्राप्त करने के लिये पात्र होंगी।
  • सेना की जिन 10 शाखाओं में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन उपलब्ध कराया जा रहा है, उनमें वर्तमान में स्थाई कमीशन के लिये उपलब्ध न्यायाधीश, महाधिवक्ता और सेना शिक्षा कोर के अतिरिक्त सेना की हवाई सुरक्षा, सिग्नल, इंजीनियर, सेना विमानन, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर, सेना सेवा कोर तथा ख़ुफ़िया कोर (Intelligence Corps) शामिल हैं।
  • भारतीय सेना के अनुसार, यदि पात्र महिला अधिकारियों द्वारा स्थाई कमीशन के लिये अपने विकल्प का प्रयोग किया जाता है, तो इसके लिये अपेक्षित सभी दस्तावेज़ों को उपलब्ध कराए जाने के बाद सेना द्वारा चयन बोर्ड का निर्धारण कर दिया जाएगा। 

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पृष्ठभूमि:

  • वर्तमान में सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति शाॅर्ट सर्विस कमीशन के माध्यम से होती है।
  • सेना में SSC अधिकारियों को 14 वर्षों (10+4) के लिये चुना जाता है। इसके तहत 10 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद निर्धारित नियमों के अनुसार इसे अगले 4 वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।
  • गौरतलब है कि SSC के तहत चयनित पुरुष अधिकारियों के लिये 10 वर्ष की सेवा के पश्चात स्थाई कमीशन चुनने का विकल्प उपलब्ध था, जबकि महिला अधिकारियों के लिये नहीं। 
  • इस बाधा के कारण महिला अधिकारियों को कमान नियुक्तियों (Command Appointment) से बाहर रखा जाता था और वे सरकारी पेंशन के लिये भी पात्र नहीं होती थीं। क्योंकि अधिकारियों को 20 वर्ष के सेवा के बाद ही सरकारी पेंशन के लिये पात्र माना जाता है।

स्थाई कमीशन प्रदान करने के पूर्व प्रयास:

  • वर्ष 2019 में केंद्रीय रक्षा मंत्रालय द्वारा एक महत्त्वपूर्ण निर्णय के माध्यम से सेना की कुछ शाखाओं में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने का निर्णय लिया गया था।
    • इसमें सिग्नल, इंजीनियरिंग, सेना विमानन, सेना हवाई रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल को शामिल किया गया था।
    • इसके तहत SSC महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने के लिये रिक्तियों की उपलब्धता, प्रदर्शन, चिकित्सा फिटनेस और उम्मीदवारों की प्रतिस्पर्द्धी योग्यता आदि पहलुओं को आधार के रूप में शामिल किया गया था।

उच्चतम न्यायालय का निर्देश: 

  • उच्चतम न्यायालय ने 17 फरवरी को सेना में SSC महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन के लिये पात्रता दिये जाने का निर्देश दिया था।
  • साथ ही उच्चतम न्यायालय ने महिला अधिकारियों को गैर-युद्ध कमान पदों के लिये भी पात्र माने जाने का निर्देश दिया था।
  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन दिये जाने को पूरी तरह प्रतिबंधित करना संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत प्राप्त समानता के अधिकारों का उल्लंघन होगा।
  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, सिर्फ लिंग के आधार पर महिला अधिकारियों की क्षमताओं में बाधा उत्पन्न करना न सिर्फ एक महिला के रूप में बल्कि भारतीय सेना के एक सदस्य के रूप में भी उनकी गरिमा का अपमान है।       

सेना में महिला अधिकारियों की भर्ती:

  • भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को सबसे पहले वर्ष 1992 से पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिये शामिल किया गया था।
  • वर्ष 2006 में SSC के तहत महिला अधिकारियों को 10 वर्ष की अवधि के लिये नियुक्त किया जाना प्रारंभ किया गया,  इसके तहत महिला अधिकारियों के कार्यकाल को 14 वर्षों तक बढ़ाया जा सकता था।     

  • सेना में स्थाई कमीशन प्राप्त करने के लिये कुछ महिला अधिकारियों द्वारा वर्ष 2003 में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी।

  • इस मामले में वर्ष 2010 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने महिला अधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया था।
  • परंतु सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के निर्देश को नहीं माना गया था और इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
  • मार्च 2020 में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने का निर्देश दिया था। 
  • 7 जुलाई, 2020 को उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार को न्यायालय के फैसले को पूर्ण रूप से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये एक माह का अतिरिक्त समय दिया था।

सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन :

  • सेना की तीनों सेवाओं (थल, वायु और नौसेना) में महिला अधिकारियों को चिकित्सा, शिक्षा, विधिक, सिग्नल, रसद और इंजीनियरिंग सहित चुने हुए क्षेत्रों में स्थाई कमीशन की अनुमति दी गई है।
  • भारतीय वायु सेना में SSC महिला अधिकारियों को ‘फ्लाईंग ब्रांच’ (Flying Branch) को छोड़कर अन्य सभी विभागों में स्थाई कमीशन प्राप्त करने का विकल्प दिया गया है।
  • नौसेना में महिलाओं के लिये रसद, नौसेना डिजाइनिंग, वायु यातायात नियंत्रण, इंजीनियरिंग और कानूनी जैसे विभागों में स्थाई कमीशन की अनुमति है।   

प्रभाव:

  • सरकार का यह निर्णय सेना में बड़ी भूमिका निभाने के लिये महिला अधिकारियों को सशक्त बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
  • सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन प्रदान करने से वे सेवानिवृत्ति की आयु तक सेना में अपनी सेवा जारी रख सकेंगी।
  • साथ ही इस फैसले के बाद पात्र महिला अधिकारी 20 वर्ष से अधिक समय तक सेवा जारी रख सकेंगी और उन्हें सरकारी पेंशन का लाभ मिल सकेगा।  

निष्कर्ष : 

संयुक्त राज्य अमेरिका, इज़रायल, उत्तर कोरिया, फ्राँस, जर्मनी, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे विश्व के कई देशों में महिलाओं को सेना में युद्ध की स्थिति में भी पहली पंक्ति में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका दिया जाता है। भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन दिया जाना सेना में महिला समानता को बढ़ावा दिये जाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय है। सरकार का यह निर्णय  भविष्य में सेना में महिला अधिकारियों के अधिकारों से जुड़े अन्य सकारात्मक सुधारों के लिये एक मज़बूत आधार का काम करेगा।  

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


सामुदायिक कैंटीन 2.0

प्रीलिम्स के लिये:

 ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, ‘वन नेशन, वन राशन’,  सामुदायिक कैंटीन

मेन्स के लिये: 

वर्तमान संदर्भ (COVID- 19) में सामुदायिक कैंटीन का महत्त्व   

चर्चा में क्यों?

कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ (Pradhan Mantri Garib Kalyan Ann Yojana) को और तीन महीने के लिये विस्तारित करने  की घोषणा की गई। इसके अलावा प्रवासी श्रमिकों के लिये सब्सिडी युक्त अनाज तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये  ‘वन नेशन, वन राशन’ (One Nation, One Ration- ONOR) योजना के कार्यान्वयन पर भी प्रकाश डाला गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID- 19 महामारी के दौर में मार्च माह में सरकार द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के रूप में प्रधानमंत्री ‘गरीब कल्याण अन्न योजना’ की घोषणा की गई थी। 
    • ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ के माध्यम से सरकार पूरे देश में लगभग 800 मिलियन लाभार्थियों को हर माह 5 किलोग्राम अनाज और 1 किलो चना प्रदान कर रही है। 
  • महामारी के चलते लॉकडाउन अवधि के दौरान जो लाखों लोग/प्रवासी अपने पैतृक गाँवों में वापस चले गए हैं उनके पास पर्याप्त मात्रा में भोजन का अभाव बना हुआ है।
  • मौजूदा समस्या के समाधान के तौर पर समाज के कमज़ोर वर्ग के लोगों के लिये पोषण एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सामुदायिक कैंटीन (Community Canteens) एक सस्ता एवं बेहतर विकल्प है।

 सामुदायिक कैंटीन:

  • सामुदायिक कैंटीन/रसोई बहुत सस्ती कीमत पर लोगों को पौष्टिक भोजन प्रदान करती हैं। 
  • इनमें खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा के मानकों को भी ध्यान में रखा जाता है। ये सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 

भारत में सामुदायिक कैंटीन की स्थिति:

  • देश के लगभग 10 से अधिक राज्यों में सामुदायिक कैंटीन चलाई जा रही हैं।
    • कुछ उल्लेखनीय उदाहरणों में तमिलनाडु की अम्मा कैंटीन और कर्नाटक की इंदिरा कैंटीन शामिल हैं।
    • राजस्थान में जून 2020 में महामारी के संकट की स्थिति में तमिलनाडु की अम्मा रसोई की तर्ज पर ‘इंदिरा रसोई योजना’ की शुरुआत की गई।
      • इस योजना के माध्यम से गरीबों और ज़रूरतमंदों को रियायती दरों पर दिन में दो बार पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।
      • वर्ष 2016 में राजस्थान सरकार द्वारा ’अन्नपूर्णा रसोई योजना’ की शुरुआत की गई थी जिसमें 5 रुपए में नाश्ता एवं 8 रुपए में दोपहर का भोजन देने का प्रावधान किया गया था।
    • मध्य प्रदेश की दीनदयाल कैंटीन भी सामुदायिक कैंटीन का ही उदाहरण हैं। 

सामुदायिक कैंटीन का महत्त्व:

  • इनके माध्यम से समाज़ के गरीब एवं कमज़ोर वर्ग के लिये सुरक्षित, पौष्टिक और सस्ती दरों पर भोजन की उपलब्धता को  सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • सामुदायिक कैंटीन रोज़गार के नए अवसर सृजित करने में सहायक हो सकती हैं। क्योंकि इन कैंटीनों के माध्यम से एक दिन में लगभग 90 मिलियन लोगों को भोजन परोसने के लिये लोगों की ज़रुरत होती है।
  • यह खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने में भी सहायक सिद्ध हो रही है।

वर्तमान स्थिति:

  •  सामान्यत इन कैंटीनों में 5-10 रुपए  प्रति प्लेट की दर से सस्ता खाना मिलता है।
  • प्रारंभिक विश्लेषण से पता चलता है कि इस तरह की कैंटीन में पौष्टिक भोजन की कीमत 15-20 रुपए प्रति प्लेट के हिसाब से स्वत धारणीय (Self-Sustainable) हो सकती है जो सड़क किनारे स्थित उन ढाबे द्वारा लिये जाने वाले भोजन शुल्क से काफी कम हैं। 
  • एक विश्लेषण के अनुसार, 26,500 करोड़ के शुरुआती सामाजिक निवेश के साथ 60,000 कैंटीन तथा 8,200 रसोईघरों के माध्यम से 30 मिलियन शहरी गरीब श्रमिकों को (मुख्य रूप से प्रवासियों को) एक दिन में तीन पौष्टिक भोजन दिये जा सकते हैं।
  • यदि सभी शहरी प्रवासी श्रमिक ‘वन नेशन, वन राशन’ योजना की बजाय सामुदायिक कैंटीनों पर भरोसा करे तो निवेशक इनमें किये गए अपने निवेश को छह वर्ष से भी कम की समयावधि में वापस प्राप्त कर सकते हैं।
  • यह ‘वन नेशन, वन राशन’ योजना के संभावित खाद्य सब्सिडी परिव्यय को कम करने में भी सहायक है, जिससे लगभग 4,500 करोड़ की वार्षिक बचत होने की संभावना है।

आगे की राह: 

वर्तमान समय में अधिकांश कैंटीन सुचारु रूप से कार्य करने के लिये निरंतर सरकारी सहायता पर निर्भर है। केंद्र सरकार को सामुदायिक कैंटीन के सुचारु क्रियान्वयन हेतु प्रारंभिक पूंजी सहायता का विस्तार करना चाहिये तथा राज्य स्तर पर सेवा प्रदाताओं के रूप में इन कैंटीनों का नेतृत्व निजी संस्थाओं के सहयोग से शहरी स्थानीय निकायों या नगर निगमों द्वारा किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


तिलारी संरक्षण रिज़र्व

प्रीलिम्स के लिये: 

तिलारी संरक्षण रिज़र्व,  महादेई अभयारण्य

मेन्स के लिये: 

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने सिंधुदुर्ग ज़िले में स्थित डोडामर्ग वन क्षेत्र के लगभग 29.53 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को 'तिलारी संरक्षण रिजर्व' (Tillari Conservation Reserve) घोषित किया है।

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तिलारी संरक्षण रिजर्व:

  • तिलारी महाराष्ट्र राज्य का सातवाँ वन्यजीव गलियारा है जिसे 'संरक्षण रिज़र्व' के रूप में घोषित किया गया है।
  • अपने वन क्षेत्र (Range) में नौ गांवों को आच्छादित (Cover) करने वाले इस क्षेत्र को एक गलियारे के रूप में जाना जाता है और यहाँ तक ​​कि तीन राज्यों गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मध्य विचरण करने वाले बाघों और हाथियों की आबादी के लिये एक निवास स्थान के रूप में भी जाना जाता है।
  • यह गोवा के महादेई अभयारण्य को कर्नाटक के भीमगढ़ से जोड़ता है।
  • इसमें अर्द्ध-सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, और कई अद्वितीय वृक्ष, तितलियाँ और फूल पाए जाते हैं।

Tillari

महाराष्ट्र में संरक्षण रिज़र्व:

  • महाराष्ट्र में 62 संरक्षण रिज़र्व हैं, जिनमें से 13 पश्चिमी घाट में हैं।
    • तिलारी संरक्षण रिज़र्व पश्चिमी घाट में अवस्थित  है।

भारत में संरक्षण रिज़र्व:

  • संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक रिज़र्व देश के उन संरक्षित क्षेत्रों को दर्शाते हैं, जो आमतौर पर स्थापित राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों और आरक्षित तथा संरक्षित जंगलों के मध्य बफर ज़ोन के रूप में या कनेक्टर्स के रूप में कार्य करते हैं।
  • ऐसे क्षेत्रों को संरक्षण क्षेत्रों के रूप में नामित किया जाता है जो निर्जन (Uninhabited) और पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में हैं, लेकिन समुदायों और सामुदायिक क्षेत्रों द्वारा निर्वाह के लिये उपयोग किया जाता है यदि भूमि का हिस्सा निजी स्वामित्व में है।
  • इन संरक्षित क्षेत्र श्रेणियों को पहली बार वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 (वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन) में पेश किया गया था।
  • इन श्रेणियों को भूमि और भूमि के उपयोग के निजी स्वामित्व के कारण मौजूदा और प्रस्तावित संरक्षित क्षेत्रों में कम सुरक्षा के कारण जोड़ा गया था।
  • जुलाई 2019 तक, भारत में 88 संरक्षण रिज़र्व और 127 सामुदायिक रिज़र्व थे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सोने की कीमतों में वृद्धि और महामारी

प्रीलिम्स के लिये

ब्रेटन वुड्स प्रणाली, विश्व स्वर्ण परिषद

मेन्स के लिये

सोने की कीमतों पर महामारी का प्रभाव, सोने में निवेश से संबंधित विभिन्न पक्ष

चर्चा में क्यों?

सोने की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी जारी है, हाल ही में भारत में सोने की कीमतें 50000 हज़ार रुपए प्रति 10 ग्राम के स्तर को भी पार कर गईं, ऐसे में यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि जब संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था संकुचित हो रही है तब सोने की कीमतों में बढ़ोतरी क्यों देखने को मिल रही है?

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सोने का उपभोक्ता है।
  • कीमतों में बढ़ोतरी के कारण
    • वर्ष 2020 की पहली छमाही में सोने (Gold) का प्रदर्शन काफी शानदार रहा है और मार्च माह में इसके निचले स्तर से लगभग 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
    • हाल ही में लंदन में सोने का वायदा बाज़ार भाव 9 वर्ष के उच्च स्तर 1,856.60 डॉलर प्रति ट्रॉय औंस (Troy Ounce) हो गया था, जो कि वर्ष 2011 के सितंबर माह में सोने के रिकॉर्ड स्तर 1,920 प्रति डॉलर औंस के करीब था।
    • ध्यातव्य है कि एक ट्रॉय औंस 31.1034768 ग्राम के बराबर होता है।
    • जानकारों का मानना है कि सोने की कीमत और मांग में बढ़ोतरी के मुख्य कारणों में COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई वैश्विक अनिश्चितता, डॉलर का कमज़ोर होना, ब्याज़ दर में कमी और दुनिया भर की विभिन्न सरकारों द्वारा शुरू किये गए आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज को शामिल किया जा सकता है।
    • इसके अलावा कोरोना वायरस (COVID-19) के कारण लगातार बढ़ती अनिश्चितता और अमेरिका तथा चीन के मध्य उत्पन्न हुए तनाव ने भी इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
    • सोने के कई विश्लेषकों का मानना है कि आगामी 18-24 महीनों में सोने की कीमतें लगभग 65,000 रुपए प्रति 10 ग्राम तक जा सकती हैं।

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  • सोना: निवेश का एक सुरक्षित मार्ग
    • भारत में शादी जैसे सामाजिक समारोहों का एक अभिन्न अंग माना जाने वाला सोना पारंपरिक रूप से मुद्रास्फीति के विरुद्ध बचाव के रूप में उपयोग किया जाता रहा है और अनिश्चितता (Uncertainty) के दौरान इसे निवेशकों के लिये एक सुरक्षित मार्ग माना जाता है।
    • जब भी दुनिया भर के शेयर बाज़ार, रियल एस्टेट और बॉण्ड आदि के मूल्य में गिरावट देखने को मिलता है, तो निवेशक निवेश के लिये सोने का रुख करते हैं।
    • इसका मुख्य कारण है कि सोना अत्यधिक तरल (Highly Liquid) होता है और उसमें नुकसान का जोखिम काफी कम होता है। अत्यधिक तरल होने का अर्थ है कि सोने को इसकी कीमत में परिवर्तन किये बिना काफी जल्दी बेचा और खरीदा जा सकता है।
    • सोने के इस मज़बूत प्रदर्शन के पीछे एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि सोने की आपूर्ति में बीते कुछ वर्षों में समय के साथ थोड़ा बदलाव आया है - पिछले कुछ वर्षों में सोने की आपूर्ति में प्रति वर्ष लगभग 1.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • सोने पर निवेश में प्रतिफल (Return)
    • ऐतिहासिक तौर पर सोने पर किये जाने वाले निवेश पर निवेशकों को काफी अच्छा प्रतिफल प्राप्त हुए हैं।
    • वर्ष 1971 में ब्रेटन वुड्स प्रणाली की समाप्ति के बाद वर्ष 1973 से अब तक सोने की कीमत में औसतन 14.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
    • पिछले एक वर्ष में सोने की कीमतों में तकरीबन 40 प्रतिशत का उछाल आया है, जबकि इस अवधि में सेंसेक्स (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का बेंचमार्क इंडेक्स) ने 0.41 प्रतिशत का नुकसान दर्ज किया है।
  • भारत का सोना (Gold) बाज़ार
    • विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council-WGC) के अनुमान के अनुसार,  भारतीय घरों में लगभग 24,000-25,000 टन सोना जमा हो सकता है। इसके अलावा देश भर के विभिन्न मंदिरों में भी सोने की काफी भारी मात्रा मौजूद है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में तकरीबन 40.45 टन सोना खरीदा था, जिसके बाद भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पास मौजूदा सोने की कुल मात्रा 653.01 टन हो गई थी।
    • वर्ष 2019 में भारत में सोने की मांग 690.4 टन थी, जबकि वर्ष 2018 में यह 760.4 टन थी। गौरतलब है कि भारत में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण वर्ष 2020 में सोने की मांग में काफी कमी आई है।
    • एक अनुमान के अनुसार, भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 120-200 टन सोने की तस्करी की जाती है। सरकार ने बीते वर्ष सोने पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


मौसम आधारित आपदाओं की संख्या में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

AON केटास्ट्रॉफी रिपोर्ट, चक्रवात ईदाई, चक्रवात केनेथ

मेन्स के लिये:

मौसम आधारित आपदाएँ

चर्चा में क्यों?

‘AON केटास्ट्रॉफी’ (Catastrophe) रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 की पहली छमाही में विश्व स्तर पर कम-से-कम 207 प्राकृतिक आपदाएँ दर्ज की गईं। यह 21वीं सदी में अब तक की औसत (वर्ष 2000 से वर्ष 2019 तक ) 185 आपदाओं से अधिक है।

प्रमुख बिंदु:

  • AON एक प्रमुख वैश्विक व्यावसायिक सेवा फ़र्म है जो जोखिम, सेवानिवृत्ति और स्वास्थ्य समाधानों के संबंध में विस्तृत सेवाएँ प्रदान करती है।
  • वर्ष 2020 में प्रथम छमाही में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में विगत वर्ष की तुलना में कम-से-कम 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2019 में जनवरी से जून के बीच 163 प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में वर्ष 2020 में कम-से-कम 207 प्राकृतिक आपदाएँ दर्ज की गईं हैं।

प्राकृतिक आपदाएँ और आर्थिक नुकसान:

  • इन आपदाओं से विश्व में लगभग 75 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है, यह वर्ष 1980-2019 के दौरान हुए 78 बिलियन डॉलर के औसत नुकसान के करीब है।
  • इन आपदाओं में से 92 प्रतिशत मौसम से संबंधित थी जबकि कुल आर्थिक नुकसान का लगभग 95 प्रतिशत मौसम से संबंधित आपदाओं के कारण हुआ है। 

चक्रवातों की संख्या में वृद्धि:

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान वर्ष 2000-2019 के औसत से 270 प्रतिशत अधिक हुआ है।
  • चक्रवात अम्फान के कारण लगभग 15 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। यह उन 20 आपदाओं में शामिल है जिनके कारण होने वाला आर्थिक नुकसान बिलियन डॉलर में है।

मौसम आधारित आपदाओं की संख्या में वृद्धि:

वर्ष 2020 में आई 20 बड़ी आपदाओं में से पोर्टो रीको और जाग्रेब (क्रोएशिया) ने भूकंप को छोड़कर शेष 18 मौसम से संबंधित थीं। 

इन 20 आपदाओं में से 12 से अमेरिका प्रभावित हुआ जबकि एशियाई देशों में भारत और चीन को इन मौसम संबंधी आपदाओं के कारण 20 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा।

मौसम आधारित प्रमुख आपदाएँ:

चक्रवात ईदाई (Cyclone Idai):

  • मार्च 2019 में चक्रवात ईदाई के कारण अफ्रीका के ज़िम्बाब्वे, मलावी और मोज़ाम्बिक में 1000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी। इससे लाखों लोगों की आजीविका तथा बुनियादी सेवाएँ प्रभावित हुई थी।

चक्रवात केनेथ (Cyclone Kenneth): 

  • इससे उत्तरी मोज़ाम्बिक का वह क्षेत्र प्रभावित हुआ जहाँ उपग्रह युग के बाद से कोई उष्णकटिबंधीय चक्रवात नहीं देखा गया।

ऑस्ट्रेलियाई वनाग्नि:

  • ऑस्ट्रेलिया वर्ष 2020 की शुरुआत में ही वनाग्नि (बुशफायर) से बुरी तरह प्रभावित हुआ। इससे सैकड़ों स्थानीय प्रजातियों की मृत्यु हो गई जिनको पारिस्थितिक तंत्र में पुन: स्थापित करना (Restoration) संभव नहीं है।

पूर्वी अफ्रीका में सूखा:

  • जलवायु परिवर्तन ने ‘हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका’ क्षेत्र में सूखे की संभावना को दोगुना कर दिया है। सूखे की वजह से इथियोपिया, केन्या और सोमालिया में 15 मिलियन लोगों को आर्थिक तथा खाद्यान सहायता की ज़रूरत है।

दक्षिण एशिया में बाढ़:

  • हाल ही में बाढ़ और भूस्खलन के कारण भारत, नेपाल और बांग्लादेश में 12 मिलियन लोगों को विस्थापन का सामना करना पड़ा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, दक्षिण एशिया में समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के कारण मानसून की तीव्रता में वृद्धि हुई है। 

मध्य अमेरिका में शुष्क गलियारा:

  • अलनीनो के प्रभाव के कारण मध्य अमेरिका के शुष्क गलियारे लगातार 6 वें वर्ष सूखे से प्रभावित रहा है।

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वैश्विक स्तर पर 2,200 लोगों की मृत्यु:

  • प्राकृतिक आपदाओं के कारण 2020 की पहली छमाही के दौरान लगभग 2,200 लोगों मौत हुई है। बाढ़ का इसमें सर्वाधिक 60 प्रतिशत मौतें हुई है।
  • एशिया-प्रशांत और अफ्रीका में इस प्राकृतिक आपदाओं के कारण लगभग 71 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हुई है। 

वैश्विक तापन और उष्णकटिबंधीय चक्रवात:

  • अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल (IPCC) AR5 के अनुसार, वैश्विक तापन में मानव-निर्मित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का प्रमुख योगदान है।  पूर्व-औद्योगिकीकरण युग से पहले वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में 1-10 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। 
  • इसका मतलब यह है कि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की विनाशकारी क्षमता में आगे और भी अधिक प्रतिशत वृद्धि की संभावना है।

IPCC AR5 और चक्रवात:

  • समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के कारण तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि होगी।
  • वायुमंडलीय नमी की मात्रा में वृद्धि के कारण भविष्य में उष्णकटिबंधीय चक्रवात के कारण होने वाली वर्षा की दर में वृद्धि होगी। 
  • वैश्विक तापन के कारण चक्रवातों की विनाशकारी क्षमता में वृद्धि होगी।
  • 21 वीं सदी में बहुत तीव्र (Very intense) उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या में वृद्धि होगी।  

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भारत का जलवायु पूर्वानुमान मॉडल:

  • भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान' (IITM)- पुणे,  द्वारा तैयार एक ‘जलवायु पूर्वानुमान मॉडल’ के अनुसार, भारत में वर्षा के प्रतिरूप में व्यापक बदलाव देखने को मिला है।
  • वर्षा की तीव्रता में वृद्धि हुई है लेकिन वर्षा-अंतराल में लगातार वृद्धि हुई है। अरब सागर से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक गंभीर चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जलवायु में तेज़ी से परिवर्तन के कारण देश के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि उत्पादकता और जल संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा। 

आगे की राह:

  • चरम मौसमी घटनाओं; विशेष रूप से चक्रवात और बाढ़ के कारण होने वाली आर्थिक क्षति को कम करने के लिये प्रभावी शमन और जलवायु-सुनम्य क्रियाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। 
  • चरम मौसमी आपदाओं के कारण विकसित और विकासशील सभी देश प्रभावित होते हैं, परंतु विकसित तकनीकी विकास के कारण इनके प्रभावों को कम करने में सक्षम होते हैं। अत:  विकासशील देशों को मौसम पूर्वानुमान तकनीकें उपलब्ध कराई जानी चाहिये। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ