डेली न्यूज़ (23 Nov, 2020)



निमोनिया एवं डायरिया प्रगति रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

निमोनिया तथा डायरिया प्रोग्रेस रिपोर्ट 

मेन्स के लिये:

निमोनिया तथा डायरिया उन्मूलन में निहित समस्याएँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ‘इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर’ (International Vaccine Access Centre) द्वारा जारी ‘निमोनिया एवं  डायरिया प्रगति रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत ने निमोनिया और डायरिया के कारण बच्चों की मृत्यु के मामलों की रोकथाम हेतु अपने टीकाकरण कवरेज में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।

प्रमुख बिंदु: 

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में COVID-19 के कारण विश्व भर में स्वास्थ्य क्षेत्र पर अतिरिक्त दबाव के बावजूद भारत इस रिपोर्ट में शामिल 5 में से 3 वैक्सीन के वैश्विक लक्ष्य को 90% तक पूरा करने में सफल रहा है।
  • गौरतलब है कि इस रिपोर्ट में डिप्थीरिया, काली खांसी और टिटनेस (डीपीटी) वैक्सीन, खसरा-नियंत्रण-वैक्सीन की पहली खुराक, हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी, न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (पीसीवी) और रोटावायरस वैक्सीन को शामिल किया जाता है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में रोटावायरस वैक्सीन के कवरेज में 18% की वृद्धि और  न्यूमोकोकल निमोनिया के खिलाफ वैक्सीन कवरेज में 9% की वृद्धि देखने को मिली है।
  • गौरतलब है कि प्रत्येक वर्ष 12 नवंबर को ‘विश्व निमोनिया दिवस’ मनाया जाता है।

निमोनिया एवं डायरिया प्रगति रिपोर्ट:

  • निमोनिया तथा डायरिया प्रगति रिपोर्ट को ‘जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ’ (Johns Hopkins Bloomberg School of Public Health) की संस्था इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर (International Vaccine Access Center- IVAC) द्वारा वार्षिक रूप से प्रकाशित किया जाता है। 

सरकार के प्रयास:

  • 100 डे एजेंडा:  वर्ष 2019 में भारत ने रोटावायरस वैक्सीन से संबंधित राष्ट्रीय स्तर पर चलाए गये अभियान को पूरा किया। वैक्सीन की पहुँच में विस्तार के चलते प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले 26 मिलियन बच्चों को रोटावायरस डायरिया के खतरे से बचाने में सहायता प्राप्त होगी।
    • गौरतलब है कि अगस्त 2019 में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने सरकार के 100 दिन के एजेंडे के तहत देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बच्चों के लिये रोटावायरस वैक्सीन उपलब्ध कराने की बात कही थी।
  • इस रिपोर्ट में 10 संकेतकों पर निमोनिया और डायरिया से होने वाली मौतों को रोकने के लिये सरकारों के प्रयास का मूल्यांकन किया गया, इन संकेतकों में स्तनपान, टीकाकरण, एंटीबायोटिक, ओआरएस (Oral Rehydration Solution-ORS), जिंक सप्लीमेंट आदि शामिल हैं।
  • इस रिपोर्ट में शामिल 15 देशों में सिर्फ 4 देश (भारत सहित) ही ऐसे थे, जो अनन्य स्तनपान (58%) के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे।   
  • हालाँकि इस रिपोर्ट में शामिल लगभग सभी देश निमोनिया और डायरिया का उपचार सुनिश्चित कराने की दिशा में पिछड़ते दिखाई दिये, जबकि भारत उपचार के सभी चार लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहा। 

कारण: 

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 के दौरान भारत में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली थी, परंतु COVID-19 महामारी के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र पर बढ़ रहे दबाव के कारण टीकाकरण और चिकित्सीय ऑक्सीजन की पहुँच प्रभावित हुई है।    

चुनौतियाँ: 

  • भारत को किसी भी अन्य देश की तुलना में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में निमोनिया और डायरिया से होने वाली मौतों का अधिक भार सहना पड़ता है।
  • एक अनुमान के अनुसार, भारत में  निमोनिया और डायरिया के कारण प्रतिवर्ष पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 2,33,240 बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
  •  रिपोर्ट के अनुसार, भारत में डायरिया के उपचार की कवरेज सबसे कम रही, इसके साथ ही मात्र 51% बच्चों को ओआरएस और 20% बच्चों को ही जिंक सप्लीमेंट उपलब्ध हो पाता है। 
    • रिपोर्ट के अनुसार, जिंक और ओआरएस को एक साथ देने पर यह डायरिया से होने वाली मौतों को कम करने में काफी प्रभावी सिद्ध होता है। 
  • IVAC के एक वरिष्ठ सलाहकार के अनुसार, निमोनिया और डायरिया के कारण प्रतिवर्ष होने वाली मौतों को टीके और सरल सिद्ध उपचारों के माध्यम से रोका जा सकता है जो हमारे पास पहले से ही उपलब्ध हैं, ऐसे में COVID-19 महामारी के उपचार की खोज के बीच इन बीमारियों से निपटने के प्रयासों से ध्यान नहीं हटाया जाना चाहिये। 

COVID-19 वैक्सीन और भारत:  

  • हाल में बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कंपनी फाईज़र के साथ अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने COVID-19 के लिये अपनी-अपनी वैक्सीन के 90% से अधिक प्रभावी होने की घोषणा की है, जबकि बहुत से अन्य वैक्सीन के परीक्षण अपने अंतिम चरण में हैं। 
  • इन परिणामों के बाद विश्व में इस महामारी से लड़ने की एक नई उम्मीद जगी है, हालाँकि भारत में सीरम इंस्टीट्यूट या भारत बायोटेक द्वारा विकसित वैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण अभी व्यापक रूप से नहीं संचालित हुए हैं।
  • सरकार द्वारा फाईज़र वैक्सीन की कुछ खुराक प्राप्त करने के संदर्भ में उसके प्रतिनिधियों से भी बातचीत की जा रही है।  
  • हालाँकि इस वैक्सीन को लगभग -70°C तापमान पर रखा जाना अनिवार्य बताया गया है, ऐसे में इस क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे का अभाव भारत के लिये एक चुनौती बन सकता है। 
  • इस वैक्सीन की सफलता से वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना वायरस के स्पाइक्ड प्रोटीन को लक्षित करने की रणनीति सही सिद्ध हुई है। गौरतलब है कि अधिकांश वैक्सीन निर्माताओं द्वारा इसी पद्धति का उपयोग किया जा रहा है ऐसे में भविष्य में वैक्सीन के विकास में कई अन्य सकारात्मक परिणामों की संभावनाएँ मज़बूत हुई हैं। 
  • साथ ही यह भी संभव है कि इस प्रकार की तकनीक भविष्य में अन्य बीमारियों के लिये वैक्सीन निर्माण में सहायक हो सकती है।

आगे की राह:  

  • भारत को ऐसी तकनीकों पर पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्थानीय स्तर पर इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता विकसित करने का प्रयास करना चाहिये।    
  • साथ ही भारत को अपनी कोल्ड चेन अवसंरचना को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान देना होगा, जो वर्तमान में साधारण वैक्सीन के लिये ही उपयुक्त है। 

स्रोत: द हिंदू


भारत के खिलाफ चीन की ‘जल बम’ की रणनीति

प्रिलिम्स के लिये:

 ‘जल बम’ की अवधारणा

मेन्स के लिये:

भारत के खिलाफ चीन की ‘जल बम’ की रणनीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-चीन संबंधों में वर्ष 1962 के युद्ध के बाद से सबसे अधिक टकराव देखने को मिला है, जिसने दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में आधारभूत अवसंरचना के निर्माण के रणनीतिक महत्त्व को फिर से उजागर किया है। यारलुंग (ब्रह्मपुत्र) नदी पर चीन द्वारा निर्मित बड़े बाँधों ने भारतीय अधिकारियों और स्थानीय लोगों की चिंता को और अधिक बढ़ा दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • चीन द्वारा जल-ऊर्जा के दोहन के लिये चलाए जा रहे इन त्वरित कार्यक्रमों ने न केवल हिमालयन क्षेत्र में गंभीर पारिस्थितिक समस्याओं को बढ़ा दिया है, अपितु स्थानीय लोगों के समक्ष आजीविका संबंधी अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न कर दी हैं।
  • चीन द्वारा 'जल बम' की रणनीति न केवल भारत के खिलाफ अपनाई जा रही है अपितु मेकांग नदी पर अनेक जलविद्युत योजनाओं का निर्माण करके पूर्व में थाईलैंड, लाओस, वियतनाम और कंबोडिया के खिलाफ भी इस रणनीति को अपनाया गया था। मेकांग नदी को इन देशों की जीवन रेखा माना जाता है।

Western-china

  ‘जल बम’ की अवधारणा:

  • 'जल बम' (Water Bomb) की अवधारण के तहत किसी देश द्वारा अपने पड़ोसी देश पर हमला करने या प्रहार करने के उद्देश्य से अत्यधिक मात्रा में जल को बाँधों में संग्रहीत किया जाता है तथा युद्द के समय इसे छोड़ दिया या रोक दिया जाता है ताकि नदी के बहाव द्वारा निचले क्षेत्रों में व्यापक आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय नुकसान किया जा सके।
  • तिब्बत से  उद्गमित आठ प्रमुख नदियों पर चीन ने पिछले दो दशकों में 20 से अधिक बाँधों का निर्माण किया है और उनमें से कुछ को वास्तव में 'मेगा बाँध' कहा जा सकता है।
  • इसके अलावा चीन की तेरहवीं पंचवर्षीय योजना के अनुसार, तिब्बत से उद्गमित नदियों पर चीन और अधिक पनविद्युत परियोजनाओं के निर्माण की योजना बना रहा है। चीनी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, (अधिकारिक आँकड़े उपलब्ध नहीं) चीन इन नदियों पर विभिन्न आकार के 40 और बाँधों का निर्माण करेगा।

भारत के लिये चिंतनीय क्यों?

कृषि उत्पादकता पर प्रभाव: 

  • बड़े बाँधों के निर्माण से संपूर्ण नदी बेसिन क्षेत्र प्रभावित होगा, जो ब्रह्मपुत्र बेसिन के व्यापक अवनयन का कारण बन सकता है। नदी द्वारा प्रवाहित अवसादों को बाँधों द्वारा अवरुद्ध कर दिया जाएगा, जिससे मृदा की गुणवत्ता और कृषि उत्पादकता में गिरावट आएगी।

पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता: 

  • दूसरा, ब्रह्मपुत्र बेसिन दुनिया के सबसे अधिक पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। यह विश्व के 34 जैविक हॉटस्पॉटों में से एक है। इस क्षेत्र में फ्लोरा और फौना की अनेक प्रजातियों सहित अनेक स्थानिक प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं। उदाहरण के लिये काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 35 स्तनधारी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 15 को IUCN की रेड सूची में संकटापन्न प्रजातियों के रूप सूचीबद्ध किया गया है।'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' गंगा नदी डॉल्फिन भी ब्रह्मपुत्र नदी में पाई जाती है।

बाँधों की भूकंप के प्रति सुभेद्यता:

  • भूकंप-विज्ञान के अनुसार, हिमालय को भूकंपीय गतिविधियों के लिये सबसे अधिक संवेदनशील माना जाता है। भूकंप-जनित भूस्खलन क्षेत्र के लिये प्रमुख खतरा है। उदाहरण के लिये वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप के कारण कई बाँध और अन्य अवसंरचनाएँ नष्ट हो गई थीं।

डाउन-स्ट्रीम में रहने वाले लोगों की आजीविका:  

  • चीन द्वारा निर्मित व्यापक अवसंरचना परियोजनाओं (विशेषकर बाँधों से) का आकार बहुत बड़ा है। यह नदी के डाउन-स्ट्रीम में रहने वाली आबादी के लिये एक प्रमुख खतरा है। भारत क्षेत्र के ब्रह्मपुत्र के बेसिन में लगभग दस लाख के करीब लोग रहते हैं। हिमालय पर चलाई जा रही इन मेगा बाँध परियोजनाओं के कारण सैकड़ों लोगों के अस्तित्त्व को खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • अगर चीन बिना किसी चेतावनी के इन नदियों का जल छोड़ता है, तो इससे क्षेत्र में विनाशकारी बाढ़ आएगी। संपूर्ण उत्तर भारत (सतलज के भाखड़ा-नांगल बाँध पर निर्भर), पूर्वी भारत (कोसी नदी प्रणाली पर बिहार और पश्चिम बंगाल की निर्भरता) और संपूर्ण उत्तर-पूर्व (ब्रह्मपुत्र नदी) अब गंभीर खतरे में है।

आगे की राह:

  • जल संकट के समाधान के लिये भारत-चीन को वैकल्पिक उपाय अपनाने को आवश्यकता है। दोनों पक्षों को नदी पर नवीन निर्माण रोकने की दिशा में तत्काल कदम उठाने चाहिये।  विकेंद्रीकृत नेटवर्क पर आधारित अपेक्षाकृत लघु चेकडैम, वर्षा-जल संग्राहक झीलों के निर्माण और परंपरागत जल संग्रहण पद्धतियों को अपनाए जाने की आवश्यकता है।
  • भारत को हिमालय से निकलने वाली नदियों में अपने हिस्से के जलग्रहण क्षेत्र में  इष्टतम जल के उपयोग की आवश्यकता है। इसके लिये भारत को अपनी नदी जोड़ो परियोजना पर तीव्र गति से कार्य करना होगा। भारत इन नदियों से संबंधित अपने स्वयं के हिस्से का भी पूरा उपयोग नहीं कर रहा है (उदाहरण के लिये पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty)। 
  • नदी के डाउन-स्ट्रीम क्षेत्रों में भारत को अपनी आपदा प्रबंधन प्रणाली को भी मज़बूत करना चाहिये, ताकि भविष्य में किसी संभावित खतरे पर शीघ्र तथा ठोस प्रतिक्रिया दी जा सके।  

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग: महत्त्व और चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग

मेन्स के लिये

 अल्पसंख्यकों के उत्थान में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की भूमिका, आयोग की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

इसी वर्ष अक्तूबर माह में मनजीत सिंह राय के सेवानिवृत्त होने के बाद सात सदस्यीय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) मात्र एक सदस्य के साथ कार्य कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) में पाँच सदस्यों के पद मई माह से ही रिक्त थे, जबकि अक्तूबर माह में मनजीत सिंह राय के सेवानिवृत्त होने के बाद कुल छह पद रिक्त हो गए थे।
  • वर्तमान में आतिफ रशीद, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) के उपाध्यक्ष और आयोग के एकमात्र सदस्य के रूप में कार्य कर रहे हैं।

नई नहीं है समस्या

  • यह पहली बार नहीं है जब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) कम सदस्यों के साथ कार्य कर रहा है, वर्ष 2017 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) के सभी सात पद दो महीनों के लिये रिक्त थे और आयोग बिना सदस्यों के कार्य कर रहा था।
  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग और अन्य अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) में नियुक्तियाँ न करने को लेकर अकसर सरकार की आलोचना की जाती रहती है।
  • वर्ष 2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) में नियुक्तियों को मंज़ूरी देने में केंद्र सरकार की ‘निष्क्रियता’ के विरुद्ध दायर याचिका पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया मांगी थी।

प्रभाव

  • एक महत्त्वपूर्ण निकाय के रूप में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) भारत के अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्त्व प्रदान करता है, जिससे उन्हें लोकतंत्र में अपने आप को प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है और जब आयोग में नियुक्तियाँ नहीं की जाती हैं तो यह प्रतीत होता है कि लोकतंत्र और नीति निर्माण में अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्त्व का मौका नहीं दिया जा रहा है।
  • आयोग ने अतीत में कई महत्त्वपूर्ण सांप्रदायिक दंगों और संघर्षों की जाँच की है, उदाहरण के लिये वर्ष 2011 के भरतपुर सांप्रदायिक दंगों की जाँच आयोग ने की थी और वर्ष 2012 में बोडो-मुस्लिम संघर्ष की जाँच के लिये भी आयोग ने एक दल असम भेजा था। 
    • इसलिये यह आयोग सांप्रदायिक संघर्षों की जाँच करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, किंतु आयोग की ‘निष्क्रियता’ के कारण इस प्रकार की घटनाओं की जाँच पर प्रभाव पड़ता है, जिससे लोगों के बीच अविश्वास की भावना उत्पन्न होती है।
    • वर्ष 2004 में सुमित्रा महाजन की अध्यक्षता में सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण पर स्थायी समिति ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) को मज़बूत करने के लिये कुछ विशिष्ट सिफारिशें की थीं, जिसमें आयोग को जाँच के लिये अधिक शक्तियाँ प्रदान करना भी शामिल था, हालाँकि सरकार ने समिति की इन सिफारिशों को लागू नहीं किया था।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM)

  • अल्पसंख्यक आयोग एक सांविधिक निकाय है, जिसकी स्थापना राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत की गई थी।
  • यह निकाय भारत के अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा हेतु अपील के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है। 
  • संरचना: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के मुताबिक, आयोग में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष समेत कुल सात सदस्य का होना अनिवार्य है, जिसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदायों के सदस्य शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का कार्य: 

    • संघ और राज्यों के तहत अल्पसंख्यकों के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना;

    • संविधान और संघ तथा राज्य के कानूनों में अल्पसंख्यकों को प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों की निगरानी करना;
    • अल्पसंख्यक समुदाय के हितों की सुरक्षा के लिये नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु आवश्यक सिफारिशें करना;
    • अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों और रक्षोपायों से वंचित करने से संबंधित विनिर्दिष्ट शिकायतों की जाँच पड़ताल करना;
    • अल्पसंख्यकों के विरुद्ध किसी भी प्रकार के विभेद के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का अध्ययन करना/करवाना और इन समस्याओं को दूर करने के लिये सिफारिश करना;
    • अल्पसंख्यकों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास से संबंधित विषयों का अध्ययन अनुसंधान और विश्लेषण करना;
    • केंद्र अथवा राज्य सरकारों को किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित उपायों को अपनाने का सुझाव देना; 
    • केंद्र और राज्य सरकारों को अल्पसंख्यकों से संबंधित किसी विषय पर विशिष्टतया कठिनाइयों पर नियतकालिक अथवा विशिष्ट रिपोर्ट प्रदान करना;
    • कोई अन्य विषय जो केंद्र सरकार द्वारा उसे निर्दिष्ट किया जाए।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की चुनौतियाँ

  • प्रशासनिक चुनौतियाँ: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 13 के मुताबिक, आयोग को प्रत्येक वर्ष एक वार्षिक रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी, ज्ञात हो कि यह रिपोर्ट वर्ष 2010 के बाद से अब तक प्रस्तुत नहीं की गई है।
  • राजनीतिक नियुक्तियाँ: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) में नियुक्त होने वाले सदस्यों को लेकर भी कई बार सरकार की आलोचना की जाती रही है, प्रायः पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, सिविल सेवकों और शिक्षाविदों आदि को सदस्य के तौर पर नियुक्त किया जाता था, किंतु अब अधिकतर नियुक्तियाँ किसी एक दल विशिष्ट से जुड़े सामाजिक कार्यकर्त्ताओं की होती हैं।
  • मानव संसाधन की कमी: अल्पसंख्यक आयोग वर्षों से मानव संसाधन के अभाव में कार्य कर रहा है, जिसके कारण आयोग का कार्य प्रभावित होता है और आयोग के समक्ष लंबित मामलों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
  • प्रौद्योगिकी का अल्प उपयोग: अल्पसंख्यक आयोग में आज भी मामलों की जाँच करने के लिये आधुनिक प्रौद्योगिकी के स्थान पर पारंपरिक तरीकों का प्रयोग किया जाता है, जिसके कारण न केवल समय और पैसों की बर्बादी होती है, बल्कि इससे मामलों के निपटान में भी काफी समय लगता है।

संवैधानिक दर्जे की मांग 

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये बनाए गए राष्ट्रीय आयोग के विपरीत राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक संवैधानिक निकाय नहीं है, बल्कि इसे वर्ष 1992 में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था।
    • प्रायः किसी संवैधानिक निकाय में निहित शक्ति और अधिकार किसी सांविधिक निकाय में निहित शक्तियों और अधिकारों से बहुत अलग होते हैं।
    • संवैधानिक निकायों के पास अधिक स्वायत्तता है और वे कई मामलों में स्वतः संज्ञान लेते हुए उसकी जाँच कर सकते हैं।
    • हालाँकि सभी सांविधिक निकाय भी एक जैसे नहीं होते हैं, उदाहरण के लिये राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के पास राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NMC) से अधिक शक्तियाँ हैं।
  • यही कारण है कि समय-समय पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NMC) को और अधिक शक्तियाँ प्रदान करने तथा इसे संवैधानिक दर्जा देने की बात की जाती रही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड के विरुद्ध जाँच

प्रिलिम्स के लिये

मसाला बॉण्ड, केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड, प्रवर्तन निदेशालय, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम

मेन्स के लिये 

मसाला बॉण्ड और इससे संबंधित महत्त्वपूर्ण पहलू

चर्चा में क्यों?

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) के विरुद्ध विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के प्रावधानों का उल्लंघन करने के मामले में प्रारंभिक जाँच शुरू कर दी है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि प्रवर्तन निदेशालय की यह जाँच भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) की उस रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड ने केंद्र सरकार की अनुमति के बिना मसाला बॉण्ड जारी करके 2,150 करोड़ रुपए जुटाए थे।

पृष्ठभूमि 

  • वर्ष 2019 में केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) ने मसाला बॉण्ड जारी करके 2150 करोड़ रुपए जुटाए थे, जिसके साथ ही KIIFB अंतर्राष्ट्रीय ऋण बाज़ार में मसाला बॉण्ड के माध्यम से धन एकत्रित करने वाली पहली सरकारी एजेंसी बन गई थी।
  • हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 293 (1) के मुताबिक, किसी राज्य की कार्यकारी शक्ति, भारत के क्षेत्र के भीतर उधार लेने तक ही सीमित है, वहीं अनुच्छेद 293 (3) में कहा गया है कि राज्य, केंद्र सरकार की सहमति के बिना कोई भी ऋण नहीं ले सकते हैं।
  • इसी तथ्य को रेखांकित करते हुए नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) ने मसाला बॉण्ड का प्रयोग करके धन जुटाकर संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

क्या होते हैं मसाला बॉण्ड?

  • मसाला बॉण्ड, विदेशी निवेशकों से धन एकत्रित करने के लिये देश के बाहर किसी भारतीय संस्था द्वारा जारी किये जाने वाले बॉण्ड होते हैं।
  • इस प्रकार के बॉण्ड की सबसे मुख्य बात यह है कि इन्हें विदेशी मुद्रा में नहीं बल्कि भारतीय मुद्रा में जारी किया जाता है।
  • पहला मसाला बॉण्ड, वर्ष 2014 में अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) द्वारा भारत की एक आधारभूत ढाँचे से संबंधित परियोजना के लिये जारी किया गया था।
    • इस बॉण्ड का नामकरण भी अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम द्वारा ही किया गया था।

केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB)

  • ‘केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड’ का प्रबंधन करने हेतु KIIFB वर्ष 1999 में केरल सरकार के वित्त विभाग के तहत अस्तित्त्व में आया था।
  • इस फंड का मुख्य उद्देश्य केरल राज्य में महत्त्वपूर्ण और बड़े बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं हेतु निवेश प्रदान करना था।
  • वर्ष 2016 में केरल सरकार ने KIIFB की भूमिका को एक निगम इकाई (Corporate Entity) के रूप में परिवर्तित कर दिया, जिसका उद्देश्य बजट के दायरे से बाहर की विकासात्मक परियोजनाओं हेतु संसाधन जुटाना था।

प्रभाव

  • प्रवर्तन निदेशालय की जाँच के कारण केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) को फंड की कमी का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि इस जाँच के कारण निवेशक बोर्ड के मसाला बॉण्ड नहीं खरीदेंगे।
    • ध्यातव्य है कि यह जाँच ऐसे समय में शुरू हुई है जब अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) ने KIIFB को ऋण देने की इच्छा व्यक्त की थी, इस जाँच के कारण KIIFB को मिलने वाले इस ऋण पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

केरल सरकार का पक्ष

  • केरल सरकार का मुख्य तर्क है कि राज्य सरकार द्वारा दी गई गारंटी को राज्य सरकार द्वारा लिये गए ऋण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
  • नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के इस मत का, कि सरकार द्वारा जिस ऋण की गारंटी दी जाती है वह सरकार का ही ऋण होता है, कई अन्य महत्त्वपूर्ण निकायों जैसे भारतीय खाद्य निगम (FCI) और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) आदि पर काफी दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। 
    • ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार भारतीय खाद्य निगम (FCI) को अपनी गारंटी पर बजट से अलग 2 लाख करोड़ रुपए तक उधार लेने की अनुमति देती है।
  • केरल सरकार के मुताबिक, केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) को कानूनी रूप से राज्य सरकार से अलग एक निगम इकाई के रूप में देखा जाना चाहिये, जो कि केवल सरकार से जुड़ी हुई है, न कि सरकार का हिस्सा है। KIIFB एक निगम इकाई है और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के मुताबिक, निगम इकाइयाँ विदेश बाज़ार से धन जुटाने के लिये मसाला बॉण्ड जारी कर सकती हैं।

स्रोत: द हिंदू


आपराधिक वित्त और क्रिप्टोकरेंसी पर वैश्विक सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

क्रिप्टोकरेंसी, आपराधिक वित्त और क्रिप्टोकरेंसी पर वैश्विक सम्मेलन

मेन्स के लिये:

 क्रिप्टोकरेंसी और साइबर अपराध 

चर्चा में क्यों?

‘आपराधिक वित्त और क्रिप्टोकरेंसी पर वैश्विक सम्मेलन' आभासी रूप से  18-19 नवंबर को   आयोजित किया गया जिसमें 132 देशों के 2,000 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रमुख बिंदु:

  • सम्मेलन क्रिप्टोकरेंसी और मनी लॉन्ड्रिंग पर यूरोपोल (EUROPOL), इंटरपोल (INTERPOL) और ‘बेसल इंस्टीट्यूट ऑन गवर्नेंस’ (Basel Institute on Governance) द्वारा स्थापित वर्किंग ग्रुप की एक पहल है
  • चौथे वैश्विक सम्मेलन का उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग में क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर वैश्विक समुदाय की जागरूकता को बढ़ाना है।
  • वर्ष 2016 में वैश्विक सम्मेलन की शुरुआत करने का उद्देश्य वर्तमान समय में ‘आभासी परिसंपत्तियों ‘(Virtual Assets) की बढ़ती लोकप्रियता और उनसे जुड़ी आपराधिक गतिविधियों के संबंध में प्रतिक्रिया व्यक्त करने हेतु एक साझा मंच प्रदान करना था।

क्रिप्टोकरेंसी और अपराध:

  • बिटकॉइन वर्ष 2009 में आई प्रथम क्रिप्टोकरेंसी थी। तब से अब तक कई अन्य मुद्राएँ बाज़ार में प्रवेश कर चुकी हैं।
  • वर्तमान समय में क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग साइबर अपराध, ब्लैक मनी और रैनसमवेयर तथा सेक्सटॉर्शन (Sextortion),  मनी लॉन्ड्रिंग, एवं ‘ड्रग से प्राप्त आय’ के  हस्तांतरण आदि में किया जा रहा है।

सम्मेलन का महत्त्व:

कानून प्रवर्तन एजेंसियों की समझ बढ़ाना:

  • हाल ही में क्रिप्टोकरेंसी का आपराधिक गतिविधियों तथा मनी लॉन्ड्रिंग  में उपयोग बढ़ा है। इससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अन्य सार्वजनिक इकाइयों के लिये इस अपराध क्षेत्र में अपने ज्ञान और विशेषज्ञता के स्तर को बढ़ाना ज़रूरी हो गया है। अत:  सम्मेलन इस दिशा में सामरिक जानकारी और सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान  बढ़ाने में मदद करेगा।
  • निजी क्षेत्र, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अपनी विशेषज्ञता और डेटा उपलब्ध कराकर  आपराधिक वित्त के खिलाफ सरकार के प्रयासों में मदद कर सकते हैं।

आभासी संपत्ति सेवा प्रदाताओं का विनियमन:

  • सम्मेलन आभासी संपत्तियों की जाँच करने और धन शोधन को रोकने के लिये आभासी संपत्ति सेवा प्रदाताओं (Virtual Asset Service Providers) को विनियमित करने के तरीकों पर क्षमताओं का विस्तार करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

विशेषज्ञों का नेटवर्क तैयार करना:

  • यह आपराधिक गतिविधियों में क्रिप्टोकरेंसी के  उपयोग की जाँच तथा इस दिशा में वैश्विक समझ को विकसित करने का कार्य करता है। 
  • इसके अलावा विशेष आर्थिक सहायता से इस क्षेत्र में कार्य करने वाले विशेषज्ञों का एक नेटवर्क तैयार करना है, जो सामूहिक रूप से सर्वोत्तम प्रथाओं को स्थापित कर सकते हैं। 

निष्कर्ष:

  • आभासी परिसंपत्तियों के आपराधिक गतिविधियों में दुरुपयोग से निपटने लिये निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के  बहु-एजेंसी और बहु-विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ‘आपराधिक वित्त और क्रिप्टोकरेंसी पर वैश्विक सम्मेलन' इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 

यूरोपोल (EUROPOL):

इंटरपोल (INTERPOL):

  • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (International Criminal Police Organization- INTERPOL) एक अंतर-सरकारी संगठन है जो 194 सदस्य देशों के पुलिस बलों के बीच समन्वय स्थापित में मदद करता है।

बेसल इंस्टीट्यूट ऑन गवर्नेंस (Basel Institute on Governance):

  • यह एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी सक्षमता केंद्र है जो शासन को मज़बूत करने और भ्रष्टाचार और अन्य वित्तीय अपराधों से निपटने के लिये दुनिया भर में कार्य कर रहा है।

स्रोत: द हिंदू


भारत टीबी रिपोर्ट, 2020

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन,तपेदिक, डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स, कोविड-19

मेन्स के लिये:

वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट और स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ (Doctors Without Borders) नामक एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) के अनुसार, COVID-19 महामारी ने तपेदिक (Tuberculosis) से निपटने के प्रति अपनाई जाने वाली वैश्विक रणनीति को प्रभावित किया है।  

प्रमुख बिंदु:

रिपोर्ट के बारे में:

  • रिपोर्ट में भारत सहित 37 उच्च टीबी-बर्डन वाले देशों का डेटा प्रस्तुत किया गया है (वैश्विक अनुमानित टीबी के मामलों के 77% का प्रतिनिधित्व करते हुए)।
  • रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि राष्ट्रीय नीतियाँ 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (World Health Organisation- WHO) के दिशा-निर्देशों और सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के साथ किस हद तक संरेखित हैं।
  • यह इस रिपोर्ट का चौथा संस्करण है, जो देशों की नीतियों और राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रमों के 4 प्रमुख क्षेत्रों से संबंधित प्रथाओं पर केंद्रित हैं:
    • निदान (Diagnosis),
    • उपचार (Treatment) (देखभाल के मॉडल सहित),
    • रोकथाम (Prevention),
    • दवाओं की खरीद नीतियाँ।

रिपोर्ट संबंधी प्रमुख निष्कर्ष:

  • जिन देशों में रिपोर्ट के लिये सर्वेक्षण किया गया है उन देशों में WHO की नीतियों को अपनाने और कार्यान्वयन में अनेक बाधाएँ पाई गई।
  • चिकित्सा क्षेत्र में हाल ही में किये महत्त्वपूर्ण चिकित्सा नवाचारों तक बहुत कम लोगों की पहुँच सुनिश्चित हो पा रही है।
  • टीबी रोग से ग्रसित तीन में से एक व्यक्ति को अभी भी अधिसूचित नहीं किया गया है और निदान की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है।
  • सर्वेक्षण में शामिल लगभग तीन में से दो देशों द्वारा अपनी नीतियों में एचआईवी (human immunodeficiency virus) से ग्रसित लोगों में टीबी की जाँच के लिये मूत्र आधारित TB lipoarabinomannan (TB LAM) परीक्षण को शामिल नहीं किया गया है।

भारत के संबंध में:

  • विशेषज्ञों के अनुसार, भारत रोग प्रतिरोधक-TB (Disease Resistant-TB) के लिये नई दवाओं के उपयोग के संबंध में अभी भी बहुत ही रूढ़िवादी दृष्टिकोण (Conservative Approach) का पालन कर रहा है।
  • गैर-सरकारी संगठन ने टीबी के परीक्षण, उपचार और रोकथाम में तेज़ी लाने तथा नये चिकित्सा उपकरणों तक सभी की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये सरकारों से आह्वान किया है।
  • इसके अलावा डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 महामारी के दौरान TB के निदान कराने वाले लोगों की संख्या में तेज़ी से गिरावट देखी गई है।
  • COVID-19 महामारी के दौरान जहाँ DR-TB ड्रग्स बेडाक्विलिन (Bedaquiline) और डेलमनीड (Delamanid) के स्केलिंग नहीं करने पर भारत की आलोचना की गई है।
    • प्रीटोमोनीड (Pretomanid) DR-TB के उपचार के लिये विकसित तीसरी नई दवा है। 
  • मार्च 2020 तक, भारत के MDR-TB के 10% से भी कम मरीजों को बेडाक्विलिन की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाई। यह एक चिंताजनक विषय है, क्योंकि दुनिया के कुल DR-TB रोगियों में से एक चौथाई भारत में है।
  • भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी रोगी है। वर्ष 2018 में कुल 2.15 मिलियन टीबी मामले रिपोर्ट किये गये,  जो वर्ष 2017 की तुलना में 16% अधिक है।

टीबी से लड़ने के लिये भारत की पहल:

राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम:

  • टीबी पर नियंत्रण के लिये भारत सरकार ने वर्ष 1962 से राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम लागू किया। इसके अंतर्गत ज़िला स्तर पर एक सुपरविज़न एवं मॉनिटरिंग इकाई के रूप में ज़िला क्षय निवारण केंद्र की स्थापना की गईं।

वर्ष 2025 तक टीबी को खत्म करना: 

  • भारत वर्ष 2025 तक देश से क्षय रोग (टीबी) को खत्म करने के लक्ष्य के लिये प्रतिबद्ध है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित समय सीमा (वर्ष 2030) से आगे है। 

निक्षय इकोसिस्टम (The Nikshay Ecosystem): 

  • निक्षय इकोसिस्टम जो एक राष्ट्रीय टीबी सूचना प्रणाली है और रोगियों की जानकारी का प्रबंधन और कार्यक्रम की गतिविधियों की निगरानी के लिये वन स्टॉप सॉल्यूशन है।

निक्षय पोषण योजना (Nikshay Poshan Yojana):

  • टीबी रोगियों को पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने के लिये अप्रैल 2018 में निक्षय पोषण योजना, एक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत टीबी रोगियों को उपचार की पूरी अवधि के लिये प्रतिमाह 500 रुपए मिलते हैं।

टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान:

  • वर्ष 2019 में ‘टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान’ (TB Harega Desh Jeetega Campaign) की शुरुआत की गई है जो देश में टीबी के उन्मूलन से संबंधित कार्यक्रम है। 

सक्षम परियोजना (The Saksham Project):

  • टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (Tata Institute of Social Sciences) द्वारा DR-TB रोगियों को मनो-सामाजिक परामर्श प्रदान करने के लिये सक्षम परियोजना शुरू की गई है।
  • भारत सरकार ने देश भर में एक निजी क्षेत्र के कार्यक्रम JEET (Joint Effort for Elimination of TB) को शुरू करने के लिये ग्लोबल फंड के साथ भागीदारी की है।

वैश्विक प्रयास:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ग्लोबल फंड और स्टॉप टीबी पार्टनरशिप के साथ एक संयुक्त पहल "शोध. उपचार. सर्व. #EndTB" (Find. Treat. All. #EndTB") शुरू की है, जिसका उद्देश्य टीबी प्रतिक्रिया को तेज करना और देखभाल तक पहुंच सुनिश्चित करना है, जो डब्ल्यूएचओ के यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की ओर समग्र ड्राइव के अनुरूप है।

WHO वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट भी जारी करता है।

आगे का रास्ता

  • विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा प्राप्त उल्लेखनीय सफलताओं के बावजूद, शीघ्र और सटीक निदान में सुधार के लिये मज़बूत प्रयासों की आवश्यकता होती है, जिसके बाद एक त्वरित उपयुक्त उपचार होता है जो टीबी को समाप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

भारत को वैश्विक प्रयासों में सहयोग करना चाहिये जो टीबी को खत्म करने के लिये किये जा रहे हैं।

टीबी/क्षय:

  • टीबी या क्षय रोग बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) के कारण होता है जो फेफड़ों को सबसे अधिक प्रभावित करता है।
  • टीबी एक संक्रामक रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खांसी, छींकने या थूकने के दौरान  हवा के माध्यम से या फिर संक्रमित सतह को छूने से फैलता है। 
  • इस रोग से पीड़ित व्यक्ति में बलगम और खून के साथ खांसी, सीने में दर्द, कमज़ोरी, वजन कम होना, तथा  बुखार इत्यादि के लक्षण देखे जाते हैं।   

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


एनपीआर और जनगणना, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के रजिस्ट्रार जनरल, NRC, CAA, NPR, जनगणना, COVID-19

मेन्स के लिये:

वर्ष 2021 की जनगणना तथा इससे संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारत के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General of India) कार्यालय के अनुसार, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register) की अनुसूची या प्रश्नावली को अंतिम रूप दिया जा रहा है, लेकिन जनगणना, 2021 के पहले चरण की अपेक्षित तारीख के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है।

  • जनगणना 2021 के पहले चरण और NPR के अपडेट को 25 मार्च 2020 को कोविड-19 महामारी के कारण अगले आदेश तक अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर दिया गया था।
  • 13 से अधिक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने NPR को प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens) और हालिया नागरिकता (संशोधन) अधिनियम [Citizenship (Amendment) Act, 2019] के साथ लिंक करने का विरोध किया है

प्रमुख बिंदु

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर:

  • NPR एक डेटाबेस है जिसमें देश के सभी सामान्य निवासियों की सूची होती है। इसका उद्देश्य देश में रहने वाले लोगों का एक व्यापक पहचान डेटाबेस रखना है।
    • गृह मंत्रालय के अनुसार, ‘देश का सामान्य निवासी’ वह है जो कम-से-कम पिछले छह महीनों से स्थानीय क्षेत्र में रहता है या अगले छह महीनों के लिये किसी विशेष स्थान पर रहने का इरादा रखता है।
  • NPR को पहली बार वर्ष 2010 में एकत्र किया गया था और फिर वर्ष 2015 में अपडेट किया गया था।
  • यह जनगणना के "मकान-सूचीकरण" चरण के दौरान घर-घर की गणना के माध्यम से तैयार किया जाता है, जिसे 10 वर्षों में एक बार आयोजित किया जाता है।
    • आखिरी जनगणना वर्ष 2011 में हुई थी और अगली जनगणना वर्ष 2021 के लिये निर्धारित की गई थी।

NPR बनाम जनगणना:

उद्देश्य:

  • जनगणना के दौरान जनगणनाकर्मियों द्वारा लोगों से उनका नाम, लिंग, जन्मतिथि, उम्र, वैवाहिक स्थिति, धर्म, मातृभाषा, साक्षरता आदि जैसे मूलभूत प्रश्न पूछे जाते हैं।
  • दूसरी ओर NPR बुनियादी जनसांख्यिकीय डेटा और बॉयोमीट्रिक विवरण एकत्र करता है।

कानूनी आधार:

  • जनगणना कानूनी रूप से जनगणना अधिनियम, 1948 द्वारा समर्थित है।
  • NPR नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत बनाए गये नियमों के एक समूह में उल्लिखित एक तंत्र है।

NPR और NRC:

  • NPR नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र निर्गमन) नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत तैयार किया जा रहा है।
    • भारत के प्रत्येक "सामान्य निवासी" के लिये NPR में पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
    • भारत का रजिस्ट्रार जनरल "राष्ट्रीय पंजीकरण प्राधिकरण" के रूप में कार्य करेगा।
    • रजिस्ट्रार जनरल देश के जनगणना आयुक्त भी होते हैं।
  • निवासियों की एक सूची तैयार होने के बाद उस सूची से नागरिकों के सत्यापन के लिये एक राष्ट्रव्यापी NRC को शुरू किया जा सकता है।
  • हाल ही में, असम के लिये NRC तैयार किया गया था

चिंताएं:

  • पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों ने नये NPR में पूछे जाने वाले अतिरिक्त प्रश्नों पर आपत्ति जताई है, जैसे "पिता और माता के जन्म की तारीख और निवास स्थान और मातृभाषा का अंतिम स्थान"।
  • ऐसी आशंकाएँ हैं कि CAA, 2019 जिसके बाद देशव्यापी NRC होगा, प्रस्तावित नागरिकों के रजिस्टर से बाहर किए गये गैर-मुस्लिमों को लाभान्वित करेगा, जबकि बहिष्कृत मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी।
    • CAA, 2019 पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से छह समुदायों को धर्म के आधार पर नागरिकता की अनुमति देता है जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था।
    • यह छह समुदाय हैं: हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई

सरकार का रुख:

  • सरकार ने इस बात से इनकार किया है कि CAA और NRC जुड़े हुए हैं।
  • गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने इस वर्ष की शुरुआत में एक संसदीय पैनल को सूचित किया कि NPR को नए जन्म, मृत्यु और प्रवास के कारण अद्यतन करने की आवश्यकता थी और आधार व्यक्तिगत डेटा है जबकि NPR में परिवार के अनुसार डेटा है।
  • MHA ने पैनल को सूचित किया कि वह NPR में "माता-पिता की जन्म तिथि और जन्म स्थान" जैसे अतिरिक्त प्रश्नों पर विवरण एकत्र करने का प्रस्ताव करता है।

स्रोत: द हिंदू