महामारी में ग्राम पंचायतों का प्रशासन
प्रीलिम्स के लियेपंचायती राज व्यवस्था मेन्स के लियेपंचायतों के प्रशासन पर COVID-19 महामारी का प्रभाव, भारत में पंचायती राज व्यवस्था के विभिन्न पहलू |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को ग्राम पंचायतों के लिये प्रशासक की नियुक्ति करते समय निजी व्यक्तियों की अपेक्षा सरकारी अधिकारियों को प्राथमिकता देने का अंतरिम आदेश दिया है।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि महाराष्ट्र में तकरीबन 14000 ग्राम पंचायतों के चुनाव कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण स्थगित कर दिये गए हैं, ऐसे में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने राज्य भर में ग्राम पंचायतों के प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिये यह अंतरिम आदेश दिया है।
- हालाँकि इस मामले से संबंधित सभी याचिकाओं की सुनवाई बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा सामूहिक तौर पर जल्द ही की जाएगी।
- विवाद
- दरअसल बॉम्बे उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति अभय आहूजा की खंडपीठ राज्य में महाराष्ट्र सरकार द्वारा 25 जून को जारी अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे, जिसके माध्यम से राज्य सरकार ने महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम की धारा 151 (1) (a) में संशोधन किया था।
- राज्य सरकार के इस अध्यादेश के पश्चात् राज्य ग्रामीण विकास विभाग द्वारा 13 जुलाई को एक सरकारी संकल्प जारी किया गया, जिसके द्वारा संबंधित ज़िला परिषदों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEOs) को अपने क्षेत्राधिकार में स्थित सभी ग्राम पंचायतों के लिये किसी भी व्यक्ति को ग्राम प्रशासक की नियुक्ति करने का अधिकार दिया गया।
- साथ ही इस सरकारी प्रस्ताव में ज़िला परिषदों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEOs) को यह भी निर्देश दिया गया कि वे इस कार्य के लिये ज़िला संरक्षक मंत्री (District Guardian Minister) की भी सहायता लें।
- इसके बाद राज्य ग्रामीण विकास विभाग द्वारा 14 जुलाई को एक अन्य सरकारी संकल्प (GR) जारी किया गया, जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया कि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी पूर्व अनुभव के प्रशासक के पद पर नियुक्त किया जा सकता है।
- इन आदेशों के बाद राज्य की कई ग्राम पंचायतों ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें सरकार के इन आदेशों को चुनौती दी गई।
पृष्ठभूमि
- देश भर में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी का प्रसार तेज़ी से होता जा रहा है और महाराष्ट्र इस महामारी से सबसे अधिक प्रभावित राज्य है, राज्य में वायरस से संक्रमित लोगों की कुल संख्या 3 लाख को भी पार कर गई है।
- महामारी की इस गंभीर स्थिति में ग्राम पंचायतों के चुनावों का संचालन करना संभव नहीं है, किंतु यदि चुनाव नहीं किये जाते हैं तो इससे राज्य की ग्राम पंचायतों का संचालन और उनका कामकाज प्रभावित होगा, ऐसे में सरकार ने ग्राम पंचायतों के प्रशासन के लिये प्रशासक की नियुक्ति का निर्णय लिया था।
- गौरतलब है कि महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम, 1959 में भी इस बात का प्रावधान किया गया है कि यदि किसी कारणवश निवर्तमान ग्राम पंचायत स्थगित हो जाती है, तो राज्य सरकार ग्राम पंचायत के प्रशासन के लिये एक प्रशासक की नियुक्ति करेगी और यह प्रशासक तब तक कार्य करेगा जब तक नई पंचायत गठित नहीं हो जाती है।
- याचिकाकर्त्ताओं का पक्ष
- याचिकाकर्त्ताओं के अनुसार, कानून में कहीं भी ग्राम पंचायत के प्रशासक के तौर पर निजी प्रशासकों की नियुक्तियों की अनुमति नहीं दी गई है और इस तरह की सामूहिक नियुक्तियों का स्थानीय शासन पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- गौरतलब है कि राज्य के विभिन्न विभागों में पर्याप्त मात्रा में सरकारी अधिकारी मौज़ूदा हैं, जिन्हें इस कार्य के लिये प्रशासक के रूप में नियुक्त किया जाता है, किंतु इसके बावजूद निजी प्रशासकों की नियुक्ति की अनुमति देना ज़ाहिर तौर पर एक राजनीतिक कदम प्रतीत हो रहा है।
- राज्य में सदैव ही सरकारी अधिकारियों को प्रशासक के तौर पर नियुक्त करने की प्रथा रही है।
- राज्य सरकार का पक्ष
- इस संबंध में बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा जारी अंतरिम आदेश का विरोध करते हुए राज्य के महाधिवक्ता (Advocate-General) ने कहा कि यदि प्रशासकों की नियुक्ति नहीं की जाती है तो इससे ग्राम पंचायतों के प्रशासन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- सरकार का प्रतिनिधित्त्व कर रहे राज्य के महाधिवक्ता ने कहा कि राज्य में काफी बड़ी संख्या में ग्राम पंचायतें मौजूद हैं और राज्य के सरकारी अधिकारी पहले से ही काम के अत्यधिक बोझ के तले दबे हुए हैं, जिसके कारण उन्हें इस पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
- उच्च न्यायालय का निर्णय
- न्यायालय ने कहा कि कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण राज्य की सभी ग्राम पंचायतों में चुनाव कराना संभव नहीं है, ऐसे में यदि ग्राम पंचायत के प्रशासक की नियुक्त नहीं की जाती है, तो इससे ग्राम पंचायतों का कामकाज प्रभावित होगा।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस बात का कोई भी कारण नहीं है कि सरकारी अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को ग्राम पंचायत के प्रशासक के रूप में क्यों न नियुक्त किया जाए।
- न्यायालय ने अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के तहत नियुक्त किया जाने वाला प्रशासक, सरकारी कर्मचारी या स्थानीय प्रशासन का अधिकारी होना चाहिये।
- न्यायालय द्वारा जारी अंतरिम आदेश के अनुसार, यदि इस कार्य के लिये किसी भी ग्राम पंचायत में निजी प्रशासक की नियुक्ति जाती है तो राज्य को इस संबंध में एक लिखित स्पष्टीकरण देना होगा।
- हालाँकि यह उच्च न्यायालय का केवल अंतरिम आदेश (Interim Order) है और इस मामले की सुनवाई बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा जल्द ही की जाएगी।
निष्कर्ष
ग्राम पंचायतों के लिये प्रशासकों को नियुक्त करने का निर्णय राज्य में ग्राम पंचायतों का सुचारु प्रशासन सुनिश्चित करेगा, किंतु राज्य ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जारी आदेश राजनीतिक मंशा से प्रेरित प्रतीत होते हैं, आवश्यक है कि उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन किया जाए और ग्राम पंचायत के प्रशासक की नियुक्ति में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
स्रोत: द हिंदू
G-20 वर्चुअल बैठक
प्रीलिम्स के लिये:G-20 समूह, डेटा स्थानीयकरण मेन्स के लिये:वैश्वीकरण और डेटा सुरक्षा से संबंधित प्रश्न |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘G-20 डिजिटल अर्थव्यवस्था मंत्रियों’ (G-20 Digital Economy Ministers) की एक वर्चुअल बैठक के दौरान केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने सभी डिजिटल प्लेटफार्मों को नागरिकों के डेटा (Data) की गोपनीयता और इसकी रक्षा से जुड़ी चिंताओं के प्रति संवेदनशील तथा उत्तरदायी होने की आवश्यकता पर बल दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- 22 जुलाई, 2020 को सऊदी अरब की अध्यक्षता में G-20 समूह के तहत ‘G-20 डिजिटल अर्थव्यवस्था मंत्रियों’ की एक वर्चुअल बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक के दौरान केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा कि वर्तमान में डेटा के क्षेत्र में नवाचार और डेटा के स्वतंत्र प्रवाह के साथ-साथ हमें डेटा की संप्रभुता को समझना बहुत ही आवश्यक है।
- साथ ही उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि डेटा पर पूर्ण रूप से संबंधित संप्रभु राष्ट्र का अधिकार होना चाहिये।
- हालाँकि सुरक्षा के साथ-साथ डेटा क्षेत्र में नवाचारों को अवसर प्रदान करना भी आवश्यक है अतः दोनों में संतुलन बनाए रखना बहुत ही आवश्यक है।
- इन चिंताओं को देखते हुए विश्व भर में उपस्थिति डिजिटल प्लेटफॉर्म को विश्वसनीय और सुरक्षित होना चाहिये।
- गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने चीन से जुड़े हुए 59 मोबाइल एप पर प्रतिबंध लगा दिया था।
COVID-19 और डिजिटल तकनीकी:
- इस बैठक में केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने COVID-19 के नियंत्रण हेतु भारत के प्रयासों को रेखांकित किया। ‘
- उन्होंने इस महामारी को रोकने के लिये भारत सरकार द्वारा आरोग्य सेतु एप, क्वारंटाइन चेतावनी प्रणाली (COVID-19 Quarantine Alert System- CQAS) और COVID-19 सावधान (बल्क मैसेजिंग प्रणाली) के महत्त्वपूर्ण योगदान से जुड़े अनुभव साझा किये।
डेटा (Data):
- सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में डेटा से आशय जानकारियों और सूचनाओं के ऐसे स्वरूप से है जो कंप्यूटर के पढ़ने या प्रसंस्करण (Processing) के लिये उपयुक्त होता है।
- सामान्य भाषा में देखा जाए तो दैनिक जीवन में लोगों द्वारा मोबाइल या कंप्यूटर द्वारा भेजे जाने वाले संदेश, चित्र, सोशल मीडिया की गतिविधियाँ और ऑनलाइन खरीद की जानकारी से लेकर फिंगर प्रिंट, संवेदनशील सरकारी दस्तावेज़ आदि डेटा का उदाहरण हैं।
डेटा स्थानीयकरण की आवश्यकता क्यों?
- हाल के वर्षों में वैश्विक बाज़ार में डेटा नईं पूंजी बनकर उभरा है, डेटा स्थानीयकरण के कुछ महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं-
- राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता: डेटा के स्थानीयकरण के माध्यम से राष्ट्रीय हितों (आर्थिक और रणनीतिक) में इसका प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही डेटा से जुड़ी किसी गैर-कानूनी गतिविधि की स्थिति में भारतीय कानूनों के तहत इसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
- आर्थिक हित: डेटा स्थानीयकरण से स्थानीय उद्योगों को बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा में मज़बूत बढ़त प्राप्त होगी जिससे देश में आधारभूत संरचना के विकास के साथ स्थानीय स्तर पर रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न किये जा सकेंगे। साथ ही यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) जैसे तकनीकी क्षेत्रों में नवोन्मेष को बढ़ावा देनी में भी सहायक होगा।
- नागरिक स्वतंत्रता का संरक्षण: डेटा के स्थानीयकरण से लोगों की व्यक्तिगत जानकारियों की गोपनीयता और सुरक्षा (Privacy and Security) को सुनिश्चित किया जा सकेगा। साथ ही नागरिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर आसानी से कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी।
G-20 देश और डेटा सुरक्षा:
- 22 जुलाई की बैठक के अंत में एक मंत्रिस्तरीय घोषणापत्र जारी किया गया।
- इसके अनुसार- डेटा, सूचना, विचारों और ज्ञान का सीमा पार प्रवाह से उच्च उत्पादकता, उन्नत नवाचार और बेहतर सतत् विकास को को बढ़ावा मिलता है।
- हालाँकि इस घोषणापत्र में इस बात को स्वीकार किया गया कि डेटा का मुक्त प्रवाह कुछ चुनौतियों (जैसे-गोपनीयता और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा) को बढ़ाता है।
- इस घोषणापत्र में डिजिटल अर्थव्यवस्था को परिभाषित करने और मापने के लिये "डिजिटल अर्थव्यवस्था को मापने हेतु सामान्य रूपरेखा" (Common Framework for Measuring the Digital Economy) नामक G-20 रोडमैप को शामिल किया गया।
- इसमें शामिल संकेतक बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी और नवाचारों, समाज को सशक्त बनाने, नौकरियों और कौशल विकास से संबंधित हैं।
- इस घोषणा-पत्र में ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिये मानव केंद्रित दृष्टिकोण’ (human-centered approach to AI) पर बल दिया गया।
डेटा सुरक्षा से जुड़े मतभेद:
- राष्ट्रीय सीमाओं के बीच डेटा के प्रवाह को प्रतिबंधित करने और डेटा संरक्षण कानूनों के संदर्भ में वैश्विक स्तर पर देशों के बीच बड़ा मतभेद रहा है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2019 में जापान के ओसाका शहर में आयोजित G-20 देशों के 14 वें शिखर सम्मेलन के दौरान G-20 देशों ने ‘ओसाका ट्रैक’ (Osaka track) फ्रेमवर्क के तहत राष्ट्रीय सीमाओं के बीच डेटा के प्रवाह को प्रोत्साहित किया था।
- परंतु भारत ने डेटा-स्थानीयकरण की विचारधारा का समर्थन करते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये थे।
डेटा सुरक्षा हेतु भारत सरकार के प्रयास:
- भारत में शीघ्र ही एक मज़बूत व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा कानून लाने की तैयारी की जा रही है, जो न सिर्फ नागरिकों की डेटा गोपनीयता से जुड़ी चिंताओं को दूर करेगा बल्कि नवाचार और आर्थिक विकास के लिये डेटा की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा।
- भारत में किसी व्यक्ति द्वारा कंप्यूटर में सग्रहित डेटा से छेड़छाड़, किसी की निजता का उल्लंघन, डेटा का अनधिकृत उपयोग, फर्ज़ी डिजिटल हस्ताक्षर का प्रयोग और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मामलों में ‘सूचना तकनीक अधिनियम, 2000’ के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
अन्य प्रयास:
- वर्ष 2018 में न्यायमूर्ति बी. एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति ने डेटा संरक्षण पर एक मसौदा प्रस्तुत किया था।
- इस मसौदे के तहत व्यक्तिगत और संवेदनशील डेटा की सुरक्षा के संदर्भ में कड़े नियमों का सुझाव दिया गया था।
आगे की राह:
- इस बैठक के दौरान G-20 देशों के सदस्यों ने डेटा के मुक्त प्रवाह से जुड़ी चुनौतियों को उपयुक्त कानूनों के माध्यम से दूर करने की आवश्यकता को स्वीकार किया है। जिससे बिना किसी पक्षपात के डेटा के मुक्त प्रवाह को अधिक सुविधाजनक बनाते हुए उपभोक्ता और व्यापार के विश्वास (Consumer and Business Trust)को मज़बूत किया जा सके।
- वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ-साथ डेटा का महत्त्व हर क्षेत्र के भविष्य के लिये निर्णायक हो गया है ऐसे में नागरिकों की निजता, राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी विकास आदि जैसे पहलुओं को देखते हुए डेटा सुरक्षा और इसका स्थानीयकरण बहुत ही आवश्यक है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
इंडिया आइडियाज़ समिट
प्रीलिम्स के लियेइंडिया आइडियाज़ समिट, अमेरिका-भारत व्यापार परिषद मेन्स के लियेभारत अमेरिका व्यापार संबंध, कृषि क्षेत्र संबंधित प्रमुख घोषणाएँ |
चर्चा में क्यों
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका-भारत व्यापार परिषद (USIBC) द्वारा आयोजित ‘इंडिया आइडियाज़ समिट’ (India Ideas Summit) को संबोधित किया।
प्रमुख बिंदु
- इंडिया आइडियाज़ समिट
- ‘इंडिया आइडियाज़ समिट’ (India Ideas Summit) की मेजबानी अमेरिका-भारत व्यापार परिषद (USIBC) द्वारा की गई और इस वर्ष के सम्मेलन की थीम 'बेहतर भविष्य का निर्माण' (Building a Better Future) है।
- उद्देश्य: इस समिट का आयोजन प्रत्येक वर्ष अमेरिका-भारत व्यापार परिषद (USIBC) द्वारा मुख्य तौर पर भारत और अमेरिका की आर्थिक भागीदारी और दोनों देशों के बीच समग्र द्विपक्षीय संबंधों के महत्त्व को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से किया जाता है।
- इस वर्ष का समिट 21 और 22 जुलाई, 2020 को आभासी तौर पर आयोजित किया गया। इस समिट के दौरान विभिन्न प्रकार के सत्र आयोजित किये गए जिसमें प्रत्येक सत्र भारत से संबंधित किसी विशिष्ट मुद्दे पर केंद्रित था।
- इस दौरान प्रत्येक सत्र में राजनेताओं, राजनयिकों, विद्वानों और व्यापारिक कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों आदि को अपने विचार और राय साझा करने के लिये आमंत्रित किया गया था।
अमेरिका-भारत व्यापार परिषद (USIBC)
- अमेरिका और भारतीय सरकारों के अनुरोध पर वर्ष 1975 में गठित अमेरिका-भारत व्यापार परिषद दोनों देशों के बीच एक प्रमुख व्यवसाय संगठन है, जिसमें 300 से अधिक शीर्ष स्तरीय अमेरिकी और भारतीय कंपनियाँ शामिल हैं, जो अमेरिका-भारत के व्यापारिक संबंधों को आगे बढाने की दिशा में कार्य रही हैं।
- अमेरिका-भारत व्यापार परिषद (USIBC) का मुख्य उद्देश्य भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देना है।
- अमेरिका-भारत व्यापार परिषद का लक्ष्य भारत और अमेरिका के बीच एक समावेशी द्विपक्षीय व्यापार तंत्र का निर्माण करना है, ताकि दोनों देशों में उद्यमिता की भावना को पोषित किया जा सके और रोज़गार सृजित किया जा सके।
अमेरिका- भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, अमेरिका लगातार दूसरी बार वित्तीय वर्ष 2019-20 में भी भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार देश बना रहा है, जो कि दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों को दर्शाता है।
- संबंधित आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में अमेरिका और भारत के बीच 88.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार किया गया, जो कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में 87.96 बिलियन डॉलर था, इस प्रकार बीते वर्ष के मुकाबले वर्ष 2019-20 में भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोतरी देखने को मिली है।
- अमेरिका उन चुनिंदा देशों में से एक है, जिनके साथ भारत का व्यापार अधिशेष है। गौरतलब है कि अमेरिका वित्तीय वर्ष 2018-19 में चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार देश बना था।
- प्रधानमंत्री का संबोधन
- ‘इंडिया आइडियाज़ समिट’ को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास के एजेंडे के मूल में गरीबों और कमज़ोरों को रखने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि 'ईज़ ऑफ लिविंग' भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना 'ईज़ ऑफ बिज़नेस' है।
- प्रधानमंत्री के अनुसार, भारत 'आत्मनिर्भर भारत' के आह्वान के ज़रिये एक समृद्ध एवं सशक्त दुनिया बनाने में अपना योगदान दे रहा है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था को खुलेपन, अवसरों और विकल्पों का आदर्श सम्मिश्रण बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते छह वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था को ज़्यादा खुला और सुधार उन्मुख बनाने के प्रयास किये गए हैं। साथ ही इन सुधारों के माध्यम से अधिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता, अधिक पारदर्शिता, डिजिटलीकरण का विस्तार, ज़्यादा नवाचार और ज़्यादा नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित हुई है।
- प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने के व्यापक अवसर मौजूद हैं। साथ ही उन्होंने हाल ही में कृषि क्षेत्र में किये गए ऐतिहासिक सुधारों का भी उल्लेख किया।
आत्मनिर्भर भारत अभियान और कृषि सुधार
- आत्मनिर्भर भारत अभियान की तीसरी किश्त के तहत कृषि क्षेत्र को लेकर कुछ प्रमुख घोषणाएँ की गई थी, इसमें शामिल थीं-
- सूक्ष्म खाद्य उपक्रमों (MFE) को औपचारिक क्षेत्र में प्रवेश की दिशा में 10,000 करोड़ रुपए की सहायता राशि के साथ 'वैश्विक पहुँच वाली वोकल फॉर लोकल’ (Vocal for Local with Global Outreach) योजना शुरू की जाएगी।
- समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन के विकास के लिये 20,000 करोड़ रुपए की ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा’ योजना की घोषणा।
- पशु संबंधी रोगों को समाप्त करने के लिये सरकार 13,343 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ ‘राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ शुरू करेगी।
- इसके अलावा सरकार द्वारा कई अन्य घोषणाएँ भी की गई थीं, जिनमें मधुमक्खी पालन संबंधी पहल और पशुपालन बुनियादी ढाँचा विकास कोष आदि शामिल थे।
स्रोत: पी.आई.बी
रूसी मूल के भारतीय सैन्य उपकरण
प्रीलिम्स के लिये:विभिन्न भारतीय सैन्य उपकरण मेन्स के लिये:भारत द्वारा विभिन्न देशों से आयात किये जाने वाले सैन्य उपकरण |
चर्चा में क्यों?
स्टिमसन सेंटर (Stimson Center) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में भारत में सैन्य सेवा में 86% हथियार रूस से आयातित हैं। स्टिम्सन सेंटर वाशिंगटन (अमेरिका) में स्थित एक गैर-लाभकारी थिंक टैंक है। इसका उद्देश्य विश्लेषण के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ाना है।
प्रमुख बिंदु
- डेटा विश्लेषण (Data Analysis):
- स्टिम्सन सेंटर के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2014 के बाद से 55% से अधिक भारतीय रक्षा आयात रूस से हुआ है।
- नौसेना के 41% से अधिक उपकरण, जबकि भारतीय वायु सेना (IAF) के दो-तिहाई उपकरण रूस से आयातित हैं।
- थल सेना के संदर्भ में बात करें तो यह आँकड़ा 90% के पार चला जाता है।
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के आँकड़ों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, रूस 9.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ भारत का प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है।
- इस सूची में 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रक्षा आपूर्ति के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका दूसरे स्थान पर है।
- रूसी सैन्य उपकरण:
- नौसेना का एकमात्र सक्रिय विमान वाहक INS विक्रमादित्य और एकमात्र सक्रिय परमाणु पनडुब्बी भी रूसी है।
- इसी प्रकार सेना के T-90 और T-72 मुख्य युद्धक टैंक और वायुसेना का Su30 MKI फाइटर प्लेन भी रूसी हैं।
- देश की एकमात्र परमाणु-सक्षम सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस को रूस के साथ एक संयुक्त उद्यम द्वारा तैयार किया गया है।
- हालाँकि भारत इज़राइल, अमेरिका और फ्राँस जैसे देशों से भी हथियारों का आयात कर रहा है, इसके बावजूद रूस अभी भी प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है। यदि नवीनतम घटनाक्रम पर नज़र डाले तो यह तस्वीर और भी स्पष्ट दिखाई पड़ती है:
- भारत ने रूस से 2.4 अरब अमेरिकी डॉलर के 21 मिग29 और 12 Su30 MKI लड़ाकू विमानों के अधिग्रहण के प्रस्तावों को मंज़ूरी दी है।
- वर्ष 2007 में भारत और रूस ने पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान कार्यक्रम (Fifth Generation Fighter Aircraft Programme-FGFA) के एक संस्करण को विकसित करने के लिये एक संयुक्त कार्यक्रम पर सहमति व्यक्त की थी।
- हालाँकि भारत रूस के साथ पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान कार्यक्रम (एफजीएफए) के लिये वचनबद्ध नहीं है।
- मेक इन इंडिया के तहत AK103 राइफल्स की कीमत पर वार्ता चल रही है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के सैन्य उपकरण: अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर, सेना के लिये M777 हॉवित्जर तोपें।
- नौसेना के लिये- P8I सबमरीन, हंटर एयरक्राफ्ट और वायुसेना के लिये बोइंग C-17 और C-130J।
- कारण: सैन्य उपकरणों की आपूर्ति के लिये रूस पर भारत की निर्भरता के कई कारण हैं:
- विरासत का मुद्दा: भारत और रूस के बीच लंबे समय से रक्षा संबंध हैं और दोनों देश एक-दूसरे की प्रक्रियाओं और प्रणालियों से भली-भाँति परिचित हैं।
- विशेष उपकरण: जिस प्रकार के विशेष उपकरण रूस भारत को उपलब्ध करा रहा है उदाहरण के लिये-S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम, परमाणु पनडुब्बी और विमान वाहक। ये सभी उपकरण अन्य देशों से मिलने वाली आपूर्ति से भिन्न हैं, यही रूस और अन्य देशों से प्राप्त होने वाली सुविधाओं के बीच अंतर पैदा करते हैं।
- युद्धक क्षमता: रूस से मिलने वाली प्रत्येक युद्धक प्रणाली के अपने लाभ और उपयोग हैं, क्योंकि भारत की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उनका निर्माण विशेष रूप से अधिकतम लड़ाकू क्षमता विकसित करने के लिये किया गया है।
- महत्त्व:
- चीन के साथ सीमा विवाद: लद्दाख सीमा पर हाल के तनावों के बाद चीन के खिलाफ अमेरिका के साथ बढ़ती भारत की नज़दीकी के बावजूद, भारत का सशस्त्र बल रूसी मूल के उपकरणों, हथियारों और सैन्य प्लेटफार्मों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- अमेरिका का CAATSA: हाल ही में USA ने भारत सहित अपने सभी सहयोगियों और साथी देशों से रूस के साथ लेन-देन बंद करने को कहा है। USA द्वारा CAATSA ( Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के तहत भारत पर प्रतिबंध लगाए जाने की आशंका भी बनी हुई है।
स्रोत: द हिंदू
राष्ट्रीय उद्यानों में ड्रिलिंग: चिंता का विषय
प्रीलिम्स के लिये:डिब्रू-सैखोवा राष्टीय उद्यान, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, एक्स्टेंडेड रीच ड्रिलिंग, ERD उत्खनन तकनीक मेन्स के लिये:पर्यावरणीय प्रभाव आकलन और उत्खनन |
चर्चा के लिये?
हाल ही में 'राष्ट्रीय हरित अधिकरण' (National Green Tribunal- NGT) ने असम के ‘डिब्रू-सैखोवा राष्टीय उद्यान’ में प्रस्तावित सात उत्खनन ड्रिलिंग साइटों को पर्यावरणीय मंज़ूरी दिये जाने पर संबंधित संस्थाओं/इकाइयों से जवाब तलब किया है।
प्रमुख बिंदु:
- NGT द्वारा इस संबंध में ‘पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC), ‘ऑयल इंडिया लिमिटेड’ (Oil India Limited- OIL) और असम राज्य के ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ एवं ‘राज्य जैव विविधता बोर्ड’ से जवाब तलब किया गया है।
- NGT के ये निर्देश असम के दो पर्यावरण संरक्षणवादियों की याचिका पर आधारित थे।
याचिकाकर्त्ताओं का पक्ष:
- NGT ने याचिकाकर्त्ताओं के इस तर्क पर ध्यान दिया कि OIL द्वारा 'पर्यावरणीय प्रभाव आकलन' (Environment Impact Assessment- EIA)-2006, अधिसूचना के तहत सभी चरणों यथा; सार्वजनिक सुनवाई' (Public Hearing) तथा 'जैव विविधता मूल्यांकन' (Biodiversity Assessment) अध्ययन, का पालन नहीं किया गया है।
- याचिकाकर्त्ताओं के अनुसार, ये ड्रिलिंग प्रोजेक्ट सितंबर 2017 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हैं।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस निर्णय में राष्ट्रीय उद्यान में खनन तथा उत्खनन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के सरकार को निर्देश दिये थे।
- इन ड्रिलिंग प्रोजेक्ट के संदर्भ में प्रस्तुत EIA रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ड्रिलिंग परियोजनाओं में विस्फोट (Blowout) की नगण्य संभावना है, जबकि असम के बागान (Baghjan) में हुई गैस विस्फोट की घटनाओं ने इस तर्क को गलत साबित किया है।
OIL का पक्ष:
- OIL ने स्पष्ट किया है कि उसकी 'उत्खनन ड्रिलिंग परियोजना' डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत (अंडर द नेशनल पार्क) आती है न कि राष्ट्रीय उद्यान में (इन द नेशनल पार्क)।
- इन परियोजनाओं को 'एक्स्टेंडेड रीच ड्रिलिंग' (ERD) पर आधारित माना गया है जो संरक्षित क्षेत्र में प्रवेश किये बिना मौजूदा कुएँ से लगभग 4 किमी की गहराई तक ड्रिलिंग करने में सक्षम होती है।
- OIL ने ERD तकनीक के आधार पर वर्ष 2016 में सात कुओं की अनुमति प्राप्त की थी।
- ERD तकनीक के आधार पर किसी क्षेत्र की सतह पर प्रवेश किये बिना ही दूर से ही हाइड्रोकार्बन का उत्खनन करना संभव हो पाता है।
असम में खनन गतिविधियाँ तथा पर्यावरण:
- अपरिष्कृत पेट्रोलियम टर्शियरी युग की अवसादी शैलों में पाया जाता है। वर्ष 1956 तक असम में डिगबोई एकमात्र तेल उत्पादक क्षेत्र था। असम में डिगबोई, नहरकटिया तथा मोरान महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
- असम राज्य विश्व के समृद्धतम जैव विविधता क्षेत्रों में से एक है। इसमें उष्णकटिबंधीय वर्षावन, पर्णपाती वन, नदी के घास के मैदान, बाँस के बगीचे और कई आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं।
- असम में अनेक समृद्ध वन्यजीव अभयारण्य तथा राष्ट्रीय उद्यान हैं, जिनमें काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, मानस वन्यजीव अभयारण्य, डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान, नामेरी राष्ट्रीय उद्यान और ओरंग राष्ट्रीय उद्यान प्रमुख हैं।
- ऐसे में राज्य में खनन गतिविधियाँ जैव-विविधता के समक्ष अनेक चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं।
डिब्रू-सैखोवा राष्टीय उद्यान
(Dibru-Saikhowa National Park):
- डिब्रू-सैखोवा असम में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट पर स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान और बायोस्फीयर रिज़र्व है।
- ब्रह्मपुत्र के बाढ़ मैदान में स्थित डिब्रू-सैखोवा वन्यजीवों की कई अत्यंत दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये एक सुरक्षित आश्रय है।
- डिब्रू-सैखोवा में अर्द्ध-सदाबहार, पर्णपाती , दलदलीय/स्वॉम्प वनों के अलावा आर्द्र सदाबहार वनों के कुछ पैच (लघु वन क्षेत्र) पाए जाते हैं।
- इसे 'महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र' (Important Bird Area- IBA) के रूप में पहचान प्राप्त है। यहाँ 382 से अधिक पक्षी की प्रजातियाँ जिनमें ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क, लेसर एडजुटेंट स्टॉर्क, ग्रेटर क्रेस्टेड ग्रीब आदि शामिल हैं।
- यहाँ टाइगर, छोटे भारतीय सिवेट, गंगा डॉल्फिन, स्लो लोरिस, रीसस मैकाक, होलॉक गिब्बन, जंगली सुअर जैसे वन्यजीव पाए जाते हैं।
स्रोत: द हिंदू
काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना
प्रीलिम्स के लिये:काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना, क्रांतिकता मेन्स के लिये:असैनिक परमाणु ऊर्जा विकास, भारतीय परमाणु ऊर्जा क्षेत्र |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गुजरात के काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों ने इस संयत्र की तीसरी इकाई [Kakrapar Atomic Power Project (KAPP-3)] में पहली बार क्रांतिकता (Criticality) प्राप्त की है।
प्रमुख बिंदु:
- काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र गुजरात के तापी जिले में स्थित है।
- इस संयंत्र की पहली दो इकाइयाँ कनेडियन (Canadian) तकनीकी पर आधारित हैं, जबकि इसकी तीसरी इकाई पूर्णरूप से स्वदेशी तकनीकी पर आधारित है।
- इस संयंत्र में 220 मेगावाट के पहले ‘दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर’ (Pressurized Heavy Water Reactor- PHWR) के निर्माण को 6 मई 1993 को और 220 मेगावाट के ही दूसरी इकाई के निर्माण को 1 सितंबर, 1995 को अधिकृत किया गया था।
- इस संयंत्र की तीसरी और चौथी इकाई के निर्माण का कार्य वर्ष 2011 में प्रारंभ हुआ था।
क्रांतिकता (Criticality) :
परमाणु ऊर्जा संयत्र की क्रांतिकता से आशय संयंत्र में पहली बार नियंत्रित स्व-संधारित नाभिकीय विखंडन (Controlled Self-sustaining Nuclear Fission) श्रृंखला की शुरुआत से है।
काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना की तीसरी इकाई (KAPP-3):
- KAPP-3 भारतीय घरेलू असैनिक परमाणु कार्यक्रम के लिये एक बड़ी उपलब्धि है।
- KAPP-3 भारत पहली 700 मेगावाट विद्युत इकाई होने के साथ स्वदेशी तकनीक से विकसित PHWR की सबसे बड़ी इकाई है।
- PHWR प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन और भारी जल (D2O) को शीतलक के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- अब तक भारत में स्वदेशी तकनीक से विकसित PHWR की सबसे बड़ी इकाई मात्र 540 मेगावाट की थी, इस प्रकार की दो इकाइयाँ महाराष्ट्र के तारापुर संयत्र में स्थापित की गई हैं।
- वर्ष 2011 में इस संयंत्र की तीसरी इकाई के निर्माण कार्य के शुरू होने के बाद मार्च 2020 के मध्य में इसमें ईंधन भरे जाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी।
विशेषताएँ:
- भारत में स्वदेशी निर्मित इस 700 मेगावाट के PHWR में ‘स्टील लाइंड इनर कंटेंटमेंट’, निष्क्रिय क्षय ऊष्मा निष्कासन प्रणाली, रोकथाम स्प्रे प्रणाली, हाइड्रोजन प्रबंधन प्रणाली आदि जैसी उन्नत सुरक्षा सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
भारतीय परमाणु ऊर्जा क्षमता की वृद्धि में योगदान:
- गौरतलब है कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 2031 तक अपनी मौजूदा परमाणु ऊर्जा क्षमता को 6,780 मेगावाट से बढ़ाकर 22,480 मेगावाट करने की तैयारी की जा रही है।
- ऐसे में 700 मेगावाट के इस परमाणु संयंत्र की सफलता भारतीय ऊर्जा विस्तार योजना में एक मुख्य घटक के रूप में कार्य करेगी।
- ध्यातव्य है कि वर्तमान में भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता [लगभग 371,054 मेगावाट (जुलाई 2020 तक)] में परमाणु ऊर्जा का योगदान लगभग 2% ही है।
- वर्तमान में जब देश में 900 मेगावाट क्षमता के ‘दाबयुक्त जल रिएक्टर’ (Pressurised Water Reactor- PWR) के विकास की तैयारी की जा रही है, ऐसे में KAPP-3 से प्राप्त हुआ अनुभव इस योजना में भी उपयोग किया जा सकेगा।
- वर्तमान में देश में ‘4700 मेगावाट’ क्षमता के परमाणु संयंत्रों पर कार्य किया जा रहा है, जिनमें से दो काकरापार (KAPP-3 और KAPP-4) तथा रावतभाटा (राजस्थान) में स्थित हैं।
- KAPP-3 और KAPP-4 का निर्माण ‘न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (Nuclear Power Corporation of India Limited) द्वारा किया गया है।
‘न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड’
(Nuclear Power Corporation of India Limited- NPCIL):
- NPCIL, एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम (Public Sector Enterprise- PSE) है।
- इसका मुख्यालय मुंबई (महाराष्ट्र) में स्थित है।
- NPCIL, भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy- DAE) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। NPCIL को सितंबर, 1987 में 'कंपनी अधिनियम, 1956' के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया था
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 जुलाई, 2020
मणिपुर जलापूर्ति परियोजना
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मणिपुर के लिये एक जलापूर्ति परियोजना (Water Supply Project) की आधारशिला रखी है। गौरतलब है कि इस परियोजना के माध्यम से राज्य के लगभग 25 शहरों और 1700 गाँवों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जाएगा। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस परियोजना को न केवल वर्तमान बल्कि आगामी 20-22 वर्षों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। इस परियोजना से न केवल लाखों लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध होगा, बल्कि हज़ारों लोगों को रोज़गार भी मिलेगा। इस संबंध जारी विज्ञप्ति के अनुसार, मणिपुर जलापूर्ति परियोजना वर्ष 2024 तक ‘हर घर जल’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये राज्य सरकार के ठोस प्रयासों में एक अहम कदम है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में ‘जल जीवन मिशन’ की घोषणा की थी, इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में पाइप जलापूर्ति (हर घर जल) सुनिश्चित करना है। जल जीवन मिशन की प्राथमिकता देश भर के सभी भागों में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आज़ाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था, और उन्हें एक विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक तथा राष्ट्रवादी के रूप में जाना जाता था। स्वतंत्र भारत की नींव रखने में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है, गौरतलब है कि उन्होंने आम लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघर्ष करने की चेतना जागृत करने तथा उन्हें एकजुट करने के लिये अपनी भविष्य उन्मुखी सोच के तहत ‘होमरूल लीग’ की भी स्थापना की। बाल गंगाधर तिलक एक निर्भीक एवं स्वाभिमानी नेता थे। वे अपनी राय बेबाकी व आक्रामक तेवरों के साथ अपने समाचार पत्रों (मराठा और केसरी) में लिखते थे। 1 अगस्त, 1920 को मुंबई में बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हुई थी, उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी ने बाल गंगाधर तिलक को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ कहा था। वहीं भारत के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के एक गाँव में हुआ था, काकोरी ट्रेन रॉबरी, असेंबली बम घटना और लाहौर में सॉन्डर्स की हत्या जैसी घटनाओं में शामिल होकर चंद्रशेखर आज़ाद क्रांतिकारी भारत का चेहरा बन गए। 27 फरवरी, 1931 को मात्र 24 वर्ष की उम्र में तत्कालीन अल्फ्रेड पार्क (अब आज़ाद पार्क) में चारों ओर घिरने के पश्चात् उन्होंने स्वयं गोली मारकर खुद की हत्या कर ली थी।
ह्यूस्टन में चीन के वाणिज्य दूतावास को बंद करने का आदेश
अमेरिका ने चीन को ह्यूस्टन (Houston) में अपना वाणिज्य दूतावास (Consulate) बंद करने का आदेश दिया है, इस आदेश के बाद विश्व की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच तनाव और अधिक बढ़ गया है। ध्यातव्य है कि अमेरिका-चीन के संबंध लगातार लगभग सभी मोर्चों पर बिगड़ते जा रहे हैं। चीन ने अमेरिका के इस हालिया निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि यदि अमेरिका जल्द ही अपने इस निर्णय को वापस नहीं लेता है तो चीन भी कुछ कड़े कदम उठाने के लिये मजबूर होगा। ध्यातव्य है कि अमेरिका में चीन के कुल 6 वाणिज्यिक दूतावास हैं, जिसमें से एक को बंद करने का आदेश दिया गया है। अमेरिकी प्रशासन के इस निर्णय की पुष्टि करते हुए विदेश विभाग ने कहा कि यह कदम ‘अमेरिकी बौद्धिक संपदा’ और अमेरिका की गुप्त जानकारी की रक्षा के उद्देश्य से लिया गया है। विदित हो कि चीन और अमेरिका के बीच विभिन्न मुद्दों पर तनाव बना हुआ है, जिसमें व्यापार, तकनीक, कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी, हॉन्गकॉन्ग और उईगर मुस्लिमों से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। गौरतलब है कि इससे पूर्व अमेरिका ने हॉन्गकॉन्ग के विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया था। वहीं इससे पूर्व अमेरिका और चीन दोनों ही देशों ने एक-दूसरे के अधिकारियों पर प्रतिबंध भी लगाए थे।
मधु बाबू पेंशन योजना
हाल ही में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राज्य में रहने वाले ट्रांसजेंडर समुदाय के सभी सदस्यों को भी मधु बाबू पेंशन योजना में शामिल कर लिया है। इस संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार, राज्य सरकार के इस हालिया निर्णय के माध्यम से राज्य के ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लगभग 5000 लोगों को आर्थिक सहायता मिल सकेगी। मधु बाबू पेंशन योजना (MBPY) राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई एक सामाजिक सुरक्षा योजना है। ओडिशा सरकार की इस योजना का उद्देश्य राज्य में निराश्रित बुजुर्गों, दिव्यांग व्यक्तियों और विधवाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस योजना के तहत राज्य के लगभग 5,000 ट्रांसजेंडर अपनी उम्र के आधार पर विभिन्न श्रेणियों के तहत पेंशन के रूप में 500 रुपए, 700 रुपए और 900 रुपए प्रति माह प्रतिमाह प्राप्त करने के पात्र होंगे। सार्वजनिक अधिसूचना के अनुसार, लाभार्थियों के पास अनिवार्य प्रमाणपत्र होना चाहिये, साथ यह भी अनिवार्य है कि लाभार्थी की आय प्रति वर्ष 40,000 रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिये। इस योजना के तहत उन लोगों को लाभ प्राप्त नहीं होगा, जो राज्य में आयकर का भुगतान करते हैं, अथवा जो सरकारी कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं।