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डेली न्यूज़

  • 23 May, 2020
  • 46 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हॉन्गकॉन्ग संकट और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून

प्रीलिम्स के लिये

हॉन्गकॉन्ग संकट, हॉन्गकॉन्ग की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

हॉन्गकॉन्ग को लेकर चीन की नीति और भारतीय दृष्टिकोण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन की संसद के समक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक मसौदा प्रस्तुत किया गया है, जो पहली बार चीन की सरकार को हॉन्गकॉन्ग के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों का मसौदा तैयार करने तथा इस विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (Special Administrative Region-SAR) में अपने राष्ट्रीय सुरक्षा अंगों (Organs) को संचालित करने की अनुमति देगा।

प्रमुख बिंदु

  • चीन की सरकार ने इस मसौदे के माध्यम से हॉन्गकॉन्ग में लागू बेसिक लॉ (Basic Law) में ‘सुधार’ करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, ध्यातव्य है कि यही बेसिक लॉ (Basic Law) अथवा लघु संविधान हॉन्गकॉन्ग और बीजिंग के मध्य संबंधों को परिभाषित करता है।
  • चीन के इस नए मसौदे को हॉन्गकॉन्ग में असंतोष रोकने के लिये अब तक के सबसे व्यापक कदम के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। विश्लेषकों का मत है कि चीन की सरकार हॉन्गकॉन्ग विधायिका से परामर्श किये बिना ही इस मसौदे को लागू कर सकती है।

हॉन्गकॉन्ग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1842 में चीन राजवंश के प्रथम अफीम युद्ध में पराजित होने के बाद चीन ने ब्रिटिश साम्राज्य को हॉन्गकॉन्ग द्वीप सौंप दिया था, उसके बाद हॉन्गकॉन्ग का (एक अलग भू-भाग) अस्तित्त्व सामने आया।
  • लगभग 6 दशक के दौरान चीन के लगभग 235 अन्य द्वीप भी ब्रिटेन के कब्ज़े में आ गए और हॉन्गकॉन्ग अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र बन गया।
  • 20वीं सदी के प्रारंभ में यहाँ भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन हुआ जिनमें चीनी लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा थी।
  • बड़ी संख्या में प्रवासियों के आगमन ने हॉन्गकॉन्ग के लिये एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में एक नई भूमिका निभाने में मदद की।
  • चीन की अर्थव्यवस्था एवं भौगोलिक स्थिति के प्रभाव के कारण वर्तमान में हॉन्गकॉन्ग सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था के साथ-साथ दुनिया के सबसे बड़े बाज़ारों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार बन गया है।
  • वर्ष 1997 तक हॉन्गकॉन्ग ब्रिटिश साम्राज्य के नियंत्रण में रहा।

हॉन्गकॉन्ग का ‘बेसिक लॉ’ 

  • 1 जुलाई, 1997 को 'एक देश, दो व्यवस्था' (One Country, Two Systems) के सिद्धांत के तहत हॉन्गकॉन्ग को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (Special Administrative Region-SAR) घोषित कर दिया गया और हॉन्गकॉन्ग ब्रिटिश उपनिवेश से मुक्त हो गया।
  • हॉन्गकॉन्ग को ‘बेसिक लॉ’ नामक एक लघु-संविधान द्वारा शासित किया जाता है, जो कि ‘एक देश, दो प्रणाली’ के सिद्धांत की पुष्टि करता है।
  • ध्यातव्य है कि ‘बेसिक लॉ’ वर्ष 1984 के चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा पत्र (Sino-British Joint Declaration) का ही परिणाम है, जिसके तहत चीन की सरकार द्वारा वर्ष 1997 से 50 वर्षों की अवधि के लिये हॉन्गकॉन्ग की उदार नीतियों, शासन प्रणाली, स्वतंत्र न्यायपालिका और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करने की बात की गई थी।
  • हॉन्गकॉन्ग का ‘बेसिक लॉ’ अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता जैसे अधिकारों की रक्षा करता है, जो कि चीन में मौजूद नहीं हैं। साथ ही हॉन्गकॉन्ग का ‘बेसिक लॉ’ इस क्षेत्र विशिष्ट की शासन की संरचना भी निर्धारित करता है।
  • हालाँकि हॉन्गकॉन्ग के आंतरिक मामलों में चीन के कम्युनिस्ट शासन के हस्तक्षेप और उसकी दमनकारी नीतियों के चलते हॉन्गकॉन्ग में समय-समय पर विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं।

विरोध प्रदर्शन का लंबा इतिहास

  • विरोध प्रदर्शन हॉन्गकॉन्ग की राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गए हैं। चीन को सौंपे जाने के बाद हॉन्गकॉन्ग में ‘बेसिक लॉ’ में दी गई स्वतंत्रता को बचाने के लिये पहला विरोध प्रदर्शन वर्ष 2003 में हुआ था, जो कि वर्ष 1997 के बाद सबसे बड़ा लोकतंत्र समर्थित आंदोलन था।
  • वर्ष 2009 में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ जिसके परिणामस्वरूप यह कानून वापस ले लिया गया। वर्ष 2014 में भी हॉन्गकॉन्ग में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया गया। इस विरोध को ‘अंब्रेला मूवमेंट’ की संज्ञा दी जाती है।
    • दरअसल चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा हॉन्गकॉन्ग की जनता को यह भरोसा दिलाया गया था कि वर्ष 2017 से हॉन्गकॉन्ग के नागरिक अपने मुख्य कार्यकारी का निर्वाचन स्वयं कर सकेंगे किंतु चीन ने सिर्फ उन्हीं लोगों को इस पद के लिये चुनाव लड़ने की अनुमति दी जिन्हें चीन की साम्यवादी पार्टी का समर्थन हासिल हो। इससे हॉन्गकॉन्ग के लोगों को अत्यधिक निराशा हुई। 
    • परिणामस्वरूप लाखों लोगों ने 2 महीने से भी अधिक समय तक विरोध प्रदर्शन किया। 
  • वर्ष 1997 में सत्ता हस्तांतरण के बाद सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन वर्ष 2019 में हुआ, जब महीनों तक हॉन्गकॉन्ग के हज़ारों लोगों ने प्रस्तावित प्रत्यर्पण कानून के विरुद्ध आंदोलन किया और कानून वापस लेने के बाद भी लोकतंत्र के समर्थन में प्रदर्शन जारी रखा।

प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून

  • हॉन्गकॉन्ग के ‘बेसिक लॉ’ की धारा 23 के अनुसार, हॉन्गकॉन्ग को ‘किसी भी प्रकार के देशद्रोह, अलगाव, सरकार के विरुद्ध साज़िश और राज्य के रहस्यों की चोरी जैसे कृत्यों को रोकने तथा विदेशी राजनीतिक संगठनों या निकायों को इस क्षेत्र विशिष्ट में राजनीतिक गतिविधियों का संचालन करने से रोकने एवं इस क्षेत्र विशिष्ट के राजनीतिक संगठनों या निकायों को विदेशी राजनीतिक संगठनों या निकायों के साथ संबंध स्थापित करने से रोकने के लिये जल्द-से-जल्द ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’ लागू करना होगा।
  • पहली बार जब वर्ष 2003 में हॉन्गकॉन्ग की सरकार ने यह कानून बनाने की कोशिश की थी, तो उस वर्ष यह शहर में व्यापक विरोध प्रदर्शन का मुद्दा बन गया था।
  • वर्ष 2003 के बाद एक बार पुनः इस कानून के निर्माण का प्रयास किया जा रहा है। विश्लेषकों के अनुसार, चीन की सरकार ‘बेसिक लॉ’ के एनेक्स III (Annex III) का प्रयोग करके एक बार पुनः कानून के निर्माण का प्रयास कर सकती है।
  • ‘बेसिक लॉ’ के अनुसार, चीन की सरकार हॉन्गकॉन्ग में तब तक कोई कानून लागू नहीं कर सकती है, जब तक कि वह कानून एनेक्स III नामक खंड में सूचीबद्ध नहीं किया गया हो। ध्यातव्य है कि इस खंड में पहले से ही कुछ कानून सूचीबद्ध हैं, जिनमें अधिकांश अविवादास्पद और विदेश नीति से संबंधित हैं।
  • इन कानूनों को आसानी से राजाज्ञा (Decree) के माध्यम से लागू किया जा सकता है। जिसका अर्थ है कि उन्हें लागू करने के लिये हॉन्गकॉन्ग के प्रतिनिधियों से विमर्श की आवश्यकता नहीं होती है।

नए कानून का प्रभाव

  • चीन का यह नया कानून चीन की सरकार को लक्षित करने वाली देशद्रोही गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाएगा और साथ ही हॉन्गकॉन्ग के मामलों में बाहरी हस्तक्षेप को प्रतिबंधित अथवा दंडित करेगा।
  • आलोचकों का कहना है कि यह कदम हॉन्गकॉन्ग के 'एक देश, दो व्यवस्था' के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, जो कि हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • विश्लेषकों ने उम्मीद ज़ाहिर की है कि यदि यह कानून अस्तित्त्व में आता है तो हॉन्गकॉन्ग में बीते वर्ष हुए व्यापक विरोध प्रदर्शन एक बार फिर से शुरू हो सकते हैं, ऐसे में चीन की सरकार को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • यह कदम पूर्वी एशियाई व्यापारिक केंद्र के रूप में हॉन्गकॉन्ग की पहचान को प्रभावित कर सकता है, और साथ ही इस कानून से चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपेक्षा का सामना करना पड़ सकता है, जो कि पहले से ही कोरोना वायरस (COVID-19) से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी को छुपाने के आरोप का सामना कर रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन द्वारा सीमा उल्लंघन के मामलों में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

भारत-चीन सीमा, गैलवान घाटी, पैंगोंग त्सो झील

मेन्स के लिये:

भारत-चीन सीमा विवाद 

चर्चा में क्यों?

आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 के बाद से चीन की तरफ से लद्दाख क्षेत्र में 'वास्तविक नियंत्रण रेखा' (Line of Actual Control- LAC) का उल्लंघन करने की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2020 के शुरुआती चार महीनों में चीन द्वारा 170 बार LAC का उल्लंघन किया गया है। जिनमें से 130 बार LAC उल्लंघन केवल लद्दाख क्षेत्र में किया गया है।
  • जबकि वर्ष 2019 में इसी अवधि के दौरान लद्दाख में केवल 110 बार LAC का उल्लंघन किया गया था। 

LAC उल्लंघन के 4 प्रमुख स्थान:

  • 3,488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा पर 80% LAC उल्लंघन के मामले केवल चार स्थानों पर दर्ज किये गए हैं जिनमें से तीन स्थान पश्चिमी LAC क्षेत्र के पूर्वी लद्दाख में स्थित हैं।
  • पश्चिमी सीमा:
    • पश्चिमी क्षेत्र में लद्दाख और अक्साई-चिन क्षेत्र शामिल है।
    • पैंगोंग त्सो (Pangong Tso), ट्रिग हाइट्स (Trig Heights) और बर्ट्स (Burtse) में LAC उल्लंघन के दो-तिहाई मामले दर्ज किये गए हैं।
      • पैंगोंग त्सो 135 किलोमीटर लंबी झील है, जिसका एक तिहाई हिस्सा भारत द्वारा नियंत्रित है।
    • डूमेचेले (Dumchele) के सामने स्थित डोलेटांगो क्षेत्र (Doletango area) में वर्ष 2019 में 54 LAC उल्लंघन के मामले देखने को मिले हैं।
  • पूर्वी क्षेत्र:
    • इसमें सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश के साथ लगने वाली सीमा को शामिल किया गया है। पूर्वी क्षेत्र में सीमा उल्लंघन के अधिकतर मामले दिचू क्षेत्र/मदन कगार क्षेत्र (Dichu Area/Madan Ridge Area) में दर्ज किये गए हैं। 
    • पूर्वी सीमा पर सिक्किम के ‘नाकु ला’ (Naku La) क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच कभी-कभी टकराव देखने को मिलता है। 
  • मध्य क्षेत्र:
    • यह सीमा तिब्बत के साथ लगती है, इसमें अनेक लघु क्षेत्रों को लेकर विवाद है।
    • मध्य क्षेत्र में सीमा उल्लंघन के अधिकतर मामले उत्तराखंड के बाराहोती (Barahoti) में दर्ज किये गए हैं।

Chinese-transgressions

गैलवान घाटी (Galwan Valley) क्षेत्र को लेकर विवाद:

  • हाल ही में चीन की एक समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, 'अक्साई चीन’ के गैलवान घाटी (Galwan Valley) क्षेत्र में भारत ने रक्षा सुविधाओं का निर्माण किया है। यद्यपि भारत ने आधिकारिक रूप से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। गैलवान नदी घाटी क्षेत्र में भी दोनों सेनाओं के बीच तनाव देखने को मिला है।

LAC पर सीमा उल्लंघन के मामले:

Incidents-On-Line

  • वर्ष 2015 के बाद से तीन-चौथाई LAC उल्लंघन के मामले पश्चिमी क्षेत्र में जबकि पूर्वी क्षेत्र में कुल LAC उल्लंघन के केवल 1/5 मामले देखने को मिले हैं। 
  • पश्चिमी क्षेत्र में अधिकतर मामले जमीनी सीमा उल्लंघन के देखने को मिले हैं जबकि पूर्वी क्षेत्र में अधिकांश मामले हवाई सीमा उल्लंघन के दर्ज किये गए हैं। 
  • चीन द्वारा ‘पैंगोंग त्सो’ (Pangong Tso) झील क्षेत्र में वायु, भूमि तथा जल तीनों LAC सीमाओं का उल्लंघन किया गया है।

सीमा उल्लंघन के मामलों को सुलझाने का प्रयास:

  • वर्ष 2017 में ‘डोकलाम गतिरोध’ (Doklam Standoff) के बाद से पूर्वी क्षेत्र में LAC उल्लंघन के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई।
  • डोकलाम गतिरोध के तुरंत बाद सितंबर 2017 में ‘शियामेन’ (Xiamen) में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के शीर्ष नेताओं द्वारा मुलाकात की गई।
  • वुहान में अप्रैल 2018 में प्रथम 'अनौपचारिक शिखर सम्मेलन' के दौरान दोनों देशों के नेताओं ने सीमाओं के प्रबंधन की दिशा में 'विश्वास एवं आपसी समझ बनाने' की दिशा में रणनीतिक मार्गदर्शन जारी किया गया।
  • भारतीय प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति की बिश्केक और महाबलीपुरम में मुलाकातों के बावजूद वर्ष 2019 में 497 बार LAC का उल्लंघन किया गया। 

सीमा उल्लंघन के मामलों में वृद्धि का कारण:

  • अधिकारियों का तर्क है कि अधिकतर LAC उल्लंघन के मामले इसलिये होते हैं क्योंकि दोनों देशों की सेनाएँ LAC का अपनी-अपनी धारणाओं के अनुसार, निर्धारण करके इस क्षेत्र में गश्त करने की कोशिश करती हैं।

आगे की राह:

  • चीन, भारतीय सीमा के उल्लंघन के कदम, एशिया में भारत की बढ़ती प्रभावी स्थिति को चुनौती देने के लिये उठाता है। बदली हुई परिस्थितियों में भारत के लिये यह ज़रूरी हो गया है कि वह अन्य एशियाई देशों के साथ कूटनीतिक और सामरिक सहयोग बढ़ाकर चीन की चुनौतियों का मुकाबला करे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

COVID-19 के कारण टीकाकरण में बाधा

प्रीलिम्स के लिये:

पोलियो, हैजा, खसरा

मेन्स के लिये:

COVID-19 के कारण पोलियो, हैजा, खसरा,जैसे रोगों के टीकाकरण में उत्पन्न बाधा 

चर्चा में क्यों?

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization-WHO) और ‘संयुक्त राष्ट्र बाल कोष’ (United Nations Children's Fund-UNICEF) की रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 से उत्पन्न समस्याओं के कारण एक वर्ष से कम आयु के लगभग 80 मिलियन बच्चों का जीवन जोखिम में है।

प्रमुख बिंदु:

  • उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण खसरा (Measles), पोलियो (Polio) और हैजा (Cholera) सहित अन्य बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण में बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, खसरा, पोलियो, हैजा जैसे रोगों के उन्मूलन हेतु दशकों से चलाए जा रहे टीकाकरण कार्यक्रमों में बाधा उत्पन्न होने से आने वाले दिनों में अत्यधिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • अप्रैल, 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य सहयोगी संगठनों ने COVID-19 के मद्देनज़र अस्थायी तौर पर कुछ समय के लिये पोलियो अभियान को रोकने हेतु सुझाव दिये थे।
  • दरअसल पोलियो जैसे अभियानों में लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं जिसके कारण इन अभियानों में COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ (Social Distancing) नियम का उल्लंघन होगा।
  • हाल ही में जारी एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, 65 से अधिक देशों में मार्च और अप्रैल के दौरान खसरा, पोलियो, हैजा जैसे रोगों के उन्मूलन हेतु टीकाकरण कार्यक्रमों को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया था या आंशिक रूप से चलाया जा रहा था।
  • हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा COVID-19 के दौरान सुरक्षित रूप से टीकाकरण सेवाएँ बहाल करने के संबंध में एक दिशा-निर्देश जारी किया जाएगा। 
  • UNICEF की रिपोर्ट के अनुसार, अत्यधिक देशों में लॉकडाउन तथा अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की संख्या में कमी के कारण वैक्सीन के वितरण में विलंब हुआ है।

अफ्रीकी देशों की स्थिति:

  • उल्लेखनीय है कि अफ्रीका में एक दर्जन से अधिक देशों ने इस वर्ष पोलियो के प्रसार की सूचना दी है।
  • रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि 38 देशों में चलाए जा रहे पोलियो संबंधित 46 अभियानों को रोक दिया गया है। साथ ही 27 देशों में खसरा अभियान को भी रोका गया है।
  • ध्यातव्य है कि अफ्रीका के 40 से अधिक देशों ने अपनी सीमाओं को बंद कर दिया है, हालाँकि कुछ देशों ने कार्गो और आपातकालीन परिवहन की अनुमति दी है।

भारत की स्थिति:

  • यदि किसी देश में लगातार तीन वर्षो तक एक भी पोलियो का मामला नहीं आता, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन उसे ‘पोलियो मुक्त देश’ घोषित कर देता है। 
  • भारत में पोलियो का अंतिम मामला जनवरी 2011 को पश्चिम बंगाल में दर्ज किया गया था। जिसके पश्चात् लगातार नजर रखी गई है। 
  • इसे देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को वर्ष 2014 में ‘पोलियो मुक्त देश’ घोषित कर दिया।
  • भले ही भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया गया है, परंतु भारत के पड़ोसी देशों में अभी भी यह एक गंभीर समस्या बनी हुई है। जिसका स्पष्ट प्रभाव भारत पर देखने को मिल सकता है।

स्रोत: इकोनॉमिक्स टाइम्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्वांटम एंटैंगलमेंट

प्रीलिम्स के लिये:

क्वांटम एंटैंगलमेंट

मेन्स के लिये:

एंटैंगलमेंट की अवस्था से संबंधित मुद्दे  

चर्चा में क्यों?

‘सत्येंद्र नाथ बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंस’ (Satyendra Nath Bose National Centre for Basic Sciences) के शोधकर्त्ताओं ने ‘क्या इलेक्ट्रॉनों का एक युग्म एंटैंगलमेंट अवस्था में है’ का पता लगाने हेतु एक प्रोटोकॉल विकसित किया है। एंटैंगलमेंट अवस्था क्वांटम सूचना प्रसंस्करण के कार्यों में मददगार साबित हो सकती है।

प्रमुख बिंदु:

  • क्वांटम एंटैंगलमेंट (Quantum Entanglement)
    • क्वांटम यांत्रिकी की कई विशेषताओं में से एक क्वांटम एंटैंगलमेंट है जो ‘क्वांटम टेलीपोर्टेशन को संभव बनाता है।
    • क्वांटम एंटैंगलमेंट एक भौतिक घटना है। यह घटना तब होती है जब कणों का युग्म या कणों का समूह इस तरह से उत्पन्न या मिलते हैं कि प्रत्येक कणों की क्वांटम अवस्था को स्वतंत्र रूप से दूसरों कण की अवस्था के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है।
    • इनटैंगल अवस्था कई क्वांटम सूचना प्रसंस्करण कार्यों और क्वांटम क्रिप्टोग्राफिक प्रोटोकॉल हेतु महत्त्वपूर्ण संसाधन हैं। 
  • आवश्यकता क्यों?
    • एंटैंगलमेंट की अवस्था बहुत ही नाज़ुक होती है साथ ही वातावरण के माध्यम से फोटॉनों के आवागमन के दौरान एंटैंगलमेंट आसानी से खो जाते हैं।
    • एंटैंगलमेंट को संसाधन के रूप में उपयोग करने हेतु यह जानना बेहद आवश्यक है कि क्या फोटॉन का युग्म इनटैंगल होता है।
    • एंटैंगलमेंट की अवस्था को जाँच करने हेतु उपकरणों के उपयोग की आवश्यकता होती है लेकिन ऐसे उपकरणों को हैकरों द्वारा हैक किया जा सकता है।
    • डिवाइस इंडिपेंडेंट सेल्फ टेस्टिंग (Device Independent Self Testing DIST) एक ऐसी विधि है, जिसके उपयोग से ऐसी संभावना को दूर किया जा सकता है।
    • DIST विधि के माध्यम से एंटैंगलमेंट में दो फोटॉनों की अज्ञात क्वांटम अवस्था को सत्यापित किया जा सकता है।

शोधकार्य:

Beta-Barium-Borate

  • उल्लेखनीय है कि यह प्रोटोकॉल ‘फिज़िकल रिव्यू’ (Physical Review) में प्रकाशित किया गया है।
  • बीजिंग कम्प्यूटेशनल साइंस रिसर्च सेंटर (Computational Science Research Centre) के एक समूह और क्वांटम सूचना की प्रमुख प्रयोगशाला- हेफ़ेई के सहयोग द्वारा प्रयोगात्मक रूप से कार्यान्वित किया गया है।
  • प्रयोग में एक ऑल-ऑप्टिकल संरचना का उपयोग किया गया है, जिसमें ‘बीटा बेरियम बोरेट’ (Beta Barium Borate- BBO) क्रिस्टल पर लेज़र प्रकाश की मदद से एंटैंगलमेंट प्रोटाॅन का युग्म बनाया गया है।
  • शोधकर्त्ताओं ने फोटॉन के युग्म की एंटैंगलमेंट अवस्था को सत्यापित करने हेतु बॉब (Bob) को पक्ष तथा ऐलिस (Alice) को विपक्ष के रूप में उपयोग किया है।
  • शोधकर्त्ताओं के द्वारा प्रयोग के दौरान एक फोटॉन ऐलिस (नीचे बाएँ) की तरफ गया जबकि दूसरा फोटॉन बॉब (ऊपर से दाएँ) की तरफ गया।
  • शोधकर्त्ताओं ने फोटॉन का पता लगाने से पहले बीम-स्प्लिटर्स (Beam Splitters), फेज-शिफ्टर्स (Phase Shifters) और क्वांटम गेट ऑपरेशंस (Quantum Gate Operations) का उपयोग करते हुए कई ऑप्टिकल प्रयोग किये।
  • शोधकर्त्ताओं ने न केवल एंटैंगलमेंट की अवस्था को सत्यापित किया बल्कि न्यूनतम त्रुटि के साथ  फोटॉन युग्म के एंटैंगलमेंट की परिमाण को भी निर्धारित किया है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

कृषि-विपणन से जुड़े संरचनात्मक मुद्दे

प्रीलिम्स के लिये:

कृषि विपणन 

मेन्स के लिये:

कृषि विपणन में सुधार 

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री द्वारा 12 मई, 2020 को भारत की जीडीपी के 10% के बराबर, 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई थी। इसी दिशा में वित्त मंत्री द्वारा कृषि विपणन सुधारों की दिशा में एक केंद्रीय कानून लाने की घोषणा की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘कृषि विपणन सुधार’ (Agricultural Marketing Reform) की दिशा में किसान को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज को बेचने के लिये पर्याप्त विकल्प उपलब्ध कराने; निर्बाध अंतर्राज्यीय  व्यापार; कृषि उत्पादों की ई-ट्रेडिंग के लिये एक रूपरेखा बनाने की दिशा में केंद्रीय विपणन कानून का निर्माण किया जाएगा।
  • नवीन केंद्रीय कानून के निर्माण के बाद मौजूदा राज्य कृषि विनियमन कानून समाप्त हो जाएंगे। 

कृषि विपणन (Agricultural marketing):

  • कृषि विपणन के अंतर्गत वे सभी सेवाएँ सम्मिलित की जातीं हैं जो कृषि उपज को खेत से लेकर उपभोक्ता तक पहुँचाने के दौरान करनी पड़ती हैं।

कृषि विपणन सुधारों की आवश्यकता:

  • अनुभव से सीखने की आवश्यकता:
    • ये कानून किसान को स्थानीय 'कृषि उपज विपणन समिति' (Agricultural Produce Marketing Committee- APMC) द्वारा लाइसेंस प्राप्त खरीदार के अलावा किसी अन्य कृषि उत्पाद बेचने से रोकते हैं।
    • वर्तमान केंद्रीय कानून निर्माण का निर्णय दो दशकों से अधिक समय के बाद विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाए गए असमान सुधारों के बाद उपजे असंतोष को ध्यान में रखकर लिया गया है।
    • नवीन कानून का निर्माण करते समय पुराने कृषि विपणन सुधारों से संबंधित अब तक प्राप्त अनुभव से सीखने की आवश्यकता है तथा कृषि क्षेत्र से जुड़ी वास्तविकताओं की पहचान करते हुए सुधारों को अपनाना चाहिये।
  • संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता:
    • वर्तमान में किसानों को कृषि विपणन में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, वे सिर्फ कृषि की एकाधिकारवादी प्रणाली में निहित नहीं है अपितु वे संरचनात्मक समस्याओं में निहित होती हैं। जो कृषि बाज़ारों से किसानों को जुडने में प्रमुख बाधा बनता है।
    • ऐसा इसलिये होता है क्योंकि भारत में अभी भी पर्याप्त मंडियाँ नहीं हैं। इन मंडियों में आवश्यक बुनियादी ढाँचे में बहुत कम निवेश किया गया है तथा मंडियों की अवसंरचना बहुत खराब स्थिति में है।
    • वर्ष 2017 की 'डबलिंग फार्मर्स इनकम रिपोर्ट' के अनुसार APMC के तहत मौजूदा 6,676 प्रमुख बाज़ारो तथा उप-बाज़ारो में बुनियादी अवसंरचनों की कमी है तथा भारत में अभी भी 3,500 से अधिक अतिरिक्त थोक बाज़ारों की आवश्यकता है। 23,000 ग्रामीण आवधिक बाज़ार (या हाट) भी लंबे समय से उपेक्षा का सामना कर रहे हैं।
    • इसलिये कृषि बाज़ारों के बुनियादी ढाँचे के लिये आवंटित राशि का उपयोग पूरी तरह से भौतिक विपणन पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये किया जाना चाहिये।
  • कृषि प्रतिस्पर्द्धा में भी वृद्धि: 
    • एकाधिकारवादी समस्या का समाधान विनियामक हस्तक्षेप द्वारा किया जा सकता है परंतु किसानों को बाज़ारो जोड़ने की भी उतनी ही आवश्यकता है। अत: कृषि विपणन में सुधारों की दिशा में राज्यों को एक प्रमुख भूमिका निभानी होगी।
    • APMC कानून के तहत किसानों को अपनी उपज केवल लाइसेंस प्राप्त APMC व्यापारियों को बेचने को मज़बूर किया जाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकांश भारतीय किसान, विशेष रूप से छोटे एवं सीमांत कृषक अपनी उपज को बिचौलियों को गाँव में या विनियमित बाज़ार के बाहर स्थानीय बाज़ारों में बेचते हैं।
    • यह ज़रूरी नहीं है कि APMC अधिनियम के सभी प्रतिबंधों को हटाने के बाद भी बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा देखने को मिले।
    • प्रत्येक बाज़ार स्थान पर किसानों तथा व्यापारियों के मध्य संपर्क स्थापित करना चाहिये।

कृषि विपणन सुधारों में राज्यों द्वारा अपनाए गए मॉडल:

  • बिहार राज्य में APMC अधिनियम के तहत सभी प्रतिबंधों को हटा देने के बावजूद राज्य में औपचारिक माध्यमों द्वारा बहुत कम खरीद देखने को मिली है। जब प्रतिबंधों को हटाने के बाद निगमों ने खरीद प्रक्रिया में प्रवेश किया तो निगमों द्वारा अधिकतर खरीद बड़े व्यापारियों से ही की गई जबकि किसानों से प्रत्यक्ष क्रय बहुत कम किया गया। 
  • मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों ने APMC कानूनों के निरसन के बजाय विनियामक उपायों को अपनाया है, तथा इसके परिणाम काफी अच्छे रहे हैं।
  • इससे कृषि मंडियों के तुलनात्मक लाभ को बढ़ावा मिला है। सीमित विनियमन से सभी स्थानीय बाज़ारों में  अनेक खरीदारों (Multi-Buyer) की उपलब्धता तथा बाज़ारों में व्यापक वस्तुओं (Multi-Commodity) की उपलब्धता संभव हो पाई तथा परिणाम सकारात्मक रहे।

आगे की राह:

  • नवीन तकनीक आधारित कृषि विपणन प्रणाली सफल होगी यदि नवीन विपणन प्रणाली उत्पादकों को अधिक विपणन विकल्प उपलब्ध कराए तथा उत्पादकों से जुड़ी वास्तविक बाधाओं को दूर करने का प्रबंधन करे। 
  • ये विपणन प्रणालियाँ जमीनी स्तर पर किसानों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं का समाधान यथा ऋण उपलब्धता, आगत आपूर्ति, भंडारण सुविधा, तथा परिवहन सुविधाओं का विस्तार करने में सक्षम हो।

निष्कर्ष: 

  • कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है अत: कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिये विनियामक सुधार के लिये वर्तमान विनियमन संस्थाओं तथा कानूनों को बदलने के स्थान पर आवश्यक सुधार करने चाहिये। कृषि-व्यवसाय में ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’ (Micro- Small and Medium Enterprises- MSMEs) के प्रवेश के लिये आवश्यक उपाय अपनाने होंगे। हमें भारत के कृषि बाज़ारों की विविधता, गतिशीलता, उद्यमशीलता को मज़बूत करना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

GST पर आपदा उपकर

प्रीलिम्स के लिये

वस्तु एवं सेवा कर, आपदा उपकर

मेन्स के लिये

GST क्षतिपूर्ति से संबंधित विभिन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?

कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न वित्तीय संकट से निपटने के लिये केंद्र सरकार वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax-GST) पर आपदा उपकर (Calamity Cess) लगाने पर विचार कर रही है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि वित्त मंत्री के समक्ष GST पर 5 प्रतिशत वाली स्लैब के अतिरिक्त अन्य सभी स्लैबों से अतिरिक्त धन जुटाने के लिये आपदा उपकर का प्रस्ताव रखा गया है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 279A(4)(F) के अनुसार, GST परिषद किसी भी प्राकृतिक आपदा के दौरान उपकर लागू करने की सिफारिश कर सकती है।
  • इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार राज्यों को GST का मुआवजा देने के लिये बाज़ार ऋण लेने पर भी विचार कर रही है। साथ ही मुआवज़े की समय सीमा के विस्तार पर भी विचार कर रही है।

आलोचना

  • हालाँकि विभिन्न विश्लेषक केंद्र सरकार के इस विचार को उचित नहीं मान रहे हैं, क्योंकि देश के उद्योग पहले से ही गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं।
  • इस प्रकार के उपकर से उपभोक्ताओं पर काफी प्रभाव पड़ेगा। इन सभी विषयों पर विचार करने के लिये कुछ समय में GST परिषद की बैठक बुलाई जाएगी।
    • GST परिषद केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली एक संवैधानिक संस्था है और इसमें सभी राज्यों के वित्त/राजस्व और वित्त राज्य मंत्री शामिल होते हैं। यह GST से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सिफारिशें/सुझाव देती है।

केरल का उदाहरण

वर्ष 2018 में केरल में मानसून के समय आई बाढ़ के बाद वित्तीय संसाधन जुटाने के लिये केरल सरकार ने अगस्त, 2019 में दो वर्ष की अवधि के लिये पहली बार आपदा राहत उपकर (Disaster Relief Cess) अधिरोपित करने की घोषणा की थी। इस प्रकार केरल वह एकमात्र राज्य है जिसने इस प्रकार का उपकर लागू किया है। उल्लेखनीय है कि GST परिषद की सिफारिशों के अनुसार ही, GST कानून में संशोधन किये गए थे और केरल सरकार को 1 प्रतिशत उपकर लगाने की अनुमति दी गई थी।

GST क्षतिपूर्ति

  • 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के लागू होने के बाद 1 जुलाई, 2017 से GST संपूर्ण देश में लागू हो गया। इसमें बड़ी संख्या में केंद्र और राज्य स्तर पर लगने वाले अप्रत्यक्ष कर एक ही कर में विलीन हो गए।
  • केंद्र ने GST के लागू होने की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि तक GST कार्यान्वयन के कारण कर राजस्व में आने वाली कमी के लिये राज्यों को क्षतिपूर्ति देने का वादा किया था। केंद्र सरकार के इस वादे के चलते बड़ी संख्या में अनिच्छुक राज्य नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था पर हस्ताक्षर करने के लिये सहमत हो गए थे।
  • GST अधिनियम के तहत वर्ष 2022 यानी GST कार्यान्वयन के बाद पहले पाँच वर्षों तक GST कर संग्रह में 14 प्रतिशत से कम वृद्धि (आधार वर्ष 2015-16) दर्शाने वाले राज्यों के लिये क्षतिपूर्ति की गारंटी दी गई है। केंद्र द्वारा राज्यों को प्रत्येक दो महीने में क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 23 मई, 2020

PPE किट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक

भारत दो महीने से भी कमी की अवधि में विश्व में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment- PPE) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। हालाँकि, कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी से बचाव के लिये आवश्यक PPE किट के उत्पादन में चीन अभी भी अग्रणी देश बना हुआ है। वस्त्र मंत्रालय द्वारा इस संबंध में जारी बयान के अनुसार, सरकार द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिये कई कदम उठाए जा रहे हैं कि आगामी समय में PPE किट की गुणवत्ता और मात्रा में वांछित स्तर तक सुधार किया जाए। ध्यातव्य है कि वस्त्र मंत्रालय ने यह सुनिश्चित किया है कि PPE किट की पूरी आपूर्ति श्रृंखला में केवल प्रमाणित उत्पादनकर्त्ता उत्पादन कर सकें। व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) की जाँच और प्रमाणन के कार्य के लिये देश भर की कुल 9 प्रयोगशालाओं को मान्यता दी गई है। विदित हो कि हाल ही में वस्त्र समिति, मुंबई को भी स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य COVID-19 योद्धाओं के लिये आवश्यक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protective Equipment-PPE) के परीक्षण और प्रमाणन का कार्य दिया गया था। व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) एक प्रकार का चिकित्सीय उपकरण होता है, जिसे आमतौर पर मेडिकल पेशेवरों द्वारा प्रयोग किया जाता है। यह न केवल डॉक्टरों, नर्सों जैसे चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा करता है, बल्कि घातक बीमारी के प्रसार को रोकने में भी मदद करता है।

चीन की कंपनियों को सूचीबद्ध होने से रोकने के लिये बिल पारित

हाल ही में अमेरिकी सीनेट (US Senate) ने चीन की कुछ कंपनियों को अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने से रोकने के उद्देश्य से एक बिल को मंज़ूरी दी है। इस बिल के अनुसार, चीन की कंपनियों को तब तक अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध नहीं किया जाएगा, जब तक वे इस संबंध में अमेरिका के सभी नियमों का पालन नहीं करती हैं। एक अनुमान के अनुसार, इस बिल से चीन की लगभग 800 कंपनियों को अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज से बाहर कर दिया जाएगा। इस बिल को कोरोना वायरस (COVID-19) और व्यापार से संबंधित मुद्दों पर विश्व की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मध्य तनाव के रूप में देखा जा सकता है। अमेरिकी सीनेट (US Senate) द्वारा पास किये गए बिल के अनुसार, कंपनियों को यह प्रमाणित करना होगा कि वे किसी भी विदेशी सरकार के नियंत्रण में कार्य नहीं कर रही हैं। यह बिल अमरीकी कांग्रेस के निम्न सदन ‘प्रतिनिधि सभा’ (House of Representative) में भेजा जाएगा। ‘प्रतिनिधि सभा’ से पारित होने के पश्चात् इस बिल को कानून बनने के लिये राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा। 

हुनर ​​हाट

कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के बीच देश में एक बार पुनः ‘हुनर हाट’ का आयोजन किया जाएगा। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अनुसार, ‘हुनर हाट’ का आयोजन सितंबर 2020 में ‘लोकल से ग्लोबल’ थीम के साथ किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि बीते पाँच वर्षों में 5 लाख से अधिक भारतीय दस्तकारों, शिल्पकारों को रोज़गार के अवसर प्रदान करने वाले ‘हुनर हाट’ के दुर्लभ हस्तनिर्मित स्वदेशी सामान आम लोगों में काफी लोकप्रिय हुए हैं। देश के दूर-दराज़ के क्षेत्रों के दस्तकारों, शिल्पकारों, कारीगरों, हुनर के उस्तादों को मौका देने वाला ‘हुनर हाट’ स्वदेशी हस्तनिर्मित उत्पादनों का ‘प्रामाणिक ब्रांड’ बन गया है। इस संबंध में जानकारी देते हुए अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय मुख्तार अब्बास नकवी ने बताया कि ‘हुनर हाट’ में सोशल डिस्टेंसिंग, साफ-सफाई, सैनिटाईज़ेशन और मास्क आदि की विशेष व्यवस्था की जाएगी, साथ ही इसमें एक ‘जान भी जहान भी’ पवेलियन होगा जहाँ लोगो को ‘पैनिक नहीं प्रीकॉशन’ की थीम पर जागरूकता पैदा करने वाली जानकारी दी जाएगी। ध्यातव्य है कि हुनर ​​हाट योजना के माध्यम से पारंपरिक शिल्पकला और रोज़गार सृजन को बढ़ावा दिया जा रहा है। हुनर हाट के आयोजन के माध्यम से उत्पादों की बाज़ार तक पहुँच को भी आसान किया जा रहा है।

खादी फेस मास्क

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा गैर-चिकित्सा मास्क के निर्यात पर लगी रोक हटाने के बाद खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) संयुक्त राज्य अमेरिका, दुबई और मॉरीशस जैसे देशों को खादी फेस मास्क (Khadi Face Masks) का निर्यात करने की योजना बना रहा है। KVIC को अब तक 8 लाख मास्क की आपूर्ति करने के आदेश मिले हैं, जिनमें से, लॉकडाउन अवधि के दौरान 6 लाख से अधिक मास्क की आपूर्ति की जा चुकी है। ये सभी आदेश राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्र सरकार के मंत्रालयों और आम जनता से प्राप्त किये गए थे। वहीं लगभग 7.5 लाख से अधिक खादी मास्क ज़िला प्राधिकरण को मुफ्त में वितरित किये गए हैं। ध्यातव्य है कि खादी मास्क न केवल गुणवत्ता मानक पर खरा उतरता है बल्कि प्रभावी लागत, श्वास सुगमता, धोने योग्य और पुनः प्रयोग में लाने के साथ ही जैव अवरोधक भी है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग 'खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956' के तहत एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है। यह भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of MSME) के अंतर्गत आने वाली एक मुख्य संस्था है।


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