डेली न्यूज़ (22 Jul, 2020)



अमेरिका-चीन तकनीक युद्ध

प्रीलिम्स के लिये

5G तकनीक, चीन की हुआवे कंपनी 

मेन्स के लिये

अमेरिका और चीन के तकनीक युद्ध का वैश्विक भू-राजनीति पर प्रभाव, इस संबंध में भारत की स्थिति

चर्चा में क्यों?

बीते कुछ वर्षों में उद्योग विकास और तकनीक के मुद्दे पर अमेरिका तथा चीन के मध्य तनाव में काफी तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है, बीते एक दशक में वैश्विक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दो दिग्गज देशों के बीच यह एक द्वंद्वयुद्ध के रूप में परिवर्तित होता दिखाई दे रहा है। 

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष मई माह में चीन की दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी हुआवे (Huawei) द्वारा अमेरिकी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किये जाने पर अंकुश लगाते हुए अमेरिका ने उस पर कई प्रतिबंध अधिरोपित किये थे। 
  • चीन के लिये यह कार्रवाई ऐसे समय में आई है, जब वैश्विक स्तर पर लगभग सभी देशों में 5G को शुरू करने की तैयारी की जा रही है, जिसमें सामान्यतः यह माना जा रहा है कि हुआवे 5G की इस इस प्रतियोगिता में सबसे आगे है।
  • गौरतलब है कि विश्व के अधिकांश देशों को व्यावहारिक तौर पर 5G शुरू करने के लिये चीन की तकनीक की आवश्यकता होगी।
  • किंतु चीन में 5G नेटवर्क अमेरिका से आए प्रमुख घटकों पर निर्भर करता है और चिपमेकिंग टूल के उपयोग पर नए अमेरिकी प्रतिबंध का अर्थ है कि हुआवे विशिष्ट प्रकार की चिप्स की आपूर्ति में कमी का सामना कर सकती है।

अमेरिका-चीन तकनीक युद्ध

  • अमेरिका में चीन की कंपनी हुआवे (Huawei) को लेकर सदैव से ही सुरक्षा संबंधी मुद्दे उठते रहे हैं। वर्ष 2011 में हुआवे कंपनी ने अमेरिकी सरकार को एक खुला पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें कंपनी या उसके उपकरणों के बारे में उठाई गई सुरक्षा चिंताओं से स्पष्ट तौर पर इनकार करते हुए अपने कॉर्पोरेट संचालन में संपूर्ण जाँच का अनुरोध किया गया था।
  • इस संबंध में प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिकी प्रशासन ने नवंबर 2011 में अमेरिका में व्यापार कर रही चीन की दूरसंचार कंपनियों के कारण उत्पन्न खतरों की जाँच शुरू की।
  • वर्ष 2012 में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में संबंधित समिति ने उल्लेख किया था कि हुआवे और चीन की एक अन्य दूरसंचार कंपनी ज़ेडटीई (ZTE) को विदेशी राष्ट्र जैसे चीन आदि के प्रभाव से मुक्त नहीं माना जा सकता है और इस प्रकार ये कंपनियाँ संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये एक सुरक्षा खतरा उत्पन्न करती हैं।
  • गौरतलब है अमेरिका के संघीय संचार आयोग (FCC) ने अमेरिका के सुरक्षा संबंधी हितों को ध्यान में रखते हुए चीन की कंपनी हुआवे और ज़ेडटीई (ZTE) के उपकरणों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था, साथ ही आयोग ने दोनों कंपनियों को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरे के रूप में भी नामित किया था।
  • अधिकांश विशेषज्ञ अमेरिका और चीन के बीच इस तनाव को एक ‘तकनीकी शीत युद्ध’ के रूप में देख रहे हैं और उनका मानना है कि यह तकनीक युद्ध अमेरिका-चीन की परिधि से भी आगे जा सकता है और भारत समेत विभिन्न देशों के हितों को प्रभावित कर सकता है।
  • इसे प्रौद्योगिकी पर एक भू-राजनीतिक संघर्ष के रूप में वर्णित किया जा रहा है, जो कि संपूर्ण विश्व को मुख्यतः दो अलग-अलग तकनीकी क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
  • अमेरिका ने हुआवे को इस आधार पर प्रतिबंधित किया है कि उसके द्वारा विकसित किये गए उपकरणों का प्रयोग जासूसी के उद्देश्य से किया जा रहा है।

Huawei

प्रौद्योगिकी हार्डवेयर बाज़ार में चीन का वर्चस्व 

  • प्रौद्योगिकी हार्डवेयर बाज़ार में चीन की यात्रा की शुरुआत टेक्नोलॉजी कंपनी हुआवे (Huawei) के साथ ही हुई थी, इस प्रकार प्रौद्योगिकी हार्डवेयर बाज़ार में चीन के वर्चस्व को समझने के लिये आवश्यक है कि चीन की टेक कंपनी हुआवे की विकास यात्रा को समझा जाए।
  • असल में हुआवे (Huawei) कंपनी की शुरुआत ही पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के एक पूर्व डिप्टी रेजिमेंटल चीफ द्वारा 1980 के दशक के अंत में की गई थी। 
  • हुआवे ने अपने कार्य की शुरुआत हॉन्गकॉन्ग से आयातित PBX स्विच (PBX Switches) के पुनर्विक्रेता के रूप में की थी।
  • कंपनी ने धीरे-धीरे अपने व्यापार का विस्तार किया और अपने उत्पादों और सेवाओं की बिक्री को 170 से अधिक देशों तक पहुँचा दिया।
    • वर्ष 2012 में चीन की कंपनी हुआवे (Huawei) ने विश्व की सबसे बड़े टेलीकॉम उपकरण निर्माता के रूप में एरिक्सन (Ericsson) को पीछे छोड़ दिया।
  • वहीं कंपनी ने वर्ष 2018 में विश्व के दूसरे सबसे बड़े स्मार्टफोन निर्माता के रूप में एप्पल (Apple) को पीछे छोड़ दिया।
  • आँकड़ों के अनुसार, बीते वर्ष 2019 में कंपनी का कुल वार्षिक राजस्व 122 बिलियन डॉलर था, वहीं कंपनी में लगभग 194,000 कर्मचारी कार्यरत थे।
  • इस प्रकार कंपनी के विकास के साथ प्रौद्योगिकी हार्डवेयर बाज़ार में चीन का वर्चस्व बढ़ता गया। वर्तमान में हुआवे कंपनी वैश्विक स्तर पर चीन के उदय का प्रतिक बनी हुई है।

चीन-अमेरिका तकनीक युद्ध में भारत की स्थिति

  • दिसंबर 2009 में दूरसंचार विभाग (DoT) ने चीन के उपकरणों पर लगे जासूसी के आरोप के बाद भारतीय मोबाइल निर्माता कंपनियों से स्पष्ट तौर पर कहा था कि चीन की उपकरण निर्माता कंपनियों के साथ सभी सौदों को निलंबित कर दिया जाए।
  • हालाँकि इसके बाद से भारत तठस्थ स्थिति में रहा है और भारत ने कभी भी अपने टेलीकॉम उपकरण उद्योग से चीनी कंपनियों को पूरी तरह से प्रतिबंधित नहीं किया है।
  • दरअसल, भारत की अधिकतर टेलीकॉम कंपनियों के विकास में चीन की कंपनियों ने हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर स्तर पर काफी समर्थन किया है।
  • हालाँकि लद्दाख में हुए गतिरोध के पश्चात् भारत ने राज्य के स्वामित्त्व वाले सभी दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को अपने नेटवर्क अनुबंध के दायरे से चीनी कंपनियों को बाहर करने के लिये कहा था।
    • सरकार के इस निर्णय को भारतीय बाज़ार में चीन से आने वाली तकनीक और निवेश के वर्चस्व पर अंकुश लगाने के व्यापक निर्णय के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त हाल ही में भारत ने चीन कुल 59 एप्स पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। 
  • हालाँकि भारत ने अभी तक चीन की कंपनियों पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है, क्योंकि विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके कारण भारतीय बाज़ार को भी काफी नुकसान पहुँच सकता है, किंतु भारत और चीन के बीच हो रहा सीमा संघर्ष तथा इस विषय में अमेरिका की कार्रवाई भारत को भी चीन के विरुद्ध कार्रवाई करने अथवा कोई बड़ा कदम उठाने के लिये मज़बूर कर सकता है। 

आगे की राह

  • इस संबंध में उपलब्ध डेटा के अनुसार, विश्व के कई देशों में चीन की दिग्गज टेक कंपनी हुआवे को या तो पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया है अथवा उसे कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में वर्जित कर दिया गया है, वहीं कुछ ऐसे देश भी हैं जिन्होंने चीन की कंपनी को लेकर गंभीर चिंताएँ व्यक्त की हैं।
  • ऐसे में आवश्यक है कि इन आरोपों की निष्पक्ष जाँच की जाए और इस जाँच के दौरान सभी हितधारकों को अपना प्रतिनिधित्त्व करने का अवसर दिया है।
  • जानकर मानते हैं कि चीन और अमेरिका के बीच चल रहे इस तकनीकी द्वंदयुद्ध से विश्व के कई अन्य देश भी प्रभावित हो सकते है, ऐसे में अमेरिका और चीन दोनों ही देशों को यह ध्यान रखना चाहिये कि उनके व्यक्तिगत हितों के टकराव में विश्व के छोटे और विकासशील देशों को समस्या का सामना न करना पड़े।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


'क्वाड पहल' को पुनर्जीवित और विस्तारित करने की आवश्यकता

प्रीलिम्स के लिये:

क्वाड पहल, मालाबार अभ्यास  

मेन्स के लिये:

क्वाड का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

चीन के साथ भारत तथा अन्य देशों जैसे अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि के बढ़ते तनाव के बीच भारत को अपनी सामुद्रिक रक्षा रणनीतियों जैसे क्वाड आदि को नए तथा विस्तारित स्वरूप में प्रारंभ करने की आवश्यकता है। 

प्रमुख बिंदु:

  • ‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (Quadrilateral Security Dialogue) अर्थात क्वाड भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता मंच है। 
  • यह 'मुक्त, खुले और समृद्ध' भारत-प्रशांत क्षेत्र को सुनिश्चित करने और समर्थन करने के लिये इन देशों को एक साथ लाता है।

Quad-Initiative

क्वाड की पृष्ठभूमि:

वर्ष 2004 की सुनामी और क्वाड: 

  • क्वाड अवधारणा की उत्पत्ति 26 दिसंबर, 2004 को आई एशियाई सुनामी से मानी जा सकती है।
  • भारत सेना ने अपने जहाज़ों, विमानों और हेलीकॉप्टरों के माध्यम से श्रीलंका, मालदीव और इंडोनेशिया जैसे देशों को सहायता प्रदान करके अपनी विश्वसनीयता साबित की। 

ओकिनावा तट पर सैन्य अभ्यास:

  • वर्ष 2007 में मालाबार अभ्यास पहली बार हिंद महासागर के बाहर जापान के ओकिनावा द्वीप के पास आयोजित किया गया। इस अभ्यास में भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर ने भाग लिया। 
  • इस अभ्यास के बाद भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा एक बैठक का आयोजन किया गया जिसे 'चतुर्भुज पहल' (Quadrilateral Initiative) नाम दिया गया।

मालाबार नौसैनिक अभ्यास: 

  • मालाबार नौसैनिक अभ्यास भारत-अमेरिका-जापान की नौसेनाओं के बीच वार्षिक रूप से आयोजित किया जाने वाला एक त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास है।    
  • मालाबार नौसैनिक अभ्यास की शुरुआत भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 1992 में एक द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास के रूप में हुई थी। 
  • वर्ष 2015 में इस अभ्यास में जापान के शामिल होने के बाद से यह एक त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास बन गया।
  • भारत सरकार द्वारा ऑस्ट्रेलिया को  ‘मालाबार नौसैनिक अभ्यास’ में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।

क्वाड के समक्ष चुनौतियाँ:

  • चीन के क्षेत्रीय दावे तथा देशों के साथ विवाद;
  • आसियान देशों के साथ चीन की निकटता;
  • चीन की आर्थिक शक्ति;
  • क्वाड देशों के बीच व्यापार जैसे अनेक मामलों को लेकर टकराव; 

क्वाड में नवीन सुधारों की आवश्यकता:

 औपचारिक स्वरूप देने की आवश्यकता:

  • क्वाड को औपचारिक स्वरूप देकर इसके पुनरुद्धार और पुन: स्फूर्ति के साथ प्रारंभ करने की आवश्यकता है। 

विस्तार की आवश्यकता:

  • समूह में समान विचारधारा रखने वाले अन्य देशों को भी शामिल करने की आवश्यकता है। 
  • ऐसे देश जिनका चीनी के साथ समुद्री सीमा विवाद है तथा शांति बनाए रखने के लिये संयुक्त राष्ट्र के समुद्र संबंधी कानून के पालन को सुनिश्चित करना चाहते हैं, उन देशों को मिलाकर 'इंडो-पैसिफिक समझौते' जैसी पहल प्रारंभ की जा सकती है।

निष्कर्ष:

  • भारत एक परमाणु-हथियार संपन्न,  प्रमुख भूमि/वायु शक्ति, साथ ही बढ़ती अर्थव्यवस्था और आकर्षक बाज़ार के रूप में भारत की पहचान से पूरा विश्व परिचित है। वर्तमान में भारत इंडो-पैसेपिक में अपनी प्रभावी भूमिका सुनिश्चित करना चाहता है, इसके लिये भारत को समुद्र आधारित शक्ति प्रदर्शन और क्षेत्र में प्रभावी क्षमता का प्रदर्शन करना होगा। 

स्रोत: द हिंदू


LAC के संदर्भ में चीन के दावे में अंतर

प्रीलिम्स के लिये:

पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) झील, गलवान घाटी, LAC

मेन्स के लिये:

भारत-चीन सीमा विवाद

चर्चा में क्यों?

वर्ष 1960 की भारत-चीन सीमा वार्ता के आधिकारिक दस्तावेज़ के अनुसार, वर्तमान में चीनी सैनिक पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) और गलवान घाटी (Galwan Valley) में वर्ष 1960 के अपने दावे वाले क्षेत्र से बहुत आगे आ गए हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • 15 जून, 2020 को गलवान नदी के घुमाव के पास चीनी सैनिकों द्वारा टेंट लगाने के कारण दोनों पक्षों में हुई हिंसक झड़पों में 20 भारतीय और कई (संख्या अज्ञात) चीनी सैनिकों की मृत्यु हो गई। 
  • आधिकारिक दस्तावेज़ के अनुसार, यह स्थान वर्ष 1960 में क्षेत्र में चीन के दावे से बहुत बाहर है।
  • आधिकारिक दस्तावेज़ ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control- LAC) की स्थिति के संदर्भ में चीन के दावे का खंडन करते हैं। 
  • साथ ही यह हाल ही में कुछ शीर्ष भारतीय अधिकारियों द्वरा दिए गए बयान पर भी प्रश्न उठाते हैं, जिसमें कहा गया कि चीनी सेना भारतीय क्षेत्र में नहीं मौजूद है।

वर्तमान सीमा समस्या:

  • पैंगोंग त्सो (Pangong Tso)  क्षेत्र में LAC के संदर्भ में चीन की वर्तमान दावे और आधिकारिक दस्तावेज़ों में दर्ज इसकी अवस्थिति की तुलना करने पर स्पष्ट होता है कि वर्ष 1960 के बाद से चीन LAC से 8 किमी पश्चिम के क्षेत्र में दाखिल हो चुका है।
  • चीन के हालिया दावे के अनुसार, फिंगर 4 (Finger 4) तक का हिस्सा चीनी अधिकार क्षेत्र में आता है जबकि भारत फिंगर 8 को LAC की वास्तविक भौतिक स्थिति बताता है। 
    •  पैंगोंग झील के तट पर स्थित पर्वत स्कंदों (Mountain Spurs) को ‘फिंगर’ के नाम से संबोधित किया जाता है। इस क्षेत्र में ऐसे 8 पर्वत स्कंद हैं जो 1-8 तक पश्चिम से लेकर पूर्व की तरफ फैले हैं।
  • इससे पहले भी चीन ने वर्ष 1999 में फिंगर-4 तक एक सड़क का निर्माण कर क्षेत्र पर अपने प्रभुत्त्व को स्थापित किया था, परंतु हाल ही में चीन फिंगर-8 पर स्थित LAC तक भारत के संपर्क को पूरी तरह रोकते हुए प्रभावी रूप से 8 किमी पश्चिम की तरफ आ गया है। 

Pangong-Lake      

  • चार दौर की कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के बाद चीन की सेना फिंगर 4 से फिंगर 5 पर पीछे हट गई है, जबकि भारतीय सेना पश्चिम की तरफ आते हुए फिंगर 2 पर आ गई।    

सीमा वार्ता:

  • केंद्रीय विदेश मंत्रालय द्वारा प्रकाशित दस्तावेज़ों के अनुसार, वर्ष 1960 की सीमा वार्ता के समय चीन ने क्षेत्र में अपने अधिकार क्षेत्र के दावे को रेखांकित/स्पष्ट किया था।
  • वर्ष 1960 में दिल्ली में भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के शीर्ष नेता ‘झोउ एनलाई’ (Zhou Enlai) के बीच हुई सीमा वार्ता के दौरान इस गतिरोध को रोकने में असफल होने के बाद यह निर्णय लिया गया कि दोनों पक्षों के अधिकारी दोनों पक्षों के दावों के समर्थन के लिये एक दूसरे के तथ्यात्मक दस्तावेज़ों की जाँच के लिये पुनः मिलेंगे।
  • इसके पश्चात दोनों पक्षों के बीच 3 दौर की बैठकों का आयोजन किया गया। 
  • इसके तहत 15 जून, 1960 से 25 जुलाई, 1960 के बीच बीजिंग में पहले दौर की बैठक , 19 अगस्त, 1960 से 5 अक्तूबर, 1960 तक दिल्ली में दूसरे दौर की बैठक का आयोजन किया गया। 
  • 12 दिसंबर, 1960 को रंगून (वर्तमान यांगून ) में आयोजित तीसरे दौर की बैठक में एक आधिकारिक रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किये गए ।
  • इस रिपोर्ट में चीन द्वारा LAC की अवस्थिति के संदर्भ में स्वीकार किये गए निर्देशांक (देशांतर 78 डिग्री 49 मिनट पूर्व, अक्षांश 33 डिग्री 44 मिनट उत्तर) फिंगर 8 के क्षेत्र के आस-पास के हैं।
  • इसी प्रकार वर्तमान में चीन वर्ष 1960 की रिपोर्ट में गलवान घाटी में LAC की अवस्थिति के संदर्भ में गए निर्देशांक वाले क्षेत्र से काफी आगे आ चुका है।  
  • वर्ष 1960 के दस्तावेजों के अनुसार, गलवान घाटी में LAC गलवान नदी के मोड़ जिसे Y-नाला (Y-Nallah) भी कहते हैं, के पूर्वी भाग से होकर गुजरती थी।
    • भारत और चीन के सैनिकों के बीच हालिया झड़प Y-नाला क्षेत्र में ही हुई थी।   

Galwan-Valley           

चीन की बढती आक्रामकता का कारण:

  • भारत और अमेरिका के बीच परस्पर सहयोग में वृद्धि को सीमा पर चीन की बढ़ती आक्रामकता का एक कारण माना जा सकता है।
  • पिछले वर्ष भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाए जाने और अप्रैल 2020 में भारत की थल सीमा से सटे देशों से आने वाले ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (Foreign Direct Investment- FDI) पर नियम सख्त करने के भारत सरकार के निर्णय से भारत-चीन तनाव में वृद्धि हुई थी। 
  • भारत द्वारा सीमा से सटे क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ करने (जैसे-दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी' सड़क का निर्माण) और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के बढ़ते वर्चस्व से भी चीन संतुष्ट नहीं रहा है।  

आगे की राह:

  • हाल के वर्षों में LAC के आस-पास रणनीतिक बुनियादी ढाँचे के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिससे सीमा पर स्थिति सुदूर और दुर्गम गश्ती इलाकों में सेना का वर्चस्व बड़ा है।
  • भारत को इलेक्ट्रानिक उत्पादों और ‘सक्रिय दवा सामग्री’ (Active Pharmaceutical Ingredient-API)  जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में चीनी आयात पर निर्भरता को शीघ्र ही कम करने का प्रयास करना चाहिये।
  • सीमा पर हिंसक झड़पों को रोकने के लिये द्विपक्षीय बैठकों के अतिरिक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिये ‘क्वाड’ (QUAD) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों के माध्यम से अपनी सैन्य क्षमता और सक्रियता को बढ़ाया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


प्रवासियों के लिये सामाजिक सुरक्षा संख्या का विचार

प्रीलिम्स के लिये:

सामाजिक सुरक्षा संख्या

मेन्स के लिये:

सामाजिक सुरक्षा कोड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'श्रम पर संसदीय स्थायी समिति' (Parliamentary Standing Committee on Labour) ने प्रवासी श्रमिकों; विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र, के लिये ‘सामाजिक सुरक्षा संख्या’ (Social Security Number- SSN) पेश करने की सिफारिश की है। 

प्रमुख बिंदु:

  • हाल ही में 'श्रम और रोजगार मंत्रालय' (Ministry of Labour and Employment) प्रवासी श्रमिकों की संख्या पर कोई ठोस आँकड़े उपलब्ध कराने में असमर्थ पाया गया तथा प्रवासी श्रमिकों के आँकड़े उपलब्ध कराने के लिये रेलवे मंत्रालय के आँकड़ों का हवाला दिया।
  • रेल मंत्रालय के अनुसार, लगभग 1.08 करोड़ प्रवासी श्रमिकों द्वारा ‘विशेष श्रमिक’(Special Shramik) एक्सप्रेस ट्रेनों में यात्रा की गई थी।
    • हालाँकि इन आंकड़ों की सत्यता पर इस आधार पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि इन ट्रेनों का श्रमिकों के साथ-साथ छात्रों और श्रमिकों के परिवार के सदस्यों ने भी उपयोग किया था।  

सामाजिक सुरक्षा संख्या (Social Security Number):

  • प्रवासियों को कल्याणकारी कार्यक्रमों का लाभ देने के लिये आधार कार्ड से भिन्न एक ‘सामाजिक सुरक्षा संख्या’ (Social Security Number) दिया जाना चाहिये । 
  • SSN बीमा, स्वास्थ्य और अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों को कवर करने का एक अधिक प्रभावी तरीका हो सकता है। 
  • SSN का उपयोग लॉकडाउन जैसी परिस्थितियों में प्रवासी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में किया जाएगा।
  • SSN न केवल प्रवासी श्रमिकों की संख्या को जानने तथा मानचित्रण में बल्कि उनके प्रवासन प्रतिरूप को समझने में भी मदद करेगा।

समिति के अन्य सुझाव:

  • श्रमिकों के प्रवासन से जुड़े दोनों राज्यों अर्थात वह स्थान जहाँ से प्रवास किया है तथा वह स्थान जहाँ के लिये प्रवास किया है, संबंध में एक रिकॉर्ड रखा जाना चाहिये।
  • सामान्यत: ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ (PDS) ‘बॉयोमीट्रिक ऑथेंटिकेशन’ प्रणाली के लिये इंटरनेट तथा विद्युत की आवश्यकता होती है। अत: इस संबंध में ग्राम सभाओं तथा नगरपालिकाओं को अधिक अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये। 
  • हाल ही में कुछ राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में किये गए बदलाव और इसके श्रमिकों पर प्रभाव की भी समिति द्वारा चर्चा की गई।
  • चिंता के विषय:
  • ‘सामाजिक सुरक्षा कोड’ (Social Security Code) विधेयक- 2019 के तहत ‘सामाजिक सुरक्षा कोष’ की स्थापना को अनुमति दी गई है। कानून में इस बात का कोई विशेष विवरण नहीं है कि निधि में किसका योगदान होगा और इसका उपयोग किस प्रकार किया जाएगा।
  • 'पीएम गरीब कल्याण योजना' के तहत अधिकांश लाभार्थी स्थानीय श्रमिक थे न कि प्रवासी श्रमिक।

सामाजिक सुरक्षा कोड (Social Security Code):

  • केंद्र सरकार 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार व्यापक कोड में बदलने का कार्य कर रही है।
    • वेतन संहिता;
    • औद्योगिक संबंध संहिता;
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता;
    • पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्य शर्त संहिता;
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक सामाजिक सुरक्षा से संबंधित नौ कानूनों; जिसमें कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम- 1952, मातृत्व लाभ अधिनियम- 1961 और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम- 2008 भी शामिल हैं, को संशोधित और समेकित करता है। 
  • विधेयक एक सामाजिक सुरक्षा कोष स्थापित करने का प्रस्ताव करता है। यह फंड सभी श्रमिकों (गिग श्रमिकों सहित) को कल्याणकारी लाभ जैसे कि पेंशन, मेडिकल कवर प्रदान करेगा। 
  • संहिता सरकार द्वारा अधिसूचित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को संचालित करने के लिये कई निकायों की स्थापना का प्रावधान भी करती है।
  • संहिता मातृत्व लाभ संबंधी अवधारणा के विस्तार का भी प्रावधान करती है। 
  • संहिता विभिन्न अपराधों जैसे कि रिपोर्ट का मिथ्याकरण, आदि के लिये दंड को निर्दिष्ट करती है।

स्रोत: द हिंदू


दिल्ली सीरो-सर्वेक्षण

प्रीलिम्स के लिये:

नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल, एलिसा

मेन्स के लिये:

सीरो अध्ययन में सामने आए प्रमुख बिंदुओं का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल’ (National Centre for Disease Control-NCDC) ने नई दिल्ली में COVID-19 के लिये एक सीरो निगरानी अध्ययन का आयोजन किया।

प्रमुख बिंदु

  • सीरो निगरानी अध्ययन
    • विशिष्ट एंटीबॉडी की पहचान करना: सीरो-सर्वेक्षण अध्ययनों में लोगों के ब्लड सीरम की जाँच करके किसी आबादी या समुदाय में ऐसे लोगों की पहचान की जाती है, जिनमें किसी संक्रामक रोग के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो जाती हैं।
    • सीरो-निगरानी सर्वेक्षण इसलिये किया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि दिल्ली की कुल आबादी में से कितने अनुपात में लोग कोरोना वायरस से प्रभावित हैं और प्रत्येक ज़िले से लिये गए नमूनों की संख्या उस क्षेत्र की जनसंख्या के अनुपात में थी।
    • यह शरीर में सक्रिय संक्रमण का पता लगाने में काम नहीं आता है बल्कि यह पूर्व में हुए संक्रमण (जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पर वार करता है) को इंगित करता है।
    • एलिसा का प्रयोग करके इम्युनोग्लोबुलिन G का परीक्षण करना: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा अनुमोदित COVID कवच एलिसा किट के माध्यम से IgG एंटीबॉडीज़ और कोविड-19 संक्रमण के लिये सेरा (रक्त का एक हिस्सा) नमूनों का परीक्षण किया गया।
      • IgG (इम्यूनोग्लोबुलिन G) एक प्रकार का एंटीबॉडी है जो संक्रमण होने के लगभग दो सप्ताह में COVID-19 रोगियों में विकसित होता है और ठीक होने के बाद भी रक्त में मौजूद रहता है।
      • एलिसा (एंजाइम-लिंक्ड इम्युनोसॉरबेंट एसे) एक परीक्षण है जो रक्त में एंटीबॉडी का पता लगाता है, उनकी माप करता है।
  • यह अध्ययन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की दिल्ली सरकार के सहयोग से राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) द्वारा एक अत्यंत बहु-स्तरीय नमूना अध्ययन डिज़ाइन करने के बाद किया गया है। समय-समय पर बार-बार किया जाने वाला एंटीबॉडी परीक्षण यानी सीरो-निगरानी महामारी के प्रसार का आकलन करने के लिये महत्त्वपूर्ण साक्ष्य उपलब्ध कराता है।
  • नवीनतम अध्ययन का कवरेज:
    •  यह अध्ययन 27 जून, 2020 से 10 जुलाई, 2020 तक कराया गया था।
    • दिल्ली के सभी 11 ज़िलों से 21,387 नमूने एकत्र कर उनका परीक्षण किया गया। इन नमूनों को दो समूहों 18 वर्ष तक की आयु और 18 वर्ष से अधिक आयु वाले समूह में विभाजित किया गया था।
  • परिणाम:
    • सर्वेक्षण में शामिल 23.48% लोगों के शरीर ने कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली, जो यह दर्शाता है कि वे नोवल कोरोनोवायरस (SARS-CoV-2) के संपर्क में आए।
    • औसतन पूरी दिल्ली में IgG एंटीबॉडी की मौजूदगी लगभग 23.48% आबादी में पाई गई, इस अध्ययन के अनुसार कई संक्रमित लोगों में संक्रमण के लक्षण नहीं थे। इससे पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी के 11 ज़िलों में से आठ में 20 प्रतिशत से अधिक आबादी के शरीर में COVID-19 से लड़ने वाली एंटीबॉडी थी।
  • सरकार की प्रतिक्रिया:
    • महामारी के लगभग छह महीने में दिल्ली में केवल 23.48% लोग ही COVID-19 से प्रभावित हुए जो घनी आबादी वाले कई जगहों में से एक है। 
    • इसके लिये बीमारी का पता लगते ही लॉकडाउन लागू करना, रोकथाम के लिये प्रभावी उपाय करना और संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वाले लोगों का पता लगाने सहित कई निगरानी उपायों तथा सरकार द्वारा उठाए गए कई सक्रिय प्रयासों को श्रेय दिया जा सकता है। इसमें नागरिकों द्वारा COVID-19 से बचने के लिये उपयुक्त व्यवहार के अनुपालन की भी कम भूमिका नहीं है।
    • हालाँकि जनसंख्या का एक अहम हिस्सा आज भी संक्रमण की संभावना के लिहाज से आसान लक्ष्य है। इसलिये रोकथाम के उपायों को उसी कड़ाई के साथ जारी रखने की आवश्यकता है। 
    • एक-दूसरे से सुरक्षित दूरी बनाए रखना, फेस मास्क/कवर का उपयोग, हाथों की साफ-सफाई, खांसी के संबंध में शिष्टाचार का पालन और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचना आदि गैर-चिकित्सकीय उपायों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिये।
  • चिंता के कारण:
    • शेष 77 प्रतिशत लोगों के लिये कोरोना वायरस का खतरा अभी भी बना हुआ है, इसलिये रोकथाम के उपाय समान कठोरता के साथ जारी रहने चाहिये।
    • इसके अलावा, किसी व्यक्ति के COVID पॉज़िटिव होने के बाद उसके शरीर में मौजूद एंटीबॉडी के स्तर और अवधि में क्या परिवर्तन आया होगा इसके बारे में पर्याप्त वैज्ञानिक डेटा उपलब्ध नहीं है।
  • पूर्व के सीरो-निगरानी सर्वेक्षण:
    • इससे पहले अप्रैल 2010 में ICMR ने देश के 21 राज्यों के 83 ज़िलों में एक प्रारंभिक सीरो-प्रीवलेंस अध्ययन आयोजित किया था।
    • इस सीरो-प्रीवलेंस अध्ययन के शुरुआती परिणामों के अनुसार, 0.73 फीसदी आबादी के संक्रमित होने की संभावना है जिसमें शहरी आबादी की संख्या 1.09 फीसदी है।

आगे की राह:

  • अध्ययन के माध्यम से एकत्र किये गए आँकड़ों से रोग नियंत्रण कार्यक्रम में मदद मिलेगी।
  • इस तरह के वैज्ञानिक अध्ययन बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं, भविष्य में संबंधित विषय पर रणनीतियाँ तैयार करते समय इन अध्ययनों को आधार बनाकर संभावित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

स्रोत-द हिंदू


चीन द्वारा भूटान को भू-हस्तांतरण का प्रस्ताव

प्रीलिम्स के लिये:

डोकलाम विवाद, भारत-भूटान मैत्री संधि

मेन्स के लिये:

भारत-भूटान संबंध,  चीन की विस्तारवादी नीति 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने एक बार पुनः वर्ष 1996 के भू-हस्तांतरण के प्रस्ताव की ओर संकेत देते हुए भूटान और चीन के सीमा विवाद को सुलझाने के लिये भूटान को एक समाधान पैकेज का प्रस्ताव दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • चीन ने इस समाधान पैकेज के तहत विवादित पश्चिमी क्षेत्र (डोकलाम सहित) के बदले में उत्तर में स्थित विवादित क्षेत्रों को भूटान को देने का प्रस्ताव किया है ।
  • गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 1996 में चीन ने भूटान को पश्चिम में स्थित 269 वर्ग किमी. की चारागाह भूमि के बदले उत्तर में 495 वर्ग किमी के घाटियों वाले क्षेत्र को बदलने का प्रस्ताव रखा था।   
  • इस समझौते से भूटान को दोहरा लाभ प्राप्त हो सकता था। इस समझौते से भूटान को पहले से अधिक भूमि प्राप्त होती और साथ ही चीन के साथ उसके सीमा विवाद का भी अंत हो जाता। 
  • परंतु यह समझौता भारत के लिये एक बड़ी चिंता का विषय था, क्योंकि डोकलाम क्षेत्र के चीन के अधिकार में आने के बाद यह चीनी सेना को ‘सिलीगुड़ी गलियारे’ (Siliguri Corridor) के रणनीतिक रूप से संवेदनशील ‘चिकन नेक’ (Chicken Neck) तक की सीधी पहुँच प्रदान करेगा।

भूटान की पूर्वी सीमा पर अधिकार का दावा:

  • इस प्रस्ताव के अतिरिक्त हाल ही में चीनी विदेश मंत्रालय ने भूटान के ‘सकतेंग’ (Sakteng) शहर के निकट स्थित पूर्वी सीमा पर भी अपने अधिकार के दावे को दोहराया है।
  • चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार, चीन और भूटान के बीच सीमा का निर्धारण किया जाना बाकी है तथा वर्तमान में दोनों देशों की सीमा पर मध्य, पूर्वी और पश्चिमी हिस्से विवादित हैं।
  • हालाँकि भूटान ने ‘सकतेंग’ क्षेत्र में चीन के दावे का विरोध किया है। भूटान के अनुसार,  वर्ष 1984 से भूटान और चीन की सीमा वार्ताओं में सिर्फ दो क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
    • पहला उत्तर (जिसे चीन मध्य क्षेत्र बताता है) में पसमलंग (Pasamlung) और जकरलुंग (Jakarlung) घाटी। 
    • दूसरा पश्चिम में डोकलाम और अन्य चारागाह।    
  • अरुणाचल प्रदेश से लगती हुई भूटान की पूर्वी सीमा पर चीन और भूटान के बीच कोई विवाद नहीं रहा है। 
  • वर्ष 1984 से वर्ष 2014 के बीच भूटान और चीन के बीच हुई 24 दौर की सीमा वार्ताओं में भूटान के पूर्वी क्षेत्र में स्थित ‘सकतेंग’ क्षेत्र के मुद्दे को कभी भी नहीं उठाया गया था। 

 उद्देश्य:

  • विशेषज्ञों के अनुसार,  चीन द्वारा भूटान की सीमा पर किया गया नया दावा भूटान को चीन द्वारा प्रस्तावित सीमा समझौते को मानने पर विवश करने की एक नई रणनीति हो सकती है।
  • साथ ही चीन ने भूटान को इस बात का भी संकेत देने का प्रयास किया है कि यदि भूटान चीन के प्रस्ताव को नहीं मानता है, तो भविष्य में चीन का दावा बढ़ सकता है।
  • गौरतलब है कि 2-3 जून, 2020 को आयोजित ‘वैश्विक पर्यावरण सुगमता’ (Global Environment Facility- GEF) की एक ऑनलाइन बैठक में भूटान के सकतेंग क्षेत्र को विवादित क्षेत्र बताते हुए ‘सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य’ (Sakteng Wildlife Sanctuary) के विकास हेतु आर्थिक सहायता को रोकने का प्रयास किया था। 
  • इससे पहले चीन ने अरुणाचल प्रदेश के संदर्भ में भी भारत के समक्ष इसी प्रकार का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसके बाद वर्ष 1985 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के ‘तवांग’ क्षेत्र पर अपना दावा प्रस्तुत किया।

Sakteng-wildlife-sanctuary

  • भारत पर प्रभाव:
  • डोकलाम क्षेत्र में चीन की पहुँच भारत के लिये एक बड़ी चिंता का कारण बन सकती है। 
  • वर्ष 2017 के डोकलाम विवाद के समय भी भारतीय सेना की कार्रवाई का उद्देश्य भूटान की सहायता के साथ-साथ रणनीतिक दृष्टि से भारत के लिये महत्त्वपूर्ण इस क्षेत्र को चीनी हस्तक्षेप से बचाना था।  
  • हालाँकि भूटान ने डोकलाम में चीन द्वारा सड़क निर्माण के प्रयास को भूटान और चीन के बीच 1988 और 1998 की संधि का उल्लंघन बताया था।
  • वर्ष 2007 की भारत-भूटान मैत्री संधि के तहत दोनों ही देशों ने राष्ट्रीय हितों से जुड़े मुद्दों पर मिलकर  कार्य करने पर सहमति व्यक्त की है।

भारत-भूटान मैत्री संधि:

  • इस संधि पर 8 अगस्‍त, 1949 को दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) में हस्‍ताक्षर किये गए थे।
  • इस संधि के तहत भारत को विदेश मामलों (अनुच्छेद-2) और रक्षा से जुड़े मामलों में भूटान को सलाह देने पर सहमति व्यक्त की गई थी।
  • अगस्त 2007 में इस संधि में सुधार करते हुए दोनों देशों के बीच एक नई संधि पर हस्ताक्षर किये गए। 
  • वर्ष 2007 की संधि में भूटान की संप्रभुता जैसे मुद्दों को सम्मान देने की बात कही गई। 
  • इस संधि में भारत द्वारा भूटान को अनिवार्य सैन्य सहायता देने का प्रावधान नहीं है, परंतु वास्तव में आज भी भारतीय सेना भूटान को चीन की किसी आक्रामकता से बचाने के लिये प्रतिबद्ध है।      

आगे की राह:

  • भूटान के एक अधिकारी के अनुसार, भूटान की सीमा में चीन के किसी नए दावे से जुड़े मुद्दे को दोनों देशों की अगली सीमा वार्ता में उठाया जाएगा।
    • गौरतलब है कि वर्ष 2017 में डोकलाम में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुए 90 दिनों के गतिरोध के बाद से भूटान-चीन वार्ता को स्थगित कर दिया गया है। 
  • भारत के प्रति चीन की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए डोकलाम क्षेत्र को चीनी हस्तक्षेप से दूर रखना बहुत ही आवश्यक है। 

स्रोत: द हिंदू


मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम हेतु दक्षिण अफ्रीका को DDT की आपूर्ति

प्रीलिम्स के लिये:

ओथमार ज़ाइडलर,  मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम हेतु दक्षिण अफ्रीका को DDT की आपूर्ति का उपाय

चर्चा में क्यों?

रसायन और उर्वरक मंत्रालय के सार्वजनिक उपक्रम हिंदुस्तान इंसेक्टिसाइड्स लिमिटेड (Hindustan Insecticides Limite-HIL) ने मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के लिये दक्षिण अफ्रीका को 20.60 मिट्रिक टन DDT (Dichlorodiphenyltrichloroethane) की आपूर्ति की है।

प्रमुख बिंदु

  •  HIL इंडिया वित्‍त वर्ष 2020-21 में ज़िम्‍बाब्‍वे को 128 मीट्रिक टन DDT 75%WP (Wettable Powder) तथा जाम्‍बिया को 113 मीट्रिक टन DDT की आपूर्ति करने की प्रक्रिया में है।
  • DDT: 
    • यह एक रंगहीन, स्वादहीन और लगभग गंधहीन क्रिस्टलीय रासायनिक यौगिक है।
    • इसे पहली बार वर्ष 1874 में ऑस्ट्रिया के रसायनज्ञ ओथमार ज़ाइडलर (Othmar Zeidler) द्वारा संश्लेषित किया गया था।
    • इसके कीटनाशक प्रभाव की खोज स्विस रसायनज्ञ पॉल हरमन मुलर ने वर्ष 1939 में की थी।
    • वर्ष 1948 में इन्हें फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
    • मूल रूप से एक कीटनाशक के रूप में विकसित DDT अपने पर्यावरणीय प्रभावों के लिये चर्चा में रहता है।
    • स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन (Stockholm Convention on Persistent Organic Pollutants) के तहत कृषि में DDT के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है।
    • हालाँकि रोग वेक्टर नियंत्रण में इसका सीमित उपयोग अभी भी जारी है, क्योंकि मलेरिया संक्रमण को कम करने में यह काफी प्रभावी है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों से निपटने के लिये DDT को एक प्रभावी रसायन (Indoor Residual Spraying-IRS) के रूप में मानते हुए इसके इस्‍तेमाल का सुझाव दिया है। ऐसे में इसका उपयोग ज़िम्बाब्वे, जांबिया, नामीबिया, मोज़ाम्बिक आदि दक्षिणी अफ्रीकी देशों द्वारा व्यापक रूप से किया जाता है। भारत में भी मलेरिया से निपटने के लिये DDT का इस्‍तेमाल व्‍यापक रूप से किया जाता है।
    • दक्षिण अफ्रीका के स्वास्थ्य विभाग ने मलेरिया से सर्वाधिक प्रभावित मोज़ाम्बिक से सटे तीन प्रांतों में DDT का बड़े पैमाने पर इस्‍तेमाल करने की योजना बनाई है।
    • इस क्षेत्र में हाल के वर्षों में मलेरिया का काफी प्रकोप रहा है और इससे बड़ी संख्‍या में लोगों की मौत भी हुई है।
  • दूसरे देशों को आपूर्ति:
    • HIL इंडिया ने गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट स्‍तर पर ईरान को टिड्डी नियंत्रण कार्यक्रम (Locust Control Programme) के तहत 25 मीट्रिक टन मैलाथियान (Malathion) की तथा लैटिन अमेरिकी क्षेत्र को 32 मीट्रिक टन फंफूद नाशक कृषि रसायनों (Agrochemical-fungicide) की आपूर्ति की है। 

मलेरिया

  • मलेरिया पूरी दुनिया में एक बड़ी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या रहा है।
    • यह प्लास्मोडियम परजीवियों (Plasmodium Parasites) के कारण होने वाला मच्छर जनित रोग है।
    • यह परजीवी संक्रमित मादा एनोफिलीज़ मच्छर (Anopheles Mosquitoes) के काटने से फैलता है।
    • यह रोग मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रभावी होता है।
    • वेक्टर नियंत्रण (Vector Control) मलेरिया संचरण को रोकने और कम करने का मुख्य तरीका है।
  • प्रभाव:
    • वर्ष 2018 में दुनिया में मलेरिया के अनुमानित 228 मिलियन मामले हुए।
    • इससे अधिकांश मौतें (93%) अफ्रीकी क्षेत्र में हुई।
    • दक्षिण पूर्व एशिया में, मलेरिया के अधिकांश मामले भारत में रहे और यहाँ इस बीमारी से मरने वालों की संख्‍या भी सबसे अधिक रही।
    • मानव आबादी वाले क्षेत्र में कीटनाशकों का छिड़काव (IRS) मच्‍छरों को खत्‍म करने का प्रभावी माध्‍यम साबित हुआ है।
    • विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2019 के अनुसार, भारत में वर्ष 2017 की तुलना में वर्ष 2018 में 2.6 मिलियन कम मामले दर्ज किये गए। इस प्रकार देश में मलेरिया के कुल मामलों में कमी देखने को मिली है।
    • हालाँकि भारत में दर्ज किये जाने वाले कुल मामलों में से लगभग 90%, 7 राज्यों (उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, गुजरात, ओडिशा और मध्य प्रदेश) से हैं।

HIL इंडिया

  • HIL (इंडिया) विश्व में DDT का निर्माण करने वाली एकमात्र कंपनी है।
  • भारत सरकार के मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को DDT की आपूर्ति के लिये वर्ष 1954 में इस कंपनी का गठन किया गया था।

स्रोत: PIB


जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन

प्रीलिम्स के लिये

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हरित अधिकरण,  जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम

मेन्स के लिये

जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन की आवश्यकता और उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) को सूचित किया है कि देश भर में तकरीबन 1.60 लाख से अधिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा (HCF) इकाइयाँ जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमों (Bio-medical Waste Management Rules) के तहत अपेक्षित अनुमति के बिना ही कार्य कर रही हैं। 

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, सभी राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा प्रस्तुत की गई वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि देश भर के कुल 2,70,416 स्वास्थ्य देखभाल सुविधा इकाइयों में से केवल 1,11,122 इकाइयों ने अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर अपेक्षित अनुमति के लिये आवेदन किया है और मात्र 1,10,356 इकाइयों को इस प्रकार की अनुमति प्राप्त हुई है।
    • इस प्रकार देश भर में कुल 2,70,416 स्वास्थ्य सुविधा इकाइयों में से केवल 1,10,356 इकाइयाँ ही वर्ष 2019 तक अधिकृत हैं।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक देश भर में लगभग 50 हज़ार इकाइयाँ ऐसी हैं, जिन्होंने न तो अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर अपेक्षित अनुमति के लिये आवेदन किया है और न ही उन्हें इस संबंध में पहले से कोई अनुमति प्राप्त है।

स्वास्थ्य देखभाल सुविधा इकाइयाँ

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, स्वास्थ्य देखभाल सुविधा इकाइयों में सभी प्रकार के अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र और आइसोलेशन कैंप आदि को शामिल किया जाता है। गौरतलब है कि आपातकालीन स्थितियों में प्रायः स्वास्थ्य देखभाल इकाइयों में रोगियों की संख्या काफी बढ़ जाती है, जिनमें से कुछ को विशिष्ट चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता हो सकती है।
  • संबंधित आँकड़ों पर गौर करते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राज्यों को इस प्रक्रिया में तेज़ी लाने और 31 दिसंबर, 2020 तक इसे पूरा का निर्देश दिया है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश भर के कुल सात राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जैव चिकित्सा अपशिष्ट के उपचार और निपटान के लिये कोई भी कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटीज़ (Common Biomedical Waste Treatment Facilities-CBWTF) नहीं है।
    • इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अंडमान और निकोबार, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, लक्षद्वीप, नगालैंड, सिक्किम शामिल हैं।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इनमें से अधिकांश राज्यों ने स्वीकार किया है कि वे नए CBWTF की स्थापना करने की प्रक्रिया में हैं।
  • इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पतालों में अलग-अलग रंग के डिब्बों के माध्यम से कचरे का पृथक्करण भी नहीं किया जा रहा है।

कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटीज़ (CBWTF)

  • कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी (CBWTF) का अभिप्राय एक ऐसे ढाँचे से होता है, जहाँ विभिन्न स्वास्थ्य सुविधा इकाइयों से उत्पन्न बायो-मेडिकल अपशिष्ट के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने हेतु उसे आवश्यक उपचार प्रदान किया जाता है, जिससे इस अपशिष्ट का सही ढंग से निपटान किया जा सके।

NGT का निर्णय

  • NGT ने एक बार पुनः महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों को कवर करने वाली ज़िला पर्यावरण योजनाओं की निगरानी के लिये ज़िला योजना समितियों (District Planning Committees) के गठन के निर्देश को दोहराया।
  • NGT ने कहा कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के लिये आवश्यक है कि वे राज्य में CBWTFs द्वारा पालन किये जा रहे मानदंडों की स्थिति की जाँच करें।

पृष्ठभूमि 

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के दिशा-निर्देश उत्तर प्रदेश के एक पत्रकार द्वारा दायर याचिका के संबंध में प्रदान किये गए हैं, जिसमें उन सभी अस्पतालों, चिकित्सा सुविधा इकाइयों और अपशिष्ट निपटान संयंत्रों को बंद करने की मांग की गई की गई थी, जो अपशिष्ट प्रबंधन संबंधित आवश्यक नियमों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं।
  • याचिकाकर्त्ता ने आरोप लगाया था कि देश के कई अस्पतालों में कचरा चुनने वाले लोगों (Rag-Pickers) को जैव अपशिष्ट के अनधिकृत परिवहन की अनुमति दी जाती है और वे अवैज्ञानिक तरीके से इसका निपटान करते हैं, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचता है।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 22 जुलाई, 2020

‘वेस्ट टू एनर्जी’ पहल

उत्तराखंड सरकार ने ‘वेस्ट टू एनर्जी’ नाम से एक पहल की शुरुआत की है, जिसके तहत राज्य सरकार राज्य में उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट को बिजली में परिवर्तित करने का कार्य करेगी। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने इस मामले को लेकर नीति का एक मसौदा तैयार कर लिया है और जल्द ही इस मुद्दे को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की एक बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें इस पहल की आगे की रणनीति तय की जाएगी। राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में उत्तराखंड में प्रतिदिन 900 टन अपशिष्ट पैदा होता है। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UEPPCB) के अनुसार, राज्य में उत्पन्न अपशिष्ट के माध्यम से लगभग 5 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है और राज्य में प्रदूषण पर अंकुश लगाया जा सकता है। इस पहल का उद्देश्य राज्य में ठोस अपशिष्ट के निपटान के लिये लैंडफिल की अनुपलब्धता की समस्या को भी हल करना है। बीते माह UEPPCB ने आगामी वाले वर्षों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिये राज्य ईंधन नीति को भी मंज़ूरी दी थी, जिसमें आगामी कुछ वर्षों में ईंधन के रूप में पेट्रोलियम कोक (Petroleum Coke) के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना शामिल था, जिसका वायु प्रदूषण पर बड़े पैमाने पर प्रभाव पड़ता है। इससे पूर्व इसी वर्ष जनवरी माह में देहरादून शहर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के निर्धारित मानकों से लगभग 11 गुना अधिक प्रदूषित पाया गया था।

अंतर्राष्ट्रीय शतरंज दिवस

विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 20 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय शतरंज दिवस (International Chess Day) के रूप में मनाया जाता है, इस दिवस का आयोजन प्रत्येक वर्ष 20 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय शतरंज संघ (International Chess Federation-FIDE) के स्थापना दिवस के रूप में किया जाता है। हाल ही में 20 जुलाई, 2020 को अंतर्राष्ट्रीय शतरंज संघ (FIDE) की 96वीं वर्षगांठ मनाई गई। दुनिया भर में खेले जाने वाले शतरंज को हमारे युग के सबसे पुराने खेलों में शामिल किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय शतरंज संघ (FIDE) अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शतरंज के खेल का शासी निकाय है और यह सभी अंतर्राष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिताओं को नियंत्रित करता है। एक गैर-सरकारी संस्थान के रूप में अंतर्राष्ट्रीय शतरंज संघ (FIDE) की स्थापना 20 जुलाई, 1924 को पेरिस (फ्रांँस) में की गई थी। अंतर्राष्ट्रीय शतरंज दिवस 20 जुलाई, 1966 को उसी दिन FIDE के स्थापना दिवस के रूप में शुरू हुआ। गौरतलब है कि वर्ष 1966 से प्रतिवर्ष 20 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय शतरंज दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। ध्यातव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने वर्ष 1999 में अंतर्राष्ट्रीय शतरंज संघ (FIDE) को एक वैश्विक खेल संगठन के रूप में मान्यता प्रदान की थी। 

करंजा सौर ऊर्जा संयंत्र

हाल ही में वाइस एडमिरल अजीत कुमार ने पश्चिमी नौसेना कमान के लिये दो मेगावाट क्षमता वाले पहले सौर ऊर्जा संयंत्र का ई-उद्घाटन किया है। इस संयंत्र की स्थापना नौसेना स्टेशन करंजा में की गई है और इस क्षेत्र के लिये यह सबसे बड़े सौर उर्जा संयंत्रों में से एक है। इस सौर उर्जा संयंत्र में 100 प्रतिशत स्वदेशी रूप से विकसित किये गए सौर पैनल, ट्रैकिंग टेबल और इनवर्टर लगे हुए हैं। यह संयंत्र कंप्यूटरीकृत निगरानी और नियंत्रण के साथ-साथ, नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए ग्रिड के साथ परस्पर जुड़ा हुआ है। गौरतलब है कि भारतीय नौसेना की यह परियोजना नौसेना स्टेशन में बिजली आपूर्ति की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये सौर ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।